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26/07/2022

*विश्व की चौथी महिला क्रांतिकारी*
*बहन फूलन देवी जी की शहादात*
*दिवस पर विशेष*

वीरांगना फूलन देवी जी की कहानी जिसने पहले दर्द सहा फिर हथियार उठाया और बिछा दीं लाशें
इंसान के साथ हो रहे अन्याय को न्याय व्यवस्था द्वारा न्याय देने की परंपरा हमेशा से चली आई है. लेकिन कुछ लोग होते हैं जो अपने साथ हुए अन्याय के बाद न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं कर पाते. जो लोग कानून को हाथ में ले कर अपना बदला खुद लेते हैं, उनकी समाज में दो तरहा की छवि बन जाती है.‘दस्यु रानी’ फूलन देवी एक ऐसा ही नाम है, जो सोचने पर मजबूर कर देती है कि कुछ के लिए फूलन देवी सच में देवी थीं, तो कुछ के लिए आज भी वह एक कुख्यात डकैत और कई लोगों की हत्यारन हैं. कोई आम राय बनाने से आइए पहले उनके जीवन के पहलुओं को टटोलने की कोशिश करें:

*बचपन से ही बागी थे फूलन देवी के तेवर*

10 अगस्त 1963 का दिन यूपी के जालौन जिले के गांव गोरहा के मल्लाह देवी दीन के लिए नई मुसीबत लेकर आया था. मुसीबत इसलिए थी क्योंकि उसके घर बेटी ने जन्म लिया था. अगर बेटा हुआ होता तो जश्न का माहौल होता. अब बेटी ने जन्म लिया था तो चिंता से मल्लाह का सिर फटा जा रहा था. चिंता उसको पालने की, चिंता उसको बड़ा करने की और चिंता उसकी शादी की. देवी दीन ने अपनी बेटी का नाम रखा फूलन.

शुरुआत में पिता देवी दीन को भी इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि जिस बेटी का जन्म उसके लिए खास नहीं था, उसकी मृत्यु का दिन इतना खास हो जाएगा कि पूरे देश में हडकंप मच जाएगा. अपने मां-बाप के छः बच्चों में फूलन दूसरे नंबर पर थी. वह दब्बू और शांत नहीं थी, वह एकदम अलग थी. इतनी अलग कि सही-गलत की लड़ाई के लिए वह किसी से भी भिड़ जाती थी.

फूलन के पिता देवी दीन कड़ी मेहनत के बाद घर का खर्च चला पाते थे. सम्पत्ति के नाम पर उनके पास केवल एक एकड़ ज़मीन थी. उनके पिता की मृत्यु के बाद उनका बड़ा भाई घर का मुखिया बना।

*फूलन देवी कैसे बनी डकैत*

20 साल की उम्र में फूलन को अगवा कर उसका बलात्कार किया गया पुलिस की मदद लेने का अंजाम वह पहले ही भुगत चुकी थी सो इस बार उसने हथियार उठाने का फैसला कर लिया. फूलन के जीवनी पर आधारित फ़िल्म 'बैंडिट क्वीन' में लिखा है कि वह 20 साल की उम्र में अपने एक रिश्तेदार की मदद से डाकुओं के गिरोह में शामिल हो गई.

हथियार उठाने के बाद सबसे पहले फूलन अपने पति के गांव पहुंची, जहां उसने उसे घर से निकाल कर लोगों की भीड़ के सामने चाकू मार दिया और सड़क किनारे अधमरे हाल में छोड़ कर चली गयी. जाते-जाते फूलन ने ये ऐलान भी कर दिया कि आज के बाद कोई भी बूढ़ा किसी जवान लड़की से शादी नहीं करेगा. हथियार उठा लेने भर से फूलन की परिस्थियां नहीं बदली थीं.

गिरोह में भी उसे कई प्रकार की विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ा. गिरोह के सरदार बाबू गुज्जर का दिल फूलन देवी पर आ गया. यह बस उसकी शारीरिक भूख थी, जिसे मिटने के लिए वह लगातार कोशिशें करता रहा. पहले उसने फूलन को बहलाने की कोशिश की. जब वह कामयाब नहीं हुआ तो एक दिन उसने फूलन के साथ जबरदस्ती की. विक्रम मल्लाह, जिसका स्थान गिरोह में बाबू गुज्जर के बाद आता था, उसने इसका विरोध किया. बावजूद इसके सरदार नहीं माना और फूलन के साथ जबरदस्ती की. बाद में विक्रम ने बाबू की हत्या कर दी.

*हथियार उठा लेने भर से फूलन की परिस्थियां नहीं बदली थी*

बाबू गुज्जर की हत्या के बाद अगली सुबह विक्रम मल्लाह ने खुद को गिरोह का सरदार घोषित कर दिया. इसी बीच इनके गिरोह में जेल से भागे दो भाई श्री राम तथा लाला राम शामिल हुए, जिनके कारण गिरोह में फूट पड़ गई. बाद में उन्होंने विक्रम मल्लाह को भी मार गिराया और फूलन को बंदी बनाकर अपने गांव बेहमई ले आये.

यहां फूलन को एक कमरे में भूखे प्यासे बंद कर दिया गया. बेहमई में फूलन को जो घाव मिला वो उसके लिए अब तक का सबसे गहरा घाव बन गया. यहां उसके साथ केवल दुष्कर्म नहीं बल्कि सामूहिक दुष्कर्म हुआ. वहां मौजूद सभी ने बारी-बारी से उसके जिस्म को जानवरों की तरह नोचा. फूलन ने इतना सहा कि शायद उसे मर जाना चाहिए था लेकिन किस्मत ने उसके लिए कुछ और ही चुना था. उसके साथ हो रहे दुष्कर्म और दी जा रही यात्नओं की जानकारी उसके कुछ पुराने साथियों को मिली, तो वे छुपते-छुपाते मौके पर पहुंचे और फूलन को वहां से बचाकर ले गए.

वहां से निकलने के कुछ दिन बाद ही फूलन ने अपने साथी मान सिंह मल्लाह की सहायता से अपने पुराने मल्लाह साथियों को इकट्ठा कर के गिरोह का पुनः गठन किया और खुद उसकी सरदार बनी.

*बदले की आग ने खत्म कर दी कई लोगों की जिंदगी*

श्री राम और लाला राम के चंगुल से निकलने के सात महीने बाद फूलन देवी को वह मौका मिल गया, जिसका वह इंतज़ार कर रही थी. 14 फरवरी 1981 को प्रतिशोध की आग में उबल रही फूलन अपने गिरोह के साथ पुलिस के भेस में बेहमई गांव पहुंची. यहां एक शादी का आयोजन था, जिसमे बाहरी गांव के लोग भी आये हुए थे.

फूलन और उसके गिरोह ने बंदूक के ज़ोर पर पूरे गांव को घेर लिया तथा ठाकुर जाति के 21 मर्दों को एक लाइन में खड़ा होने का आदेश दिया. उन 21 में से दो उनके पुराने गिरोह के डाकू भी थे, लेकिन ये वो नहीं थे जिन्होंने फूलन के साथ दुष्कर्म किया था. अपने दुश्मनों को वहां ना देख कर फूलन देवी बुरी तरह बौखला गयी. उस घटना के चश्मदीद व उन 21 लोगों में एक मात्र जीवित बचे चंदर सिंह.

जिन्होंने बाद में बीबीसी को बताया था, “फूलन ने सबसे पहले पूछा कि लाला राम कहां है? उसके मन मुताबिक जवाब ना मिलने के बाद उसने सभी को बैठने के लिए कहा, फिर खड़े होने के लिए. कई बार ऐसा करने के बाद अचानक से ही उसने अपने साथियों को फ़ायर करने का आदेश दे दिया. सौभाग्य से चंदन सिंह अकेले ऐसे थे जो गोली लगने के बाद भी जिंदा रहे.

*शर्तें रखी और कर दिया आत्म समर्पण*

बेहमई नरसंहार के बाद फूलन ‘बैंडिट क्वीन’ नाम से मशहूर हुई. वह किसी तरह से वह आत्म समर्पण के लिए राजी हो गई. लेकिन इसके लिए उनकी अपनी शर्तें थीं. वह जानती थी कि उत्तर प्रदेश पुलिस उसकी जान की दुश्मन है, इसीलिए अपनी पहली शर्त के तहत मध्यप्रदेश पुलिस के सामने ही आत्मसमर्पण करने की बात कही.

दूसरी शर्त के तहत उन्होंने अपने किसी भी साथी को ‘सज़ा ए मौत’ न देने का आग्रह किया. तीसरी शर्त के तहत उसने उस जमीन को वापस करने के लिए कहा, जो उसके पिता से हड़प ली गई थी. साथ ही उसने अपने भाई को पुलिस में नौकरी देने की मांग की. फूलन की दूसरी मांग को छोड़कर पुलिस ने उसकी बाक़ी सभी शर्तें मान लीं. इस तरह फूलन ने 13 फरवरी 1983 को मध्यप्रदेश के भिंड में आत्मसमर्पण किया.

*इस तरह खुला राजनीति का रास्ता*

फूलन देवी पर 22 कत्ल, 30 लूटपाट तथा 18 अपहरण के मुकद्दमे चलाए गए. इन सभी मुकद्दमों की कार्यवाही में ही 11 साल बीत गए. सन 1993 में मुलायम सिंह की सरकार ने उन पर से सारे मुकद्दमे हटाकर, उन्हें बरी करने का मन बनाया. यही नहीं, 1994 में उसे रिहा कर दिया गया. अपना अधिकांश जीवन बीहड़ और जेल में गुजारने के बाद सन 1996 में फूलन ने राजनीति में जाने की राह बनाई. समाजवादी पार्टी के टिकट से मिर्जापुर की सीट जीत कर वह सदन का हिस्सा बनी. उसका दो बार जीतना यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं उसने जनता के दिल में अपनी जगह बना ली थी.

25 जुलाई 2001 को उनके आवास के सामने ही शेर सिंह राणा नामक व्यक्ति ने उसकी गोली मारकर हत्या कर दी. हत्या के बाद शेर सिंह राणा ने इस बात को स्वीकार किया।

*फूलन देवी को लेकर लोगों की अलग अलग राय है.*

किसी के लिए वो दुष्टों का नाश करने वाली देवी थी. लेकिन यहां हमें पहले ये सोचने की ज़रूरत है कि फूलन देवी ने अपने जीवन में जो भी किया उसके लिए दोषी किसे माना जाए?
उस राक्छस पुरुष का जिसने एक बच्ची पर दया नहीं की?
उन दरिन्दों को जिसने फूलन को लगातार नोचा?
*या उस प्रशासन को जो फूलन को न्याय दिलाने में असमर्थ रही?*

01/07/2022

Hum UK se hai
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22/06/2022

Jai mata di.
Good morning

21/06/2022

Ye kisi ne post Kiya tha me bhi share kr rha hun aap bhi kro

21/06/2022

Jai Bhole Baba ki,
Ye Mandir Rujudhari hai,
Jo jila Almora me hai,
Yha ki sundarta dekhne ko milti hai Share kare . Baba ki jai ho

21/06/2022

Pahado ki to baat hi kuch or hai,,,

21/06/2022

Ise Aaj hi , ndi kinare dekha gya hai , bata rhe hye jal Mans h, haaa haaaa haaaa

21/06/2022

Jai Mata Di, suprabhat

20/06/2022

Sare Bolo jai Mata Di,
Milkar Bolo Jai Mata Di

20/06/2022

Ye kon si jagha hai?

20/06/2022

In Pahado me kuch to esa hai, Jo Apni or Akarsh*t karte hai?

20/06/2022

Ye wo drishy hai jise dikhne ke liye ham Puri duniya Ka bharmad karna chahte h

20/06/2022

Taja khabar, yakin kre ya naa krw

20/06/2022

Uttarakhand ki to baat hi nirali hai, yha pasu -pakshi me ekta pratik dikhta h!

20/06/2022

Aajkal Uttarakhand me Ropai chal rhi hai, or log apne kam or apne Ash -Pados ke kam me byasth hai, ye unki ekta ka Pramad h,

20/06/2022

Is duniya me sacha iswar bhakat ek hi he, wo jo sabki madat karta hai, niswarath

18/06/2022

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17/06/2022

अग्निपथ आर्मी,आप समर्थ करते है या /नही,

17/06/2022
17/06/2022

सुना है रावण भी शिव भक्त था,
जैसे आज का मानस भी शिव
भक्त हैं,

17/06/2022

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

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