Er.Satyendra Singh, Assistant Manager , Oriental Insurance , Allahabad.
General Insurance
राजनीति में त्याग, समर्पण, सदाचार एवं सद्भाव की प्रतीक,
नारी शक्ति की सशक्त आवाज, CPP चेयरपर्सन श्रीमती सोनिया गांधी जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।
Today amarujala newspaper cutting .
Free Health check up camp by oriental insurance
*क्या था रेजांगला आज थोड़ा विस्तृत में जानते हैं*
दिनांक 17 नवंबर 1962 का दिन था लद्दाख के दक्षिण पूर्व में चीन के साथ लगती एक जगह है जिसको चुशूल घाटी या चुशूल गांव के नाम से भी जानते हैं। इसके बाईस किलोमीटर आगे रेजांगला या रेचिंन ला नामक दर्रा है जो आमतौर पर बर्फ से ढका रहता है, यहां सालभर तापमान -05 से नीचे ही रहता है इंसान तो छोड़िये यहां परिंदे भी रहने का साहस नहीं जुटा पाते।
चीन ने अक्टूबर 1962 में भारत पर हमला करना शुरू कर दिया था, इसके हमले के मुख्य केंद्र लद्दाख और अरूणाचल प्रदेश से लगती भारतीय सीमा थी। उस दौरान भारत की अर्थव्यवस्था रक्षा प्रणाली से लेकर राजनैतिक लाबी तक चीन से युद्ध करने के मुकाबले में नहीं थी।
*अब बात आती है 1962 भारत चीन युद्ध की-*
नवंबर शुरू होते होते भारत तमाम मोर्चे या तो हार चुका था या मोर्चों से अपने सैनिक वापस बुला चुका था। कई मोर्चे ऐसे भी थे जहां कायर बटालियनें अपनी पोस्ट छोड़कर भाग खड़ी हुई थी। चुशूल में तैनात 13 कुमाऊं की विशुद्ध अहीर पलटन की चार्ली कंपनी के ज्यादातर सैनिक हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र के 18 से लेकर 25 साल तक के ऊर्जा से भरे नवयुवक थे, जो कि मजबूत कद काठी के जिनकें हौसलें आसमान से ऊंचे थे।
मेजर शैतान सिंह भाटी जो कि राजस्थान के जोधपुर रहने वाले थे वो इस कंपनी के कमांडर थे। उन्होंने जवानों को भारत सरकार के द्वारा भेजा गया संदेश सुनाया कि हम चीनी सेना से पार नहीं पा सकते आप लोग अपनी पोस्ट छोड़कर वापस लेह सेना मुख्यालय आ जाओ। मेजर ने आगे कहा अपने अपने बोरिया बिस्तर बांधो और लेह चलने की तैयारी शुरू करो, क्योंकि हमारे पास ना तो पर्याप्त गोला बारूद है और ना ही तीन दिन से ज्यादा राशन। सबसे बड़ी बात हमें कवर देने के लिए सौ किलोमीटर तक कोई दूसरी इन्फैंट्री यहां मौजूद नहीं है (और हाल में ही जाट रेजीमेंट के नाम से बनाया गया एक स्मृति स्थल बड़ा ही हास्यप्रद लगता जो युद्ध में तो रास्ता भटकने की बात कहकर भगोड़े हो गये थे और आज अहीर धाम की तर्ज पर खुद की झूठी गाथा गा रहे हैं। खैर साहस और वीरता युद्ध के मैदान परखते हैं ना कि झूंड में रहकर गीदड़ भभकी से वीरता की इबारत लिखी जाती हैं)
मेजर के संदेश को सुनकर वीर अहीर नौजवानों ने वापस लौटने को साफ मना कर दिया और कहा जियेंगे तो देश के लिए और मरेंगे तो देश के लिए। इस विषय पर बात करते करते सुबह हो जाती है, वापस लौटने की बात अभी खत्म नहीं हुई थी क्योंकि मेजर शैतान सिंह परिस्थितियों को देखकर वहां मोर्चा लगाने के पक्ष में नहीं थे। इसके अलावा तीन अन्य लोग जिनकों इस कंपनी में अन्य सेवाओं के लिए पाबंद किया गया था। उनकी सुरक्षा के लिए भी मेजर चिंतित थे तो मेजर ने कहा ठीक है हम 18 नवंबर को दोपहर तक कोई निर्णय लेंगे कि हमें यहां मोर्चे पर रहना है या नहीं। इन तीन लोगों को दोपहर बाद वापस लेह भेजने के लिए मुख्यालय को सूचित कर दिया है।
18 नवंबर को दिन में तकरीबन ग्यारह बजे एक चरवाहा जो कि चुशूल गांव का रहने वाला था उसको भी दिवाली के अगले दिन लेह की तरफ अपने मवेशियों को लेकर जाना था, जो सीजन में आखिरी बार अपने मवेशियों को रेजांगला क्षेत्र से वापिस चरने के बाद लेकर आ रहा था। उसने सैनिकों को चीनी सेना की घुसपैठ के बारे में बताया।
मेजर ने चार सैनिकों को रेजांगला की चोटी से हालातों का जायजा लेने के लिए भेजा।
निरीक्षण दल ने वापस आकर बताया कि चीनी सेना का करीब पांच हजार का दल रेजांगला दर्रे के साथ साथ आगे बढ़ने की तैयारी में है और उनका रात के समय में धावा बोलने का इरादा है। क्योंकि उन्हें हमारी वास्तविक स्थिति का पता नहीं है।
मेजर ने सारी बातें सुनकर कहा हमें पता है हम 124 लोग हैं और वो पांच हजार हम उनका मुकाबला नहीं कर सकते, बताओ अब हमें क्या करना चाहिए? सभी सैनिक एक आवाज में बोले जियेंगे तो देश मिलेगा यश मिलेगा सम्मान मिलेगा देश के लिए शहीद होंगे तो तिरंगा मिलेगा स्वर्ग में देवताओं से ऊंचा कद मिलेगा (और वो लोग अपने लिए वीरता का धाम भी बनवा गये अपने साहस के कारण जिसे अहीर धाम कहा जाता है और एक खिताब भी जीत गए शूरवीरों में अति शूरवीर वीर अहीर) तो ठीक है रेजांगला की चोटी पर दिन ढलने से पहले मोर्चा लगा लो! ये कहकर मेजर एक अजीब सी सोच में पड़ गए कि ये कैसी मिट्टी के लोग हैं जहां मौत सामने है और ये जश्न जैसी तैयारी कर रहे हैं, जहां और पलटने ऐसे माहौल में बगावत करके भगौड़ी हो गई थी! जबकि इन्हें वापस जाने का मौका आगे से मिल रहा है और ये जान बुझकर खुद मौत से टकराने का जूनून लिए बैठे हैं!
मेजर उदास था मगर जवानों के हौसले को देखकर बड़ा खुश हुआ और दिल में एक तसल्ली भी हुई कि मैं दुनिया की सबसे बहादुर कंपनी का कमांडर भी हूं और मेरे सौभाग्य ने मुझे ये रेजांगला युद्ध क्षेत्र और वीर आभीरों का नेतृत्व करने का मौका दिया है और मैं इस मौके का भरपूर इस्तेमाल करूंगा और दुनिया के वीरता के इतिहास में हमें युनानी स्पार्टनस से ज्यादा याद किया जायेगा और हुआ भी यही। 18 नवंबर 1962 जहां देशवासी इस दिन दीवाली मना रहे थे वहीं रेजांगला के वारियर्स खूनी होली खेलने को आतुर थे। रात करीब नौ बजे चीनी सेना में हलचल मचती है एक विशाल चींटियों की तरह लंबा काफिला दर्रे के नीचे भारतीय सीमा की तरफ बढ़ता है। इस खौफनाक मंजर को देखकर हर किसी का कलेजा मुंह को आ जाये, मगर जहां वीरों के हौंसले रेजांगला की चोटी से ऊंचे हों वहां क्या बिसात थी इन चीनीयों की।
120 वीर सैनिकों ने पूरे रेजांगला को कवर लिया और दादा किशन की जय के नारे के साथ लाइट मशीन गनों को कंधों पर उठाकर चीनी सेना की तरफ मुंह खोल दिया। अचानक ऐसे हमले की उम्मीद चीनी सैनिकों को नहीं थी उन्में भगदड़ मच गई और वो अनुमान नहीं लगा सके कि यहां कितने सैनिक हैं और ये भारतीय सेना के किस तरह के सैनिक हैं। उन्होंने तो भारतीय सेना को मोर्चे छोड़कर भागते हुए ही सैनिक देखे थे ये मजबुत साहसी लोग कहां से आ गये। रात दो बजे तक चौदह सौ सैनिक खो चुका था चीन, इधर भारतीय सैनिक भी अपना तमाम गोला बारूद इस्तेमाल कर चुका था। तीन बजे फिर चीनी सेना ने वापिस रेजांगला पर धावा बोल दिया, मगर इस बार उन्हें गोलियों से नहीं बल्कि खाली राइफलों की संगीनों और बटो से भारतीय सैनिकों ने मारना शुरू कर दिया। कुछ सैनिकों ने चीनी सैनिकों को चट्टानों पर पटक पटक कर मारना शुरू कर दिया ये मजंर देखकर चीनी सैनिकों में खौफ पैदा हो गया और वो पिछे हटते चले गए।
सुबह करीब जब 6.15 पर रेजांगला की सफेद धरती पर सूरज की किरणें पड़ती हैं तो वहां सिर्फ दो रंग थे एक बर्फ का सफेद रंग और दुसरा वीर सैनिकों के साहस का गवाह खूनी लाल रंग। सैनिकों की उंगलियां ट्रिगर में थी और हर एक सैनिक की छाती में गोलियां, पीठ पर गोलियों के निशान नहीं थे। अलबत्ता पीठ पर निशान थे अपने ही लोगों की कायरता के जब वो मदद के लिए लेह हैड क्वार्टर से असलहे की मदद मांगते हैं तो एक मक्कार युनिट को गोला बारूद देकर भेजा जाता तो वो रास्ता भटकने की बात कहकर वापिस लौट जाते हैं। दर्द उस बात का भी है जब कवि प्रदीप को रेजांगला की बात सुनकर ये मेरे वतन के लोगों गीत की प्रेरणा मिली और वो ही प्रेरित सैनिक गीत में नहीं गाये वही सरकार जिसने तीन महीनों तक रेजांगला की पोस्ट पर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई और रेजांगला के शहीदों को भगौड़ा मान लिया था। यहां भी चीनी सेना ने ही इन वीरों को सम्मान दिया इनकी बहादुरी को सैल्यूट किया और चीनी मीडिया में इनकी बहादुरी का एक आर्टिकल छापा।
इन वीर अहीरों के सम्मान में कल ट्विटर पर एक ट्वीट जरूर करें
#यादव_शौर्य_दिवस
#शूरवीरों_में_अति_शूरवीर_वीर_अहीर
#अहीर_धाम
#रेजांगला_शौर्य_दिवस
#अहीर_रेजिमेंट_हक़_है_हमारा*क्या था रेजांगला आज थोड़ा विस्तृत में जानते हैं*
दिनांक 17 नवंबर 1962 का दिन था लद्दाख के दक्षिण पूर्व में चीन के साथ लगती एक जगह है जिसको चुशूल घाटी या चुशूल गांव के नाम से भी जानते हैं। इसके बाईस किलोमीटर आगे रेजांगला या रेचिंन ला नामक दर्रा है जो आमतौर पर बर्फ से ढका रहता है, यहां सालभर तापमान -05 से नीचे ही रहता है इंसान तो छोड़िये यहां परिंदे भी रहने का साहस नहीं जुटा पाते।
चीन ने अक्टूबर 1962 में भारत पर हमला करना शुरू कर दिया था, इसके हमले के मुख्य केंद्र लद्दाख और अरूणाचल प्रदेश से लगती भारतीय सीमा थी। उस दौरान भारत की अर्थव्यवस्था रक्षा प्रणाली से लेकर राजनैतिक लाबी तक चीन से युद्ध करने के मुकाबले में नहीं थी।
*अब बात आती है 1962 भारत चीन युद्ध की-*
नवंबर शुरू होते होते भारत तमाम मोर्चे या तो हार चुका था या मोर्चों से अपने सैनिक वापस बुला चुका था। कई मोर्चे ऐसे भी थे जहां कायर बटालियनें अपनी पोस्ट छोड़कर भाग खड़ी हुई थी। चुशूल में तैनात 13 कुमाऊं की विशुद्ध अहीर पलटन की चार्ली कंपनी के ज्यादातर सैनिक हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र के 18 से लेकर 25 साल तक के ऊर्जा से भरे नवयुवक थे, जो कि मजबूत कद काठी के जिनकें हौसलें आसमान से ऊंचे थे।
मेजर शैतान सिंह भाटी जो कि राजस्थान के जोधपुर रहने वाले थे वो इस कंपनी के कमांडर थे। उन्होंने जवानों को भारत सरकार के द्वारा भेजा गया संदेश सुनाया कि हम चीनी सेना से पार नहीं पा सकते आप लोग अपनी पोस्ट छोड़कर वापस लेह सेना मुख्यालय आ जाओ। मेजर ने आगे कहा अपने अपने बोरिया बिस्तर बांधो और लेह चलने की तैयारी शुरू करो, क्योंकि हमारे पास ना तो पर्याप्त गोला बारूद है और ना ही तीन दिन से ज्यादा राशन। सबसे बड़ी बात हमें कवर देने के लिए सौ किलोमीटर तक कोई दूसरी इन्फैंट्री यहां मौजूद नहीं है (और हाल में ही जाट रेजीमेंट के नाम से बनाया गया एक स्मृति स्थल बड़ा ही हास्यप्रद लगता जो युद्ध में तो रास्ता भटकने की बात कहकर भगोड़े हो गये थे और आज अहीर धाम की तर्ज पर खुद की झूठी गाथा गा रहे हैं। खैर साहस और वीरता युद्ध के मैदान परखते हैं ना कि झूंड में रहकर गीदड़ भभकी से वीरता की इबारत लिखी जाती हैं)
मेजर के संदेश को सुनकर वीर अहीर नौजवानों ने वापस लौटने को साफ मना कर दिया और कहा जियेंगे तो देश के लिए और मरेंगे तो देश के लिए। इस विषय पर बात करते करते सुबह हो जाती है, वापस लौटने की बात अभी खत्म नहीं हुई थी क्योंकि मेजर शैतान सिंह परिस्थितियों को देखकर वहां मोर्चा लगाने के पक्ष में नहीं थे। इसके अलावा तीन अन्य लोग जिनकों इस कंपनी में अन्य सेवाओं के लिए पाबंद किया गया था। उनकी सुरक्षा के लिए भी मेजर चिंतित थे तो मेजर ने कहा ठीक है हम 18 नवंबर को दोपहर तक कोई निर्णय लेंगे कि हमें यहां मोर्चे पर रहना है या नहीं। इन तीन लोगों को दोपहर बाद वापस लेह भेजने के लिए मुख्यालय को सूचित कर दिया है।
18 नवंबर को दिन में तकरीबन ग्यारह बजे एक चरवाहा जो कि चुशूल गांव का रहने वाला था उसको भी दिवाली के अगले दिन लेह की तरफ अपने मवेशियों को लेकर जाना था, जो सीजन में आखिरी बार अपने मवेशियों को रेजांगला क्षेत्र से वापिस चरने के बाद लेकर आ रहा था। उसने सैनिकों को चीनी सेना की घुसपैठ के बारे में बताया।
मेजर ने चार सैनिकों को रेजांगला की चोटी से हालातों का जायजा लेने के लिए भेजा।
निरीक्षण दल ने वापस आकर बताया कि चीनी सेना का करीब पांच हजार का दल रेजांगला दर्रे के साथ साथ आगे बढ़ने की तैयारी में है और उनका रात के समय में धावा बोलने का इरादा है। क्योंकि उन्हें हमारी वास्तविक स्थिति का पता नहीं है।
मेजर ने सारी बातें सुनकर कहा हमें पता है हम 124 लोग हैं और वो पांच हजार हम उनका मुकाबला नहीं कर सकते, बताओ अब हमें क्या करना चाहिए? सभी सैनिक एक आवाज में बोले जियेंगे तो देश मिलेगा यश मिलेगा सम्मान मिलेगा देश के लिए शहीद होंगे तो तिरंगा मिलेगा स्वर्ग में देवताओं से ऊंचा कद मिलेगा (और वो लोग अपने लिए वीरता का धाम भी बनवा गये अपने साहस के कारण जिसे अहीर धाम कहा जाता है और एक खिताब भी जीत गए शूरवीरों में अति शूरवीर वीर अहीर) तो ठीक है रेजांगला की चोटी पर दिन ढलने से पहले मोर्चा लगा लो! ये कहकर मेजर एक अजीब सी सोच में पड़ गए कि ये कैसी मिट्टी के लोग हैं जहां मौत सामने है और ये जश्न जैसी तैयारी कर रहे हैं, जहां और पलटने ऐसे माहौल में बगावत करके भगौड़ी हो गई थी! जबकि इन्हें वापस जाने का मौका आगे से मिल रहा है और ये जान बुझकर खुद मौत से टकराने का जूनून लिए बैठे हैं!
मेजर उदास था मगर जवानों के हौसले को देखकर बड़ा खुश हुआ और दिल में एक तसल्ली भी हुई कि मैं दुनिया की सबसे बहादुर कंपनी का कमांडर भी हूं और मेरे सौभाग्य ने मुझे ये रेजांगला युद्ध क्षेत्र और वीर आभीरों का नेतृत्व करने का मौका दिया है और मैं इस मौके का भरपूर इस्तेमाल करूंगा और दुनिया के वीरता के इतिहास में हमें युनानी स्पार्टनस से ज्यादा याद किया जायेगा और हुआ भी यही। 18 नवंबर 1962 जहां देशवासी इस दिन दीवाली मना रहे थे वहीं रेजांगला के वारियर्स खूनी होली खेलने को आतुर थे। रात करीब नौ बजे चीनी सेना में हलचल मचती है एक विशाल चींटियों की तरह लंबा काफिला दर्रे के नीचे भारतीय सीमा की तरफ बढ़ता है। इस खौफनाक मंजर को देखकर हर किसी का कलेजा मुंह को आ जाये, मगर जहां वीरों के हौंसले रेजांगला की चोटी से ऊंचे हों वहां क्या बिसात थी इन चीनीयों की।
120 वीर सैनिकों ने पूरे रेजांगला को कवर लिया और दादा किशन की जय के नारे के साथ लाइट मशीन गनों को कंधों पर उठाकर चीनी सेना की तरफ मुंह खोल दिया। अचानक ऐसे हमले की उम्मीद चीनी सैनिकों को नहीं थी उन्में भगदड़ मच गई और वो अनुमान नहीं लगा सके कि यहां कितने सैनिक हैं और ये भारतीय सेना के किस तरह के सैनिक हैं। उन्होंने तो भारतीय सेना को मोर्चे छोड़कर भागते हुए ही सैनिक देखे थे ये मजबुत साहसी लोग कहां से आ गये। रात दो बजे तक चौदह सौ सैनिक खो चुका था चीन, इधर भारतीय सैनिक भी अपना तमाम गोला बारूद इस्तेमाल कर चुका था। तीन बजे फिर चीनी सेना ने वापिस रेजांगला पर धावा बोल दिया, मगर इस बार उन्हें गोलियों से नहीं बल्कि खाली राइफलों की संगीनों और बटो से भारतीय सैनिकों ने मारना शुरू कर दिया। कुछ सैनिकों ने चीनी सैनिकों को चट्टानों पर पटक पटक कर मारना शुरू कर दिया ये मजंर देखकर चीनी सैनिकों में खौफ पैदा हो गया और वो पिछे हटते चले गए।
सुबह करीब जब 6.15 पर रेजांगला की सफेद धरती पर सूरज की किरणें पड़ती हैं तो वहां सिर्फ दो रंग थे एक बर्फ का सफेद रंग और दुसरा वीर सैनिकों के साहस का गवाह खूनी लाल रंग। सैनिकों की उंगलियां ट्रिगर में थी और हर एक सैनिक की छाती में गोलियां, पीठ पर गोलियों के निशान नहीं थे। अलबत्ता पीठ पर निशान थे अपने ही लोगों की कायरता के जब वो मदद के लिए लेह हैड क्वार्टर से असलहे की मदद मांगते हैं तो एक मक्कार युनिट को गोला बारूद देकर भेजा जाता तो वो रास्ता भटकने की बात कहकर वापिस लौट जाते हैं। दर्द उस बात का भी है जब कवि प्रदीप को रेजांगला की बात सुनकर ये मेरे वतन के लोगों गीत की प्रेरणा मिली और वो ही प्रेरित सैनिक गीत में नहीं गाये वही सरकार जिसने तीन महीनों तक रेजांगला की पोस्ट पर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई और रेजांगला के शहीदों को भगौड़ा मान लिया था। यहां भी चीनी सेना ने ही इन वीरों को सम्मान दिया इनकी बहादुरी को सैल्यूट किया और चीनी मीडिया में इनकी बहादुरी का एक आर्टिकल छापा।
इन वीर अहीरों के सम्मान में कल ट्विटर पर एक ट्वीट जरूर करें
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Oriental Insurance hopes to turn profitable by end of FY24: R R Singh The public sector non-life insurer narrowed its losses to Rs 47.12 crore in the first half of the financial year 2024 from Rs 3,586.93 crore recorded in the same period a year ago
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Happy Diwali to All 🙏🙏🌹🌹
ओरिएण्टल इंश्योरेंस के CMD Sir.....
🙏🙏
Chitrakoot Pic.
Reliance General Insurance gst notice in today amarujala newspaper cutting.
Proud Moment for Me and My Office & Regional Office Lucknow.
Swachh Bharat Abhiyaan performed by Prayagraj
Oriental Insurance News in I next Newspaper
धन्यवाद समाचार पत्र जनसंदेश टाइम्स,रीडर्स मैसेंजर,गुड मॉर्निंग भारत, आदि में ओरिएण्टल इंश्योरेंस कंपनी में हिन्दी दिवस /हिन्दी पखवाड़ा मनाने का आयोजन का खबर प्रकाशित करने के लिए ।
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अग्नि हानि के नूकसान से बचने के लिए अग्नि बीमा पॉलिसी खरीदें ।
हिन्दी पखवाडे का आयोजन किया गया ।
व्यवसायिक कार्यालय नैनी, प्रयागराज ।🙏🙏
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हमारी ओरिएंटल इंश्योरेंस शाखा नैनी, प्रयागराज में दिनांक 12/09/2023 सुबह 10.00 बजे से दोपहर 2.00 बजे तक कंपनी के 77 वे स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर रक्तदान ,निशुल्क स्वास्थ्य जांच एवं नि:शुल्क आँख जाँच शिविर में आप सभी आमंत्रित हैं।
कृपया हमें अपनी कृपापूर्ण उपस्थिति से अनुग्रहित करें.
सत्येन्द्र कुमार सिंह
आप सभी का स्वागत है 🙏🙏🌺🌺🌹🌹
आप सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।🙏🙏
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