हरे कृष्णा राधे राधे

प्रेम से बोलो हरे कृष्णा राधे राधे

22/07/2023

ज्योतिष से संबंधित कुछ सावधानियां ज्योतिष का अर्थ होता है अंधकार की तरफ से ज्ञान की तरफ लेकर जाना जिंदगी को सहज तथा सरल बनानाl
काल पुरुष चक्र अनुसार नीच और उच्च ग्रह हमारी जिंदगी का अभिन्न अंग है हम चाह कर भी दूरी नहीं बना सकते✍️

जब सूर्य नीच का हो ऐसे व्यक्ति को दूसरों के लिए संघर्ष करना तथा खुद को खतरे में डालना ऐसे दोनों ही कार्यों से बचना चाहिए।

जिसका भी बृहस्पति नीच हो ऐसे व्यक्ति को किस्मत पर चीजें छोड़ने से बचना चाहिए और जिन चीजों से लाभ मिलने का प्रलोभन हो ऐसी चीजों से भी सर्वथा दूर रहना चाहिए।

जिस व्यक्ति का भी चंद्रमा नीच का हो ऐसे व्यक्ति को पर स्त्री पर पुरुष के यानी कि दूसरों के परिवारिक संबंध को देखकर स्वयं की तुलना करने से बचें और किस्मत में जो है वह मिलेगा ऐसी मानसिकता से भी बचने की सर्वथा कोशिश करें।

जिस व्यक्ति का मंगल नीच हो ऐसे व्यक्तियों को कंजूस दोस्तों से दोस्ती करने की बजाय मक्खीचूस दुश्मन से हाथ मिला लेना जायज है और जो फालतू का ज्ञान देते हैं बेवजह ज्ञान देते हैं ऐसे फालतू ज्ञान देने ज्ञानचन्द से भी बचना चाहिए।

जिस व्यक्ति का बुध खराब हो ऐसे व्यक्ति को स्वयं के ऊपर जितना हो सके अत्यधिक ध्यान देना चाहिए तथा किसी प्रकार का प्रलोभन लालच जिसमें लाभ का अनुपात ₹10 के हिसाब से ₹110 का अनुपात हो ऐसे कार्यों से सर्वथा दूर ही रखनी चाहिए तथा सबसे जरूरी है कि धैर्य रखना चाहिए वक्त एक जैसा हमेशा नहीं रहता है यह ख्याल जरूरी है।
जिस व्यक्ति का शुक्र नीच का हो ऐसे व्यक्ति को ससुराल वालों का ज्ञान तथा खुशहाल दंपतियों के ज्ञान से बचना चाहिए बल्कि मन में यह ख्याल रखना जरूरी है "Blessing in Disguise" तथा सब आप को समझें यह जरूरी तो नहीं अगर खुद ही अपने आप को समझ लें इससे अच्छी बात क्या हो सकती है।

शनि नीच वाले व्यक्ति को अत्यधिक स्वयं का ध्यान रखना जरूरी है सबसे पहले शरीर के लिए भोजन जरूरी है अपनी जरूरतों का जरूर ख्याल रखना चाहिए अपने जरूरत में खर्च में कंजूसी करना खुद की पैर पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर है। दूसरों की जरूरत पहले और अपनी जरूरत बाद में यह वाला झगड़ा तो है जिंदगी भर खत्म नहीं होगा।

राहु नीच हो ऐसे व्यक्ति को सियासत तथा लड़ाई झगड़े दोनों से ही इतना दूर रहना चाहिए जितना कि घोड़े से दो कदम सांड से दस का कदम दोनों को मिलाकर जो भी संख्या आती है उसको 9 गुना कर इतना ही दूर रहना चाहिए इसके साथ ही अगर कोई व्यक्ति यह प्रलोभन देता है की अगर तुम मेरे हो जाओ तो मैं तखत पर तुम्हें बैठा दूंगा यानी कि अर्श से फर्श का सफर तो यह समझ लेना कि वह तख्त नही तख़्ता अर्श से फर्श तक जाएंगे तो जरूर लेकिन गले में रस्सी डालकर✍️

जिसका केतु नीच हो ऐसे व्यक्ति को गुरु पिता की सलाह तथा माता का मोह और प्रपंच रसातल में धकेलने के लिए काफी है। जो भी गुरु हो अगर वह यह है कि मैंने यह तेरी भलाई के लिए कहा है और माता यह कहे कि मैंने अपने दिल से कहा है धर्म और दिल से निकली हुई बात पर आंख बंद करके भरोसा करना उल्टी कुल्हाड़ी की चोट है तथा जहां तक कोशिश हो अपनी खुद की दुनिया बनाने की कोशिश करें किसी की दुनिया के जैसा अपनी दुनिया बनाना मूर्खता की अव्वल निशानी होगी कोशिश करें जितना हो सके बचें ✍️
अलख बाबा श्री चंद्र जी दी रख🙏

11/11/2022

💐🙏

09/11/2022
29/09/2022

राजा मोरध्वज की कथा,,,,

महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद अर्जुन को वहम हो गया की वो श्रीकृष्ण के सर्वश्रेष्ठ भक्त है, अर्जुन सोचते की कन्हैया ने मेरा रथ चलाया, मेरे साथ रहे इसलिए में भगवान का सर्वश्रेष्ठ भक्त हूँ। अर्जुन को क्या पता था की वो केवल भगवान के धर्म की स्थापना का जरिया था। फिर भगवान ने उसका गर्व तोड़ने के लिए उसे एक परीक्षा का गवाह बनाने के लिए अपने साथ ले गए।

श्रीकृष्ण और अर्जुन ने जोगियों का वेश बनाया और वन से एक शेर पकड़ा और पहुँच जाते है भगवान विष्णु के परम-भक्त राजा मोरध्वज के द्वार पर। राजा मोरध्वज बहुत ही दानी और आवभगत वाले थे अपने दर पे आये किसी को भी वो खाली हाथ और बिना भोज के जाने नहीं देते थे।

दो साधु एक सिंह के साथ दर पर आये है ये जानकर राजा नंगे पांव दौड़के द्वार पर गए और भगवान के तेज से नतमस्तक हो आतिथ्य स्वीकार करने के लिए कहा। भगवान कृष्ण ने मोरध्वज से कहा की हम मेजबानी तब ही स्वीकार करेंगे जब राजा उनकी शर्त मानें, राजा ने जोश से कहा आप जो भी कहेंगे मैं तैयार हूँ।

भगवान कृष्ण ने कहा, हम तो ब्राह्मण है कुछ भी खिला देना पर ये सिंह नरभक्षी है, तुम अगर अपने इकलौते बेटे को अपने हाथों से मारकर इसे खिला सको तो ही हम तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार करेंगे। भगवान की शर्त सुन मोरध्वज के होश उड़ गए, फिर भी राजा अपना आतिथ्य-धर्म नहीं छोडना चाहता था। उसने भगवान से कहा प्रभु ! मुझे मंजूर है पर एक बार में अपनी पत्नी से पूछ लूँ ।

भगवान से आज्ञा पाकर राजा महल में गया तो राजा का उतरा हुआ मुख देख कर पतिव्रता रानी ने राजा से कारण पूछा। राजा ने जब सारा हाल बताया तो रानी के आँखों से अश्रु बह निकले। फिर भी वो अभिमान से राजा से बोली की आपकी आन पर मैं अपने सैंकड़ों पुत्र कुर्बान कर सकती हूँ। आप साधुओ को आदरपूर्वक अंदर ले आइये।

अर्जुन ने भगवान से पूछा- माधव ! ये क्या माजरा है ? आप ने ये क्या मांग लिया ? कृष्ण बोले -अर्जुन तुम देखते जाओ और चुप रहो।
राजा तीनो को अंदर ले आये और भोजन की तैयारी शुरू की। भगवान को छप्पन भोग परोसा गया पर अर्जुन के गले से उत्तर नहीं रहा था। राजा ने स्वयं जाकर पुत्र को तैयार किया। पुत्र भी तीन साल का था नाम था रतन कँवर, वो भी मात पिता का भक्त था, उसने भी हँसते हँसते अपने प्राण दे दिए परंतु उफ़ ना की ।

राजा रानी ने अपने हाथो में आरी लेकर पुत्र के दो टुकड़े किये और सिंह को परोस दिया। भगवान ने भोजन ग्रहण किया पर जब रानी ने पुत्र का आधा शरीर देखा तो वो आंसू रोक न पाई। भगवान इस बात पर गुस्सा हो गए की लड़के का एक फाड़ कैसे बच गया? भगवान रुष्ट होकर जाने लगे तो राजा रानी रुकने की मिन्नतें करने लगे।

अर्जुन को अहसास हो गया था की भगवान मेरे ही गर्व को तोड़ने के लिए ये सब कर रहे है। वो स्वयं भगवान के पैरों में गिरकर विनती करने लगा और कहने लगा की आप ने मेरे झूठे मान को तोड़ दिया है। राजा रानी के बेटे को उनके ही हाथो से मरवा दिया और अब रूठ के जा रहे हो, ये उचित नही है। प्रभु ! मुझे माफ़ करो और भक्त का कल्याण करो।

तब केशव ने अर्जुन का घमंड टूटा जान रानी से कहा की वो अपने पुत्र को आवाज दे। रानी ने सोचा पुत्र तो मर चुका है, अब इसका क्या मतलब !! पर साधुओं की आज्ञा मानकर उसने पुत्र रतन कंवर को आवाज लगाई।

कुछ ही क्षणों में चमत्कार हो गया । मृत रतन कंवर जिसका शरीर शेर ने खा लिया था, वो हँसते हुए आकर अपनी माँ से लिपट गया। भगवान ने मोरध्वज और रानी को अपने विराट स्वरुप का दर्शन कराया। पूरे दरबार में वासुदेव कृष्ण की जय जय कार गूंजने लगी।

भगवान के दर्शन पाकर अपनी भक्ति सार्थक जान मोरध्वज की ऑंखें भर आई और वो बुरी तरह बिलखने लगे। भगवान ने वरदान मांगने को कहा तो राजा रानी ने कहा भगवान एक ही वर दो की अपने भक्त की ऐसी कठोर परीक्षा न ले, जैसी आप ने हमारी ली है। तथास्तु कहकर भगवान ने उसको आशीर्वाद दिया और पूरे परिवार को मोक्ष दिया।

।। जय श्री कृष्णा ।।

17/09/2022

मित्रों, मीराबाई भक्तिकाल की एक ऐसी संत हैं, जिनका सब कुछ भगवान् श्री कृष्ण के लिये समर्पित था, यहां तक कि श्रीकृष्ण को ही वह अपना पति मान बैठी थीं, भक्ति की ऐसी चरम अवस्था कम ही देखने को मिलती है, सज्जनों! आज हम श्रीकृष्ण की दीवानी मीराबाई के जीवन की कुछ रोचक बातों को भक्ति के साथ आत्मसात करने की कोशिश करेंगे।

मीराबाई के बालमन में श्रीकृष्ण की ऐसी छवि बसी थी कि किशोरावस्था से लेकर मृत्यु तक उन्होंने भगवान् कृष्णजी को ही अपना सब कुछ माना, जोधपुर के राठौड़ रतनसिंह जी की इकलौती पुत्री मीराबाई का जन्म सोलहवीं शताब्दी में हुआ था, बचपन से ही वह कृष्ण-भक्ति में रम गई थीं।

मीराबाई के बचपन में हुई एक घटना की वजह से उनका कृष्ण-प्रेम अपनी चरम अवस्था तक पहुँचा, सज्जनों! हुआ यू की एक दिन उनके पड़ोस में किसी बड़े आदमी के यहाँ बारात आई, सभी औरतें छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं, मीरा भी बारात देखने लगीं, बारात को देख मीरा ने अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है?

इस पर उनकी माता ने कृष्ण की मूर्ति की ओर इशारा कर के कह दिया कि यही तुम्हारे दूल्हा हैं। बस यह बात मीरा के बालमन में एक गांठ की तरह बंध गई, बाद में मीराबाई की शादी महाराणा सांगा के पुत्र भोजराजजी से हुआ जो आगे चलकर महाराणा कुंभा कहलायें, शादी के बाद विदाई के समय वे श्री कृष्ण की वही मूर्ति अपने साथ ले गयीं जिसे उनकी माता ने उनका दूल्हा बताया था।

ससुराल में अपने घरेलू कामकाज निबटाने के बाद मीराबाई रोज भगवान् श्रीकृष्णजी के मंदिर चली जातीं और श्रीकृष्ण की पूजा करतीं, उनकी मूर्ति के सामने गातीं और नृत्य करतीं, ससुराल के परिवार वालों ने उनकी श्रद्धा-भक्ति को मंजूरी नहीं दी, मीराबाई की एक ननद थी उदाबाई, उन्होंने मीराबाई को बदनाम करने के लिये उनके खिलाफ एक साजिश रची।

उदाबाई ने राणा से कहा कि मीरा का किसी के साथ गुप्त प्रेम है और उसने मीरा को मंदिर में अपने प्रेमी से बात करते देखा है, राणा कुंभा अपनी बहन के साथ आधी रात को मंदिर गया और देखा कि मीराबा अकेले ही कृष्णजी की मूर्ति के सामने परम आनंद की अवस्था में बैठी मूर्ति से बातें कर रही थीं और मस्ती में गा रही थीं।

राणा मीरा पर चिल्लाया- मीरा! तुम जिस प्रेमी से अभी बातें कर रही हो, उसे मेरे सामने लाओ, मीराबाई ने जवाब दिया- वह सामने बैठा है मेरा स्वामी जिसने मेरा दिल चुराया है, और वह समाधि में चली गयीं, घटना से राणा कुंभा का दिल टूट गया लेकिन फिर भी उसने एक अच्छे पति की भूमिका निभाई और मरते दम तक मीराबाई का साथ दिया।

हालाँकि मीराबाई को राजगद्दी की कोई चाह नहीं थी फिर भी राणा के संबंधी मीराबाई को कई तरीकों से सताने लगे, कृष्ण के प्रति मीरा का प्रेम शुरुआत में बेहद निजी था, लेकिन बाद में कभी-कभी मीरा के मन में प्रेमानंद इतना उमड़ पड़ता था कि वह आम लोगों के सामने और धार्मिक उत्सवों में नाचने-गाने लगती थीं।

मीराबाई रात में चुपचाप चित्तौड़ के किले से निकल जाती थीं और नगर में चल रहे सत्संग में हिस्सा लेती थीं, मीराबाई का देवर विक्रमादित्य जो चित्तौड़गढ़ का नया राजा बना, मीराबाई की भक्ति, उनका आम लोगों के साथ घुलना-मिलना और नारी-मर्यादा के प्रति उनकी लापरवाही का उसने कड़ा विरोध किया, उसने मीराबाई को मारने की कई बार कोशिश की।

यहां तक कि एक बार उसने मीराबाई के पास फूलों की टोकरी में एक जहरीला साँप रखकर भेजा और मीराबाई को संदेश भिजवाया कि टोकरी में फूलों के हार हैं, ध्यान से उठने के बाद जब मीराबाई ने टोकरी खोली तो उसमें से फूलों के हार के साथ भगवान् श्री कृष्णजी की एक सुंदर मूर्ति निकली, राणा के द्वारा तैयार किया हुआ कांटो का बिस्तर भी मीराबाई के लिये फूलों का सेज बन गया जब मीरा उस पर सोने चलीं।

जब यातनायें बरदाश्त से बाहर हो गयीं तो मीराबाई ने चित्तौड़ छोड़ दिया, वे पहले मेड़ता गईं, लेकिन जब उन्हें वहां भी संतोष नहीं मिला तो कुछ समय के बाद उन्होने वृंदावन का रुख कर लिया, मीराबाई मानती थीं कि वह गोपी ललिता ही हैं, जिन्होने फिर से जन्म लिया है, ललिता कृष्ण के प्रेम में दीवानी थीं।

मीराबाई ने अपनी तीर्थयात्रा जारी रखी, वे एक गांव से दूसरे गांव नाचती-गाती पूरे उत्तर भारत में घूमती रहीं, माना जाता है कि उन्होंने अपने जीवन के अंतिम कुछ साल गुजरात के द्वारका में गुजारे, ऐसा कहा जाता है कि दर्शकों की पूरी भीड़ के सामने मीरा द्वारकाधीश की मूर्ति में समा गईं।

सज्जनों! इंसान आमतौर पर शरीर, मन और बहुत सारी भावनाओं से बना है, यही वजह है कि ज्यादातर लोग अपने शरीर, मन और भावनाओं को समर्पित किए बिना किसी चीज के प्रति खुद को समर्पित नहीं कर सकते, विवाह का मतलब यही है कि आप एक इंसान के लिए अपनी हर चीज समर्पित कर दें, अपना शरीर, अपना मन और अपनी भावनायें।

मीराबाई के लिए यह समर्पण, शरीर, मन और भावनाओं के परे, एक ऐसे धरातल पर पहुंच गयी जो बिलकुल अलग था, जहां यह उनके लिए परम सत्य बन गया था, मीराबाई जो कृष्ण को अपना पति मानती थीं, कृष्णजी को लेकर मीराबाई इतनी दीवानी थीं कि महज आठ साल की उम्र में मन ही मन उन्होंने श्रीकृष्ण से विवाह कर लिया, उनके भावों की तीव्रता इतनी गहन थी कि कृष्ण उनके लिए सच्चाई बन गयें।

यह मीराबाई के लिये कोई मतिभ्रम नहीं एक सच्चाई थी कि श्रीकृष्ण उनके साथ उठते-बैठते थे, घूमते थे, ऐसे में मीराबाई के पति को उनके साथ दिक्कत होने लगी, क्योंकि वह हमेशा अपने दिव्य प्रेमी श्रीकृष्ण के साथ रहतीं, उनके पति ने हर संभव समझाने की, क्योंकि वह मीराबाई को वाकई प्यार करता था, लेकिन वह नहीं जान सका कि आखिर मीरा के साथ हो क्या रहा है।

दरअसल, मीरा जिस स्थिति से गुजर रही थीं और उनके साथ जो भी हो रहा था, वह बहुत वास्तविक लगता था, लेकिन उनके पति को कुछ भी नजर नहीं आता था और वह बहुत निराश हो गया, मीराबाई के इर्द गिर्द के लोग शुरुआत में बड़े चकराये कि आखिर मीराबाई का क्या करें, बाद में जब भगवान् श्री कृष्ण के प्रति मीराबाई का प्रेम अपनी चरम ऊँचाइयों तक पहुँच गया तब लोगों को यह समझ आया कि वे कोई असाधारण औरत हैं।

फिर तो लोग उनका आदर करने लगे और उनके आस-पास भीड़ इकट्ठी होने लगी, पति के मरने के बाद मीराबाई पर व्यभिचार का आरोप लगा, उन दिनों व्यभिचार के लिए मत्यु दंड दिया जाता था, इसलिये शाही दरबार में उन्हें जहर पीने को दिया गया, उन्होंने भगवान् श्री कृष्णजी को याद किया और जहर पीकर वहां से चल दीं, लोग उनके मरने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन वह स्वस्थ्य और प्रसन्न बनी रहीं।

इस तरह की कई घटनाएं हुयीं, दरअसल भक्ति ऐसी चीज है जो व्यक्ति को खुद से भी खाली कर देती है, जब मैं भक्ति कहता हूंँ तो मैं किसी मत या धारणा में विश्वास की बात नहीं कर रहा हूंँ, मेरा मतलब पूरे भरोसे और आस्था के साथ आगे बढ़ने से है, तो सवाल उठता है, कि मैं भरोसा कैसे करूं? भक्ति कोई मत या मान्यता नहीं है, भक्ति इस अस्तित्व में होने का सबसे खूबसूरत तरीका है।

सज्जनों! जीव गोसांई वृंदावन में वैष्णव-संप्रदाय के बड़े संत थे, मीराबाई जीव गोसांई के दर्शन करना चाहती थीं, लेकिन उन्होंने मीराबाई से मिलने से मना कर दिया, उन्होंने मीरा को संदेशा भिजवाया कि वह किसी औरत को अपने सामने आने की इजाजत नहीं देंगे, मीराबाई ने इसके जवाब में अपना संदेश भिजवाया कि वृँदावन में हर कोई औरत है।

अगर यहां कोई पुरुष है तो केवल गिरिधर गोपाल, आज मुझे पता चला कि वृंदावन में कृष्ण के अलावा कोई और पुरुष भी है, इस जबाब से जीव गोसाईं बहुत शर्मिंदा हुयें और तत्काल मीराबाई से मिलने गये और मीराबाई को भरपूर सम्मान दिया, मीराबाई ने गुरु के बारे में कहा है कि बिना गुरु धारण किये भक्ति नहीं होती।

भाई-बहनों! भक्तिपूर्ण इंसान ही प्रभु प्राप्ति का भेद बता सकता है और वही सच्चा गुरु है, स्वयं मीराबाई के पद से पता चलता है कि उनके गुरु रैदासजी थे, मीरा के पदों में भावनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति के साथ-साथ प्रेम की ओजस्वी प्रवाह-धारा और प्रीतम से वियोग की पीड़ा का मर्मभेदी वर्णन मिलता है, मीराबाई की भक्ति की वंदना के साथ आज शुक्रवार के पावन दिवस की पावन सुप्रभात् आप सभी को मंगलमय् हो।

जय श्री कृष्ण!
जय श्री भक्त सिरोमणी मीराबाई!

30/03/2022

इस बार नवरात्रि मनाएं Jyotishi ज्योतिषी उपाय वास्तु मार्गदर्शन के संग

इस बार अगर आप नवरात्रि के त्‍योहार को वास्‍तु के संग मनाएंगे तो सोने पे सुहागे वाली कहावत चरितार्थ होगी। आपको ज्‍यादा कुछ नहीं करना है, बस देवी मां के रूपों के अनुसार ही उनकी दिशा में अगर आप उपासना करते हैं तो फल हजारों गुना बढ़ जाता है। -

प्रथम नवरात्रि -
प्रथम नवरात्रि के दिन, प्रथम नवरात्रि शैलपुत्री अर्थात् पर्वत पुत्री मां परांबा दुर्गा जी की प्रथम शक्ति मां शैलपुत्री है जो साक्षात् धर्म स्वरूपा है, क्योंकि प्रथम धर्म को उत्पन्न किया जाता है| मां शैलपुत्री जी की आराधना से धर्म सुस्थिर होता है तथा घर पर धार्मिक वातावरण बनता है| धर्म स्वरूपी मां बैल की सवारी पर पधारती है, बैल साक्षात् धर्म है|
अत: इनकी उपासना दक्षिण-पश्चिम के मध्य में उत्तम होती है| प्रथम नवरात्रि के दिन मां के चरणों में गाय का शुद्ध घी अर्पित करने से आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है। तथा शरीर निरोगी रहता है।

द्वितीय नवरात्रि -
दूसरे नवरात्रि के दिन, द्वितीय मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी, माता की योग शक्ति है। यह मंत्रों की अधिष्ठात्री देवी है। इनके हाथों में कोई अस्त्र शस्त्र नहीं होता। मंत्र शक्ति के कारण जल को अभिमंत्रित करके यह देवी दुराचारी शत्रुओं का विनाश करती है एवं मानव जीवन में नव स्फूर्ति का संचार करती है।
तेज-कांति, प्रकाश इनकी विशेषता है। अगर हम 'ऐं' मंत्र का उच्चारण, जो कि इनका बीज मंत्र है, का जाप उत्तर-पूर्व दिशा में करें तो मस्तिष्क का शुद्धिकरण होता है और मन को शांति मिलती है। दूसरे नवरात्रि के दिन मां को शक्कर का भोग लगाएं व घर में सभी सदस्यों को दें। इससे आयु वृद्धि होती है।

तृतीय नवरात्रि -
तीसरे नवरात्रि को मां चंद्रघंटा की आराधना करते हुए मनाया जाता है। मां चंद्रघंटा, इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। यह देवी नाद ब्रह्म (ॐ) और स्वर (नाड़ी, इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना) की अधिष्ठात्री देवी है। महिषासुर के वध के समय मां चंद्रघंटा के घंटे की ध्वनि मात्र से ही महिषासुर की आधी सेना नष्ट हो गई थी।
जो साधक इनकी अराधना करते है वे साहित्य, संगीत और कला में परिपूर्ण होते है। इनका चक्र अनाहत है। इनकी आराधना दक्षिण-पूर्व जिसको इस क्षेत्र में आगे बढ़ना हो या जिसकी इसमें रुचि हो उसको दक्षिण-पूर्व में इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
इनका मंत्र: 'ॐ क्लीं' है। तृतीय नवरात्रि के दिन दूध या दूध से बनी मिठाई, खीर का भोग मां को लगाकर ब्राह्मण को दान करें। इससे दुखों की मुक्ति होकर परम आनंद की प्राप्ति होती है।

चतुर्थ नवरात्रि -
श्री मां दुर्गा के चतुर्थ रूप का नाम 'कूष्मांडा' है। मां कूष्मांडा सृष्टि के सृजन हेतु चतुर्थ रूप में प्रकट हुई जिनके उदर (पेट) में संपूर्ण संसार समाहित है। मां कूष्मांडा संपूर्ण संसार का भरण-पोषण करती है।
मां का ध्यान और आराधना उत्तर-पश्चिम दिशा में करने से बहुत लाभ मिलता है। जिस निवास स्थान (घर) में मां की आराधना होती है, उस घर में धन-धान्य और अन्न की कमी नहीं होती। इसके साथ ही भक्तों को आयु, यश, बल तथा आरोग्य के साथ सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
मां की कृपा प्रसाद प्राप्त करने के लिए साधको को इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। मंत्र: 'ॐ श्रीं' । मां दुर्गा को चौथी नवरात्रि के दिन मालपुए का भोग लगाएं और मंदिर के ब्राह्मण को दान दें, जिससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय शक्ति बढ़ती है।

पंचंम नवरात्रि -
पंचम स्कंदमाता यानी स्वामी स्कंद कुमार कार्तिकेय जी की माता। स्कंदमाता अपने पुत्र के नाम से ही जानी जाती है। कार्तिकेय जी का लालन-पालन इन्हों ने ही किया। भगवान शंकर व स्कंदमाता की कृपा से ही स्वामी कार्तिक जी देवताओं के सेनापति हुए और देवताओं को विजय दिलाई।
नवरात्रि के पंचम दिन मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है। स्कंदमाता तेज, शौर्य, वीरता एवं वात्सल्य की अधिष्ठात्री देवी है। संतान प्राप्ति हेतु मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है।
मां स्कंदमाता की पूजा पूर्व-उत्तर-पूर्व पर्जन्य देवता के क्षेत्र में और उत्तर-पूर्व दिशा में करने से संतान सुख से वंचित साधकों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। मां की कृपा प्रसाद प्राप्त करने के लिए साधकों को इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
इनका मंत्र: 'या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः है। नवरात्रि के पांचवें दिन मां को केले का नैवेद्य चढ़ाने से शरीर स्वस्थ रहता है।

षष्टम नवरात्रि -
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्‍यायनी की पूजा की जाती है जो शक्ति का एक रूप माना जाता है। उनकी चार भुजाएं हैं और हाथों में तलवार रहती है। मां 'कात्यायनी' के बारे में पुराणों में कहा गया है कि ऋषि कात्यायन के नाम पर ही उनके षष्टम रूप का नाम कात्यायनी देवी पड़ा। यह यज्ञों/ हवन की रक्षक है तथा अन्न और धन कि अधिष्ठात्री देवी है। इनकी आराधना करने से छः सुख मिलते हैं जो इस प्रकार है:-
1. धन का आगमन होता है।
2. साधक निरोग रहते हैं।
3. मनचाहा और मीठा बोलने वाला जीवनसाथी मिलता है।
4. संतान आज्ञाकारी होती है।
5. साधक को अपने ज्ञान से धनलाभ मिलता है।
6. जिन कन्याओं के विवाह में रुकावट हैं उन्हें शीघ्र वर मिलता है।
मां कि कृपा प्राप्त करने के लिए साधकों को इनके मंत्र का उच्चारण दक्षिण-पूर्व दिशा में करना चाहिए। उनका मंत्र: 'ॐ क्लीं कात्यायन्ने नमः' है और नवरात्रि के छठे दिन मां को शहद का भोग लगाएं। जिससे आपके आकर्षण शक्ति में वृद्धि होगी।

सप्तम नवरात्रि -
इसी तरह से मां कालरात्रि को नवरात्रि के सातवें दिन पूजा जाता है। मां दुर्गा की सातवीं शक्ति मां 'कालरात्रि' के नाम से जानी जाती है। इन्हें महारात्रि, एकवीरा, कालरात्रि और कामधा भी कहा जाता है। मां के दो स्वरूप है: एक है सतोगुणी और दूसरा तमोगुणी। मां कालरात्रि तमोगुणी है व तमोगुण से ही असुरों का अंत होता है।
मां कालरात्रि की पूजा रात्रि में विशेष विधान के साथ की जाती है। मां के एक हाथ में चंद्रहास तथा दूसरे हाथ में असुरों का कटा हुआ सिर है। इनकी आराधना करने से साधकों की हर इच्छा पूर्ण होती है।
मां कालरात्रि ऊपरी बाधाएं जैसे कि टोना-टोटका, नजर लगाना आदि को काट देती है। मां की कृपा प्राप्त करने के लिए साधकों को इनके मंत्र का जाप दक्षिण दिशा में करना चाहिए।
इनका मंत्र: 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:' है और सातवें नवरात्रि पर मां को गुड़ का नैवेद्य चढ़ाने व उसे ब्राह्मण को दान करने से शोक से मुक्ति मिलती है एवं आकस्मिक आने वाले संकटों से रक्षा भी होती है।

अष्टम नवरात्रि -
मां 'महागौरी' नवरात्रि के आठवें दिन दुर्गा अष्‍टमी को समर्पित है। मां दुर्गा जी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। यह अष्टम सिद्धि है तथा सभी शक्तियों का समन्वय इन्हीं से हुआ है। इन्हें अनिमा, लघिमा, गरिमा, महिमा, प्राप्ति, प्राक्यमा, ईस्तव और वशित्व नामों से भी जाना जाता है। यह दाम्पत्य जीवन की अधिष्ठात्री देवी है।
इनकी आराधना करने से साधकों को आयु, आरोग्यता व धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
मां की कृपा प्राप्त करने के लिए इनके मंत्र का जाप दक्षिण-पश्चिम दिशा में करना चाहिए। निम्‍न मंत्र का जाप करने से जीवन के सभी कष्‍ट दूर होते हैं और मां का आशीर्वाद बना रहता है।
'शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे,।
सर्वस्यार्तिहरे देवि! नारायणि! नमोस्तुते।
नवरात्रि के आठवें दिन माता रानी को नारियल का भोग लगाएं। इससे संतान पक्ष से भी खुशी मिलती है.

नवम नवरात्रि -
इसके साथ ही दुर्गाष्‍टमी व नवमी को निम्‍न मंत्र का जाप करने से विशेष फल प्राप्‍त होते हैं।
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥
नवरात्रि की नवमी के दिन तिल का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान दें। इससे मृत्यु भय से राहत मिलेगी। साथ ही अनहोनी होने की घटनाओं से बचाव भी होगा।

09/02/2022

भर्तृहरि ने घर छोड़ा। देखा लिया सब। पत्‍नी का प्रेम, उसका छलावा, अपने ही हाथों आपने छोटे भाई विक्रमादित्‍य की हत्‍या का आदेश। मन उसका राज पाठ से वैभव से थक गया। उस भोग में केवल पीड़ा और छलावा ही मिला। सब कुछ को खूब देख परख कर छोड़ा। बहुत कम लोग इतने पककर छोड़ते है इस संसार को जितना भर्तृहरि ने छोड़ा है। अनूठा आदमी रहा होगा भर्तृहरि। खूब भोगा। ठीक-ठीक उपनिषद के सूत्र को पूरा किया: ‘’तेन त्‍यक्‍तेन भुंजीथा:।‘’ खूब भोगा।एक-एक बूंद निचोड़ ली संसार की। लेकिन तब पाया कि कुछ भी नहीं है। अपने ही सपने है, शून्‍य में भटकना है।
भोगने के दिनों में शृंगार पर अनूठा शास्‍त्र लिखा, शृंगार-शतक। कोई मुकाबला नहीं। बहुत लोगों ने शृंगार की बातें लिखी है। पर भर्तृहरि जैसा स्‍वाद किसी ने शृंगार का कभी नहीं लिखा। भोग के अनुभव से शृंगार के शास्‍त्र का जन्‍म हुआ। यह कोई कोरे विचारक की बकवास न थी। एक अनुभोक्‍ता की अनुभव-सिद्ध वाणी थी। शृंगार-शतक बहुमूल्‍य है। संसार का सब सार उसमें है।
लेकिन फिर आखिर में पाया वह भी व्‍यर्थ हुआ। छोड़कर जंगल चले गए। फिर वैराग्‍य-शतक लिखा, फिर वैराग्‍य का शास्‍त्र लिखा। उसका भी कोई मुकाबला नहीं है। भोग को जाना तो भोग की पूरी बात की, फिर वैराग्‍य को जाना तो वैराग्‍य की पूरी बात की।
जंगल में एक दिन बैठे है। अचानक आवाज आई। दो घुड़सवार भागते हुए चले आ रहे है। दोनों दिशाओं से। चट्टान पर बैठे है, भर्तृहरि देखते है उस छोटी सी पगडंडी की और। घोड़ोंकी हिनहिनाहट से उसकी आँख खुल गई। सामने सूरज डूबने की तैयारी कर रहा है। उसकी सुनहरी किरणें पेड़, पत्‍ते,पगडंडी जिस को छू रही है। वह स्वर्णिम लग रहा है। पर अचानक तीनों की निगाह उस चमकी चीज पर एक साथ पड़ी दोनों घुड़सवारों और भर्तृहरि की। एक बहुमूल्य हीरा। धूल में पड़ हुआ भी चमक रहा है। हीरे की चमक अद्द्भुत थी। हजारों हीरे देखे थे भर्तृहरि ने पर अनोखा ही था।वासना एक क्षण में उस हीरे पर गई। और जैसे ही भर्तृहरि ने अपनी वासना को देखा वह तत्क्षण लौट आई। एक क्षण में मन भूल गया सारे अनुभव विशाद के। वह सारा अनुभव भोग का। वह तिक्‍तता, वह वासना उठ गई। एक क्षण को ऐसा लगा कि उठे-उठे—और उसी क्षण ख्‍याल आ गया अरे पागल। क्‍या कर रहा है। ये सब छोड़ कर तू आया है। देखा है जीवन में इसके महत्‍व को भोग है पीड़ा है उस में रह कर। फिर उसी में जाना चाहता है।
पर ये बातें उसके मन को मथती की सामने से आते दो घुड़सवार आकर हीरे के दोनों और खड़े हो गये। दोनों ने एक दूसरे को देखा और तलवारें निकल ली। दोनों ने कहां मेरी नजर पहले पड़ी थी इस लिए यह हीरा मेरा है। दूसरा भी यही कह रहा था। अब बातों से निर्णय होना असम्‍भव था। तलवार खींच गयी। क्षण भर में दो लाशें पड़ी थी—तड़पती, लहूलुहान। और हीरा अपनी जगह था। उधर भर्तृहरि अपनी जगह केवल देखते रह गये। एक निर्जीव और एक जीवित। सूरज की किरणें अब भी चमक रही थी, पर कुछ कोमल हो गई थी। हीरा बेचार यह जान भी नहीं पाया कि क्षण मे उसके आस पास क्‍या घट गया।
सब कुछ हो गया वहां। एक आदमी का संसार उठा और वैराग्‍य हो गया। एक आदमी का संसार उठा और मौत हो गई। दो आदमी अभी-अभी जीवित थे, उनकी धमनियों में खून प्रवाहित हो रहा था। स्वास चल रही थी। दिल धड़क रहा था। मन सपने बुन रहा था। पर क्षण में प्राण गँवा दिये एक पत्‍थर के पीछे। और बेचारा निर्दोष पत्‍थर जानता भी नहीं की ये सब तेरे कारण हो रहा है। एक आदमी वहां बैठा-बैठा जीवन के सारे अनुभव से गुजर गया। भोग के और वैराग्‍य के; और पार हो गया साक्षी भाव जाग गया उसका।
भर्तृहरि ने आंखें बंद कर ली। और वे फिर ध्‍यान में डूब गए।
जीवन का सबसे गहरा सत्‍य क्‍या है? तुम्‍हारा चैतन्‍य। सारा खेल वहाँ है। सारे खेल की जड़ें वहां है। सारे संसार के सूत्र वहां है।

05/02/2022

हमारा ऋग्वेद हमे बांट कर भोजन करने को कहता है। हम जो अनाज खेतों मे पैदा करते है, उसका बंटवारा तो देखिए।

1. जमीन से चार अंगुल भूमि का,

2. गेहूं के बाली के नीचे का पशुओं का,

3. पहले पेड़ की पहली बाली अग्नि की ,

4. बाली से गेहूं अलग करने पर मूठ्ठी भर दाना पंछियो का,

5. गेहूं का आटा बनाने पर मुट्ठी भर आटा चीटियो का,

6. फिर आटा गूथने के बाद चुटकी भर गुथा आटा मछलियो का,

7. फिर उस आटे की पहली रोटी गौमाता की,

8. पहली थाली घर के बुज़ुर्ग़ो की और फिर हमारी,

9. आखिरी रोटी कुत्ते की

ये हमे सिखाती है हमारी भारतीय संस्कृति और मुझे गर्व है कि मै इस संस्कृति का हिस्सा हूँ...🙏🚩👍

Photos from Jyotishi's post 07/01/2022
31/12/2021

जय श्रीकृष्ण जी की 800 वर्षीय पुरानी अद्भुत मूर्ति 🌺🙏

29/11/2021

#भगवान_श्रीकृष्ण_के_प्रभावशाली_मंत्र प्रयोग,..🌹🌹

श्रीकृष्ण जी को विष्णु जी का पूर्णावतार माना जाता है. एक ऐसा अवतार जिसमें पूरी पूर्णता थी, बाल रुप से लेकर मृत्यु तक कृष्ण जी की लीलाये वाकई में अपरंपार थी.

मथुरा में अष्टमी के दिन देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, लेकिन उनका पालन माता यशोदा की गोद में गोकुल में हुआ. बचपन से ही नटखट बालगोपाल की शरारत से यशोदा मईया के साथ पूरा गोकुल परेशान था, लेकिन नंदलाला की उन्हीं शरारतो में उनका सूकुन भी छिपा था.

होनहार बिरबान के होत चिकने पात, कृष्ण के करिश्मे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नन्हीं अवस्था में ही उन्होंने पूतना राक्षसी का वध किया. कालिया नाग, जिससे पूरा गोकुल और यमुना तीर के बाशिंदे त्रस्त थे. लीलाधारी कृष्ण ने अपने प्रताप से पूरे इलाके को कालिया नाग के प्रकोप से भी मुक्ति दिलाई.

संकट की घड़ी में कृष्ण को जब भी किसी ने पुकारा भगवान सदैव वहां प्रकट हुए. दुशासन जब द्रौपदी का चीर हरने का दुस्साहस कर रहा था उस वक्त द्रौपदी ने पुकारा कृष्ण को. कृष्ण ने अपनी बहन द्रौपदी को निराश नहीं किया और उन्हें इस संकट से उबारा.कुरुक्षेत्र में पांडवों और कौरवों का घमासान चल रहा था. युद्धभूमि में अपनों को सामने देखकर अर्जुन पीछे हट रहे थे लेकिन उनके साथ थे कृष्ण,

कृष्ण ने युद्धभूमि में धनुरधारी अर्जुन को दिखाया अपना दिव्य विराट रुप और दिया गीता का ज्ञान. कृष्ण की अकाल मृत्यु के साथ ही द्वापर युग का अंत हो गया और कलियुग की शुरुआत हो गई.

श्रीकृष्ण जी के 12 रूप इस प्रकार हैं,...🌹🌹🌹🌹

1- पहला स्वरूप- लड्डू गोपाल -धन संपत्ति की प्राप्ति,..🌹🌹🌹🌹

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो एक बालक कृष्ण हैं, जिनके हाथों में लड्डू है ऐसे स्वरुप का ध्यान करें. भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को हरे रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें. धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, सफेद चन्दन प्रदान करें. प्रसाद में खीर अर्पित करें, हरे रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.

मंत्र- ।। ॐ स: फ्रें क्लीं कृष्णाय नम: ।।

मंत्र जाप के बाद भगवान् को दूध के छीटे दें.

2- दूसरा स्वरुप- बंसीबजइया -मानसिक सुख,..🌹🌹🌹🌹

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो एक बालक कृष्ण हैं, हाथों में बंसी लिए हुए ऐसे स्वरुप का ध्यान करें भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को नीले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें. धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, कपूर प्रदान करें प्रसाद में मेवे अर्पित करें, नीले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.

मंत्र- ।। ॐ श्री कृष्णाय क्लीं नम: ।।

मंत्र जाप के बाद भगवान् को घी के छीटे दें.

3- तीसरा स्वरुप- कालिया मर्दक- व्यापार में तरक्की,..🌹🌹🌹🌹

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो कालिया नाग के सर पर नृत्य मुद्रा में स्थित हैं, ऐसे स्वरुप का ध्यान करें. भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को काले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें, धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, गोरोचन प्रदान करें प्रसाद में मक्खन अर्पित करें. काले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.

मंत्र- ।। ॐ हुं ऐं नम: कृष्णाय ।।

मंत्र जाप के बाद भगवान् को दही के छीटे दें.

4- चौथा स्वरुप- बाल गोपाल- संतान सुख,..🌹🌹🌹🌹

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो एक पालने में झूलते शिशु कृष्ण हैं ऐसे स्वरुप का ध्यान करें, भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को पीले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें. धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, केसर प्रदान करें, प्रसाद में मिसरी अर्पित करें. पीले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.

मंत्र- ।। ॐ क्लीं क्लीं क्लीं कृष्णाय नम: ।।

मंत्र जाप के बाद भगवान् को शहद के छीटे दें.

5- पांचवां स्वरुप- माखन चोर- रोगनाश,..🌹🌹🌹🌹

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरूप, जिसमें वो माता यशोदा के सामने ये कहते हुए दीखते हैं कि मैंने माखन नहीं खाया. ऐसे स्वरुप का ध्यान करें. भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को पीले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें. धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, सुच्चा मोती प्रदान करें, प्रसाद में फल अर्पित करें, पीले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.

मंत्र- ।। ॐ हुं ह्रौं हुं कृष्णाय नम: ।।

मंत्र जाप के बाद भगवान् को गंगाजल के छीटे दें.

6- छठा स्वरुप- गोपाल कृष्ण- मान सम्मान,..🌹🌹🌹🌹

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो बन में सखाओं सहित गैय्या चराते हैं ऐसे स्वरुप का ध्यान करें. भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को मटमैले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें. धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, मोर पंख प्रदान करें. प्रसाद में मिठाई अर्पित करें. मटमैले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.

मंत्र- ।। ॐ ह्रौं ह्रौं क्लीं नम: कृष्णाय ।।

मंत्र जाप के बाद भगवान् को दूध के छीटे दें.

7- सातवां स्वरुप- गोवर्धनधारी- क्रूर ग्रह बेअसर,..🌹🌹🌹🌹

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो एक छोटी अंगुली से गोवर्धन पर्वत उठाये हुये दीखते हैं. भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को लाल रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें. धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, पीले पुष्पों का हार प्रदान करें. प्रसाद में मिसरी अर्पित करें. लाल रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.

मंत्र- ।। ॐ ऐं कलौं क्लीं कृष्णाय नम: ।।

मंत्र जाप के बाद भगवान् को गंगाजल के छीटे दें.

8- आठवां स्वरुप- राधानाथ- शीघ्र विवाह व प्रेम विवाह,..🌹🌹🌹🌹

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो राधा और कृष्ण जी का प्रेममय झांकी स्वरुप दीखता है ऐसे स्वरुप का ध्यान करें. भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को गुलाबी रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें. धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, इत्र सुगंधी प्रदान करें. प्रसाद में मिठाई अर्पित करें. गुलाबी रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.

मंत्र- ।। ॐ हुं ह्रीं सः कृष्णाय नम:।।

मंत्र जाप के बाद भगवान को शहद के छीटे दें.

9- नौवां स्वरुप- रक्षा गोपाल- मुकदमों व राजकीय कार्यों में सफलता,..🌹🌹🌹🌹

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो द्रोपदी के चीर हरण पर उनकी साड़ी के वस्त्र को बढ़ते हुये दीखते हैं ऐसे स्वरुप का ध्यान करें. भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को मिश्रित रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें, धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, मीठे पान का बीड़ा प्रदान करें, प्रसाद में माखन-मिसरी अर्पित करें. मिश्रित रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.

मंत्र- ।। ॐ कलौं कलौं ह्रौं कृष्णाय नम:।।

मंत्र जाप के बाद भगवान् को दही के छीटे दें.

10- दसवां स्वरुप- भक्त वत्सल- भय नाशक, दुर्घटना नाशक, रक्षक रूप भगवान,..🌹🌹🌹🌹

श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो सखा भक्त सुदामा के चरण पखारते हैं या युद्ध में रथ का पहिया हाथों में उठाये क्रोधित कृष्ण ऐसे स्वरुप का ध्यान करें. भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को भूरे रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें. धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, एक शंख प्रदान करें. प्रसाद में फल अर्पित करें. भूरे रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.

मंत्र- ।। ॐ हुं कृष्णाय नम:।।

मंत्र जाप के बाद भगवान् को पंचामृत के छीटे दें.

11- ग्यारहवां स्वरूप- योगीश्वर कृष्ण- परीक्षाओं में सफलता के लिए,..🌹🌹🌹🌹

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो एक रथ पर अर्जुन को गीता का उपदेश करते हैं ऐसे स्वरुप का ध्यान करें. भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को पीले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें. धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, पुष्पों का ढेर प्रदान करें. प्रसाद में मीठे पदार्थ अर्पित करें. पीले रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.

मंत्र- ।। ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रौं हुं कृष्णाय नम:।।

मंत्र जाप के बाद भगवान् को दूध के छीटे दें.

12- बारहवां स्वरुप- विराट कृष्ण- घोर विपदाओं को टालने वाला रूप,..🌹🌹🌹🌹

भगवान श्री कृष्ण जी का ऐसा स्वरुप जिसमें वो युद्ध के दौरान अर्जुन को विराट दर्शन देते हैं. जिसे संजय सहित वेदव्यास व देवताओं नें देखा ऐसे स्वरुप का ध्यान करें. भगवान के ऐसे चित्र या मूर्ती को लाल व पीले रंग के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें. धूप दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, तुलसी दल प्रदान करें. प्रसाद में हलवा बना कर अर्पित करें. पीले या लाल रंग के आसन पर बैठ कर चन्दन की माला से मंत्र का जाप करें.

मंत्र- ।। ॐ तत स्वरूपाय कृष्णाय नम:।।

मंत्र जाप के बाद भगवान् को पंचामृत के छीटे दें.,,

राधारानी आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें,.

,..🙏🙏..🌹🌹..राधे राधे जी,..🌹🌹..🙏🙏..,

Want your organization to be the top-listed Non Profit Organization in Ayodhya?
Click here to claim your Sponsored Listing.

Videos (show all)

जय श्रीकृष्ण जी की 800 वर्षीय पुरानी अद्भुत मूर्ति 🌺🙏

Address

Tulsi Udyan
Ayodhya
224123

Other Community Organizations in Ayodhya (show all)
India army India army
Ayodhya

bal India army

Jai Shree Ram Jai Shree Ram
श्री राम जन्म भूमि
Ayodhya, २२४१२३

जय श्री राम का अर्थ है "भगवान राम की जय ?

The Savior Kabir The Savior Kabir
Ayodhya, 224001

Daily Updated Satsang Video Spiritual Book - Must Read Get Free Book Gyan Ganga And Jeene Ki Raah

अवध डायलॉग- बतकही अवध डायलॉग- बतकही
Ayodhya

बतकही के माध्यम से अवध को उसकी सम्पूर्

Uttam bansal- samaj sevi Uttam bansal- samaj sevi
Ayodhya, 224001

काम करते रहे ,कभी न रुकने वाला काम करे।

Mansi singh Mansi singh
Ayodhya, 224205

Faizabad

RamLalla RamLalla
Ram LallaVirajman
Ayodhya

Swacch Bharat Squad Swacch Bharat Squad
Ayodhya

Welcome to Swacch Bharat Squad. Let's join hands together, share & appreciate each others efforts in

Ram Rajya Ram Rajya
15, FAIZABAD
Ayodhya, 224123

Ayodhya Post Ayodhya Post
Ram Janmbhumi Ayodhya
Ayodhya, 224001

TLM Faizabad TLM Faizabad
TLM Community Hospital
Ayodhya, 224201

Healing. Inclusion. Dignity