Dr Om Prakash Singh
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My best freind.
एम०2एस० रूफ कैफे एवं रेस्टूरेन्ट और बैंकेट हाॅल ,भी०आई०पी० रोड,लहेरियासराय के उद्घाटन के मौके पर मित्र समर सिंह के साथ।
रेड लाइट पर रुकते ही गाड़ी के स्टीरियो की आवाज़ कम की
और
सिगरेट पीने के लिए शीशा नीचे किया ही था
कि आवाज़ आई...
बाबू जी एक रुपया दे दो!
खाना खाऊंगा!
बहुत भूख लगी है!
लगभग पंद्रह रुपये की सिगरेट हाथ में पकड़े हुए,
बहुत उम्दा और तलब के मूड में,
मैं उसे जलाने ही वाला था
कि इस आवाज़ से भंग हुई
अपनी नशेपूर्ती की तन्द्रा के टूटने से
कुछ चिड़चिड़ा सा गया अचानक
और एक बार को तो उसे झिड़क ही दिया!
चल बे,
आगे चल..!!!
फिर ध्यान आया
कि भूखा होगा बेचारा,
चलो कुछ दे ही देता हूँ!
इधर आ बे,
सुन तो.....
जी बाबू जी...
रुक,
ले लेता जा..!
गाड़ी में इधर उधर पड़े पैसे ढूंढने लगा मैं...
नोटों पर नज़र गई...
सबसे छोटा नोट बीस का दिखाई पड़ा...
सोचा कि इतने पैसे इस कंगाल के हाथ में देना...
नहीं, नहीं...
फिर मैंने सिक्कों में हाथ डाला...
अचानक दस रुपये का सिक्का हाथ लगा...
उसे भी छोड़ मैं एक रुपये का सिक्का ढूंढने लगा...
पर नहीं मिला..!!
दस के खुल्ले हैं क्या तेरे पास.??
जी बाबू जी,
हो जाएगा...!!
ला नौ रुपये वापिस कर जल्दी..!!
उसने नौ रुपये के सिक्के गिन कर मुझे थमा दिए!
इतने में ही सिग्नल ग्रीन हो गया!
मुझे अचानक ही कार आगे बड़ानी पड़ी!!
खैर जानता ही था कि पीछे दौड़ कर आएगा इसलिए गाड़ी धीरे से सिग्नल के पार लगाई और साइड में रोक ली! पर वो कहीं नहीं दिखा!
अचानक मेरी नज़र सड़क के दूसरी तरफ अनाथालय की चंदा मांगने वाली गाड़ी की तरफ पड़ी! वो बच्चा भी उसी तरफ लपकते देख हैरानी नहीं हुई मुझे! शायद वो अब उससे कुछ मांगने गया हो!
मैं वहीं खड़ा उसे देखने लगा और इंतज़ार करने लगा कि वो उस गाड़ी वाले से मांग कर इस तरफ वापिस आएगा तो उसे उसका दस रुपया दे दूंगा!
उस अनाथाश्रम की गाड़ी वाले ने उसे कोई कागज़ दिया और वो लड़का अपने खुले पैसे उसे दे कर आगे निकल गया!
मुझे हैरानी हुई और जिज्ञासा भी!
उसे दस रुपये भी देने ही थे, तो मैं ही सड़क पार कर दूसरी और चल दिया!
ओ लड़के,,,,
ओ लड़के,,,
सुन तो,,,
अबे ओ,,,,
नहीं सुना उसने!!
ट्रैफिक के शोर में आगे निकल गया!
इतने में मैं उस अनाथालय की गाड़ी तक पहुंच गया!
मैंने उस गाड़ी वाले से पूछा कि आपने उस मांगने वाले लड़के को कागज़ पर क्या लिख कर दिया?
वो रसीद थी साहब!
किस चीज़ की..??
जो पैसे उसने हमें दिए, उसकी!
किस बात के पैसे दिए उसने आपको!
कहता है कि कि मेरे बाप ने मेरे छोटे नए जन्में भाई को अनाथालय की चौखट पर छोड़ दिया था! ये पैसे उस तक पहुंचा देना और उससे कहना कि तेरा भाई इतना भी गरीब नहीं कि तुझे पाल न सके!
बहुत समझाते हैं साहब,
मानता ही नहीं!
उसे ये भी कह चुके कि उसका भाई हमारे अनाथालय में नहीं है!
जब भी हमारी गाड़ी देखता है, बस दौड़ा चला आता है और अपने सारे कमाए पैसे हमें दे जाता है!
कहता है कि ये पैसे उसके भाई तक न सही पर दूसरे अनाथों तक तो पहुंचते ही हैं, वो सब भी उसके भाई जैसे ही हैं!
वो उन्हें ही पाल लेगा और कोई बदले में भगवान को भेज कर उसके भाई को!
आज पूरे दिन के कमाए हुए एक सौ आठ रुपये जमा करवा गया!
लोगों के लिए इसे एक रुपया भी देना महंगा लगता होगा साहब और ये लड़का मदद के नाम पर हर बार अपनी पूरी दौलत लुटा जाता है!!
भगवान इसका भला करे.!!
उफ़्फ़फ़फ़फ़फ़फ़फ़....
हे भगवान...
बिना पिये हुई, उस सुलगती सिगरेट से अचानक ही हाथ जल उठा मेरा!
शायद ये जलन मेरे जीवन की सबसे ज़्यादा दहकने वाले शोलों से बनी थी..!!!
शुभ रात्रि
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