Durga Singh Chouhan Rawana
प्रदेश महामंत्री - श्री अखिल रावणा राजपूत सेवा संस्थान, जयपुर
*मृत्युभोज एक अभिशाप*
2 दिनों से सभी सोशल मीडिया ग्रुप मे मृत्युभोज पर राजस्थान सरकार की रोक लगी है ऐसे अख़बारों की कटिंग के साथ समाचार समाज बंधुओं ने पोस्ट किए है और सरकार के निर्णय की तारीफ़ भी की है।
तारीफ होनी भी चाहिए यदि कठोर कानून बना है तो मैं इसका पक्षधर हु।
दरअसल ये कोई नया निर्णय नही है 1960 मैं यानि आज से 60 साल पहले से ये अधिनियम पारित हुआ था
और अब इस पर स्थानीय सरपंच,ग्राम सेवक और अन्य जन प्रतिनिधियों को सख्ती करने हेतु सूचना पुलिस तक देने हेतु पाबंद किया है अन्यथा आयोजक के साथ साथ वे भी दंड और जुर्माना के हकदार होंगे।
सनातन धर्म मे प्रत्येक व्यक्ति के जीवन काल मे जीवन जीने के 16 संस्कार बताए गए है अंतिम संस्कार उनमें से एक आखिरी संस्कार है।
बंधुओ वास्तव मे देखा जाए तो हमारे बुजुर्गों काफी सोच समझ कर इन रीति रिवाजों को बनाया था मृत्यु के पश्चात हर क्रिया के पीछे एक मक़सद छुपा हुआ था जब किसी के घर से अचानक कोई चला जाता है तो उस घर मे रहने वाले नजदीकी बंधुओ की मानसिक हालात सही नही रहते है उन्ही हालातों को सामान्य करने हेतु हर रीति बनाई गई है।
एक कहावत है कि नई बात नो दिन खेची तानी तेरह दिन
इसी तर्ज पर कई जगह बारहवां होता है कई जगह तेरहवीं होती है।
इन दिनों मैं उनके नाते रिश्तेदार संवेदना देने हेतु आते है और साथ ही जो विधि विधान बनाये गए है फूल चुगना,तीसरे से बैठक लगाना, हरिद्वार जाना,गरुड़ पुराण पाठ करवाना,नवमी के औरतों के नहाने की विधि उस दिन घर मे नए पानी भरने के मटके आदि बदले जाना और डांगड़ी रात को जागरण करावना और बारहवें या तेरहवीं पर उठावने के रूप मे गंगा प्रसादी का करना शामिल है।
इन सभी रीतियों को बनाने का मकसद ये था कि घर के लोगों को मानसिक रुप से दूसरे कार्यो मैं मन लगकर धीरे धीरे स्तिथि सामान्य हो जाती हैं कहते है न समय हर घाव भर देता है।
गरुड़ पुराण के मुताबिक तो जिस घर मे मृत्यु होती है उस का 12 दिन तक यानी हवन (शुद्धिकरण) होने तक पानी पीना भी वर्जित है।
पुराने समय मैं जो नाते रिश्तेदार मिलने आते थे वे दूर दूर से आते थे,आवागमन के साधन बहुत कम होने के कारण कभी कभी रात को भी रुकना पड़ता था और होटल ढाबे आदि भी नही होते थे इसलिए उनको भोजन करना पड़ता था।
वर्तमान समय मैं आवागमन के साधन उपलब्ध है होटल ढाबे आदि है और 150,200 किमी तक जाकर आने मैं हम घरों से भी भोजन कर के जा सकते है।
पहले समय मैं खाना पीना बहुत ही सामान्य स्तर का ही होता था इसलिए कम खर्च मैं ही सब कार्य हो जाते थे हरिद्वार जाने के भी साधन नहीं होते थे इसलिए पूरे गाँव कुटुंब के फूल वर्षों बाद एक साथ प्रवाहित करने जाते थे।
पहले सिर्फ नजदीकी रिश्तेदारों और सगे सम्बधियो और गांव के लोगो को ही बुलाया जाता था धीरे धीरे कुछ सम्प्पन लोगो ने इन खर्चो मैं भव्यता लानी शुरू की गई गांव के आस पास के गांव बुलाने लगे कुछ लोग 17 खेड़ा,24 खेड़ा आदि बड़े बड़े भोज करने लगे किसके यहाँ कितने लोग आए इसकी चर्चा चारो और होने लगी एक तरह से स्टेटस सिंबल बना लिया गया है अरे किसी के घर मे मृत्यु हुई है और वहाँ 5 ,5 मिठाई बन रही है हर गांव मे सम्प्पन लोगो ने मृत्युभोज के समय खाने पीने के साथ साथ अन्य नशे करने के सामान भी आने जाने वालों की ख़ातिरी करने लगे होड़ पर होड़ होने लगी है।
एक सामाजिक बुराई हम सभी मैं और आ गई है यदि कोई संम्पन्न परिवार साधारण तरह से यदि करे तो हम सभी उलाहना भी देते है कि फला फला ने खूब धन पीछे छोड़ा था और लारे धूड़ उड़ा दी टाबर इस तरह की बाते भी होती है इसलिए हमें इन बातों से भी बचना चाहिए यदि कोई साधारण तरीके से कार्य करे तो समाज मे उसकी प्रशंसा करनी चाहिए ताकि और लोग भी ऐसा करने के लिये प्रेरीत हो सके।
यदि जनप्रतिनिधि के यहाँ अगर कोई घटना होवे तो संख्या हजारो हजार मैं होने लगी इसी बहाने वोट बैंक साधने के काम भी होने लगा।
इसी होड़ाहोड़ मैं माध्यम और गरीब वर्ग का व्यक्ति पीसने लग गया कुछ सूदखोर लोग जमीन के लालच मैं पंचों को शामिल करके दवाब बनाकर जमीन गिरवी रखवा कर बेचकर मोसर करने के लिए प्रेरित करने लगे कुछ लोग सामाजिक शर्म के कही बुरा न लग जाये इसलिये कर्ज लेकर करने लगे।
तो इस तरह से एक सनातन धर्म की रीति को कुरीति मैं बदल दिया है।
कल ही समाचार पत्र मैं समाचार पढ़ा दोसा में एक गरीब व्यक्ति के घर मे ऐसी घटना हुई तो पंचों ने उंसको पिटाई करवा दी मतलब कही कही तो बहुत हद ही हो जाती है।
सर्वप्रथम वर्तमान समय मे हमे संकल्प लेना होगा कि हम स्वयं किसी के यहाँ मृत्युभोज ग्रहण नही करेंगे।
फिर यदि हमारे घर मे कोई घटना हो जाये तो सिर्फ अति नजदीकी रिश्तेदार बहन बेटी आदि के लिये ही सामान्य भोजन व्यवस्था की जाएगी।
सभी तरह की गंगा प्रसादी के रूप मे कोई नकद लेन देन नही होगा।
ननिहाल पक्ष और ससुराल पक्ष से सिर्फ जिन्होंने बाल दिए है उनके लिए सिर्फ पगड़ी रस्म अदायगी हेतु ली जाएगी और बहन बेटियों को ओढ़ना दिया जाएगा।
यदि हम अपने घरों से इस कार्य की शुरुआत करते है तो धीरे धीरे ये कुरीति वापिस रीति बन जाएंगी।
आप सभी की जानकारी हेतु अवगत करवाता हु की मैंने मेरी समझ मैं पिछले 26 सालों से कोई मृत्युभोज ग्रहण नही किया है और हमारे खानदान मैं पिछले 16 साल पहले मेरे काकोसा और अभी मेरे एक और काकोसा ने स्वर्गवास होने पर सिर्फ बहन बेटियों और घर के नजदीकी 100 के क़रीब लोगो के लिये साधारण भोजन ही बनाया गया था।
दुर्गा सिंह चौहान
प्रदेश महामंत्री
🏣 *मेजर दलपतसिंह जी देवली*🏣
🏣 *रावणा राजपूत छात्रावास* 🏣
*रावणा राजपूत समाज के जयपुर मैं बन रहे शिक्षा के स्वर्णमंदिर का निर्माण कार्य लोक डाउन की अवधि के बाद अब पुनः शुरू हो गया है।*
*इसी के साथ ही सहयोग का सिलसिला भी पुनः शुरू हुआ है*
*होस्टल का निर्माण कार्य युद्धस्तर पर चल रहा है।*
*ईश्वर आपके भंडार भरे रखे एवं आप इसी प्रकार आगे भी सहयोग और समर्पण का भाव हमारे साथ बनाये रखें।*
*पुनः आपका बहुत बहुत आभार,।*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 *आप सभी से भी अनुरोध है कि आप अपने द्वारा बोली गई राशि को यथासंभव जल्द से जल्द जमा करवाये ताकि शिक्षा का स्वर्ण मंदिर जल्द बन कर तैयार हो सके।*
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