Astroayurveda
Astroayurveda -unlocking the secrets of the universe. Medical Astrology is the base of AstroAyurveda(chronic disease conditions) Astrology with remedies.
meditation and mantra sadhna, yantra sadhana also helps to fulfill your wishes.
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Mata Surkanda devi Tample
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महा मृत्यु को भी टाल सकता है ये पाठ
I explained shreeyantra sadhana pryog for fullfil ur every wish
*संस्कृत बहुत ही रहस्यमय भाषा है जानिए इस उदाहरण से।*
*युधिष्ठिरस्य या कन्या, नकुलेन विवाहिता।*
*पूजिता सहदेवेन, सा कन्या वरदा भवेत्।*
युधिष्ठिर की जिस पुत्री का विवाह नकुल के साथ हुआ था, और सहदेव के द्वारा जिसकी पूजा की गयी, वह कन्या हमारे लिए वरदायिनी हो।😅😅हंसना नहीं, रहस्य है रहस्य। मानिये मत, जानिए। इसका सही अर्थ कोई व्याकरण का प्रकांड विद्वान् ही लगा सकता है।इसका सही अर्थ निम्न है। यहाँ पर्यायवाची और व्याकरण की सुंदरता को बड़ी कुशलता से रखा गया है।
युधिष्ठिर नाम हिमालय का भी है। वे सदा अविचल भाव से खड़े रहते हैं। अतः पर्वतों को संस्कृत में भूधर, अचल, महीधर, युधिष्ठिर आदि के नाम से भी कहा गया है। यहाँ युधिष्ठिर का अर्थ पर्वत (हिमालय) है।
नकुल शब्द पर आईये। यहाँ पर नञ् तत्पुरुष समास का नियम लगा है। जिसका कोई कुल नहीं, वही नकुल है। अर्थात्, शिव जी। उनका कोई जनक नहीं। वे अनादि अजन्मा महादेव हैं, अतः न कुल हैं।
सहदेवेन। इस शब्द का दो अर्थ है। शब्दरूप के अनुसार, सहदेव के द्वारा,। और कर्मधारय समास तथा तृतीया कारक के अनुसार अर्थ होगा, देव के साथ। तो अर्थ हुआ देव के साथ । यहाँ देव भी शिव जी के लिए आया है।
अब सही तरीके से सही अर्थ लगाईये।
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युधिष्ठिर (हिमालय) की जिस पुत्री का विवाह नकुल (शिव) के साथ हुआ, तथा (महा)देव के साथ जिसकी पूजा हुई, वह कन्या (पार्वती) हमारे लिए वरदायिनी हो।
अब समझ में आया कि संस्कृत किस दिव्य भाषा का नाम है। ऐसे ही देवभाषा नहीं है।
ऐसे ऐसे कई रहस्यमय श्लोक हमारे ग्रंथों में पड़े हैं।जिनका सही अर्थ न जानने के कारण कुतर्की जन हमारे ऊपर आक्षेप करते हैं कि तुम्हारे ग्रन्थ में यह गलत है, यह अधर्मयुक्त है, आदि आदि।
प्रस्तुतिकरण** -:~_*
*श्रीमती ऋचा शर्मा**
*Spiritual meditator And researcher*
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एक बालक की सहज पूजा
एक बार एक बच्चे के दादा जी जो शाम को घूमकर आने के बाद बच्चे के साथ प्रतिदिन सायंकालीन पूजा करते थे।बच्चा भी उनकी इस पूजा को देखकर अंदर से स्वयं इस अनुष्ठान को पूर्ण करने की इच्छा रखता था,किन्तु दादा जी की उपस्तिथि उसे अवसर नही देती थी।
एक दिन दादा जी को शाम को आने में विलंब हुआ,इस अवसर का लाभ लेते हुए बच्चे ने समय पर पूजा प्रारम्भ कर दी।
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जब दादा जी आये,तो दीवार के पीछे से बच्चे की पूजा देख रहे थे।
बच्चा बहुत सारी अगरबत्ती एवं अन्य सभी सामग्री का अनुष्ठान में यथाविधि प्रयोग करता है
और फिर अपनी प्रार्थना में कहता है,कि
भगवान जी प्रणाम
आप मेरे दादा जी को स्वस्थ रखना,और दादी के घुटनो के दर्द को ठीक कर देना
क्योकि दादा और दादी को कुछ हो गया,तो मुझे चॉकलेट कौन देगा
फिर आगे कहता है,भगवान जी मेरे सभी दोस्तों को अच्छा रखना,वरना मेरे साथ कौन खेलेगा
फिर मेरे पापा और मम्मी को ठीक रखना,घर के कुत्ते को भी ठीक रखना,क्योकि उसे कुछ हो गया,तो घर को चोरों से कौन बचाएगा
(लेकिन भगवान यदि आप बुरा न मानो तो एक बात कहू, सबका ध्यान रखना,लेकिन उससे पहले आप अपना ध्यान रखना,क्योकि आपको कुछ हो गया,तो हम सबका क्या होगा)
इस प्रथम सहज प्रार्थना को सुनकर दादा की आंखों में भी आंसू आ गए,क्योकि ऐसी प्रार्थना उन्होंने न कभी की थी,और न सुनी थी।
कदाचित इसी सहजता का अभाव मनुष्य को सभी प्रकार के यथोचित ईश्वरीय अनुष्ठानोपरांत भी जन्मजन्मांतर तक ईश्वर का बोध भी नही करा पाता है।
*प्रस्तुतिकरण* -:~_*
*श्रीमती ऋचा शर्मा**
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*कहीं आपका हृदय भी पत्थर तो नहीं* 🍒🫀🫀
एक दिन एक युवक सन्त के पास आया और चरण वंदना करके बोला :
“मुझे आपका शिष्य होना है. आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिए.”
रामानुजाचार्यने कहा : “तुझे शिष्य क्यों बनना है ?” युवक ने कहा : “मेरा शिष्य होने का हेतु तो परमात्मा से प्रेम करना है.”
संत रामानुजाचार्य ने तब कहा : “इसका अर्थ है कि तुझे परमात्मा से प्रीति करनी है. परन्तु मुझे एक बात बता दे कि क्या तुझे तेरे घर के किसी व्यक्ति से प्रेम है ?”
युवक ने कहा : “ना, किसीसे भी मुझे प्रेम नहीं.” तब फिर संतश्री ने पूछा : “तुझे तेरे माता-पिता या भाई-बहन पर स्नेह आता है क्या ?”
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युवक ने नकारते हुए कहा ,“मुझे किसी पर भी तनिकमात्र भी स्नेह नहीं आता. पूरी दुनिया स्वार्थपरायण है, ये सब मिथ्या मायाजाल है. इसीलिए तो मै आपकी शरण में आया हूँ.”
तब संत रामानुज ने कहा : “बेटा, मेरा और तेरा कोई मेल नहीं. तुझे जो चाहिए वह मै नहीं दे सकता.”
युवक यह सुन स्तब्ध हो गया.
उसने कहा : “संसार को मिथ्या मानकर मैने किसी से प्रीति नहीं की. परमात्मा के लिए मैं इधर-उधर भटका. सब कहते थे कि परमात्मा के साथ प्रीति जोड़ना हो तो संत रामानुजके पास जा; पर आप तो इन्कार कर रहे है.”
*संत रामानुज ने कहा : “यदि तुझे तेरे परिवार से प्रेम होता, जिन्दगी में तूने तेरे निकट के लोगों में से किसी से भी स्नेह किया होता तो मै उसे विशाल स्वरुप दे सकता था . थोड़ा भी प्रेमभाव होता, तो मैं उसे ही विशाल बना के परमात्मा के चरणों तक पहोंचा सकता था .*
छोटे से बीजमें से विशाल वटवृक्ष बनता है. परन्तु बीज तो होना चाहिए. जो पत्थर जैसा कठोर एवं शुष्क हो उस में से प्रेम का झरना कैसे बहा सकता हूँ ? यदि बीज ही नहीं तो वटवृक्ष कहाँ से बना सकता हूँ ? तूने किसी से प्रेम किया ही नहीं, तो तेरे भीतर परमात्मा के प्रति प्रेम की गंगा कैसे बहा सकता हूँ ?”
*काहनी का सार* ये है कि जिसे अपने निकट के 👨👧👧👩👩👧👦 भाई-बंधुओं से प्रेमभाव नहीं, उसे ईश्वर से प्रेम भाव नहीं हो सकता. हमें अपने आस पास के लोगों और कर्तव्यों से मुंह नहीं मोड़ सकते। यदि हमें आध्यात्मिक कल्याण चाहिए तो अपने धर्म-कर्तव्यों का भी उत्तम रीति से पालन करना होगा।
~ *प्रस्तुतिकरण -:~_*
*श्रीमती ऋचा शर्मा**
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ज्योतिष वेद का नेत्र हैं जिसके द्वारा समस्त भूमंडलीय ग्रह-नक्षत्रों एवम् तारों का व्यवस्थित अध्ययन करके, समस्त प्राणियों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को इंगित करता हैं. शुभ प्रभाव में वृद्धि और अशुभ प्रभावों से बचने के लिए उपाय भी बताता हैं. ग्रहों तथा तारों के रंग भिन्न-भिन्न प्रकार के दिखलाई पड़ते हैं, अतएव उनसे निकलनेवाली किरणों के भी भिन्न भिन्न प्रभाव हैं.~
प्रस्तुतिकरण ऋचा शर्मा
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*💐सकारात्मक सोच &सकारात्मक परिणाम*💐
पुराने समय की बात है, एक गाँव में दो किसान रहते थे। दोनों ही बहुत गरीब थे, दोनों के पास थोड़ी थोड़ी ज़मीन थी, दोनों उसमें ही मेहनत करके अपना और अपने परिवार का गुजारा चलाते थे।
अकस्मात कुछ समय पश्चात दोनों की एक ही दिन एक ही समय पर मृत्यु हो गयी। यमराज दोनों को एक साथ भगवान के पास ले गए। उन दोनों को भगवान के पास लाया गया।
भगवान ने उन्हें देख के उनसे पूछा, *"अब तुम्हें क्या चाहिये, तुम्हारे इस जीवन में क्या कमी थी, अब तुम्हें क्या बना कर मैं पुनः संसार में भेजूं।”*
भगवान की बात सुनकर उनमें से एक किसान बड़े गुस्से से बोला, *” हे भगवान! आपने इस जन्म में मुझे बहुत घटिया ज़िन्दगी दी थी। आपने कुछ भी नहीं दिया था मुझे। पूरी ज़िन्दगी मैंने बैल की तरह खेतो में काम किया है, जो कुछ भी कमाया वह बस पेट भरने में लगा दिया, ना ही मैं कभी अच्छे कपड़े पहन पाया और ना ही कभी अपने परिवार को अच्छा खाना खिला पाया। जो भी पैसे कमाता था, कोई आकर के मुझसे लेकर चला जाता था और मेरे हाथ में कुछ भी नहीं आया। देखो कैसी जानवरों जैसी ज़िन्दगी जी है मैंने।”*
उसकी बात सुनकर भगवान कुछ समय मौन रहे और पुनः उस किसान से पूछा, *"तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हें क्या बनाऊँ।”*
भगवान का प्रश्न सुनकर वह किसान पुनः बोला, *"भगवन आप कुछ ऐसा कर दीजिये, कि मुझे कभी किसी को कुछ भी देना ना पड़े। मुझे तो केवल चारों तरफ से पैसा ही पैसा मिले।”*
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अपनी बात कहकर वह किसान चुप हो गया। भगवान ने उसकी बात सुनी और कहा, *"तथास्तु, तुम अब जा सकते हो मैं तुम्हे ऐसा ही जीवन दूँगा जैसा तुमने मुझसे माँगा है।”*
उसके जाने पर भगवान ने पुनः दूसरे किसान से पूछा, *"तुम बताओ तुम्हें क्या बनना है, तुम्हारे जीवन में क्या कमी थी, तुम क्या चाहते हो?”*
उस किसान ने भगवान के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, *"हे भगवन। आपने मुझे सबकुछ दिया, मैं आपसे क्या मांगू। आपने मुझे एक अच्छा परिवार दिया, मुझे कुछ जमीन दी जिसपर मेहनत से काम करके मैंने अपने परिवार को एक अच्छा जीवन दिया। खाने के लिए आपने मुझे और मेरे परिवार को भरपेट खाना दिया। मैं और मेरा परिवार कभी भूखे पेट नहीं सोया। बस एक ही कमी थी मेरे जीवन में, जिसका मुझे अपनी पूरी ज़िन्दगी अफ़सोस रहा और आज भी हैं। मेरे दरवाजे पर कभी कुछ भूखे और प्यासे लोग आते थे, भोजन माँगने के लिए, परन्तु कभी-कभी मैं भोजन न होने के कारण उन्हें खाना नहीं दे पाता था, और वो मेरे द्वार से भूखे ही लौट जाते थे। ऐसा कहकर वह चुप हो गया।”*
भगवान ने उसकी बात सुनकर उससे पूछा, *”तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हें क्या बनाऊँ।*
किसान भगवान से हाथ जोड़ते हुए विनती की, *"हे प्रभु! आप कुछ ऐसा कर दो कि मेरे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये।”*
भगवान ने कहा, *“तथास्तु, तुम जाओ तुम्हारे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा नहीं जायेगा।”*
अब दोनों का पुनः उसी गाँव में एक साथ जन्म हुआ। दोनों बड़े हुए।
पहला व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था, कि उसे चारों तरफ से केवल धन मिले और मुझे कभी किसी को कुछ देना ना पड़े, वह व्यक्ति उस गाँव का सबसे बड़ा भिखारी बना। अब उसे किसी को कुछ देना नहीं पड़ता था, और जो कोई भी आता उसकी झोली में पैसे डालके ही जाता था।
और दूसरा व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था कि उसे कुछ नहीं चाहिए, केवल इतना हो जाये की उसके द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये, वह उस गाँव का सबसे अमीर आदमी बना।
*_हर बात के दो पहलू होते हैं_*
*सकारात्मक और* *नकारात्मक,*
*अब ये आपकी सोच पर निर्भर करता है कि आप चीज़ों को नकारत्मक रूप से देखते हैं या सकारात्मक रूप से। अच्छा जीवन जीना है तो अपनी सोच को अच्छा बनाइये, चीज़ों में कमियाँ मत निकालिये बल्कि जो भगवान ने दिया है उसका आनंद लीजिये और हमेशा दूसरों के प्रति सेवा का भाव रखिये !!!
*~ प्रस्तुतिकरण -:~_*
श्रीमती ऋचा शर्मा
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*आज का अमृत*
दो मित्र पैसा कमाने मुम्बई गए थे। तीन साल मेहनत करके खूब पैसा कमाया और वापिस घर की ओर चले।
रास्ते में एक के मन में लालच आ गया। दूसरे को मार कर, उसका सारा पैसा निकाल लिया और लाश को चलती रेल से गिरा दिया। ऐसा कर, वह अपने गाँव आ गया। अपने मित्र के बारे में झूठ बोल कर, खुद ठाठ से रहने लगा।
एक घर बनाया, नया व्यापार किया, विवाह हुआ, एक बेटा भी हुआ, पर बेटा जन्म से ही बीमार रहता था। उसका ईलाज कराने के लिए वह कहाँ कहाँ नहीं गया पर बेटा ठीक नहीं हुआ।
योंही बीस साल बीत गए। ईलाज कराने में सारा पैसा लग गया, मकान दुकान सब बिक गया।
एक रात जब उसका बेटा तीन दिन से बेहोश था, आधी रात उस बेटे ने आँखें खोलीं। वह बेटे के पास ही था, जाग रहा था।
बेटे के सिर पर हाथ फिराता हुआ, रोते हुए बोला- भगवान का शुक्र है, जो तूं होश में आ गया।
बेटा चिल्ला कर बोला- मैं तो आ गया होश में, तूं अभी तक नहीं आया?
बाप बोला- मेरे बच्चे! तूं क्या कहता है? तूं ठीक हो जाएगा। सब ठीक हो जाएगा। तूं चिंता मत कर। मैं तेरे पास ही हूँ।
बेटा बोला- तूं कौन है मेरा? मैं तेरा कौन हूँ? पहचान मुझे! क्या तूं मुझे नहीं पहचानता?
बाप बोला- तूं मेरा बेटा है, मैं तेरा बाप हूँ। तूं मुझे क्यों नहीं पहचानता?
बेटा गरज कर बोला- मैं तो पहचानता हूँ, तूने ही नहीं पहचाना। देख मेरी ओर, पहचान मुझे!
बाप उसका सिर दबाने लगा। रोते रोते बोला- देख तो रहा हूँ। तूं मेरा बेटा है।
बेटा- अब देख मैं कौन हूँ?
बेटा उठ कर बैठ गया, आँखें बाहर निकल आईं, चेहरा बदल गया, उसी पुराने मित्र का चेहरा आ गया। बोला- मैंने तुझे एक पल भी चैन से बैठने नहीं दिया। मैंने तुझसे अपना पाई पाई पैसा वसूल लिया है। दो सौ दस रुपए बचे हैं, उनसे मेरा संस्कार कर देना।
ऐसा कह कर वह पछाड़ खाकर गिरा, और मर गया।
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शास्त्र कहता है कि यह जगत एक लेन-देन की मंडी है। यहाँ सभी अपना लेन-देन चुकाने आए हैं। जब तक लेन-देन बाकी है, तब तक संबंध है। खाता बराबर, संबंध बराबर।
यहाँ कौन किसी का क्या ले जाएगा? यहाँ दूसरे को धोखा देने की कोशिश करने वाला, दूसरे को नहीं, अपने आप को ही धोखा देता है। ऐसे में ईमानदारी ही सर्वश्रेष्ठ नीति है.
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श्रीमती ऋचा शर्मा
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*॥जैसी करनी वैसी भरनी।।*
एक बुजुर्ग आदमी स्टेशन पर गाड़ी में चाय बेचता है। गाड़ी में चाय बेच कर वो अपनी झोपड़ी में चला गया। झोपड़ी में जा कर अपनी बुजुर्ग पत्नी से कहा कि दूसरी ट्रेन आने से पहले एक और केतली चाय की बना दो।
दोनों बहुत बुजुर्ग है।आदमी बोला कि काश !! हमारी कोई औलाद होती, तो वो हमें इस बुढ़ापे में कमा कर खिलाती।
औलाद ना होने के कारण हमें इस बुढ़ापे में भी काम करना पड़ रहा है।ये बात सुनकर उसकी पत्नी की आँखों में आँसू आ गए।
उसने चाय की केतली भर कर अपने पति को दे दी।
बुजुर्ग आदमी चाय की केतली ले कर वापिस स्टेशन पर गया।
उसने वहाँ प्लेटफॉर्म पर एक बुजुर्ग दंपती को सुबह से लेकर शाम तक बेंच पर बैठे देखा। वो दोनों किसी भी गाड़ी में नही चढ़ रहे थे।
तब वो चाय वाला बुजुर्ग उन दोनों के पास गया और उनसे पूछने लगा कि आपको कौन सी गाड़ी से जाना है ? मैं आप को बता दूंगा की आप की गाड़ी कब और कहां आयेगी ?
तब वो बुजुर्ग दंपति बोले कि हमें कहीं नही जाना है। हमें हमारे छोटे बेटे ने यहां एक चिट्ठी दे कर भेजा है और कहा है कि हमारा बड़ा बेटा हमें लेने स्टेशन आएगा और अगर बड़ा बेटा ना पहुंचे तो इस चिट्ठी में जो पता है वहाँ आप पहुंच जाना।
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हमें तो पढ़ना लिखना आता नही है आप हमें बस ये चिठ्ठी पढ़ कर ये बता दो कि यह पता कहां का है ताकि हम लोग अपने बड़े बेटे के पास पहुँच जाए।
चाय वाले ने जब वो चिट्ठी पढ़ी तो वो वहीं जमीन पर गिर पड़ा।
उस चिठ्ठी में लिखा था कि - ये मेरे माता-पिता है जो इस चिठ्ठी को पढ़े वो इनको पास के किसी वृद्धाश्रम में छोड़ आये।
चाय वाले ने सोचा था कि - मैं बेऔलाद हूँ इस लिए बुढ़ापे में काम कर रहा हूँ अगर औलाद होती तो काम ना करना पड़ता।
इस बुजुर्ग दंपति के दो बेटे है पर कोई भी बेटा इनको रखने को तैयार नही है।
सुख या दुःख औलाद से नही मिलता। सुख दुःख तो अपने कर्मो के अनुसार मिलता है। ना कोई औलाद सुख देती है ना कोई औलाद दुःख देती है।
अगर आप के कर्म अच्छे हैं तो आप अकेले बैठे भी खुश रह सकते हो और अगर आप के कर्म बुरे है तो आप राजगद्दी पर बैठ कर भी दुःखी रहोगे..!!
*जय जय श्री राधे*
*ज्योतिषआचार्यdr.पाठक*
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*।।जय जय श्री राम।।*
*।।हर हर महादेव।।*
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"उम्मीद" हमारी वह शक्ति है,
जो हमें उस समय भी प्रसन्न
बनाये रखती है...जब हमें मालूम होता है...
कि "हालात" बहुत खराब हैं।*
लेकिन यही उम्मीद यदि किसी गलत व्यक्ति से की गयी हो तो यही हमारे दुख का कारण बनती है इसलिए हमेशा उम्मीद या तो इष्ट देव से जोड़िये अथवा स्वयं से।
*मन के जिस दरवाजे से*
*"शक"*
*अंदर प्रवेश करता है,*
*"प्यार" और "विश्वास"...*
*उसी दरवाजे से बाहर निकल जाते हैं...*
*🌹जय श्री कृष्ण🌹*
🙏राधे राधे🙏
#रुद्राभिषेक कैसे करें*
आज आपको सरलता से बाबा का रुद्राभिषेक घर पर ही करने का तरीका बता रही हूं, किंतु पूजन में शंख, चम्पा और केवड़े के फूल का प्रयोग ना करें। यह अभिषेक रात्री में 9 बजे के बाद ही आरम्भ करे और पूजन के लिए नर्मदेशवर अथवा बेल वृक्ष के नीचे की मिट्टी से पार्थिव शिवलिंग बना कर पूजन करे पूजन के बाद सामग्री को मिट्टी में बेल के नीचे या जल में प्रवाह करें।
अन्न ,धन, संतान, कार्यक्षेत्र में उन्नति अथवा मोक्ष की या आध्यत्मिक जीवन की उन्नति जैसी कोई भी इच्छा महादेव की कृपा से पूर्ण होंगी। #महाशिवरात्रि अथवा
किसी भी महीने के #कृष्ण पक्ष की पंचमी और द्वादशी तिथि तथा शुक्ल पक्ष की षष्ठी और त्रयोदशी तिथि में भगवान शिव #नंदी पर सवार होते हैं और ऐसे में संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते हैं। यदि इन तिथियों में रुद्राभिषेक मंत्र से भगवान शिव का अभिषेक किया जाए, तो आपका अभीष्ट सिद्ध होता है अर्थात जो भी आपकी कामना हो, वह अवश्य ही पूर्ण होती है।
रुद्राभिषेक मंत्र से भगवान शिव की पूजा करते समय शिवलिंग पर दुग्ध, घी, शुद्ध जल, गंगाजल, शक्कर, गन्ने का रस, बूरा, #पंचामृत, शहद, आदि का उपयोग करते हुएभगवान शिव की भक्ति करने से समस्त प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और दुखों का निवारण होता है। रुद्राभिषेक करते समय रुद्राष्टाध्यायि के समस्त दसों अध्यायों का पाठ करना चाहिए। यदि नही कर सकते तो निम्नलिखित मंत्रों का जाप करना चाहिए:
ॐ नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च
मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च ॥
ईशानः सर्वविद्यानामीश्व रः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपति
ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोय् ॥
तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररुपेभ्यः ॥
वामदेवाय नमो ज्येष्ठारय नमः श्रेष्ठारय नमो
रुद्राय नमः कालाय नम: कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमः
बलाय नमो बलप्रमथनाथाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः ॥
सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः ।
भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः ॥
नम: सायं नम: प्रातर्नमो रात्र्या नमो दिवा ।
भवाय च शर्वाय चाभाभ्यामकरं नम: ॥
यस्य नि:श्र्वसितं वेदा यो वेदेभ्योsखिलं जगत् ।
निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थ महेश्वरम् ॥
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिबर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात् ॥
सर्वो वै रुद्रास्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु । पुरुषो वै रुद्र: सन्महो नमो नम: ॥
विश्वा भूतं भुवनं चित्रं बहुधा जातं जायामानं च यत् । सर्वो ह्येष रुद्रस्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु ॥
इन मंत्रों के द्वारा अभिषेक करने के बाद रुद्राष्टाध्यायि का पाठ करें।
रुद्राष्टाध्यायी में कुल कुल दस अध्याय हैं, जिनका पाठ रुद्राभिषेक के समय किया जाता है। इनमें भी आठ अध्याय मुख्य हैं, जिनके आधार पर ही इसको रुद्राष्टाध्ययी कहा गया है। आठवां अध्याय सबसे अधिक महत्वपूर्ण है जिसे 'नमक चमक' के नाम से भी जाना जाता है। नमक चमक का पाठ बहुत महत्वपूर्ण है और इसके पाठ से भगवान शिव आप से शीघ्र अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं। रुद्राष्टाध्यायी यजुर्वेद का एक अंग माना गया है।रुद्राभिषेक मंत्र से पूजा करते समय उपरोक्त वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए और शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए तथा उपरोक्त मंत्रों का जाप करने के बाद शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करें और रुद्राष्टाध्यायी का पंचम और अष्टम अध्याय का पाठ अवश्य करें। श्वेत वस्त्र ,श्वेत आसन, श्वेत पुष्प पूजन में प्रयोग करे।
मेरी मंगलकमनायेँ आपके साथ हैं आपकी कामना पूर्ण हो। ऋचा उपाध्याय
*इंसान को उसके हालात नहीं खयालात परेशान करते हैं ,*
*हालात तो वक़्त के साथ बदलते रहते हैं , लेकिन खयालात को बदलना आसान नहीं होता...!*
Jay shree ram
दीपावली के शुभ अवसर पर अधिकांश व्यक्ति अपने घर धन की देवी लक्ष्मी जी की प्रसन्नता हेतु श्रीयंत्र जो कि कागज या तांबे आदि पर छपा होता है उसे खरीद कर अपने घर लाते है ,किंतु वे यह नहीं जानते कि यंत्र तब तक प्रभाव शाली नहीं होता जब तक कि कोई भी यन्त्र विशेष रूप से , विशेष मुहूर्त व नक्षत्र में आपके नाम गोत्र व आपके संकल्प द्वारा न बनाया गया हो व सिद्ध या चैतन्य न किया गया हो तो वह प्रभावशाली नही होता अर्थात मात्र एक साधारण कागज या धातु का टुकड़ा ही रहता है ,उसमें ऊर्जा, मन्त्रों द्वारा विशेष समय मे निर्माण किये जाने से जागृत होती है और सर्वश्रेष्ठ श्रीयंत्र भोज पत्र पर असली अष्टगंध से बना हुआ ही होता है। जो कि श्रीसाधक द्वारा पूर्ण नियम से बनाया जाए। अधिक श्रीयंत्र के विषय मे जानने के लिए आप मेरा यह लेख जो कि इमेज में दिया गया है पढ़ सकते हैं।
धन्यवाद
ऋचा शर्मा
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#रजस्वला होना या #मासिक (धर्म) का होना किसी भी स्त्री के स्त्रीत्व को पूर्ण करने के लिए अनिवार्य है। यह वह समयकाल है, जिसमें स्त्री अपनी सृजनशक्ति का अनुभव करती है ,उस समय काल मे स्त्री भीतर और बाहर दोनों ओर से अर्थात शरीरिक और मानसिक दोनों ही रूप में कोमल होती है, जो कि सही मायने में स्त्रीत्व की पहचान है । रजस्वला होना यह गुण माँ आदिशक्ति ने स्त्री को प्रतीक के रूप में प्रदान किया है, प्रतीक इस बात का कि हर स्त्री में सृजन की वही शक्ति है, जिसके द्वारा माँ ने इस सृष्टि का, सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सृजन किया । माँ के #शक्तिपीठ #कामाख्या में माँ के रजस्वला होने के समय 3 दिवस के लिए मंदिर परिसर पूर्ण रूप से बंद किया जाता है,किन्तु माँ से दूरी बनाने हेतु नहीं अपितु आराम देने के लिए, उस समय वहाँ विश्वप्रसिद्ध #अम्बुबाची मेले का आयोजन किया जाता है, जिस दौरान अनेको प्रकाण्ड विद्वान व तांत्रिक दिव्य अनुष्ठान व साधनायें करते है,यदि दूरी बनानी होती तो अनुष्ठान ही क्यों किये जाते, आखिर उसी समयकाल में क्यों ? क्योंकि वह समयकाल माँ की ऊर्जाओं को और अधिक बढ़ा देता है । वैदिककाल में, इस रजस्वला धर्म में होने वाली प्रत्येक महिला को पलँग से नीचे पांव भी नहीं रखने दिया जाता था ,अर्थात प्रत्येक कार्य की मनाही थी और स्त्री की सेवा उसी प्रकार की जाती थी, जिस प्रकार घर मे आने पर देवी की की जाती है। इस मासिकधर्म का पालन करने वाली हर स्त्री उस समयकाल में पुज्यनीय होती है। क्योंकि यह मासिकधर्म सृष्टि के संचालन को सुचारूरूप से चलाए रखने के लिए अनिवार्य है और यह मां आदिशक्ति का वरदान है, हर महिला के लिए । इस समयकाल में स्त्री के स्त्रीत्व की ऊर्जा कोमलता चरम पर होती है वह पूर्ण रूप से पूज्यनीय होती है।
आयुर्वेद में स्त्री के रजस्वला होने पर गृहकार्यों से मनाही की गई, क्योंकि शरीर की स्थिति इस काल में कोमल होती है ,भावनाओं के स्तर पर बदलाव भी कोमल होते है,ऐसे में स्त्रियों को कोई भी भारी काम यथा चक्की चलाना, कुँए से पानी खींचना, चूल्हे पर रोटियां बनाना, सब कुछ मना किया गया। क्योंकि यह स्त्री के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होता है । किंतु कुछ बुद्धिहीन लोगों ने धर्मग्रन्थों से छेड़छाड़ कर, स्त्री के इस पूज्यनीय धर्म काल, मासिकधर्म को अपवित्रता का प्रतीक घोषित कर स्त्रियों को इस समय में पूजा करने के अधिकार सेZ
वंचित कर दिया।
किन्तु क्या कोई बताएगा कि इतनी विदुषी महिलाओं ने अनन्त समयकाल तक जब तपस्या की तो क्या वे रजस्वला काल में अपने आराध्य की आराधना अपनी साधना को बीच मे ही रोक कर खण्डित करती थीं? यदि हाँ तो वह लम्बी समयावधि की साधनायें नही कर सकती थी और यदि नही ,तो इस तरह स्त्री को सबके समक्ष नीचा दिखाने वाले आप कौन?
क्या माँ आदिशक्ति ने लाखों वर्ष शिव शम्भू को पति रूप में पाने के लिए तपस्या रूक- रूक के की थी ? यदि हाँ तो फिर तो वह इतनी लंबी साधना करने के योग्य ही नहीं थी ! है ना?
तो जब माँ ने स्वयं यह सृष्टि सुचारू रूप से चलाने हेतु स्त्री को अपने अंश की यह शक्ति रजस्वला प्रदान की है, तो स्त्रियों को पूजा करने से रोकते क्यों हो?स्त्री की ऊर्जा जिस समयकाल में चरम पर होती है वह पूज्यनीय हो जाती है, फिर वह पूजा करे या न करे यह उसका स्वयं का निर्णय है ।
लेखिका ऋचा शर्मा
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