मनोज राघव “दौसा की रसोई”
Social activist and founder of “Dausa ki Rasoi”
पिछले कुछ वर्षों से भारतीय मिठाई सोन पापड़ी का मजाक उड़ना क्यों शुरू हो गया? क्यों सोन पापड़ी खाने वालों को शर्मिंदा किए जाने का एक सुनियोजित प्रयास दिखने लगा? क्योंकि सोन पापड़ी हर उस कन्फेक्शनरी और परचून की दुकान पर बिक सकती थी जहां पर चॉकलेट बिकती हैं। इसको मिठाइयों की खास दुकानों की ही जरूरत नहीं थी। चॉकलेट के मुकाबले सस्ती, स्वादिष्ट और चाय के साथ खाई जा सकने के कारण सोन पापड़ी ने चॉकलेट का एक बहुत बड़ा मार्केट खत्म कर दिया और इसलिए उस को नीचा दिखाने के प्रयास शुरू हो गए। ताकि सोन पापड़ी खाने वाला शर्मिंदगी महसूस करे और यह स्वीकार भी ना कर सके कि मुझे सोनपापड़ी पसंद है। आपको अगर पसंद है तो गर्व से कहिए कि हां मुझे सोन पापड़ी पसंद है। क्योंकि मुझे तो बहुत पसंद है!"
जय स्वदेशी
शुभकामनाएँ भाई साहब Gaurav Kath
Congratulations Gaurav Kath ji
😢😢🙏🏻🙏🏻
निशब्द 🙏🏻🙏🏻🇮🇳🇮🇳🇮🇳
Sometimes google map
बच्चे सोचते हैं कि मां ने ही उन्हे पाला है,
जबकि बोझ से दबे पिता को समय ही कहां मिल पाता है..!
अहमियत दोनों की बराबर है साथियों 🙏🏼
😢
पूर्व प्रांत प्रचारक डा. शैलेंद्र जी भाईसाहब के सानिध्य में 🙏🏻
मनोबल बढ़ाने के लिए दैनिक भास्कर परिवार एवं दौसा भास्कर ब्यूरो चीफ Sukhdev Dagur Patrakar जी का आभार 🙏🏻
बालसखा श्री अनिल जी यादव को जन्मदिवस की ढेर सारी शुभकामनाएँ 💐💐💐
बाबा नीलकंठ महादेव आपकी सभी मनोकामनाएँ पूरी करे 🙏🏻
विद्या भारती लक्ष्य स्मृति महोत्सव दौसा 8 जनवरी 2023
मत परेशान हो, क्योंकि आमतौर पर...
1. चालीस साल की अवस्था में "उच्च शिक्षित" और "अल्प शिक्षित" एक जैसे ही होते हैं। (क्योंकि अब कहीं इंटरव्यू नहीं देना, डिग्री नहीं दिखानी).
2. पचास साल की अवस्था में "रूप" और "कुरूप" एक जैसे ही होते हैं। (आप कितने ही सुन्दर क्यों न हों झुर्रियां, आँखों के नीचे के डार्क सर्कल छुपाये नहीं छुपते).
3. साठ साल की अवस्था में "उच्च पद" और "निम्न पद" एक जैसे ही होते हैं। (चपरासी भी अधिकारी के सेवा निवृत्त होने के बाद उनकी तरफ़ देखने से कतराता है).
4. सत्तर साल की अवस्था में "बड़ा घर" और "छोटा घर" एक जैसे ही होते हैं। (बीमारियाँ और खालीपन आपको एक जगह बैठे रहने पर मजबूर कर देता है, और आप छोटी जगह में भी गुज़ारा कर सकते हैं).
5. अस्सी साल की अवस्था में आपके पास धन का "कम होना" या "ज्यादा होना" एक जैसे ही होते हैं। (अगर आप खर्च करना भी चाहें, तो आपको नहीं पता कि कहाँ खर्च करना है).
6. नब्बे साल की अवस्था में "सोना" और "जागना" एक जैसे ही होते हैं। (जागने के बावजूद भी आपको नहीं पता कि क्या करना है).
जीवन को सामान्य रुप में ही लें क्योंकि जीवन में रहस्य नहीं हैं जिन्हें आप सुलझाते फिरें.
आगे चल कर एक दिन सब की यही स्थिति होनी है, यही जीवन की सच्चाई है...
चैन से जीने के लिए चार रोटी और दो कपड़े काफ़ी हैं... पर ,बेचैनी से जीने के लिए चार गाड़ी, दो बंगले और तीन प्लॉट भी कम हैं !!
जीवन ऐसे जीयो की अंत में पछतावा ना रहे कि यह नहीं किया…
तमिलनाडु में एक वृद्ध ब्राह्मण पूजा करते करते ही काया छोड़ गए। मैं हमेशा कहता हूं ब्राह्मण सनातन का वो सेतु है जिसने इतिहास के सारे थपेड़े झेल कर भी सनातन की पोथी नहीं छोड़ी, सदियों से सनातन को हिन्दुओ की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में रोपते रहा!
हजारों वर्षों से सनातन धर्म को हिंदुओं की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुंचाते रहे। एक ब्राह्मण ही है जिस पर सारे हमले पहले हुए मुगलों ने पहला आक्रमण मंदिरों और पुजारियों पर किया अंग्रेजों ने पहला आक्रमण मंदिर और पुजारियों पर किया कांग्रेस वामपंथियों ने ब्राह्मणवाद के नाम पर पहला हमला ब्राह्मणों पर किया चर्च मिशनरियों ने पहला हमला ब्राह्मणों पर किया!
हजार साल के क्रूर इस्लामिक शासनकाल में भी ब्राह्मण ने अपनी सनातनी पोथी नहीं छोड़ी बल्कि तलवार की धार पर चलकर भी अपने हिंदू समाज को सनातन की जड़ों से जोड़े रखा, हर गांव का पुजारी पूज्य है अनपढ़ पुजारी ने भी गांव के छोटे से मंदिर में सनातन की परंपराओं को जिंदा रखा और गांव को तीज त्योहारों के माध्यम से सनातन जीवन पद्धति से जोड़े रखा, यही कारण है कि यूनान रोम और मित्र 100 साल के आक्रमण में ही अपनी सभ्यता खो बैठे लेकिन एक सनातन भारत है जो हजार साल के आक्रमण काल के बावजूद अपनी सभ्यता संस्कृति को बचाने मैं सफल रहा क्योंकि उसके पास सनातन को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक उसी रूप में पहुंचाने वाले ब्राह्मण थे।
यही कारण है कि सारे हिंदू विरोधी सारे देश द्रोही चर्च मिशनरी सब का पहला टारगेट ब्राह्मण होता है क्योंकि उन्हें पता है सनातन को खत्म करने की पहली शर्त है कि पहले ब्राह्मण को खत्म करना पड़ेगा जब तक ब्राह्मण जिंदा है सनातन को कोई खत्म नहीं कर सकता। इसलिए सनातनी हिंदू अपने पूज्य संत महंत पुजारियों की कीमत समझे यह सामान्य नहीं बल्कि हजारों वर्षों के संघर्ष में खून से लथपथ होने के बावजूद अपने सनातन की पोथी नहीं छोड़ने वाले धर्मवीर है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हिंदुओं में सनातन पहुंचाते हैं।
जय श्री राम!🙏🚩
पार्क की उपयोगिता बच्चों बुजुर्गों के लिए अधिक होती है, उनके लिए हाइवे के भारी ट्रैफ़िक को पार करके शहर से कोसों दूर पार्क में जाना बहुत मुश्किल और चुनौतीभरा होगा। पार्क के लिए ऐसी जगह का चुनाव किया जाना चाहिए जो शहर के बीच में हो सभी दौसावासियों के लिए उपयोगी हो। डाकबंगला सिर्फ़ राजनीतिक मिटिंग व कार्यकर्ताओं के जन्मदिन पार्टी के ही काम आता है उसे आमजन के लिए खोलना चाहिए। PWD आफिस कलेक्ट्री में शिफ़्ट करके वहाँ पार्क बने तो बहुउपयोगी होगा।
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