Aman Jatav Etawah
हमारा लक्ष्य लोगों को बहुजन समाज पार्?
कभी सोचा था?
देश का सबसे खूबसूरत ऐतिहासिक पार्क "अम्बेडकर पार्क" लखनऊ में स्थापित होगा!
धन्यवाद बहनजी। 🙏🙏
अंबेडकरवादी होने पर शर्म नही गर्व कीजिए ,,
शान से बोले जयभीम
#जयभीम
🇪🇺💙🇷🇴🙏
भारत की सबसे कम उम्र मात्र 18 साल की साक्षी जाटव कमर्शियल पायलट बनी है। हिमाचल की बेटी साक्षी ने महज 7 महीने में अमेरिका से कमर्शियल पायलट का लाइसेंस किया हासिल। साक्षी जाटव ने बहुजन समाज का नाम रोशन किया है।
बधाई तो बनती है।
बहन को बहुत बहुत बधाई एवं सुभकामनाएं।🌹
क्या दुनिया में कही भी चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारे में पूजा करने के पैसे लगते है ?
ज्ञानी सज्जन मेरा ज्ञानवर्धन करे !
🙏
"जय भीम" किसी जाति का नारा नहीं, बल्कि एक "क्रांतिकारी ऊर्जा" का स्रोत हैं।
#जयभीम,जयभारत जयसंविधान।✊
#जयभीम सभी को
जय भीम बोलना,
शौक नहीं.
शान💪है हमारी..
गर्व से बोलिए #जयभीम
#जयभीम
जिस समाज में हमारा जन्म हुआ है, उस समाज का उद्धार करना हमारा प्रथम कर्तव्य है ..
#जयभीम
मातादीन वाल्मीकि भारत के स्वतंत्रता सैनानी थे जिन्होंने 1857 के भारतीय विद्रोह में भाग लिया। वो ब्रितानी ईस्ट इण्डिया कम्पनी की एक इकाई में कारतूस निर्माण का कार्य करने वाले मजदूर थे। वो उन शुरुआती लोगों में से थे जिन्होंने 1857 के विद्रोह का बीज बोया।
आजादी के बहुजन नायकः उदईया चमार और मातादीन वाल्मीकि
पहले स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर तिलका मांझी और उनके साथियों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ छेड़े गए युद्ध की आग आगे बढ़ चली थी. इसके बाद अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल 1804 में बजा. छतारी के नवाब नाहर खां अंग्रेजी शासन के कट्टर विरोधी थे. 1804 और 1807 में उनके पुत्रों ने अंग्रेजों से घमासान युद्ध किया. इस युद्ध में जिस व्यक्ति ने उनका भरपूर साथ दिया वह उनके परम मित्र उदईया थे. हालांकि उदईया चमार के बारे में बहुत विस्तृत जानकारी नहीं है, लेकिन यह साफ है कि उनकी वीरता का लोहा अंग्रेज भी मानते थे. अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में नवाब नाहर खां की ओर से लड़ते हुए उन्होंने अकेले ही सैकड़ों अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया. बाद में उदईया चमार पकड़े गए और उन्हें फांसी दे दी गई. उदईया की गौरव गाथा आज भी क्षेत्र के लोगों में प्रचलित हैं.
इसके बाद देश 1857 की क्रांति की ओर बढ़ चला था. 1857 की क्रांति ऐसी थी, जिसके बाद अंग्रेजों और भारतीयों के बीच लगातार सीधी लड़ाई लड़ी जाने लगी. 1857 की क्रांति को घोषित तौर पर पहला स्वतंत्रता संग्राम का युद्ध माना जाता है. भारतीय इतिहासकारों द्वारा इस पूरी क्रांति का श्रेय मंगल पांडे को दे दिया जाता है, लेकिन असल में इस क्रांति के सूत्रधार थे मातादीन वाल्मीकि.
मातादीन के पुरखे अंग्रेजी शासन में सरकारी नौकरी में रहे थे. अतः शीघ्र ही मातादीन को भी बैरकपुर फैक्ट्री में खलासी की नौकरी मिल गई. यहां अंग्रेज सेना के सिपाहियों के लिए कारतूस बनाए जाते थे. इन्हीं कारतूसों को तमाम हिन्दू सैनिक अपने मुंह से खिंचकर और बंदूकों में भरकर इस्तेमाल करते थे. अंग्रेजी फौज के निकट रहने के कारण मातादीन के जीवन पर उसका खासा असर पड़ा था.
मातादीन को पहलवानी का भी शौक था. वह इस मल्लयुद्ध कला में दक्षता हासिल करना चाहते थे, लेकिन अछूत होने के कारण कोई भी हिन्दू उस्ताद उन्हें अपना शागिर्द बनाने को तैयार नहीं होता था. आखिरकार मातादीन की मल्लयुद्ध सीखने की इच्छा पूरी हुई और एक मुसलमान खलीफा इस्लाउद्दीन जो पल्टन नंबर 70 में बैंड बजाते थे, मातादीन को मल्लयुद्ध सिखाने के लिए राजी हो गए. इसी मल्लयुद्ध कला की बदौलत ही मातादीन की जान-पहचान मंगल पाण्डे से हुई थी. लेकिन जल्दी ही मातादीन की जाति जानने के बाद उनके प्रति मंगल पांडे का व्यवहार बदल गया.
एक दिन गर्मी से तर-बतर, थके-मांदे, प्यासे मातादीन ने मंगल पाण्डे से पानी का लोटा मांगा. मंगल पाण्डे ने इसे एक अछूत का दुस्साहस समझते हुए उन्हें झिड़क दिया और कहा, ‘अरे भंगी, मेरा लोटा छूकर अपवित्र करेगा क्या?’ फिर क्या था, इस अपमान से जले मातादीन ने वो राज खोल दिया, जो सालों से दबा हुआ था, और जिसने 1857 की क्रांति की नींव रख दी. मातादीन ने मंगल पांडे को ललकार दिया और कहा कि पंडत, तुम्हारी पंडिताई उस समय कहा चली जाती है जब तुम और तुम्हारे जैसे चुटियाधारी गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों को मुंह से काटकर बंदूकों में भरते हो.’
यह सुनकर मंगल पांडे सन्न रह गया. जल्दी ही मातादीन की ये बात हर बटालियन और हर छावनी में फैल गई. मातादीन द्वारा कहे कड़वे सच ने सेना में विद्रोह की स्थिति बना दी. सारे हिन्दू सैनिक सुलग रहे थे. 1 मार्च, 1857 को मंगल पाण्डे परेड मैदान में लाईन से निकल कर बाहर आ गया और एक अधिकारी को गाली मार दी, जिसके बाद विद्रोह बढ़ता चला गया. इसके बाद मंगल पाण्डे को फांसी पर लटका दिया गया. मंगल पांडे को फांसी देने की बात सभी जानते हैं. लेकिन एक सच से तमाम लोग आज भी अंजान हैं. विद्रोह फैलाने के जुर्म में अंग्रेजों ने मातादीन को भी गिरफ्तार कर लिया था, जिसके बाद मातादीन को भी अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया.
इस तरह मातादीन वाल्मीकि ने जो चिंगारी लगाई थी, आखिरकार वह चिंगारी सन् 1947 में भारत के आजाद होने की वजह बनी.
झलकारी बाई झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं इस कारण शत्रु को गुमराह करने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं
1857 की क्रांति की नायिका वीरांगना ऊदा देवी पासी बहुत ही शक्तिशाली महिला थीं। जिन्होंने 36 अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया। वीरांगना ऊदा देवी पासी जी की जयंती 30 जून को पूरे भारतवर्ष में बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है
खुद को अगर जिंदा समझते हो तो गलत का बिरोध करना सीखो .
क्योकि लहर के साथ लाशें बहती हैं ,तैराख नही .
#जयभीम_नमोबुद्धाय_जय_संविधान
हर सुबह हम फिर से जन्म लेते हैं। आज हम जो करते हैं वही सबसे ज्यादा मायने रखता है।
डॉ भीमराव आंबेडकर
#जयभीम
सुबह की प्यारी सी जय भीम
👽👺👹💥💥
🙏👆🌟🌟
केदारनाथ के "सोने से पीतल" वाली बात हुई पुरानी !
RBI से 88 हजार करोड़ के 500 के नोट गायब है !
आपके यहाँ कितने घण्टे बिजली आती है ज़रा बताइए सर को
MYogiAdityanath
अगर सच लिखने की ताकत नहीं है,
तो सच लिखने वालों की ताकत बनों.. #क्रांतिकारी_जय_भीम
जो धर्म जन्म से एक को श्रेष्ठ और दूसरे को नीच बनायें रखे वह धर्म नहीं गुलाम बनाएं रखने का षड़यंत्र है।”
डॉ० भीमराव आंबेडकर
आज भी लोग दलितों को इंसान नहीं बल्कि जानवर समझते है और
जब वोट मागने की वारी आती है तो अपनापन दिखाते है झूठे कही के
Jai Bhim
राजा चंवरसेन कौन थे –
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि भारत में चंवर वंश होता है. ऐसा माना जाता है कि यह राजवंश सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल से संबंध रखता था. गुजरात में चंवरावती नगर इस वंश की प्रतापी राजधानी होती थी. यहां पर चंवरसेन राज करते थे. इनके कई पुत्र भी थे. जिनके नाम कमलसेन , ब्रह्मसेन , रतिसेन इत्यादी थे. ऐसा कहा जाता है कि बप्पा रावल ने गजनी के सुल्तान को हराकर चंवर वंश के सरदार को वहां का शासक बनाया था. कर्नल टाड महोदय द्वारा लिखी गई उनकी पुस्तक “राजस्थान का इतिहास ” में इस वंश के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है.
ऐसा माना जाता है कि जब भारत पर तुर्क आक्रमम हुए थे. उस काल में इस राजवंश का शासन भारत के पश्चिमी भाग में था और इसके प्रतापी राजा चंवरसेन थे. इस क्षत्रिय वंश के राज परिवार का वैवाहिक संबंध बाप्पा रावल वंश के साथ था. उस समय के प्रसिद्ध राजा राणा सांगा व उनकी पत्नी झाली रानी ने चंवर वंश से संबंध रखने वाले संत रैदासजी को अपना गुरु बनाकर उनको अपने मेवाड़ के राजगुरु की उपाधि दी थी.
कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि चंवरसेन जोकि चंवर वंश के प्रतापी शासक होते थे, ये वर्तमान में चमार कही जाने वाली जाति से संबंध रखते थे. हालांकि इसके विषय में विभिन्न इतिहासकारों में मतभेद भी है. पुराने समय में तथा संकीण मानसिकता रखने वालों के अनुसार चमार जाति को अछूत समझा जाता था. कुछ इतिहासकारों को मानना है कि इसी चमार जाति से राजा चंवर सेन संबंध रखते थे तथा उनका गौरवशाली इतिहास मिटाया गया है.
चुनाव आयोग के अनुसार कर्नाटक के ताज़ा रुझान
अलीगढ़:- वार्ड नंबर दो से बसपा प्रत्याशी मनोज कुमार पार्षद पद जीते। इन्हें कुल 1768 वोट मिले। दूसरे नंबर पर भाजपा के राकेश सहाय को 867 वोट मिले।
ये माहौल हैं मेयर सीट का।
सहारनपुर और आगरा में बहुजन समाज पार्टी बढ़त बनाए हुए हैं वहीं दूसरी तरफ आगरा में वार्ड क्रमांक 1, 3 और 16 में बसपा ने जीत दर्ज कर ली है।
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