श्री बड़ पिपली बालाजी धाम
जीव सेवा + सनातन संस्कार + प्रभु प्रेम भक्ति
🙏🙏🌹सभी को हनुमान जन्मोत्सव की बहुत बहुत शुभकामनाएं । 🚩🚩🚩
🌹🌹 जय सियाराम जय जय वीर हनुमान🌹🌹
🙏🙏जय सियाराम जय हनुमान🙏🙏
#श्रीबड़पिपलीबालाजीधाम
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🙏🙏जय सियाराम जय हनुमान🙏🙏
।।जय श्री बड़पिपली बालाजी महाराज।।
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🙏🙏जय सियाराम जय जय हनुमान🙏🙏🚩🚩
🙏जय श्री बाघेश्वर बालाजी धाम एवं full support बाघेश्वर धाम🙏🚩🚩🚩🚩
🙏जय सियाराम जय जय श्री वीर हनुमान🙏🚩🚩
🙏जय सियाराम जय हनुमान🙏
।।जय श्री बड़पिपली बालाजी धाम।।
🙏जय सियाराम जय हनुमान🙏
।।जय श्री बड़पिपली बालाजी ।।
🙏जय सियाराम जय हनुमान🙏
🙏जय सियाराम जय हनुमान🙏
🙏जय श्री वीर हनुमान (समोद)🙏
🙏जय श्री बड़पिपली बालाजी महाराज🙏
🚩🚩जय श्री राम 🚩🚩
🚩🚩🚩जय श्री राम 🚩🚩🚩
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🙏🙏 जय सियाराम जय हनुमान🙏🙏
.....बालाजी भजन......
🙏🙏🚩जय सियाराम जय जय हनुमान🙏🙏🚩
🙏🙏जय श्री बड़पिपली बालाजी महाराज🙏🙏🚩
♥️🙏बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार। 🙏🙏🚩
अर्थ- हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूं। आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुखों व दोषों का नाश कार दीजिए। तुलसीदासजी ने प्रथम दोहे में अपनी इच्छा व्यक्त की है परन्तु उनको लगा की इतना बडा संकल्प तो मैने किया है किन्तु शक्ति कम पडती है । इसलिए वे हनुमानजी से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे पवनसुत आप तो बल बुद्धि और विद्या में परिपूर्ण हो आप मुझे शक्ति प्रदान कीजिए क्योंकि मैं दुर्बल हूँ अशक्त हूँ और आपकी के बिना मैं यह कार्य पूर्ण नहीं कर सकता । अत: हे हनुमानजी मुझे ऐसी विद्या दो जिससे मैं अपनी बुद्धि को सुन्दर बना सकूँ तथा राम चरित्र का गान कर सकूँ
🙏🙏जय सियाराम जय जय हनुमान🙏🙏
🙏🙏जय श्री बड़पिपली बालाजी धाम🙏🙏
जयपुर, राजस्थान, 302012
08-01-2023 को बाबा के 1 साल से लगातार 24 घण्टे अखण्ड रामायण के पाठ साथ मे अखण्ड राम राम के जाप का समापन एवं महाराज श्री द्वारा बाबा की बड़ी गद्दी लगी जिसमे 25 हजार से 30 हजार भक्तो का पूरे दिन आना जाना लगा रहा एवं सभी ने बाबा के अपने दुखों , कष्टो आदि को दूर करने की अर्जी भी लगाई । ।
। । । ।सब पर बाबा का आशीर्वाद सदा बना रहे ।।।।
🙏🙏जय सियाराम जय हनुमान🙏🙏
🙏🙏जय सियाराम जय हनुमान🙏🙏
08-01-2023 बड़ी गद्दी व 24 घण्टे लगातार 1 साल का अनुष्ठान समापन हुआ पूरे दिन 20 हजार से 30 हजार भक्तो का आना जाना लगा रहा एवं सभी भक्तों ने अपने कष्टो के निवारण के लिए बाबा के अर्जी भी लगाई एवं बाबा ओर महाराज जी का आशीर्वाद भी लिया । ।
ॐ आञ्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि।
तन्नो हनुमत् प्रचोदयात्॥
अर्थात: अंजना और वायु देव के पुत्र, भगवान हनुमान से हमारी प्रार्थना है, कि हनमुन हमारी बुद्धि को सही दिशा प्रदान करें, हम आप से प्रार्थना करते हैं।
अंजनी सुत हनुमान जी की महिमा हमारें ग्रंथों, पुराणों में बड़े ही विस्तार से कही गई है। कहा जाता है कि चारों युगों में अपनें कृतित्व से भगवत्भक्ति करनें वाले हनुमान जी आज के कलयुग तक भी जीवित हैं और हमारें बीच ही विद्यमान हैं। तभी तो कहा गया है कि-
चारों जुग परताप तुम्हारा, है प्रसिद्द जगत उजियारा
संकट कटई मिटे सब पीरा, जो सुमीरे हनुमत बलबीरा
अन्तकाल रघुवरपूर जाईं, जहां हरिभक्त कहाई
और देवता चित्त न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई।।
अर्थात कलियुग में मात्र हनुमान जी का ध्यान भर कर लेनें से सारे दुखों, कष्टों और पीड़ाओं का अंत हो जाता है, क्योंकि वे आज भी जीवित, जागृत अवस्था में हमारें बीच विद्यमान हैं।
सतयुग में पावन रूप में सजीव रूप से विद्यमान हनुमान जी को शिव रूप में पूजा जाता था और वे भगवान् शिव के आठ रुद्रावतारों में शंकर सुवन केसरी नन्दन के रूप में कहलाये जाते थे।
राम भक्त भगवान हनुमान जी के जन्म के अवसर पर हनुमान जन्मोत्सव पर्व मनाया जाता है। इस दिन बजरंगबली की विधिनुसार पूजा का विधान है। शास्त्रों की मानें तो चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्म हुआ था। हनुमान जी को कलयुग में सबसे प्रभावशाली देवता कहा जाता है। मान्यता है कि हनुमान जी अपने भक्तों के सभी दुख दूर कर देते हैं। इस वर्ष 16 अप्रैल 2022, शनिवार को हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाएगा।
हनुमान जन्मोत्सव 2022 का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, इस बार चैत्र माह की पूर्णिमा की तिथि 16 अप्रैल देर रात 2 बजकर 25 मिनट से शुरू हो रही है। वहीं पूर्णिमा तिथि का समापन 17 अप्रैल को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट पर हो रहा है। इस दिन हस्त और चित्रा नक्षत्र का शुभ संयोग बन रहा है। इसके अलावा हनुमान जन्मोत्सव पर सुबह 5 बजकर 55 मिनट से 8 बजकर 40 मिनट तक रवि योग रहेगा। माना जाता है कि रवि योग में हनुमानजी की पूजा अत्यंत फलदायी होती है। इससे साथ ही इस शुभ योग में अन्य शुभ कार्य भी किए जा सकते हैं।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जिस समय असुरों और देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया था. तब अमृत के लिए देवता और असुर आपस में ही झगड़ने लगे। जिसके बाद विष्णु भगवान ने मोहनी रूप धारण किया। शिव जी ने जब विष्णु जी को मोहिनी के रूप में देखा तो वे वासना में लिप्त हो गए। उस समय ने शिव जी ने अपने वीर्य को त्याग दिया जो हनुमान जी की माता अंजना के गर्भ में स्थापित हो गया। उसी गर्भ से भगवान हनुमान जी ने जन्म लिया। कहा जाता है कि केसरी और अंजना की कठोर तपस्या के बाद ही उन्हें शिव ने पुत्र का वरदान दिया था।
बजरंगबली को शिव भगवान को 11वां रुद्र अवतार माना गया. हनुमान जी के पिता का केसरी और माता का नाम अंजना था। राम भक्त हनुमान को चीरंजीवी भी कहा जाता है जिसका अर्थ है कभी न मरने वाला। हनुमान जी को बजरंगबली के अलावा पवनसुत, महावीर, रामदूत, अंजनीसुत, संकट मोचन, अंजनेय, मारुति और रूद्र के नाम से भी जाना जाता है।
चिर काल से सनातनी हिंदुत्व की विजय पताका के ध्वजवाहक मानें जाने वाले और इसी रूप में पूजे जानें वाले अंजनीनन्दन पवन पुत्र हनुमान केवल सनातनियों के ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारतीयों के लिए आस्था, विश्वास और श्रद्धा के केंद्र रूप में स्थापित हैं। श्री राम भक्त हनुमान के मंदिर या आराधना स्थल केवल भारत में ही नहीं अपितु पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, बर्मा, कम्बोडिया, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, रशिया, अमेरिका, इंग्लेंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि देशों में भी बनें हुयें हैं और वहां भी उनकी मनसा, वाचा और कर्मणा की कथाएं कही सुनी जाती हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की पवनपुत्र श्रद्धा के विषय में तो प्रचलित है कि वे सदा प्रवास के दौरान भी हनुमान जी की छोटी सी प्रतिमा साथ ही रखतें हैं। करोड़ों भारतीयों की भांति ही अमेरिकी राष्ट्रपति हनुमान में श्रद्धा के साथ साथ उनकें प्रसंगों में जीवन प्रबंधन के अनेकों गुणों को भी विस्तार से अपनें जीवन में अंगीकार किये हुए हैं। हनुमान जी के भक्तों में ऐपल कंपनी के मालिक स्टीव जॉब्स, फेसबुक प्रमुख मार्क जकरबर्ग जैसे बड़े-बड़े लोग हैं।
त्रेता युग में आंजनेय हनुमान ने अपनें जन्मों जन्मों के आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम का सान्निध्य और माता सीता का वात्सल्य प्राप्त किया। त्रेता युग में ही उनके अजर अमर होनें की एक किवदंती ध्यान में आती है-
जब भगवान् लंका विजय के पश्चात अयोध्या लौटे और अपनें सभी साथियों जैसे सुग्रीव, विभीषण, अंगद को कृतज्ञता प्रकट करनें लगें तब श्रीराम द्वारा सभी को कुछ न कुछ भेंट स्वरूप दिए जानें के दृष्टांत में भक्त हनुमान प्रभु श्रीराम से कहतें हैं कि-
यावद रामकथा वीर चरिष्यति महीतले,
तावक्षरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशयः
अर्थात हे भक्तवत्सल प्रभु श्रीराम, इस धरती पर जब तक राम कथा का पठन, पाठन और वाचन श्रवण होता रहे तब तक मेरे प्राण इसी शरीर में बसे रहें और मैं सशरीर प्रत्येक रामकथा में उपस्थित रहकर आपकी लीला कथा का आनंद श्रवण करता रहूँ. इस वृतांत में हनुमान जी के कलियुग में भी सशरीर जीवित रहनें का भान श्रीराम के इस उत्तर से मिलता है, भगवान् राम ने आशीर्वाद दिया-
एवतमेत कपिश्रेष्ठ बविता नात्र संशयः,
चरिष्यति कथा लोके च मामिका तावत
भविता कीर्तिः शरीरे प्यत्वस्था
लोकहि यावतश्थास्यन्ति तावत श्थास्यन्ति में कथाः
अर्थात- हे प्रिय भक्त हनुमान इस जगत में जब तक मेरी कथा का वाचन श्रवण होता रहेगा तब तक इस कलियुग में तुम्हारी सशरीर प्रतिष्ठा स्थापित रहेंगी।
शास्त्रोक्त है कि प्रभु श्रीराम से प्राप्त आशीर्वाद के कारण कलियुग में दिग दिगंत में जहां कहीं भी राम कथा का वाचन श्रवण हो रहा होता है वहां हनुमान जी विद्यमान रहते हैं। श्रीमद भागवत में कहा गया है कि कलियुग में पृथ्वी पर हनुमान का निवास स्थान गंधमादन पर्वत पर है. हनुमान के विषय में कथाओं में कहा गया है कि हनुमान धर्मो रक्षति रक्षितः के सूत्र को मानव मात्र का जीवन निमित्त बनानें हेतु पृथ्वी पर वास कर रहें है और जब सनातन धर्म की पुनर्स्थापना नहीं हो जाती वे धर्म व धर्म में आस्था रखनें वाले भक्तों की रक्षा हेतु सदा तत्पर रहेंगे.
आप सभी बंधुजनो को हनुमान जन्मोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ।
आप सभी बंधुजनो से विनम्र निवेदन है कि हनुमान जन्मोत्सव के इस मंगल अवसर पर आप सभी घर पर ही रहकर हनुमान चालीसा का पाठ करें और प्रार्थना करे कि विश्व के कल्याण हेतू प्रार्थना करें।
निवेदन :- रामायण संदेश परिवार।।
किसी भी तरह की त्रुटिओं एवं भूलों के लिए क्षमा प्रार्थी हैं ।
🚩ॐ श्री हनुमते नमः🚩
🚩जय सिया राम🚩
श्री रामदूत, पवनपुत्र, आंजनेय श्री हनुमान जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें
नमामि प्राञ्जलिराञ्जनेयम्
अंजनापुत्र महावीर श्रीहनुमानजी को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ I
#हनुमान #हनुमानजन्मोत्सव #बालाजी #जयश्रीराम #पवनपुत्र
🙏🙏जय सियाराम जय जय हनुमान🙏🙏🚩🚩 सभी को हनुमान जन्मोत्सव की बहुत बहुत शुभकामनाएं🚩🚩🚩
महाकवि महर्षि वाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति के लिए आदर्श मूल्यों की स्थापना करने का पवित्र कार्य किया है। रामायण के रचनाकार, दिव्यदृष्टा महर्षि वाल्मीकि की जयंती पर सादर नमन।।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ग्रंथ ‘रामायण’ को संस्कृत साहित्य का प्रथम महाकाव्य कहा जाता है । यह महाकाव्य बालकांड, अयोध्याकांड, आदि (जैसा श्री तुलसीदासकृत ‘रामचरितमानस’ में है) में विभक्त है, और हर कांड सर्गों में बंटा है । ग्रंथ के आरंभ में, वस्तुतः सर्ग दो में, निम्नलिखित श्लोक का उल्लेख है:
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।।
(रामायण, बालकाण्ड, द्वितीय सर्ग, श्लोक १५)
हे निषाद, तुम अनंत वर्षों तक प्रतिष्ठा प्राप्त न कर सको, क्योंकि तुमने क्रौंच पक्षियों के जोड़े में से कामभावना से ग्रस्त एक का वध कर डाला है । (शब्दकोश के अनुसार क्रौंच सारस की अथवा बगुला की प्रजाति का पक्षी बताया जाता है। किसी अन्य शब्दकोश में चकवा या चकोर भी देखने को मिला है ।)
यह श्लोक महर्षि वाल्मीकि के मुख से एक बहेलिए के प्रति अनायास निकला शाप है कि वह कभी भी प्रतिष्ठा न पा सके । रामायण ग्रंथ के पहले सर्ग में इस बात का उल्लेख है कि देवर्षि नारद महर्षि बाल्मीकि के तमसा नदी तट पर अवस्थित आश्रम पर पधारते हैं और उन्हें रामकथा का संक्षिप्त परिचय देते हैं । देवर्षि के चले जाने के बाद महर्षि अपने शिष्यों के साथ तमसा नदी तट पर स्नानार्थ जाते हैं । तभी वे अपने वस्त्रादि अपने प्रिय शिष्य भरद्वाज को सौंप पेड़-पौधों से हरे-भरे निकट के वन में भ्रमणार्थ चले जाते हैं । उस वन में एक स्थान पर उन की दृष्टि क्रौंच पक्षियों के रतिक्रिया में लिप्त एक असावधान जोड़े पर पड़ती है । कुछ ही क्षणों के बाद वे देखते हैं कि उस जोड़े का एक सदस्य चीखते और पंख फड़फड़ाते हुए जमींन पर गिर पड़ता है । और दूसरा उसके शोक में चित्कार मचाते हुए एक शाखा से दूसरे पर भटकने लगता है । उस समय अनायास ही उक्त निंदात्मक वचन उनके मुख से निकल पड़ते हैं ।
महर्षि के मुख से निकले उक्त छंदबद्ध वचन उनके किसी प्रयास के परिणाम नहीं थे । घटना के बाद महर्षि इस विचार में खो गये कि उनके मुख से वे शब्द क्यों निकले होंगे । वे सोचने लगे कि क्यों उनके मुख से बहेलिए के प्रति शाप-वचन निकले । इसी प्रकार के विचारों में खोकर वे नदी तट पर लौट आये । तमसा नदी पर स्नानादि कर्म संपन्न करने के पश्चात् महर्षि आश्रम लौट आये और आसनस्थ होकर विभिन्न विचारों में खो गये । तभी सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने उन्हें दर्शन दिये और देवर्षि नारद द्वारा उन्हें सुनाये गये रामकथा का स्मरण कराया । उन्होंने महर्षि को प्रेरित किया कि वे पुरुषोत्तम राम की कथा को काव्यबद्ध करें । रामायण के इन दो श्लोकों में इस प्रेरणा का उल्लेख हैः
रामस्य चरितं कृत्स्नं कुरु त्वमृषिसत्तम ।
धर्मात्मनो भगवतो लोके रामस्य धीमतः ।।
वृत्तं कथय धीरस्य यथा ते नारदाच्छ्रुतम् ।
रहस्यं च प्रकाशं च यद् वृत्तं तस्य धीमतः ।।
(रामायण, बालकाण्ड, द्वितीय सर्ग, श्लोक ३२ एवं ३३)
हे ऋषिश्रेष्ठ, तुम श्रीराम के समस्त चरित्र का काव्यात्मक वर्णन करो, उन भगवान् राम का जो धर्मात्मा हैं, धैर्यवान् हैं, बुद्धिमान् हैं । देवर्षि नारद के मुख से जैसा सुना है वैसा उस धीर पुरुष के जीवनवृत्त का बखान करो; उस बुद्धिमान् पुरुष के साथ प्रकाशित (ज्ञात रूप में) तथा अप्रकाशित (अज्ञात तौर पर) में जो कुछ घटित हुआ उसकी चर्चा करो । सृष्टिकर्ता ने उन्हें आश्वस्त किया कि अंतर्दृष्टि के द्वारा उन्हें श्रीराम के जीवन की घटनाओं का ज्ञान हो जायेगा, चाहे उनकी चर्चा आम जन में होती आ रही हो या न ।
और तब आरंभ हुआ रामायण ग्रंथ की रचना श्लोकों में निबद्ध होकर । देवर्षि नारद द्वारा कथित बातें, सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की प्रेरणा, और रामकथा की पृष्ठभूमि आदि का उल्लेख महर्षि वाल्मीकि ने स्वयं अपने ग्रंथ के आरंभ में किया है । पूरा ग्रंथ ‘श्लोक’ नामक छंदों में लिखित है । मैंने अभी रामायण का अध्ययन आरंभ ही किया है, लेकिन सरसरी निगाह डालने पर मैंने पाया कि ग्रंथ की भाषा काफी सरल है, और श्लोकों को समझना संस्कृत के सामान्य ज्ञान वाले व्यक्ति के लिए भी संभव है ।
🚩जय सियाराम 🚩
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राम काज कीन्हे बिनु मोहि कहाँ बिश्राम