Abhiyan Foundation
NGO
*बात (लेख)अगर मन को छुये तो कोमेंट के माध्यम से बताना जरूर
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😁😁 बाजा़र में एक चिड़ीमार तीतर बेच रहा था...*
*उसके पास एक बडी जालीदार टोकरी में बहुत सारे तीतर थे..!*
*और एक छोटी जालीदार टोकरी में सिर्फ एक ही तीतर था..!*
*एक ग्राहक ने पूछा*
*एक तीतर कितने का है..?*
*"40 रूपये का..!"*
*ग्राहक ने छोटी टोकरी के* *तीतर की कीमत पूछी।*
*तो वह बोला*,
*"मैं इसे बेचना ही नहीं चाहता..!"*
*"लेकिन आप जिद करोगे,*
*तो इसकी कीमत 1000 रूपये होगी..!"*
*ग्राहक ने आश्चर्य से पूछा,*
*"इसकी कीमत इतनी ज़्यादा क्यों है..?"*
*"दरअसल यह मेरा अपना पालतू तीतर है और यह दूसरे तीतरों को जाल में फंसाने का काम करता है..!"*
*"जब ये चीख पुकार कर दूसरे तीतरों को बुलाता है और दूसरे तीतर बिना सोचे समझे ही एक जगह जमा हो जाते हैं फिर मैं आसानी से सभी का शिकार कर लेता हूँ..!"*
*बाद में, मैं इस तीतर को उसकी मनपसंद की 'खुराक" दे देता हूँ जिससे ये खुश हो जाता है..!*
*"बस इसीलिए इसकी कीमत भी ज्यादा है..!"*
*उस समझदार आदमी ने तीतर वाले को 1000 रूपये देकर उस तीतर की सरे आम बाजार में गर्दन मरोड़ दी..!*
*उसने पूछा "अरे, ज़नाब आपने ऐसा क्यों किया..?*
*उसका जवाब था,*
*"ऐसे दगाबाज को जिन्दा* *रहने का कोई हक़ नहीं है जो अपने हित के लिए अपने ही समाज को फंसाने का काम करे और अपने लोगो को धोखा दे..!"*
*हमारे देश में भी ऐसे 1000 रू की क़ीमत वाले बहुत सारे तीतर हैं..!*
" *जिन्हें सेक्युलर, लिबरल,वामपंथी,* *कम्युनिस्ट,धर्मनिरपेक्ष, जातिवादी, परिवारवादी* *आदि नाम से जानते हैं..!"*
*ऐसे धोखेबाज तीतरों से सावधान रहें..!😎*
द्वारा: रबी दुबे (अध्यक्ष अभियान फाउण्डेसन आगरा )
उत्तर प्रदेश !!
Mo No 9412270477
सारे शहर और देशवासियों को अभियान फाउंडेशन के अध्यक्ष रवी दुबे जी की ओर से वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं! 🙏🙏
अभियान फाउंडेशन के अध्यक्ष रवि दुबे जी ने आज वृंदावन में मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ जी से भेंट कर आगरा में बनने वाले मेट्रो स्टेशन जामा मस्जिद का नाम बदलकर मनकामेश्वर मंदिर मेट्रो स्टेशन हो इस विषय को मुख्यमंत्री जी के समक्ष रखा.... जय श्री राम 🙏🙏
हो आपके जीवन में खुशियाली,
कभी भी न रहे कोई दुख देने वाली पहेली,
सदा खुश रहें आप और आपका परिवार,……II अभियान फाउण्डेशन की तरफ से सभी शहर वासियों को मकर सक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं! 🙏
!! हैप्पी मकर संक्रान्ति !!
सिंधु विकास मंच द्वारा श्री कृष्ण गऊशाला में अभियान फाउंडेशन का सिंधी समाज की तरह से स्वागत किया गया जिसमें समाज की कई संस्थाओं के पदादिकरियो ने फाउंडेशन के अध्यक्ष रवि दुबेजी का सम्मान किया गया.
राष्ट्रीय गौरव अमर शहीद गुरुपुत्र चार साहिबजादों की विनम्र श्रद्धांजलि यात्रा पहुंची गुरुद्वारा श्री फतेहगढ साहिब और शहीदी दिवस पर आयोजित कीर्तन दरबार में पहुंचकर सभी ने माथा टेका!
राष्ट्रीय गौरव अमर शहीद गुरुपुत्र चार साहिबजादों की विनम्र श्रद्धांजलि यात्रा पहुंची गुरुद्वारा श्री फतेहगढ साहिब और शहीदी दिवस पर आयोजित कीर्तन दरबार में पहुंचकर सभी ने माथा टेका, और अभियान फाउंडेशन के द्वारा तसवीरें भेंट की गईं!
अभियान फाउंडेशन सरहिंद यात्रा का हुआ जोरदार स्वागत और प्रेस कॉन्फ्रेंस!
अभियान फाउंडेशन (चार साहिबजादे) श्रदांजलि यात्रा🙏🙏
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सूरा सो पहचानिये, जो लड़े दीन के हेत । पूर्जा पूर्जा कट मरे, कबहू न छोड़े खेत ।।
हमारा देश कुर्बानियों और शहादत के लिए जाना जाता है और यहां तक के हमारे गुरूओं ने भी देश कौम के लिए अपनी जानें न्यौछावर की हैं…देश और कौम के लिए अपनी शहादत देने के लिए गुरूओं के लाल भी पीछे नहीं रहें…जी हां गुरूओं के बच्चों ने भी देश और कौम की खातिर अपनी जान की बाजी लगा दी…दशम पिता गुरू गोबिन्द सिंह जी के छोटे साहिबजादों की शहीदी को कौन भुला सकता है …जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अजीम और महान शहादत दी..उनकी शहादत से तो मानो सरहंद की दीवारें भी कांप उठी थी… वो भी नन्हें बच्चों के साथ हो रहे कहर को सुन कर रो पड़ी ।
गुरू गोबिन्द सिंह को चारों साहिबजादों की शहीदी को कोई भूले से भी नहीं भुला सकता…आज भी जब कोई उस दर्दनाक घटना को याद करता है तो कांप उठता है…गुरू गोबिन्द सिंह के बड़े साहिबजादें बाबा अजीत सिंह और जुझार सिंह चमकौर की जंग मुगलों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे…उन्होंने ये शहीदी 22 दिसम्बर और 27 दिसम्बर 1704 को पाई… इस दौरान बडे़ साहिबजादों में बाबा अजीत सिंह की उम्र 17 साल थी जबकि बाबा जुझार सिंह की उम्र महज 13 साल की थी….मगर जो उम्र बच्चों के खेलने कूदने की होती है उस उम्र में छोटे साहिबजादों ने शहीदी प्राप्त की…छोटे साहिबजादों को सरहंद के सूबेदार वजीर खान ने जिंदा दीवारों में चिनवा दिया था… उस समय छोटे साहिबजादों में बाबा जोरावर सिंह की उम्र आठ साल थी …जबकि बाबा फतेह सिंह की उम्र केवल 5 साल की थी…इस महान शहादत के बारे में हिन्दी के कवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है …
जिस कुल जाति देश के बच्चे दे सकते हैं जो बलिदान…
उसका वर्तमान कुछ भी हो भविष्य है महा महान
गुरूमत के अनुसार अध्यात्मिक आनन्द पाने के लिए मनुष्य को अपना सर्वस्व मिटाना पड़ता है…और उस परम पिता परमेश्वर की रजा में रहना पड़ता है…इस मार्ग पर गुरू का भगत , गुरू का प्यारा या सूरमा ही चल चल सकता है…इस मार्ग पर चलने के लिए श्री गुरू नानक देव जी ने सीस भेंट करने की शर्त रखी थी…एक सच्चा सिख गुरू को तन , मन और धन सौंप देता है और वो किसी भी तरह की आने वाली मुसीबत से नहीं घबराता…इसी लिए तो कहा भी गया है…
तेरा तुझको सौंप के क्या लागै है मेरा
भारत पर मुगलों ने कई सौ बरस तक राज किया…उन्होंने इस्लाम धर्म को पूरे भारत में फैलाने के लिए हिन्दुओं पर जुल्म भी किए… मुगल शासक औरगंजेब ने तो जुल्म की इंतहा कर दी और जुल्म की सारी हदें तोड़ डाली…हिन्दुओं को पगड़ी पहनने और घोड़ी पर चढ़ने की रोक लगाई गई… और एक खास तरह टैक्स भी हिन्दु जाति पर लगाया गया जिसे जजिया टैक्स कहा जाता था…हिन्दुओं में आपसी कलह के कारण जुल्मों का विरोध नहीं हो रहा था… इन्हीं जुल्मों के खिलाफ आवाज उठाई दशम पिता गुरू गोबिन्द सिंह जी ने…उन्होंने निर्बल हो चुके हिन्दुओं में नया उत्साह और जागृति पैदा करने का मन बना लिया…इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए गुरू गोबिन्द सिंह जी ने 1699 को बैसाखी वाले दिन आनन्दपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की…कई स्थानों पर सिखों और हिन्दुओं ने खालसा पंथ की स्थापना का विरोध किया… मुगल शासकों के साथ साथ कट्टर हिन्दुओं और उच्च जाति के लोगों ने भी खालसा पंथ की स्थापना का विरोध किया… कई स्थानों पर माहौल तनाव पूर्ण हो गया…सरहंद के सूबेदार वजीर खान और पहाड़ी राजे एकजुट हो गए और 1704 पर गुरू गोबिन्द सिंह जी पर आक्रमण कर दिया…सिखों ने बड़ी दलेरी से इनका मुकाबला किया और सात महीने तक आनन्दपुर के किले पर कब्जा नहीं होने दिया–आखिर हार कर मुगल शासकों ने कुरान की कसम खाकर और हिन्दु राजाओं ने गऊ माता की कसम खाकर गुरू जी से किला खाली कराने के लिए विनती की…20 दिसम्बर 1704 की रात को गुरू गोबिन्द जी ने किले को खाली कर दिया गया और गुरू जी सेना के साथ रोपड़ की और कूच कर गए…जब इस बात का पता मुगलों को लगा तो उन्होंने सारी कसमें तोड़ डाली और गुरू जी पर हमला कर दिया…लड़ते – लड़ते सिख सिरसा नदी पार कर गए और चमकौर की गढ़ी में गुरू जी और उनके दो बड़े साहिबजादों ने मोर्चा संभाला…ये जंग अपने आप में खास है क्योंकि 80 हजार मुगलों से केवल 40 सिखों ने मुकाबला किया था…जब सिखों का गोला बारूद खत्म हो गया तो गुरू गोबिन्द सिंह जी ने पांच पांच सिखों का जत्था बनाकर उन्हें मैदाने जंग में भेजा ..इस लड़ाई में गुरू जी से इजाजत लेकर बड़े साहिबजादें भी शामिल हो गए लड़ते लड़ते वो सिरसा नदी पार कर गए…बड़े साहिबजादें छोटी सी उम्र में मुगलों से मुकाबला करते हुए शहीद हो गए…अब सवाल ये उठता है कि छोटे साहिबजादों का आखिर क्या कसूर था कि सरहंद के सूबेदार ने नन्हें बच्चों की उम्र का भी लिहाज नहीं रखा…और उन्हें जिन्दा सरहंद की दीवारों में चिनवा दिया । मगर छोटे साहिबजादों ने इन जुल्मों की परवाह नहीं की…
दूसरी ओर सिरसा नदी पार करते वक्त गुरू जी की माता गुजरी जी और छोटे साहिबजादे बिछुड़ गए…गुरू जी का रसोईया गंगू ब्राहम्ण उन्हें अपने साथ ले गया …रात को उसने माता जी की सोने की मोहरों वाली गठरी चोरी कर ली…सुबह जब माता जी ने गठरी के बारे में पूछा तो वो न सिर्फ आग बबूला ही हुआ…बल्कि उसने गांव के चौधरी को गुरू जी के बच्चों के बारे में बता दिया…और इस तरह ये बात सरहिन्द के नवाब तक पहुंच गई…सरहंद के नवाब ने उन्हें ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया….नवाब ने दो तीन दिन तक उन बच्चों को इस्लाम धर्म कबूल करने को कहा…जब वो नहीं माने तो उन्हें खूब डराया धमकाया गया ,मगर वो नहीं डोले और वो अडिग रहें …उन्हें कई लालच दिए गए…लेकिन वो न तो डरे , न ही किसी बात का लोभ और लालच ही किया…न ही धर्म को बदला… सुचानंद दीवान ने नवाब को ऐसा करने के लिए उकसाया और यहां तक कहां कि यह सांप के बच्चे हैं इनका कत्ल कर देना ही उचित है…आखिर में काजी को बुलाया गया…जिसने उन्हें जिंदा ही दीवार में चिनवा देने का फतवा दे दिया…उस समय मलेरकोटला के नवाब शेर मुहम्मद खां भी वहां उपस्थित थे…उसने इस बात का विरोध किया…फतवे के अनुसार जब 27 दिसम्बर 1704 में छोटे साहिबजादों को दीवारों में चिना जाने लगा तो…जब दीवार गुरू के लाडलों के घुटनों तक पहुंची तो घुटनों की चपनियों को तेसी से काट दिया गया ताकि दीवार टेढी न हो जाए…जुल्म की इंतहा तो तब हो गई…जब दीवार साहिबजादों के सिर तक पहुंची तो शाशल बेग और वाशल बेग जल्लादों ने शीश काट कर साहिबजादों को शहीद कर दिया…छोटे साहिबजादों की शहीदी की खबर सुनकर उनकी दादी स्वर्ग सिधार गई…इतने से भी इन जालिमों का दिल नहीं भरा और लाशों को खेतों में फेंक दिया गया…जब इस बात की खबर सरहंद के हिन्दू साहूकार टोडरमल को लगी तो उन्होंने संस्कार करने की सोची..उसको कहा गया कि जितनी जमीन संस्कार के लिए चाहिए…उतनी जगह पर सोने की मोहरें बिछानी पड़ेगी…कहते हैं कि टोडरमल जी ने उस जगह पर अपने घर के सब जेवर और सोने की मोहरें बिछा कर साहिबजादों और माता गुजरी का दाह संस्कार किया…संस्कार वाली जगह पर बहुत ही सुन्दर गुरूव्दारा ज्योति स्वरूप बना हुआ है जबकि शहादत वाली जगह पर बहुत बड़ा गुरूव्दारा है…यहां हर साल 25से 27 दिसम्बर तक शहीदी जोड़ मेला लगता है…जो तीन दिन तक चलता है…धर्म की रक्षा के लिए …नन्हें बालकों ने हंसते हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए मगर हार नहीं मानी…मुगल नवाब वजीर खान के हुक्म पर इन्हें फतेहगढ़ साहिब के भौरा साहिब में जिंदा चिनवा दिया गया …यही नहीं छोटे साहिबजादे बाबा फतेह सिंह के नाम पर इस स्थान का नाम फतेहगढ़ साहिब रखा गया था….
जी हां धर्म ईमान की खातिर दशम पिता के इन राजकुमारों ने शहीदी पाई …लेकिन वो सरहंद के सूबेदार के आगे झुके नहीं …बल्कि उन्होंने खुशी खुशी शहीदी प्राप्त की…पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में हर साल साहिबजादों की याद में तीन दिवसीय मेला लगता है… गुरूव्दारा श्री फतेहगढ़ साहिब में बना ठंडा बुर्ज का भी अहम महत्व है…यही पर माता गुजरी ने तकरीबन आठ वर्ष तक दोनों छोटे साहिबजादों को धर्म और कौम की रक्षा का पाठ पढ़ाया था..इसी ठंडे बुर्ज में पोष माह की सर्द रातों में माता गुजरी ने बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को धर्म की रक्षा के लिए शीश न झुकाते हुए अपने धर्म पर कायम रहने की शिक्षा दी थी …गुरू गोबिन्द सिंह जी के चारो साहिबजादों की पढ़ाई और शस्त्र विद्या गुरू साहिब की निगरानी में हुई …उन्होंने घुड़सवारी , शस्त्र विद्या और तीर अंदाजी में अपने राजकुमारों को माहिर बना दिया….दशम पातशाह के चारों राजकुमारों को साहिबजादें इसलिए कहा जाता है …क्योंकि दो दो साहिबजादें इक्टठे शहीद हुए थे … इसलिए इनको बड़े साहिबजादें और छोटे साहिबाजादे कहकर याद किया जाता है…जोरावर सिंह जी की शहीदी के समय उम्र 9 साल जबकि बाबा फतेह सिंह की उम्र 7 साल की थी ….इनके नाम के साथ बाबा शब्द इसलिए लगाया क्योंकि उन्होंने इतनी छोटी उम्र में शहादत देकर मिसाल पेश की …उनकी इन बेमिसाल कुर्बानियों के कारण इन्हें बाबा पद से सम्मानित किया गया…
आप सभी से निवेदन है बाल दिवस मनाना है तो कृपया हमारे सनातनी बालको जिन्होंने अपने देश के लिये अपने प्राण न्योछावर किये उनके लिये मनाये तो उन नन्हे बालको के लिये यही सच्ची श्रध्दांजलि होगी!
आयोजक : - अभियान फाउंडेशन
अध्यक्ष - रवि दुबे जी , सम्पर्क नम्बर - +91 7668742159
अभियान फाउंडेशन की मांगों को किया मुख्यमंत्री योगी जी ने मान्य, पाठ्यक्रम में शामिल होगा सिख गुरुओं का इतिहास। उत्तर प्रदेश विद्यालयों में हर वर्ष 27 दिसम्बर को मनेगा साहिबजादा दिवस!
शहीदी दिवस विशेष (चार साहिबजादे)
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सूरा सो पहचानिये, जो लड़े दीन के हेत । पूर्जा पूर्जा कट मरे, कबहू न छोड़े खेत ।।
हमारा देश कुर्बानियों और शहादत के लिए जाना जाता है और यहां तक के हमारे गुरूओं ने भी देश कौम के लिए अपनी जानें न्यौछावर की हैं…देश और कौम के लिए अपनी शहादत देने के लिए गुरूओं के लाल भी पीछे नहीं रहें…जी हां गुरूओं के बच्चों ने भी देश और कौम की खातिर अपनी जान की बाजी लगा दी…दशम पिता गुरू गोबिन्द सिंह जी के छोटे साहिबजादों की शहीदी को कौन भुला सकता है …जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अजीम और महान शहादत दी..उनकी शहादत से तो मानो सरहंद की दीवारें भी कांप उठी थी… वो भी नन्हें बच्चों के साथ हो रहे कहर को सुन कर रो पड़ी ।
गुरू गोबिन्द सिंह को चारों साहिबजादों की शहीदी को कोई भूले से भी नहीं भुला सकता…आज भी जब कोई उस दर्दनाक घटना को याद करता है तो कांप उठता है…गुरू गोबिन्द सिंह के बड़े साहिबजादें बाबा अजीत सिंह और जुझार सिंह चमकौर की जंग मुगलों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे…उन्होंने ये शहीदी 22 दिसम्बर और 27 दिसम्बर 1704 को पाई… इस दौरान बडे़ साहिबजादों में बाबा अजीत सिंह की उम्र 17 साल थी जबकि बाबा जुझार सिंह की उम्र महज 13 साल की थी….मगर जो उम्र बच्चों के खेलने कूदने की होती है उस उम्र में छोटे साहिबजादों ने शहीदी प्राप्त की…छोटे साहिबजादों को सरहंद के सूबेदार वजीर खान ने जिंदा दीवारों में चिनवा दिया था… उस समय छोटे साहिबजादों में बाबा जोरावर सिंह की उम्र आठ साल थी …जबकि बाबा फतेह सिंह की उम्र केवल 5 साल की थी…इस महान शहादत के बारे में हिन्दी के कवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है …
जिस कुल जाति देश के बच्चे दे सकते हैं जो बलिदान…
उसका वर्तमान कुछ भी हो भविष्य है महा महान
गुरूमत के अनुसार अध्यात्मिक आनन्द पाने के लिए मनुष्य को अपना सर्वस्व मिटाना पड़ता है…और उस परम पिता परमेश्वर की रजा में रहना पड़ता है…इस मार्ग पर गुरू का भगत , गुरू का प्यारा या सूरमा ही चल चल सकता है…इस मार्ग पर चलने के लिए श्री गुरू नानक देव जी ने सीस भेंट करने की शर्त रखी थी…एक सच्चा सिख गुरू को तन , मन और धन सौंप देता है और वो किसी भी तरह की आने वाली मुसीबत से नहीं घबराता…इसी लिए तो कहा भी गया है…
तेरा तुझको सौंप के क्या लागै है मेरा
भारत पर मुगलों ने कई सौ बरस तक राज किया…उन्होंने इस्लाम धर्म को पूरे भारत में फैलाने के लिए हिन्दुओं पर जुल्म भी किए… मुगल शासक औरगंजेब ने तो जुल्म की इंतहा कर दी और जुल्म की सारी हदें तोड़ डाली…हिन्दुओं को पगड़ी पहनने और घोड़ी पर चढ़ने की रोक लगाई गई… और एक खास तरह टैक्स भी हिन्दु जाति पर लगाया गया जिसे जजिया टैक्स कहा जाता था…हिन्दुओं में आपसी कलह के कारण जुल्मों का विरोध नहीं हो रहा था… इन्हीं जुल्मों के खिलाफ आवाज उठाई दशम पिता गुरू गोबिन्द सिंह जी ने…उन्होंने निर्बल हो चुके हिन्दुओं में नया उत्साह और जागृति पैदा करने का मन बना लिया…इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए गुरू गोबिन्द सिंह जी ने 1699 को बैसाखी वाले दिन आनन्दपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की…कई स्थानों पर सिखों और हिन्दुओं ने खालसा पंथ की स्थापना का विरोध किया… मुगल शासकों के साथ साथ कट्टर हिन्दुओं और उच्च जाति के लोगों ने भी खालसा पंथ की स्थापना का विरोध किया… कई स्थानों पर माहौल तनाव पूर्ण हो गया…सरहंद के सूबेदार वजीर खान और पहाड़ी राजे एकजुट हो गए और 1704 पर गुरू गोबिन्द सिंह जी पर आक्रमण कर दिया…सिखों ने बड़ी दलेरी से इनका मुकाबला किया और सात महीने तक आनन्दपुर के किले पर कब्जा नहीं होने दिया–आखिर हार कर मुगल शासकों ने कुरान की कसम खाकर और हिन्दु राजाओं ने गऊ माता की कसम खाकर गुरू जी से किला खाली कराने के लिए विनती की…20 दिसम्बर 1704 की रात को गुरू गोबिन्द जी ने किले को खाली कर दिया गया और गुरू जी सेना के साथ रोपड़ की और कूच कर गए…जब इस बात का पता मुगलों को लगा तो उन्होंने सारी कसमें तोड़ डाली और गुरू जी पर हमला कर दिया…लड़ते – लड़ते सिख सिरसा नदी पार कर गए और चमकौर की गढ़ी में गुरू जी और उनके दो बड़े साहिबजादों ने मोर्चा संभाला…ये जंग अपने आप में खास है क्योंकि 80 हजार मुगलों से केवल 40 सिखों ने मुकाबला किया था…जब सिखों का गोला बारूद खत्म हो गया तो गुरू गोबिन्द सिंह जी ने पांच पांच सिखों का जत्था बनाकर उन्हें मैदाने जंग में भेजा ..इस लड़ाई में गुरू जी से इजाजत लेकर बड़े साहिबजादें भी शामिल हो गए लड़ते लड़ते वो सिरसा नदी पार कर गए…बड़े साहिबजादें छोटी सी उम्र में मुगलों से मुकाबला करते हुए शहीद हो गए…अब सवाल ये उठता है कि छोटे साहिबजादों का आखिर क्या कसूर था कि सरहंद के सूबेदार ने नन्हें बच्चों की उम्र का भी लिहाज नहीं रखा…और उन्हें जिन्दा सरहंद की दीवारों में चिनवा दिया । मगर छोटे साहिबजादों ने इन जुल्मों की परवाह नहीं की…
दूसरी ओर सिरसा नदी पार करते वक्त गुरू जी की माता गुजरी जी और छोटे साहिबजादे बिछुड़ गए…गुरू जी का रसोईया गंगू ब्राहम्ण उन्हें अपने साथ ले गया …रात को उसने माता जी की सोने की मोहरों वाली गठरी चोरी कर ली…सुबह जब माता जी ने गठरी के बारे में पूछा तो वो न सिर्फ आग बबूला ही हुआ…बल्कि उसने गांव के चौधरी को गुरू जी के बच्चों के बारे में बता दिया…और इस तरह ये बात सरहिन्द के नवाब तक पहुंच गई…सरहंद के नवाब ने उन्हें ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया….नवाब ने दो तीन दिन तक उन बच्चों को इस्लाम धर्म कबूल करने को कहा…जब वो नहीं माने तो उन्हें खूब डराया धमकाया गया ,मगर वो नहीं डोले और वो अडिग रहें …उन्हें कई लालच दिए गए…लेकिन वो न तो डरे , न ही किसी बात का लोभ और लालच ही किया…न ही धर्म को बदला… सुचानंद दीवान ने नवाब को ऐसा करने के लिए उकसाया और यहां तक कहां कि यह सांप के बच्चे हैं इनका कत्ल कर देना ही उचित है…आखिर में काजी को बुलाया गया…जिसने उन्हें जिंदा ही दीवार में चिनवा देने का फतवा दे दिया…उस समय मलेरकोटला के नवाब शेर मुहम्मद खां भी वहां उपस्थित थे…उसने इस बात का विरोध किया…फतवे के अनुसार जब 27 दिसम्बर 1704 में छोटे साहिबजादों को दीवारों में चिना जाने लगा तो…जब दीवार गुरू के लाडलों के घुटनों तक पहुंची तो घुटनों की चपनियों को तेसी से काट दिया गया ताकि दीवार टेढी न हो जाए…जुल्म की इंतहा तो तब हो गई…जब दीवार साहिबजादों के सिर तक पहुंची तो शाशल बेग और वाशल बेग जल्लादों ने शीश काट कर साहिबजादों को शहीद कर दिया…छोटे साहिबजादों की शहीदी की खबर सुनकर उनकी दादी स्वर्ग सिधार गई…इतने से भी इन जालिमों का दिल नहीं भरा और लाशों को खेतों में फेंक दिया गया…जब इस बात की खबर सरहंद के हिन्दू साहूकार टोडरमल को लगी तो उन्होंने संस्कार करने की सोची..उसको कहा गया कि जितनी जमीन संस्कार के लिए चाहिए…उतनी जगह पर सोने की मोहरें बिछानी पड़ेगी…कहते हैं कि टोडरमल जी ने उस जगह पर अपने घर के सब जेवर और सोने की मोहरें बिछा कर साहिबजादों और माता गुजरी का दाह संस्कार किया…संस्कार वाली जगह पर बहुत ही सुन्दर गुरूव्दारा ज्योति स्वरूप बना हुआ है जबकि शहादत वाली जगह पर बहुत बड़ा गुरूव्दारा है…यहां हर साल 25से 27 दिसम्बर तक शहीदी जोड़ मेला लगता है…जो तीन दिन तक चलता है…धर्म की रक्षा के लिए …नन्हें बालकों ने हंसते हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए मगर हार नहीं मानी…मुगल नवाब वजीर खान के हुक्म पर इन्हें फतेहगढ़ साहिब के भौरा साहिब में जिंदा चिनवा दिया गया …यही नहीं छोटे साहिबजादे बाबा फतेह सिंह के नाम पर इस स्थान का नाम फतेहगढ़ साहिब रखा गया था….
जी हां धर्म ईमान की खातिर दशम पिता के इन राजकुमारों ने शहीदी पाई …लेकिन वो सरहंद के सूबेदार के आगे झुके नहीं …बल्कि उन्होंने खुशी खुशी शहीदी प्राप्त की…पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में हर साल साहिबजादों की याद में तीन दिवसीय मेला लगता है… गुरूव्दारा श्री फतेहगढ़ साहिब में बना ठंडा बुर्ज का भी अहम महत्व है…यही पर माता गुजरी ने तकरीबन आठ वर्ष तक दोनों छोटे साहिबजादों को धर्म और कौम की रक्षा का पाठ पढ़ाया था..इसी ठंडे बुर्ज में पोष माह की सर्द रातों में माता गुजरी ने बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को धर्म की रक्षा के लिए शीश न झुकाते हुए अपने धर्म पर कायम रहने की शिक्षा दी थी …गुरू गोबिन्द सिंह जी के चारो साहिबजादों की पढ़ाई और शस्त्र विद्या गुरू साहिब की निगरानी में हुई …उन्होंने घुड़सवारी , शस्त्र विद्या और तीर अंदाजी में अपने राजकुमारों को माहिर बना दिया….दशम पातशाह के चारों राजकुमारों को साहिबजादें इसलिए कहा जाता है …क्योंकि दो दो साहिबजादें इक्टठे शहीद हुए थे … इसलिए इनको बड़े साहिबजादें और छोटे साहिबाजादे कहकर याद किया जाता है…जोरावर सिंह जी की शहीदी के समय उम्र 9 साल जबकि बाबा फतेह सिंह की उम्र 7 साल की थी ….इनके नाम के साथ बाबा शब्द इसलिए लगाया क्योंकि उन्होंने इतनी छोटी उम्र में शहादत देकर मिसाल पेश की …उनकी इन बेमिसाल कुर्बानियों के कारण इन्हें बाबा पद से सम्मानित किया गया…
आप सभी से निवेदन है बाल दिवस मनाना है तो कृपया हमारे सनातनी बालको जिन्होंने अपने देश के लिये अपने प्राण न्योछावर किये उनके लिये मनाये तो उन नन्हे बालको के लिये यही सच्ची श्रध्दांजलि होगी!
आयोजक : - अभियान फाउंडेशन
अध्यक्ष - रवि दुबे जी , सम्पर्क नम्बर - +91 7668742159
दुख निवारण गुरुद्वारा पटियाला पंजाब में अभियान फाउंडेशन का जोरदार स्वागत हुआ, तथा अभियान फाउंडेशन के द्वारा गुरुगोविन्द सिंह जी और चार साहिबजादों की तसवीरें भेंट की गई।
राष्ट्रीय गौरव अमर शहीद गुरुपुत्र चार साहिबजादों के नाम विनम्र श्रद्धांजलि यात्रा का ,राजपुरा पंजाब में भव्य स्वागत किया गया साफा पहनाकर, अभियान फाउंडेशन के द्वारा गुरुगोबिंद सिंह जी और चार साहिबजादों की तसवीर भेंट की गईं। 🙏🙏
राष्ट्रीय गौरव अमर शहीद गुरुपुत्र चार साहिबजादों के नाम विनम्र श्रद्धांजलि यात्रा का ,राजपुरा पंजाब में भव्य स्वागत किया गया और अभियान फाउंडेशन के द्वारा गुरुगोबिंद सिंह जी और चार साहिबजादों की तसवीर भेंट की गईं। 🙏🙏
राष्ट्रीय गौरव अमर शहीद गुरुपुत्र चार साहिबजादों के नाम विनम्र श्रद्धांजलि यात्रा का , राजपुरा पंजाब में भव्य स्वागत किया गया और अभियान फाउंडेशन के द्वारा गुरुगोबिंद सिंह जी और चार साहिबजादों की तसवीर भेंट की गईं। 🙏🙏
राष्ट्रीय गौरव अमर शहीद गुरुपुत्र चार साहिबजादों के नाम विनम्र श्रद्धांजलि यात्रा का ,अम्बाला हरियाणा में भव्य स्वागत और पुष्प वर्षा और फूल माला पहनाकर किया गया और अभियान फाउंडेशन के द्वारा गुरुगोबिंद सिंह जी और चार साहिबजादों की तसवीर भेंट की गईं। 🙏🙏
राष्ट्रीय गौरव अमर शहीद गुरुपुत्र चार साहिबजादों के नाम विनम्र श्रद्धांजलि यात्रा का ,कुरुक्षेत्र हरियाणा में भव्य स्वागत मन्त्र उच्चारण और पुष्प वर्षा के द्वारा किया गया और अभियान फाउंडेशन के द्वारा गुरुगोबिंद सिंह जी और चार साहिबजादों की तसवीर भेंट की गईं। 🙏🙏
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