Jovan kay h?
aap dippo bhva
. .good morning
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Jo hota h theek hi hota # # # # # # # #
#नानक के जीवन मैं उल्लेख है। एक धनपति ने--दुनीचंद उसका नाम था--नानक को निमंत्रित किया भोजन के लिए। नानक समझाने की कोशिश किए, टालने की कोशिश किए, लेकिन दुनीचंद पीछे पड़ गया। माना नहीं। नगरसेठ था। प्रतिष्ठा का सवाल था। उसका निमंत्रण और कोई न माने!
अनेक लोग मौजूद थे। उनकी मौजूदगी में उसने चरण छूकर प्रार्थना की थी : कल मेरे घर भोजन करें। और नानक मना करें! दुनीचंद को तकलीफ होने लगी। उसने कहा : चलना ही होगा। उसने सारी प्रतिष्ठा दाव पर लगा दी अपनी। उसने कहा : जो भी दान करना है, करूंगा।
नानक ने कहा कि दान का सवाल नहीं। तुम ले चलकर मुझे, दुखी होओगे। नहीं मानते, तो ठीक है, चलूंगा। वे गए।
जब दुनीचंद ने उन्हें भोजन परोसा, तो उन्होंने उसकी रोटियां हाथ में उठायीं और जोर से उन रोटियों को मुट्ठी में भींच..। तो खून की बूंद उन रोटियों से टपकी!
सैकड़ों लोग देखने इकट्ठे हो गए थे। एक तो नानक ने इतना इनकार किया। मानते नहीं थे। फिर गए हैं। और यह भी कहा है दुनीचंद को कि मुझे ले जाकर तू पछताएगा। मुझे न ले जा।
सैकड़ों लोगों ने यह देखा कि उन रोटियों से खून की बूंदें टपकीं! लोग पूछने लगे कि यह क्या है? यह कैसे हुआ? तो नानक ने कहा : इसलिए मैं आना नहीं चाहता था। दुनीचंद के धन के पीछे बड़ी दुर्गंध है। यह धन शोषण से मिला है। इसके रुपए-रुपए में आदमियों का खून है। इसलिए मैं आना नहीं चाहता था।
ऐसे ही तो हम सब मल्लाह हैं और नदी में, संसार की क्षण-क्षण बदलती हुई धारा में जाल फेंके बैठे हैं, अपनी-अपनी बंसी लटकाए बैठे हैं। सब अपनी-अपनी मछली पकड़ने बैठे हैं! कोई पद की मछली, कोई धन की मछली, कोई प्रतिष्ठा की, कोई यश की, कोई प्रसिद्धि की--अलग-अलग मछलियों के नाम हों, मगर नदी के किनारे सभी मल्लाह हैं। सभी अपनी बंसी लटकाए जाल फैलाए बैठे हैं! मछली फंसे!
और यहां कभी-कभी जाल में सोने की मछली फंसती भी है। लेकिन हर सोने की मछली के पीछे भयंकर दुर्गंध है। धन मिलता भी है। ऐसा नहीं कि नहीं मिलता। लेकिन धन के पीछे भयंकर दुर्गंध है। यहां कभी-कभी सोने की मछली फंस भी जाती है, तो तुम सदा पीछे पाओगे उपद्रव। कभी-कभी फंस जाती है मछली। तब दूसरी बात पता चलती है कि मछली फंस जाती है; देखने में सोने की मालूम पड़ती है--और भीतर? भीतर सब दुर्गंध है और मल-मूत्र है।
बड़े से बड़े पद पर पहुंचकर लोगों को मिला क्या? बहुत से बहुत धन इकट्ठा करके लोगों को मिला क्या? पूछो सिकंदर से। पूछो बड़े धनपतियों से। जितना धन बढ़ता जाता है, उतनी अपनी दरिद्रता का पता चलता है। और जितना पद पर बैठ जाते हैं, उतनी अपनी दीनता का पता चलता है। ऊपर-ऊपर स्वर्ण, भीतर-भीतर नर्क निर्मित हो जाता है।
तुमने नर्क में लपटों में जलने की बात सुनी है, वह नर्क कहीं और नहीं है। वह तुम्हारी आकांक्षाओं का नर्क है, जिसमें तुम अभी जल रहे हो। इस भूल में मत पड़ना कि मरकर तुम नर्क में जाओगे। तुम नर्क में हो। नर्क में होने का अर्थ इतना ही होता ह, तुम्हारा मन वासना की लपटों से भरा है।
ओशो; एस धम्मो सनंतनो
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Shri Gorakh Nath Ji, filling the air with the essence of devotion and spiritual sanctity. #DHUNA
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devotion takes flight, and every prayer echoes the celestial blessings of the revered snake deity. 🌟