Raj kishore mishra
साहित्य से अत्यधिक लगाव रहने के करण स?
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H3048 team presents Episode #152 of with Sh Raj Kishore Mishra, Writer live on https://www.facebook.com/www.happy4u.org page on 07 March 2024, Thursday at 05:00 PM.
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Disclaimer: Team encourages and appreciates talents and wish them higher success in their chosen fields. All program on is free of any charge under Personal Social Responsibility (PSR).
चंद्रयान -3
सघन व्योम दिस चन्द्रयान,
हुंकार करैत ओ उड़ल,
देखि सगर भारतवर्षक,
नयन सभहक जूड़ल।
अश्वमेधक हवन-कुंड सन,
अकास मे धुआँ ऊठल,
क्षितिज पर नक्षत्र चमकल,
वन्दन मे दुनिआ जूटल।
अंतरिक्ष-क्षेत्र मे अपना देशक
हस्ताक्षर बनल चन्द्रयान,
अपन गाम मे स्वागत करथिन,
भारतवर्ष केँ, चन्द्रभगवान्।
रामू, अख्तर, हरजीत, एन्टोनी,
सबहक एकहि अभिलाषा,
शुभ-शुभ कऽ चन्द्रयान पहुँचय,
गन्तव्य लेल बड़ आशा।
पृथ्वीक प्रदक्षिणा पूर्ण कऽ ,
चान दिस बढ़ि गेल आब यान,
दक्षिण ध्रुव पर पहुँचत, घूमत,
ओ जा कऽ देखत , लोक आन।
चन्द्रमा पर भारतवर्षक झण्डा गाड़त,
विज्ञान-जगक इतिहास मे,नव डाँड़ि पाड़त।
अछि नहि ओ दिन दूर ,
जखन चाने पर होएत चौरचन,
चौठीचानक दही, पुड़ुकिआ,
आ' पाड़ल जाएत अरिपन।
पृथ्वी-चन्द्रमा मे नोत-पिहानी,
पाहुन- परकक' होएत स्वागत,
पूरी- सनेसक मोटरी लऽ कऽ,
बहिन ओतय चान पर भागत।
अंतरिक्ष मे प्रतिध्वनित होइत चन्द्रयानक हुंकार ,
ओ अछि अनुसंधान-जगत् मे भारत के ललकार ।
नहि 'इसरो' टा के, सगर देश के,
चन्द्रयान पर गौरव , शान,
चन्ना-मामा दूर ने रहलाह,
चन्द्रलोक नहि रऽहल आन।
पृथ्वी ग्रहक ई शोध -दूत,
भारतवर्षक ई कीर्ति -पूत।
सोचियौ, फहरायत चन्द्रमा पर अपन तिरंगा,
एत्त सँ सभ ओहि मे देखब दिल्ली, दड़िभंगा।
भारतक डंका बाजि रहल अछि,
वसुधा सँ लऽ कऽ व्योम, चान,
नहि लालो ग्रह अछि अनचिन्हार ,
चाही परतच्छक कोन प्रमाण?
पानि ताकत, माटि ताकत,
पंचतत्त्व, जिनगीक सामान,
देआद बसत, गौँआ बसत,
तेँ ताकत दालि-भातक ओरिआन।
चमकैत विधु के चाननि मे,
सौंदर्य-बोध ओ स्वागत-गान,
डेगे -डेगे 'प्रज्ञान ' ताकत,
एत्तहु कोनो जिनगी -जान।
सोझे शून्य, भऽ शांत बैसल छथि चान- अंतरिक्ष,
आकि अपने ग्रह सन एतहु बसै छथि मानव, रिच्छ ?
पहिने तँ सांकेतिक भ्रमण,
मंत्रोच्चार सँ कराबथि पंडा,
आब तऽ सद्य: चन्द्रमा पर ,
फहराएत भारतक झण्डा।
एहि राष्ट्रक अजगुत ओ महान्
विज्ञानक अछि ई अनुष्ठान,
शशधर-आनन पर लिखि रहल
अछि विजय-गाथा, चन्द्रयान।
रचनाकार : राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
आप सभी सुधीजनों को नववर्ष २०२३ मंगलमय हो!
सादर प्रणाम।
कविता- कोरोना : एक वैश्विक महामारी
रचनाकार -राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
कोरोना : एक वैश्विक महामारी
धू-धू धधक रही हैं चिताएँ
जाग गया मसान का भाग ,
मानव-विपदा से व्याकुल होकर
डोल रहे हैं शेषनाग ।
शोकाकुल हैं दिक्पाल ,
गगन भी रोता है ,
यम का जगह-जगह
अभी पहरा होता है ।
नाच रहा है काल
मनुज के ऊपर ,
दिखता है , यमपाश
अब, सर्वत्र भू पर ।
पता नहीं , यह मृत्यु- डाकिनी
किसके घर दस्तक दे दे,
बना 'कोरोना ' काल-दंड
किनके प्राणों को जा भेदे ।
मँडरा रहे हैं गृद्ध ,श्वान,
नोंच रहे हैं मानव -शव ,
दिवा भयावह है उतनी ,
जितनी लगती है रैन , नीरव ।
उस शव का भाग्य-उदय होता ,
पाता जो समुचित संस्कार,
पार्थिव तन का तो नैसर्गिक
बनता ही है इतना अधिकार ।
कोकिल भी है ,मधुकर भी ,पर
ध्वनि एक सुनाई देती है ,
मृत्यु की घंटी बोल रही ,
न जाने कब ,प्राण हर लेती है ।
जीवन कितना विवश आज ,
असहाय ,घायल है ,
प्राण माँगता दान ,किन्तु
मौत ,नृशंसता-कायल है ।
पीपल -पात्ता-सा डोल रहा है जीवन ,
पता नहीं , कब आकार दैत्य निगल जाए ,
जब साँसों पर यम का पहरा हो ,
मर्जी उसकी , कब पाश में बाँध , निकल जाए ।
चारों ओर दिखता है केवल ,
नृशंस काल का तांडव ,
देता दिखाई अपशकुन ,
क्या देखे , युद्ध बाद पांडव ।
वायु -स्पंदन भी गाता है ,
शायद ,कोई मृत्यु -गीत ,
पग -पग पर बेताल नाचता ,
देखो , धरती पर की रीत ।
सदा,सूर्य ,स्वस्थ रहते हैं ,
सुंदर ,सोम समाचार है ,
नवग्रहों में फिर क्यों पृथ्वी
ही हो गई , बीमार है ?
निस्तेज हुई जाती है वसुधा ,
उज्झटित है संकट से ,
सोहाग कहीं न उजड़ जाए ,
डरती है किसी कपट से ।
काल का हुंकार सुनाई
देता है धरणी पर ,
स्पष्ट नहीं दिखता भविष्य
डगमग करती तरणी पर ।
किस अपराघ का प्रतिफल ,
भुगत रहा है मानव ?
ढोता कोई पाप मनुज कुल ,
शायद , वही बना दानव ।
इस सभ्यता का पाप कोई
स्यात् , फूटा मानव सिर पर ,
निकला है इससे कालकूट
भारी पड़ता जो जीवन पर ।
इस क्रूर परिस्थिति के लिए,
किस मस्तक लगना है कलंक ?
अपने दस्तावेज पर,
लिखेगा काल ,होकर निश्शंक ।
कपटी है, अदृश्य शत्रु ,
यह रूप बदलता रहता है,
मौके की रहती है तलाश,
जीवन को छलता रहता है ।
बोलो , कहाँ दुबक जाऊँ ?
वसुधा के किस कोने में ?
ज्ञात नहीं है , कबतक जीवन
बीते केवल रोने में ?
आगे देखूँ ,देखूँ पीछे,
मौत की ही त्रास है,
कितने परिवारों में तो अब ,
जीवन ,बस इतिहास है ।
इस कुटिल शत्रु का अंत
अवश्य ही निश्चित है,
छोड़ेगा कब ,विज्ञान इसे ?
जो , निदान हेतु समर्पित है ।
मानव-रक्त पीकर पिशाच,
करेगा तृप्त उदर कबतक ?
विज्ञान-विशारद आ रहे
लेकर उपचार , जो आवश्यक ।
सक्षम चिकित्सक का परामर्श
पालन पूर्णतया करें,
अधिकृत बचाव निर्देश धारण कर ,
दुश्मन से डटकर लड़ें ।
कविता - हिमालय यदि नहीं होता
रचनाकार - राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
हिमालय यदि नहीं होता
जम्बुद्वीप को यदि प्रकृति से,
गिरिराज का, वरदान न मिलता,
अनुमान करना है कठिन,
कितना बड़ा नुकसान होता।
जाह्नवी और कालिंदी,
कैसे निकलती, और बहती ,
देश की भौगोलिक -दशा ,
जो है अभी, कुछ और रहती।
मानसूनी आर्द्र हवा,
उत्तर दिशा में, कहाँ रुकती?
वर्षा बिना, उपजाऊ भूमि,
मरुभूमि बन गई होती।
एशिया के मध्य से जो ,
चलकर सर्द हवा आती ,
रोकता फिर कौन उसको?
ठंढी हवा, जो कँपकँपाती।
जब, मूर्छित हुए थे लक्ष्मण जी,
संजीवनी-रस कहाँ मिलता?
भूतेश का दालान कहाँ?
और, तांडव -नृत्य कहाँ होता?
कौन हिम का ताज पहन कर?
राष्ट्र का गौरव बढ़ाता,
होता अगर न विराट भूधर,
किस शृङ्ग का, कवि गीत गाता?
यक्षराज कुबेर की
अलकापुरी होती कहाँ पर?
दिव- अनुभूति कहाँ मिलती?
होता नहीं जब, मानसरोवर।
तपोभूमि, तप-कन्दरा,
पाते कहाँ तपसी, ऋषि?
पंगु हो जाती, हमारे
देश की,समृद्ध कृषि।
रवि -रश्मि से दिखता है जो
चिर धवल तुषार, कनक -उत्तंस,
होता नहीं शैलेश, तो,
फिर, हिम का कहाँ विराट वंश?
वसुधा पर अडिगता का कौन?
कौन, आत्मबल का उपमान?
बनता कौन तुंगिमा का?
मानदण्ड, गिरिवर समान।
पौरुष -ज्वाल का वह प्रतीक,
नग -केसरि की, अरि को ,दहाड़,
भारत का तुषार -शिरोभूषण,
वह अमूल्य ; नहीं, केवल पहाड़।
राष्ट्र -अस्मिता -अधिष्ठाता,
हिमालय, केवल, न भूगोल है,
संस्कृति का, स्वयं है पात्र वह,
भारत का, रत्न अनमोल है
कविता - धरती पर स्वर्ग कहाँ है?
रचनाकार - राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
धरती पर स्वर्ग कहाँ है?
जहाँ हिमालय खड़ा हुआ है,
हिम का ताज पहनकर,
गौरव पाता क्षितिज जहाँ पर,
जिसकी मिट्टी छूकर,
सुन्दर सुर में शांति -गीत
गाता वायु -स्पंदन,
जिसकी मिट्टी मस्तक पर,
लगती हो, जैसे चंदन,
गर्जन करता महासिंधु
नतमस्तक है जिस पद पर,
पास न होने से मलाल है
अंबर को निज कद पर,
रवि -रश्मियाँ कंचन -काया में ,
जहाँ विखर जाती है,
वसुन्धरा की छवि जहाँ पर,
खूब निखर आती है,
पत्थर में भी भगवान जहाँ,
दिख जाते, पूजे जाते हैं,
मिट्टी को' माटी 'नहीं, जहाँ,
माता कह उसे बुलाते हैं,
जहाँ, मनुज क्या? देव, समझते
दुर्लभ निज अवतार को,
विश्व ने देखा जहाँ से,
सभ्यता -विस्तार को,
तज स्वर्ग को, सुरसिंधु भी
बहने चला जिस भूमि पर,
वैवस्वती बहती जहाँ,
हुई इठलाती, निज उर्मि पर,
जिसके रज-कण पर बसा हुआ
होता है कोई तीर्थ, पवित्र,
खींचा हुआ है स्वर्ग -लोक का,
जहाँ अलौकिक पुण्य -चित्र
जहाँ शास्त्र की चर्चा करते,
निज चौपाल में, खग -गण,
जीवन -मृत्यु का मर्म समझने
ज्ञानी घूमते, वन -वन,
ज्ञान जहाँ व्यापार नहीं,
यह है पवित्र एक परम्परा,
गुरु के सम्मुख नहीं जहाँ,
होता कोई, छोटा -बड़ा,
शौर्य, अंकुरित होता है,
जहाँ की मिट्टी में स्वतः
वीरता की वाहवाही,
होती जगत् में है, अतः,
वसुधा का सुंदरतम भूखंड
अन्यत्र नहीं, वह भारत है,
जग का सबसे श्रेष्ठ राष्ट्र
वह देश, हमारा भारत है।
धरती पर है यदि स्वर्ग कहीं
वह देश भारत वर्ष है,
भूलोक में सुरलोक कहीं,
वह देश भारत वर्ष है।
कविता- कोशिश
रचनाकार- राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
जंक फूड
सैंडविच, बर्गर, पिज्जा ,
आलूदम, मैगी ,मोमोज ,
धिआ -पुता लेल एहि सँ नमहर,
होएत आर कोन भोज?
अल्लू चिप्स, बिस्कुट, केक,
रंग -विरंग के चॉकलेट,
परहेज ने कोनो , भेट जाइ जँ,
इएह सभ भरि-भरि पेट।
तेल मे खूब कऽ तरल पकोड़ा,
पनीरक टिक्का जोड़ा -जोड़ा।
'स्टार्टर' महक' खाद्य पदार्थ,
नवतुरिया केॅं,बिसेख आकर्षण,
जंक फूड लेल बेकल रहै छथि,
आ, चाहै छथि ,खन-खन ,दर्शन ।
कोल्डड्रिंक नहि एकतरहक,
बजार मे अनेकानेक,
ओहि के अलाबा, फल सभहक
भरल जूस ओ शेक।
जंक फूड के पैकिंग जेहने,
मुह मे सोअदगर अछि ओ तेहने।
भिन्न -भिन्न कंपनीक डिलीवरी ब्वाॅय ,
प्रसंस्कृत खाद्य केॅं परसैत जाय।
चिकित्सा विज्ञान अनुसार, आब
एकर सुनल जाए कुप्रभाव,
एहि भोजन मे ने पोषक तत्व,
आ,स्वास्थ्यक अहित करब स्वभाव।
अतिरिक्त बसा सँ,
कोलेस्ट्रॅाल बढ़त,
ऊपर स्तर ,
ब्लड -सुगर चढ़त।
जे सभ नीक लगैत छै मन के,
ओ सभ खतरा ,हृदय आ तन के।
भोजन ,जे अरुदा के छीनए,
ओकरा तऽ स्वास्थ्य सँ द्रोह ,
एहन अस्वास्थ्यकर खाद्य लेल,
किओ किए राखथि मोह?
मोन के तऽ नीक लागौ,
आ, लीवर, हृदय पर होउक आघात,
जिनगीक लेल, कोनो तरहेँ,
कहूने, भेलैक नीक ई बात?
देखए मे जे अछि नेनुआगर,
चहटगर आओर सोअदगर,
दूरहि सँ, हम करी प्रणाम,
नहि चाही पिज्जा, बर्गर।
जाहि भोजन सॅं उदर मे,
उठए धोनि ढेकार,
कोना ने कहिऔ खाद्य ओ
रुचिगर,मुदा बेकार?
जखने बारिक परसय आबए,
जंक फूड, कैंडी, कुकी,
पातक' ऊपर, हाथ बारिकऽ,
तत्क्षण, ओकरा रोकी।
भोजन मतलब,
संतुलित आहार,
डागदर सभ बाजथि,
बारम्बार।
भात, दालि, सलाद, सोहारी,
खाइ, फल, हरिअर तरकारी।
अगबे वसा, कार्बोहाइड्रेट,
स्वास्थ्य ने देत, बस भरि देत पेट।
विटामिन, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट,
जल ,वसा, आ खनिजक संतुलन ,
संतुलित आहार ,वएह भोजन अछि ,
दीर्घायु बनी, ई बसए मन सदिखन ।
जय हो, जय हो ,
संतुलित आहार ,
अरुदा भेटैत छै,
एही दरबार।
जंक फूड!
तोँ,
नहि छऽ गुड।
कविता - जंक फूड
रचनाकार : राज किशोर मिश्र
© सर्वाधिकार सुरक्षित : राज किशोर मिश्र
कविता- प्रदूषण
रचनाकार: राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
कविता- दीप
रचनाकार- राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
कविता- मन
रचनाकार: राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
कविता- यथार्थ
रचनाकार: राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
सम्माननीय पाठकगण,
आप सभी सुधीजनों को सूचित करते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है कि प्रतिष्ठित पत्रिका फॉक्स स्टोरी ( Fox story) ,Zee News के माध्यम से देश के एक सौ लोगों का चयन किया है, जिनका समाज और राष्ट्र की प्रगति में विशेष योगदान रहा है। और ,उनमें मेरा नाम भी सम्मिलित है । यह सुदिन आप लोगों की शुभकामना का परिणाम है ।
बहुत बहुत धन्यवाद,
प्रणाम।
https://zeenews.india.com/india/list-of-top-100-influential-indians-released-by-fox-story-india-2493042.html
कविता- भारतमाता
रचनाकार - राज किशोर मिश्र
सर्वधिकार सुरक्षित©
कविता- निर्धनता
रचनाकार- राज किशोर मिश्र
सर्वधिकार सुरक्षित ©
कविता- धुंध
रचनाकार: राज किशोर मिश्र
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कविता - सिन्धु- घाटी- सभ्यता
रचनाकार- राज किशोर मिश्र
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कविता- भारतवर्ष
रचनाकार: राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
कविता- चींटी
रचनाकार: राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
कविता: शहर
रचनाकार: राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
कविता: कोकिल
रचनाकार: राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
कविता : सड़क
रचनाकार: राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
कविता : चूल्हा
रचनाकार: राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
कविता- भूधर
रचनाकार- राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
कविता - शहर
रचनाकार- राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
महोदय / महोदया,
SAARC (सार्क) सम्मान की खबरें कुछ समाचार पत्रों में भी छपी थीं जिन्हें फेसबुक मंच पर प्रस्तुत कर रहा हूँ l
सादर नमस्कार
कविता- पत्थर
रचनाकार- राज किशोर मिश्र
सर्वाधिकार सुरक्षित ©
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Author/ Sahityakar/Techno-littérateur
परिचय :
नाम - राज किशोर मिश्र
मूल निवासी - मधुबनी (बिहार)
शैक्षणिक योग्यता - बी टेक ( विद्युत )
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Pulmonologist. Painter on sunday afternoons. Dreams of a TB free India. Completed her first novel - In a better place.
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Author's Introduction Kaavya Sirohi is a promising young author at the age of 6. "The Wishing Well" is the first of her series of short stories. Her love for writing short storie...
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Pearl Vohra Bhatia is a full time entrepreneur and mommy as well as part time blogger and writer.