Dharmwani
आज के दौर में राष्ट्रवाद से भी बड़ा सनातन धर्म है।
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3000 राशन कार्ड, 2500 आयुष्मान कार्ड, 50 से ज्यादा आवास और केवल 8 मुस्लिम वोट! कहां फेल हुए मोदी भाईजान? चुनाव नतीजों ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया कि क्या विकास के मुद्दे पर किसी नेता या पार्टी को वोट मिल सकता है? ये सवाल उन आंक...
जिस नाॅर्थ-ईस्ट में क्रिश्चियन मिशनरी और अलगाववादी म्लेच्छों की बड़ी संख्या है, वहां हमारे उम्मीदवार तीसरे और चैथे नंबर पर आए हैं, यह मात्र एक साल पुरानी पार्टी के लिए किसी बड़ी सफलता से कम नहीं है। असम के जोरहाट से एकम के उम्मीदवार अरुणचंद्र हांडिक जी जहां तीसरे नंबर पर रहे, वहीं असम की राजधानी गुवाहाटी से अमिताभ शर्मा जी चैथे नंबर पर रहे।
एकम सनातन भारत दल का 2024 में चुनावी प्रदर्शन एकम सनातन भारत दल के सभी कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों, समर्थकों और मतदाताओं को धन्यवाद। एकम ने इस लोकसभा चुनाव में उ...
हम पर भारतीयों का बहुत बड़ा उपकार है: आइंस्टीन
गिओर्डानो ब्रूनो नाम के एक इटैलियन दार्शनिक को सन 1600 में, यानी आज से करीब 400 साल पहले, सिर्फ इसीलिए जलाकर मार दिया था क्योंकि उसने इस सिद्धांत को समझ लिया था कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, ना कि पृथ्वी अपनी जगह पर स्थिर है। और गिओर्डानो ब्रूनो का यही सिद्धांत इटैलियंस को रास नहीं आ रहा था।
अब आप कल्पना कीजिए कि ये बात आज से मात्र 400 साल पहले की ही है जब यूरोप का विज्ञान ये बात तक भी नहीं जान पाया था कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है। जबकि भारत का विज्ञान आज से दस हजार साल पहले ही ये बात लिख चुका था कि पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है। और तो और, एक धर्म तो ऐसा भी है जो आज तक भी यही मानता है कि पृथ्वी को अपनी जगह पर स्थिर करने के लिए ही इसके ऊपर कई सारे पहाड़ों को सिर्फ इसलिए रखा गया है ताकि इसका संतुलन बना रहे।
हमारे इस ब्रह्मांड की विशालता के बारे में पश्चिम के धर्मों में से कोई भी स्पष्ट रूप से अपने विचार अब तक भी नहीं बता पाया है। याने इसका कारण तो एक दम साफ है कि उनके पास इसके बारे में कोई जानकारी थी ही नहीं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछली कुछ शताब्दियों में या पिछले कुछ वर्षों के दौरान विज्ञान की अचानक और जबरदस्त तरीके से हुई प्रगति हुई है और उसमें भारतीय ज्ञान और विज्ञान ही प्रेरणा का माध्यम रहा है। तभी तो कुछ पश्चिमी वैज्ञानिकों नेखुद ही इस बात को स्वीकार किया है।
आइंस्टीन ने तो हिंदू धर्म को लेकर यहां तक कहा था कि ‘हम पर भारतीयों का बहुत बड़ा उपकार है।’ मार्क ट्वेन ने तो यहां तक कहा था कि- ‘मनुष्य जाति के इतिहास में हमारे लिए सबसे मूल्यवान और सबसे रचनात्मक सामग्री सिर्फ और सिर्फ भारत में ही उपलब्ध है।’
श्रीनगर के निकट एक बहुत ही लोकप्रिय और सुप्रसिद्ध पर्वत है जो करीब 500 फीट ऊँची शंकराचार्य छोटी के नाम से जानी जाती है। यह वही पर्वत-शिखर है जो पूर्वकाल यानी हमारे प्राचीन ग्रंथों में "समधीमान पर्वत" कहलाता था। लेकिन मुस्लिम आक्रांताओं और विजेताओं ने, अपने षड्यंत्रकारी आचरण के अनुसार इसका नाम भी इस्लामी कर दिया। हालांकि वे इसके नाम में कुछ अधिक बड़ा बदलाव नहीं कर सके इसलिए उसी प्राचीन "समधीमान पर्वत" नाम से मिलता जुलता और सूक्ष्म ध्वनियुक्त और परिवर्तित नाम दे दिया और अब हम इसे "लेमान पहाड़ी" के नाम से पहचानते हैं। अधिकतर हिंदू इसको शंकराचार्य पहाड़ी कहते हैं क्योंकि उसपर एक मंदिर है जो शंकराचार्य जी की याद में स्थापित हुआ था। इसी प्रकार से कश्मीर घाटी के अन्य सैकड़ों प्राचीन हिंदू धर्म स्थलों का नाम भी इस्लाम के अनुसार ही परिवर्तित किया गया था। यह इस्लामीकरण का वही दौर था जब सम्पूर्ण भारत में 14वीं और 15वीं शताब्दी में ही प्रारम्भ हुआ था।
क्या आप धर्म, अध्यात्म और अपने आसपास के इतिहास को जानते हैं? यदि नहीं तो जानना चाहिए।
हमारे प्राचीन एवं उन्नत शब्द विज्ञान, उन्नत भौतिकीय, रासायनिक व गणितीय ज्ञान के संदर्भों का भी विवेचन किया गया है। वैदिक सूर्योपासना के वैश्विक प्रसार और अमेरिकी पुरावशेषों पर भारतीय सांस्कृतिक प्रभाव के संदर्भों का भी विवेचन किया गया है।
हिन्दुओं के ज्ञान-विज्ञान का प्राचीन खजाना है ‘कालजयी भारतीय ज्ञान’ भगवती प्रकाश शर्मा द्वारा लिखी गई एक बहुत ही अच्छी पुस्तक आई है, जिसका नाम है- 'कालजयी भारतीय ज्ञान'। (Kaaljayee Bharatiya Gyan Book in Hindi ...
जर्सी नस्ल की गाय ना ठीक से चल पाती है और न ही दौड़ पाती है, थोड़ी गर्मी पड़ते ही बीमार के जैसे हांफने लगती है, जब तक इसकी सही देखभाल करो तब तक ही स्वस्थ रहती है। फिर भी आज समाज के लगभग 90% लोग थैली वाले दुग्ध उत्पाद के रूप में इसी का प्रयोग कर रहे हैं और देशी गाय को आवारा छोड़ दिया जिसके कारण उनको कत्ल करके बीफ export में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन चुका है। इसमें गऊ पालक ही नहीं सरकार भी जिम्मेदार है।
10 मई अक्षय तृतीया को जोशीमठ में चौसठ योगिनी पूजा सम्पन्न होगी। अक्षय तृतीया में किया गया कार्य सदा के लिए हमारे जीवन से जुड जाता है।
पांच दिवसीय उत्तराखण्ड प्रवास पर ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु जी महाराज पांच दिवसीय उत्तराखण्ड प्रवास पर ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु जी महाराज केदारनाथ धाम और बदरीनाथ धाम के कपाट उद्.....
रोटी कपड़ा और मकान के साथ साथ धर्म की भी चिंता करनी होगी।
क्योंकि जिनका धर्म कमजोर होता है, उनसे रोटी छीन ली जाती है, कपड़े फाड़ दिए जाते है और मकान भी जला दिए जाते हैं।
“धर्मों रक्षति रक्षितः।”
और हां, याद रखें कि किसी भी नेता को अपना कुलदेवता मानने की भूल न करें और न ही किसी भी पार्टी को अपना धर्म मानें।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को पहचानने वालों में सबसे पहले सीताराम गोयल जी थे जो सन् १९९३ में ही लिख गए थे कि- "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुओं को एक ऐसी खाई में ढकेल रहा है, जिससे उभर पाना हिंदू समाज के लिए कदाचित संभव नहीं होगा,और यह भी... जब तक संघ और भाजपा समाप्त नहीं होते, हिंदुओं का विनाश निश्चित है।"
ठीक यही आभास और अनुभव अटल बिहारी वाजपेयी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद होने लगे थे, लेकिन उस समय मेरी समझ इतनी नहीं थी। हालांकि हिंदू धर्म के प्रति मेरी छटपटाहट तब भी यही थी जो आज है। लेकिन उस समय की परिस्थितियां वर्तमान से थोड़ी सी भिन्न भी थीं।
घोर वामपंथ के उस भयानक दौर में भी हिंदुओं की आवाज बुलंद करने वाले सीताराम गोयल जी द्वारा लिखित किताबों में से एक "मैं हिंदू कैसे बना" को पढ़ने पर लगता है कि उनकी आवाज आज भी उतनी ही प्रामाणिक हैं। गोयल जी संघ के मुख पत्र "द ऑर्गनाइज" के चीफ एडिटर रहे और कई लेख लिख चुके थे।
दुर्गियाना माता के इस मंदिर के प्रांगण में जो एक पेड़ है, उसके बारे में मान्यता है कि राजा राम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा पकड़ने के उपरांत हनुमान जी को भी लव-कुश ने पकड़ कर इसी में बांध दिया था।
आध्यात्मिक ऊर्जा चाहिए तो दुर्गियाना माता मंदिर आइए अजय चौहान | अमृतसर में स्थित दुर्गियाना माता मंदिर माता दुर्गा (Durgiana Mata Temple in Amritsar) का एक बहुत ही प्रसिद्ध शक्ति स्थल है। .....
भारत में भी बड़े पैमाने पर यही वैक्सीन लगाई गई है। और उसके परिणाम भी आने लग गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में खुद केंद्र सरकार ने कहा था कि हमने किसी को भी जबरजस्ती कोरोना के टिके लगाने को नहीं कहा था जबकि सरकार के द्वारा ही इसकी अनिवार्यता भी कर दी गई थी।
भले ही इसको स्वदेशी उत्पादन कह कर प्रचारित किया गया था लेकिन "सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया" खुद मानता है कि कोविशील्ड पूरी तरह से एक विदेशी कोरोना टिका है। इस बात का भी खुलासा हो चुका है कि इसमें बिल गेट्स फाउंडेशन ने भी भारीभरकर फण्ड किया था फंड किया था।
एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ओर से कोविड-19 महामारी के दौरान विकसित कोविशील्ड का उत्पादन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की ओर से किया गया था। भारत में भी बड़े पैमाने पर ये वैक्सीन लगाई गई है।
हरिहर मंदिर के अतिरिक्त सम्भल में तीन और प्रसिद्ध शिवलिंग भी हैं, जिसमें से जो पूर्व दिशा में है वह चन्द्रशेखर महादेव, उत्तर में भुवनेश्वर महादेव और दक्षिण में सम्भलेश्वर महादेव के नाम से जाने जाते हैं।
यहां स्वयं ब्रह्याजी ने की थी शिवलिंग की स्थापना | History of Sambhal अजय चौहान || उत्तर प्रदेश का जिला सम्भल (History of Sambhal in Uttar Pradesh), एक ऐसा नगर है जिसको लेकर हजारों सालों का इतिहास, पौराणिक मान्.....
धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥
जिस व्यक्ति में उसका मूलधर्म (सनातन) नहीं है वह पशु के समान है। जैसे की संघ के सेकुलरवादी लोग।
आशा राम बापू जी को इस वृद्धावस्था में कांग्रेस-बीजेपी की सरकारों ने जिस तरह से न्याय से वंचित रखा हैं। ये एक सोचा समझा राजनीतिक षड्यन्त्र हैं।
संतश्री आसाराम जी के समर्थन में उतरा एकम् सनातन भारत दल एकम् सनातन भारत दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मा० अंकुर शर्मा जी आज पार्टी के जम्मू कार्यालय में संतश्री आसाराम जी बापू ...
शीरध्वज राजा 'जनक' का नाम था।
जबकि 'जनक' तो उनकी वंशावली थी, नाम नहीं।
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मृत्यु और नींद में अंतर
नींद में आत्मा पावर सर्किट में बनी रहती है। वह केवल अपने एक बिंदु को सुप्त करती है, जो अनुभूत कराता है। जबकि मृत्यु में दो स्थिति होती है -
१. आत्मा शरीर को छोड़ देती है, क्योंकि पावर सर्किट नष्ट हो जाता है।
२. शरीर पावर सर्किट से अलग हो जाता है और पावर सर्किट सूक्ष्म होने के कारण अनुभूति से परे हो जाता है।
नींद में शरीर क्रियाशील रहता है, केवल चेतना शून्य बनी रहती है, जबकि मृत्यु में सभी बिंदु मृत हो जाते हैं, शरीर जड़ हो जाता है।
साभार - "मृत्यु के बाद" (पेज 147)
उसने लिंग को करीब से देखा तो पाया कि लिंग की दाहिनी आंख से कुछ रिस रहा है। उसने उस आंख में जड़ी-बूटी लगाई ताकि वह ठीक हो सके लेकिन उससे और रक्त आने लगा।
शिवभक्त कन्नप्पा नयनार की कथा एक मशहूर धनुर्धर थिम्मन एक दिन शिकार के लिए गए। जंगल में उन्हें एक मंदिर मिला, जिसमें शिवलिंग था। थिम्मन के मन में श...
अलवर की गोमांस मंडी में 600 गायों की हत्या, होम डिलीवरी का खुलासा!
February 19, 2024 (Team News Danka)
राजस्थान के अलवर में बीफ मार्केट खुलने से सनसनी मच गई है. राजस्थान की भजनलाल सरकार ने घाटियों में सालों से चल रहे बीफ मार्केट के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है. गोहत्या के मामले की जानकारी मिलने के बाद अलवर जिले के किशनगढ़बास के ब्रिसंगपुर गांव में गोहत्या के मामले में पुलिस महानिरीक्षक उमेशचंद दत्ता किशनगढ़बास पहुंचे और भारी पुलिस बल के साथ सर्च अभियान चलाया. पुलिस ने किशनगढ़बास क्षेत्र और आसपास के कई गांवों में सर्च अभियान चलाया. साथ ही, जिस इलाके में गोकशी का कारोबार चल रहा था, वहां के बीट कांस्टेबल समेत चार पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है.
हिंदुस्तान लाइव की खबर के मुताबिक, निलंबित पुलिसकर्मियों में एएसआई ज्ञान चंद, बीट कांस्टेबल स्वयं प्रकाश, रविकात और हेड कांस्टेबल रघुवीर शामिल हैं। जब इस जगह पर चल रहे बीफ बाजार की तस्वीरें अखबार में छपीं तो राजस्थान में हंगामा मच गया। महानिरीक्षक उमेशचंद दत्ता ने खुद अपनी पुलिस टीमों के साथ छापेमारी की. इस बार उस जगह पर गोमांस के अवशेष भी मिले हैं और उसे जांच के लिए भेजा गया है. बताया जा रहा है कि इस छापेमारी में कई लोगों को हिरासत में लिया गया है. साथ ही 12 दोपहिया वाहन और एक पिकअप भी जब्त किया गया है.
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, यह गोमांस मंडी अलवर के किशनगढ़बास थाना क्षेत्र में चल रही थी। बिरसंगपुर के पास स्थित रुंध गिदवाड़ा की घाटियों में दिनदहाड़े गोवंश का वध किया जाता था। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि यहां हर महीने 600 से अधिक गायों का वध किया जाता था। वे मांस खरीदने आते थे। साथ ही मेवात के करीब 50 गांवों में मांस की होम डिलीवरी भी की जाती थी।
किशनगढ़बास थाने की पुलिस को इस बाजार की पूरी जानकारी थी. लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, पुलिस पर आरोप लगा. कहा जाता है कि अलवर से 60 किमी दूर इस इलाके में बीफ बिरयानी भी बेची जाती है। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि यहां कुछ लोग मांस और खाल बेचकर महीने में चार लाख रुपये से ज्यादा कमा रहे हैं।
इस बीच पुलिस ने कार्रवाई शुरू कर दी है. बताया जा रहा है कि पुलिस की कार्रवाई से गांव के लगभग सभी पुरुष भाग गए हैं. गांव में सिर्फ महिलाएं, बच्चे और बूढ़े ही हैं. अब तक कई लोगों को हिरासत में लिया गया है और चार पुलिसकर्मी को भी निलंबित कर दिया गया है.
अलवर की गोमांस मंडी में 600 गायों की हत्या, होम डिलीवरी का खुलासा!
February 19, 2024 (Team News Danka)
राजस्थान के अलवर में बीफ मार्केट खुलने से सनसनी मच गई है. राजस्थान की भजनलाल सरकार ने घाटियों में सालों से चल रहे बीफ मार्केट के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है. गोहत्या के मामले की जानकारी मिलने के बाद अलवर जिले के किशनगढ़बास के ब्रिसंगपुर गांव में गोहत्या के मामले में पुलिस महानिरीक्षक उमेशचंद दत्ता किशनगढ़बास पहुंचे और भारी पुलिस बल के साथ सर्च अभियान चलाया. पुलिस ने किशनगढ़बास क्षेत्र और आसपास के कई गांवों में सर्च अभियान चलाया. साथ ही, जिस इलाके में गोकशी का कारोबार चल रहा था, वहां के बीट कांस्टेबल समेत चार पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है.
हिंदुस्तान लाइव की खबर के मुताबिक, निलंबित पुलिसकर्मियों में एएसआई ज्ञान चंद, बीट कांस्टेबल स्वयं प्रकाश, रविकात और हेड कांस्टेबल रघुवीर शामिल हैं। जब इस जगह पर चल रहे बीफ बाजार की तस्वीरें अखबार में छपीं तो राजस्थान में हंगामा मच गया। महानिरीक्षक उमेशचंद दत्ता ने खुद अपनी पुलिस टीमों के साथ छापेमारी की. इस बार उस जगह पर गोमांस के अवशेष भी मिले हैं और उसे जांच के लिए भेजा गया है. बताया जा रहा है कि इस छापेमारी में कई लोगों को हिरासत में लिया गया है. साथ ही 12 दोपहिया वाहन और एक पिकअप भी जब्त किया गया है.
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, यह गोमांस मंडी अलवर के किशनगढ़बास थाना क्षेत्र में चल रही थी। बिरसंगपुर के पास स्थित रुंध गिदवाड़ा की घाटियों में दिनदहाड़े गोवंश का वध किया जाता था। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि यहां हर महीने 600 से अधिक गायों का वध किया जाता था। वे मांस खरीदने आते थे। साथ ही मेवात के करीब 50 गांवों में मांस की होम डिलीवरी भी की जाती थी।
किशनगढ़बास थाने की पुलिस को इस बाजार की पूरी जानकारी थी. लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, पुलिस पर आरोप लगा. कहा जाता है कि अलवर से 60 किमी दूर इस इलाके में बीफ बिरयानी भी बेची जाती है। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि यहां कुछ लोग मांस और खाल बेचकर महीने में चार लाख रुपये से ज्यादा कमा रहे हैं।
इस बीच पुलिस ने कार्रवाई शुरू कर दी है. बताया जा रहा है कि पुलिस की कार्रवाई से गांव के लगभग सभी पुरुष भाग गए हैं. गांव में सिर्फ महिलाएं, बच्चे और बूढ़े ही हैं. अब तक कई लोगों को हिरासत में लिया गया है और चार पुलिसकर्मी को भी निलंबित कर दिया गया है.
आज (शुक्रवार 16 फरवरी) माँ नर्मदा जयंती प्राकट्योत्सव है। मान्यता है कि इसी तिथि पर मां नर्मदा का जन्म हुआ था। आज के दिन नर्मदा नदी में स्नान, दीपदान और पूजा-पाठ करने का महत्व है। इस अवसर पर ग्राम मोतलसिर (जिला रायसेनरायसेन) में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्री अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज ने नर्मदा के तट पर बैठ करके माँ नर्मदा का पूजन किया। इस अवसर उनके साथ प्रसिद्ध कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर भी रहे।
स्वयं हम या हमारी सरकारें अपने मूल धर्म का न तो प्रचार करते हैं और न ही उसके खिलाफ हो रहे षड्यंत्रों को रोक पाते हैं और न ही उसका प्रतिकार कर पाते हैं इसलिए अन्य धर्मी अर्थात विधर्मी हम पर हावी हो जाते हैं। जबकि अब्राहमिक विचारधारा अपने धर्म का खूब प्रचार करती है और
सनातन धर्म से कोई नाता नहीं है दुबई के इस नए मंदिर का अजय चौहान || दुबई में जिस हिंदू मंदिर (Hindu temple in the UAE) के उद्घाटन का शोर और प्रचार हो रहा है उसके विषय में यह ध्यान दें कि यह ....
एक राम रत्न, चार भारत रत्न
स्वर्गीय पी वी नरसिम्हा राव जी (पूर्व प्रधानमंत्री) द्वारा 1992 के बाबरी विध्वंस के मुख्य नायक और CBI के मुख्य आरोपी संतोष दूबे जी के लिए न केवल 50,000₹ देकर सहायता की गई थी, बल्कि यह भी आश्वासन दिया था कि ढांचा तोड़ने के लिए 5 घंटे का समय भी मिलेगा, इस बीच तुम्हें कोई सुरक्षाबल हाथ नहीं लगाएगा, और उसके बाद उनके द्वारा यह भी सुनिश्चित किया गया था कि अगले 36 घंटों में उन सभी कार सेवकों को अयोध्या से बाहर निकालने के लिए सुरक्षित रेल सेवा देना था।
हालाँकि उस कार सेवा में हमारे चारों शंकरचार्य जी भी इन सभी पुरस्कारों से ऊपर हैं किन्तु उन्हें भी इस अवसर पर याद किया ही जाना चाहिए, क्योंकि उनका भी राम काज में सबसे महत्वपूर्ण योगदान था। शंकराचार्यों की सहायता और संतोष दूबे जी के श्रम से ही पी वी नरसिम्हा राव जी ने बाबरी विध्वंस को अन्ज़ाम दिया था। ज्योतिर्मठ के वर्तमान शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द जी और उनके गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का योगदान भी 1992 के उस बाबरी विध्वंस में याद रखना चाहिए।
स्वरूपानंद सरस्वती जी ने मस्जिद दो ढहाने के लिए मुख्य आरोपी संतोष दूबे जी की टीम और कार सेवा में लगे उन सभी 5,000 शिव सैनिकों को न सिर्फ विभिन्न हथियार दिए बल्कि प्रशिक्षण भी दिलवाया था कि किस प्रका से और कैसे उस ढाँचे को ढहाना है और कौन किस प्रकार से वहाँ बाधा बन सकता है और उनसे निपटने के लिए तलवारों के दम पर कैसे रोका जा सकता है।
कभी-कभी कुछ अच्छे कार्य ईश्वर किसी से भी करवा सकता है। और इस बार के लिए पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय पी वी नरसिम्हा राव जी के नाम की घोषणा की गई। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को भारतरत्न देने के लिए भारत सरकार को धन्यवाद। 🙏
शस्त्रविहीन भारत माता की अवधारणा बिल्कुल आधुनिक है। यह हमारी दुर्गा माता के हाथों से शस्त्र हटाकर हमें नपुंसकता बोध से भरने के लिए पहले कांग्रेसियों और बाद में संघियों की चली चाल है।
‘भारत माता’ का उल्लेख किसी वेद-पुराण में क्यों नहीं हैं? मुझे प्रसन्नता है कि भारत की पहचान और भारत का नाम जिस महाराजा भरत से हमारे पुराणों में दर्ज है, उनके प्रति जागरूकता ...
गाय बनी राष्ट्रमाता
प्रयागराज के रामा गौ संसद् से शंकराचार्यों द्वारा घोषणा
Cow became the Mother of the Nation
मुझे प्रसन्नता है कि भारत की पहचान और भारत का नाम जिस महाराजा भरत से हमारे पुराणों में दर्ज है, उनके प्रति जागरूकता लाने का हम मुट्ठी भर सनातनियों ने मिलकर जो लगातार प्रयास किया है, वो धीरे-धीरे ही सही लेकिन रंग ला रहा है। कल भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी को एक हिंदू संगठन के कार्यक्रम में इसका सामना करना पड़ा!
'भारत माता' हमारे किसी वेद-पुराण में नहीं हैं। अथर्ववेद का पृथ्वी सुक्त का तात्पर्य समस्त भूमि से है, न कि भारत राष्ट्र से। अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में है 'माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः'। अर्थात धरती हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं। संघी भूमि देवी की जगह 'भारत माता' के रूप में इसी की मनमानी व्याख्या करते हैं। जबकि पुराणों में स्पष्ट लिखा है कि महाराजा भरत के नाम से जंबू द्वीप के इस हिस्से का नाम भारत पड़ा।
पहली बार 1873 के दौरान किरन चंद्र बनर्जी के लिखे नाटक ‘भारत माता’ से 'भारत माता' अस्तित्व में आई और यहीं से ‘भारत माता की जय’ के नारे की शुरुआत हुई। इसके तीन साल बाद ही 7 नवंबर 1876 में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने संस्कृत-बांग्ला में 'वंदे मातरम् ' गीत की रचना की। बाद में भ्रमवश 'वंदे मातरम्' को ही 'भारत माता' का उद्गम स्रोत मानते हुए दोनों का घालमेल कर दिया गया।
इसका मूर्त रूप 1936 में वाराणसी में भारत माता के पहले मंदिर की स्थापना के रूप में सामने आया। इसे शिव प्रसाद गुप्ता ने बनवाया था। इस मंदिर का उद्घाटन महात्मा गांधी ने किया।
शस्त्रविहीन भारत माता की अवधारणा बिल्कुल आधुनिक है। यह हमारी दुर्गा माता के हाथों से शस्त्र हटाकर हमें नपुंसकता बोध से भरने के लिए पहले कांग्रेसियों और बाद में संघियों की चली चाल है।
अब्राहमिकों का पहला प्रहार स्त्री जाति पर ही होता है। हमें आक्रमण झेलने वाला बनाए रखने के लिए शस्त्रविहीन भारत माता की अवधारणा संघियों के अनुरूप है। जबकि महाराजा भरत बहुत वीर और संपूर्ण भारतवर्ष पर शासन करने वाले राजा थे। उनके पुरुषत्व से दैदिप्त भारतवर्ष को 'भारत माता' बनाकर हिंदुओं को क्लीव बनाने के राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा है यह 'भारत माता' नामक कल्ट!
अतः हिंदुओं अपने पुरुषत्व को पहचानो और 'जय भारत' का उद्घोष करो। मुझे प्रसन्नता है कि अब इन संघियों के बहकावे में आने से मुट्ठी भर ही सही, लेकिन सनातनी हिंदू बच रहे हैं। जय भारत, जयतु भारत!
बहुत दिनों के बाद हमारे किसी न्यायालय (मद्रास हाईकोर्ट) ने हिंदुओं के पक्ष में एक अच्छा कदम उठाया है। लगता है माननीय जज साहब ने ऑक्सफोर्ड में नहीं बल्कि किसी गुरुकुल में शिक्षा ली है। तभी तो उसका असर यहां दिख रहा है। उनका धन्यवाद।
लेकिन क्या हमारी हिंदूवादी सरकार इस पर अमल करेगी?
खबर के अनुसार मद्रास हाईकोर्ट का एक बड़ा फैसला कुछ यूं है कि -
"मंदिर में गैर-हिन्दुओ का प्रवेश वर्जित है।"
"सभी मंदिरों के बाहर बोर्ड लगाकर लिखें यहां गैर-हिंदुओं को अंदर आने की अनुमति नहीं है।"
मंदिर परिसर पिकनिक स्पॉट नहीं है।
: मद्रास हाईकोर्ट
दरअसल, न्यायाधीश ने गैर-हिंदुओं के एक समूह द्वारा तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर को पिकनिक स्थल मानने और इसके परिसर में मांसाहारी भोजन खाने के बारे में रिपोर्टों का उल्लेख किया। उन्होंने एक अखबार की रिपोर्ट का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि दूसरे धर्म के लोगों के एक समूह ने अपने धर्मग्रंथ के साथ मदुरै के मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर में प्रवेश किया, गर्भगृह के पास गए और प्रार्थना करने की कोशिश की।
न्यायमूर्ति श्रीमथी ने कहा कि ऐसी घटनाएं संविधान के तहत हिंदुओं को दिए गए मौलिक अधिकारों में पूर्ण हस्तक्षेप के समान हैं।
कुछ तो याद होगा ही....
वर्ष 2019 में हुए रामजन्म भूमि के निर्णायक फैसले में हिन्दुओं के पक्ष में सारे तथ्य सन 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णायक निर्णय में ही आ चुके थे, जिसे 2019 में यथावत सुप्रीम कोर्ट ने माना है, जबकि ASI के तथ्यों को कोर्ट ने तो न के बराबर ही माना था। परंतु फैसले के बाद भारतीय मीडिया की गलत रिपोर्टिंग और किसी षड्यंत्र के कारण ये तथ्य आमजन का पहुंच ही नहीं सके। आम जनता इतना भारी भरकम निर्णय पढ़ नहीं सकती, इसीलिए मीडिया की तरफ से अनेक झूठ आज सच बनाकर पेश कर दिए हैं और आज के लोग उसी गलत को सच मान कर चल रहे हैं।
हैरानी की बात है कि रामभद्राचार्य जी ने अदालत में रामचरित मानस का जो भी उदाहरण दिया वह भी नहीं माना गया था, वे जवाब नहीं दे पाए। इसलिए वे इस फैसले में मात्र एक गवाह के तौर पर ही दर्ज हैं। जबकि इतने बड़े संत होकर भी वे स्वयं और उनके अनुयायी भी आज भी एक यही झूठ लेकर चल रहे हैं कि उन्हीं की बदौलत राम मंदिर का फैसला आया है।
दरअसल, जिन पूर्व IPS और पटना हनुमान मंदिर के संचालक श्री किशोर कुणाल जी ने चारों पीठों के शंकराचार्यों के साथ मिलकर रामजन्मभूमि पर एक बहुत बड़ा और ऐतिहासिक शोधकार्य कर एक बड़ी थिसिस लिखी और फिर राम जन्मभूमि को बचाने के लिए सन 2010 में वर्तमान शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेशवरानन्द जी को लेकर कई दिनों तक अदालत के चक्कर काटे तब जाकर सन 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वो फैसला दिया जिसके आधार पर 2019 में यथावत सुप्रीम कोर्ट ने भी उसी को माना और खानापूर्ति के तौर पर कुछ लोगों को उपस्थित करते-करते समय बिताते रहे और फिर निर्णय दे दिया।
दरअसल, पूर्व IPS और पटना हनुमान मंदिर के संचालक श्री किशोर कुणाल जी के गुरु थे द्वारका और ज्योतिष पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी। वह उनके पास गये और कहा कि यदि हिंदू पक्ष अपना प्रमाण ही नहीं देगा तो हम केस हार जाएंगे? शंकराचार्य जी ने उनके साथ अपने वकील P.N. मिश्रा को लगाया और किशोर कुणाल की थिसिस को मिश्रा जी ने कोर्ट में रखा। किशोर कुणाल ने अपनी थिसिस की भूमिका में इस वषय में कृतज्ञता के साथ लिखा है। किशोर कुणाल की यह थिसिस प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित भी हो चुकी है। और 2010 के सभी समाचार पत्रों में वह सच सामने भी आ चूका है, लेकिन पता नहीं क्यों और कैसे आजकल वो सब दब चुका है और एक नई आंधी चल रही है जिसकी कोई निश्चित दिशा और लक्ष्य नहीं है।
सन 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट और फिर 2019 में भी सुप्रीम ने सबसे अधिक समय बहस के लिए शंकराचार्य जी के वकील श्री P.N. मिश्रा को ही दिया, क्योंकि हिंदुओं के पक्ष में वे जो प्रमाण प्रस्तुत कर रहे थे, अदालत भी उससे आश्चर्यचकित थी। जस्टिस चंद्रचूड़ ने तो बकायदा पी.एन.मिश्रा का नाम लेकर भरी अदालत में कहा कि आपके कारण हमें नयी-नयी जानकारियां प्राप्त हो रही हैं।
शंकराचार्य जी की सहायता से लिखी गई किशोर कुणाल की उस थिसिस की महत्ता देखिए कि उसकी भूमिका भी बाद में स्वयं एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने लिखी है। किशोर कुणाल की उस थीसिस को ही अदालत ने हर बार संज्ञान में लिया, जिससे उन सब प्रश्नों का उत्तर मिल गया, जिसे लेकर मुस्लिम पक्ष कोर्ट के अंदर लगातार सवाल उठाते थे, और वो हिंदू पक्ष जवाब नहीं दे पा रहा था जो सरकारों की तरफ से लड़ रहा था, जिसके बाद ही स्वयं शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी सामने आये और किशोर कुणाल की सहायता से इसे जीत सके।
कोर्ट में मुस्लिम न्यायाधीश ने अपने आर्डर में स्पष्ट लिखा है कि मुस्लिम और हिंदू, दोनों पक्ष इसे बाबरी मस्जिद साबित नहीं कर पाए। दोनों पक्ष बाद में इस पर सहमत दिखे कि वह मंदिर ही था, जिसे तोड़ा गया। और ऐसा सिर्फ किशोर कुणाल और शंकराचार्य जी के वकील पी.एन.मिश्रा जी के कारण हो सका।
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