Swami shiv nath

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एको ब्रह्म सर्व व्यापि

श्री योग वशिष्ठ महारामायण का सरल ज्ञान...प्रवचन....स्वामी शिव नाथ जी महाराज विचार भाव.. 26/07/2023

https://youtu.be/jXcYJ9HchNs

श्री योग वशिष्ठ महारामायण का सरल ज्ञान...प्रवचन....स्वामी शिव नाथ जी महाराज विचार भाव.. भगवान वाल्मिकी जी कहते हैं एक छोटा सा विचार तुम्हें मुक्त कर सकता है

05/11/2022

….विचार…..और भाव….
साक्षी भाव की साधना करने वाले साधकों को ऐसे अनुभव हुए हैं कि जैसे सिर के ऊपर मधुमक्खियाँ भिनभिना रहीं हों ।ठीक वैसे ही विचारों को भिनभिनाते हुए अनुभव किया ।
तब उनने जाना कि हम उन विचारों को जाने अनजाने ग्रहण करते और प्रसारित करते रहते हैं ।जिस विचार को हम कार्य रूप में परिणित नहीं कर पाते वे हमारे द्वारा अनजाने में ही भाव जगत में पुनः प्रसारित हो जाते हैं ।फिर कोई और उन विचारों के वश हो क्रियाशील हो जाता है ।
यह सृष्टि बहुआयामी है ।हम दो आयामों को सहज ही अनुभव कर सकते हैं ।प्रत्यक्ष जगत जो भौतिक है पदार्थ से बना है।परोक्ष जगत जो अभौतिक हैं पदार्थ से निर्मित नहीं है पर पदार्थ को प्रभावित करने की क्षमता से युक्त है। भाव विचार आदि अभौतिक जगत का भाग हैं ।
सृष्टि में जो भी अच्छा बुरा, शुभ अशुभ, गुण अवगुण हैं ।सब शाश्वत हैं सनातन हैं ।
मनुष्य अपने स्वभाव आचरण से जिस गुण अवगुण से जुड़ जाता है उसी के अनुरूप फल प्राप्त करता है ।
मूर्छितावस्था पशुभाव का लक्षण है ।इस अवस्था में शुभाशुभ के चयन की सुविधा नहीं होती ।अतः कठपुतली की तरह विचारों और भावों के नियंत्रण में फल भोग के लिए विवश होते हैं ।
जाग्रतावस्था वीरभाव का लक्षण है ।इस अवस्था में शुभाशुभ के चयन की क्षमता प्राप्त हो जाती है ।अतः फल भोग की विवशता भी नहीं रहती ।

अतः बुद्धिजीवियों ज्ञानियों(जो समाज में परिवर्तन सुशासन की स्थापना के इच्छुक है) को चाहिए कि वे उदासीन न रहें ।मनसा वाचा कर्मणा समुचित विचारों भावों को प्रसारित करते रहें ।दृढ़ संकल्प के साथ निरन्तर प्रयास रत रहने पर मनोकूल परिणाम प्राप्त होते हैं ।विचारों और भावों में असीम शक्ति होती है ।…👏👏👏

11/07/2022

*प्रातः वंदन,,,,🙏*

*जीवन एक वृक्ष है*,
*संस्कार इसमें दिया जानेवाला खादपानी*
*और आचरण ही इसका फल है*
*जीवन रुपी इस वृक्ष में*
*संस्कार रुपी खादपानी का जितना*
*सुन्दरतम सिंचन किया जाएगा*
*आचरण रुपी फल भी*
*उतना ही मधुरतम व श्रेष्ठतम होगा*
*हरियाली अवश्य किसी वृक्षका सौंदर्य है*
*फल उसकी सार्थकताहै*
*जिस प्रकार फल*
*वृक्ष की उपयोगिता को बड़ा देते हैं*
*ऐसे ही हमारा आचरण ही*
*संसार में हमारी उपयोगिता का*
*निर्धारण भी करता है*
*फल जितना सुस्वादु व मधुर होगा*
*वृक्ष की उपयोगिता उतनी ही अधिक*
*ठीक ऐसे ही हमारा आचरण भी जितना*
*मधुर व श्रेष्ठ होगा समाज में हमारी*
*उपयोगिता भी उतनी ही अधिक होगी*

*सुप्रभात,,,,🙏*

02/05/2022

मोक्ष का उपाए

है राम मोक्ष आकाश में नही ना
पाताल में है ,ना भूमि लोक में है
चित का निर्मल होना ही मोक्ष है

तप और तीर्थ से स्वर्ग की प्राप्ति
होती है मोक्ष की नही

है राम मोक्ष किसी देश मैं नही
की वहा जाकर पाओ ना किसी
काल मैं ही है कि अमूक काल
आएगा तब मुक्त होगा केवल
अहंकार के त्याग से मोक्ष होता है

शम शंतोष साधु संग और विचार
यह मोक्ष के चार द्वारपाल है जिसके
सेवन से ये मोक्ष रूपी राजमहल का
दरवाज़ा खोल देते है

जब जीव सब प्रणियो में आत्मा को
और आत्मा में सब प्रणियो को देखता
है और किसी प्रकार का भेद नही समझता
तब वो मुक्त होता है

योग वशिष्ट ……

12/02/2022

जो जितना जागा हुआ है, वह उतना प्रेमपूर्ण होगा! वह उतना करुणामय होगा, वह उतना तत्पर होगा कि किसी का दुःख मिटा सके, तो मिटाने की कोशिश करें! यह सेवा पैदा होगी उसकी जागरूकता से; उसकी जागरूकता परिणाम होगी!
इस देश में काफी जोर दिया! अच्छा काम करो! समाज का, देश का, दरिद्र का, दीन का कुछ हित करो, कल्याण करो, यही साधुता का लक्षण है! सेवा धर्म है, गांधी ने कहा!
शब्द बड़े अच्छे है! और जिनके पास बहुत गहरी परख नहीं है, उन्हें बिलकुल ठीक लगेंगे! लेकिन बिलकुल विपरीत है! धर्म सेवा है; लेकिन सेवा धर्म नहीं है! धार्मिक व्यक्ति से सेवा उठेगी; लेकिन कोई सेवा को ही साध ले, तो धार्मिक हो जाएगा, भूल में पड़ने की कोई जरुरत नहीं है१ इसका परिणाम भी सामने है, लेकिन फिर भी मुल्क जागता नहीं !
गांधी ने जितने सेवक पैदा किए थे, वे सब शोषक सिद्ध हुए! जिनको उन्होंने तैयार किया था सब कुछ छोड़ देने के लिए, त्याग के लिए, वे सत्ताधिकारी हो गए और उन्होंने सब कुछ पकड़ लिया! छोड़ने की तो बात ही अलग हो गई!
जैसे ही मुल्क से सत्ता बदली, जो सेवक था, वह अचानक शासक हो गया! शायद मज़बूरी थी इसलिए! अब कोई सेवक बनने को तैयार नहीं! या अब भी अगर कोई सेवक बनता है, तो साधन की तरह, क्योंकि शासक तक जाने का रास्ता सेवक होने से गुजरता है! ------ ........ओशो........ (गीता दर्शन )

28/01/2022

पुरुषार्थ ही देव है

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