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2002 से 2021 के बीच करीब 1.4 अरब लोगों पर सूखे की मार पड़ी और 21,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। दूसरी ओर, बाढ़ ने 1.6 अरब लोगों को प्रभावित किया और इसकी चपेट में आकर इसी अवधि में एक लाख से अधिक लोगों की मौत हुई।
आंकड़ों की जुबानी
आंकड़ों की जुबानी
#पीआईबी_न्यूज
आलोक शुक्ला को गोल्डमैन एन्वायरमेंट पुरस्कार
29 अप्रैल, 2024 को छतीसगढ़ के पर्यावरणविद आलोक शुक्ला को 35वें गोल्डमैन एन्वायरमेंट पुरस्कार (2024) से सम्मानित किया गया।
❖ इन्हें यह पुरस्कार छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य के जंगलों को बचाने के प्रयासों के लिए प्रदान किया गया है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने #पद्मभूषण से सम्मानित किया:
🏆 प्रो. (डॉ.) तेजस मधुसूदन पटेल (मेडिसिन)
🏆दत्तात्रेय अंबादास मयालू (कला)
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने चिकित्सा के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रोफेसर (डॉ.) तेजस मधुसूदन पटेल को 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया।
वह एक प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ हैं जो इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी में अग्रणी काम के लिए जाने जाते हैं।
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती को कला के क्षेत्र में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया
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Uppcs Mains Topic - AI के अनुप्रयोग - #तकनीकी Pcs Pathshala Pcspathshala Everyone Pcs हिंदी Raghu Baba
सी-डॉट और आईआईटी, जोधपुर ने "एआई के उपयोग से 5जी और उससे आगे के नेटवर्क में स्वचालित सेवा प्रबंधन" के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
यह प्रौद्योगिकी 5जी और उससे आगे के नेटवर्क की समय की महत्वपूर्ण सेवाओं के नेटवर्क नियोजन, सृजन और प्रबंधन में मूल्यवान अभिज्ञान प्रदान करेगी ।
भारत सरकार के दूरसंचार विभाग (डीओटी) के प्रमुख दूरसंचार अनुसंधान एवं विकास केंद्र सी-डॉट और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर ने "एआई का उपयोग करके 5जी और उससे आगे के नेटवर्क में स्वचालित सेवा प्रबंधन" के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस समझौते पर डीओटी के टेलीकॉम टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट फंड (TTDF) के तहत हस्ताक्षर किए गए हैं, जिसे ग्रामीण एवं सुदूरवर्ती क्षेत्रों में किफायती ब्रॉडबैंड और मोबाइल सेवाओं को सक्षम करने के लिए प्रौद्योगिकी डिजाइन, विकास, दूरसंचार उत्पादों के व्यावसायीकरण और समाधान में कार्यरत घरेलू कंपनियों और संस्थानों को वित्त पोषण सहायता प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
इसका मुख्य उद्देश्य 5जी जैसे नेटवर्क में सृजित हो रही निरंतर जानकारी का उपयोग करके स्वचालित नेटवर्क प्रबंधन, गलती का पता लगाने और निदान तकनीकों के लिए एआई ढांचे को विकसित करना है। यह सेवा स्मार्ट मीटरिंग, रिमोट से संचालित वाहनों आदि जैसे विशिष्ट एप्लिकेशन के संयोजन में विकसित स्वचालित नेटवर्क प्रबंधन और स्लाइसिंग तकनीकों के प्रदर्शन के लिए एक वास्तविक समय 5जी और उससे आगे टेस्टबैड (ओ-आरएएन के अनुपालन में) स्थापित करेगी।
जिससे 5जी और 6जी टेलीकॉम नेटवर्क प्रबंधन में क्रांति लाने और सेवा की गुणवत्ता (क्यूओएस) में सुधार लाने के उद्देश्य से उन्नत अनुसंधान और विकास पहल को बढ़ावा मिलेगा। अत्याधुनिक एआई प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाकर, हमारी टीम स्वचालित नेटवर्क प्रबंधन समाधानों के निर्माण का नेतृत्व करेगी, जो विलंब में कमी लाने और उच्च-विश्वसनीयता प्रदर्शन सुनिश्चित करते हैं, जिससे नए 5जी और 6जी एप्लिकेशन वर्टिकल जैसे रिमोट संचालित वाहन और स्मार्ट सिटी आदि के विकास को सक्षम बनाए जा सकेगा।”
सी-डॉट और आईआईटी-जोधपुर ने बताया कि इस परियोजना के सफल समापन से परिवहन प्रणालियों, स्मार्ट शहरों के क्षेत्रों में नए उपयोग के मामले सक्षम होंगे और इससे भारत को भविष्य के 6जी दूरसंचार मानकों में बेहतर योगदान में मदद मिलेगी।
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ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के आंकड़ों के मुताबिक, 2001 से 2023 के बीच भारत का 23 लाख हेक्टेयर वृक्ष आवरण कम हो गया. जानिए सबसे ज्यादा कमी किन राज्यों में देखी गई. ➡
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Source - p.dw.com
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भारत में तेजी से घट रहा है वृक्ष आवरण – DW – 23.04.2024 ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के आंकड़ों के मुताबिक, 2001 से 2023 के बीच भारत का 23 लाख हेक्टेयर वृक्ष आवरण कम हो गया. जानिए सबसे ज्याद...
Forest fire
उत्तराखंड: अप्रैल में जंगल में आग की घटनाएं बढ़ने की वजह लोकसभा चुनाव तो नहीं? चुनाव में वन कर्मचारियों की तैनाती को भी जंगल में आग की घटनाएं बढ़ने का कारण बताया जा रहा है
Sipri report
दुनिया का सैन्य खर्च अपने सर्वोच्च स्तर पर – DW – 22.04.2024 दुनिया भर में सेनाओं और हथियारों पर फिलहाल जितना खर्च हो रहा है, उतना अब तक कभी नहीं हुआ. 2023 में इसने एक नया रिकॉर्ड क.....
आज औपचारिक रूप में 22 अप्रैल को पूरा विश्व पृथ्वी दिवस के रूप में मना रहा है।। सदियों पूर्व अथर्ववेद में एक पूरा का पूरा अध्याय पृथ्वीसूक्त के रूप में है। जहां संपूर्ण पृथ्वी को माता के रूप में महिमन्वित करते हुए उसके संरक्षण, संवर्धन और सम्पूजन से संबंधित मंत्र हैं। आज जब चारों तरफ ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी तप रही है । मानव सहित सारे प्राणी झुलस रहे हैं,तब हमें पृथ्वी दिवस की सूझ रही है। हमें अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित "तेन त्यक्तेन भुंजीथा "के रूप में स्थापित संपोषणीय विकास की गौरवशाली परंपरा का अनुगमन करना होगा । अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में घोषित किया गया है कि यह धरती , धेनु के समान संपूर्ण प्राणियों का अपने दूध से पोषण करती है । औद्योगीकरण की अंध गति से गतिमान मानव पृथ्वी का खून चूसने लगा है ।परिणाम है ग्लोबल वार्मिंग, ग्रीनहाउस उत्सर्जन ,जैव विविधता विनाश ,तरह-तरह के प्रदूषण। अपनी प्राचीन समृद्धिशाली विरासत को अपनाते हुए हमें "माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः" के आत्मीयता पूर्ण संबन्ध को अपनाना होगा।।तभी बेटा पोषित होगा और धरती माता शस्यश्यामला व समृद्ध।।
Source - डाउन टू अर्थ
Topic - coral bleaching
Gs paper- 3
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नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान की वजह से दुनिया चौथी वैश्विक कोरल ब्लीचिंग घटना का सामना कर रही है। यह एक ऐसी घटना है जिसमें ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ से लेकर हिन्द महासागर में तंजानिया, इंडोनेशिया तक फैली दुनिया की रंगीन मूंगा चट्टानें सफेद होती जा रही हैं।
गौरतलब है कि पिछले दस वर्षों में यह दूसरा मौका है जब इस तरह की घटना सामने आई है। वहीं अब तक इस तरह की चार घटनाएं रिकॉर्ड की गई हैं। वैश्विक स्तर पर कोरल ब्लीचिंग यानी मूंगा विरंजन की पहली घटना 1980 के दशक की शुरूआत में दर्ज की गई थी। इन घटनाओं का प्रभाव सैकड़ों से हजारों किलोमीटर तक दर्ज किया जाता है।
एनओएए और इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशिएटिव (आईसीआरआई) ने संयुक्त रूप से वैश्विक स्तर पर हो रही इस कोरल ब्लीचिंग की घटना की घोषणा की है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कोरल ब्लीचिंग यानी मूंगा विरंजन की किसी घटना को वैश्विक घटना के रूप में तभी वर्गीकृत किया जाता है जब 365 दिनों के दौरान अटलांटिक, प्रशांत और भारतीय तीनों महासागरों में ब्लीचिंग की महत्वपूर्ण घटनाएं दर्ज की जाती हैं।
कोरल रीफ वॉच के मुताबिक 2023 के मध्य से कम से कम 53 देशों और क्षेत्रों ने अपनी प्रवाल भित्तियों में बड़े पैमाने पर ब्लीचिंग का अनुभव किया है, क्योंकि जलवायु में आते बदलावों की वजह से समुद्र की सतह का पानी गर्म हो गया है। इस बारे में जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2023 की शुरुआत से दुनिया भर के कई उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मूंगा विरंजन (कोरल ब्लीचिंग) की घटना देखी गई है।
इन क्षेत्रों में फ्लोरिडा, कैरेबियन, ब्राजील, पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में मेक्सिको, अल साल्वाडोर, कोस्टा रिका, पनामा और कोलंबिया के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ और दक्षिण प्रशांत के बड़े हिस्से जिनमें फिजी, वानुअतु, तुवालु, किरिबाती, समोआ और फ्रेंच पोलिनेशिया आदि शामिल हैं।
इसके साथ ही कोरल ब्लीचिंग का सामना करने वाले क्षेत्रों में लाल सागर, फारस और अदन की खाड़ी के बड़े हिस्से शामिल हैं। एनओएए ने तंजानिया, केन्या, मॉरीशस, सेशेल्स, ट्रोमेलिन, मैयट और इंडोनेशिया के पश्चिमी तट सहित हिंद महासागर बेसिन के अन्य क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हो रही ब्लीचिंग की पुष्टि की है।
इस बारे में एनओएए की कोरल रीफ वॉच (सीआरडब्ल्यू) के समन्वयक, डॉक्टर डेरेक मंजेलो ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि, “फरवरी 2023 और अप्रैल 2024 के बीच, सभी प्रमुख महासागरों के उत्तरी और दक्षिणी दोनों गोलार्धों में कोरल ब्लीचिंग की महत्वपूर्ण घटनाएं दर्ज की गई है।“ उनके मुताबिक वैश्विक महासागर के 54 फीसदी से अधिक रीफ क्षेत्रों में तापमान ब्लीचिंग के स्तर तक पहुंच गया है।
बढ़ते तापमान का दंश झेलती प्रवाल भित्तियां
उन्होंने जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि कि जैसे-जैसे समुद्र का तापमान बढ़ रहा है। उसके साथ ही कोरल ब्लीचिंग की इन घटनाओं का होना बेहद आम होता जा रहा है। इसके साथ ही यह घटनाएं पहले से ज्यादा गंभीर होती जा रही हैं।
उनके मुताबिक जब ब्लीचिंग की यह घटनाएं गंभीर या लंबी होती हैं, तो वे प्रवाल भित्तियों की मृत्यु का कारण बन सकती हैं। इससे उन समुदायों पर असर पड़ता है जो अपनी आजीविका के लिए इन मूंगा चट्टानों पर निर्भर हैं।
रिपोर्ट के अनुसार विशेष रूप से व्यापक पैमाने पर होने वाली कोरल ब्लीचिंग की घटनाएं अर्थव्यवस्था, आजीविका और खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ उससे जुड़ी अन्य चीजों को भी प्रभावित करती हैं। हालांकि इस ब्लीचिंग की वजह से हमेशां इन प्रवाल भित्तियों की मृत्यु नहीं होती। ऐसे में यदि इसकी वजह से होने वाला तनाव कम हो जाता है तो यह प्रवाल भित्तियां दोबारा ठीक हो सकती हैं। ऐसे में यह पारिस्थितिकी तंत्र सम्बन्धी आवश्यक सेवाएं प्रदान करना आगे भी जारी रख सकती हैं।
एनओएए के कोरल रीफ कंजर्वेशन प्रोग्राम (सीआरसीपी) के निदेशक जेनिफर कोस का कहना है कि, "प्रवाल भित्तियों को लेकर जलवायु मॉडल के पूर्वानुमान वर्षों से सुझाव दे रहे हैं कि जैसे-जैसे समुद्र गर्म होगा, वैसे-वैसे ब्लीचिंग प्रभाव, उसकी आवृत्ति और परिमाण बढ़ेगा।"
वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि यदि बढ़ते उत्सर्जन को न रोका गया तो सदी के अंत तक पूरी यह खूबसूरत प्रवाल भित्तियां पूरी तरह विलुप्त हो जाएंगी। आशंका है कि अगले दो दशकों में इनकी 70 से 90 फीसदी आबादी खत्म हो सकती है।
जानिए क्या होता है कोरल ब्लीचिंग
बता दें समुद्र में बढ़ते तापमान की वजह से दुनिया भर में कोरल्स यानी प्रवाल भित्तियां जिन्हें मूंगे की चट्टानों के नाम से भी जाना जाता है वो अनिश्चितताओं का सामना कर रही हैं। ब्लीचिंग की घटना के दौरान पानी में बढ़ती गर्मी से मूंगे पर जोर पड़ता है, जिससे उनके अंदर रहने वाले सहजीवी शैवाल उनसे बाहर निकल जाते हैं।
यह शैवाल कोरल्स को रंग और ऊर्जा प्रदान करते हैं। ऐसे में इसकी वजह से आमतौर पर रंग बिरंगी दिखने वाली यह प्रवाल भित्तियां सफेद पड़ने लगती हैं, इसी को ‘कोरल ब्लीचिंग’ कहा जाता है।
हालांकि यह सफेद प्रवाल भित्तियां मृत नहीं होती, लेकिन उनके मरने की सम्भावना सबसे अधिक होती है। अत्यधिक ब्लीचिंग अक्सर इन प्रवाल भित्तियों में बीमारी और मृत्यु का कारण बन सकती है। देखा जाए तो आज जलवायु परिवर्तन वजह से दुनिया भर में ब्लीचिंग की यह घटनाएं बेहद आम, गंभीर और व्यापक होती जा रही हैं।
इसी तरह 2014 से 2017 के बीच सामने आई वैश्विक कोरल ब्लीचिंग की घटना रिकॉर्ड की अब तक की सबसे लंबी, व्यापक घटना थी, जिसने सबसे ज्यादा कोरल्स को नुकसान पहुंचाया था। आज यह घटनाएं उन क्षेत्रों में भी प्रवाल भित्तियों को अपना निशाना बना रही हैं, जहां पहले इनसे खतरा नहीं था।
गौरतलब है कि बढ़ता तापमान और जलवायु में आता बदलाव पहले ही इन प्रवाल भित्तियों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा रहा है। स्टेटस ऑफ कोरल रीफ्स ऑफ द वर्ल्ड: 2020 रिपोर्ट के मुताबिक 2009 से 2018 के बीच करीब 11,700 वर्ग किलोमीटर में फैली प्रवाल भित्तियां अब पूरी तरह खत्म हो चुकी हैं, जिसके लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं।
वहीं दुनिया के दस क्षेत्रों में मौजूद प्रवाल भित्तियों के विश्लेषण से पता चला है कि जिस तरह से समुद्र के तापमान में वृद्धि हो रही है उससे कोरल ब्लीचिंग की घटनाओं में वृद्धि हुई है, यह प्रवाल भित्तियों को हो रहे नुकसान का सबसे बड़ा कारण है।
ऐसी ही घटना 2023 में फ्लोरिडा में देखने को मिली जब वहां आया लू का कहर बेहद घातक था। यह घटना पहले शुरू हुई और लम्बे समय तक चली, साथ ही इस घटना का असर पहले से कहीं ज्यादा गंभीर था।
पर्यावरण के साथ-साथ इंसानों के लिए क्यों खास हैं यह प्रवाल भित्तियां
एनओएए ने जानकारी दी है कि उसने फ्लोरिडा में प्रवाल भित्तियों पर पड़े वैश्विक जलवायु परिवर्तन और स्थानीय तनाव के नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण प्रगति की है। इसमें कोरल नर्सरी को गहरे, ठंडे पानी में भेजना और अन्य क्षेत्रों में कोरल की रक्षा के लिए सनशेड तैनात करना शामिल है।
प्रवाल भित्तियां एक खूबसूरत प्रजाति है जो न केवल समुद्री परिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही यह हम इंसानों के लिए भी बेहद मायने रखती हैं| देखा जाए तो 100 से भी ज्यादा देशों में फैली यह भित्तियां समुद्र तल के सिर्फ 0.2 फीसदी भाग को ही कवर करती हैं, पर यह समुद्र में रहने वाली 25 फीसदी प्रजातियों को आधार प्रदान करती हैं। अनुमान है कि यह करीब 830,000 से अधिक प्रजातियों को आवास प्रदान करती हैं।
मूंगा चट्टानें पृथ्वी की सबसे विविध पारिस्थितिक तंत्रों में से एक हैं। जो वैश्विक स्तर पर सालाना 9.8 लाख करोड़ डॉलर के बराबर महत्वपूर्ण पारिस्थितिक, आर्थिक और सामाजिक लाभ प्रदान करती हैं।
वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की गणना के अनुसार धरती पर करीब 85 करोड़ लोग खाद्य सुरक्षा व जीविका के लिए प्रवाल-आधारित इकोसिस्टम पर निर्भर हैं। करीब 100 देश प्रवाल भित्ति की वजह से मौजूद जैव विविधिता के कारण मछली पालन, पर्यटन और तटीय सुरक्षा का लाभ पा रहे हैं।
इन 100 देशों में से एक चौथाई के सकल घरेलू उत्पाद का 15 फीसदी पर्यटन पर निर्भर है। हालांकि आज यह चट्टानें जलवायु परिवर्तन, बेतहाशा पकड़ी जा रही मछलियां और धरती पर इंसानी गतिविधियों के कारण बढ़ते प्रदूषण की मार झेल रही हैं।
यही वजह है कि एनओएए कोरल रीफ कंजर्वेशन प्रोग्राम (सीआरसीपी) ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए इनके प्रबंधन से जुड़ी प्रथाओं को अपनाया है। साथ ही 2018 में बनाई रणनीति में कोरल की बहाली पर अधिक जोर दिया है।
2019 में इनके प्रबंधन और बहाली को लेकर एक रिपोर्ट भी जारी की गई थी। इसमें इनके प्रबंधन और बहाली के लिए सिफारिश की थी। प्रेस विज्ञप्ति में इस बात की भी उम्मीद जताई गई है कि 2024 के मध्य तक अल नीनो, ला नीना में परिवर्तित हो सकता है। यह बदलाव भूमध्यरेखीय प्रशांत जल के तापमान में गिरावट का कारण बन सकता है।
उम्मीद है कि इसकी वजह से प्रवाल भित्तियों पर गर्मी का तनाव कम हो सकता है। इसके अलावा हिंद महासागर डिपोल का एक प्रत्याशित नकारात्मक चरण पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में पानी के ठंडा होने की वजह बन सकता है, जो इन प्रवाल भित्तियों के लिए मददगार साबित हो सकता है।
Topic - professional ethics
Gs paper 4
एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, नेस्ले कंपनी गरीब देशों में छोटे बच्चों के लिए बेचने वाले दूध और अनाज के प्रोडक्ट्स में ज्यादा चीनी डालती है. वहीं यूरोपीय देशों में बेचने के लिए बने इन्हीं प्रोडक्ट्स में चीनी का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं करती.
स्विट्डरलैंड के ज्यूरिख की संस्था 'इंटरनेशनल बेबी फूड एक्शन नेटवर्क' और 'पब्लिक आई' ने मिलकर इस बात का पता लगाया है. इन्होंने एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका से नेस्ले के प्रोडक्ट्स बेल्जियम की एक लैब में जांच के लिए भेजे थे. इनमें सेरेलैक और नीडो जैसे बच्चों के खाने की चीजें भी शामिल थीं. जांच में पाया गया कि इन इलाकों में बिकने वाले सेरेलैक के सभी प्रोडक्ट्स में चीनी मिलाई जाती है.
संस्था का कहना है कि उन्होंने चीनी की मिलावट पर इसलिए ध्यान दिया क्योंकि छोटी उम्र में ही बच्चों को चीनी देना उनके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है. इससे उन्हें भविष्य में मोटापे, डायबिटीज, हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की यूरोपीय गाइडलाइंस के मुताबिक भी तीन साल से छोटी उम्र के बच्चों के खाने में चीनी का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए.
एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, नेस्ले कंपनी गरीब देशों में छोटे बच्चों के लिए बेचने वाले दूध और अनाज के प्रोडक्ट्स में ज्यादा चीनी डालती है. वहीं यूरोपीय देशों में बेचने के लिए बने इन्हीं प्रोडक्ट्स में चीनी का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं करती.
स्विट्डरलैंड के ज्यूरिख की संस्था 'इंटरनेशनल बेबी फूड एक्शन नेटवर्क' और 'पब्लिक आई' ने मिलकर इस बात का पता लगाया है. इन्होंने एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका से नेस्ले के प्रोडक्ट्स बेल्जियम की एक लैब में जांच के लिए भेजे थे. इनमें सेरेलैक और नीडो जैसे बच्चों के खाने की चीजें भी शामिल थीं. जांच में पाया गया कि इन इलाकों में बिकने वाले सेरेलैक के सभी प्रोडक्ट्स में चीनी मिलाई जाती है.
संस्था का कहना है कि उन्होंने चीनी की मिलावट पर इसलिए ध्यान दिया क्योंकि छोटी उम्र में ही बच्चों को चीनी देना उनके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है. इससे उन्हें भविष्य में मोटापे, डायबिटीज, हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की यूरोपीय गाइडलाइंस के मुताबिक भी तीन साल से छोटी उम्र के बच्चों के खाने में चीनी का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए.
आंकड़ों की जुबानी
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Saluting the dedication and service of the Civil Services fraternity on .
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भारत में आतंकवादी गतिविधियों और जलवायु में आते बदलावों को लेकर किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जिस तरह से मौसम के मिजाज में बदलाव आ रहा है, वो भारत में आतंकवादी गतिविधियों के स्थान को प्रभावित कर रहा है। यह अध्ययन एडिलेड और रटगर्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल ऑफ एप्लाइड सिक्योरिटी रिसर्च में प्रकाशित हुए हैं।
पूरी रिपोर्ट कमेंट बॉक्स में देख सकते हैं
धरती पर पांच बार महाविनाश हो चुका है, जिसे सामूहिक विलुप्ति अंग्रेजी में मास एक्सटिशंन कहा जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन दिनों जिस तरह कई प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं, उससे लगता है कि हम छठी सामूहिक विलुप्ति की ओर बढ़ने लगे हैं। इस विषय पर विस्तृत लेख पढ़ना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में जाएं
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ओडिशा की संबलपुरी साड़ियां अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती हैं। इस साड़ी को जो चीज अलग करती है, वह है हाथ से बुनी गई शिल्प कौशल। इस साड़ी की कलात्मकता ने खासी छाप छोड़ी है।
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Today current affairs
27, March 2024 prelims booster in hindi /current affairs for uppcs/ro/aro 2024
9 डैश लाइन
भारत के सूखाग्रस्त क्षेत्र बुन्देलखण्ड के दो गांव मींगनी और हिम्मतपुरा में मनरेगा का उपयोग करके पानी की कमी और सूखे को मात देने में कामयाब रहे।
दोनों गांवों ने मनरेगा का उपयोग करके चेकडैम और अन्य जल संचयन संरचनाएं बनाईं। इससे न केवल भूखमरी और पलायन में कमी आई बल्कि गांवों का सामाजिक एवं आर्थिक स्तर भी बेहतर हुआ ।
देखिए डाउन टू अर्थ की एक और वीडियो स्टोरी
डाउन टू अर्थ
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Economics for Uppcs/RO/ARO PRELIMS 2024
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Day-1,Economics for UPPCS/ROARO 2024 दोस्तों आज से हम UPPCS PRELIMS/RO/ARO PRELIMS से दोस्तों आज से हम UPPCS PRELIMS/RO/ARO PRELIMS से सम्बंधित स्टैटिक पार्ट को भी कवर किया...
मंगलगिरी शहर में निर्मित मंगलगिरी साड़ी, आंध्र प्रदेश का एक लोकप्रिय वस्त्र है। ये हथकरघे पर बुनी साधारण सूती साड़ियां होती हैं, जिनमें जटिल डिज़ाइन बुने जाते हैं। ज़री के धागों से अलंकृत अपनी अनूठी किनारियों के कारण आकर्षक दिखती हैं।
LOCAL WINDS
• Chinook : Hot and dry snow eater wind in northern slope of Rockies.
• Fohn : Hot & dry in northern slopes of Alps
• Sirocco : Warm, dry & dusty also known as blood rain.
• Harmatan: Wheather becomes dry & pleasant in shara desert. Also known as Doctor in Guinea.
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• Fohn : Hot & dry in northern slopes of Alps
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Gonda Oudh, 271204
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