Afroz Roshan
मेरी पहचान तो मोहब्बत है
आपका दिल मेरा ठिकाना है
तेरे चराग़ में इतना ना रौशनी हो जाए
की तुझसे चाँद सितारों को बरहमी हो जाए
तूं हक़ परस्त है तुझको ही सब्र करना है
मगर वो सब्र ना कर जो की बुज़दिली हो जाए
~ मोहतरम हिलाल राना किछौछवि
आज अपनी यौमे पैदाइश के मौके पर मशहूर शायर नौजवान दिलों की धड़कन इंकलाबी लबो लहज़े के मालिक मोहतरम मरहूम हिलाल राना साहब की तुरबत पर फातिहा पढ़ने का सर्फ हासिल हुआ!
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बार्गाह में दुआ है की मोहतरम हिलाल राना साहब की मग़फिरत फरमाये और उन्हें जन्नत नसीब करे!
आमीन
बज़्में अर्मगान ए अदब के 39 वे आँनलाइन तरहि मुशायरे में इंशाल्लाह 2 मार्च को बतौर नाज़िम ए मुशायरा शिरकत रहेगी!
आप हज़रात से दुआ की दरख़्वासत!
तालिब ए दुआ~ अफरोज़ रौशन किछौछवि
गर्दिश तो चाहती है तबाही मेरी मगर
मजबूर है किसी की दुआओं के सामने
अदबी दुनियाँ फाउंडेशन के बैनर तले अज़मत ए वालिदैन कॉंफ़्रेंस व बच्चों का नातीया मुजाहिरे का इनकाद 27 फ़रवरी बरोज़ मंगल बाद नमाज़ ए इशा स्थान खादिम टोला ( पप्पू मियां साहब के ग्राउंड पर) रात 8 बजे होने जा रहा है !
आप तमामि हज़रात से गुज़ारिश है इस प्रोगाम में शिरकत फरमा कर सवाब ए दारैन हासिल करें!
गुज़ारिश कर्ता ~ अफरोज़ रौशन किछौछवि फाउंडर मेम्बर
अदबी दुनियाँ फाउंडेशन
आजमगढ़ जनपद के मूल निवासी सरफराज खान का टीम इंडिया में हुआ सिलेक्शन इंग्लैंड के खिलाफ दूसरे टेस्ट मैच में खेलेंगे सरफराज खान समूचे जनपद में खुशी की लहर
गजल
दुश्वारियों का बोझ उठाया ना जाएगा
इस ज़िंदगी का साथ निभाया ना जायेगा
अपनी तरफ बुला ले तू मुझको मेरे खुदा
अब और गम का बोझ उठाया ना जायेगा
गुजरे जो रंज़ हम पे तो ये अहद कर लिया
ता उम्र अब किसी को सताया ना जायेगा
तरीकियों में गुम रहा पल पल मेरा वजूद
बीते हुए दिनों को भुलाया ना जायेगा
लड़ता रहूँगा जंग मियाँ अपनी जात से
बर्बादियों का शोक मनाया ना जायेगा
होता रहे मज़ाक मेरी सादगी के साथ
चेहरे पे कोई रंग चढ़ाया ना जायेगा
अय यार मुझको दर्द ये विरसे में है मिला
अश्कों में मुझसे दर्द बहाया ना जायेगा
रौशन हो जिस से आशियाँ रौशन गरीब का
ऐसा चराग हमसे बुझाया ना जायेगा
अफरोज़ रौशन किछौछवि
پھر کسی میں بھی علی جیسی شجاعت نہ ملی
کوئی پیدا نہ ہوا فاتح خیبر کی طرح
~ افروز روشن کچھوچھوی
माँ...
मैं तेरी ममता गंवा कर उम्र भर तन्हा रहा
घर में मेला सा लगा था मैं मगर तन्हा रहा
ज़िंदगी की राह में मेरा सफ़र तन्हा रहा
मेरा तर्ज़-ए-फ़िक्र, अंदाज़-ए-नज़र तन्हा रहा
वक़्त की बे-इल्तिफ़ाती का निशाना हो गया
दिल में जो शोला था, नज़्र-ए-बर्फ़ख़ाना हो गया
तेरी मीठी लोरियों के बोल कानों में नहीं
मामता का दर्द, दुनिया की दुकानों में नहीं
इन ज़मीनों में नहीं, उन आसमानों में नहीं
अब मेरे दिल का सुकूँ दोनों जहानों में नहीं
कौन दिल का दर्द बांटे, कौन ग़म हल्का करे
यूँ न दुनिया में किसी को ज़िंदगी तन्हा करे
उम्र भर बेचारगी की आग में भुनता रहा
फूल क़िस्मत में नहीं थे ख़ार-ए-ग़म चुनता रहा
शिकवा-ए-अहबाब-ओ-ता'न-ए-अक़रबा सुनता रहा
आप अपना मर्सिया कह कह के सर धुनता रहा
अपने ख़्वाबों, अपने अरमानों से शर्मिंदा हूँ मैं
तू ने जीने की दुआ दी थी मुझे, ज़िंदा हूँ मैं
क़ैसर-उल-जाफ़री
इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलाही राजी'वून.. बहुत ही अफसोस के साथ यह बताना पड़ रहा है जनाब अली रजा शाह जिनका इंतकाल हो गया है.. अल्लाह मगफिरत फरमाए आमीन.. मिट्टी आज शाम 4:30 बजे पलवान शहीद बाबा से सटे कब्रिस्तान में होगी!
भाई Irfan Siddeequi को आर्म रेसलिंग चैपियन अम्बेडकर नगर विजेता होने पर ढेरों मुबारक बाद!
मशहूर व मारूफ नाज़िम ए मुशायरा व शायर पद्म श्री अनवर जलालपुरी साहब की योम ए बरसी पर खिराज़ ए अकीदत पेश करता हूँ!
~ अफरोज़ रौशन किछौछवि
तुम्हारा अज़्म सलामत तुम्हारी उम्र दराज़
ज़माना तुमसे बहुत काम लेने वाला है
एक ऐसा नाम जो किसी परिचय का मोहताज नहीं, जिसने सरकार की दमन कारी, व गलत नीतियों का पुरजोर विरोध किया है, लोगों के हितों को सर्वपरि रखने वाला, जो अपने बेबाक अंदाज़ से जाना व पहचाना जाता है!
बड़े भाई निखिल जयसवाल जी को जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं एवं ढेरों मुबारक बाद!
ईश्वर आपकी उम्र दराज़ करे, आप राजनीति के सर्वोच्च पद तक पहुचें, अनेकों मंगल कामनाएं!
~ अफरोज़ रौशन किछौछवि
یومِ ولادت-- ٢٧ دسمبر ١٧٩٧ * مرزا غالب *
کچھ شخصیتیں ایسی ہوتی ہیں جو اپنی زندگی میں ہی ادبی تاریخ کا حصّہ بن جاتی ہیں۔ وہ اپنے عہد یہاں تک کہ اپنی آنے والی نسلوں کو بھی بھر پور متاثر کرتی ہیں۔
۔ ایک سچا شاعر، ایک بے پناہ نثر نگار، اپنی فکر سے لوگوں کو سوچنے پر مجبور کر دینے والا، اپنی ظریفانہ سنجیدگی سے لوگوں کو ہنسانے والا، وہ عظیم شاعر جسے دنیا ،، مرزا غالب،، کے نام سے جانتی ہے،
اردو کے عظیم شاعر مرزا اسد اللہ خاں غالب کی آج سالگرہ منائی جارہی ہے۔
مرزا غالب 27 دسمبر 1797 کو آگرہ میں پیدا ہوئے۔ 5 سال کی عمر میں والد کی وفات کے بعد غالب کی پرورش چچا نے کی تاہم 4 سال بعد چچا کا سایہ بھی ان کے سر سے اٹھ گیا۔ مرزا غالب کی 13 سال کی عمرمیں امراء بیگم سے شادی ہوئی جس کے بعد انہوں نے اپنے آبائی شہرکو خیرباد کہہ کر دہلی میں مستقل سکونت اختیارکرلی۔
دہلی میں پرورش پانے والے غالب نے کم سنی ہی میں شاعری کا آغاز کیا۔ غالب کی شاعری کا انداز منفرد تھا جسے اس وقت کے استاد شعرا نے تنقید کا نشانہ بنایا اور کہا کہ ان کی سوچ دراصل حقیقی رنگوں سے عاری ہے۔
دوسری طرف غالب اپنے اس انداز سے یہ باور کرانا چاہتے تھے کہ وہ اگر اس انداز میں فکری اور فلسفیانہ خیالات عمدگی سے باندھ سکتے ہیں تو وہ لفظوں سے کھیلتے ہوئے کچھ بھی کرسکتے ہیں۔ غالب کا اصل کمال یہ تھا کہ وہ زندگی کے حقائق اورانسانی نفسیات کو گہرائی میں جاکر سمجھتے تھے اور بڑی سادگی سے عام لوگوں کے لیے اپنے اشعار میں بیان کردیتے تھے۔ گویا غالب وہ پہلے شاعر تھے جنہوں نے اردو شاعری کو ذہن عطا کیا، غالب سے پہلے کی اردو شاعری دل و نگاہ کے معاملات تک محدود تھی، غالب نے اس میں فکر اور سوالات کی آمیزش کرکے اسے دوآتشہ کردیا۔
اگرچہ نثر کے میدان میں غالب نے کوئی فن پارہ تخلیق نہیں کیا لیکن منفرد انداز سے خط نگاری کی؛ اور یوں ’’غالب کے خطوط‘‘ اپنے لب و لہجے، اندازِ بیان، لفظوں کے انتخاب اور نثر میں شاعرانہ انداز کے باوصف اردو ادب کا وہ شاندار سرمایہ ثابت ہوئے جسے ان کے انتقال بعد یکجا کیا گیا۔
مرزا غالب اگرچہ ۱۵ فروری ۱۸۷۹ کو دہلی میں جہان فانی سے کوچ کرگئے، لیکن جب تک اردو زندہ ہے ان کا نام بھی جاوداں رہے گا اور جب تک اردو شاعری زندہ ہے، غالب کا نام ہی غالب رہے گا۔
،،آج انکی ۲۲۴ویں یومِ پیدائش پر تہ دل سے خراجِ عقیدت پیش کرتے ہیں،،
۔ آئیے دوستو! انھیں کے لکھے ہوئے اشعار سے انھیں یاد کیا جائے
، میں انکے کئی شعروں کی سب سے بڑی فین ہوں،،
*آئینہ کیوں نہ دوں کہ تماشا کہیں جسے
ایسا کہاں سے لاؤں کہ تجھ سا کہیں جسے*
*آہ کو چاہیئے اک عمر اثر ہوتے تک
*کون جیتا ہے تری زلف کے سر ہوتے تک*
*اس انجمنِ ناز کی کیا بات ہے غالبؔ
*ہم بھی گئے واں اور تری تقدیر کو رو آئے*
*بازیچۂ اطفال ہے دنیا مرے آگے
ہوتا ہے شب و روز تماشا مرے آگے*
*بس کہ دشوار ہے ہر کام کا آساں ہونا
آدمی کو بھی میسر نہیں انساں ہونا*
*بے خودی بے سبب نہیں غالبؔ
*کچھ تو ہے، جس کی پردہ داری ہے*
*پلا دے اوک سے ساقی جو ہم سے نفرت ہے
پیالہ گر نہیں دیتا نہ دے شراب تو دے*
*ثابت ہوا ہے گردنِ مینا پہ خونِ خلق
لرزے ہے موجِ مے تری رفتار دیکھ کر*
*جان دی دی ہوئی اسی کی تھی
حق تو یہ ہے کہ حق ادا نہ ہوا*
*دائم پڑا ہوا ترے در پر نہیں ہوں میں
خاک ایسی زندگی پہ کہ پتھر نہیں ہوں میں*
*دردِ منّتِ کش دوا نہ ہوا
میں نہ اچھا ہوا برا نہ ہوا*
*ہم کو معلوم ہے جنت کی حقیقت لیکن
دل کے خوش رکھنے کو غالبؔ یہ خیال اچھا ہے*
ہزاروں خواہشیں ایسی کہ ہر خواہش پہ دم نکلے
بہت نکلے مرے ارمان لیکن پھر بھی کم نکلے
*عشرت قطرہ ہے دریا میں فنا ہو جانا
درد کا حد سے گزرنا ہے دوا ہو جانا*
*کعبہ کس منہ سے جاوگے غالبؔ
شرم تم کو مگر نہیں آتی*
*کوئی میرے دل سے پوچھے ترے تیر نیم کش کو
یہ خلش کہاں سے ہوتی جو جگر کے پار ہوتا*
*نہ تھا کچھ تو خدا تھا کچھ نہ ہوتا تو خدا ہوتا
ڈبویا مجھ کو ہونے نے نہ ہوتا میں تو کیا ہوتا*
*رگوں میں دوڑتے پھرنے کے ہم نہیں قائل
جب آنکھ ہی سے نہ ٹپکا تو پھر لہو کیا ہے*
*ان کے دیکھے سے جو آ جاتی ہے منہ پر رونق
وہ سمجھتے ہیں کہ بیمار کا حال اچھا ہے*
*دلِ ناداں تجھے ہوا کیا ہے
آخر اس درد کی دوا کیا ہے*
*ریختے کے تمہیں استاد نہیں ہو غالبؔ
کہتے ہیں اگلے زمانے میں کوئی میرؔ بھی تھا*
*قاصد کے آتے آتے خط اک اور لکھ رکھوں
میں جانتا ہوں جو وہ لکھیں گے جواب میں*
*ایک ہنگامے پہ موقوف ہے گھر کی رونق
نوحہ غم ہی سہی نغمئہ شادی نہ سہی*
*بس ہجوم ناامیدی خاک میں مل جائے گی
یہ جو اک لذت ہماری سعی لاحاصل میں ہے*
*موت کا ایک دن معیّن ہے
نیند کیوں رات بھر نہیں آتی*
*جوئے خون آنکھوں سے بہنے دو کہ ہے شامِ فراق
مین يہ سمجھوں گا کہ شمعين دو فروزاں ہو گئیں*
*یہ نہ تھی ہماری قسمت کہ وصالِ یار ہوتا
اگر اور جیتے رہتے یہی انتظار ہوتا*
*ہیں اور بھی دنیا میں سخن ور بہت اچھے
کہتے ہیں کہ غالبؔ کا ہے اندازِ بیاں اور*
*ہزاروں خواہشیں ایسی کہ ہر خواہش پہ دم نکلے،
*بہت نکلے مرے ارمان لیکن پھر بھی کم نکلے ،*
*کتنے شیریں ہیں تیرے لب کے رقیب
گالیاں کھا کے بے مزہ نہ ہوا *
*انکے دیکھے سے جو آ جاتی ہے منھ پہ رونق
وہ سمجھتے ہیں کہ بیمار کا حال اچھا ہے *
*وہ آ ئے گھر میں ہمارے خدا کی قدرت ہے
کبھی ہم ان کو کبھی اپنے گھر کو دیکھتے ہیں*
*ہم کو معلوم ہے جنّت کی حقیقت لیکن
دل کے بہلانے کو غالب یہ خیال اچھا ہے *
*ہم نے مانا کہ کچھ نہیں غالب
مفت ہاتھ آئے تو برا کیا ہے*
انتخاب شیزا جلالپوری
ملال ہے ، مگر اِتنا ملال تھوڑی ہے
یہ آنکھ رونے کی شدت سے لال تھوڑی ہے
بس اپنے واسطے ہی فکر مند ہیں سب لوگ
یہاں کسی کو کسی کا خیال تھوڑی ہے
پروں کو کاٹ دیا ہے ، اُڑان سے پہلے
یہ شوقِ ہجر ہے ، شوقِ وصال تھوڑی ہے
مزہ تو جب ہے کہ ، ہار کے بھی ہنستے رہو
ہمیشہ جیت ہی جانا ، کمال تھوڑی ہے
لگانی پڑتی ہے ڈُبکی، اُبھرنے سے پہلے
غروب ہونے کا مطلب ، زوال تھوڑی ہے
پروین شاکر
मरहूम जनाब बेच्चन खां साहब की नमाज़ ए जनाजा सुबह ठीक 10 बजे आस्ताना पहलवान शहीद बाबा के ग्राउंड पर अदा की जायेगी!
आप हज़रात से गुज़रिश है की नमाज़ ए जनाजा में शिरकत फरमा कर सवाबे दारैन हासिल करें!
इंशाल्लाह बज़्में अर्गुमाने अदब के 37 वें आनलाइन तरही मुशायरे 23 दिसंबर को शिरकत रहेगी!
आप अहबाब से दुआ की गुज़ारिश
तालिब ए दुआ~ अफरोज़ रौशन किछौछवि
हालात ये हाज़रा
सुखनवरी का भी अब हक़ अदा किया जाए
खिलाफ़ ज़ुल्म ओ तशद्दुद के कुछ लिखा जाए
मिटा के अहले सितम को जहां के नक्शे से
ये रोज़ रोज़ का झगड़ा मिटा दिया जाए
कोई बताए मुझे कुछ। समझ नही आता
लहू लहू है फिलिस्तीन क्या किया जाए
हमारे अहद के कमज़र्फ रहनुमाओं को
लहू। में डूबा वो मंज़र दिखा दिया जाए
फिजूल खर्च से रौशन तो लाख बेहतर है
किसी। गरीब को खाना खिला दिया जाए
_____ अफ़रोज़ रौशन किछौछवि
एक ही वक्त में नज़ारा ए दुनियां होना
सूरमाओं को हरा कर के नमूना होना
एक तो नाम की तौकीर बचाए रखकर
कितना दुश्वार है हर जीत का चेहरा होना
आपके अज्म वा अंदाज़ पे कुर्बान हैं हम
इतना आसान नहीं आपके जैसा होना
वक्त रहते हुए कुछ कद्र करें हम साबिर
वरना मुश्किल है शमी दूसरा पैदा होना
साबिर जलालपुरी साहब
ग़ज़ल
किसी को ज्यादा मुनाफ़ा कोई उधार में है
जिसे भी देखो लगा अपने कारोबार में है
खुदी से एक भी मिसरा जो लिख नही पाया
सितम ये है कि वही शख्स इश्तेहार में है
मेरी हयात में बस इसलिए अंधेरा है
मेरा सितारा अभी गर्दिशे गुबार में है
हमेशा ओढ के सोई है बेहिसी का लिहाफ
ये और बात मेरी कौम इकतेदार में है
क्यों अपनी फिक्र पे इतरा रहा है बरखुदार
वजूद गुम तेरा महकूमियों के गार में है
जो अहले फन थे वो रुस्वा हुए हैं महफिल में
ये कैसा तौर तरीका तेरे दयार में है
फिज़ा में फैली हुई हर तरफ है ख़ामोशी
हयात सहमी हुई मौत के हिसार में है
कोई तो पूछे कि उस दिल की कैफियत क्या है
वो एक शख्स जो मुद्दत से कारागार में है
हमें यकीन है पहुंचेंगे हम भी साहिल तक
अभी सफीना मेरे यार तेज़ धार में है
रुका है जा के क्यों अफ़रोज़ कुर्बे मंजिल तूं
बढ़ा कदम अब यहां किसके इंतज़ार में है
~ अफ़रोज़ रौशन किछौछवी
अदबी दुनियां के आनलाइन मुशायरे में 24 नवंबर को शिरकत रहेगी आप हजरात की दुआओं का तलबगार !
तालिब ए दुआ~ अफ़रोज़ रौशन किछौछवि
लाख रोकें ये अंधेरे मेरा रस्ता लेकिन
मैं जिधर रौशनी जाएगी उधर जाऊंगा
बज्मे अर्गुमान ए अदब के 36 वे ऑनलाइन तरही मुशायरे में शनिवार 18 नवंबर को इंशाल्लाह शिरकत रहेगी
आप अहबाब से दुआ की दरख्वास्त!
मानता हूं कि नहीं आज ज़रूरत मेरी
लोग ढूंढेंगे मेरे बाद किताबों में मुझे
مانتا ہوں کہ نہیں آج ضرورت میری
لوگ ڈھونڈے گے مرے بعد کتابوں میں مجھے
Syed Shiban Sharukh Qadri
बज़्मे अर्गुमाने अदब अंबेडकर नगर के 35 वे आनलाइन मुशायरे की शानदार पेशकश मुंबई के एक अखबार में!
नाते सरकार
کھل اُٹھا چہرہ سبھی کا آمد سرکار پر
لگ گیا خوشیوں کا میلہ آمد سرکار پر
खिल उठा चेहरा सभी का आमदे सरकार पर
लग गया खुशियों का मेला आमदे सरकार पर
کاش یہ ہوتا کرشمہ آمد سرکار پر
میں بھی جاتا شہر طیبہ آمد سرکار پر
काश ये होता करिश्मा आमदे सरकार पर
मैं भी जाता शहरे तैबा आमदे सरकार पर
مومنوں نور خدا کی برکتیں تو دیکھیے
بڑھ گئی شان دوشنبہ آمد سرکار پر
मोमिनों नूरे खुदा की बरकतें तो देखिये
बढ़ गयी शाने दोशम्बा आमदे सरकार पर
آپ کی آمد سے میرا گھر منور ہو گیا
کہہ رہی ہیں یہ حلیمہ آمد سرکار پر
आपकी आमद से मेरा घर मुनव्वर हो गया
कह रही हैं ये हलीमा आमदे सरकार पर
جس طرف دیکھو ادھر ہوتا ہے زکر مصطفی
آج گھر گھر میں ہے چرچا آمد سرکار پر
जिस तरफ देखो उधर होता है ज़िक्र ऐ मुस्तफा
आज घर - घर में है चर्चा आमदे सरकार पर
آپ کے آنے سے بادل ظلمتوں کے چھٹ گئے
چاروں جانب نور پھیلا آمد سرکار پر
आपके आने से बादल जुल्मतों के छट गए
चारों जानिब नूर फैला आमदे सरकार पर
انکی مدحت کے سبب سے اے میرے رب کریم
میرا بھی چمکے نصیبہ آمد سرکار پر
उनकी मिदहत के सबब से अय मेरे रब्बे करीम
मेरा भी चमके नसीबा आमदे सरकार पर
مجھ پہ بھی روشن عنایت ہو مرے سرکار کی
دیکھ لوں میں بھی مدینہ آمد سرکار پر
मुझ पे भी रौशन इनायत हो मेरे सरकार की
देख लू मैं भी मदीना आमदे सरकार पर
~ افروز روشن کچھوچھوی
नबी की नॉत है वरना ये शायरी क्या है,,,,,,,,,,,
शुक्रिया मेरी अपनी मिट्टी किछौछा शरीफ़
مصرع طرح ~ جس کے دل میں نبی کی الفت ہے
انکی قسمت بھی خوب قسمت ہے
جنکو حاصل نبی کی تربت ہے
उनकी किस्मत भी खूब किस्मत है
जिनको हासिल नबी की तुर्बत है
جسکو اصحاب دیں سے نفرت ہے اس کی قسمت میں صرف ذلت ہے
जिसको असहाबे दीं से नफरत है
उसकी किस्मत में सिर्फ जिल्लत है
دشمن جاں بھی ہوگےء شیدا انکے لہجے میں وہ فصاحت ہے
दुश्मने जां भी हो गए शैदा
उनके लहजे में वो फसाहत् है
بغض دل میں ہے لب پہ ذکر نبی آج تک عام یہ روایت ہے
बुग्ज़ दिल में है लब पे ज़िक्र ये नबी
आज तक आम ये रवायत है
اس کو محشر میں چین آئے گا
جس کے دل میں نبی کی الفت ہے
उसको महशर में चैन आयेगा
जिसके दिल में नबी की उल्फत है
سننے والوں بہت ادب سے سنو
نعت سننا نبی کی سنت ہے
सुनने वालों बहुत अदब से सुनो
नात सुनना नबी की सुन्नत है
جو بھی رکھتے ہیں بغض آقا سے
ایسے لوگوں سے مجھکو نفرت ہے
जो भी रखते हैं बुग्ज़ आका से
ऐसे लोगों से मुझको नफरत है
دل میں قرآں اتار کر دیکھو
زندگی کتنی خوبصورت ہے
दिल में कुरआं उतार कर देखो
ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है
اس کی آہٹ کا احترام کرو
ماں کے قدموں کے نیچے جنت ہے
उसकी आहट का ऐहतेराम करो
माँ के कदमों के नीचे जन्नत है
نعت سرکار کے سبب روشن
اب تیری فکر میں وسعت ہے
नाते सरकार के सबब रौशन
अब तेरी फ़िक़्र में भी उसअत् है
~ افروز روشن کچھوچھوی
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