ANKUR SINGH

ANKUR SINGH

अंकुर सिंह
समाजसेवक ,अध्यापक,कवि

22/06/2023

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#अंकुर सिंह #अधूरी_कलम #वायरल #लखीमपुर लखीमपुर ग्रुप अपना गोला गोकरननाथ

29/12/2022
17/11/2022

भगवान् श्री राम का वनवास सिर्फ चौदह वर्ष ही क्यों? क्यों नहीं चौदह से कम या चौदह से ज्यादा ?

माता कैकयी ने महाराज दशरथ से “भरत जी को राजगद्दी” और “राम को चौदह वर्ष का वनवास” माँगा

भगवान् राम ने एक आदर्श पुत्र, भाई, शिष्य, पति, मित्र और गुरु बन कर ये ही दर्शाया कि व्यक्ति को रिश्तो का निर्वाह किस प्रकार करना चाहिए।

भगवान राम का दर्शन करने पर हम पाते है कि अयोध्या हमारा शरीर है जो की सरयू नदी यानि हमारे *मन* के पास है।
अयोध्या का एक नाम अवध भी है। (अ वध) अर्थात जहाँ कोई या अपराध न हों। जब *इस शरीर का चंचल मन सरयू सा शांत हो जाता है और इससे कोई अपराध नहीं होता तो ये शरीर ही अयोध्या कहलाता है।
शरीर का तत्व (जीव), इस अयोध्या का राजा दशरथ है। दशरथ का अर्थ हुआ वो व्यक्ति जो इस शरीर रूपी रथ में जुटे हुए दसों इन्द्रिय रूपी घोड़ों (५ कर्मेन्द्रिय ५ ज्ञानेन्द्रिय) को अपने वश में रख सके।
तीन गुण सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण राजा दशरथ की तीन रानियाँ कौशल्या, सुमित्रा और कैकई है

दशरथ रूपी साधक ने अपने जीवन में चारों पुरुषार्थों धर्म, अर्थ काम और मोक्ष को राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रूपमें प्राप्त किया था ।
तत्वदर्शन करने पर हम पाते है कि धर्मस्वरूप भगवान् राम स्वयं ‘ब्रह्म’ है। शेषनाग भगवान् लक्ष्मण वैराग्य है,माँ सीता शांति और भक्ति है और बुद्धि ज्ञान हनुमान जी है

रावण घमंड का, कुभंकर्ण अहंकार, मारीच लालच और मेंघनाद काम का प्रतीक है.।
मंथरा कुटिलता, शूर्पणखा काम और ताडका क्रोध का। चूँकि काम क्रोध कुटिलता ने संसार को वश में कर रखा है इसलिए प्रभु राम ने सबसे पहले क्रोध यानि ताडका का वध ठीक वैसे ही किया जैसे भगवान् कृष्ण ने पूतना का किया था।

नाक और कान वासना के उपादान माने गए है, इसलिए लक्ष्मण जी ने शूर्पणखा के नाक और कान काटे भगवान् को अपनी प्राप्ति का मार्ग स्पष्ट रूप से दर्शाया l
उपरोक्त भाव से अगर हम देखे तो पाएंगे कि भगवान् सबसे पहले वैराग्य (लक्ष्मण) को मिले थे।

फिर वो भक्ति (माँ सीता) और सबसे बाद में ज्ञान (भक्त शिरोमणि हनुमानजी) के द्वारा हासिल किये गए थे।
जब भक्ति (माँ सीता) ने लालच (मारीच) के छलावे में आकर वैराग्य (लक्ष्मण) को अपने से दूर किया तो घमंड (रावण) ने आ कर भक्ति की शांति ( माँ सीता की छाया) हर ली और उसे ब्रम्हा (भगवान्) से दूर कर दिया।

भगवान् ने चौदह वर्ष के वनवास के द्वारा ये समझाया कि अगर व्यक्ति युवावस्था में चौदह, पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (कान, नाक, आँख, जीभ, चमड़ी), पांच कर्मेन्द्रियाँ (वाक्, पाणी, पाद, पायु, उपस्थ), तथा मन, बुद्धि, चित और अहंकार को वनवास में रखेगा तभी प्रत्येक मनुष्य अपने अन्दर के घमंड या रावण को मार पायेगा। *
रावण की अवस्था में 14 ही वर्ष शेष थे,, प्रश्न उठता है ये बात कैकयी कैसे जानती थी।
क्यूँकि ये घटना घट तो रही थी अयोध्या परन्तु योजना थी देवलोक की ।

“अजसु पिटारी तासु सिर, गई गिरा मति फेरि”

माता सरस्वती ने मन्थरा की मति में अपनी योजना से हर लिया, उन्होंने रानी कैकयी को वही सब सुनाया समझाया कहने को उकसाया जो सरस्वती जी को इष्ट था,,,
इसके सूत्रधार हैं स्वयं श्रीराम,, क्यूँकि वे ही निर्माता निर्देशक तथा अभिनेता हैं, सूत्रधार उर अन्तरयामी हैं ।

मेघनाद को वही मार सकता था जो 14 वर्ष की कठोर साधना सम्पन्न कर सके, जो निद्रा को जीत ले, ब्रह्मचर्य का पालन कर सके, यह कार्य लक्ष्मण द्वारा सम्पन्न हुआ,

फिर प्रश्न है कि वरदान में लक्ष्मण थे ही नहीं तो इनकी चर्चा क्यों ?

क्यूँकि भाई राम के बिना लक्ष्मण रह ही नहीं सकते, श्रीराम जी का ‘यश’ यदि झंडा है तो लक्ष्मण उस झंडे के डंड रूपी अधर हैं ।
1. माता कैकयी यथार्थ जानती है, जो नारी युद्ध भूमि में राजा दशरथ के प्राण बचाने के लिये अपना हाथ, रथ के धुरे में लगा सकती है, रथ संचालन की कला मे दक्ष है वह राजनैतिक परिस्थितियों से अनजान कैसे रह सकती है।
2. मेरे राम का पावन यश चौदहों भुवनों ( विष्णु पुराण के अनुसार भुवनों की संख्या १४ है। इनमें से 7 लोकों को “ऊर्ध्वलोक “व 7 को “अधोलोक “कहा गया है ) में फैल जाये, और यह बिना तप के, रावण वध के सम्भव न था।
3. राम केवल अयोध्या के ही सम्राट् न रह जाये विश्व के समस्त प्राणियों हृहयों के सम्राट बनें, उसके लिये अपनी साधित शोधित इन्द्रियों तथा अन्तःकरण को पुनश्च तप के द्वारा तदर्थ सिद्ध करें।
4. सारी योजना का केन्द्र राक्षस वध है अतः दण्डकारण्य को ही केन्द्र बनाया इक्ष्वाकु वंश के राजा अनरण्य के उस शाप का समय पूर्ण होने में 14 ही वर्ष शेष हैं जो शाप उन्होंने रावण को दिया था कि मेरे वंश का राजकुमार तेरा वध करेगा।

15/11/2022

इतिहास चुराए नहीं है हमने।
हमने इतिहास बनाए हैं।।
शीश कटे हैं रण में तब क्षत्रिय कहलाए हैं।

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