Pujya Shree Govind Sharan Ji Maharaj
A multilingual, mesmeric young spiritual guru presenting Sanatana and Veda in scientific way.
पूज्य श्री गोविंद शरण जी महाराज भागवत कथा के वक्ता और आध्यात्मिक गुरु हैं। श्री गोविंद शरण जी महाराज मधुर संकीर्तन गायक और विनम्र मानवतावादी हैं।आप रामानंदाचार्य परम्परा के श्री संप्रदाय के वैष्णव संत,श्रीमद्भागवत एवम् अन्य पुराणों के सरस वक्ता तथा अपनी मधुर गायकी के माध्यम से प्रेममयी कथा का वाचन कर प्रेम रस में बांधने वाले कथावाचक हैं, और अपने प्रियजनों बीच शरण जी महाराज के रूप में लोकप्रिय हैं।
भक्त अभय होता है।
भक्त प्रत्येक दशा में हर्षित रहता है,अपने भगवान की कृपा को ही देखा करता है।अनिष्ट करने वाले को भी प्रणाम करता है।भयभीत कभी नहीं होता।
भजन का अर्थ ही है सेवा करना और सेवा भक्त ही करता है।भक्त निष्कामी होता है,पुरुषार्थी होता है,वीर होता है।
वह यही चाहता है कि मैं बारम्बार जन्म ग्रहण करूं और शरीर, मन, वाणी, इन्द्रियों से सदा - सर्वदा केवल भगवान की सेवा करता रहूं।
।।जय सीताराम।।
।। जय जय श्री गुरुदेव भगवान।।
जिस तरह दो और दो चार होते हैं,उसी तरह कर्मों के निश्चित फल हमारे सामने आते हैं -भले ही उनके साकार रूप लेने में कुछ देर लग जाय।
लोक में हम दो विरोधी धाराएं चलती देखते हैं - एक शक्ति की और दूसरी अशक्ति की।
एक पंक्ति में धनवान खड़े हैं,दूसरी में धनहीन;कुछ के विशाल भवन खड़े हैं,कुछ को झोंपड़ी भी प्राप्त नहीं है।
जगत् के ऐश्वर्य पाकर भी उन्हें निरंतर मानसिक अशांति रहती है और बहुत से लोग उनसे विहीन होकर भी संतुष्ट रहते हैं।
रोगों से कराहने और भाग्य को कोसने वालों को भी देखा जा सकता है।समाज का अभिशाप सहन कर हड्डियों का ढांचा बनने वालों की भी कमी नहीं है।
परिस्थितियों का रोना रोने वाले और दुःखों तथा चिंताओं की दावानल में जलने वालों का भी अभाव नहीं है।
जो ज्ञानी हैं, वे जानते हैं कि जो भी दुःख या सुख के चित्र हमारे सामने आ रहे हैं उस प्रत्येक चित्र के पीछे उसका कारण निहित है।बिना कारण के कार्य संभव नहीं है।
प्रकृति किसी का पक्षपात नहीं करती और ना किसी का विरोध ही करती है;वह तो समता की देवी है।उसके राज्य में जो जैसा कार्य करता है,उसे वैसा ही फल देती है।
जो नियम व्यवस्था जानकर उसके अनुसार चलता है,उसे वह सुख देती है और नियम भंग करने वाले को दुःख।
फिर दुःख आने पर रोना कैसा?
दुःख आने पर यह जानना चाहिए कि अवश्य हमने किसी प्राकृतिक नियम का उल्लघंन किया है।
उसकी खोज करके उसका पालन करना आरंभ कर देना चाहिए।वह दुःख सुख में परिणत हो जाएगा।
।।जय सीताराम।।
।।जय जय श्री गुरुदेव भगवान।।
अभिमान कभी - कभी अच्छा भी हो जाता है,पर शर्त यह है कि उसके साथ स्व जुड़ा हुआ हो।
तात्त्पर्य स्वाभिमान से है।
स्वाभिमान जीवित रखना भी बड़ी जिम्मेदारी है साहब!
सबसे नहीं हो पाता।
जरा - सी चूक, और सदा के लिए नष्ट हो जाती है।
हम जीवन में हर एक फैसला सही लेते हैं,पर कभी - कभी थोड़ी सी नासमझी में,या फिर किसी बड़ी जिम्मेदारी से भागने के क्रम में,अंतर्मन की प्रतिष्ठा को कहीं ताख पर रख एक बड़ी गलती कर बैठते हैं,जिसकी फिर कभी कोई भरपाई नहीं हो पाती।
सौ बार सोचिए कुछ करने से पहले, सौ बार में भी बात न बनी हुई मालूम पड़े तो 2- 4 बार और सोचिए,लेकिन स्वाभिमान जीवित राखिए,उसे किनारे न कीजिए।
फिर चाहे इसके लिए आपको कितना ही बड़ा त्याग क्यों न करना पड़ जाए।
।। जय सीताराम।।
।। जय जय श्री गुरुदेव भगवान।।
सागर की कोई सीमा नहीं होती।
परिणाम,लक्ष्यहीन और अंतहीन जीवन।
इसके विपरीत,अनुशासित नदी अपनी मर्यादा और सीमा में बंधी हुई, चलते - चलते मीलों दूर पड़े अपने अभेद्य लक्ष्य को प्राप्त करती है।
व्यक्ति विशेष की अपनी - अपनी सीमाएं होती हैं,अपनी मर्यादा होती है,जो उसे एक लक्ष्य की ओर निरंतर अग्रसर करती जाती है।
सीमा बंधन को जन्म देती है,जो हर किसी को पसंद आए यह आवश्यक नहीं।
किसी एक व्यक्ति को अन्य के जीवन में ढोंग और दिखावा लगने वाली ये सीमाएं उस अगले व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन की अर्जित की हुई संपत्ति हो सकती है।बहुत संभव है कि उसने अपने जीवन काल में इन मर्यादाओं और अनुशासन के अतिरिक्त और कुछ भी न कमाया हो।
अतः हमें हर किसी के व्यक्तित्व का सम्मान करना चाहिए,चाहे वह दिखने में ढोंग ही क्यूं न लगे।
।। जय सीताराम।।
।। जय जय श्री गुरुदेव भगवान।।
सत्या सम्बन्धाः कालम् आदरं च विहाय किमपि न याचन्ते।
।।जय सीताराम।।
।। जय जय श्री गुरुदेव भगवान।।
इष्ट एक होते हैं।
ठीक वैसे ही जैसे पिता एक,और गुरु एक।
सेवा सबकी हो किन्तु
साधना इष्ट की हो तो अति उत्तम।
साधन प्रदाता भी इष्ट ही होते हैं।
अन्यान्य केवल आत्मसंतुष्टि प्रदान कर सकते हैं।
वैसे ही जैसे रिश्तेदार कई होते हैं,सभी आपकी शुभचिंता करेंगे,किन्तु भरण - पोषण कर्त्ता तो केवल पिता ही होते हैं।उनके अलावा आपके जीवन नैया की पतवार संभालने की जिम्मेदारी कौन लेता है साहब!
।।जय सीताराम।।
।। जय जय श्री गुरुदेव भगवान।।
।। जय सीताराम।।
।। जय जय श्री गुरुदेव भगवान।।
आज के मंगल दर्शन।
ठाकुर श्री गिरिराज महाराज,श्री शरणम् सेवा आश्रम।
Click here to claim your Sponsored Listing.
Videos (show all)
Category
Contact the public figure
Telephone
Website
Address
Godda
814133