Dive Inside

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I dive Inside to know my real self..inner consciousness..my being..keep knowing new astonishing fact

27/08/2024

स्त्री_पुरुष_में_प्रेम

मैं स्त्री पुरुष को निकट लाना चाहता हूँ . .
इतने निकट के उनको
ये प्रतीति नहीं रह जानी चाहिए के
कौन स्त्री है, कौन पुरुष . . स्त्री-
पुरुष होना चौबीस घण्टे का बोध नहीं होना चाहिए . .
वह बीमारी है,
अगर इतना बोध बना रहता है तो . .
स्त्री-पुरुष होना
चौबीस घण्टे का
बोध नहीं होना चाहिए . .
वह मिटेगा तभी हम बीच के फासले
मिटायेंगे . .
और इसके गहरे परिणाम हों के
समाज की अश्लीलता,
अश्लील साहित्य,
अश्लील फ़िल्में,
बेहूदी वृत्तियाँ,
वे अपने आप गिर जाएँ ....
और एक ज्यादा स्वस्थ मनुष्य का जनम हो . .
और यह
जो स्वस्थ मनुष्य है,
इसकी मैं आशा कर सकता हूँ के
वो धार्मिक हो सके . .
क्यूँकि जो स्वस्थ ही नहीं हो पाया अभी,
उसके धार्मिक होने की
कोई आशा मैं नहीं मानता . .
स्त्री-पुरुष जितने निकट होंगे,
उतना ही यह जो उपद्रव है
शान्त हो जाए . .
और यह उपद्रव शान्त हो तो
असली खोज शुरू हो . .
क्योंकि
आदमी बिना आकर्षण के नहीं जी सकता . .
और अगर स्त्री-
पुरुष का आकर्षण शान्त हो जाता है तो
वह और गहरे आकर्षण की खोज में लग जाता है . .
बिना आकर्षण के जीना मुश्किल है . .
वही प्रयोजन है . .
और जो स्त्री-पुरुष में ही लड़ता रहता है,
उसका आकर्षण तो कायम रहता है,
दूसरे आकर्षण का कोई उपाय नहीं है . . .

ओशो

27/08/2024

पद की गरिमा

ओशो की यह कहानी जो हम सबके लिए है :

"बड़े पद पर जो पहुंच जाते हैं, वे अक्सर विनम्रता दिखाने लगते हैं। तुमने अक्सर देखा होगा--छोटे पद पर लोग ज्यादा उपद्रवी होते हैं। बड़े पद पर लोग कम उपद्रवी हो जाते हैं। क्योंकि अब प्रतिष्ठा हो ही गयी; अब यह मजा भी ले लो साथ में कि हम प्रतिष्ठा से भी मुक्त हैं। हमें यश का कोई लेना-देना नहीं है।

"तुमने देखा, पुलिस वाला ज्यादा झंझट खड़ी करता है। इंस्पेक्टर थोड़ी कम। पुलिस कमिश्नर और थोड़ी कम। जितने बड़े पद पर होता है आदमी, उतनी कम झंझट करता है।

मैंने सुना है : एक अंधा भिखारी राह पर बैठा है। रात है। और राजा और उसके कुछ साथी राह भूल गए है। वे शिकार करने गए थे। उस गांव से गुजर रहे हैं। कोई और तो नहीं है, वह अंधा बैठा है झाड़ के नीचे; अपना एकतारा बजा रहा है। और अंधे के पास उसका एक शिष्य बैठा है। वह उससे एकतारा सीखता है, वह भी संन्यास की मंगल-वेला भिखारी है। दोनों भिखारी हैं।

राजा आया और उसने कहा : सूरदास जी! फलां-फलां गांव का रास्ता कहा से जाएगा? फिर वजीर आया और उसने कहा : अंधे! फलां-फलां गांव का रास्ता कहां से जाता है? अंधे ने दोनों को रास्ता बता दिया। पीछे से सिपाही आया; उसने एक रपट लगायी अंधे को--कि ऐ बुड्डे! रास्ता किधर से जाता है? उसने उसे भी रास्ता बता दिया।

जब वे तीनों चले गए, तो उस अंधे ने अपने शिष्य से कहा कि पहला बादशाह था, दूसरा वजीर था; तीसरा सिपाही। वह शिष्य पूछने लगा लेकिन आप कैसे पहचाने? आप तो अंधे हैं! उसने कहा--अंधे होने से क्या होता है! जिसने कहा सूरदासजी, वह बड़े पद पर होना चाहिए। उसे कोई चिंता नहीं है अपने को दिखाने की। वह प्रतिष्ठित ही है। लेकिन जो उसके पीछे आया, उसने कहा अंधे! अभी उसे कुछ प्रतिष्ठित होना है। और जो उसके पीछे आया, वह तो बिलकुल गया-बीता होना चाहिए। उसने एक धप्प भी मारा। रास्ता पूछ रहा है और एक धप्प भी लगाया! वह बिलकुल गयी-बीती हालत में होना चाहिए। वह सिपाही होगा।

आदमी जब बड़े पदों पर पहुंच जाता है, तब तो वह यह भी मजा ले लेता है कहने का कि पद में क्या रखा है!"

ओशो, एस धम्‍मो सनंतनो--(भाग-12)

14/08/2024

जिस दिन तुम्हारे भीतर से अस्तित्व के प्रति आभार और अहोभाव का गीत उठता है, जिस दिन तुम कह पाते हो, मैं धन्यभागी हूं क्योंकि मैं हूं। बस मेरा होना पर्याप्त तृप्ति है, कुछ और नहीं चाहिए। जब तक तुम कुछ और मांगते हो, तब तक शिकायत उठती है। क्योंकि तुम्हारी मांग में ही छिपा है कि जो तुम्हें मिला है, वह काफी नहीं है। तुम्हारी मांग कहती है और चाहिए, तब मैं धन्यवाद दे सकता था। जो मुझे मिला, वह कम है। प्रार्थना कहती है, जो मुझे मिला है वह ज्यादा है। जितना मुझे मिलना था, मेरी पात्रता थी, उससे बहुत ज्यादा है। मैं हर हालत में धन्यवाद दे रहा हूं। मेरा होना ही पर्याप्त तृप्ति है।

थोड़ा सोचो! एक क्षण के होने को भी तुम किस तरह पा सकोगे? यह श्वास का भीतर जाना और बाहर आना, यह तुम्हारा होना, यह तुम्हारा होश! एक क्षण को भी तुम्हारा होना काफी नहीं है? अगर तुम्हें एक क्षण का भी होना मिलता हो, तो क्या तुम सारे जगत का साम्राज्य उसके बदले में दे देने को राजी न हो जाओगे?

लेकिन तुम्हें याद नहीं पड़ता। सरोवर के किनारे बैठे तुम्हें समझ में नहीं आता कि मरुस्थल में पानी की कितनी कीमत होगी! मरते वक्त समझ में आता है कि होने का कितना मूल्य था! जब श्वास आखिरी टूटती होगी, तब तुम चीखोगे, चिल्लाओगे कि एक क्षण को होना और हो जाए, मैं सब देने को तैयार हूं। लेकिन अभी? अभी तुम हो, लेकिन तुम्हारे मन में कोई धन्यवाद नहीं।

प्रार्थना अहोभाव है। जैसे धूप उठती है आकाश की तरफ सुगंध को लेकर, ऐसे तुम्हारे हृदय से जो भाव उठता है अनंत की तरफ, तुम्हारी सारी सुगंध को लेकर, वही प्रार्थना है।

ओशो...”बिन बाती बिन तेल -19”

03/08/2024

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18/06/2024

परिचय कराया जाता है,
पहचान हो जाती है…

किसी ने पूछा ओशो से कि "भगवान क्या करूं कि आपसे चूकूँ नहीं?"

भगवान ने कहा,
"गुरु बनने की कोशिश मत करना, और किसी बात से नहीं चूकोगे।
गुरु बनने की कोशिश की तो परमात्मा भी तुमको बचा नहीं पाएगा चूकने से।

Live Life Fully Without Hurting Anyone I Dr. Meena Jindal I Dive Inside I Ma Osheen 13/05/2024

Live Life Fully Without Hurting Anyone I Dr. Meena Jindal I Dive Inside I Ma Osheen

Live Life Fully Without Hurting Anyone I Dr. Meena Jindal I Dive Inside I Ma Osheen ...

10/05/2024

आस्पेंस्की ने लिखा है, जिस दिन दूसरे का खयाल बंद हुआ, उसी दिन से पहली दफा अपना खयाल शुरू हुआ।

जब तक दूसरे का ख्याल है, वहां तक अपना खयाल कभी हो नहीं सकता। जगह खाली नहीं है। कहते हैं अनात्म-स्मरण चौबीस घंटे चल रहा है और उसी के बीच आत्म-स्मरण करना चाहते हैं!

तो आस्पेंस्की ने लिखा है कि तब तक मैं समझा ही नहीं था कि सेल्फ-रिमेंबरिंगका मतलब क्या होगा। और बहुत दफे कोशिश की थी अपने को याद करने की, कुछ नहीं होता था। पंद्रह दिन, वह जो दूसरा, दि अदर है, जब वह विदा हो गया तो जगह खाली रह गई और सिवाय अपने स्मरण के कोई मौका ही नहीं रह गया। *क्योंकि अब पहली दफे मैं अपने प्रति जागा।*

पंद्रह दिन की साधना के बाद सोलहवें दिन सुबह मैं उठा तो मैं ऐसा उठा, जैसा मैं जिंदगी में कभी नहीं उठा था। पहली दफे मुझे मेरा बोध था। और तब मुझे खयाल आया, अब तक मैं दूसरे के बोध में ही उठता था। सुबह उठते ही दूसरे की याद शुरू हो जाती थी ।

अब अपना बोध! चौबीस घंटे घेरे रहने लगा, क्योंकि अब कोई उपाय न रहा, दूसरे से भरने की जगह न रही।

एक महीना पूरा होते-होते उसने लिखा है, कि मैं तो हैरानी में पड़ गया, दिन बीत जाते और मुझे पता न चलता कि जगत भी है, वहां बाहर एक संसार भी है, बाजार भी है, लोग भी हैं। ऐसे दिन बीत जाते और पता न चलता। सपने विलीन हो गए

जिस दिन दूसरा भूला, उसी दिन सपने विलीन हो गए, क्योंकि *सब सपने बहुत गहरे में दूसरे से संबंधित हैं।*
जिस दिन सपने विलीन हुए, उसी दिन से मुझे रात में भी स्मरण (self remembering) रहने लगा । रात में भी ऐसा नहीं है कि मैं सोया ही हुआ हूं। रात में भी सब सोया है और मैं जागा हुआ हूं, ऐसा होने लगा।

तीन महीने पूरे होने के तीन दिन पहले गुरजिएफ आया, दरवाजा खोला। आस्पेंस्की ने लिखा है, उस दिन मैंने गुरजिएफ को पहली दफे देखा कि यह आदमी कैसा अदभुत है, क्योंकि इतना खाली हो गया था मैं, कि अब मैं देख सकता था। भरी हुई आंख क्या देखेगी! उस दिन गुरजिएफ को मैंने पहली दफा देखा कि... ओह ...!!! यह आदमी और इसके साथ होने का सौभाग्य!

कभी नहीं देखा था। जैसे और लोग थे, वैसा गुरजिएफ था। खाली मन से पहली दफा गुरजिएफ को देखा। और उसने लिखा है कि उस दिन मैंने जाना कि वह कौन है।

गुरजिएफ सामने आकर बैठ गया और मुझे एकदम से सुनाई पड़ा,... "आस्पेंस्की...!" पहचाना...?

तो मैंने चारों तरफ चौंक कर देखा, गुरजिएफ चुप बैठा है। आवाज गुरजिएफ की ही है, शक-शुबहा नहीं है। फिर भी--उसने लिखा है--कि फिर भी मैं चुप रहा।

फिर आवाज आई, "आस्पेंस्की...,मुझे पहचाना नहीं...? सुना नहीं...? तब आस्पेंस्क्सी ने चौंक कर गुरजिएफ की तरफ देखा..., वह बिलकुल चुप बैठा है। उसके मुंह से एक शब्द नहीं निकल रहा है।
तब गुरजिएफ खूब मुस्कुराने लगा और फिर बोला कि *अब शब्द की कोई जरूरत नहीं, अब बिना शब्द के बात हो सकती है।* अब तू इतना चुप हो गया है कि अब मैं न बोलूं तभी सुनेगा? *अब तो मैं भीतर सोचूं और तू सुन लेगा!* क्योंकि जितनी शांति है, उतनी सूक्ष्म तरंगें पकड़ी जा सकती हैं।
-ओशो

Photos from Dive Inside's post 18/04/2024

Glimpses of 3 days Osho Meditation Camp at Jaipur 11-14 April, 2024 🙏😊

Photos from Dive Inside's post 13/04/2024

Facilitating and Celebrating 3 days Osho Meditation Camp At Osho Ashram Chatarpura, Jaipur, Rajasthan

23/03/2024

Times Square, NYC 🇺🇸

15/03/2024

*प्रश्न : मैंने देश के अनेक आश्रमों में देखा है कि वहां के आश्रम वासियों के लिए कुछ न कुछ अनिवार्य साधना निश्चित है, जिसका अभ्यास उन्हें नियमित करना पड़ता है। परंतु आश्चर्य है कि यहां ऐसा कोई साधन, अनुशासन नहीं दिखता। कृपया इस विशिष्टता पर कछ प्रकाश डालने की अनकंपा करें!*

उत्तर :-
मैं यहां मौजूद हूं मैं तुम्हारा अनुशासन हूं। जब मैं न रहूं तब तुम्हें नियम, व्यवस्था, अनुशासन की जरूरत पड़ेगी। शास्ता हो, तो शासन की कोई जरूरत नहीं।
जब शास्ता न हो तो शासन परिपूरक है। मुर्दा आश्रमों में तुमने जरूर यह देखा होगा।
यह एक जिंदा आश्रम है। अभी यह जिंदा है।
मरेगा कभी और तब तुम निश्चित मानो. नियम भी होंगे, अनुशासन भी होगा।
मेरे जाते ही नियम होंगे, अनुशासन होंगे; क्योंकि तुम बिना नियम अनुशासन के रह नहीं सकते ,
तुम ऐसे गुलाम हो!

मैं भी लाख उपाय करता हूं तब भी तुम बार बार पूछने लगते हो : कुछ नियम, कुछ अनुशासन! मेरी सारी चेष्टा तुम्हें समझाने की यह है कि तुम्हारे हाथ में कुछ भी नहीं है।
क्या अनुशासन ???
क्या नियम ???
तुम पांच बजे सुबह उठ आओगे तो ज्ञान को उपलब्ध हो जाओगे ???
किस मूढ़ता में पड़े हो ???
पांच बजे उठो कि चार बजे उठो कि तीन बजे उठो, तुम मूढ़ के मूढ़ ही रहोगे। मूढ़ पांच बजे उठे कि तीन बजे, कोई फर्क नहीं पड़ता। घड़ी से तुम्हारे आत्मज्ञान का कोई संबंध नहीं है।

मगर मूढ़ों को रस मिलता है। उनको कम से कम कुछ सहारा मिल जाता है। मैं उनको कोई सहारा नहीं देता

मेरे रहते इस आश्रम में कोई नियम, अनुशासन होने वाला नहीं है। मेरे रहते यह आश्रम अराजक रहेगा, क्योंकि अराजकता जीवन का लक्षण है। मैं तुम्हें परिपूर्ण स्वतंत्रता देता हूं कि तुम जो भी होना चाहो और जैसे भी होना चाहो, जागरूकता—पूर्वक वही होने में रस लो।

पूछा है "स्वामी योग चिन्मय" ने।
बार बार, चिन्मय घूम फिर कर यही पूछते हैं।
जिन मुर्दा आश्रमों में उनको जाने का दुर्भाग्य से अवसर मिला, उनसे पीछा नहीं छूटता।

क्योंकि कहीं कोई एक दफे भोजन करते हैं,
कहीं कोई तीन बजे रात उठते हैं,
कहीं कोई सिर के बल खड़े होते हैं,
नौली धोती करते हैं,
कहीं कोई योगासन साधते हैं, कहीं क्रियायोग,
कहीं कुछ,
कहीं कुछ।
और सब एक जबर्दस्त अनुशासन की तरह, कि न किया तो पाप, अपराध; किया तो पुण्य!
ये मूढ़ता के लक्षण हैं।

अब रह गई बात.. पूछा है, अनिवार्य साधना ???
कुछ अनिवार्य नहीं है यहां। क्योंकि जो भी अनिवार्य हो, वह बंधन बन जाता है। जो करना ही पड़े, वह बंधन बन जाता है।

जीवन बड़ा नाजुक है, फूल जैसा नाजुक है! इस पर अनिवार्यता के पत्थर मत रख देना, नहीं तो फूल मर जाएगा।

मुझसे कोई आ कर भी पूछता है, आश्रमवासी हैं, मुझसे पूछते हैं आ कर कि हम अनिवार्य रूप से आपको सुबह सुनने आएं ???
मैं कहता हूं, भूल कर मत आना।
अनिवार्य, और मुझे सुनने ??? तुम मुझे गालियां देने लगोगे। तुम्हें आना हो तो आना, तुम्हें न आना हो तो न आना।

और भूल कर भी अपराध अनुभव मत करना कि हम आश्रम में रहते हैं और हम सुनने न गए और लोग इतने दूर से आते हैं!
इसकी फिक्र छोड़ो।
तुम्हारी जब मौज हो, तब तुम आ जाना।
तो अगर महीने में तुम एक बार भी आए तो इतना पा लोगे जितना कि अनिवार्य आ कर महीने भर में भी नहीं पा सकते थे; क्योंकि पाने की घटना तो प्रेम से घटती है।

तो तुम पूछे हो कि अनिवार्य साधना निश्चित होती आश्रमों में, जिसका अभ्यास उन्हें नियमित करना होता है।

नहीं, यहां मेरे पास कुछ भी नियम नहीं है और न कोई अभ्यास है तुम्हें देने को।
सब अभ्यास अहंकार के हैं। अध्यात्म का कोई अभ्यास नहीं।
मैं तो कहता हूं.
जागो! इति ज्ञानं!
यही ज्ञान है!
इति ध्यान! यही ध्यान है!
इति मोक्ष:! यही मोक्ष है!

तुम जाग कर जीने लगो, ध्यान तुम्हारे चौबीस घंटे पर फैल जाएगा। ध्यान कोई ऐसी चीज थोड़े ही है कि कर लिया सुबह उठ कर और भूल गए फिर।
ध्यान तो ऐसी धारा है जो तुम्हारे भीतर बहनी चाहिए। ध्यान तो ऐसा सूत्र है जो तुम्हारे भीतर बना रहना चाहिए; जो तुम्हारे सारे कृत्यों को पिरो दे एक माला में।
जैसे हम माला बनाते हैं तो फूलों को धागे में पिरो देते हैं, फूल दिखाई पड़ते, धागा तो दिखाई भी नहीं पड़ता—ऐसा ही ध्यान होना चाहिए, दिखाई ही न पड़े।
जीवन के सब काम उठना बैठना, खाना पीना, चलना, बोलना, सुनना, सब फूल की तरह ध्यान में अनस्थूत हो जाएं, ध्यान का धागा सब में फैल जाए।

तो ध्यान तो मेरे लिए जागरण और साक्षी भाव का नाम है।

और जब मैं न रहूंगा, तब निश्चित यह उपद्रव होने वाला है।
क्योंकि कोई न कोई "योग चिन्मय" इस कुर्सी पर बैठ जायेंगे।

ऐसी मुश्किल है यह कुर्सी खाली थोड़े ही रहेगी।
कोई न कोई चलाने लगेगा अनुशासन।
जिस दिन अनुशासन चलने लगे, उस दिन समझना मेरा संबंध टूट गया इस जगह से।

जिस दिन यहां नियम हो जाए,
अनिवार्यता हो जाए,
अभ्यास हो जाए, उस दिन जानना यह मेरा आश्रम न रहा;
यह एक मुर्दा आश्रम हो गया, जो जुड़ गया दूसरे मुर्दा आश्रमों से।

मेरे जीते जी ऐसा न हो सकेगा। मैं स्वयं जी रहा हूं और तुम्हें भी जिंदा देखना चाहता हूं मुर्दा नहीं।

मैं तुम्हें साधक नहीं मानता। मैं तुम्हें सिद्ध मानता हूं। और मैं चाहता हूं कि तुम भी अपनी सिद्धावस्था को स्वीकार कर लो। मैं चाहता हूं कि तुम भी कह सको :
अहो, मेरा मुझको नमन!

ओशो

08/03/2024

Very Famous Spot,
Balancing Rock, Jabalpur, Madhya Pradesh, India

ज़िन्दगी में कितना महत्वपूर्ण है संतुलन…
हर जगह… हर आयाम में…😊
देखिये इस चट्टान को
सदियाँ गुज़र गईं, संतुलन बनाए हुए…

प्यार में स्वाभिमान I Self Respect is Important in Love Dr. Meena Jindal I Dive Inside I Ma Osheen 29/02/2024

https://youtu.be/Bk-XudhwWN4?si=Ossii6wsuBVMz4-y

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ज़रा सुनो तो…LISTEN TO YOUR CHILD I Dr. MEENA JINDAL I MA OSHEEN I DIVE INSIDE PARENTING 25/02/2024

https://youtu.be/s0Ln94KUVtc?si=HsF_LI1coSIcdjRf

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Millionaire हैं आप I Real Friend I Like Minded I Dr. MEENA JINDAL I Ma Osheen I Dive Inside 25/02/2024

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24/02/2024

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पति के इस बर्ताव से रिश्ते टूटते हैं - Best Guidance by Dr. Meena Jindal I Dive Inside 24/02/2024

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अमीरी क्या होती है? AMEER HONA KYA HOTA HAI I DR. MEENA JINDAL का नज़रिया I Ma Osheen I Dive Inside 22/02/2024

https://youtu.be/rAljSVzj9x0?si=zHY8lKvgFK3VMLz_

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Divorce I You May Feel Offended With My Reply I Dr. MEENA JINDAL 21/02/2024

https://youtu.be/eqv8oBtZJSw?si=Ph8UNBcn0KdHzlR3

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Zorba The Buddha Osho Meditation Camp at Jaipur Ashram 11-14 April 2024 Facilitator Ma Osheen (Dr. Meena Jindal)
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