Joganvan

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11/02/2022

जो लोग/प्रेम
दुत्कार दिए जाते हैं किसी अपने के द्वारा,
वो ताउम्र भटकते रहते हैं‌
खुद को स्वीकारने की तलाश में।
~वंदना 🌻

29/11/2021

कुछ ज़ख्म वक़्त के साथ नहीं, प्रेम के साथ भरते हैं...🌻

~वंदना दोहरे
Vandana Dohre]
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Vandana Dohre]

19/11/2021

जैसा कि सब जानते हैं आज झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्मदिवस हैं। जो कि हर साल खूब जोरों से मनाया जाता हैं और इस साल भी मनाया जा रहा हैं। हर तरफ उनके पोस्टर और जश्न का माहौल है। हमारे झांसी का तो नजारा ही देखने लायक है।
वैसे जब भी बात किसी वीरांगना की आती हैं तो उनमें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम सुन लोग बहुत गर्व महसूस करते हैं
और इनमें से ज्यादातर लोग वो होंगे जो सुबह से लेकर शाम तक अपने आस पड़ोस, अपनी दोस्त, बेटियों, बहनों, पत्नियों और इस संसार की हर औरत को ये बताने की कोशिश में लगे रहते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। औरतें क्या कर सकती हैं या क्या नहीं....!
जिनकी पूरी जिंदगी औरतों के कपड़ों, उनके रंग-रूप, उनकी चाल ढाल और उनके शरीर की बनावट पर टिप्पणी करने में ही निकल जाती हैं
और इस संकीर्ण सोच का हिस्सा सिर्फ पुरुष नहीं है बल्कि औरतें भी इसमें बराबर की भागीदारी हैं।

हम औरतें आज भी इस दुविधा में पड़े हैं कि हमें मासिक धर्म (menstrual cycle) में मंदिर जाना चाहिए या नहीं, पूजा करनी चाहिए या नहीं, पौधों लगाने चाहिए या नहीं, उन्हें पानी देना चाहिए या नहीं, किंचन में खाना बनाना चाहिए या नहीं। आज भी जब शादी की बात आती है तो हम एक सुंदर, अच्छे रंग-रुप, सुशील- संस्कारी और गृहकार्य में दक्ष लड़की को ही चुनना पसंद करते। मानो हमने औरत के अस्तित्व को सिर्फ खूबसूरती की किसी प्रतिमा में क़ैद करके रख दिया हो। वैसे हमें औरतों के आगे सदा लक्ष्मण रेखा खींचना ही तो आया हैं ना? खैर हमने अक्सर लोगों को ये कहते हुए सुना होगा कि अच्छी जाॅब नहीं लगी तो अच्छी लड़की नहीं मिलेगी पर कभी किसी ने अपनी बेटी-बहन से ये बोला होगा कि अच्छी जाॅब नहीं लगी तो अच्छा लड़का नहीं मिलेगा। या कभी अपने घर के लड़कों को किचन में ले जाकर ख़ाना बनाना सिखाया हो जैसा कि अक्सर हम अपने घर की लड़कियों के साथ करते हैं?

जब हमें बदलाव लाना ही नहीं है तो फिर ये उत्सव किस बात का? इस शारीरिक आजादी का क्या फायदा जब हमें मानसिक रुप से पिछड़ा ही रहना है?
या हमें झूठा उत्सव और दिखावा करने की आदत सी हो गई है।
सिर्फ देश की महान लोगों के जन्मदिन/पुण्यतिथि मनाने से कुछ नहीं होगा अगर हम उनके जीवन का अंश मात्र भी अपने जीवन में ना उतार पाये।
और हां किसी कवि ने कहा है- इंकलाब चूड़ियों से ही आएगा।

~वंदना दोहरे 🌻

19/10/2021

प्रेम बिना,.... कैसा विद्रोह ..!
-वंदना दोहरे ©
१८-१०-२१✍️

14/09/2021

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌻❣️

28/08/2021

तुमने विश्वास किया ईश्वर पर,
मैंने प्रेम पर।

तुम आस्तिक कहलाये और मैं
नास्तिक।

पर हम-तुम अलग कैसे?
"प्रेम ईश्वर से भिन्न तो नहीं!"

-वंदना दोहरे©

♥️

24/08/2021

प्रेम संसार की सबसे सुंदर क्रान्ति हैं,
जो निरंतर चलती रहनी चाहिए़!

ताकि

रोका जा सके
दिलों में पैदा होती नफरतों को
खून में मिलने से,
रोकी जा सके बंदूक से निकलती गोलियां,
तोपों से निकलते बारूद के गोले,
रोके जा सके युद्ध, त्रासदियां,
रोके जा सके आंसू!

और

रोकी जा सके हत्याएं,
हत्याएं इन्सानियत की,
हत्याएं किसी के बचपन की,
किसी की उम्मीदों की,
किसी के हौसलों की,
हत्याएं भविष्य की,
हत्याएं कविताओं में जीवित प्रेम की!

और

रोकी जा सके हार,
हार एक औरत की,
हार जीवन की!

क्यूंकि

जब हारी जाती हैं औरतें
मर्दों की जंग में, युद्ध में,
षड्यंत्र में, कुल में, घर में,
और समाज में,
तो
हार जाता हैं जीवन,

"क्यूंकि हार जाता हैं - प्रेम!"

-वंदना दोहरे©

Pic - pinterest



कविताएँ और साहित्य 🥀] कविताएँ और साहित्य 🥀]

18/08/2021

कट्टरता, "एक अभिशाप हैं!"

-वंदना दोहरे ©

♥️

12/08/2021

विकल्प...!
महत्व कम हो सकता हैं पर अर्थ कभी नहीं!

-वंदना दोहरे ©

♥️

11/08/2021

मेरे जीवन में तुम्हारा महत्व
बस उतना ही हैं,

जितना किसी शरीर में
उसकी आत्मा का होता हैं!

जैसे आत्मा के बिना
शरीर मृत हो जाता हैं,

वैसे ही
तुम बिन मैं मृत हूं!

वो मृत,
जिसकी आत्मा में नहीं गूंजता अब
कोई प्रेम संगीत,

जिसके हृदय की जमीन अब
बंजर हो गई हैं,

उस पर नहीं खिलते अब
प्रेम के फूल,

खिलती है तो बस कविताएं,
विरक्ति और कभी ना खत्म होने वाले
इन्तजार की कविताएं!

-वंदना दोहरे ©
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08/08/2021

क्रोध की जिस अग्नि में
हमें,
जलानी चाहिए थी
समाज की कुरूतियां,

हमने,
चुना जलाना
किसी प्रेम-पत्र में
सांस लेते
दो प्रेमियों का प्रेम!
-वंदना दोहरे ©️
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05/08/2021

कोई खुश था बहुत आज
बारिश में भींगकर,

कोई बैठा रहा उदास
अपनी रोती हुई छत को देखकर!

-वंदना दोहरे ©️
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♥️

Photos from Joganvan's post 02/08/2021

आप आजादी का खुला आसमान तो दीजिए,
पिंजरों में कैद पंछी भी उड़ना जानते हैं!
-वंदना दोहरे ©️

Pic source-Twitter

01/08/2021

...❤🌺

30/07/2021

प्रेम में छूटते हैं जब वो हाथ,
रुठ जाते हैं सावन के सौलह श्रृंगार!
-वंदना दोहरे ©️
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28/07/2021

-वंदना दोहरे ©️

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"किन्तु प्रेम में कोई बंधन नहीं होता हैं!"

-वंदना दोहरे ©️

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#

20/07/2021

मरीज -ए- इश्क़...🥀

Hum bhatke dar-badar sham-o-sehar,
Is rog ka koi chaaragar* na mila magar..!

* डाक्टर

-वंदना दोहरे ©️
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"पांच दिन, प्रत्येक माह, तकरीबन पचास बर्ष और स्त्री....!"

"प्रकृति के घाट पर प्रकृति को प्रकृति से ही दूर रखा जाता हैं.."
जो स्वयं प्रकृति हैं वो भला प्रकृति के अन्य रूप को दूषित कैसे कर सकती हैं..??
ऐसी सोच के लिए बस यही कहूंगी -
"लहू से पैदा हुई, ताउम्र लहू को धोया..
तब जाकर उस औरत ने इक संसार को बोया..!"

-वंदना दोहरे ©️

Pic source- Twitter

16/07/2021

"कुछ रिश्ते", काफी हैं आपको जिन्दा होने का एहसास दिलाने के लिए है....❣️🥀

-वंदना दोहरे ©️
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12/07/2021

क्यों...? 🙄
अनश्वर - कभी नष्ट ना होने वाला (अमर)
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11/07/2021

ये बेबुनियाद और बेतुकी पाबंदियां....🙄
-वंदना दोहरे ©️
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10/07/2021

'स्वर्ग' उसी जमीन पर सम्भव हैं
जिसकी मिट्टी में "प्रेम" उगता हो..! ❣️🥀
-वंदना दोहरे ©️
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27/06/2021

"प्रेम"
तर्क और फर्क से परेय होता हैं। 🌈

Love has no boundaries.❣️
-वंदना दोहरे ©️

🌈

26/06/2021

वो रिश्ते खून के कुछ यूं निभाते हैं,
एक आंगन को कई हिस्सों में बांट खाते हैं!
- वंदना दोहरे ©️
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Photos from Joganvan's post 20/06/2021

मां गर जमीं तो पिता आसमान!
मां गर घर की नींव तो पिता घर की छत।

Father's day..♥️
-वंदना दोहरे ©️
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17/06/2021

"बाजारू आदमी", कभी सुना है? 🤔
-वंदना दोहरे ©️
🌺

Timeline photos 15/06/2021

लफ़्ज़ों का क्या काम जब खामोशियां करने लगे गुफ्तगू .....❣️🌺

-वंदना दोहरे ©️

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Timeline photos 11/06/2021

❣️🌺
-वंदना दोहरे ©️
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Timeline photos 06/06/2021

Book review - "जौन एलिया" एक अजब-गजब शायर by मुन्तजिर फिरोजाबादी.❣️
"मैं जो हूँ, ‘जॉन एलिया’ हूँ जनाब
इस का बेहद लिहाज़ कीजियेगा"

💮 कहते हैं अगर नशा करना ही है तो किताबों का करना चाहिए और जब बात "तिश्नगी-ए-जौन" की हो तो जितना पढ़ोगे उतना कम है।

🌺जौन का परिचय उन्हीं की जुबानी-
अपना खाका लगता हूं,
एक तमाशा लगता हूं।

💮 हिन्दुस्तान के अमरोहा में पैदा हुए और पाकिस्तान के कराची की मिट्टी में दफन हुए जौन एलिया एक मुंहफट, बेबाक और बागी शायर थे, जिसने सारी जिंदगी खुद को माचिस की तीलियों की तरह खर्च किया।
🌺 अपनी जिंदगी के बारे में जौन कहते हैं-
जो गुजारी न जा सकी हमसे
हमने वो जिंदगी गुजारी है ‌

आज के दौर के हर शख्स के जुबान पर जाने-अनजाने ये शेर आ ही जाता है।

💮 इस किताब में मुन्तजिर फिरोजाबादी जी ने "जौन एलिया" साहब और उनके जीवन को बड़ी ही खूबसूरती से पेश किया है। जैसा कि उन्होंने लिखा है -
"किसी भी मशहूर शख्स की जिन्दगी उसके चाहने वालों के लिए अपने आप में ही एक मुकम्मल किताब होती है।"

💮 उस मशहूर ज़िंदगी की इस मुकम्मल किताब के कुछ नज़्म, शेर और शायरी -

🏵️ John Elia as an Atheist-
🌺 बुत है के खुदा है वो माना है ना मानूंगा
उस शोख से जब तक मैं खुद मिल नहीं आने का।

🏵️ Main Pakistani nahi Hindustani hu-
🌺 क्या पूछते हो नाम-ओ-निशान-ए-मुसाफिरों
हिंदोस्ताॅ में आए हैं हिंदोस्ताॅ के थे।

🏵️ और कुछ खूबसूरत और मेरे पसंदीदा शेर-

🌺 मेरी हर बात बेअसर ही रही
नक्स हैं कुछ मेरे बयान में क्या?

🌼 सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई
क्यूं चीख चीख कर न गला छील लें कोई!

🌺 गैर से रहियो तू जरा होशियार
वो तेरे जिस्म की हवस में है!

🌼ये मुझे चैन क्यों नहीं पड़ता
एक ही शख्स था जहान में क्या?

🌺 एक हुनर है जो कर गया हूं मैं
सब के दिल से उतर गया हूं मैं!

ऐसे ही इक मुकम्मल, खूबसूरत किताब में आपको जौन एलिया जी के अलग-अलग किरदार जिंदा मिलेगे।
कभी एक बेबाक शायर, तो कभी एक रोमांटिक आशिक, तो कभी एक गमगीन सौहर, तो कभी एक आजादी के लिए लड़ते देशप्रेमी और कभी खुद से तो कभी खुदा से नाराज़ इन्सान के रूप में। 🏵️🌺🌼❣️

📚 😘

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