Sartaj Siddiqui
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मन की बात😊
फेसबुक बुक पर हमारी I'd 2014 में मेरे मित्र मनोज तिवारी ने बनाई थी जिसे फेसबुक ने 2021 में करीब 13 महीने के लिए ब्लाक कर दिया था उस वक्त इस I'd में मेरे करीब 3000 मित्र थे ।
2022 के सुरुआत में एक यात्रा के दौरान हमने इसी नाम से दूसरी फेसबुक I'd इंस्टाग्राम I'd और एक फेसबुक पेज बनवा कर छोड़ दिया।
दूसरी फेसबुक I'd पर friend request की ऐसी झड़ी लगी कि अगर I'd को दो घंटे के लिए बंद करने के बाद खोलूं तो 1/1 हजार से अधिक Friend request भरी मिलें हमने एक सप्ताह में अच्छे मित्रों का चुनाव करके उसे खोलना बंद कर दिया करीब दो महीने बाद देखा तो करीब 6 हजार से अधिक और friend request आई हुई थी।
मुझे अधिक जानकारी थी नहीं और इधर मेरी मूल I'd चालू हो गई थी तो मैंने सभी को डिलीट मार कर उनके ऐप्स को भी मोबाइल से अनइंस्टॉल कर दिया।
अभी करीब 15 दिन पहले अस्पताल में बाहर अपनी बारी के इंतजार के दौरान एक फेसबुक friend से मुलाकात हुई बातों बातों में वह बोला तुम अपना नुकसान करे बैठे हो और उसने फेसबुक द्वारा मांगी गई सभी जानकारी और सेटिंग को भरकर उसे अंडा देने वाली मुर्गी बना दिया।
हमें तो आज़ तक यह भी नहीं पता था कि ऐसा भी होता है।
हमने तो अपनी पोस्ट पर लाइक और कमेंट करने के लिए अपने मित्रों को Unfriend या Block करने की कभी धमकी भी नहीं दी और पोस्ट Boost करने के लिए जुकरू को कभी चढ़ौती भी नहीं चढाई या यह समझ लो मेरे जेब में गौडसे बैठा हुआ है।
I'd पर वीडियो, रील और कमेंट बाला अंतिम Option चल रहा है अब मेरी आवाज़ और शक्ल ऐसी नहीं है कि मैं वीडियो बना सकूं इस कारण वही पुरानी फोटो को चेंपचेंप कर टाईम पास करता रहता हूं आगे जुकरु की मर्जी 😜
वैसे मेरी घिसी पिटी सभी रील पर 500 से 1100 तक views आ रहें हैं तो आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया तो बनता है 🌹
और मैंने जिन I'd को कभी डिलीट मार दिया था वह भी अपनी अंतिम स्टेज़ में पंहच गई है। मुझे तो यकीन भी नहीं आ रहा कि निष्क्रिय चीज़ भी सोशल मीडिया पर ग्रो कर जाती है।
खूंखार अपराधी सिर्फ समाज में ही नहीं होते हैं यह तो सरकारी पदों पर बर्दी में भी होते हैं वहां इनके दुष्कर्मों पर सज़ा के बदले मैडल मिलते हैं और समाज के हिंसक और नफरती लोगों का सपोर्ट और यह बन जाते हैं रातों रात हीरो।
पर कहते हैं ना ऊपर बाले के घर देर है अंधेर नहीं है और एक दिन इनके पाप का घड़ा फूट ही जाता है।
अब कल तक जो इनका महिमा मंडित करने बाले आज़ इनके दुष्कर्मों पर चुप्पी साध गए होंगे 👇
शेर को सवा शेर,
सवा शेर को डेढ़ शेर,
डेढ़ को ढाई शेर मिलते ही रहते हैं ।
जब भी हमें लगता है हम धुरंधर है कोई ना कोई हमसे भी बड़ा धुरंधर आकर हमें अपना सही स्थान दिखा जाता है
😅😂😂🤣🤣😂😂😂
* नमाज़ पढ़ते हो ?
* हां ! सिर्फ जुमा को
* पांचों वक्त की क्यों नहीं ?
* अल्लाह ने हर मोमिन के लिए पांचों वक्त की नमाज़ फर्ज की है, पांचों वक्त की नमाज़ ना पढ़ना हराम है हराम (फिर एक लम्बा सा ज्ञान)
* दुकान पर अकेला हूं और बाजार की दुकान है और कोई देखने वाला भी नहीं, यहां भीड़भाड़ भी अधिक होती है और दिन में इतने बार दुकान को लगाना और बढ़ाना संभव भी नहीं।
* दुकान को बंद करने की क्या जरूरत
अल्लाह सब देखने बाला है (फिर एक लम्बा सा भाषण)
* अगर मैं पांच बार मस्जिद में नमाज पढ़ने जाऊंगा तो फिर ग्राहक भी तो नहीं चला पाऊंगा और आज़ के दौर में ग्राहक के पास मेरा इंतजार करने के लिए समय भी तो नहीं है और हमारे जैसी बहुत बड़ी बड़ी दुकानें भी है तो ग्राहक वहां चला जाएगा।
* ला हौल वला कुव्वता ...
क्या तुम जानते नहीं अल्लाह तुम्हारे लिए गैव से भी रोटी का इंतजाम कर देता है (फिर एक लम्बा सा भाषण)
*लेकिन मुझे सिर्फ रोटी की जरूरत नहीं है मुझे घर का खर्च भी चलाना है, दुकान का किराया भी देना है, घर और दुकान का बिजली बिल,दूध और दवाईयों का खर्च, कोर्ट कचहरी का खर्च भी।
जो मैं 12 घंटे और तीसों दिन अकेले दुकान पर बैठ कर नहीं निकाल पा रहा हूं और धंधा भी बिल्कुल खत्म सा हो गया है।
* तो इसका मतलब तुम रोज़े भी नहीं रखते होगे ?
(सामने वाले साहब भड़कते हुए)
* नहीं !!
* अब इसके लिए भी क्या किसी वक्त की जरूरत होती है (गुस्से में)
* मैंने आपको बताया नहीं मैं पिछले कुछ सालों से लगातार बीमार चल रहा हूं और अभी पिछले पांच छः महीने से मुझे रोज़ सुबह ख़ाली पेट एक कैप्सूल लेना होता है। 8/9 बजे नाश्ता के बाद दवा फिर मुंह में एक पेस्ट लगता है फिर उसके आधा घंटा बाद फिर मुंह में एक जैल लगता है फिर दोपहर में खाना के बाद एक गोली खानी होती है फिर रात को यही सभी दवा सुबह के अनुसार लेनी होती है।
इतना डिटेल में बताने के बाद भी
* हूं !!!!!!!!! दिल में अल्लाह के लिए जगह नहीं है नहीं तो यह दवा सुबह शहरी से पहले और अफ़्तार के बाद भी ली जा सकती है। (दार्शनिक अंदाज में)
* तो इसका मतलब तुम कुर्बानी भी नहीं करते होगे ?
* नहीं ।
और फिर सामने वाले साहब भड़कते हुए लानत मलामत करते हुए चले जाते हैं।
यह हर उस मुसलमान की बात है जो खुद को समाज में अल्लाह का भाई साबित करने पर तुला हुआ है सामने वाले की तकलीफ़ और परेशानी को ना समझते हुए।
कुछ ऐसे दाढ़ी वाले,यह दूसरों को तो हराम बताते हैं और खुद करते क्या हैं
चोरी का माल खरीदते बेंचते है
भाई और मां बाप के साथ ग़लत तरीके से पेश आते हैं।
ठगी बेईमानी इनके लिए आम बात है
जितने तो मुस्लिम कौम में बच्चे नहीं होंगे उतने लोग एक कट्टा छपबा कर मदरसा के नाम पर चंदा मांग रहे होंगे।
ज़मीन जायदाद से अपने बहन, भाई और भतीजे, भतीजियों का हक़ मारे बैठे होंगे
और समाज में लोगों को बात बात में हलाल और हराम पर ज्ञान बांटते मिलेंगे।
(नोट - हमारी यह पोस्ट सच्ची घटना पर आधारित है इसका अच्छे लोगों से कोई संबंध नहीं है)
✍️ सरताज सिद्दीकी बकेवर
आजकल की स्त्रियों और उनके मां बाप को कैसा पति/दामाद चाहिए ??
बहुत कठिन प्रश्न है ।।
आज की आधुनिक धूर्त स्त्री और उनके मां बाप को ऐसा पति /दामाद चाहिए जो.....
* सुबह 10 बजे तक पत्नी को सोने दे
* अपनी 95% सैलरी पत्नी के हाथ में दे
* जो अपने माता पिता को घर से बाहर कर दे या खुद अकेले कहीं और रहने लगे..
* जो दिन में तीन बार पत्नी के लिए सुबह चाय बनाये
* जो हफ्ते में कम से कम एक बार अच्छे से रेस्टोरेंट में खाना खिलाने और फ़िल्म दिखाने ले जाए
* जो पत्नी के माता पिता की जी हुजूरी करता फिरे
* जो पत्नी को सैर सपाटा कराये
* जो घर में एक नौकरानी लगाकर रखे
* जो एक रुपया दहेज़ न मांगे लेकिन हर महीने कुछ पैसा पत्नी के माँ बाप को अवश्य दे..
* जो पत्नी के पैर दुखने पर पैर भी दबा दे..
* बीवी अगर कमाती हो तो उसके सैलरी पर पति का कोई भी ह़क न हो,कोई सवाल नहीं करे
* मोबाइल पर पत्नी मायके वालों से कितनी-कितनी देर बात करें कोई रोक-टोक नहीं होना चाहिए...
* अपने पति और ससुराल की हर एक बात साझा करना है और जैसा वो बताएगी वैसा करना है.!
इन्ही सब कारणों से लोगों के शादीशुदा जीवन में आग लग रहीं हैं।
🌙
आप सभी को माह -ए-रमजान की बहुत बहुत मुबारकबाद 💐
बिस्तर पर पुरुष चाहिए
बच्चा जन्म देने के लिए पुरुष चाहिए
आजीवन सुरक्षा के लिए पिता भाई पति बेटा चाहिए
शादी के लिए पैसे वाला लड़का, कमाऊ लड़का चाहिए
लेकिन पुरुषों का हर वक्त विरोध करना
जिसकी खाना उसके ही खिलाफ हर वक्त जहर उगलना
ऐसी है कुछ महिला जात
सास बहू की लड़ाई
ननद भौजाई की लड़ाई
देवरानी जेठानी को लड़ाई
महिला ही महिला की दुश्मन पर विक्टिम बनकर पुरुष को टार्गेट करना हमेशा
ऐसी है कुछ महिला जात
जो बेटा, भाई कल तक परिवार बिना रह नहीं सकता था,
शादी करके आते ही पति का घर तोड़ो
पति को उसके ही घर वालों से लड़ा कर अलग करो
ऐसी है कुछ महिला जात
स्वतंत्रता के नाम पर अंग प्रदर्शन करना
डांस के नाम पर स्तन और नितम्ब हिलाना
अपनी हवस मिटाने के लिए bf संग होटल में जाना
पर जब कुछ भी आउट ऑफ कंट्रोल हो तो पुरुष पर झूठे आरोप लगा पुरुष पर दोष मढ देना
ऐसी है कुछ महिला जात
अब कुछ को मिर्ची लगेगी तो ज्ञान देने मत आ जाना मुझे भी पता है सब एक जैसी नहीं होती इसलिए अगर आप ऐसी नहीं हो तो दिल पर मत लेना ।
लाइक और कमेंट करना जैसे सोशल मीडिया मित्रों के हाथ में होता है ठीक उसी तरह आपके प्लेटफॉर्म की रीच को बढ़ाना आपके हाथ में होता है।
आपको अपने प्लेटफॉर्म की रीच बढ़ाने के लिए बूस्ट पोस्ट पर जाना होता है।
प्रीमियम में सब्सक्रिप्शन कराना होता है।
सीधे शब्दों में समझिए आपकी पोस्ट, आपकी रील्स,वीडियो और आप एक सेलर है तो अपने सामान को लोगों तक पहुंचाने के लिए इन प्लेटफॉर्म को चढ़ौती चढ़ानी ही होगी, विना एड विना रुकावट के यू ट्यूब पर मजे लेना है तो प्रीमियम सब्सक्रिप्शन कराना ही होगा।
इसका ताजा उदाहरण है आपका ट्वीटर (मेटा)
यह सभी प्लेटफॉर्म की आप पर पैनी नजर रहती है जो आदमी इन प्लेटफॉर्म पर बहुत अधिक सक्रिय रहते हैं इनके सिस्टम आपकी पहुंच पर लगाम लगाकर आप को चढ़ौती चढ़ाने के लिए मजबूर कर देते है। जबकि जो एकाउंट निष्क्रिय होते हैं इनके सिस्टम उन्हें अनदेखा कर देते हैं।
आपको पता है आपके नेट रिचार्ज का 11% और अगर आप एक सेलर है तो इन प्लेटफॉर्म पर आपका सामान बेचने पर 16% इन सभी कंपनियों को मुनाफा होता है।
हमारे आप के रुपयों की दम पर यह दुनिया के सबसे बड़े अरब,खरबपति बने बैठे हैं।
इन कंपनियों ने जो प्लेटफॉर्म पहले हमें पूरी तरह से मुफ्त में उपलब्ध कराये थे अब वे हमसे और नेटवर्क दोनों से बसूल रहे हैं।
ध्यान रखें यह आपकी लत है और उनका धंधा ✍️ सरताज सिद्दीकी बकेवर
महान संगीत निर्देशक और संगीतकार रवि साहब
फिल्म वचन (1955) के साथ रवि एक स्वतंत्र संगीतकार बने। फिल्म का निर्माण देवेंद्र गोयल ने और निर्देशन राज ऋषि ने किया था। इसमें गीता बाली, राजेंद्र कुमार और मदन पुरी मुख्य भूमिकाओं में थे। इसका गीत "चंदा मामा दूर के", जो वास्तव में एक लोरी (लोरी) है, बहुत लोकप्रिय हुआ और आज भी ऐसा ही है।
रवि द्वारा रचित कुछ अन्य लोकप्रिय गीत हैं, 'ये रातें ये मौसम नदी का किनारा' ('दिल्ली का ठग'-1958), 'चौदहवीं का छड़ हो',
'बदले बदले मेरे सरकार' और 'दिल की कहानी रंग लायी रे' ('चौदहवीं का चांद' -1960), 'दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ' और 'हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं' (घराना- 1961), "आज की मुलाकात" बस इतनी' और 'वो दिल कहां से लाओ' (भरोसा -1963), 'चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं' और 'आप आए तो' (गुमराह- 1963), "छू लेने दो नाज़ुक होठों को", "ये जुल्फ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा' और 'तोरा मन दर्पण कहलाये' ('काजल'-1965),
"आगे भी जाने ना तू", "कौन आया की निगाहों में चमक जाग उठी" और "ऐ मेरी जोहरा जबीन" ('वक्त'-1965), "राहा गर्दिशों में हरदम" ('दो बदन' -1966), " किसी पत्थर की मूरत से मोहब्बत का इरादा है" (फ़िल्म: 'हमराज़'-1967), 'नील कमल' फ़िल्म से 'बाबुल की दुआएँ लेती जा' (1968), ग़रीबों की सुनो, वो तुम्हारी सुनेगा' फ़िल्म ' दस लाख' (1966) (स्वयं रवि द्वारा लिखे गए गीत के बोल), फिल्म 'आदमी सड़क का' (1977) से आज मेरे यार की शादी है' और फिल्म 'निकाह' से 'दिल के अरमान आंसुओं में बह गए' ' (1982)।
संगीत निर्देशक और संगीतकार के रूप में रवि की कुछ प्रमुख हिंदी फ़िल्में हैं, वचन (1955), अलबेली (1955-रवि ने संगीत तैयार किया और इस फ़िल्म के गीतों के बोल भी लिखे), एक साल (1957), नरसी भगत (1957), दिल्ली का ठग (1958), देवर भाभी (1958), दुल्हन (1958), घर संसार (1958), मेहंदी (1958), नई राहें (1959), चिराग कहां रोशनी कहां (1959), अपना घर (1960), चौदहवीं का चांद (1960), घूंघट (1960), तू नहीं और सही (1960), घराना (1961), नजराना (1961), प्यार का सागर (1961), वांटेड (1961), सलाम मेमसाहेब (1961), चाइना टाउन (1962) ), राखी (1962), टावर हाउस (1962), अपना बनाके देखो (1962), बॉम्बे का चोर (1962), आज और कल (1963), गहरा दाग (1963), गुमराह (1963), प्यार का बंधन (1963) ), नर्तकी (1963), उस्तादों के उस्ताद (1963), ये रास्ते हैं प्यार के (1963), भरोसा (1963), प्यार किया तो डरना क्या (1963), गृहस्ती (1963), दूर की आवाज़ (1964), शहनाई (1964), काजल (1965), खानदान (1965), वक़्त (1965), बहू बेटी (1965), दो बदन (1966), दस लाख (1966), फूल और पत्थर (1966), औरत (1967), हमराज़ (1967), मेहरबान (1967), आंखें (1968), दो कलियां (1968), मन का मीत (1968), नील कमल (1968), आदमी और इंसान (1969), दो कलियां (1969), बड़ी दीदी (1969) ), डोली (1969), एक फूल दो माली (1969), समाज को बदल डालो (1970), गंगा तेरा पानी अमृत (1971), बाबुल की गलियां (1972), नाग पंचमी (1972), धुंध (1973), मेहमान (1973), एक महल हो सपनों का (1975), अमानत (1977), आदमी सड़क का (1977), प्रेमिका (1980), निकाह (1982), आज की आवाज (1984), तवायफ (1985), दहलीज (1986) ) और अवाम (1987)।
रवि को क्रमश: 1962 और 1966 में हिंदी फिल्मों घराना और खानदान के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। 1994 में एक मलयालम फिल्म 'परिणयम' के लिए उनके द्वारा रचित संगीत के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला। उन्हें मलयालम फिल्मों में अपने संगीत के लिए कई अन्य पुरस्कार भी मिले।
रवि का 7 मार्च 2012 को निधन हो गया।
हल्दी रस्म या फिजूल खर्ची
अमीरों के चक्कर में बेचारा गरीब पिस रहा है 🤔
आज कल ग्रामीण परिवेश में होने वाली शादियों में एक नई रस्म का जन्म हुआ है हल्दी रस्म।
हल्दी रस्म के दौरान हजारों रूपये खर्च कर के विशेष डेकोरेशन किया जाता है, उस दिन दूल्हा या दुल्हन विशेष पीत (पीले) वस्त्र धारण करते हैं। साल 2020 से पूर्व इस हल्दी रस्म का प्रचलन ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं पर भी देखने को नहीं मिलता था, लेकिन पिछले साल दो-तीन साल से इसका प्रचलन बहुत तेजी से ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ा है।
पहले हल्दी की रस्म के पीछे कोई दिखावा नहीं होता था, बल्कि तार्किकता होती थी। पहले ग्रामीण क्षेत्रों में आज की तरह साबुन व शैम्पू नहीं थे और ना ही ब्यूटी पार्लर था। इसलिए हल्दी के उबटन से घिसघिस कर दूल्हे-दुल्हन के चेहरे व शरीर से मृत चमड़ी और मेल को हटाने, चेहरे को मुलायम और चमकदार बनाने के लिए हल्दी, चंदन, आटा, दूध से तैयार उबटन का प्रयोग करते थे। ताकि दूल्हा-दुल्हन सुंदर लगे। इस काम की जिम्मेदारी घर-परिवार की महिलाओं की थी। लेकिन आजकल की हल्दी रस्म मोडिफाइड, दिखावटी और मंहगी हो गई है। जिसमें हजारों रूपये खर्च कर डेकोरेशन किया जाता है। महंगे पीले वस्त्र पहने जाते है। दूल्हा दुल्हन के घर जाता है और पूरे वातावरण, कार्यक्रम को पीताम्बरी बनाने के भरसक प्रयास किये जाते हैं। यह पीला ड्रामा घर के मुखिया के माथे पर तनाव की लकीरें खींचता है जिससे चिंतामय पसीना टपकता है।
पुराने समय में जहां कच्ची छतों के नीचे पक्के इरादों के साथ दूल्हा-दुल्हन बिना किसी दिखावे के फेरे लेकर अपना जीवन आनंद के साथ शुरू करते थे, लेकिन आज पक्के इरादे कम और दिखावा और बनावटीपन ज्यादा होने लगा है।
आजकल देखने में आ रहा है कि ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक रूप से असक्षम परिवार के लड़के भी इस शहरी बनावटीपन में शामिल होकर परिवार पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ा रहे है। क्योंकि उन्हें अपने छुट भईए नेताओं, वन साइड हेयर कटिंग वाले या लम्बे बालों वाले सिगरेट का धुंआ उड़ाते दोस्तों को अपना ठरका दिखाना होता है। इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि के लिए रील बनानी है। बेटे के रील बनाने के चक्कर में बाप की कर्ज़ उतरने में ही रेल बन जाती है।
ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे घरों में फिजूल खर्ची में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है जिनके मां-बाप ने हाड़-तोड़ मेहनत और पसीने की कमाई से पाई-पाई जोड़ कर मकान का ढांचा खड़ा किया लेकिन ये नवयौवन लड़के-लड़कियां बिना समझे अपने मां-बाप की हैसियत से विपरीत जाकर अनावश्यक खर्चा करते हैं।
जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हो उन परिवारों के बच्चों को मां-बाप से जिद्द करके इस तरह की फिजूल खर्ची नहीं करवानी चाहिए। आजकल काफी जगह यह भी देखने को मिलता है कि बच्चे (जिनकी शादी है) मां-बाप से कहते है आप कुछ नहीं जानते, आपको समझ नहीं है, आपकी सोच वही पुरानी अनपढ़ों वाली रहेगी, यह कहते हुए अपने माता-पिता को गंवारू, पिछड़ा, थे तो बौझ्अ बरगा हो कहते हैं। मैं जब भी यह सुनता हूं सोचने को विवश हो जाता हूं, पांव अस्थिर हो जाते हैं। बड़ी चिंता होती हैं कि मेरा युवा व छोटा भाई-बहिन किस दिशा में जा रहे हैं।
इस तरह की फिजूलखर्ची वाली रस्म को रोकने के समाचार पढ़ कर खुशी होती है लेकिन अपने घर, परिवार, समाज, गांव में ऐसे कार्यक्रम में शरीक होकर लुत्फ उठा रहे हैं, फोटो खिंचवाकर स्टेटस लगा रहे हैं। Copy
हमारे पास फेसबुक/व्हाट्स एप/सोशल मीडिया ग्रुप है।
हमारे पास खुद का बनाया हुआ इतिहास है।
हमारे पास पालतू मीडिया है।
हमारे पास थानों, कोर्ट कचहरी, और सरकारी संस्थाओं में हमारे लोग हैं।
हमारे पास चन्दा देने वाले अमीर लोग हैं।
हमारे पास फ्री में लोगों की मदद करने वाले वकीलों और समाज सेवियों की फौज है।
हमारे पास सभी नेताओं का संरक्षण प्राप्त है।
हमारे पास एक आवाज पर लाखों लोग इकट्ठा करने की ताकत है।
तुम्हारे पास क्या है ???
मी -
मेरे पास आलीशान जलसे है।
मेरे पास आलीशान तकरीरें है।
मेरे पास आलीशान सजावटें हैं।
मेरे पास आलीशान देगें हैं।
मेरे पास आलीशान दिमाग है।
मेरे पास आलीशान होशियारी है।
मेरे पास फ्री में ज्ञान वांटने वाले लोग हैं।
✍️ सरताज सिद्दीकी बकेवर
"भाग्य"....
एक 26 वर्षीय लड़की के पिताजी को उसके नजदीक के परिजन ने एक योग्य वर के बारे में बात की....
लड़का शहर में नौकरी करता है दिखने में सुस्वरूप है....
अच्छे संस्कार वाला है....
लड़के के माँ बाप भी सुस्थिति में है...
लड़के की उम्र 29 साल है
सब कुछ अनुरुप है....
लड़की के पिताजी- : वो सब तो ठीक है पर लड़के की पगार कितनी है....
मध्यस्थ : अच्छी है 25 हजार रुपये....
लड़की के पिताजी:- कया..... अजी शहर में 25 हजार से क्या होता है भला....
मध्यस्थ :जी....तो एक दूसरा एक लड़का है दिखने में ठीक है और पगार भी अच्छी है ...पचास हजार रुपये....
सिर्फ उसकी उम्र थोड़ी ज्यादा है, वह 32 साल का है....
लड़की का पिताजी : पचास हजार....
इस शहरमें 1BHK फ्लैट भी क्या वह खरीद सकता है क्या 50 हजार में....तो भला वो मेरी बेटी को कैसे खुश रख पायेगा....
मध्यस्थ : और एक है.....लड़का दिखने मे ठीक-ठाक है....
सिर्फ थोड़ा मोटा है....थोडे से बाल झड़ गए है...
(दिमाग से काम कर कर के)..पगार भी अच्छी एक लाख है...पर उम्र मात्र 35 साल है ....
देखिए.... अगर आपको जँचता होगा तो....
लड़की के पिताजी : क्या चाटना है 1 लाख पगार को....
मेरी कन्या के लिये तो सुन्दर ही लड़का देखूंगा.
कोई और भी कोई अच्छा बताइये जी लड़का कम उम्र का हो....
अच्छी पगार कमाता हो.... घर भी अच्छा होना चाहिए और दिखने में भी स्मार्ट हो....
ऐसे ही बातो में 4/5 साल निकल गए फिर वह मध्यस्थ को बुलाकर बात हुई....
मध्यस्थ : अब आपकी लड़की हेतु योग्य वर देखना मेरे बस की बात नही.....
अब मेरे पास आपकी लड़की के अनुरूप 38/40 साल वाले लड़को के ही रिश्ते है...आप बोलो तो बताऊ....
लड़की का पिता: कोई भी अच्छा सा घर बताइये इस उम्र में कही हो जाये ये क्या कम बात है लड़की की उम्र भी तो 31-32 हो रही है....
अब मेरी लड़की ही अनुरूप नहीं रही तो मैं ज्यादा क्या अपेक्षा रखूँ....
ध्यान रखिए 👇
लड़की और लड़को की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करके उन्हें बर्बाद मत कीजिए.... लड़की का अपना घर उसका ससुराल ही होने वाला होता है तो जरा समय से सही उम्र में भेज के उसे अपने सपनों के घर को सजाने-संवारने दीजिये...
आप अपने आस पास देखेंगे तो पायेंगे की बहुत से लोग शादी के बाद धनवान बने हैं...
क्योंकि बहुत बार भाग्य शादी के बाद उदय होता है तो बहुत बार शादी के बाद व्यक्ति का सब कुछ चला जाता है.. ....
दोस्तों बस इतना याद रखिएगा दूसरा मौका केवल और केवल कहानियों में मिलता है असल जिंदगी में नहीं ......
जिंदगी के सफर मे गुजर जाते है जो मकाम ....
वो फिर नहीं आते ....
वो फिर नहीं आते ....!! Copy
हमारे धर्म के खिलाफ हेट स्पीच और ग़लत जानकारी की पोस्ट सोशल मीडिया पर इसलिए भरी पड़ी है क्योंकि वह जानते हैं कि इन्हें उसकी रिपोर्ट मारने की ना तो जानकारी है और ना आदत।
इसलिए वह हमारे धर्म को हमेशा अपमानित करते हैं और दुस्प्रचार करके लोगों के दिलों में एक नेरेटिव बना देते हैं जिससे हर इंसान समझने लगता है कि मुसलमान और इस्लाम ऐसा ही है।
मुसलमानो में यह जो मजनू टाइप दिन रात रील और शोर्ट वीडियो में घुसे रहते हैं वह अगर जब भी ऐसी हमारे धर्म के खिलाफ नफरती पोस्ट देखें तो तुरंत पोस्ट के ऊपर 3 डॉट पर क्लिक करके Report Option में जाकर False information या Hate Speach जैसे Options में जाकर Submit कर दें।
एक पोस्ट पर अगर ऐसी 50 रिपोर्ट मार दी जाए तो ऐसी गलत पोस्ट, ग़लत ग्रुप और ग़लत I'd सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हमेशा के लिए ब्लॉक कर दी जाती है।
भईया जब सारा दिन फेसबुक पर झक मारते ही रहते हो तो कुछ अपने धर्म के लिए अच्छा भी कर लिया करें।
ध्यान रहे हमारी बरवादी का जिम्मेदार कोई और नहीं हम खुद ही हैं ✍️ सरताज सिद्दीकी बकेवर
😜😂🤣🤣🤣🤣
विजय दिगम्बर बचपन से ही खोजी बनना चाहता था।
अतः उसने पुर्तगाल की खोज की। परन्तु जानकारी मिली कि पुर्तगाल पहले ही खोजा-खोजाया हुआ था...
इसलिए उसने वापस भारत को ही खोजने का फैसला किया।
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दरअसल उसके गोरखपुर वाले चचेरे भाई कौशल्य बिष्ट ने भी यही प्रयास किया था।
मगर रस्ते में गलत मोड़ लेने के कारण राह कारण वह अस्त्रालय पहुँच गया। यह इलाका पहले ही ऋषि मुनियों ने खोज लिया था।
तो उसने अपने लिए पड़ोस में दूसरा द्वीप खोज निकाला।जहां आम के बगीचों की बहुलता के कारण उसका नाम अमेरिका रख दिया।
कौशल्य बिष्ट को लोग अपभ्रंश में कोलंबस कहते है।
●●
इससे विजय डींगम्बर को सीख मिल गयी। उसने गलत मोड़ नही लिया और सीधे भारत आ गया।
इस खोज के पीछे उसका मकसद पूरी तरह से व्यापारिक था। वो भारत के समुद्र तट विकसित कर, मालदीव से बेहतर टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाना चाहता था।
वो बाली, हवाई, फ्लोरिडा, और मोरिशस से बेहतर बना सकता था। परन्तु मालदीव से उसका पुराना झगड़ा था, उसका किस्सा फिर कभी।
अभी तो यह जानिए की वह 20 मई 1498 को भारत के दक्षिण में कालीकट पहुंचा।
●●
उसके ये खोज वास्तव में बड़ी लाभकारी थी। क्योंकि उसने अरब जगत का वो राज जान लिया, जिसको न बताकर वो यूरोप से मोटा माल कमा रहे थे।
दरअसल, यूरोपीय देश अरब जगत के माध्यम से मसाले, चाय की खरीद करते थे। अरबो को ये सामान भारत से हासिल होता था, पर ये बात वे गुप्त रखते थे।
चूंकि विजय दिगम्बर, इसी बात का पता लगाने के लिए भेजा गया अंडरकवर एजेंट था। तो वो अपना असली नाम नही बताता था।
एक फेक आईडी "वास्कोडिगामा" के नाम से बनाकर, उसने कालीकट के राजा से चैट की। उसको धमकाकर, औऱ ब्लैकमेल करके व्यापार के लिए राजी किया।
फिर 18 घण्टे बाद सारा व्यापार अपने गुजराती मित्र को सौंपकर वह आगे बढ़ गया।
●●
अब वह गोआ पहुँचा और सुरम्य वातावरण देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ।
उसने एक होटल तथा बियर बार खोला। वहां आने वाले टूरिस्टों को दीदी ओ दीदी कहकर बुलाता।
इससे उसका धंधा चल।निकला।
समुद्री इलाका होने के कारण वहां मीठे पानी की कमी थी। इससे शच्चै हिँड्यू बडी संख्या में वहां आने लगे, और बीयर शक कर उसे पानी बनाने लगे।
गोआ तब से एक पॉपुलर टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन गया। जिस जगह पर उसके बियर बार के अवशेष मिले हैं, गोआ की उस जगह को लोग वास्कोडिगामा के नाम से ही जानते हैं।
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फिर 18 घण्टे बाद अपना बियर बिजनेस भी उसने गुजराती मित्र को सौप दिया, और चुनाव लड़ने पुर्तगाल चला गया।
1522 में वो दोबारा भारत आया।
इस बार उसका मकसद लक्षद्वीप का विकास करना था। वो वहां के सारे आइलैंड, विदेशी होटल कम्पनियों को बेचकर, इंटरनेशनल टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाना चाहता था। उसके गुजराती मित्र ने सारी तैयारी कर ली थी।।
कोच्चि से लक्षद्वीप पास पड़ता है। 18 घण्टे बाद वो वहां से लक्षद्वीप जाने की तैयारी में था कि..
24 मई 1524 को शर्दी न सह पाने से उसका दुखद निधन हो गया।
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वास्कोडिगामा की कब्र आज भी कोचीन में ही है। जो जेनमोनीयस मोनेस्ट्री के संता मारिया चर्च में रखी है।
कभी जाएं तो अवश्य देखे। शानदार नक्काशी वाला पत्थर का सरकोफेगस, अपने आपमे देखने लायक चीज है।
मगर सत्य यह है कि वास्कोडिगामा के दिल में आज भी लक्षद्वीप है। इसलिए कभी कभी उसका भूत लक्षद्वीप के समुद्र तटों पर भटकता दिखाई देता है।
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फोटो वास्कोडिगामा की नही है, और फ़ोटो का पोस्ट से कोई सम्बन्ध नही है।
😜😂🤣
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आज का लेख कौम की आधी आबादी को समर्पित......
आज की पुरुष प्रधान व्यवस्था में हमारी मस्तुरात (महिलाओ) को आधी आबादी का दर्जा प्राप्त है, हो भी क्यो न वो इसकी असल हक़दार है बल्कि इससे भी अधिक की हक़दार है।
हर मर्द की कहानी औरत से ही शुरू हो कर औरत पर ही खत्म होती है।
इस छोटी सी जिंदगी में एक और कितने किरदार निभा जाती है ये उसे पता ही नहीं चलता,
कब बेटी बन कर आई घर आंगन को चहकाने, बेटी से बहन बनी माँ का हाथ बताया बहन भाईयो में प्यार बाँट कर जवान हुई तो निकाह के बाद किसी की मुहब्बत तो किसी के घर की ज़ीनत बनी ,माँ बनी बूडी हुई दादी बनके छोटे बच्चों के साथ फिर से बच्चा बनी और फिर इस फानी दुनिया से चलती बनी यह सिलसिला नस्ल दर नस्ल यू ही चलता रहा।
यही औरत खदीजा, आयशा, फातिमा, ज़ैनब बन कर इस्लाम की अलम बरदार बनी,
तलवार उठाई तो पुतली बाई, रज़िया सुल्तान बनी, चाँद बीबी, बेगम हज़रत महल बनी,
मुमताज महल बन कर बे पनाह मुहब्बत की निशानी बनी, फरहाद की शीरी, मजनू की लैला बनी,
कलम की ताक़त पहचानी तो गुफ़्तगू की आन बान शान डाॅ निशा सिद्दीकी, आयशा निज़ाम, अनिशा गौहर, रूबीना मिज़बानी, डाॅ रूबीना बानो, डॉ सलमा सिद्दीकी बनी।।
आज के परिवेश में महिला, पुरुष समान योग्यता समान अधिकार रखते है तो हम आज सीधे सीधे यह नहीं कह सकते कि, समाज पर पुरुष प्रधान व्यवस्था का वर्चस्व है, हाँ देखने में जरूर लगता है कारण हमारी आधी आबादी का किसी भी विषय, किसी भी समस्या पर न बोलना।
इसका उदाहरण हमारा यह ग्रुप है... इसमें हर विषय पर सिर्फ पुरुष ही चर्चा में भाग लेते है महिलाए चुप रह कर केवल उपस्थित दर्ज कराए हुए है ऐसा नहीं है कि वो उन विषयों पर विचार रखने योग्य नहीं है वो पुरुषों से कंही बहतर तरीके से तर्क प्रस्तुत कर सकती है परंतु करती नहीं है।
इनकी चुप्पी का असर समाज पर पड़ता है
किसी मुद्दे पर महिलाओ के प्रतिभाग न करने पर 50% तो वैसे ही कम हो जाते है बचे 50% पुरुष में 25% लोगों को सामाजिक कार्यो में रूचि नहीं होती 15% लोग यह कह कर निकल जाते है कि इससे हमको क्या लेना देना बचे 10% लोग जो समाज की आवाज़ बन कर खड़े रहते है अपनी उपस्थित दर्ज कराते रहते है।
इन 10% लोगों के कारण व्यवस्था को पुरुष प्रधान कहा जाता है जो कि उचित नहीं है।
जब तक समाज की आधी आबादी जागृत हो कर 10% लोगों के साथ खडी नहीं होगी तब तक समाज में बदलाव नहीं आ सकता, समाज तरक्की नहीं कर सकता। जब यह 50%आबादी आगे आएगी तो समाज के बाकी लोग भी आ जाएंगे। क्योकि आज की नारी अबला नहीं है उसमें हर तरह की योग्यता है वो नेत्रत्व करने में सक्षम है......
सादिक़ हुसैन
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Etawah
My conscience is my 𝕨𝕒𝕪 मेरा विवेक ही मेरा रास्ता है ज्योति अग्निहोत्री 'नित्या'
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बहुत सुकून मिलता हैं उस वक्त, जब किसी ख्याल के आते वक्त मेरी कलम मेरे पास हो।.....��