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विनायकपुरा, भवाद के बिश्नोई पन्थ के लोगों के लिए श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान की साथरी
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११ फरवरी २०२१ की अमावस्या के शुभ दिन , विनायकपुरा साथरी में, यज्ञ एवम पाहल के कार्यक्रम की कुछ तस्वीरें ।
बोलो श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान की जय ।
मुक्तिधाम मुकाम की जय ।
समराथल धाम की जय ।
श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान की जय
Jambhani Sahitya Academy फ्लैट न. 39, पाकेट एच-33, सैक्टर- 3, रोहिणी, दिल्ली- 110085
*बिश्नोई समाज के युवा विद्धवान मीठी मधुर वाणी के बेहताज गायक व कथाकार परम् पूज्य गुरुवर स्वामी सच्चिदानंद जी आचार्य को अवतरण दिवस पर अनन्त बधाईयां एवं शुभकामनाएं गुरु जम्भेशवर भगवान कि कृपा से आप समाज मे जाग्रत युवाओ में सुधार निर्माण धाम लालासर साथरी का चहुमुखी विकास करते रहे पुनः हार्दिक बधाई...*
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बहुत अच्छी पहल ।
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शहादत को निवण ।।
अज्ञान का अंधेरा
आरती कीजे गुरु जम्भ जती की ।
होली के पावन अवसर पर, विनायकपुरा भवाद की साथरी में यज्ञ एवम पाहल के कार्यक्रम के पश्चात आरती
२९ मार्च २०२१
https://youtu.be/JvnCZZL_CwU
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शब्दार्थ - शब्द संख्या 31
एक समय बहुत से जमाती लोग गुरु जंभेश्वर भगवान् के पास बैठे आपस में दान देने के विषय पर विचार विमर्श कर रहे थे।। कोई कह रहा था, चाहे जिसे दान दो।कोई कह रहा था, विष्णु भक्त को दान दो। किसी ने कहा,भूखे को दान दो, तो किसी ने कहा कि, दान दिया ही क्यों जाए? आखिर में उन्होंने गुरु महाराज से इस विषय में जानना चाहा, तब उन्होंने यह शब्द कहा:-
भल मुल सींचो रे पिराणी,
ज्यूं का भल बुधि पावै ।
जामण मरण भव काल जुं चुकै,
तो आवागवण न आवै ।।
हे लोगों, भली मुल को सींचो अच्छे पेड़ की जड़-मूल को सींचो विष्णु स्मरण करो। जिससे तुम्हें कुछ भली बुद्धि प्राप्त हो और तुम जन्म मरन के कालचक्र से छूट जाओ व तुम्हें बार-बार इस संसार में आना-जाना न पड़े।
भल मुल सींचो रे पिराणी,
ज्युं तरवर मेलत डालूं ।।
हे प्राणियों! भली मूल को सींचो विष्णु स्मरण और सुकृत करो। जिस प्रकार से वृक्ष सुखे पते व विकारित डालियों को त्यागता हैं, उसी प्रकार तुम्हारे शरीर में इंद्रिय समूह के विभिन्न विषय-विकार काम, क्रोधादि डालीयाँ हैं, विष्णु स्मरण व सत्कर्मों से इस शरीर रुपी वृक्ष को सींचना है जिससे तुम्हें जीव आत्मा और शरीर की पृथकता का ज्ञान होगा और विषय-वासनाएँ छुट जाऐगी।
हरि पर हरि की आण न मानी,
झँख्या झूल्या आलुँ ।।
हरि की उपासना तुमने छोड़ दी, उसका परित्याग कर दिया,उसकी आज्ञा भी नहीं मानी, उल्टे तुमने व्यर्थ की बकवास की और संसार में निरर्थक, निरूद्देश्य भटकते रहे।
देवा सेवां टेव न जाणी,
न बच्या जम कालु ।
देव पुरुषों ज्ञानी, विद्वान, सज्जन की सेवा संगति की आदत तुमने नहीं डाली सत्पुरुषों की संगति नहीं कि। अतः ऐसे अज्ञानी लोग, मृत्यु के देवता, यमं की मार से बच नहीं सकते।
भुला पिराणी विसंन न जंप्यो,
मुल न खोज्यो फिर फिर जोया डालुं ।।
हे भूले हुए प्राणी, तुमने ने तो विष्णु का जप किया और न ही मूल तत्व आत्मा/परमात्मा, की खोज की, तत्व प्राप्ति का उपाय नहीं किया।। तुम तो घुम फिर कर बार-बार विषय-वासना रूपी डालियों की ही खोज करते रहे, उन्ही की ओर आकर्षित होते रहे।
बिन रैणायर हीरे नीरे नग न सीपे,
तके न खोला नालूं ।।
बिना रत्नाकर-सागर के अन्य जलाशयों में हीरे नहीं मिल सकते। खालों-नालों के पानी में सीप तथा मोती नहीं मिला करते। इसी प्रकार विष्णु-रूप रत्नाकर -सागर को छोड़कर यदि अन्य देवी-देवता रूपी खालों -नालों में भटकते रहे,तो वहाँ न ज्ञान का मोती मिलेगा और न ही मुक्ति का रत्न।
चलन चलतै
बास बसंतै
जीव जीवंतै
सास फुंरंतै
काया निवंती काय रे पिराणी,
विसंन न घाती भालू ।।
हे प्राणी, जब तक तुम्हारी यह काया तुम्हारा कहना मानती है, यह शरीर स्वस्थ एवं शक्ति संपन्न है,तुम्हारी आज्ञा चलती है,तुम जीवित हो,तुम्हारे प्राण इस देह नगरी में बास करते हैं, तब तक तुम अपने आप को भगवान विष्णु के प्रति समर्पित क्यों नहीं कर देते? यही अवसर है, तुम अपनी देख-भाल विष्णु भगवान को सौंप दो।
घड़ी घटंतर
पहर पटंतर
रात दिनंतर
मास पखंतर
खिंण ओल्हरबा कालुं ।
घड़ी, पहर- पहर, एक-एक पहर, रात -दिन, पक्ष -मास एक-एक क्षण मे मृत्यु तुम्हारे पास आ रही है।
मींठा झुठा मोह बिंटबण
मकर समाया जालुं ।।
इस सांसारिक माया-मोह के आकर्षण की मधुरता एक झूठा छलावा है, जैसे कांटे में बंदी खाद्ध-वस्तु की खुशबू के धोखे में मछली मछुआरों के जाल में फंस जाती है और उसे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ता है। उसी प्रकार ये सांसारिक आकर्षण झूठे धोखे हैं।
कबही को बाइंदो बाजत
लोही घडियां मस्तक तालुं ।।
हे लोगों, कभी यदि एकाएक तेज हवा चली तो सिर पर रखा मिट्टी का घड़ा ताल में गिरकर फूट जायेगा शरीर भी मिट्टी के घड़े के समान हैं मृत्यु के एक झोंके से नष्ट हो जाता है।
जीवां जुंणी पड़ै परासा
ज्युं झींवर मच्छी मच्छा जालुं ।।
यह संपूर्ण जीया-जूण-प्राणी मात्र यम के पास में बंधा हुआ है, परंतु उसे अपनी नश्वरता का उसी प्रकार ज्ञान नहीं है जैसे झींवर के जाल में फंसी हुई मछली अपना चारा खाने में मस्त रहती है। वह नहीं जानती कि अभी थोड़ी देर में वह स्वय किसी और का चारा बनने वाली है ।
पहले जीवड़ो चेत्यो नाहीं
अब ऊड़ी पड़ी पहारूँ ।।
पहले समय रहते यह जीव सावधान नहीं हुआ। अब जब सारी आयु बीत गई है, इस आखिरी समय में मूक्ति की मंजिल को पाना पहाड़ पर चढ़ने के समान भारी हो गया है। मुक्ति की मंजिल, बहुत दूर दिखाई पड़ रही है।
जीवर पिण्ड बिछोड़े होयसी
ता दिन थाक रहै सिर मारूँ ।।
हे प्राणी, मृत्यु के समय, जब यह जीव शरीर को छोड़ेगा, उस समय तुम अपना सिर पीट-पीटकर रह जाओगे, परंतु तुम्हारा मृत्यु पर कोई वश नहीं चलेगा।
आज के होली के पावन अवसर पर विनायकपुरा भवाद की सबसे प्राचीन साथरी में हवन और पाहल के शुभ कार्यक्रम में भाग लेने पधारे बिश्नोई बन्धुओं का हार्दिक आभार ।
२९ नियम - बिश्नोई धर्म के
ॐ ॐ ॐ ॐ बोलो मुख से, जिसने रटिया ॐ नाम छुट्या दुख से ।
ध्रुव जी ने ध्यान लगाया, वन में जप्या था, छोटी सी उम्र में ॐ जप्या था ।।
साधना में तन मन, खूब तप्या था, इंद्र का सिंहासन तक देख डोळ्या था ।।
जरा नहीं घबराये भूख प्यास से, ॐ ॐ ॐ ॐ बोलो मुख से । जिसने रटिया ॐ नाम छुट्या दुख से ।।
अग्नि में प्रह्लाद बैठे, माला जपी थी, रोम एक जळया नहीं, अग्नि तपी थी ।।
होलिका की ढेरी हो गयी, काया कप्पी थी, पहरेदार भगि देख्या, पिंड कपि थी ।।
बाजती है माला देख बीती सुख सू, ॐ ॐ ॐ ॐ बोलो मुख से । जिसने रटिया ॐ नाम छुट्या दुख से ।।
पाप है पुराना घास, ॐ अग्नि, हो जाते भस्म नहीं देर लगनी ।।
पाप नाश होत ज्ञान, जोत जगनी, सच्चा हो प्रेम और सच्ची लगनी ।।
धन्य ऐसी माता जाया कोख से, ॐ ॐ ॐ ॐ बोलो मुख से, जिसने रटिया ॐ नाम छुट्या दुख से ।।
ॐ का अर्थ सुन सर्वव्यापक है, सब जीवों के रक्षा खातिर आप तापक है ।।
मंगलानंद गुरु मिल्या, हरि माफक है, भावानंद गुरु मिल्या कल्पतरु रूप से ।।
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आरती कीजे श्री महाविष्णु देवा, सुर नर मुनि जन, करे सब सेवा ।
पहली आरती शेष पर लौटे, श्री महालष्मी जी के चरण पलौटे ।
दूसरी आरती क्षीर समुद्र ध्याये, नाभि कमल ब्रह्मा उपजाये ।
तीसरी आरती विराट अखंडा, जाके रोम कोटि ब्रह्मंडा ।
चौथी आरती वैकुंठ विलासी, काल अंगूठ, सदा अविनाशी ।
पांचवी आरती घट घट वासा, हरि गुण गावे उधोजी दासा ।
https://youtu.be/T3oy_G8SC7c
Aarti Kije Mahavishnu Deva । आरती कीजे महाविष्णु देवा आरती कीजे महाविष्णु देवा
प्रसंग 19 दोहा
लोहा पांगल वाद कर, आवहि गुरु दरबार ।।
प्रश्न हिंलिहा झड़े, बोलसि गुरु आचार ।।
प्रश्न एक ऐसे करी, काहा रहो ही सिद्ध ।।
तुम तो भूखे साध हो, हमरे है नव निध ।।
शब्द 40
ॐ सप्त पताले तिहुँ त्रिलोके,
चवदा भवने गगन गहिरे।
बाहर भीतर सर्व निरंतर,
जहां चीन्हों तहा सोई ।।
सतगुरु मिलियों सतपंथ बतायो,
भ्रांत चुकाई, अवर ब बझुबा कोई ।।
अर्थ:
लोहा पांगल नाथ पन्थ के प्रसिद्ध साधु थे, जिन्हें वरदान था कि उनका लोहे का कच्छ तभी छुटेगा जब किसी महापुरुष से साक्षात्कार होगा।
श्री गुरु जाम्भोजी ने लोहा पांगल को शब्द 40 से 47 सुनाये (41 को छोड़ कर) । इनको सुनकर लोहा पांगल का अंतकरण पवित्र हुआ और वो जाम्भोजी के शिष्य बन गए । 1200 शिष्यों के गुरु लोहा पांगल, खुद अब जाम्भोजी का शिष्य बन गये।
जम्भेश्वर भगवान ने लोहा पांगल का नाम बदल कर रूपो नया नाम दिया एवम धरनोक गांव में जाने की आज्ञा दी। धरनोक गांव (प्याऊ में जल सेवा) के लोगो की शिकायत के बाद, जाम्भोजी ने रूपो को धरनोक गांव से हटा कर खिंदासर गांव में भंडारे का काम सौंपा था ।
लोहा पांगल ने अपने लोहे से जकड़े शरीर को मुक्त करवाकर दुख से छूटने और वाद विवाद करने की इच्छा से जाम्भोजी से प्रश्न किया कि आप सिद्ध पुरुष मालूम होते हो किन्तु आपका निवास स्थान कहा है ।
इसके जवाब में जम्भ देव ने शब्द 40 सुनाया जिसका अर्थ है:
में कहा रहता हूं, ये सुनो । अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल , पाताल , महातल ।। इन सातों पातालों में ।। तथा भू, भुवः, स्वह, मह, जन, तप, सत्यम ।। इन ऊपर के सात लोको में ।। इसके अलावा स्वर्ग, मृत्यु, ब्रह्म लोक में भी नित्य निरंतर विद्यमान रहता हूं । निराकार आकाश और जल परिपूर्ण समुद्र में भी मेरा निवास है । बाह्य दृष्ट अदृष्ट संसार एवम भीतर के अंतःकरण में भी में सभी समय मे लगातार रहता हूं । जहाँ पर भी मुझे याद करोगे, खोजोगे, में तो वही पर सदा ही प्राप्त हूँ ।।
साभार: जम्भसागर ।।
होली के पावन अवसर पर विनायकपुरा, भवाद की प्राचीनतम साथरी में यज्ञ / हवन एवम पाहल के आज के कार्यक्रम के कुछ दृश्य ।
होली के पावन अवसर पर विनायकपुरा, भवाद की प्राचीनतम साथरी में हवन पाहल के कुछ दृश्य ।।
होली के पावन अवसर पर विनायकपुरा, भवाद की प्राचीनतम साथरी में हवन पाहल के कुछ दृश्य ।
भगवान नृसिंह से प्रहलाद ने अपने लिये कुछ भी नहीं मांगा। परोपकाराय ही मांगा। अपने मित्रों के लिये सुख मांगा। अपने पिता की सद्गति मांगी।
इसी बात को गुरु जाम्भोजी ने कहा था कि-
प्रहलादा सूं बाचा कीवी,
आयो बारां काजै।
बारां मैं सूं एक घटै,
तो सुचेलो गुरु लाजै।
बार काजै हरकत आई ।
अध विच मांड्यो थाणो ।।
नरसिंह नर नराज नरवो ।
सुराज सुरबो नरां नरपति सुरां सुरपति ।।
अहनिश आव घटंति जावे ।
तेरे श्वास सबी कसवारू ।।
वक्रतुंड महाकाय , सूर्यकोटि समप्रभः ।
निर्विघ्नम कुरु मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा ।।
्री_गणेश
जाम्भाणी साखी संग्रह
श्रीमान बाबूजी काँवा, अमावस्या के दिन, हवन करते हुए
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Raghuvanshpuram Ashram is such an institution which is committed to cherish Indian culture and rites
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devotion becomes a blossoming garden of the soul. 🌸🙏 #KunjBihariJi #Jodhpur #KrishnaLove
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