Suraj Prakash Ojha
Sustainable Development and Social Engagement.
Vipaksh ka Ghoshna Patra...
साहेब : अगर तुम्हारे पास 20 बीघा खेत हैं तो क्या तुम उसका आधा 10 बीघा गरीबों को दे दोगे ?
भक्कू : हाँ दे देंगे…
साहेब : अगर तुम्हारे पास 2 घर हैं तो क्या तुम एक घर गरीबों को दे दोगे ?
भक्कू : हाँ दे देंगे…
साहेब : अगर तुम्हारे पास 2 Car हैं तो क्या तुम एक कार ग़रीब को दे दोगे ?
भक्कू : हाँ दे देंगे…
साहेब : अगर तुम्हारे पास बीड़ी का बंडल है तो क्या उनमें से 2 बीड़ी तुम अपने साथी को दे दोगे ?
भक्कू : नहीं, बीड़ी तो बिल्कुल नहीं देंगे… 😬
अब साहेब बहुत चकित हुए और उन्होंने पूछा कि तुम अपना खेत दे दोगे गरीबों को, घर दे दोगे, कार दे दोगे मगर अपनी बीड़ी क्यों नहीं दोगे ? इतना बड़ा-बड़ा बलिदान कर सकते हो और बीड़ी पर अटक गए ? आख़िर क्यों ?
भक्कू : ऐसा है कि हमारे पास न तो खेत हैं… न घर है और ना ही कार है। हमारे पास सिर्फ बीड़ी का बंडल ही है। 😂
एक बार में 4-4 अंडे????
2014 में तो विशुद्ध शाकाहारी थेl
क्या आम कैदियों को भी 4 अंडा मिलता है?
कल 90 वर्षीय शादीलाल जी वॉयलेट लाइन मेट्रो में अकेले सफर करते मिले। सीनियर सिटीजन की सीट पर उनके बगल में बैठने के बाद मुझे लगा वो कुछ बेचैन हैं।
बार बार वे मुझसे पूछते ये कौन सा स्टेशन है?
जब मैंने पूछा कि आपको जाना कहाँ है तो वो माथे पर हाथ रख कर बोले-" वही तो मैं भूल गया हूँ"
फिर आप जाएंगे कहाँ?"- मैंने हैरानी से पूछा।
शादी लाल बोले- "एक बड़ा सा स्टेशन है न ?"
मैंने- नई दिल्ली, राजीव चौक, कई नाम लिए, उन्होंने सबको नकार कर कहा-"ये नहीं, एक स्टेशन है न सेंटर में जहाँ गाड़ी बदलते हैं।"
मैंने पूछा-" सेंट्रल सेक्रेटेरिएट ?"
ख़ुशी से चमकते चेहरे से शादीलाल जी बोले-" जी हां, जीहां, थैंक्यू! थैंक्यू !"
मैंने पूछा- "सेन्ट्रल सेक्रेटेरिएट से किधर जाएंगे?"
"वो तो मुझे याद नही, आई एम नाइंटी इयर ओल्ड, कुछ आप बताइए।" पहले की सारी खुशी को अलविदा कह एकबार फिर शादी लाल पुरानी अवस्था में आ गए।
मैंने धैर्य से पूछा-" आप पहले गए हैं? कितनी देर लगती है?"
शादीलाल-" बस तुरंत आ जाता है।"
मैं ने कहा-" पटेल चौक?"
शादीलाल जी का चेहरा हज़ार वाट के बल्ब सा चमका,
-"बिल्कुल बिल्कुल, अब याद आ गया, पटेल चौक ही जाना है मुझे।"
मैंने एक स्लिप पर पटेल चौक लिख कर उनको दिया और कहा-"सेंट्रल सेक्रेटेरिएट आने वाला है, मेट्रो से बाहर निकल कर किसी को ये स्लिप दिखाइयेगा, वो सही मेट्रो में आपको बैठा देगा।"
शादी लाल जी ने दुआओं की बरसात करते हुए जब मेरा हाथ पकड़ कर दबाया, तो पता नही क्या हुआ, मैं उनके साथ साथ येलो लाइन मेट्रो तक न केवल चला आया बल्कि उसमे सवार हो उनको पटेल चौक तक छोड़ने भी चला गया।
"सम्हाल कर उतरिये, यही पटेल चौक है।" मैंने मेट्रो के दरवाजे पर रुकते हुए कहा।
शादीलाल जी उतरे, पर आगे बढ़ने की बजाय वापस मुड़ कर मेट्रो का दरवाज़ा बन्द होने और ट्रेन चलने तक मेरी ओर देखते हुए यूँ हाँथ हिलाते रहे मानो वे ही मुझे ट्रेन में बैठाने आये हों।
शादीलाल जी की समस्या समझने, निदान सोचने, एक मेट्रो से दूसरी में जाने और उनका अगला स्टेशन आने की पूरी प्रक्रिया ताबड़तोड़ 5 मिनट में ऐसी गतिमान हुई कि कई जिज्ञासाएं अनुत्तरित रहीं जैसे
इस उम्र में अकेले क्यों निकलना पड़ा ?
किससे मिलने की बेताबी में यूँ घर से निकाल पड़े ?
अभी भी बच्चों के साथ रहने का सौभाग्य है या नही?
ईश्वर ने कभी फिर मुलाक़ात कराई, तो ज़रूर पूछूँगा ।
( निवेदन: अगर आपके घर के कोई बुज़ुर्ग अकेले यात्रा करते हों तो उनको घर और गन्तव्य का पता, मोबाइल नम्बर लिख कर अवश्य देदें या गले मे टांग दें जिससे ज़रूरत पड़ने पर कोई उनकी सहायता कर सके)
इसे बिना पूछे शेयर करें, ताकि किसी और शादी लाल की मदद हो सक
Millaat BabaRamdeo dikh गए or ??
मुस्लिमों की एक संस्था है वक्फ लैबोरेट्रीज।
जो हमदर्द के नाम से कई प्रोडक्ट बनाती है, उसने अपने कुछ दवाओं के बारे में इतने बढ़ा चढ़ा के दावे किए हैं लेकिन आज तक किसी भी व्यक्ति ने उन दावों पर सवाल नहीं उठाया है।
उसकी एक टानिक है, जिसे वह सिंकारा के नाम से बेचती है।
वह कहती है कि आप इसे पीते ही एकदम जोश और स्फूर्ति से भर जाएंगे।
वृंदा करात
जो पतंजलि की हर दवाओं को तमाम लेबोरेटरीज में भेज कर उसका रिपोर्ट लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करती है, उन्होंने कभी भी सिंकारा पीकर, प्रेस कॉन्फ्रेंस करके, यह नहीं कहा कि, यही दवा पीकर मैं हाथ उठा उठा कर भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाल्लाह इंशाल्लाह के नारे लगाती हूं।
क्योंकि यह दवा यह टॉनिक मेरे अंदर जोश भर देती है ऐसा सिंकारा के बारे मे कभी नही कहा।
एक शरबत है रूह अफजा।
वक्फ लेब्रोटरी दावा करता है कि, इसमें ताजे गुलाब डाले गए है लेकिन क्या आज तक किसी ने लैब में परीक्षण करके यह पता लगाया कि इसमें सच में ताजे गुलाब डाले गए हैं या विदेशों से गुलाब का केमिकल एसेंस डाला गया है..?
एक सिरप है साफी
दावा करता है कि ये खून को पूरी तरह से साफ कर देता है मैंने आज तक मीडिया या सोशल मीडिया में कभी नहीं देखा, किसी ने उस पर सवाल उठाया हो।
आखिर इस साफी में ऐसी कौनसी चीज है जो ये खून को फिल्टर कर देती है ?
और अपने बड़े-बड़े दावों के समर्थन में, वक्फ लैबोरेटरी, यानी मुसलमानों की यह संस्था, कौन सी जांच रिपोर्ट का हवाला दे रही है ?
ऐसे ही एक और दवा है, रोगन बादाम।
इसके बारे में कम्पनी दावा करती है कि यह बादाम का अर्क, यानी जूस है।
और 100 ग्राम की सीसी यह 750 रूपये में बेचती है।
मेरा फिर वही सवाल है की, क्या किसी ने सवाल उठाया कि इसमे असली बादाम है या बादाम के एसेंस हैं..?
मैंने अपने एक मित्र से पूछा, तब उन्होंने बताया कि अगर आपको 100 ml बादाम का कंसंट्रेटेड एसेंस निकालना होगा, तो उसके लिए कम से कम आपको 5 किलो बादाम चाहिए।
अब आप 5 किलो बादाम की कीमत करीब ढाई से 3000 रूपये होगी और यह कंपनी आपको मात्र 700 रूपये मे 100 ml बादाम का एसेंस कैसे दे रही है..?
इसी तरह आप हमदर्द के सारे प्रोडक्ट देख लीजिए सिर्फ बड़े-बड़े दावे किए गए हैं कहीं कोई सच्चाई नहीं है।
आज तक किसी भी नेता ने, हमदर्द के दवाओं के बड़े-बड़े दावों पर कभी कोई सवाल नहीं उठाया है।
लेकिन
अगर पतंजलि कोई उत्पाद लांच करती है तो पूरा सोशल मीडिया, सारे नेता, सारे सेक्युलर, चीफ फार्मासिस्ट बनकर, ऐसे ज्ञान देते हैं जैसे उनसे बड़ा ज्ञानी इस धरती पर कोई नहीं है।
दरअसल
बाबा रामदेव का सबसे बड़ा अपराध यह है कि उन्होंने भगवा वस्त्र धारण किया है।
सोचिए रामदेव बाबा खुद एक ऐसे समुदाय से आते हैं जो ब्राम्हण नहीं है फिर भी यह दिलीप मंडल से लेकर बृंदा करात, सीताराम येचुरी, असदुद्दीन ओवैसी सब के सब उन पर इसलिए टूट पड़ते हैं क्योंकि उन्होंने भगवा धारण किया है।
हिन्दुओं अब आप ही बताओ आप को क्या करना चाहिये?
पिछले दिनों पड़ोस का एक लड़का शराब की तस्करी करते पकड़ा गया। अखबार में तस्वीर आई तो लोगों ने पूछना शुरू किया,"माटसाब! यह तो पहले आपके ही विद्यालय का छात्र था न?" उस दिन के बाद सप्ताह भर लजाये लजाये घूमते रहे। कोई माटसाब कह कर प्रणाम करता, तो भी लगता था कि चिढ़ा रहा है।
अभी कल ही इंस्टा पर एक रील दिखी। एक लड़का भोजपुरी गाने पर फूहड़ नृत्य कर रहा था। देखते ही याद आया, "अरे! यह तो फलाँ है.. तीन चार साल पहले ही तो विद्यालय से निकला है। अभी आठवीं या नौवीं में होगा... नाचने भी लगा? हद है।"
लड़का एक अच्छे परिवार का इकलौता बच्चा है। डेढ़ हजार फॉलोवर हो गए हैं, सौ के आसपास लोग लाइक कर रहे हैं। लड़का पढ़ाई छोड़ कर वीडियो बना रहा है। वैसे वह अकेला नहीं है, आस पड़ोस के दर्जनों लड़के फूहड़ गानों पर नाच नाच कर रील बना रहे हैं।
एक शिक्षक होने के नाते यह सब देख कर दुख होता है। कोई शिक्षक नहीं चाहता कि उसके बच्चे गलत राह पर चलें, पर दुर्भाग्य यह है कि गाँव देहात के हर शिक्षक को आजकल ऐसे ही विद्यार्थी मिल रहे हैं।
एक सप्ताह पहले की बात है, स्कूलों का रिजल्ट आया था। पड़ोस के एक सज्जन से लगने वाले लड़के के कम नम्बर आने पर चर्चा हुई तो एक दूसरे लड़के ने कहा, "नम्बर कैसे आएगा सर, ई तो दिन भर रील बनाता है।"
हमने आश्चर्यचकित हो कर पूछा, "अरे! इसके माँ-बाप नहीं रोकते? मैं इसके पापा से इसकी शिकायत करूँ क्या?" लड़का हँसने लगा। बोला, "उनसे कह कर क्या कर लेंगे सर, इसकी मम्मी खुद ही रील बनाती है, वो इसको क्या रोकेगी?"
कुछ वर्ष पहले तक जब किसी का बच्चा कुछ गलत करते पकड़ा जाता था तो गाँव समाज के लोग उसके माता-पिता से शिकायत करते थे। अब ऐसा नहीं होता। सभी समझ रहे हैं कि बच्चा जो कुछ भी कर रहा है वह माता-पिता की सहमति से ही कर रहा है। अब जब माता पिता ही बच्चों से शराब की तस्करी करवा रहे हों तो समाज क्या कर लेगा?
हमारी ओर पुलिस लगभग रोज ही दस-बीस लोगों को उत्तर प्रदेश से शराब की तस्करी करते पकड़ती और जेल भेजती है। उसमें अधिकांश अठारह वर्ष से कम आयु के बच्चे होते हैं। माता पिता को लगता है कि बच्चों पर पुलिस को संदेह कम होगा, सो उसी से करा लो। इस बात की कोई चिन्ता नहीं कि बच्चे का भविष्य बिगड़ रहा है, उन्हें बस अपने आज की पड़ी है, जल्दी से जल्दी अम्बानी बन जाने का नशा हावी है।
मेरे पूरे जिले में शायद आधा दर्जन लोग भी ऐसे नहीं होंगे, जो रील बना कर ठीक ठाक पैसा कमा रहे हों, पर रील बना कर रातों रात स्टार बन जाने का सपना देखने वालों की संख्या अब लाख छू रही होगी। सबको लगता है कि बस एक बार वायरल हो जाने भर की देर है, फिर तो आनन्द ही आनन्द...
लोगों को शायद भरम में जीना अच्छा लगने लगा है। पर एक शिक्षक के लिए यह देखना दुखद ही है। खैर...
आज के अखबार में फिर 2 लाख के मादक पदार्थ के साथ एक बीस साल के लड़के के पकड़े जाने की खबर है। मैं जानता हूँ, उस बच्चे का शिक्षक भले शर्मिंदा हो, उसके माता-पिता को शर्म नहीं आ रही होगी।
Sarvesh Kumar Tiwari
गोपालगंज, बिहार।
ब्रेनवास एक long term प्रैक्टिस है किसी special समुदाय को अपनी बात मनवाने का......
इसमे समय के साथ investment लगता है....
Political
Social
Economical
Religious
And last सबसे important किसी खास जाति के खिलाफ.......
"राम तेरी गंगा मैली" 1985 मे आई थी इस मूवी का प्रमुख Seen था एक मदद मांगने वाली औरत जिसे "काशी" के हरिश्चंद्र घाट से ले जाकर एक "पंडित" जी बलात्कार का प्रयास करते हैं...
और फिर अगले ही परिदृश्य मे एक मंदिर मे वही पंडित "हर हर महादेव ॐ नमः शिवाय" का जप करता है।
राम
काशी
गंगा
हरिश्चंद्र
सनातन के चार पायों का एक साथ खींच लिया।
और अपने चाचा ताऊ से पूछिएगा पूरे भारत मे इस पिक्चर के पोस्टर लगे थे....
सवा करोड़ के खर्चे मे बनी इस फिल्म पे बीस करोड़ का कारोबार किया था जो आज के हिसाब से लगभग पांच सौ करोड़ बैठता है।
और इस फिल्म के किसी भी हिस्से मे कोई भटका हुआ नौजवान नही था।
बॉलीवुड अपने आप मे एक मजहब है जिसने अपनी आधी उम्र सनातन को नीचा दिखाने मे बीता दिया है।
भूलते जा रहे हैं वैदिक कैलेंडर, रट लीजिए
हमारा नववर्ष चैत्र प्रतिपदा से आरंभ होता है।
1. चैत्र
2. वैशाख
3. ज्येष्ठ
4. आषाढ़
5. श्रावण
6. भाद्रपद
7. अश्विन
8. कार्तिक
9. मार्गशीर्ष
10. पौष
11. माघ
12. फाल्गुन
चैत्र मास ही हमारा प्रथम मास होता है, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष को नववर्ष मानते हैं। चैत्र मास अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मार्च-अप्रैल में आता है, चैत्र के बाद वैशाख मास आता है जो अप्रैल-मई के मध्य में आता है, ऐसे ही बाकी महीने आते हैं। फाल्गुन मास हमारा अंतिम मास है जो फरवरी-मार्च में आता है। फाल्गुन की अंतिम तिथि से वर्ष की समाप्ती हो जाती है, फिर अगला वर्ष चैत्र मास का पुन: तिथियों का आरम्भ होता है जिससे नववर्ष आरम्भ होता है।
हमारे समस्त वैदिक मास ( महीने ) का नाम 28 में से 12 नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं।
जिस मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर होता है उसी नक्षत्र के नाम पर उस मास का नाम हुआ।
1. चित्रा नक्षत्र से चैत्र मास
2. विशाखा नक्षत्र से वैशाख मास
3. ज्येष्ठा नक्षत्र से ज्येष्ठ मास
4. पूर्वाषाढा या उत्तराषाढा से आषाढ़
5. श्रावण नक्षत्र से श्रावण मास
6. पूर्वाभाद्रपद या उत्तराभाद्रपद से भाद्रपद
7. अश्विनी नक्षत्र से अश्विन मास
8. कृत्तिका नक्षत्र से कार्तिक मास
9. मृगशिरा नक्षत्र से मार्गशीर्ष मास
10. पुष्य नक्षत्र से पौष मास
11. माघा मास से माघ मास
12. पूर्वाफाल्गुनी या उत्तराफाल्गुनी से फाल्गुन मास
*नूतन वर्ष संवत 2081*
*भारतीय नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत 2081 की अग्रिम शुभकामनाएं*
दिनांक 9 अप्रैल को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत 2081 है जिस दिन से भारतीय नव वर्ष प्रारंभ हो रहा है।
*नूतन वर्ष मंगलमय हो*
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नूतन वर्ष का पृष्ठभूमि की छोटी जानकरी जिसपर हम सभी को गौरव महसूस होगा ।
🚩 इतिहास में इस प्रकार वर्णित है ,चैत्र शुक्ल प्रतिपदा...
🌞1. भगवान ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि का सर्जन...
🌞2. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक...
🌞3. माँ दुर्गा के नवरात्र व्रत का शुभारम्भ...
🌞4. प्रारम्भ युगाब्द (युधिष्ठिर संवत्) का आरम्भ..
🌞5. उज्जैनी सम्राट विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत्सर प्रारम्भ..
🌞6. शालिवाहन शक संवत् (भारत सरकार का राष्ट्रीय पंचांग) का प्रारंभ...
🌞7. भगवान झूलेलाल का अवतरण दिन..
🌞8. मत्स्यावतार दिवस..
🌞9 - डॉ॰केशवराव बलिरामराव हेडगेवार जन्मदिन ।
नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो। इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती हैं...!!! इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है । चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं ।
🚩कैसे मनाएं नूतन वर्ष...???
कार्यक्रम विविध हो सकते हैं कुछ निम्न हैं
1- मस्तक पर तिलक, भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य , शंखध्वनि, धार्मिक स्थलों पर, घरो मंदिरों गाँव, स्कूल, कालेज आदि सभी मुख्य प्रवेश द्वारों पर बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बाँध के भगवा ध्वजा फहराकर 2.सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन (कोरोना काल में पूर्ण परिवार व कुछ परिवार मिलकर कर सकते हैं) करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।
3.आस पास के व घर के मंदिरों की सफाई हो सज्जा हो , भगवा पताका लगे व शाम को दीप जलायें व आरती हो
हम सभी भारतीय संकल्प ले की, अपना महान हिंदू धर्म वाला भारतीय नव वर्ष 9 अप्रैल को बड़ी धूमधाम से मनाएंगे।
*अन्य जानकारियां*
🚩 नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो। इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती हैं...!!! इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है । चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं ।
🚩शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है । ‘उगादि‘ के दिन ही पंचांग तैयार होता है । महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक...दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग ‘ की रचना की थी ।
🚩वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्तों में गुड़ी पड़वा की गिनती होती है । इसी दिन भगवान श्री राम ने बालि के अत्याचारी शासन से प्रजा को मुक्ति दिलाई थी ।
🚩भारतीय नव वर्ष का प्रारंभ प्रतिपदा से ही क्यों...???
🚩 भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है ।
🚩आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्र सम्मत कालगणना व्यवहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है । इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है ।
🚩विक्रमी संवत किसी की संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है । हम इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं । यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं, ईस्वी या हिजरी सन की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है ।
🚩भारतीय गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थों में प्रकृति के शास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है ।
🚩प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है । ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की । यह भारतीयों की मान्यता है, इसलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नव वर्ष प्रारम्भ मानते हैं ।
🚩आज भी हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं । यह समय दो ऋतुओं का संधि काल है । प्रतीत होता है कि प्रकृति नव पल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है । मानव, पशु-पक्षी यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है ।
🚩इसी प्रतिपदा के दिन आज से उज्जैनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांता शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की । उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा ।
🚩महाराज विक्रमादित्य ने चैत्री प्रतिपदा के दिन से राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की । साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई । उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी ।
🚩महाराजा विक्रमादित्य ने भारत की ही नहीं, अपितु समस्त विश्व की सृष्टि की । सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया । इसी दिन को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक के रूप में मनाया गया ।
🚩यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है । इसी दिन महाराज युधिष्ठर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया ।
🚩आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धर्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है । यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है । हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में शक्ति संचय करते हैं ।
मुफ्तखोरों का मनोविज्ञान !
लाल झंडा पकड़े नेता ने कॉमरेडों से कहा: अगर तुम्हारे पास बीस-बीघा खेत है तो क्या तुम उसका आधा दस बीघा गरीबों को दे दोगे?
सारे कामरेड एक साथ बोले: हाँ दे देंगे!
नेता ने फिर कहा: अगर तुम्हारे पास दो घर हैं तो क्या तुम एक घर गरीबों को दे दोगे?
सारे कामरेड एक साथ बोले: हाँ दे देंगे!
नेता ने फिर कहा: अगर तुम्हारे पास दो कार हैं तो क्या तुम एक कार ग़रीब को दे दोगे?
सारे कामरेड एक साथ बोले: हाँ दे देंगे !
नेता ने फिर पूछा: अगर तुम्हारे पास बीड़ी का बंडल हैं तो क्या उनमें से दो बीड़ी तुम अपने साथी को दे दोगे?
सारे कामरेड एक साथ बोले: नहीं, बीड़ी तो बिल्कुल नहीं देंगे!
नेता बहुत चकित हुए और उन्होंने पूछा: तुम अपना खेत दे दोगे गरीबों को, घर दे दोगे, कार दे दोगे मगर अपनी बीड़ी क्यों नहीं दोगे? इतना बड़ा-बड़ा बलिदान कर सकते हो और बीड़ी पर अटक गए? आख़िर क्यों?
सारे कॉमरेड बोले: ऐसा है कि हमारे पास न तो खेत हैं, न घर है और ना ही कार है ! हमारे पास सिर्फ बीड़ी बंडल हैं!
यही कम्युनिज्म का मूल स्वभाव होता है ! कम्युनिस्ट आपको हर वो चीज देने का वादा करता है जो उसके पास होती नहीं और न ही वो उसे अर्जित कर सकता है!
कम्युनिस्ट आपको ये सारी चीजें किसी और से छीनकर देने का वादा करता है !
और अर्बन नक्सल आपको फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री ट्रांसपोर्टेशन देने का वादा करता है... वह भी किसी और की गाढ़ी कमाई से!
भक्ति जब भोजन में प्रवेश करती है,
भोजन "प्रसाद" बन जाता है.।
भक्ति जब भूख में प्रवेश करती है,
भूख 'व्रत' बन जाती है.।
भक्ति जब पानी में प्रवेश करती है,
पानी 'चरणामृत' बन जाता है.।
भक्ति जब सफर में प्रवेश करती है,
सफर 'तीर्थयात्रा' बन जाता है.।
भक्ति भजन संगीत में प्रवेश करती है,
संगीत 'कीर्तन' बन जाता है.।
हिन्दू राष्ट्र भक्ति जब घर में प्रवेश करती है,
घर 'मंदिर' बन जाता है.
भक्ति जब कार्य में प्रवेश करती है.
कार्य 'कर्म' बन जाता है.।
भक्ति जब क्रिया में प्रवेश करती है,
क्रिया "सेवा बन जाती है.। और...
भक्ति जो व्यक्ति में प्रवेश करती है,
तो व्यक्ति मानव बन जाता है..।
मंगलम् भगवान विष्णु मंगलम् गरुड़ ध्वज
मंगलम् पुंडरीकाक्ष मंगलाय तनो हरी।।
‼️नारायण हरि‼️
अगर इस जगह कुत्ता पानी पी रहा होता, तो एक भी गाड़ी रुकना तो दूर, निकलते समय शीशा खोलकर भी कुत्ते को धमकाते हुए चलते.
गाय पानी पी रही होती, तो भी सभी गाड़ियाँ करुणा भाव में नही रुकती, साइड से निकाल लेते.
लेकिन जब शेर पानी पीता है तो 1000 गाड़ियाँ भी रुकेंगी और किसी की मजाल है कि, चाहे एक घंटा हो जाए, कोई हॉर्न बजा दे.
सभी धीमी सांसे लेते हुए, ये देखेंगे कि गाड़ी लॉक तो है, और ये सोचेंगे कि बस शेर पानी पीकर चला जाए, हमारी तरफ़ ना आए.
भावार्थ ये है कि, शक्ति ही आपकी परिचायक है, शक्तिवान बनिए.
दुर्बलता एक श्राप है .
बहुत ही विचारणीय प्रश्न
😢😢😢😢😢😢
कभी ईद में मुसलमानो को मस्ज़िद के सामने नशा करके अश्लील गानों पर नाचते हुए देखा है क्या ?🧐
कभी ईशु मसीह के सामने क्रिस्चियन लोगो को शांताबाई गाने पर नाचते हुए देखा है क्या ?🤔
कभी सिक्ख लोगो को अपने भगवान के सामने, आला बाबुराव गाना लगाकर नाचते हुए देखा है क्या ?😳
ये सभी समाज अपने अपने इष्ट का मान सम्मान बड़ी ईमानदारी से करते है. क्योकि उनको उनका धर्म उनकी संस्कृति को टिकाना है.
फिर हमारे हिन्दू धर्म के भगवान के सामने नशा करके और डीजे लगाकर अश्लील गाने लगाकर ये भद्दा नाच करने की बीमारी क्यों हो गयी है.
घर मे लाडली बेटी का विवाह है, दूल्हे राजा अपनी होने वाली गृहलक्ष्मी को लेने द्वार पर पहुँचा है और डी जे वाले बजाते हैं - तू चीज बड़ी है मस्त मस्त...
अपनी तो जैसे तैसे... आपका क्या होगा जनाबे आली...
ये कलंक हमारे हिन्दू समाज पर ही क्यों लग गया है या हमने ही लगा लिया. अन्य धर्म के लोग अपने धार्मिक, पारिवारिक, सामाजिक कार्यक्रम में ऐसी फालतूगीरी नहीं करते.
डीजे पर अश्लील गाने लगाकर लाखों रुपया खर्च कर हम अपने ही इष्ट का अपने सनातन संस्कृति पारिवारिक परम्परा का अपमान कर रहे है.
हमें अपने त्यौहर बड़े उत्साह और बड़े पैमाने पर मनाने चाहिए साथ ही पारम्परिक वाद्य, ढोल मजीरो, पारम्परिक पोशाक में बड़े ही शान से प्रत्येक हिन्दू त्यौहारों में दिखनी ही चाहिए.
तभी हमारी सनातन संस्कृति टिकेगी. देखिये आप खुद ही विचार करें, और दूसरों को भी विचार करने लगाइये.
अभी आगे होली, नवरात्रि आदि त्योहारों में ध्यान रखें और कोई ऐसा करता हो उन्हें समझाए. समाज के जो कर्ता धर्ता बनकर बैठे हैं उनको भी अपने अपने सामाजिक संगठनों के प्रभाव व दबाव पूर्वक ऐसे करने वालो को बलपूर्वक रोकने का प्रयास करना चाहिये.
फूहड़ गानों के जगह हिन्दू भक्ति गीत व संगीत पर आधारित श्लोक व हरि धुन लगाए ।💯🚩
आधे अधूरे, कटे फटे, भड़काऊ वस्त्र पहनना, अंतर्जातीय प्यार और विवाह करना, माता पिता को रूढीवादी बताना, लिव रिलेशनशिप में बिंदास जीवन बिताना, बिना शादी किए अपने होने वाली जीवनसंगिनी के साथ अमर्यादित, अभद्र फोटो विडिओ शूटिंग करा दुनिया को दिखाना आदि अनेक उदाहरण है जो बीमारी केवल और केवल हिन्दू समाज को ही लगी है
हिंदू संस्कृति का जितना नुकसान स्वयं हमने किया है, उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते है. अफसोस, क्या हम अपने घर परिवार के कोई भी आयोजन में जस मंडली, भजन मंडली, फाग मंडली, महिला मंडली, संस्कृत स्तोत्र उच्चारण करने वाले विद्वानों तथा लोकल व पारंपरिक वाद्य यंत्रों वाले कलाकारों को नही बुला सकते ?????????
जब देश के सबसे बड़े अमीर, अम्बानी अपने बेटे की शादी करते है तो देवी स्तोत्र, देवता आदि की स्तुति में सम्पन्न करते हैं. फिर आप और हम क्यों नहीं ?????
अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ अपने परिवार, समाज, संस्कृति व धर्म से भी जोड़े. ऊपर दिए विचारों को बार-बार पढ़िए और सोचिए कि क्या हमारे द्वारा ऐसे कोई काम तो नहीं किया जा रहा है और यदि हां तो उसे सबसे पहले अपने से सुधारने की आवश्यकता है।🤔
हिंदू धर्मग्रंथों का सार, जानिए किस ग्रंथ में क्या है?
अधिकतर हिंदुओं के पास अपने ही धर्मग्रंथ को पढ़ने की फुरसत नहीं है। वेद, उपनिषद पढ़ना तो दूर वे गीता तक को नहीं पढ़ते जबकि गीता को एक घंटे में पढ़ा जा सकता है। हालांकि कई जगह वे भागवत पुराण सुनने या रामायण का अखंड पाठ करने के लिए समय निकाल लेते हैं या घर में सत्यनारायण की कथा करवा लेते हैं। लेकिन आपको यह जानकारी होना चाहिए कि पुराण, रामायण और महाभारत हिन्दुओं के धर्मग्रंथ नहीं है। धर्मग्रंथ तो वेद ही है।
शास्त्रों को दो भागों में बांटा गया है:- श्रुति और स्मृति। श्रुति के अंतर्गत धर्मग्रंथ वेद आते हैं और स्मृति के अंतर्गत इतिहास और वेदों की व्याख्या की पुस्तकें पुराण, महाभारत, रामायण, स्मृतियां आदि आते हैं। हिन्दुओं के धर्मग्रंथ तो वेद ही है। वेदों का सार उपनिषद है और उपनिषदों का सार गीता है। आओ जानते हैं कि उक्त ग्रंथों में क्या है।
वेदों में क्या है?
वेदों में ब्रह्म (ईश्वर), देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास, संस्कार, रीति-रिवाज आदि लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान भरा पड़ा है। वेद चार है ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्ववेद और अथर्ववेद का स्थापत्यवेद ये क्रमशः चारों वेदों के उपवेद बतलाए गए हैं।
ऋग्वेद :ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान। इसमें भौगोलिक स्थिति और देवताओं के आवाहन के मंत्रों के साथ बहुत कुछ है। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियां और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है। इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा और हवन द्वारा चिकित्सा आदि की भी जानकारी मिलती है।
यजुर्वेद :यजु अर्थात गतिशील आकाश एवं कर्म। यजुर्वेद में यज्ञ की विधियां और यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। तत्व ज्ञान अर्थात रहस्यमयी ज्ञान। ब्रम्हांड, आत्मा, ईश्वर और पदार्थ का ज्ञान। इस वेद की दो शाखाएं हैं शुक्ल और कृष्ण।
सामवेद : साम का अर्थ रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इस वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं का संगीतमय रूप है। इसमें सविता, अग्नि और इंद्र देवताओं के बारे में जिक्र मिलता है। इसी से शास्त्रिय संगीत और नृत्य का जिक्र भी मिलता है। इस वेद को संगीत शास्त्र का मूल माना जाता है। इसमें संगीत के विज्ञान और मनोविज्ञान का वर्णन भी मिलता है।
अथर्वदेव :थर्व का अर्थ है कंपन और अथर्व का अर्थ अकंपन। इस वेद में रहस्यमयी विद्याओं, जड़ी बूटियों, चमत्कार और आयुर्वेद आदि का जिक्र है। इसमें भारतीय परंपरा और ज्योतिष का ज्ञान भी मिलता है।
उपनिषद् क्या है?
उपनिषद वेदों का सार है। सार अर्थात निचोड़ या संक्षिप्त। उपनिषद भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूल आधार हैं, भारतीय आध्यात्मिक दर्शन के स्रोत हैं। ईश्वर है या नहीं, आत्मा है या नहीं, ब्रह्मांड कैसा है आदि सभी गंभीर, तत्व ज्ञान, योग, ध्यान, समाधि, मोक्ष आदि की बातें उपनिषद में मिलेगी। उपनिषदों को प्रत्येक हिन्दुओं को पढ़ना चाहिए। इन्हें पढ़ने से ईश्वर, आत्मा, मोक्ष और जगत के बारे में सच्चा ज्ञान मिलता है।
वेदों के अंतिम भाग को 'वेदांत' कहते हैं। वेदांतों को ही उपनिषद कहते हैं। उपनिषद में तत्व ज्ञान की चर्चा है। उपनिषदों की संख्या वैसे तो 108 हैं, परंतु मुख्य 12 माने गए हैं, जैसे- 1. ईश, 2. केन, 3. कठ, 4. प्रश्न, 5. मुण्डक, 6. माण्डूक्य, 7. तैत्तिरीय, 8. ऐतरेय, 9. छांदोग्य, 10. बृहदारण्यक, 11. कौषीतकि और 12. श्वेताश्वतर।
षड्दर्शन क्या है?
वेद से निकला षड्दर्शन : वेद और उपनिषद को पढ़कर ही 6 ऋषियों ने अपना दर्शन गढ़ा है। इसे भारत का षड्दर्शन कहते हैं। दरअसल यह वेद के ज्ञान का श्रेणीकरण है। ये छह दर्शन हैं:- 1.न्याय, 2.वैशेषिक, 3.सांख्य, 4.योग, 5.मीमांसा और 6.वेदांत। वेदों के अनुसार सत्य या ईश्वर को किसी एक माध्यम से नहीं जाना जा सकता। इसीलिए वेदों ने कई मार्गों या माध्यमों की चर्चा की है।
गीता में क्या है?
महाभारत के 18 अध्याय में से एक भीष्म पर्व का हिस्सा है गीता। गीता में भी कुल 18 अध्याय हैं। 10 अध्यायों की कुल श्लोक संख्या 700 है। वेदों के ज्ञान को नए तरीके से किसी ने व्यवस्थित किया है तो वह हैं भगवान श्रीकृष्ण। अत: वेदों का पॉकेट संस्करण है गीता जो हिन्दुओं का सर्वमान्य एकमात्र ग्रंथ है। किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह वेद या उपनिषद पढ़ें उनके लिए गीता ही सबसे उत्तम धर्मग्रंथ है। गीता को बार बार पढ़ने के बाद ही वह समझ में आने लगती है।
गीता में भक्ति, ज्ञान और कर्म मार्ग की चर्चा की गई है। उसमें यम-नियम और धर्म-कर्म के बारे में भी बताया गया है। गीता ही कहती है कि ब्रह्म (ईश्वर) एक ही है। गीता को बार-बार पढ़ेंगे तो आपके समक्ष इसके ज्ञान का रहस्य खुलता जाएगा। गीता के प्रत्येक शब्द पर एक अलग ग्रंथ लिखा जा सकता है।
गीता में सृष्टि उत्पत्ति, जीव विकासक्रम, हिन्दू संदेवाहक क्रम, मानव उत्पत्ति, योग, धर्म, कर्म, ईश्वर, भगवान, देवी, देवता, उपासना, प्रार्थना, यम, नियम, राजनीति, युद्ध, मोक्ष, अंतरिक्ष, आकाश, धरती, संस्कार, वंश, कुल, नीति, अर्थ, पूर्वजन्म, जीवन प्रबंधन, राष्ट्र निर्माण, आत्मा, कर्मसिद्धांत, त्रिगुण की संकल्पना, सभी प्राणियों में मैत्रीभाव आदि सभी की जानकारी है।
श्रीमद्भगवद्गीता योगेश्वर श्रीकृष्ण की वाणी है। इसके प्रत्येक श्लोक में ज्ञानरूपी प्रकाश है, जिसके प्रस्फुटित होते ही अज्ञान का अंधकार नष्ट हो जाता है। ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है। गीता को अर्जुन के अलावा और संजय ने सुना और उन्होंने धृतराष्ट्र को सुनाया। गीता में श्रीकृष्ण ने- 574, अर्जुन ने- 85, संजय ने 40 और धृतराष्ट्र ने- 1 श्लोक कहा है।
उपरोक्त ग्रंथों के ज्ञान का सार बिंदूवार :
1.ईश्वर के बारे में :
ब्रह्म (परमात्मा) एक ही है जिसे कुछ लोग सगुण (साकार) कुछ लोग निर्गुण (निराकार) कहते हैं। हालांकि वह अजन्मा, अप्रकट है। उसका न कोई पिता है और न ही कोई उसका पुत्र है। वह किसी के भाग्य या कर्म को नियंत्रित नहीं करता। ना कि वह किसी को दंड या पुरस्कार देता है। उसका न तो कोई प्रारंभ है और ना ही अंत। वह अनादि और अनंत है। उसकी उपस्थिति से ही संपूर्ण ब्रह्मांड चलायमान है। सभी कुछ उसी से उत्पन्न होकर अंत में उसी में लीन हो जाता है। ब्रह्मलीन।
2.ब्रह्मांड के बारे में :
यह दिखाई देने वाला जगत फैलता जा रहा है और दूसरी ओर से यह सिकुड़ता भी जा रहा है। लाखों सूर्य, तारे और धरतीयों का जन्म है तो उसका अंत भी। जो जन्मा है वह मरेगा। सभी कुछ उसी ब्रह्म से जन्में और उसी में लीन हो जाने वाले हैं। यह ब्रह्मांड परिवर्तनशील है। इस जगत का संचालन उसी की शक्ति से स्वत: ही होता है। जैसे कि सूर्य के आकर्षण से ही धरती अपनी धूरी पर टिकी हुई होकर चलायमान है। उसी तरह लाखों सूर्य और तारे एक महासूर्य के आकर्षण से टिके होकर संचालित हो रहे हैं। उसी तरह लाखों महासूर्य उस एक ब्रह्मा की शक्ति से ही जगत में विद्यमान है।
3.आत्मा के बारे में :
आत्मा का स्वरूप ब्रह्म (परमात्मा) के समान है। जैसे सूर्य और दीपक में जो फर्क है उसी तरह आत्मा और परमात्मा में फर्क है। आत्मा के शरीर में होने के कारण ही यह शरीर संचालित हो रहा है। ठीक उसी तरह जिस तरह कि संपूर्ण धरती, सूर्य, ग्रह नक्षत्र और तारे भी उस एक परमपिता की उपस्थिति से ही संचालित हो रहे हैं।
आत्मा का ना जन्म होता है और ना ही उसकी कोई मृत्यु है। आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरा शरीर धारण करती है। यह आत्मा अजर और अमर है। आत्मा को प्रकृति द्वारा तीन शरीर मिलते हैं एक वह जो स्थूल आंखों से दिखाई देता है। दूसरा वह जिसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं जो कि ध्यानी को ही दिखाई देता है और तीसरा वह शरीर जिसे कारण शरीर कहते हैं उसे देखना अत्यंत ही मुश्लिल है। बस उसे वही आत्मा महसूस करती है जो कि उसमें रहती है। आप और हम दोनों ही आत्मा है हमारे नाम और शरीर अलग अलग हैं लेकिन भीतरी स्वरूप एक ही है।
4.स्वर्ग और नरक के बारे में :
वेदों के अनुसार पुराणों के स्वर्ग या नर्क को गतियों से समझा जा सकता है। स्वर्ग और नर्क दो गतियां हैं। आत्मा जब देह छोड़ती है तो मूलत: दो तरह की गतियां होती है:- 1.अगति और 2. गति।
1.अगति: अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है।
2.गति :गति में जीव को किसी लोक में जाना पड़ता है या वह अपने कर्मों से मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
अगति के चार प्रकार है-1.क्षिणोदर्क, 2.भूमोदर्क, 3. अगति और 4.दुर्गति।
क्षिणोदर्क : क्षिणोदर्क अगति में जीव पुन: पुण्यात्मा के रूप में मृत्यु लोक में आता है और संतों सा जीवन जीता है।
भूमोदर्क :भूमोदर्क में वह सुखी और ऐश्वर्यशाली जीवन पाता है।
अगति :अगति में नीच या पशु जीवन में चला जाता है।
दुर्गति :दुर्गति में वह कीट, कीड़ों जैसा जीवन पाता है।
गति के भी 4 प्रकार :-गति के अंतर्गत चार लोक दिए गए हैं:- 1.ब्रह्मलोक, 2.देवलोक, 3.पितृलोक और 4.नर्कलोक। जीव अपने कर्मों के अनुसार उक्त लोकों में जाता है।
तीन मार्गों से यात्रा :
जब भी कोई मनुष्य मरता है या आत्मा शरीर को त्यागकर यात्रा प्रारंभ करती है तो इस दौरान उसे तीन प्रकार के मार्ग मिलते हैं। ऐसा कहते हैं कि उस आत्मा को किस मार्ग पर चलाया जाएगा यह केवल उसके कर्मों पर निर्भर करता है। ये तीन मार्ग हैं- अर्चि मार्ग, धूम मार्ग और उत्पत्ति-विनाश मार्ग। अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा के लिए होता है, वहीं धूममार्ग पितृलोक की यात्रा पर ले जाता है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है।
5.धर्म और मोक्ष के बारे में :
धर्मग्रंथों के अनुसार धर्म का अर्थ है यम और नियम को समझकर उसका पालन करना। नियम ही धर्म है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से मोक्ष ही अंतिम लक्ष्य होता है। हिंदु धर्म के अनुसार व्यक्ति को मोक्ष के बारे में विचार करना चाहिए। मोक्ष क्या है? स्थितप्रज्ञ आत्मा को मोक्ष मिलता है। मोक्ष का भावर्थ यह कि आत्मा शरीर नहीं है इस सत्य को पूर्णत: अनुभव करके ही अशरीरी होकर स्वयं के अस्तित्व को पूख्ता करना ही मोक्ष की प्रथम सीढ़ी है।
6.व्रत और त्योहार के बारे में :
हिन्दु धर्म के सभी व्रत, त्योहार या तीर्थ सिर्फ मोक्ष की प्राप्त हेतु ही निर्मित हुए हैं। मोक्ष तब मिलेगा जब व्यक्ति स्वस्थ रहकर प्रसन्नचित्त और खुशहाल जीवन जीएगा। व्रत से शरीर और मन स्वस्थ होता है। त्योहार से मन प्रसन्न होता है और तीर्थ से मन और मस्तिष्क में वैराग्य और आध्यात्म का जन्म होता है।
मौसम और ग्रह नक्षत्रों की गतियों को ध्यान में रखकर बनाए गए व्रत और त्योहार का महत्व अधिक है। व्रतों में चतुर्थी, एकादशी, प्रदोष, अमावस्या, पूर्णिमा, श्रावण मास और कार्तिक मास के दिन व्रत रखना श्रेष्ठ है। यदि उपरोक्त सभी नहीं रख सकते हैं तो श्रावण के पूरे महीने व्रत रखें। त्योहारों में मकर संक्रांति, महाशिवरात्रि, नवरात्रि, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी और हनुमान जन्मोत्सव ही मनाएं। पर्व में श्राद्ध और कुंभ का पर्व जरूर मनाएं।
व्रत करने से काया निरोगी और जीवन में शांति मिलती है। सूर्य की 12 और 12 चंद्र की संक्रांति होती है। सूर्य संक्रांतियों में उत्सव का अधिक महत्व है तो चंद्र संक्रांति में व्रतों का अधिक महत्व है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन। इसमें से श्रावण मास को व्रतों में सबसे श्रेष्ठ मास माना गया है। इसके अलावा प्रत्येक माह की एकादशी, चतुर्दशी, चतुर्थी, पूर्णिमा, अमावस्या और अधिमास में व्रतों का अलग-अलग महत्व है। सौरमास और चंद्रमास के बीच बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहते हैं। साधुजन चतुर्मास अर्थात चार महीने श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह में व्रत रखते हैं।
उत्सव, पर्व और त्योहार सभी का अलग-अलग अर्थ और महत्व है। प्रत्येक ऋतु में एक उत्सव है। उन त्योहार, पर्व या उत्सव को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख वैदिक धर्मग्रंथ, धर्मसूत्र, स्मृति, पुराण और आचार संहिता में मिलता है। चंद्र और सूर्य की संक्रांतियों अनुसार कुछ त्योहार मनाएं जाते हैं। 12 सूर्य संक्रांति होती हैं जिसमें चार प्रमुख है:- मकर, मेष, तुला और कर्क। इन चार में मकर संक्रांति महत्वपूर्ण है। सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ, संक्रांति और कुंभ। पर्वों में रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, गुरुपूर्णिमा, वसंत पंचमी, हनुमान जयंती, नवरात्री, शिवरात्री, होली, ओणम, दीपावली, गणेशचतुर्थी और रक्षाबंधन प्रमुख हैं। हालांकि सभी में मकर संक्रांति और कुंभ को सर्वोच्च माना गया है।
7.तीर्थ के बारे में :
तीर्थ और तीर्थयात्रा का बहुत पुण्य है। जो मनमाने तीर्थ और तीर्थ पर जाने के समय हैं उनकी यात्रा का सनातन धर्म से कोई संबंध नहीं। तीर्थों में चार धाम, ज्योतिर्लिंग, अमरनाथ, शक्तिपीठ और सप्तपुरी की यात्रा का ही महत्व है। अयोध्या, मथुरा, काशी और प्रयाग को तीर्थों का प्रमुख केंद्र माना जाता है, जबकि कैलाश मानसरोवर को सर्वोच्च तीर्थ माना है। बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी ये चार धान है। सोमनाथ, द्वारका, महाकालेश्वर, श्रीशैल, भीमाशंकर, ॐकारेश्वर, केदारनाथ विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, रामेश्वरम, घृष्णेश्वर और बैद्यनाथ ये द्वादश ज्योतिर्लिंग है। काशी, मथुरा, अयोध्या, द्वारका, माया, कांची और अवंति उज्जैन ये सप्तपुरी। उपरोक्त कहे गए तीर्थ की यात्रा ही धर्मसम्मत है।
8.संस्कार के बारे में :
संस्कारों के प्रमुख प्रकार सोलह बताए गए हैं जिनका पालन करना हर हिंदू का कर्तव्य है। इन संस्कारों के नाम है-गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, मुंडन, कर्णवेधन, विद्यारंभ, उपनयन, वेदारंभ, केशांत, सम्वर्तन, विवाह और अंत्येष्टि। प्रत्येक हिन्दू को उक्त संस्कार को अच्छे से नियमपूर्वक करना चाहिए। यह मनुष्य के सभ्य और हिन्दू होने की निशानी है। उक्त संस्कारों को वैदिक नियमों के द्वारा ही संपन्न किया जाना चाहिए।
9.पाठ करने के बारे में :
वेदो, उपनिषद या गीता का पाठ करना या सुनना प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है। उपनिषद और गीता का स्वयंम अध्ययन करना और उसकी बातों की किसी जिज्ञासु के समक्ष चर्चा करना पुण्य का कार्य है, लेकिन किसी बहसकर्ता या भ्रमित व्यक्ति के समक्ष वेद वचनों को कहना निषेध माना जाता है। प्रतिदिन धर्म ग्रंथों का कुछ पाठ करने से देव शक्तियों की कृपा मिलती है। हिन्दू धर्म में वेद, उपनिषद और गीता के पाठ करने की परंपरा प्राचीनकाल से रही है। वक्त बदला तो लोगों ने पुराणों में उल्लेखित कथा की परंपरा शुरू कर दी, जबकि वेदपाठ और गीता पाठ का अधिक महत्व है।
10.धर्म, कर्म और सेवा के बारे में :
धर्म-कर्म और सेवा का अर्थ यह कि हम ऐसा कार्य करें जिससे हमारे मन और मस्तिष्क को शांति मिले और हम मोक्ष का द्वार खोल पाएं। साथ ही जिससे हमारे सामाजिक और राष्ट्रिय हित भी साधे जाते हों। अर्थात ऐसा कार्य जिससे परिवार, समाज, राष्ट्र और स्वयं को लाभ मिले। धर्म-कर्म को कई तरीके से साधा जा सकता है, जैसे- 1.व्रत, 2.सेवा, 3.दान, 4.यज्ञ, 5.प्रायश्चित, दीक्षा देना और मंदिर जाना आदि।
सेव का मतलब यह कि सर्व प्रथम माता-पिता, फिर बहन-बेटी, फिर भाई-बांधु की किसी भी प्रकार से सहायता करना ही धार्मिक सेवा है। इसके बाद अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा-सहायता करना पुण्य का कार्य माना गया है। इसके अलवा सभी प्राणियों, पक्षियों, गाय, कुत्ते, कौए, चींटी आति को अन्न जल देना। यह सभी यज्ञ कर्म में आते हैं।
11.दान के बारे में :
दान से इंद्रिय भोगों के प्रति आसक्ति छूटती है। मन की ग्रथियां खुलती है जिससे मृत्युकाल में लाभ मिलता है। देव आराधना का दान सबसे सरल और उत्तम उपाय है। वेदों में तीन प्रकार के दाता कहे गए हैं- 1.उक्तम, 2.मध्यम और 3.निकृष्ट। धर्म की उन्नति रूप सत्यविद्या के लिए जो देता है वह उत्तम। कीर्ति या स्वार्थ के लिए जो देता है तो वह मध्यम और जो वेश्यागमनादि, भांड, भाटे, पंडे को देता वह निकृष्ट माना गया है। पुराणों में अन्नदान, वस्त्रदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान को ही श्रेष्ठ माना गया है, यही पुण्य भी है।
12.यज्ञ के बारे में :
यज्ञ के प्रमुख पांच प्रकार हैं- ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, वैश्वदेव यज्ञ और अतिथि यज्ञ। यज्ञ पालन से ऋषि ऋण, देव ऋण, पितृ ऋण, धर्म ऋण, प्रकृति ऋण और मातृ ऋण समाप्त होता है। नित्य संध्या वंदन, स्वाध्याय तथा वेदपाठ करने से ब्रह्म यज्ञ संपन्न होता है। देवयज्ञ सत्संग तथा अग्निहोत्र कर्म से सम्पन्न होता है। अग्नि जलाकर होम करना अग्निहोत्र यज्ञ है। पितृयज्ञ को श्राद्धकर्म भी कहा गया है। यह यज्ञ पिंडदान, तर्पण और सन्तानोत्पत्ति से सम्पन्न होता है। वैश्वदेव यज्ञ को भूत यज्ञ भी कहते हैं। सभी प्राणियों तथा वृक्षों के प्रति करुणा और कर्त्तव्य समझना उन्हें अन्न-जल देना ही भूत यज्ञ कहलाता है। अतितिथ यज्ञ से अर्थ मेहमानों की सेवा करना। अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा-सहायता करना ही अतिथि यज्ञ है। इसके अलावा अग्निहोत्र, अश्वमेध, वाजपेय, सोमयज्ञ, राजसूय और अग्निचयन का वर्णण यजुर्वेद में मिलता है।
13.मंदिर जाने के बारे में :
प्रति गुरुवार को मंदिर जाना चाहिए: घर में मंदिर नहीं होना चाहिए। प्रति गुरुवार को मंदिर जाना चाहिए। मंदिर में जाकर परिक्रमा करना चाहिए। भारत में मंदिरों, तीर्थों और यज्ञादि की परिक्रमा का प्रचलन प्राचीनकाल से ही रहा है। मंदिर की 7 बार (सप्तपदी) परिक्रमा करना बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह 7 परिक्रमा विवाह के समय अग्नि के समक्ष भी की जाती है। इसी प्रदक्षिण को इस्लाम धर्म ने परंपरा से अपनाया जिसे तवाफ कहते हैं। प्रदक्षिणा षोडशोपचार पूजा का एक अंग है। प्रदक्षिणा की प्रथा अतिप्राचीन है। हिन्दू सहित जैन, बौद्ध और सिख धर्म में भी परिक्रमा का महत्व है। इस्लाम में मक्का स्थित काबा की 7 परिक्रमा का प्रचलन है। पूजा-पाठ, तीर्थ परिक्रमा, यज्ञादि पवित्र कर्म के दौरान बिना सिले सफेद या पीत वस्त्र पहनने की परंपरा भी प्राचीनकाल से हिन्दुओं में प्रचलित रही है। मंदिर जाने या संध्यावंदन के पूर्व आचमन या शुद्धि करना जरूरी है। इसे इस्लाम में वुजू कहा जाता है।
14.संध्यावंदनके बारे में :
संध्या वंदन को संध्योपासना भी कहते हैं। मंदिर में जाकर संधि काल में ही संध्या वंदन की जाती है। वैसे संधि आठ वक्त की मानी गई है। उसमें भी पांच महत्वपूर्ण है। पांच में से भी सूर्य उदय और अस्त अर्थात दो वक्त की संधि महत्वपूर्ण है। इस समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है। संध्योपासना के चार प्रकार है- 1.प्रार्थना, 2.ध्यान, 3.कीर्तन और 4.पूजा-आरती। व्यक्ति की जिस में जैसी श्रद्धा है वह वैसा करता है।
15..धर्म की सेवा के बारे में :
धर्म की प्रशंसा करना और धर्म के बारे में सही जानकारी को लोगों तक पहुंचाना प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य होता है। धर्म प्रचार में वेद, उपनिषद और गीता के ज्ञान का प्रचार करना ही उत्तम माना गया है। धर्म प्रचारकों के कुछ प्रकार हैं। हिन्दू धर्म को पढ़ना और समझना जरूरी है। हिन्दू धर्म को समझकर ही उसका प्रचार और प्रसार करना जरूरी है। धर्म का सही ज्ञान होगा, तभी उस ज्ञान को दूसरे को बताना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को धर्म प्रचारक होना जरूरी है। इसके लिए भगवा वस्त्र धारण करने या संन्यासी होने की जरूरत नहीं। स्वयं के धर्म की तारीफ करना और बुराइयों को नहीं सुनना ही धर्म की सच्ची सेवा है।
16.मंत्र के बारे में :
वेदों में बहुत सारे मंत्रों का उल्लेख मिलता है, लेकिन जपने के लिए सिर्फ प्रणव और गायत्री मंत्र ही कहा गया है बाकी मंत्र किसी विशेष अनुष्ठान और धार्मिक कार्यों के लिए है। वेदों में गायत्री नाम से छंद है जिसमें हजारों मंत्र है किंतु प्रथम मंत्र को ही गायत्री मंत्र माना जाता है। उक्त मंत्र के अलावा किसी अन्य मंत्र का जाप करते रहने से समय और ऊर्जा की बर्बादी है। गायत्री मंत्र की महिमा सर्वविदित है। दूसरा मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र, लेकिन उक्त मंत्र के जप और नियम कठिन है इसे किसी जानकार से पूछकर ही जपना चाहिए।
17.प्रायश्चित के बार में :-प्राचीनकाल से ही हिन्दु्ओं में मंदिर में जाकर अपने पापों के लिए प्रायश्चित करने की परंपरा रही है। प्रायश्चित करने के महत्व को स्मृति और पुराणों में विस्तार से समझाया गया है। गुरु और शिष्य परंपरा में गुरु अपने शिष्य को प्रायश्चित करने के अलग-अलग तरीके बताते हैं। दुष्कर्म के लिए प्रायश्चित करना , तपस्या का एक दूसरा रूप है। यह मंदिर में देवता के समक्ष 108 बार साष्टांग प्रणाम , मंदिर के इर्दगिर्द चलते हुए साष्टांग प्रणाम और कावडी अर्थात वह तपस्या जो भगवान मुरुगन को अर्पित की जाती है, जैसे कृत्यों के माध्यम से की जाती है। मूलत: अपने पापों की क्षमा भगवान शिव और वरूणदेव से मांगी जाती है, क्योंकि क्षमा का अधिकार उनको ही है।
18.दीक्षा देने के बारे में :
दीक्षा देने का प्रचलन वैदिक ऋषियों ने प्रारंभ किया था। प्राचीनकाल में पहले शिष्य और ब्राह्मण बनाने के लिए दीक्षा दी जाती थी। माता-पिता अपने बच्चों को जब शिक्षा के लिए भेजते थे तब भी दीक्षा दी जाती थी। हिन्दू धर्मानुसार दिशाहीन जीवन को दिशा देना ही दीक्षा है। दीक्षा एक शपथ, एक अनुबंध और एक संकल्प है। दीक्षा के बाद व्यक्ति द्विज बन जाता है। द्विज का अर्थ दूसरा जन्म। दूसरा व्यक्तित्व। सिख धर्म में इसे अमृत संचार कहते हैं।
यह दीक्षा देने की परंपरा जैन धर्म में भी प्राचीनकाल से रही है, हालांकि दूसरे धर्मों में दीक्षा को अपने धर्म में धर्मांतरित करने के लिए प्रयुक्त किया जाने लगा। धर्म से इस परंपरा को ईसाई धर्म ने अपनाया जिसे वे बपस्तिमा कहते हैं। अलग-अलग धर्मों में दीक्षा देने के भिन्न-भिन्न तरीके हैं।
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