Faizan Bastvi
शेर वो शायरी
तेरी मुश्किल ना बढ़ाऊंगा चला जाऊंगा
अश्क आंखो में छुपाऊंगा चला जाऊंगा
अपनी दहलीज़ पे कुछ देर पड़ा रहने दे
जैसे ही होश में आऊंगा चला जाऊंगा
ख़्वाब लेने कोई आए के ना आए कोई
मैं तो आवाज़ लगाऊंगा चला जाऊंगा
उन महेल्लात से कुछ भी नही लेना मुझको
बस तुम्हें देखने आऊंगा चला जाऊंगा
चंद यादें मुझे बच्चों की तरह प्यारी है़
उनको सीने से लगाऊंगा चला जाऊंगा
मुद्दतो बाद मैं आया हूॅं पुराने घर में
ख़ुद को जी भर के रुलाऊंगा चला जाऊंगा
मौसम - ए - गुल की तरह लौट के आऊंगा ' हसन '
हर तरफ फूल खिलाऊंगा चला जाऊंगा
हसन अब्बासी
शाम ए ग़म का धुआं कहां तक है
बेबसी का जहां कहां तक है
चलो कांटों पे चलके देखते हैं
दर्द की इंतेहा कहां तक है
شام اے غام کا دھواں کہاں تک ہے
بے بسی کا جہاں کہاں تک ہے۔
چلو کانٹوں پہ چلکے دیکھتے ہیں۔
درد کی انتیہا کہاں تک ہے۔
Myself
सब के होते हुए लगता है कि घर ख़ाली है
ये तकल्लुफ़ है कि जज़्बात की पामाली है
आसमानों से उतरने का इरादा हो तो सुन
शाख़ पर एक परिंदे की जगह ख़ाली है
जिस की आँखों में शरारत थी वो महबूबा थी
ये जो मजबूर सी औरत है ये घर वाली है
रात बे-लुत्फ़ है परहेज़ के सालन की तरह
दिन भिकारी के कटोरे की तरह ख़ाली है
मुद्दतों ख़ुद को भरोसे में लिया है मैं ने
तब कहीं तेरी मोहब्बत ने सिपर डाली है
शकील जमाली
खुद अपने लिए बैठ के सोचेंगे किसी दिन
यूँ है के तुझे भूल के देखेंगे किसी दिन
भटके हुए फिरते हैं कई लफ्ज़ जो दिल में
दुनिया ने दिया वक़्त तो लिक्खेंगे किसी दिन
हिल जायेंगे इक बार तो अर्शों के दर-ओ-बाम
ये ख़ाकनशीं लोग जो बोलेंगे किसी दिन
आपस की किसी बात का मिलता ही नहीं वक़्त
हर बार ये कहते हैं के बैठेंगे किसी दिन
ऐ जान तेरी याद के बे-नाम परिंदे
शाखों पे मेरे दर्द की उतरेंगे किसी दिन
जाती है किसी झील की गहराई कहाँ तक
आँखों में तेरी डूब के देखेंगे किसी दिन
खुशबू से भरी शाम में जुगनू के कलम से
इक नज़्म तेरे वास्ते लिक्खेंगे किसी दिन
सोयेंगे तेरी आंख की ख़ल्वत में किसी रात
साये में तेरी ज़ुल्फ़ के जागेंगे किसी दिन
ख़ुशबू की तरह, असल-ए-सबा ख़ाक नुमा से
गलियों से तेरे शहर की गुज़रेंगे किसी दिन
‘अमजद’ है यही अब के कफ़न बांध के सर से
उस शहर-ए-सितमगर में जायेंगे किसी दिन
अमजद इस्लाम अमजद
वो तड़प जाए इशारा कोई ऐसा देना
उस को ख़त लिखना तो मेरा भी हवाला देना
अपनी तस्वीर बनाओगे तो होगा एहसास
कितना दुश्वार है ख़ुद को कोई चेहरा देना
इस क़यामत की जब उस शख़्स को आँखें दी हैं
ऐ ख़ुदा ख़्वाब भी देना तो सुनहरा देना
अपनी तारीफ़ तो महबूब की कमज़ोरी है
अब के मिलना तो उसे एक क़सीदा देना
है यही रस्म बड़े शहरों में वक़्त-ए-रुख़्सत
हाथ काफ़ी है हवा में यहाँ लहरा देना
इन को क्या क़िले के अंदर की फ़ज़ाओं का पता
ये निगहबान हैं इन को तो है पहरा देना
पत्ते पत्ते पे नई रुत के ये लिख दें 'अज़हर'
धूप में जलते हुए जिस्मों को साया देना
अज़हर इनायती
ख़त के छोटे से तराशे में नहीं आएंगे
ग़म ज़ियादा हैं लिफ़ाफ़े में नहीं आएंगे
हम ना मजनूँ हैं ,ना फ़रहाद के कुछ लगते हैं
हम किसी दश्त तमाशे में नहीं आएंगे
मुख़्तसर वक़्त में यह बात नहीं हो सकती
दर्द इतने हैं खुलासे में नहीं आएंगे
उसकी कुछ ख़ैर ख़बर हो तो बताओ यारों
हम किसी और दिलासे में नहीं आएंगे
जिस तरह आपने बीमार से रुख़सत ली है
साफ़ लगता है जनाज़े में नहीं आएंगे
खालिद नदीम शानी
नजर की गुफ्तगू समझी, न दिल बेबसी देखी।
किसी ने मेरी चाहत में, मेरी दिवानगी देखी।
हमारी सादगी को कर दिया सबने नज़र अन्दाज़
जमाने वालों ने तो बस मेरी आवारगी देखी।
نظر کی گفتگو سمجھی، نہ دل کی بے بَسی دیکھی۔
کسی نے میری چاہت میں میری دیوانگی دیکھی۔
ہماری سادگی کو کر دیا سبنے نظر انداز
زمانے والوں نے تو بس میری آوارگی دیکھی۔
हो गया देख के दिल गुशगवार, क्या लिख्खूँ।
जो लौट आई चमन में बहार, क्या लिख्खूँ।
है दुआ रब से सलामत रहो तुम सदियों तक
मुझको आता नहीं लफ्जों का प्यार, क्या लिख्खूँ।
ہو گیا دیکھ کے دل خوشگوار، کیا لکھوں۔
جو لوٹ آئی چمن میں بہار، کیا لکھوں۔
ہے دعا رب سے سلامت رہو تم صدیوں تک
مجھکو آتا نہیں لفظوں کا پیار، کیا لکھوں۔
फ़रेब वो मक़र दलाली वो नये तौर के साथ
हमने जीना नहीं सीखा है नये दौर के साथ।
उनकी ए'तिमाद-ए-मोहब्बत की दुहाई न दो
कल ही देखा है उन्हें हमने किसी और के साथ।
فَریب و مَکر, دَلّالی و نئے طور کے ساتھ۔
ہم نے جینا نہیں سیکھا ہے نئے دور کے ساتھ۔
انکی اِعْتِمادِ مُحَبَّت کی دوہائی نا رو
کل ہی دیکھا اُنْھیں ہم نے کسی اور کے ساتھ۔
हम वतन में मज़हबी तकरार थोड़ी तेज है।
चार-सू नफ़रत भरी यलग़ार थोड़ी तेज है।
आँधियां तो ज़ुल्म की बहती रही पहले मगर
ग़ालिबन इस वक़्त की रफ़्तार थोड़ा तेज है।
ہم وطن مین مذہب تذکرہ تھوڑی تیز ہے۔
چار سو نفرت بھری یلغار تھوڑی تیز ہے۔
آندھیاں تو ظلم کی بہتی رہی پہلے مگر
غالِباً اس وقف کی رفتار تھوڑی تیز ہے۔
ज़हर दिल में है जो नफ़रत का, निकलो तो सही।
हम संभल जाएंगे तुम खुद को संभालो तो सही।
मश'अले खुद ही अदावत के सुलझ जाएंगे
चन्द अल्फाज मोहब्बत के उछालो तो सही।
زہر دل میں ہے جو نفرت کا نِکالو تو سہی۔
ہم سنبھل جائیںگے تم خود کو سن٘بھالو تو سہی۔
مَشْعَلےخود ہی عَداوَت کے سلجھ جَائیں گے
چَنْد اَلْفاظ مَُحَبَّت کے اُچھالو تو سہی۔
जब से रिश्तों में जरुरत की मिलावट कर ली।
फिर मुहब्बत ने ताल्लुक़ से बगावत कर ली।
न है तहज़ीब-ओ-सक़ाफ़त न दुआओं में असर
जब से लोगों ने इबादत में दिखावट कर ली।
جبسے رشتوں میں ضرورت کی مِلاوَٹ کرلی۔
پھر محبت نے تَعَلُّق سے بغاوت کر لی۔
نہ ہے تہذیب و ثقافت نہ دُعاؤں مَیں اَشَر
جب سے لوگوں نے عبادت میں دِکھاوَٹ کر لی۔
इस तरह कुछ इश्क़ की ये तिश्नगी बढ़ती गई।
उनसे नजरें क्या मिली के आशिक़ी बढ़ती गई।
रफ्ता रफ्ता वो भी जब मेरे क़रीब आने लगे
फासले घटते गए और दिल्लगी बढ़ती गई।
اس طرح کچھ عشق کی یہ تشنگی بڈھتی گئی۔
ان سے نظریں کیا ملی کے عاشقی بڈھتی گئی۔
رفتا رافتا وہ بھی جب میرے قریب آنے لگے
فاصلے گَھٹْتے گئے اور دِلگی بڈھتی گئی۔
लब हैं खामोश पड़े और जुबाँ चुप क्यों है ।
राज़ कैसा है कि हर शख्स यहाँ चुप क्यों है।
क्या किसी का भी हकी़कत से सरोकार नहीं
झूठ के सामने सच-कार यहाँ चुप क्यों है।
لیب ہے خاموش پڑے اور زبان چپ کیون ہے۔
راز کیسا ہے کے ہرشخس یہاں چپ کیون ہے۔
کیا کسی کا بھی حقیت سے سروکار نہیں۔
جھوٹ کے سامنے سچکار یہیں چپ کیوں ہے۔
क़तरा क़तरा ही सही जान अभी बाकी है।
लबों पर आखिरी मुस्कान अभी बाकी है।
संभल जाएंगे ए दिल, जरा ठहर तो सही
अभी तो और बहोत इम्तिहान बाकी है।
قطرہ قطرہ ہی سہی جان ابھی باقی ہے۔
لبوں پر آخری مسکان ابھی باقی ہے۔
سنبھل جائیں گے دل زارا تہر تو سہی۔
ابھی تو اور بہت امتِحاں باقی ہے۔
कौन किस हाल में है, सबकी खबर रखते हैं।
ऐसे कुछ लोग हैं जो सब पे नज़र रखते हैं।
लब हैं खामोश तो हरगिज़ न समझना मजबूर
आइना हम भी दिखाने का हुनर रखते हैं।
کون کس حال میں ہے، سب کی خبر رکھتے ہیں۔
ایسے کچھ لوگ ہیں جو سب پہ نظر رکھتے ہیں
لب ہیں خاموش تو ہرگز نہ سمجھنا مجبور۔
آئینہ ہم بھی دکھانے کا ہنر رکھتے ہیں۔
रफ्ता रफ्ता ये शब-ए-इंतिज़ार जाएगी ।
यकीन है कि वो उम्मीद-ए-सहर आएगी।
कोई तो फूल खिलेगा मेरे चमन में भी
कभी तो मेरे भी घर में बहार आएगी।
رفتا رفتا یہ شب انتظار جائیگی۔
یقین ہے کہ وہ عمید سحر آئے گی۔
کوئی تو پھول کھلے گا میرے چمن میں بھی
کبھی تو میرے بھی گھر میں بہار آئے گی۔
मौसम की तरह हर रोज़ यहाँ किरदार बदलते रहते हैं।
जाग़ीर वही होती है मगर हक़दार बदलते रहते हैं।
ए'तिमाद-ए-मोहब्बत भूल चुके इक़रार-ए-वफ़ा भी याद नहीं
कपड़ों से ज़ियादा इश्क़ में अब दिलदार बदलते रहते हैं।
موسم کی طرح ہر روز یہاں کردار بدلتے رہتے ہیں۔
جاگیر وہی ہوتی ہے مگر حقدار بدلتے رہتے ہیں۔
اِعْتِمادِ مُحَبَّت بھول چکے اقرار وفا بھی یاد نہیں
کپڑوں سے زیادہ عشق میں اب دلدار بدلتے رہتے ہیں۔
खेल नफ़रत का अब तमाम करो।
यूँ किसी का न कत्ले आम करो।
मुल्क़ में सबका हक बराबर है
सबके मज़हब का इहतिराम करो।
کھیل نفرت کا اب تمام کرو۔
یون کسی کا نہ قَتْلِ عام کرو۔
ملک میں سب کا حق برابر ہے
سبکے مَذہَب کا احترام کرو۔
फ़रेब़ वो मक़र, अदावत् का फसाना लेकर।
ज़ुल्मत-ए-रंज और बा दर्द ज़माना लेकर ।
सुकून वो अमन था क़ायम यहाँ फ़िज़ाओं में
तुम ही आये हो बग़ावत का तराना लेकर।
فریب و مکر عَداوَت کا فسانہ لے کر۔
ظُلْمَتِ رَنج اور با درد زمانہ لے کر۔
سُکُون و امن تھا قائم یہان فزاون میں
تم ہی آئے ہو بغاوت کا ترانہ لے کر۔
दिखा न कोई मेंज़बान और क्या करते।
ना ही था कोई कदर दान और क्या करते।
वहाँ से लौट कर आना मेरी लाचारी थी।
सभी को आ गई ज़बान और क्या करते।
हज़ारों कुर्सियाँ खाली थी मेरी महफिल में।
टूट जाता मेरा अभिमान और क्या करते।
हमने कोशिश तो बहुत की ये राज राज रहे
काम आया न कोई ज्ञान और क्या करते।
हमने तरकीब जो ढूंढी वो फिसड्डी निकलीं
रंग लाया नहीं इल्जाम और क्या करते।
चन्द अल्फाज त़राने में पिरो कर फैजान
हमने लिख दी ये दास्तान और क्या करते।
तमाम अहल-ए-वतन से ये अपना वादा है।
वतन के वास्ते मर मिटने का इरादा है।
लिबास से हमें पहचानने वालों सुन लो।
हमारे खून में तुमसे वफा ज़ियादा है।
تمام اہلے وتن سے یہ اپنا ودا ہے۔
وتن کے واسطے مر مائیٹنے کا ارادہ ہے۔
لیباس سے ہمے پہچان نے والو سن لو
ہمارے خون میں تمسے وفا زیادہ ہے۔
तमाम ए मुल्क में कायम हमारी शान रहने दो।
न फिरकों में हमें बांटो हमें इंसान रहने दो।
हस़द की लौ जलाकर खाक न कर दे कहीं हमको
हमारे खून के क़तरों में हिन्दुस्तान बहने दो।
تمام ممالک میں قائم ہماری شان رہنے دو
نا فرقون می ہمے بانٹو ہمےانسان رہنے دو۔
حسد کی لو جلاکر کھاک نہ کر دے کہیں ہمکو
ہمارے خون کے قطروں میں ہندوستان بہنے دو۔
मुश्त ए खाक़ की तासीर बदल जाएगी
मुख्तलिफ़ दौर की तदबीर बदल जाएगी
आइना देखकर सूरत पे गुमाँ न करना
वक़्त के साथ ये तसवीर बदल जाएगी।
शख्स-ए-क़ासिद को दीवाना बना देते हैं
शरबती आँखों को मय खाना बना देते हैं
वरक़ और हर्फ की क्या खूब जुगलबंदी है
जहाँ भी मिलते हैं अफ़साना बना देते हैं
भुला कर रंज वो ग़म फिर से खुशी की बात करते हैं।
मिटा कर नफरतों को प्यार की बरसात करते हैं।
हमारी बात से हो ना किसी का दिल दुखी फैजान
नये इस साल में हम इक नई शुरुआत करतें हैं।
Happy new Year 2021
हवायें सर्द हैं और हर तरफ दिलकश नज़ारा है।
तुम्हारी याद में हमने यहाँ हर पल गुज़ारा है।
चले आओ के अब ये रात भी कटती नहीं तनहा
गुज़ारिश है ये मौसम की बहारों का इशारा है।
जद में आयेंगे कई नाम अगर सच कह दूँ।
कोई हो जाएगा बदनाम अगर सच कह दूँ।
हुकमरानों ने लगा रखें हैं लब पर पहरे
होगी रुसवाई सरे आम अगर सच कह दूँ।
कौन है किसका सियासत से गहरा रिश्ता है
सामने आयेगी हर बात अगर सच कह दूँ।
महफिले झूठ की हर तरफ सजाने वालों
आग लग जायेगी महफिल में अगर सच कह दूँ।
झूठे मक्कार दलालों फ़रेब खोरों का
जीना हो जाएगा दुशवार अगर सच कह दूँ।
गरज परस्ती और मुल्क से गद्दारी का
मुझ पे आ जाएगा इल्जाम अगर सच कह दूँ।
मेरे खिलाफ चन्द लोगों को लाकर फैजान
जारी हो जाएगा फ़रमान अगर सच कह दूँ।
अब तो मदहोश ही रहने दो तो अच्छा होगा।
लब को ख़ामोश ही रहने दो तो अच्छा होगा।
राज़ आया जो लबों पर तो बढ़ेगी मुश्किल
राज को राज ही रहने दो तो अच्छा होगा।
नका़ब झूठ का ओढ़ा है कई चहरों ने
उन्हें नका़ब में रहने दो तो अच्छा होगा।
खबर अखबार की हो या हो खबर टीवी की।
जो उनकी शान में बोलोगे तो अच्छा होगा।
मैं हूँ बदनाम जमाने में जिस लिए फैजान
मुझको बदनाम ही रहने दो तो अच्छा होगा।
बहुत मशहूर हो गया शायद।
इस लिए दूर हो गया शायद।
जो मुहब्बत की बातें करता था।
अब वो मगरूर हो गया शायद।
हैं सब ही जानते इक रोज उसको जाना था।
ये लड़ाई तो महज़ सिर्फ़ इक बहाना था।
उसकी रग रग से थे वाकिफ यहाँ सभी फैजान
मगर इक बार उसे और आजमाना था।
कभी सर्दी, कभी गर्मी, कभी बरसात के साथ
वक़्त भी रंग बदलते रहे हालात के साथ
हमने हर पल जिसे समझा था करीबी फैजान
वही तो खेलते रहे मेरे जज़्बात के साथ
आज जो है बेबसी ऐसी न थी
पहले तो लाचारगी ऐसी न थी
नम हैं आँखें दिल ग़मों से तार तार
सच कहूँ ये जिंदगी ऐसी न थी
हमें पता है वफा किस तरह निभानी है।
मगर मिले तो कोई जो कि बेवफा न हो।
राज क्या है कि लग रहे हो बड़ी फुर्सत में।
क्या आज फिर से लड़ाई हुई है बी बी से।
उड़ान देख के ऊँचाई माप लेते हैं।
अदायें देख के रानाई भाप लेते हैं।
हमें नादान समझने की भूल मत करना।
समन्दर देख के गहराई नाप लेते हैं।
दिया हर एक कदम पर नसीब ने धोखा,
जो हो सके तो, ग़म ए दिल की दवाई दे दे।
जिंदगी यूँ मेंरी हसरत का तमाशा न बना
थक चुका हूँ, मुझे अब खुद से रिहाई दे दे।
मज़लूम था वो ज़ुल्म का शिकार हो गया।
थी भीड़ दरिन्दों की वो लाचार हो गया।
नफरत की आँधियों ने उसे यूँ किया तबाह
था बेगुनाह फिर भी गुनहगार हो गया ।
ख्यालों में जिन्हें रखकर चाँद को देखते हैं हम।
अगर वो सामने होते मजा कुछ और ही होता।
उनकी इस बात का एहसास किसी को न हुआ
और वो आँखों ही आँखों कह गए सब कुछ
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