Betal singh
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1947 में भारत का एक स्कूल
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बोल शीतला मैया की जय
भारत सिंह कुशवाह जिंदाबाद
ग्वालियर लोकसभा प्रत्याशी बीजेपी जिंदाबाद
राम राम जी
बुरा लगे तो मेरी बहन माफ करना
ये पोस्ट बहुत जरूरी थी अपलोड करनी
#लड़कियों_को_आदर_सहित_समर्पित
लड़के ने नम्बर मांगा आप ने दे दिया...
लड़के ने तस्वीर मांगी आप ने दे दी...
लड़के ने वीडियो कॉल के लिए कहा आप ने कर ली...
लड़के ने दुपट्टा हटाने को कहा आप ने हटा दिया...
लड़के ने कुछ देखने की ख्वाहिश की आप ने पूरी कर दी...
लड़के ने मिलने को कहा आप माँ बाप को धोखा देकर आशिक़ से मिलने पहुंच गयीं...
लड़के ने बाग में बैठ कर आप की तारीफ़ करते हुए आपको सरसब्ज़ बाग दिखाए आपने देख लिये...
फिर जूस कार्नर पर जूस पीते वक़्त लड़के ने हाथ लगाया, इशारे किये, मगर कोई बात नहीं अब नया ज़माना है यह सब तो चलता ही है...
फिर लड़के ने होटल में कमरा लेने की बात की, आप ने शर्माते हुए इंकार कर दिया, कि शादी से पहले यह सब अच्छा तो नहीं लगता न...
फिर दो तीन बार कहने पर आप तैयार हो गयीं होटल के कमरे में जाने के लिए...
आप दोनों ने मिल कर खूब एंजॉय किया...
अंडरस्टेंडिंग के नाम पर दुल्हा दुल्हन बन गए protection use ki बस बच्चा पैदा न हो इस पर ध्यान दिया...
फिर एक दिन झगड़ा हुआ और सब खत्म क्योंकि हराम रिश्तों का अंजाम कुछ ऐसा ही होता है...
लेकिन लेकिन...
यहां सरासर मर्द गलत नहीं है, वह भेड़िया है, वह मुजरिम है, वह सबकुछ है...
क्योंकि आप ने तो तस्वीर नहीं दी थी वह जबर्दस्ती आपके मोबाइल में घुस कर ले गया था...
आप ने तो अपना नम्बर नहीं दिया वह लड़का खुद आप के मोबाइल से नम्बर ले गया था...
आप ने तो वीडियो कॉल नहीं की वह लड़का खुद आप के घर पहुंच गया था आपको लाइव देखने...
जूस कार्नर पर भी जबरदस्ती ले गया था गन प्वाइंट पर...
होटल के कमरे तक भी वह आपको जबर्दस्ती आपके घर से ले गया था...
तो मुजरिम तो सिर्फ लड़का है आप तो बिल्कुल भी नहीं...
बच्ची हैं आप कोई चार साल की?
आपको समझ नहीं आती?
यह कचरे में पड़ी लाशें देख कर भी आपको अक़्ल नहीं आती?
यह बिना सर के मिलने वाले धड़ आपकी अक़्ल पर कोई चोट नहीं देते?
यह सोशल मीडिया पर आए दिन ज़्यादती के बढ़ती हुई घटना आपको कुछ नहीं बताती?
जूस कार्नर पर जाना,
आपको नहीं पता था कि एक होटल के ईकमरे में या चारदीवारी में जिस्मों की प्यास बुझाई जाती है,
सब पता था आपको, सब पता है आपको...
होटल के कमरे में मुहब्बत के अफसाने नहीं लिखे जाते,वहां कोई इबादत नही होती है
फिर शिकायत होती है के चार लड़कों ने ग्रुप रेप कर दिया...
क्या लगता है वह आपका जो आपकी इज्ज़त का ख्याल रखे जो खुद आपको इसी मकसद के लिए लेकर जा रहा है?
अपनी सीमा में रहेंगी तो आपको कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता...
जिस्म के भूखो से दूर ही रहे लड़का हो या लड़की प्यार जैसे पवित्र रिश्ते को बदनाम ना करे प्यार दिल देखकर करे ना कि जिस्म देखकर l❣ जब तक तुम साथ नही दोगी तब तक किसी लड़के की कोई औकात नही हैं कि वो तुम्हे किसी होटल के रूम तक ले जा सके।।।। गलत लगे तो मुझे माफ कीजिएगा!!!🙏🏻
Betalsingh kushwah
#भगतसिंह की बैरक की साफ-सफाई करने वाले का नाम बोघा था। भगत सिंह उसको बेबे (मां) कहकर बुलाते थे। जब कोई पूछता कि भगत सिंह ये बोघा तेरी बेबे कैसे हुआ? तब भगत सिंह कहते, मेरा मल-मूत्र या तो मेरी बेबे ने उठाया, या इस भले पुरूष बोघे ने। बोघे में मैं अपनी बेबे (मां) देखता हूं। ये मेरी बेबे ही है।
यह कहकर भगत सिंह बोघे को अपनी बाहों में भर लेता।
भगत सिंह जी अक्सर बोघा से कहते, बेबे मैं तेरे हाथों की रोटी खाना चाहता हूँ। पर बोघा अपनी जाति को याद करके झिझक जाता और कहता, भगत सिंह तू ऊँची जात का सरदार, और मैं एक अदना सा भंगी, भगतां तू रहने दे, ज़िद न कर।
सरदार भगत सिंह भी अपनी ज़िद के पक्के थे, फांसी से कुछ दिन पहले जिद करके उन्होंने बोघे को कहा बेबे अब तो हम चंद दिन के मेहमान हैं, अब तो इच्छा पूरी कर दे!
बोघे की आँखों में आंसू बह चले। रोते-रोते उसने खुद अपने हाथों से उस वीर शहीद ए आजम के लिए रोटिया बनाई, और अपने हाथों से ही खिलाई। भगत सिह के मुंह में रोटी का गास डालते ही बोघे की रुलाई फूट पड़ी। ओए भगतां, ओए मेरे शेरा, धन्य है तेरी मां, जिसने तुझे जन्म दिया। भगत सिंह ने बोघे को अपनी बाहों में भर लिया।
ऐसी सोच के मालिक थे अपने वीर सरदार भगत सिंह जी...। परन्तु आजादी के 70 साल बाद भी हम समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेद-भाव की भावना को दूर करने के लिये वो न कर पाए जो 88 साल पहले भगत सिंह ने किया।
महान शहीदे आजम को इस देश का सलाम।
बेताल सिंह कुशवाह का सलाम 👏👏👏🌹🌹
एक बार एक नदी में एक हाथी का मृत शरीर बहा जा रहा था । जब एक कौए ने यह देखा, तो बेहद प्रसन्न हो उठा, तुरंत उस पर आ बैठा। यथेष्ट मांस खाया औऱ फ़िर नदी का भरपेट जल पिया। उस लाश पर इधर-उधर फुदकते हुए कौए ने परम तृप्ति की डकार ली। वह सोचने लगा, अहा ! यह तो अत्यंत सुंदर यान है, यहां भोजन और जल की भी कमी नहीं। फिर इसे छोड़कर अन्यत्र क्यों भटकता फिरूं? कौआ नदी के साथ बहने वाले हाथी के उस मृत शरीर के ऊपर कई दिनों तक रमता रहा। भूख लगने पर वह मृत शरीर से मांस नोचकर खा लेता, प्यास लगने पर नदी का पानी पी लेता, अगाध जलराशि, उसका तेज प्रवाह, किनारे पर दूर-दूर तक फैले प्रकृति के मनोहरी दृश्य-इन्हें देख-देखकर वह विभोर होता रहा। नदी एक दिन आखिर महासागर में मिली। वह मुदित थी कि उसे अपना गंतव्य प्राप्त हुआ। सागर से मिलना ही उसका चरम लक्ष्य था, किंतु उस दिन लक्ष्यहीन कौए की तो बड़ी दुर्गति हो गई। चार दिन की मौज-मस्ती ने कौवे को ऐसी जगह ला पटका था, जहां उसके लिए न भोजन था, न पेयजल और न ही कोई आश्रय। सब ओर सीमाहीन अनंत खारी जल-राशि थी। कौआ थका-हारा और भूखा-प्यासा कुछ दिन तक तो चारों दिशाओं में पंख फटकारता रहा, अपनी छिछली और टेढ़ी-मेढ़ी उड़ानों से झूठा रौब फैलाता रहा, किंतु महासागर का ओर-छोर उसे कहीं नजर नहीं आया। आखिरकार थककर, दुख से कातर होकर वह सागर की उन्हीं गगनचुंबी लहरों में गिर गया औऱ एक विशाल समुद्री मछली ने उसे निगल गया।
दोस्तों, शारीरिक सुख ,भोग-विलास औऱ परम तृष्णा में लिप्त हम मनुष्यों की भी गति उसी कौए की तरह होती है, जो आहार और आश्रय के क्षणिक सुख को ही अपनी परम गति मान कर अंधे हो जाते हैं और अंत में अनन्त दुःख व संकट रूपी गंभीर सागर में समा जाते है।
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BETALSINGH KUSHWAH
अब से 150 साल बाद, आज इस पोस्ट को पढ़ने वाले हममें से कोई भी जीवित नहीं रहेगा। अभी हम जिस चीज पर लड़ रहे हैं उसका 70 प्रतिशत से 100 प्रतिशत पूरी तरह से भुला दिया जाएगा। शब्द को पूरी तरह से रेखांकित करें।
अगर हम अपने से 150 साल पहले की स्मृतियों में जाएं, तो वह 1872 होगा, उस समय दुनिया को अपने सिर पर उठाने वालों में से कोई भी आज जीवित नहीं है। इसे पढ़ने वाले हममें से लगभग सभी को उस युग के किसी भी व्यक्ति के चेहरे की कल्पना करना मुश्किल होगा।
थोड़ी देर रुकें और कल्पना करें कि कैसे उनमें से कुछ ने अपने रिश्तेदारों को धोखा दिया और दर्पण के एक टुकड़े के लिए उन्हें दास के रूप में बेच दिया। कुछ लोगों ने ज़मीन के एक टुकड़े या रतालू या कौड़ियों के कंद या एक चुटकी नमक के लिए परिवार के सदस्यों को मार डाला। वह रतालू, कौड़ी, दर्पण, या नमक कहाँ है जिसका उपयोग वे डींगें हांकने के लिए कर रहे थे? यह अब हमें अजीब लग सकता है, लेकिन हम इंसान कभी-कभी कितने मूर्ख होते हैं, खासकर जब बात पैसे, ताकत या प्रासंगिक बनने की कोशिश की आती है!
यहां तक कि जब आप दावा करते हैं कि इंटरनेट युग आपकी याददाश्त को सुरक्षित रखेगा, उदाहरण के तौर पर माइकल जैक्सन को लें। आज से ठीक 13 साल पहले 2009 में माइकल जैक्सन की मौत हो गई थी. कल्पना कीजिए कि जब माइकल जैक्सन जीवित थे तो उनका पूरी दुनिया पर कितना प्रभाव था। आज के कितने युवा उन्हें विस्मय के साथ याद करते हैं, यानी क्या वे उन्हें जानते भी हैं? आने वाले 150 वर्षों में, जब भी उनके नाम का उल्लेख किया जाएगा, बहुत से लोगों के लिए कोई घंटी नहीं बजेगी।
आइए जीवन को आसान बनाएं, इस दुनिया से कोई भी जीवित नहीं जाएगा। . . जिस भूमि के लिए आप लड़ रहे हैं और मरने-मारने को तैयार हैं, उस भूमि को किसी ने छोड़ दिया है, वह व्यक्ति मर चुका है, सड़ चुका है, और भुला दिया गया है। वही तुम्हारा भी भाग्य होगा. आने वाले 150 वर्षों में, आज हम जिन वाहनों या फ़ोनों का उपयोग डींगें हांकने के लिए कर रहे हैं उनमें से कोई भी प्रासंगिक नहीं रहेगा।
प्रेम को नेतृत्व करने दो। आइए एक-दूसरे के लिए सचमुच खुश रहें। कोई द्वेष नहीं, कोई चुगली नहीं. कोई ईर्ष्या नहीं. कोई तुलना नहीं। जीवन कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है. दिन के अंत में, हम सभी दूसरी ओर चले जायेंगे। यह सिर्फ एक सवाल है कि वहां पहले कौन पहुंचता है, लेकिन निश्चित रूप से हम सभी एक दिन वहां जाएंगे।
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गरीब थोड़ी हो जायेगे
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गर्मी में पानी की किल्लत
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Bhai chota
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जय श्री श्याम
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