Indianveer rajsthani
राजस्थानी राजनीति सनातन संस्कृति
सभी सनातनी हिंदुओं को
#रामनवमी_की_हार्दिक_शुभकामनाए
#महिला_सशक्तिकरण किसे कहते हैं जानना चाहेंगे ?
हमारा सनातन धर्म जहां सदियों पहले से महिलाओं को पुरुषों के बराबर सामाजिक अधिकार प्राप्त था महिलाएं शिक्षा ग्रहण करने के साथ युद्ध में भी सक्रिय भूमिका निभाती थीं।
जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं ये 900 -1000 वर्ष पहले निर्मित प्रतिमायें।🙏
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बिजली के आविष्कारक - महर्षि अगस्त्य
राव साहब कृष्णाजी वझे ने १८९१ में विज्ञान संबंधी ग्रंथों की खोज के दौरान उन्हें उज्जैन में दामोदर त्र्यम्बक जोशी के पास अगस्त्य संहिता के कुछ पन्ने मिले।
इस संहिता के पन्नों में उल्लिखित वर्णन को पढ़कर नागपुर में संस्कृत के विभागाध्यक्ष रहे डा. एम.सी. सहस्रबुद्धे को आभास हुआ कि यह वर्णन डेनियल सेल से मिलता-जुलता है। अत: उन्होंने नागपुर में इंजीनियरिंग के प्राध्यापक श्री पी.पी. होले को वह दिया और उसे जांचने को कहा। श्री अगस्त्य ने अगस्त्य संहिता में विधुत उत्पादन से सम्बंधित सूत्रों में लिखा:संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्॥
अगस्त्य संहिता :
अर्थात: एक मिट्टी का पात्र (Earthen pot) लें, उसमें ताम्र पट्टिका (copper sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगायें, ऊपर पारा (mercury) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो, उससे मित्रावरुणशक्ति का उदय होगा।
पर अब यहाँ थोड़ी सी हास्यास्पद स्थति उत्पन्न हुई।
उपर्युक्त वर्णन के आधार पर श्री होले तथा उनके मित्र ने तैयारी चालू की तो
उपर्युक्त वर्णन के आधार पर श्री होले तथा उनके मित्र ने तैयारी चालू की तो शेष सामग्री तो ध्यान में आ गई,
परन्तु शिखिग्रीवा समझ में नहीं आया। संस्कृत कोष में देखने पर ध्यान में आया कि शिखिग्रीवा याने मोर की गर्दन।अत: वे और उनके मित्र बाग गए तथा वहां के प्रमुख से पूछा, क्या आप बता सकते हैं, आपके बाग में मोर कब मरेगा, उन्होंने पूछा क्यों?
उन्होंने कहा, एक प्रयोग के लिए मुझे उसकी गर्दन की आवश्यकता है।उन्होंने कहा आप एक अर्जी दे जाइये।इसके कुछ दिन बाद एक आयुर्वेदाचार्य से बात हो रही थी। उनको यह सारा घटनाक्रम सुनाया तो वे हंसने लगे और उन्होंने कहा,
यहां “शिखिग्रीवा” का अर्थ मोर की गर्दन नहीं अपितु उसकी गर्दन के रंग जैसा पदार्थ “कॉपरसल्फेट” है।
तब उनकी समस्या हल हुई और फिर उन्होंने उस आधार पर एक सेल बनायाऔर डिजीटल मल्टीमीटर द्वारा उसको नापा। परिणामस्वरूप 1.138 वोल्ट तथा 23 mA धारा वाली विद्युत उत्पन्न हुई
प्रयोग सफल होने की सूचना डा. एम.सी. सहस्रबुद्धे को दी गई। इस सेल का प्रदर्शन ७ अगस्त, १९९० को स्वदेशी विज्ञान संशोधन संस्था (नागपुर) के चौथे वार्षिक सर्वसाधारण में किया गयाआगे श्री अगस्त्य जी लिखते है:
अनने जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु।
एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥
सौ कुंभों की शक्ति का पानी पर प्रयोग करेंगे, तो पानी अपने रूप को बदल कर प्राण वायु (Oxygen) तथा उदान वायु (Hydrogen) में परिवर्तित हो जाएगा।आगे लिखते है:
वायुबन्धकवस्त्रेण निबद्धो यानमस्तके
उदान : स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्।
(अगस्त्य संहिता शिल्प शास्त्र सार)
उदान वायु (H2) को वायु प्रतिबन्धक वस्त्र (गुब्बारा) में रोका जाए तो यह विमान विद्या में काम आता है।राव साहब वझे, जिन्होंने भारतीय वैज्ञानिक ग्रंथ और प्रयोगों को ढूंढ़ने में अपना जीवन लगाया,
उन्होंने अगस्त्य संहिता एवं अन्य ग्रंथों में पाया कि विद्युत भिन्न-भिन्न प्रकार से उत्पन्न होती हैं, इस आधार पर उसके भिन्न-भिन्न नाम रखे गयें है१) तड़ित्: रेशमी वस्त्रों के घर्षण से उत्पन्न।
(२) सौदामिनी: रत्नों के घर्षण से उत्पन्न।
(३) विद्युत: बादलों के द्वारा उत्पन्न।
(४) शतकुंभी: सौ सेलों या कुंभों से उत्पन्न।
(५) हृदनि: हृद या स्टोर की हुई बिजली।
(६) अशनि: चुम्बकीय दण्ड से उत्पन्न।अगस्त्य संहिता में विद्युत् का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पालिश चढ़ाने की विधि निकाली। अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।आगे लिखा है:
कृत्रिमस्वर्णरजतलेप: सत्कृतिरुच्यते।
:शुक्र नीति
यवक्षारमयोधानौ सुशक्तजलसन्निधो॥
आच्छादयति तत्ताम्रं स्वर्णेन रजतेन वा।
सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रं शातकुंभमिति स्मृतम्॥ ५
(अगस्त्य संहिता)
अर्थात्: कृत्रिम स्वर्ण अथवा रजत के लेप को सत्कृति कहा जाता है।लोहे के पात्र में सुशक्त जल अर्थात तेजाब का घोल इसका सानिध्य पाते ही यवक्षार (सोने या चांदी का नाइट्रेट) ताम्र को स्वर्ण या रजत से ढंक लेता है। स्वर्ण से लिप्त उस ताम्र को शातकुंभ अथवा स्वर्ण कहा जाता है।
उपरोक्त विधि का वर्णन एक विदेशी लेखक David Hatcher Childress ने अपनीपुस्तक "Technology of the Gods: The Incredible Sciences of the Ancients" में भी लिखा है।
अब मजे की बात यह है कि हमारे ग्रंथों को विदेशियों ने हम से भी अधिक पढ़ा है। इसीलिए दौड़ में आगे निकल गये और सारा श्रेय भी ले गये।आज हम विभवान्तर (पोटेन्शियल डिफरेन्स) की इकाई “वोल्ट” तथा विद्युत धारा (electric current) की “एम्पीयर” लिखते है जो क्रमश: वैज्ञानिक Alessandro Volta तथा André-Marie Ampère के नाम पर रखी गयी है।
जबकि वास्तव में ये इकाई “अगस्त्य” होनी चाहिए थी।
#सत्य_सनातन
#भारतवर्ष
कुछ नक्काशियाँ जिन्हें बनाने के लिए केवल सनातनी पूर्वज ही सक्षम थे ।
यह किसी धातु से बनी नक्काशी नहीं है बल्कि यह सम्पूर्ण आकृति एक पत्थर को तराश कर बनाई गई है ।
क्या इतनी बारीक नक्काशियों को हाथों से बना पाना सम्भव है ?
क्या छेनी पर हथौड़ी के एक भी गलत स्ट्रोक से इसके टूटने की संभावना नहीं थी ?
क्या दुनियाँ के किसी कोने में ऐसी नक्काशियाँ पायी गयी हैं ?
आखिर वामपंथी इतिहासकारों ने हमारे तकनीक युक्त वैभवशाली इतिहास को किताबों में "पिछड़ा हुआ इतिहास" क्यों लिखा है ?
आइये हम अपने उन्नत और समृद्ध अतीत का प्रचार करें
#सनातन
#भारतवर्ष
सशक्त अखंड भारतवर्ष के लिए इतिहास से सबक लेते हुए राष्ट्रवाद की चेतना जगाते रहे समाज को संगठित कीजिए
#अखंड_भारत
#सनातनहमारीपहचान
"जय भवानी - जय शिवाजी "
हिंदू स्वराज के संस्थापक परम प्रतापी शौर्यवान योद्धा,अद्वितीय महानायक छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन करता हूँ। 🚩
#छत्रपति
#शिवाजी_महाराज #हिंदवी_स्वराज्य
सनातनी हिंदू समाज को ऐसे लोगो का स्वय विरोध करना होगा
जो हमारे सनातन को पाखड के जरिए चुनौती देते है अपने आप को ईश्वर घोषित करने पे तुले हुए है
#सनातनहमारीपहचान
#सनातन ्री_राम #राष्ट्रवाद
#पेज_फॉलो_करे_सनातनी
राम सिया राम सिया राम जय जय राम
्री_राम
्री_राम
कुछ पुरातत्वविद मिस्र (Egypt) में राजधानी काहिरा से दक्षिण की तरफ मौजूद शहर अबु गोराब (Abu Gorab) के रेगिस्तान में खनन कर रहे थे. अचानक उन्हें ऐसा प्राचीन मंदिर मिला जिसे देखकर वो हैरान रह गए. यह मंदिर सूर्य देव (Sun Temple) का है. पिछले 4500 सालों से यह रेगिस्तान में दबा था. मिस्र के आर्कियोलॉजिस्ट का मानना है कि यह पिछले दशक की सबसे बड़ी खोज है. इसे मिस्र फैरोह (Pharoaoh) ने बनावाया था.
4500 Year old Sun temple Egypt
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मिस्र में अब तक दो प्राचीन सूर्य मंदिरों की खोज की गई है. हालांकि वॉरसॉ स्थित एकेडमी ऑफ साइंसेज में इजिप्टोलॉजी के असिसटेंट प्रोफेसर डॉ. मासिमिलानो नुजोलो ने कहा कि हमने ऐसी प्राचीन वस्तुओं की खोज के लिए काफी समय दिया है. लेकिन जब ऐसा कुछ मिलता है जो पूरी सभ्यता, संस्कृति और उस समय के निर्माणकला विज्ञान को दर्शाता है तो हैरानी होती है. बहुत कुछ सीखने को मिलता है.
4500 Year old Sun temple Egypt
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पुरातत्वविदों के अनुसार यह मंदिर पांचवें साम्राज्य के फैरोह ने बनवाया था. तब वह जीवित थे. इसका मकसद था कि उन्हें लोग भगवान का दर्जा दें. दूसरी तरफ पिरामिड्स बनवाए गए थे, जहां पर फैरोह के मरने के बाद उनकी कब्र बनाई जाती थी. ताकि मरने के बाद वह भगवान का स्वरूप हासिल कर सकें.
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मिस्र के उत्तर में पुरातत्वविदों को मिले सूर्य मंदिर से यह पता चला था कि देश में और भी सूर्य मंदिर हैं. जिसके बाद पूरे देश में इन मंदिरों की खोज शुरू की गई. फिर यह जानकारी मिली की मिस्र में ऐसा छह सूर्य मंदिर हैं, जो 4500 साल पहले बनवाए गए थे. उनमें से एक अभी अबु गोराब के रेगिस्तान में मिला है.
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मिस्र के पांचवें साम्राज्य के फैरोह न्यूसिरी इनी (Nyuserre Ini) ने इन मंदिरों का निर्माण कराया. अभी जो मंदिर मिला, वह भी इन्ही ने बनवाया था. न्यूसिरी इनी ने ईसापूर्व 25वीं सदी में 30 साल तक साम्राज्य किया था. जब पुरातत्वविदों ने और जांच की तो पता चला कि मंदिर का निर्माण मिट्टी से बने ईंटों से किया गया था. जिसकी दो फीट गहरी नींव चूना पत्थरों से बनाई गई थी.
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विशेषज्ञों का मानना है कि असली मंदिर काफी विहंगम रहा होगा. क्योंकि अबु गोराब में मिले अवशेषों को लेकर उन्होंने इस मंदिर की डिजाइन कंप्यूटर पर बनाई. जो देखने में काफी खूबसूरत दिखता है. इसके अलावा पुरातत्वविदों को प्राचीन स्थल से बीयर के जार मिले, जो मिट्टी से भरे हुए थे. इन जारों में सूर्य देवता को किसी पूजा पाठ के समय चढ़ावा दिया जाता रहा होगा.
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डॉ. मासिमिलानो नुजोलो ने कहा कि हमें बहुत पहले से यह अंदाजा था कि अबु गोराब के रेगिस्तान में जमीन के नीचे कुछ छिपा है. जिसे न्यूसिरी ने बनवाया था. लेकिन हमें यह नहीं पता था कि हम इतने बड़े स्तर की खोज करेंगे. अब हमारे पास पर्याप्त सबूत हैं जो कि मिस्र के सूर्य मंदिरों की कहानियां बताते हैं. हालांकि, अब भी यह बात स्पष्ट नहीं हो पाई है कि सूर्य मंदिर बनवाने के पीछे का असली मकसद क्या था.
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डॉ. मासिमिलानो नुजोलो ने कहा कि क्योंकि अभी यह पता करना बाकी है कि एक फैरोह ने यह मंदिर बनवाए या उनके काल के अलग फैरोह ने भी यह काम किया था. मिस्र का पांचवां साम्राज्य करीब 150 सालों तक रहा. यह 25वीं सदी ईसापूर्व से लेकर मध्य 24वीं सदी ईसापूर्व तक था. दूसरी बात ये है कि छोटे राजाओं द्वारा भी सूर्य मंदिर बनवाने का इतिहास दर्ज है. मिस्र के लोग सूर्य देवता को Ra नाम से बुलाते थे. जो नील नदी के किनारे बना है.
#सत्यसनातन
#सनातन
#समयसूचक AM और PM का उद्गम स्थल भारत ही था।
पर हमें बचपन से यह रटवाया गया, विश्वास दिलवाया गया कि इन दो शब्दों AM और PM का मतलब होता है :
AM : एंटी मेरिडियन (ante meridian)
PM : पोस्ट मेरिडियन (post meridian)
एंटी यानि पहले, लेकिन किसके?
पोस्ट यानि बाद में, लेकिन किसके?
यह कभी साफ नहीं किया गया, क्योंकि यह चुराये गये शब्द का लघुतम रूप था।
हमारी प्राचीन संस्कृत भाषा ने इस संशय को अपनी आंधियों में उड़ा दिया और अब, सब कुछ साफ-साफ दृष्टिगत है।
कैसे?
देखिये...
AM = आरोहनम् मार्तण्डस्य Aarohanam Martandasya
PM = पतनम् मार्तण्डस्य Patanam Martandasya
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सूर्य, जो कि हर आकाशीय गणना का मूल है, उसीको गौण कर दिया। अंग्रेजी के ये शब्द संस्कृत के उस 'मतलब' को नहीं इंगित करते जो कि वास्तव में है।
आरोहणम् मार्तण्डस्य Arohanam Martandasaya यानि सूर्य का आरोहण (चढ़ाव)।
पतनम् मार्तण्डस्य Patanam Martandasaya यानि सूर्य का ढलाव।
दिन के बारह बजे के पहले सूर्य चढ़ता रहता है - 'आरोहनम मार्तण्डस्य' (AM)।
बारह के बाद सूर्य का अवसान/ ढलाव होता है - 'पतनम मार्तण्डस्य' (PM)।
#सनातन
ऐसे दिखते है बादल 👇👇
#भारत_विभाजन
मात्र 150 साल में भारत का 9 टुकड़ा हुआ, 2500 वर्षों में 24वां टुकड़ा पाकिस्तान और 25वां टुकड़ा बंग्लादेश हुआ
सम्भवत: ही कोई पुस्तक (ग्रन्थ) होगी जिसमें यह वर्णन मिलता हो कि इन आक्रमणकारियों ने अफगानिस्तान, ब्रह्मदेश(बर्मा ,म्यांमार), श्रीलंका (सिंहलद्वीप), नेपाल, तिब्बत (त्रिविष्टप), भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण किया। यहां एक प्रश्न खड़ा होता है कि यह भू-प्रदेश कब, कैसे गुलाम हुए और स्वतन्त्र हुए।
प्राय: #पाकिस्तान व #बांग्लादेश निर्माण का इतिहास तो सभी जानते हैं।
शेष इतिहास मिलता तो है परन्तु चर्चित नहीं है......सन 1947 में विशाल भारतवर्ष का पिछले 2500 वर्षों में 24वां विभाजन है।
सम्पूर्ण पृथ्वी का जब जल और थल इन दो तत्वों में वर्गीकरण करते हैं, तब सात द्वीप एवं सात महासमुद्र माने जाते हैं। हम इसमें से प्राचीन नाम #जम्बूद्वीप जिसे आज एशिया द्वीप कहते हैं तथा #इन्दू_सरोवरम् जिसे आज #हिन्द_महासागर कहते हैं, के निवासी हैं। इस जम्बूद्वीप (एशिया) के लगभग मध्य में #हिमालय पर्वत स्थित है। हिमालय पर्वत में विश्व की सर्वाधिक ऊँची चोटी #सागरमाथा, #गौरीशंकर हैं, जिसे 1835 में अंग्रेज शासकों ने #एवरेस्ट नाम देकर इसकी प्राचीनता व पहचान को बदलने का कूटनीतिक षड्यंत्र रचा।
हम पृथ्वी पर जिस भू-भाग अर्थात् राष्ट्र के निवासी हैं उस भू-भाग का वर्णन अग्नि, वायु एवं विष्णु पुराण में लगभग समानार्थी श्लोक के रूप में है :-
उत्तरं यत् समुद्रस्य, हिमाद्रश्चैव दक्षिणम्।
वर्ष तद् भारतं नाम, भारती यत्र संतति।।
अर्थात् हिन्द महासागर के उत्तर में तथा हिमालय पर्वत के दक्षिण में जो भू-भाग है उसे भारत कहते हैं और वहां के समाज को भारती या भारतीय के नाम से पहचानते हैं। बृहस्पति आगम में इसके लिए निम्न श्लोक उपलब्ध है :-
हिमालयं समारम्भ्य यावद् इन्दु सरोवरम।
तं देव निर्मित देशं, हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।।
अर्थात् जब हम अपने देश (राष्ट्र) का विचार करते हैं तब अपने समाज में प्रचलित एक परम्परा रही है, जिसमें किसी भी शुभ कार्य पर संकल्प पढ़ा अर्थात् लिया जाता है। संकल्प स्वयं में महत्वपूर्ण संकेत करता है। संकल्प में काल की गणना एवं भूखण्ड का विस्तृत वर्णन करते हुए, संकल्प कर्ता कौन है ? इसकी पहचान अंकित करने की परम्परा है। उसके अनुसार संकल्प में भू-खण्ड की चर्चा करते हुए बोलते (दोहराते) हैं कि जम्बूद्वीपे (एशिया) भरतखण्डे (भारतवर्ष) यही शब्द प्रयोग होता है। सम्पूर्ण साहित्य में हमारे राष्ट्र की सीमाओं का उत्तर में हिमालय व दक्षिण में हिन्द महासागर का वर्णन है, परन्तु पूर्व व पश्चिम का स्पष्ट वर्णन नहीं है। परंतु जब श्लोकों की गहराई में जाएं और भूगोल की पुस्तकों अर्थात् एटलस का अध्ययन करें तभी ध्यान में आ जाता है कि श्लोक में पूर्व व पश्चिम दिशा का वर्णन है।
जब विश्व (पृथ्वी) का मानचित्र आँखों के सामने आता है तो पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है कि विश्व के भूगोल ग्रन्थों के अनुसार हिमालय के मध्य स्थल #कैलाश_मानसरोवर से पूर्व की ओर जाएं तो वर्तमान का इण्डोनेशिया और पश्चिम की ओर जाएं तो वर्तमान में ईरान देश अर्थात् #आर्यान_प्रदेश हिमालय के अंतिम छोर हैं। हिमालय 5000 पर्वत शृंखलाओं तथा 6000 नदियों को अपने भीतर समेटे हुए इसी प्रकार से विश्व के सभी भूगोल ग्रन्थ (एटलस) के अनुसार जब हम श्रीलंका (सिंहलद्वीप अथवा सिलोन) या कन्याकुमारी से पूर्व व पश्चिम की ओर प्रस्थान करेंगे या दृष्टि (नजर) डालेंगे तो हिन्द (इन्दु) महासागर इण्डोनेशिया व आर्यान (ईरान) तक ही है। इन मिलन बिन्दुओं के पश्चात् ही दोनों ओर महासागर का नाम बदलता है।
इस प्रकार से हिमालय, हिन्द महासागर, आर्यान (ईरान) व इण्डोनेशिया के बीच के सम्पूर्ण भू-भाग को आर्यावर्त अथवा भारतवर्ष अथवा हिन्दुस्तान कहा जाता है।
प्राचीन भारत की चर्चा अभी तक की, परन्तु जब वर्तमान से 3000 वर्ष पूर्व तक के भारत की चर्चा करते हैं तब यह ध्यान में आता है कि पिछले 2500 वर्ष में जो भी आक्रांत यूनानी (रोमन ग्रीक) यवन, हूण, शक, कुषाण, सिरयन, पुर्तगाली, फेंच, डच, अरब, तुर्क, तातार, मुगल व अंग्रेज आदि आए, इन सबका विश्व के सभी इतिहासकारों ने वर्णन किया। परन्तु सभी पुस्तकों में यह प्राप्त होता है कि आक्रान्ताओं ने भारतवर्ष पर, हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया है। सम्भवत: ही कोई पुस्तक (ग्रन्थ) होगी जिसमें यह वर्णन मिलता हो कि इन आक्रमणकारियों ने अफगानिस्तान, (म्यांमार), श्रीलंका (सिंहलद्वीप), नेपाल, तिब्बत (त्रिविष्टप), भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण किया।
यहां एक प्रश्न खड़ा होता है कि यह भू-प्रदेश कब, कैसे गुलाम हुए और स्वतन्त्र हुए। प्राय: पाकिस्तान व बांग्लादेश निर्माण का इतिहास तो सभी जानते हैं। शेष इतिहास मिलता तो है परन्तु चर्चित नहीं है। सन 1947 में विशाल भारतवर्ष का पिछले 2500 वर्षों में 24वां विभाजन है। अंग्रेज का 350 वर्ष पूर्व के लगभग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रूप में व्यापारी बनकर भारत आना, फिर धीरे-धीरे शासक बनना और उसके पश्चात् सन 1857 से 1947 तक उनके द्वारा किया गया भारत का 7वां विभाजन है। आगे लेख में सातों विभाजन कब और क्यों किए गए इसका संक्षिप्त वर्णन है।
सन् 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग कि.मी. था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग कि.मी. है। पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग कि.मी. बनता है।
भारतीयों द्वारा सन् 1857 के अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े गए स्वतन्त्रता संग्राम (जिसे अंग्रेज ने गदर या बगावत कहा) से पूर्व एवं पश्चात् के परिदृश्य पर नजर दौडायेंगे तो ध्यान में आएगा कि ई. सन् 1800 अथवा उससे पूर्व के विश्व के देशों की सूची में वर्तमान भारत के चारों ओर जो आज देश माने जाते हैं उस समय देश नहीं थे। इनमें स्वतन्त्र राजसत्ताएं थीं, परन्तु सांस्कृतिक रूप में ये सभी भारतवर्ष के रूप में एक थे और एक-दूसरे के देश में आवागमन (व्यापार, तीर्थ दर्शन, रिश्ते, पर्यटन आदि) पूर्ण रूप से बे-रोकटोक था। इन राज्यों के विद्वान् व लेखकों ने जो भी लिखा वह विदेशी यात्रियों ने लिखा ऐसा नहीं माना जाता है। इन सभी राज्यों की भाषाएं व बोलियों में अधिकांश शब्द संस्कृत के ही हैं। मान्यताएं व परम्पराएं भी समान हैं। खान-पान, भाषा-बोली, वेशभूषा, संगीत-नृत्य, पूजापाठ, पंथ सम्प्रदाय में विविधताएं होते हुए भी एकता के दर्शन होते थे और होते हैं। जैसे-जैसे इनमें से कुछ राज्यों में भारत इतर यानि विदेशी पंथ (मजहब-रिलीजन) आये तब अनेक संकट व सम्भ्रम निर्माण करने के प्रयास हुए।
सन 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम से पूर्व-मार्क्स द्वारा अर्थ प्रधान परन्तु आक्रामक व हिंसक विचार के रूप में मार्क्सवाद जिसे लेनिनवाद, माओवाद, साम्यवाद, कम्यूनिज्म शब्दों से भी पहचाना जाता है, यह अपने पांव अनेक देशों में पसार चुका था। वर्तमान रूस व चीन जो अपने चारों ओर के अनेक छोटे-बडे राज्यों को अपने में समाहित कर चुके थे या कर रहे थे, वे कम्यूनिज्म के सबसे बडे व शक्तिशाली देश पहचाने जाते हैं। ये दोनों रूस और चीन विस्तारवादी, साम्राज्यवादी, मानसिकता वाले ही देश हैं। अंग्रेज का भी उस समय लगभग आधी दुनिया पर राज्य माना जाता था और उसकी साम्राज्यवादी, विस्तारवादी, हिंसक व कुटिलता स्पष्ट रूप से सामने थी।
#अफगानिस्तान :- सन् 1834 में प्रकिया प्रारम्भ हुई और 26 मई, 1876 को रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत) के बीच गंडामक संधि के रूप में निर्णय हुआ और अफगानिस्तान नाम से एक बफर स्टेट अर्थात् राजनैतिक देश को दोनों ताकतों के बीच स्थापित किया गया। इससे अफगानिस्तान अर्थात् पठान भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम से अलग हो गए तथा दोनों ताकतों ने एक-दूसरे से अपनी रक्षा का मार्ग भी खोज लिया। परंतु इन दोनों पूंजीवादी व मार्क्सवादी ताकतों में अंदरूनी संघर्ष सदैव बना रहा कि अफगानिस्तान पर नियन्त्रण किसका हो ?
अफगानिस्तान ( #उपगणस्तान) शैव व प्रकृति पूजक मत से बौद्ध मतावलम्बी और फिर विदेशी पंथ इस्लाम मतावलम्बी हो चुका था। बादशाह शाहजहाँ, शेरशाह सूरी व महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में उनके राज्य में कंधार (गंधार) आदि का स्पष्ट वर्णन मिलता है।
नेपाल :- मध्य हिमालय के 46 से अधिक छोटे-बडे राज्यों को संगठित कर पृथ्वी नारायण शाह नेपाल नाम से एक राज्य का सुगठन कर चुके थे। स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों ने इस क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध लडते समय-समय पर शरण ली थी। अंग्रेज ने विचारपूर्वक 1904 में वर्तमान के बिहार स्थित सुगौली नामक स्थान पर उस समय के पहाड़ी राजाओं के नरेश से संधी कर नेपाल को एक स्वतन्त्र अस्तित्व प्रदान कर अपना रेजीडेंट बैठा दिया। इस प्रकार से नेपाल स्वतन्त्र राज्य होने पर भी अंग्रेज के अप्रत्यक्ष अधीन ही था। रेजीडेंट के बिना महाराजा को कुछ भी खरीदने तक की अनुमति नहीं थी। इस कारण राजा-महाराजाओं में जहां आन्तरिक तनाव था, वहीं अंग्रेजी नियन्त्रण से कुछ में घोर बेचैनी भी थी। महाराजा त्रिभुवन सिंह ने 1953 में भारतीय सरकार को निवेदन किया था कि आप नेपाल को अन्य राज्यों की तरह भारत में मिलाएं। परन्तु सन 1955 में रूस द्वारा दो बार वीटो का उपयोग कर यह कहने के बावजूद कि नेपाल तो भारत का ही अंग है, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरूने पुरजोर वकालत कर नेपाल को स्वतन्त्र देश के रूप में यू.एन.ओ. में मान्यता दिलवाई। आज भी नेपाल व भारतीय एक-दूसरे के देश में विदेशी नहीं हैं और यह भी सत्य है कि नेपाल को वर्तमान भारत के साथ ही सन् 1947 में ही स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। नेपाल 1947 में ही अंग्रेजी रेजीडेंसी से मुक्त हुआ।
#भूटान :- सन 1906 में सिक्किम व भूटान जो कि वैदिक-बौद्ध मान्यताओं के मिले-जुले समाज के छोटे भू-भाग थे इन्हें स्वतन्त्रता संग्राम से लगकर अपने प्रत्यक्ष नियन्त्रण से रेजीडेंट के माध्यम से रखकर चीन के विस्तारवाद पर अंग्रेज ने नजर रखना प्रारम्भ किया। ये क्षेत्र(राज्य) भी स्वतन्त्रता सेनानियों एवं समय-समय पर हिन्दुस्तान के उत्तर दक्षिण व पश्चिम के भारतीय सिपाहियों व समाज के नाना प्रकार के विदेशी हमलावरों से युद्धों में पराजित होने पर शरणस्थली के रूप में काम आते थे। दूसरा ज्ञान (सत्य, अहिंसा, करुणा) के उपासक वे क्षेत्र खनिज व वनस्पति की दृष्टि से महत्वपूर्ण थे। तीसरा यहां के जातीय जीवन को धीरे-धीरे मुख्य भारतीय (हिन्दू) धारा से अलग कर मतान्तरित किया जा सकेगा। हम जानते हैं कि सन 1836 में उत्तर भारत में चर्च ने अत्यधिक विस्तार कर नये आयामों की रचना कर डाली थी। सुदूर हिमालयवासियों में ईसाईयत जोर पकड़ रही थी।
#तिब्बत :- सन 1914 में तिब्बत को केवल एक पार्टी मानते हुए चीनी साम्राज्यवादी सरकार व भारत के काफी बड़े भू-भाग पर कब्जा जमाए अंग्रेज शासकों के बीच एक समझौता हुआ। भारत और चीन के बीच तिब्बत को एक बफर स्टेट के रूप में मान्यता देते हुए हिमालय को विभाजित करने के लिए मैकमोहन रेखा निर्माण करने का निर्णय हुआ। हिमालय सदैव से ज्ञान-विज्ञान के शोध व चिन्तन का केंद्र रहा है। हिमालय को बांटना और तिब्बत व भारतीय को अलग करना यह षड्यंत्र रचा गया। चीनी और अंग्रेज शासकों ने एक-दूसरों के विस्तारवादी, साम्राज्यवादी मनसूबों को लगाम लगाने के लिए कूटनीतिक खेल खेला। अंग्रेज ईसाईयत हिमालय में कैसे अपने पांव जमायेगी, यह सोच रहा था परन्तु समय ने कुछ ऐसी करवट ली कि प्रथम व द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् अंग्रेज को एशिया और विशेष रूप से भारत छोड़कर जाना पड़ा। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने समय की नाजकता को पहचानने में भूल कर दी और इसी कारण तिब्बत को सन 1949 से 1959 के बीच चीन हड़पने में सफल हो गया। पंचशील समझौते की समाप्ति के साथ ही अक्टूबर सन 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर हजारों वर्ग कि.मी. अक्साई चीन (लद्दाख यानि जम्मू-कश्मीर) व अरुणाचल आदि को कब्जे में कर लिया। तिब्बत को चीन का भू-भाग मानने का निर्णय पं. नेहरू (तत्कालीन प्रधानमंत्री) की भारी ऐतिहासिक भूल हुई। आज भी तिब्बत को चीन का भू-भाग मानना और चीन पर तिब्बत की निर्वासित सरकार से बात कर मामले को सुलझाने हेतु दबाव न डालना बड़ी कमजोरी व भूल है। नवम्बर 1962 में भारत के दोनों सदनों के संसद सदस्यों ने एकजुट होकर चीन से एक-एक इंच जमीन खाली करवाने का संकल्प लिया। आश्चर्य है भारतीय नेतृत्व (सभी दल) उस संकल्प को शायद भूल ही बैठा है। हिमालय परिवार नाम के आन्दोलन ने उस दिवस को मनाना प्रारम्भ किया है ताकि जनता नेताओं द्वारा लिए गए संकल्प को याद करवाएं।
श्रीलंका व म्यांमार :- अंग्रेज प्रथम महायुद्ध (1914 से 1919) जीतने में सफल तो हुए परन्तु भारतीय सैनिक शक्ति के आधार पर। धीरे-धीरे स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु क्रान्तिकारियों के रूप में भयानक ज्वाला अंग्रेज को भस्म करने लगी थी। सत्याग्रह, स्वदेशी के मार्ग से आम जनता अंग्रेज के कुशासन के विरुद्ध खडी हो रही थी। द्वितीय महायुद्ध के बादल भी मण्डराने लगे थे। सन् 1935 व 1937 में ईसाई ताकतों को लगा कि उन्हें कभी भी भारत व एशिया से बोरिया-बिस्तर बांधना पड़ सकता है। उनकी अपनी स्थलीय शक्ति मजबूत नहीं है और न ही वे दूर से नभ व थल से वर्चस्व को बना सकते हैं। इसलिए जल मार्ग पर उनका कब्जा होना चाहिए तथा जल के किनारों पर भी उनके हितैषी राज्य होने चाहिए। समुद्र में अपना नौसैनिक बेड़ा बैठाने, उसके समर्थक राज्य स्थापित करने तथा स्वतन्त्रता संग्राम से उन भू-भागों व समाजों को अलग करने हेतु सन 1965 में श्रीलंका व सन 1937 में म्यांमार को अलग राजनीतिक देश की मान्यता दी। ये दोनों देश इन्हीं वर्षों को अपना स्वतन्त्रता दिवस मानते हैं। म्यांमार व श्रीलंका का अलग अस्तित्व प्रदान करते ही मतान्तरण का पूरा ताना-बाना जो पहले तैयार था उसे अधिक विस्तार व सुदृढ़ता भी इन देशों में प्रदान की गई। ये दोनों देश वैदिक, बौद्ध धार्मिक परम्पराओं को मानने वाले हैं। म्यांमार के अनेक स्थान विशेष रूप से रंगून का अंग्रेज द्वारा देशभक्त भारतीयों को कालेपानी की सजा देने के लिए जेल के रूप में भी उपयोग होता रहा है।
पाकिस्तान, बांग्लादेश व #मालद्वीप :- 1905 का लॉर्ड कर्जन का बंग-भंग का खेल 1911 में बुरी तरह से विफल हो गया। परन्तु इस हिन्दु मुस्लिम एकता को तोड़ने हेतु अंग्रेज ने आगा खां के नेतृत्व में सन 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना कर मुस्लिम कौम का बीज बोया। पूर्वोत्तर भारत के अधिकांश जनजातीय जीवन को ईसाई के रूप में मतान्तरित किया जा रहा था। ईसाई बने भारतीयों को स्वतन्त्रता संग्राम से पूर्णत: अलग रखा गया। पूरे भारत में एक भी ईसाई सम्मेलन में स्वतन्त्रता के पक्ष में प्रस्ताव पारित नहीं हुआ। दूसरी ओर मुसलमान तुम एक अलग कौम हो, का बीज बोते हुए सन् 1940 में मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान की मांग खड़ी कर देश को नफरत की आग में झोंक दिया। अंग्रेजीयत के दो एजेण्ट क्रमश: पं. नेहरू व मो. अली जिन्ना दोनों ही घोर महत्वाकांक्षी व जिद्दी (कट्टर) स्वभाव के थे।अंग्रेजों ने इन दोनों का उपयोग गुलाम भारत के विभाजन हेतु किया। द्वितीय महायुद्ध में अंग्रेज बुरी तरह से आर्थिक, राजनीतिक दृष्टि से इंग्लैण्ड में तथा अन्य देशों में टूट चुके थे। उन्हें लगता था कि अब वापस जाना ही पड़ेगा और अंग्रेजी साम्राज्य में कभी न अस्त होने वाला सूर्य अब अस्त भी हुआ करेगा। सम्पूर्ण भारत देशभक्ति के स्वरों के साथ सड़क पर आ चुका था। संघ, सुभाष, सेना व समाज सब अपने-अपने ढंग से स्वतन्त्रता की अलख जगा रहे थे। सन 1948 तक प्रतीक्षा न करते हुए 3 जून, 1947 को अंग्रेज अधीन भारत के विभाजन व स्वतन्त्रता की घोषणा औपचारिक रूप से कर दी गयी। यहां यह बात ध्यान में रखने वाली है कि उस समय भी भारत की 562 ऐसी छोटी-बड़ी रियासतें (राज्य) थीं, जो अंग्रेज के अधीन नहीं थीं। इनमें से सात ने आज के पाकिस्तान में तथा 555 ने जम्मू-कश्मीर सहित आज के भारत में विलय किया। भयानक रक्तपात व जनसंख्या की अदला-बदली के बीच 14, 15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि में पश्चिम एवं पूर्व पाकिस्तान बनाकर अंग्रेज ने भारत का 7वां विभाजन कर डाला। आज ये दो भाग पाकिस्तान व बांग्लादेश के नाम से जाने जाते हैं। भारत के दक्षिण में सुदूर समुद्र में मालद्वीप (छोटे-छोटे टापुओं का समूह) सन 1947 में स्वतन्त्र देश बन गया, जिसकी चर्चा व जानकारी होना अत्यन्त महत्वपूर्ण व उपयोगी है। यह बिना किसी आन्दोलन व मांग के हुआ है।
भारत का वर्तमान परिदृश्य :- सन 1947 के पश्चात् फेंच के कब्जे से पाण्डिचेरी, पुर्तगीज के कब्जे से गोवा देव- दमन तथा अमेरिका के कब्जें में जाते हुए सिक्किम को मुक्त करवाया है। आज पाकिस्तान में पख्तून, बलूच, सिंधी, बाल्टीस्थानी (गिलगित मिलाकर), कश्मीरी मुजफ्फरावादी व मुहाजिर नाम से इस्लामाबाद (लाहौर) से आजादी के आन्दोलन चल रहे हैं। पाकिस्तान की 60 प्रतिशत से अधिक जमीन तथा 30 प्रतिशत से अधिक जनता पाकिस्तान से ही आजादी चाहती है। बांग्लादेश में बढ़ती जनसंख्या का विस्फोट, चटग्राम आजादी आन्दोलन उसे जर्जर कर रहा है। शिया-सुन्नी फसाद, अहमदिया व वोहरा (खोजा-मल्कि) पर होते जुल्म मजहबी टकराव को बोल रहे हैं। हिन्दुओं की सुरक्षा तो खतरे में ही है। विश्वभर का एक भी मुस्लिम देश इन दोनों देशों के मुसलमानों से थोडी भी सहानुभूति नहीं रखता। अगर सहानुभूति होती तो क्या इन देशों के 3 करोड़ से अधिक मुस्लिम (विशेष रूप से बांग्लादेशीय) दर-दर भटकते। ये मुस्लिम देश अपने किसी भी सम्मेलन में इनकी मदद हेतु आपस में कुछ-कुछ लाख बांटकर सम्मानपूर्वक बसा सकने का निर्णय ले सकते थे। परन्तु कोई भी मुस्लिम देश आजतक बांग्लादेशी मुसलमान की मदद में आगे नहीं आया। इन घुसपैठियों के कारण भारतीय मुसलमान अधिकाधिक गरीब व पिछड़ते जा रहा है क्योंकि इनके विकास की योजनाओं पर खर्च होने वाले धन व नौकरियों पर ही तो घुसपैठियों का कब्जा होता जा रहा है। मानवतावादी वेष को धारण कराने वाले देशों में से भी कोई आगे नहीं आया कि इन घुसपैठियों यानि दरबदर होते नागरिकों को अपने यहां बसाता या अन्य किसी प्रकार की सहायता देता। इन दर-बदर होते नागरिकों के आई.एस.आई. के एजेण्ट बनकर काम करने के कारण ही भारत के करोडों मुस्लिमों को भी सन्देह के घेरे में खड़ा कर दिया है। आतंकवाद व माओवाद लगभग 200 के समूहों के रूप में भारत व भारतीयों को डस रहे हैं। लाखों उजड़ चुके हैं, हजारों विकलांग हैं और हजारों ही मारे जा चुके हैं। विदेशी ताकतें हथियार, प्रशिक्षण व जेहादी, मानसिकता देकर उन प्रदेश के लोगों के द्वारा वहां के ही लोगों को मरवा कर उन्हीं प्रदेशों को बर्बाद करवा रही हैं। इस विदेशी षड्यन्त्र को भी समझना आवश्यक है।
सांस्कृतिक व आर्थिक समूह की रचना आवश्यक :- आवश्यकता है वर्तमान भारत व पड़ोसी भारतखण्डी देशों को एकजुट होकर शक्तिशाली बन खुशहाली अर्थात विकास के मार्ग में चलने की। इसलिए अंग्रेज अर्थात् ईसाईयत द्वारा रचे गये षड्यन्त्र को ये सभी देश (राज्य) समझें और साझा व्यापार व एक करन्सी निर्माण कर नए होते इस क्षेत्र के युग का सूत्रपात करें। इन देशों 10 का समूह बनाने से प्रत्येक देश का भय का वातावरण समाप्त हो जायेगा तथा प्रत्येक देश का प्रतिवर्ष के सैंकड़ों-हजारों-करोड़ों रुपयेरक्षा व्यय के रूप में बचेंगे जो कि विकास पर खर्च किए जा सकेंगे। इससे सभी सुरक्षित रहेंगे व विकसित होंगे
#सभी_राष्ट्रवादी_सनातनी_पेज_लाइक_फॉलो_करे
#भारतवर्ष
#अखंड_भारत
#चूना जो पान में लगा के खाया जाता है , उसकी एक डिब्बी ला कर घर में रखे .
- यह सत्तर प्रकार की बीमारियों को ठीक कर देता है . गेहूँ के दाने के बराबर चूना गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से बहुत जल्दी #पीलिया ठीक हो जाता है .
- चूना #नपुंसकता की सबसे अच्छी दवा है - अगर किसी के शुक्राणु नही बनता उसको अगर गन्ने के रस के साथ चूना पिलाया जाये तो साल डेढ़ साल में भरपूर शुक्राणु बनने लगेंगे . जिन माताओं के शरीर में अन्डे नही बनते उन्हें भी इस चूने का सेवन करना चाहिए .
- #शुगर रोज़ सुबह ख़ाली पेट एक गिलास पानी में एक छोटे चने के बराबर चुना मिलकर पीने से शुगर जड़ से ख़त्म हो जाती हैं ( समय समय पर जाँच करवाते रहे.. वरना शुगर का लेवल माइनस भी हो सकता हैं )
- विद्यार्थीओ के लिए चूना बहुत अच्छा है जो #लम्बाई बढाता है - गेहूँ के दाने के बराबर चूना रोज दही में मिला के खाना चाहिए, दही नही है तो दाल में मिला के या पानी में मिला के लिया जा सकता है - इससे लम्बाई बढने के साथ साथ स्मरण शक्ति भी बहुत अच्छी होती है । जिन बच्चों की बुद्धि कम है ऐसे मतिमंद बच्चों के लिए सबसे अच्छी दवा है चूना . जो बच्चे बुद्धि से कम है, दिमाग देर में काम करता है, देर में सोचते है हर चीज उनकी स्लो है उन सभी बच्चे को चूना खिलाने से अच्छे हो जायेंगे ।
- बहनों को अपने #मासिक_धर्म के समय अगर कुछ भी तकलीफ होती हो तो उसका सबसे अच्छी दवा है चूना । मेनोपौज़ की सभी समस्याओं के लिए गेहूँ के दाने के बराबर चूना हर दिन खाना दाल में, लस्सी में, नही तो पानी में घोल के पीना चाहिए . इससे ओस्टीओपोरोसिस होने की संभावना भी नहीं रहती .
- जब कोई माँ #गर्भावस्था में है तो चूना रोज खाना चाहिए क्योंकि गर्भवती माँ को सबसे ज्यादा केल्शियम की जरुरत होती है और चूना केल्शियम का सबसे बड़ा भंडार है . गर्भवती माँ को चूना खिलाना चाहिए अनार के रस में - अनार का रस एक कप और चूना गेहूँ के दाने के बराबर ये मिलाके रोज पिलाइए नौ महीने तक लगातार दीजिये तो चार फायदे होंगे - पहला फायदा होगा के माँ को बच्चे के जनम के समय कोई तकलीफ नही होगी और नॉर्मल डीलिवरी होगी , दूसरा बच्चा जो पैदा होगा वो बहुत हृष्ट पुष्ट और तंदुरुस्त होगा , तीसरा फ़ायदा वो बच्चा जिन्दगी में जल्दी बीमार नही पड़ता जिसकी माँ ने चूना खाया , और चौथा सबसे बड़ा लाभ है वो बच्चा बहुत होशियार होता है बहुत Intelligent और Brilliant होता है उसका IQ बहुत अच्छा होता है .
- चूना #घुटने_क_दर्द ठीक करता है , कमर का दर्द ठीक करता है , कंधे का दर्द ठीक करता है, एक खतरनाक बीमारी है Spondylitis वो चुने से ठीक होता है . कई बार हमारे रीढ़ की हड्डी में जो मनके होते है उसमे दूरी बढ़ जाती है Gap आ जाता है जिसे ये चूना ही ठीक करता है . रीढ़ की हड्डी की सब बीमारिया चूने से ठीक होती है . अगर हड्डी टूट जाये तो टूटी हुई हड्डी को जोड़ने की ताकत सबसे ज्यादा चूने में है . इसके लिए चूने का सेवन सुबह खाली पेट करे .
- अगर मुंह में ठंडा गरम पानी लगता है तो चूना खाने से बिलकुल ठीक हो जाता है , मुंह में अगर छाले हो गए है तो चूने का पानी पिने से तुरन्त ठीक हो जाता है । शरीर में जब खून कम हो जाये तो चूना जरुर लेना चाहिए , एनीमिया है खून की कमी है उसकी सबसे अच्छी दवा है ये चूना . गन्ने के रस में , या संतरे के रस में , नही तो सबसे अच्छा है अनार के रस में डाल कर चूना ले . अनार के रस में चूना पिने से खून बहुत बढता है , बहुत जल्दी खून बनता है - एक कप अनार का रस गेहूँ के दाने के बराबर चूना सुबह खाली पेट ले .
- भारत के जो लोग चूने से पान खाते है, बहुत होशियार है और वे महर्षि वाग्भट के अनुयायी है . पर पान बिना तम्बाखू , सुपारी और कत्थे के ले . तम्बाखू ज़हर है और चूना अमृत है . कत्था केन्सर करता है, पान में सौंठ , इलायची , लौंग , केसर , सौंफ , गुलकंद , चूना , कसा हुआ नारियल आदि डाल के खाए .
- अगर घुटने में घिसाव आ गया हो और डॉक्टर कहे के घुटना बदल दो तो भी जरुरत नही चूना खाते रहिये और हरसिंगार ( पारिजातक या प्राजक्ता ) के पत्ते का काढ़ा पीजिये , घुटने बहुत अच्छे काम करेंगे ।
चूना खाइए पर चूना लगाइए मत .
ये चूना लगाने के लिए नही है खाने के लिए है.
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