Today's thoughts

Today's thoughts

A great thought can make us great person , need only to apply in our life �

27/11/2022

कुण्डलिनी साधना करने वाले बहुत से लोगों का ये सवाल रहता है कि कुछ चक्रों के जागृत होने पर भी उससे संबंधित सिद्धि क्यूं नहीं मिलती है ?
सबसे पहले आप जान लो कि सिद्धियां प्राप्त होना स्वाभाविक है और अगर इन सिद्धियों के चक्कर में पड़ने पर निश्चय ही हमारी साधना कमजोर होने लगती है। रही बात सिद्धियों के मिलने की तो अगर हमारी कुंडलिनी कंठ चक्र से उपर जाए यानी आज्ञा चक्र तक तो सिद्धियां स्वतः ही आने लगती हैं। यानी कि आज्ञा चक्र से नीचे की जो भी सिद्धियां होती हैं वो प्रगट होने लगती हैं। पर अगर आपकी कुंडलिनी सिर्फ कंठ चक्र (विशुद्धि चक्र) तक जाती है तो आपको सिद्धियां नहीं मिलती हैं।
सही अर्थों में समझे तो कंठ चक्र तक साधना करते हुए आप समान्य साधना ही कर रहे हो और सिद्धियों को आपसे कोई फर्क नहीं पड़ता है। पर इससे ऊपर आपकी कुंडलिनी का उठना उनको प्रभावित करता है। बहुत सारी सिद्धियां अब आपको प्रभावित करने के लिए आने लगती हैं और आपको चमत्कार करने भी लगते हो। पर ये ज्यादा दिनों तक नहीं होता, ज्योहीं आपका योगबल कम होता है आपसे सिध्दियां दूर हो जाती हैं और एक बार आप नीचे की अवस्था में आते हैं फिर ऊपर उठना बहुत मुश्किल होता है या यूं कहें तो आप ऊपर नहीं उठते हो।
पर ये सिद्धियां आती क्यूं है आप इस बात पर विचार कीजिए। सही अर्थों में ये सिद्धियां आपको सफलता से दूर ले जाने का प्रयास करती हैं। इसीलिए अच्छा साधक इनको नजरंदाज कर देता है और अपनी साधना को जारी रखता है। कभी कभी किसी की भलाई हेतु इस्तेमाल कर भी दे पर इनसे साधक कभी आसक्त नही होता।
याद रखिए आप साधना करते हैं ब्रह्म या ईश्वर को पाने के लिए ना की सिद्धियों को। अतः बिना किसी लोभ के साधना करते रहिए, सफलता आपके जरूर मिलेगी। अगर कुछ त्रुटी हो जाए तो कृपया क्षमा करें।
जय श्री राम 🙏

24/11/2022

त्राटक (भाग -2);
पिछले लेख में हमने त्राटक कैसे करें, इसके बारे में जानकारी प्राप्त की। अब इस भाग में त्राटक से फायदे जानते हैं - जो लोग विशेषकर नए साधक जो कि कुण्डलिनी जागृत करने का प्रयास शुरू किए हैं उनके लिए त्राटक बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। जब हम नए नए ध्यान करते हैं तो सबसे बड़ी समस्या होती है "मन का स्थिर नहीं होना" । काफी परेशानी होती है, मन बार बार विषयों में लग जाता है और हम इसको एक रोकने में असमर्थ होते हैं। पर अगर त्राटक का अभ्यास करते हैं तो मन को ध्यान करते समय रोकने में मदद मिलती है। जिनकी साधना अच्छी चल रही है, कुंडालिनी आज्ञा चक्र तक जाती है वो अगर चाहें तो त्राटक का उपयोग कर लोगों का भला बहुत ही आसानी से कर सकते हैं। अगर त्राटक की अवस्था अच्छी है तो उसका उपयोग कर किसी भी व्यक्ति के रोगों को दूर किया जा सकता है। सरदर्द, बुखार, अवसाद या अन्य बहुत सारे रोगों का इलाज किया जाता है। आपको रोगी को 3-4 फिट की दूरी पर शवासन में लेता देना है और त्राटक द्वार उनके रोग को दूर करने का प्रयास करना है । रोगी के पूरे शरीर को सर से पैर तक त्राटक करते हुए देखना है और रोग को शरीर छोड़ कर जाने को मन ही मन बोलना है। जब सर से देखते हुए पैर तक जाए तो मन ही मन पैर के दूर एक झटका से रोग को बाहर निकालने का प्रयास करें। याद रखिए कि आप ये सब अपने आसन पर बैठ कर करें, रोगी को छुएं नहीं वरना रोग निश्चय ही रोगी से आपके पास आ जायेगा। एक बात और अपने को रक्षा कवच से सुरक्षित कर लें। शुरू में आपको सफलता नहीं मिलती है, पर आप दोबारा, तिबारा इस प्रक्रिया को करते हैं तो सफलता जरूर मिलेगी। जब आप लगातार इसको करते हैं तो पहली बार में ही सफल हो जाते है।
त्राटक से किसी अन्य व्यक्ति के मस्तिष्क को नियंत्रित किए जाते हैं और इसका सबसे ज्यादा उपयोग जादूगर करते हैं। आप बाजार में चलते हुए किसी भी व्यक्ति के मस्तिष्क के पिछले भाग में त्राटक करें और मन ही मन आदेश दे, जैसी तुम रुक जाओ या पीछे मुड़ो। बार बार उसे आदेश दे और आप देखेंगे कि वो व्यक्ति रुक जायेगा, या पीछे मुड़ कर देखने लगेगा। अगर उससे पूछा जाए कि तुम रुके क्यों तो वो व्यक्ति इसका कारण बताने में असमर्थ होगा। पर त्राटक का उपयोग कभी भी गलत कार्य हेतु नहीं करना चाहिए वरना ऐसे लोग महान नर्क में जाते हैं। शेष अगले भाग में..
जय श्री राम 🙏

23/11/2022

त्राटक;
आज हम त्राटक पर चर्चा करेंगे और इसके करने की विधि और फायदे के बारे में जानेंगे। त्राटक अर्थात टकटकी लगाकर देखना बिना पलके झपकाए । त्राटक सामान्यतः तीन तरह से किया जाता है और वो हैं, बिंदु त्राटक, दीप त्राटक और सूर्य त्राटक।
बिंदु त्राटक से शुरु करते हुए अपने कमरे मे सामान्य रोशनी करते हैं। हम एक छोटा सा सफेद बोर्ड लेते हैं और उसपर एक नीले रंग का बिंदु बनाकर 4-5 फिट की दूरी पर दीवाल पर लगा देते हैं। ज्यादा ऊंचा या नीचा नहीं होना चाहिए, हमारे आसन के सामने होना चाहिए।
अब हम नीले बिंदु पर बिना पलके झपकाए देखते हैं। शुरुआत में 30 सेकंड तक देख पाते हैं फिर आंखे भारी हो जाती है और पलकें बंद हो जाती हैं। कुछ सेकंड आंखे बंद कर लें और फिर से बिंदु पर देखना प्रारंभ करें। कुछ दिन के अभ्यास से आप ज्यादा समय तक त्राटक करने लगते हैं। कुछ महीनों बाद आप 20- 40 मिनट तक त्राटक करने लगते हैं। जब नीले बिंदु को आप देखते हैं तो उसके आसपास एक पीले रंग का गोला दिखाई देगा जो कि घूमता हुआ प्रतीत होता है और फिर कुछ दिनों बाद वो पीला बिंदु स्थिर हो जाएगा। आगे की अवस्था में पीले रंग की जगह एक लाल रंग का बिंदु दिखाई देगा और वो भी घूमता हुआ। कुछ दिन बाद लाल रंग का बिंदु भी स्थिर हो जाएगा। लेकिन ये सब अनुभव जल्दी नहीं आते हैं।
जब आप 1 घंटे तक त्राटक करने लगते हैं तो आपके आंखों में बहुत ही तेज आ जाता है। अब आप त्राटक को अगले स्तर पर ले चलें। वो है दीप जलाकर त्राटक करना। वैसे तो आप एक घंटे बिंदु त्राटक करते हैं पर दीप जलाकर आप 15-20 मिनट ही कर पाते हैं। आपको दीप प्रज्ज्वलित करके उसके लौ के उपरी हिस्से पर त्राटक करना है। धीरे धीरे समय को बढ़ाएं और 40 मिनट तक पहुंच जाए तब तक करें। इससे आपके आंखों में तेज बहुत बढ़ जाता है।
तीसरी प्रक्रिया है सूर्य त्राटक। आपको उगते हुए सूर्य और डूबते हुए सूर्य को बिना पलकें झपकाएं देखना है। ध्यान रहे कोई जल्दीबाजी ना करें अन्यथा समस्या हो सकती है। धीरे धीरे समय को बढ़ाएं। जब 30 मिनट से अधिक सूर्य को देखने लगती हैं तो हमारे आंखों में अद्वितीय तेज आ जाता है। जिनको 1.5 से 2.5 पावर का चश्मा लगा है उनका तो बिंदु त्राटक से कुछ महीनों में ठीक हो जाता है। फेसबुक पर ज्यादा पोस्ट नहीं लिख पाते हैं,words Full हो जाते हैं, शेष अगले भाग में ।
जय श्री राम 🙏

17/11/2022

कुंडलिनी जागरण में लगने वाले बंध और उसके फायदे;
योग में चार तरह के बंध का जिक्र किया गया है। इन बंधो के बारे में आईए आज जानने का प्रयास करेगें-
मूल बन्ध :
उड्डियान बन्ध
जालन्धर बन्ध
महाबन्ध : एक ही समय पर तीनों बन्धों का अभ्यास।
1)मूलबंध - सर्वप्रथम किसी आसान में बैठ जाएं।मूल बंध में हमें अपने गुदा द्वार को ऊपर की ओर खींचना होते है और इस प्रक्रिया को करने से पहले स्वास को लेना होता है यानि कि स्वास लीजिए ( पूरक ) और स्वास को रोक कर गुदा द्वार को ऊपर की ओर खींचने का प्रयास करें। जितनी देर आप स्वास पर नियंत्रण कर के ये कार्य कर सकते हैं कीजिए। पुनः सामान्य अवस्था में आ जाए। यानी स्वास -प्रस्वास सामान्य कर लें।
(2)उड्डियान बन्ध- इस बंध को लगाने के लिए सबसे पहले किसी आसन में बैठ कर स्वास को बाहर निकाल दे(रेचक करें) और स्वास को रोककर पेट को ऊपर की ओर खींचने का प्रयास करें। जितनी देर आप स्वास को रोककर कर सकते हैं, करें। पुनः सामान्य अवस्था में आ जाएं।
(3)जालन्धर बन्ध- किसी आसन में बैठ जाएं।इस बंध को लगाने के लिए सबसे पहले स्वास को अंदर ले लीजिए यानि कि पूरक कर लीजिए और स्वास को रोककर ठोढ़ी को नीचे झुकाकर कंठ कूप में लगा लें , छाती आगे तनी हुई होनी चाहिए। जितनी देर स्वास रोककर कर सकते हैं कीजिए।
मूल बंध को लगाने से कुंडलिनी तेजी से मूलाधार से ऊपर उठ जाती है। साथ ही सभी रोग जो गुदा संबंधी हैं ठीक हो जाते हैं। प्रोस्टेट, बवासीर और भी बहुत सारे रोग ठीक हो जाते हैं और यही प्रथम लक्षण भी है। आप भौतिक रूप से भी इस फायदे को प्राप्त करते हैं। इसी तरह उड्डियान बंध में भी पेट संबंधी सभी बीमारियों का नाश होता है, मोटापा, आलस्य समाप्त होता है और कुण्डलिनी आपके नाभी चक्र से आसानी से ऊपर उठ जाती है।
जालन्धर बन्ध के अभ्यास से जिनको आवाज संबंधी समस्या है और गले से संबंधी जो भी रोग हैं सभी ठीक हो जाते हैं। साथ ही कुंडलिनी कंठ चक्र से उपर उठने लगती है। महाबंध में तीनों बंध एक ही समय लगता है। इसके बारे में बाद में विस्तृत वर्णन करेंगे।
इन बंधो का अभ्यास करते हुए धीरे धीरे समय को बढ़ाएं,किसी भी तरह की जल्दीबाजी ना करें।है। है। "करत करत अभ्यास जड़मति होत सुजान, रसरी आवत - जात ते सिल पर पड़त निशान " अतः अभ्यास करते रहें,सफलता आपके कदमों में होगी। अगर कुछ त्रुटी हो जाए तो कृपया क्षमा करें।

15/11/2022

बहुत लोग या कहें तो ज्यादातर लोग आजकल ईश्वर, इष्ट को वैज्ञानिक आधार पर तौलने का प्रयास करते हैं और धर्म को चुनौती देते हैं। हमें तो सिर्फ़ हंसी आती है ऐसे महानुभावों के कृत्य को देखकर। वैसे लोग ईश्वर के साथ अगर बस चले तो फोटो (selfi) लें और facebook पर अपलोड कर दें ! आइए विज्ञान की दृष्टि से ईश्वर को समझते हैं;
आज जिस विज्ञान के बल पर हम ईश्वर को चुनौती देते हैं वो बहुत ही छोटी अवस्था में है। ईश्वर अनंत हैं ,हम सभी जानते हैं और आवश्यकता पड़ने पर अवतार लिया करते हैं ताकि सृष्टि का संतुलन बना रहे। क्या विज्ञान अनंत को नहीं मानता? अगर अनंत को नहीं माने तो विज्ञान का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। यहां विज्ञान की भाषा में अनंत यानी "INFINITE" से है और आप जानते हैं कि infinite के बिना विज्ञान की कल्पना भी बेकार है। तो मेरे मित्रों, क्या विज्ञान भी काल्पनिक ही तो है जैसा आप हमेशा इष्ट, भगवान को कहा करते हैं। आप भगवान पर तो शोध नहीं करते और उंगली उठाने लगते हैं। जब शुरू के स्कूल शिक्षा में आपकी ब्याज निकालने को सिखाया जाता है तो वहां पर आपने पढ़ा होगा कि शिक्षक आपको मूलधन को मान लेने को कहते हैं (मान लिया कि मूलधन=100 रुपया,तो ब्याज=मूलधन × समय× दर)। "दो समानांतर रेखाएं कहीं जाकर मिलती हैं" , पर कहां इसका प्रमाण तो विज्ञान नहीं देता, फिर भी आप विज्ञान को मानते हो।आप विज्ञान में मान कर मंगल तक पहुंच सकते हो और इतरा भी रहे हो, पर भगवान को मानने वालो से प्रमाण मांगते हो! ये सबसे बड़ा आश्चर्य है। जो भगवान को मानते हैं वो क्या नहीं प्राप्त कर सकते, सिर्फ़ धैर्य और दृढ़ निश्चय की आवश्यकता है। अगर भगवान को मानोगे नहीं तो जानोगे कैसे? अतः ऐसे लोगों की बातों को दरकिनार करते हुए आप अपने इष्ट देव पर बिना किसी सवाल के विश्वास करें। हम कुंडालिनी साधना करते हैं और ये भी एक विज्ञान ही है पर इसमें अविश्वास का कोई स्थान नहीं है और परिणाम हमें निश्चित ही मिलता है। अतः बिना किसी सवाल के अपने प्रभु, इष्ट, भगवान का ध्यान करें, सफलता आपके कदमों में होगी।
जय श्री राम 🙏

13/11/2022

कलयुग में मुक्ति कैसे मिले;
मित्रों, हर युग के अपने गुण और दोष होते हैं। कलयुग के भी हैं। इस युग में बहुत ही मुश्किल से कोई साधना हो पाती है और कारण इसका यह है कि इस युग का परिवेश। कलयुग में गलत आचरण, धोखा देना, धन लाभ के लिए किसी भी स्तर तक गिर जाना, पर स्त्री को गलत निगाहों से देखना, जुआ खेलना और विश्यावृति में लिप्त होना स्वाभाविक रूप से होते हैं। साथ ही किसी भगवान के भजन कीर्तन करने वालों को ढोंगी, पाखंडी और अकारण ही विरोध करना ये सब सामान्य बातें हैं इस युग में। फिर इस युग में मनुष्य की मुक्ति या सद्गति कैसे हो? ये सवाल भी है और चिंता का विषय भी। अगर आप नहीं जागरूक होते हैं तो निश्चय ही महान नर्क आपके स्वागत के लिए तैयार हैं।
लेकिन कलयुग का एक वरदान भी है कि सिर्फ नाम जप करने मात्र से ही भगवान को बड़ी सुगमता से प्राप्त कर सकते हैं। इस युग में तो कठिन तप, यज्ञ आदि होना बहुत ही मुश्किल है पर नाम जप करना कम मुश्किल है, और सिर्फ नाम जप से ही मनुष्य अपना कल्याण कर सकते हैं। "हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे कृष्ण" ये महामंत्र है कलयुग में। इसको किसी भी अवस्था में जप कर सकते हैं, आप अशुद्ध हों तो भी। अगर इस नाम का जप हम एक करोड़ मात्रा में करते हैं तो सारे पाप कट जाते हैं और जितना ज्यादा हम जप करते हैं हम भगवान के उतने ही प्रिय होते जाते हैं। भगवान शिव भी काशी में मरने वालों को राम नाम का मंत्र देकर मुक्ति देते हैं फिर और क्या कहना। तो सिर्फ़ नाम जप करते रहें और भगवान के सानिध्य को प्राप्त करें।
जय श्री राम 🙏

10/11/2022

हमारे भीतर सात चक्र विद्यमान हैं;
1) मूलाधार चक्र
2) स्वाधिष्ठान चक्र
3) मणिपुर चक्र
4) अनाहत चक्र
5) विशुद्धि चक्र
6) आज्ञा चक्र
7) सहस्त्ररार चक्र
ये सभी चक्र क्रमशः नीचे से ऊपर की ओर हैं यानी मूलाधार से सहस्त्ररार चक्र की ओर बढ़ते हैं।
सबसे पहला सवाल लोग पूछते हैं कि चक्र हमें दिखते क्यों नहीं है और कुण्डलिनी का स्वरूप कैसा है?
तो आईए जानते हैं - सभी चक्र हमारे भीतर मौजूद हैं पर दिखते नहीं है, इसका कारण यह है कि सभी चक्र हमारे सूक्ष्म शरीर में विद्यमान हैं और स्थूल शरीर से उनको सिर्फ महसूस कर सकते हैं, देख नहीं सकते। पर अगर आप कुंडलिनी साधना करते हैं को सभी चक्र दृश्यमान होने लगते हैं और उनकी शक्तियों को आप स्थूल शरीर में भी जागृत कर लेते हैं।
कुंडलिनी शक्ति एक सर्प के आकार में साढ़े तीन लपेटे में मुड़ी हुई हैं और मूलाधार चक्र में सुषुप्त अवस्था में रहती हैं और अगर कोई व्यक्ति ध्यान साधना करते हैं तो जागृत होती हैं। तीन लेपेटे में मूडी हुई और आधा लपेटे को मुख में दबा कर सोई रहती हैं। यानि की सर्प के पुंछ को सर्प द्वारा मुख में दबा कर। जब हम कुंडालिनी साधना करते हैं और ज्यादा समय तक ध्यान करने लगते हैं तो हमारी कुंडलिनी शक्ति जागृत होने लगती है। सर्वप्रथम पुंछ को मुख से निकाल कर कुछ समय मूलाधार चक्र में जागृत रहती हैं। इस दौरान इस चक्र में मौजूद सभी दोषों को समाप्त कर देती हैं। फिर ऊपर की ओर बढ़ते हुए स्वाधिष्ठान चक्र में पहुंचती हैं। कुछ साधक हमसे बार बार ये पूछते हैं कि कैसे पता चलेगा कि कुंडलिनी शक्ति जागृत हो कर कहां तक पहुंच गई है? - इसका जवाब है कि आप जब 50 मिनट से ज्यादा ध्यान करने लगते हैं तो आपकी कुंडलिनी तेजी से आगे बढ़ने लगती है। जब कुंडालिनी शक्ति जागृत होती है तो हमारी रीढ़ केनिचले हिस्से में गर्मी महसूस होती है और एक स्पंदन ध्यान के समय महसूस होती है। ये गर्मी जिस चक्र पर जाकर रुकती हैं उस चक्र को जागृत करने का कार्य करती है। एक गर्मी सी ऊपर उठती है, या एक दबाव महसूस होने लगती है और ये रीढ़ के सहारे चढ़ती हुई ऊपर जाती है। ध्यान के दौरान आपको गर्मी महसूस होने लगता है और यही कुंडलिनी शक्ति का प्रथम लक्षण है। पर मित्रों इसमें समय लगता है। आपको धैर्य रखना होगा। किसी किसी को ये अनुभव अलग अलग तरह से होते हैं। बस ध्यान करते रहें ।

08/11/2022

ध्यान शुरू कैसे करें…;
ध्यान करने के लिए सबसे पहले एक ऐसे आसन में बैठे जो सिद्ध हो यानी कि कुछ देर तक आसानी से बैठ सके। घर में एक निश्चित स्थान तय करें और अगर ऐसा स्थान हो जहां बहुत ही कम लोग आते जाते हों तो उत्तम है। अब आप सर्वप्रथम अपने इष्ट के फोटो या मूर्ति पर बिना पलकें झपकाएं कुछ देर तक देखने का प्रयास करें। कुछ देर में आपकी पलकें भारी हो जाए तो आंखे बंद कर लें और भृकुटी के मध्य में (दोनों आंखों के बीच) ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करें। साथ ही श्वास छोड़ते समय ॐ का मन ही मन उच्चारण करें और अगर ॐ का नहीं करना चाहे तो अपने इष्ट के नाम का उच्चारण करें। इससे आपको ध्यान करने में सहयोग मिलेगा। आप जितनी देर तक बैठ सकते हैं बैठे रहें। और भृकुटी के मध्य में ध्यान रखें।
अगर बहुत सारे विचार ध्यान करने के दौरान आते हैं तो आप जरा सा भी विचलित न हो क्यूंकि यही आपकी सफलता की निशानी है।आप विचारों पर ध्यान न देकर अपने भृकुटी के मध्य पर ही ध्यान देते रहें। आप शुरू में 20-25 मिनट ही बैठ पाएंगे, पर जब आप उठेंगे तो बहुत ही तरोताजा और ऊर्जावान महसूस करेंगे। जो भी स्थान या घर का कोना जहां आप ध्यान करते हैं वहां कम लोग ही आएं तो अच्छा है, क्यूंकि उस जगह पर आपकी सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और आपको ध्यान में मदद मिलती है। ध्यान पर बैठने से पहले आप वहां पर आसन बिछा लें, क्रमशः कुश, और ऊनी वस्त्रों से बना आसन। ध्यान से उठने पर कुछ देर तक किसी जगह विश्राम करें, इससे आपकी ऊर्जा आपके पूरे शरीर में अवशोषित हो जाती है। आप थोड़ी देर तक जमीन के सीधे (direct) संपर्क ना करें।
आगे की चर्चा अगले पोस्ट में....
जय श्री राम 🙏

04/11/2022

कुछ महानुभाव कहते रहते हैं कि कुण्डलिनी साधना नहीं करनी चाहिए, अगर कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने में कोई गलती हो जाए तो हमारा नाश हो जाएगा, और भी ना जाने क्या क्या!!पर क्या हम कुण्डलिनी शक्ति को जानते हैं? बिना जाने ही लोग कुण्डलिनी शक्ति की खामियां गिनाने में लगे रहते हैं। आइए इस महान शक्ति के बारे में जानते हैं;
हम जो भी कार्य करते हैं, चाहे आध्यात्मिक हो,या सांसारिक उसको करने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है -शारीरिक और मानसिक शक्ति। ये शक्ति मिलती कहां से है क्या इस विषय पर कभी मंथन किया है? सभी शक्तियों का मूल कुण्डलिनी शक्ति ही है। हम जिन शक्तियों की पूजा करते हैं, चाहे दुर्गा,काली, सरस्वती या अन्य कोई भी शक्ति हो, सभी हमारे भीतर कुण्डलिनी शक्ति के रूप में विद्यमान हैं। तो संसार में कोई भी कार्य बिना शक्ति के हो ही नहीं सकती है, और शक्ति हमारे भीतर से ही उत्पन्न होती है, फिर इसको कोई कैसे गलत कह सकता है। दुनिया में हर मनुष्य को अपने उच्चतम स्तर तक पहुंचने का यत्न करना चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि कुंडलिनी शक्ति को जागृत करें। कुण्डलिनी शक्ति हमारे उद्धार करने वाली शक्ति है ना कि नाश करने वाली। अतः बिना किसी सवाल के अपनी इस दिव्य शक्ति को जागृत करें और अनेक तरह के रोगों, दोषों का नाश करते हुए प्रमात्मा को प्राप्त करें।
जय श्री राम 🙏

20/10/2022

क्या हम अपनी एक प्रमुख शक्ति को जागृत करने का यत्न कर रहे हैं?
इसे कुण्डलिनी शक्ति कहते हैं, पर उद्देश्य क्या है? सिद्धियां प्राप्त करना या ब्रह्मानंद में खो जाना ?
ध्यान रहे आप अगर ये सोच रहे हैं कि ये आसान है तो जरा सी चूक कर रहे हैं। क्योंकि ज्यों ज्यों हमारे चक्र जागृत होने लगते हैं हमारे भीतर और आगे बढ़ने की भूख जगने लगती है। और ये भूख तो समाधि के बाद भी कम नहीं होती। यानी कि हम परमानंद में खोए रहते हैं।
कछुआ जिस तरह कुछ महीनों तक बिना खाए पिए रह जाता है उसी तरह योगी युगों तक समाधि में रहते हैं। आप हिमालय में इस तरह समाधिस्त योगी को देख सकते हैं अगर भाग्यवान हैं तो।
परंतु अगर आप ये सोच रहे हैं कि साधना को बीच में ही छोड़ देंगे तो आपको मालूम होना चाहिए कि ये संभव भी नहीं है, आपने जिस कार्य को शुरू किया है उसे पूर्ण करना ही पड़ेगा और इसके लिए चाहे आपको कितना भी जन्म क्यों नहीं लेना पड़े। तो इस मार्ग पर चलने वाले भाग्यवान लोगों आप को पूर्णता तो प्राप्त करना ही है और जो इस मार्ग पर नहीं हैं उनको इस प्रक्रिया को ठीक से समझ कर ही अपनाना होगा।
अगर भक्ति मार्ग के द्वारा प्रभु को पाना चाहते हैं तो इसमें आपको इन परिस्थितियों से नहीं गुजरना होता बल्कि आप आसानी से लक्ष्य पर पहुंचते हैं।
जब हम किसी जगह विशेष पर जाते हैं और बीच में कोई शहर आता है तो एक ऐसा रास्ता भी होता है जो शहर के बाहर से निकल जाता है और एक रास्ता ऐसा भी होता है जो बीच शहर बाजार और भीड़भाड़ से होता हुआ गुजरता है और यही भीड़भाड़ वाला रास्ता ज्ञान मार्ग होता है। आपको हर स्थिती से होकर गुजरना पड़ता है और इसलिए ज्यादा समय लगता है। पर भक्ति मार्ग में आपको छोटे छोटे रास्ते मिल जाते हैं।
अब प्रश्न उठता है कि ज्ञान मार्ग उत्तम है या भक्ति मार्ग? तो दोनों ही उत्तम हैं जिसको जो मार्ग पसंद आ जाए। पर ज्ञान मार्ग में आपको हर एक पहलू को जानना होता है और भक्ति मार्ग में तो आपकी बस अपने को भगवान को समर्पित करना होता है ।
आप अपने मन से ठीक तरह से पूछें, संतो से भी जानने का यत्न करें और आप एक निर्णय लें कि किस मार्ग पर चलना है और फिर अडिग होकर चलते रहें।
मुझसे त्रुटी होना स्वाभाविक है क्योंकि मैं एक जीव हूं। अतः आप लोग मेरे गलतियों के लिए क्षमा करें।
जय श्री राम 🙏

16/10/2022

कुंडलिनी शक्ति को हम मां पार्वती के काली अवतार से समझ सकते हैं। जब भगवान शिव समाधि की अवस्था में थे तब देवताओं पर राक्षसों ने अत्याचार शुरू किया और राक्षसों की शक्ति के आगे देवता कुछ नहीं कर पा रहे थे।
अंततः देवता भगवान शिव से सहायता हेतु पहुंचे पर शिव जी तो समाधी में थे। फिर देवताओं ने मां पार्वती से सहायता हेतु निवेदन किया। मां तो मां होती है, उन्होंने सहायता हेतु काली का अवतार लिया, और सभी राक्षसों का संहार करती गई। सबसे बलशाली राक्षस रक्तबीज( जिसे वरदान प्राप्त था कि उसका एक बूंद खून भी अगर धरती पर गिरे तो हजारों रक्तबीज पैदा हो जाए) को भी खप्पर में खून पी कर संहार किया। सभी का संहार करने के बाद यहीं पर शक्ति अवतार मां काली अनियंत्रित हो जाती हैं और वे और खून खप्पर में मांग करते हुए देवताओं की ओर बढ़ने लगी। देवतागण डर से कांपने लगे और शिव जी को समाधि से जगा कर सारा वृतांत सुनाया। तुरंत ही भगवान मां काली के सामने जमीन पर भगवान शिव लेट गए और ज्योहिं मां का पैर शिव जी के वक्षस्थल पर पड़ा उनका जीभ बाहर निकल गया साथ ही मां वही पर रुक गई। उन्हें अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो गया।
यहां पर कुंडलिनी जागरण भी तभी पूर्ण होता है जब वो सहस्त्रार चक्र में पहुंचती है और वहीं पर शिव पार्वती के मिलन रूप ये चक्र खुलता है। इसके बाद की अवस्था समाधि ही है। परंतु अगर शक्ति यानी कुंडलिनी पूर्ण न हो तो अनियंत्रित हो सकती है या हो जाती है जिसके कारण विनाश होता है। अतः कुंडलिनी साधना में किसी सिद्धि पर ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि ये हमारे लिए उचित नहीं है।
जिस प्रकार बिना शिव के शक्ति अनियंत्रित हो जाती है उसी प्रकार बिना सहस्त्रार चक्र में पहुंचे कुंडलिनी को पूर्ण रूप से हितकर नहीं माना गया है। अतः ध्यान करते रहें बिना किसी सिद्धि की आकांक्षा के। क्योंकि सिद्धि के चक्कर में पड़ने पर हम पूर्णता को नहीं प्राप्त हो सकते। सिद्धियां ध्यान मार्ग में स्टेशन की तरह है,जो कि आती रहती है, पर बिना मंजिल पर पहुंचे हम ट्रेन को किसी अन्य स्टेशन पर नहीं छोड़ते उसी तरह बिना पूर्ण हुए हमें सिद्धियों की आकांक्षा नहीं करनी है।
सहस्रार भेदन स्वतः हो जाता है, बस हमें सही भावना के साथ ध्यान करते जाना है।
अगर कुछ त्रुटी रह जाए तो क्षमा करें।
जय श्री राम 🙏

14/10/2022

ध्यान और कुंडलिनी में अंतर;
ध्यान हमें परम् शांति की ओर ले जाने कि प्रक्रिया है । हम जितना ज्यादा ध्यान साधना करते हैं उतने ही परमात्मा को नजदीक से महसूस करते जाते हैं। धीरे धीरे हम इस प्रक्रिया से गुजरते हुए पूर्ण अवस्था यानी समाधि को प्राप्त होते हैं।
वहीं पर कुंडलिनी भी ध्यान साधना से ही जागृत होती है पर ध्यान नहीं है। इसका मतलब यह है कि कुंडलिनी इस प्रक्रिया में मिलने वाली शक्ति है जिसके फलस्वरूप हम समाधि की ओर तेजी से अग्रसर होते हैं। यहां हम कह सकते हैं कि कुंडलिनी हमारे लिए एक तीव्र गति से बढ़ने वाले यंत्र के रूप में कार्य करता है। परंतु कुंडलिनी जागृत होने का ये अर्थ कदापि नहीं है कि हमने पूर्णता को प्राप्त कर लिया है। कितनी बार लोग कुंडलिनी जागरण के बाद पथ भ्रष्ट हो जाते हैं और पुनः नीचे की अवस्था में आ जाते हैं। कुण्डलिनी जागृत होने पर हमें दिव्य शक्तियां प्राप्त होती हैं पर उन शक्तियों से हम परमात्मा तक नहीं पहुंच सकते, अतः उच्च कोटि के साधक कुंडलिनी शक्ति के जागृत होने पर भी ध्यान नहीं छोड़ते। और परमात्मा तक पहुंचने के लिए यानी पूर्णता प्राप्त होने के लिए समाधि की आवश्यकता होती है।
समाधि तो केवल ध्यान साधना की पूर्ण अवस्था है और यहीं पर परमेश्वर को प्राप्त होते हैं।
जय श्री राम 🙏

12/10/2022

सवाल ये है कि मंत्र जप करें या नाम जप? कौन सा उत्तम है।
मंत्र जप करने में नियम का पालन करना अनिवार्य है। नियम यानी कि नहाने के बाद शुद्ध अवस्था में ही मंत्र जप करना अनिवार्य है। जरा सी भी अशुद्ध होने पर मंत्र जप नहीं करना चाहिए।
तो इसका अर्थ यह है कि हम बहुत ही कम समय मंत्र जप कर सकते हैं, क्योंकि आज के समय में हमें इतना समय कम ही मिल पाता है।
पर नाम जप में कोई खास नियम की आवश्यकता नहीं पड़ती, अगर माला के बिना यानी की मुख से जप करते हैं तब। साथ ही चलते -फिरते भी नाम जप कर सकते हैं। और रही फल की बात तो नाम जप में भी उतना ही फल प्राप्त होता है जितना की मंत्र जप में। तो यहां पर हम ज्यादा से ज्यादा नाम जप करते हैं और फल भी ज्यादा मिलेगा।
भगवान शिव सदैव राम नाम का मन ही मन जप करते हैं और लोगों को इसी नाम की महिमा से मुक्ति प्रदान करते हैं।
अतः हमें सुगम, सुलभ और सभी सुखों को प्रदान करने के साथ मुक्ति प्रदान करने वाला नाम जप करते रहना चाहिए।
जय श्री राम 🙏

11/10/2022

अक्सर लोग ये जानना चाहते हैं कि भगवान की भक्ति छूट क्यूं जाती है जबकि शुरू शुरू में तो बड़ी ही अच्छी तरह से होती थी! इसका कारण हमारा प्रारब्ध है। जब हमारे पूर्व जन्मों के सात्विक या अच्छे कर्मों का फल मिलना होता है तो प्रारब्ध के रूप में हमें मिलता है, यानी कि भगवान के चरणों में भक्ति जागृत होने लगती है। चुकी कर्म उत्तम है अतः परिणाम भी उत्तम ही होगा। पर जैसे ही हमारे अच्छे प्रारब्ध की संख्या कम होती है हम फिर से सांसारिक सुख में उलझने लगते हैं, परिणाम स्वरूप भगवान की ओर आकर्षित होना बंद होने लगता है। यहीं पर हमें अपने को सावधान करते हुए भगवान का सुमिरन भजन आरंभ रखना चाहिए ताकि मुक्ति तक जीव पहुंच सके।
अच्छे प्रारब्ध का परिणाम अच्छा और वैसे ही बुरे का परिणाम बुरा होता है। अगर कोई न चाहते हुए भी गलत कार्य हो जाए तो निराश नहीं होना चाहिए, उसे भगवान पर छोड़ देना चाहिए क्योंकि भगवान ही हमारे बुरे कर्मों को नष्ट करने में सक्षम हैं और प्रभु का नाम जप निरंतर जारी रखने का प्रयास करना चाहिए। निश्चित ही कल्याण होगा।
जय श्री राम 🙏

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