Awaken To Wellness

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01/12/2020

सेहत के लिए ताम्र बर्तन के पानी का सेवन होता है फायदेमंद !

“जल ही जीवन है” पानी पीना सेहत के लिए बहुत अधिक फायदेमंद होता है यह सभी जानते हैं, लेकिन तांबे के बर्तन में पानी पीना सेहत के लिए बहुत अधिक फायदेमंद है। तांबे के बर्तन में पानी पीने से शरीर में मौजूद कई विषैले तत्व आसानी से बाहर निकल जाते हैं लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप ताम्र जल का सेवन कर कैसे रहे हैं। अगर आपको इसका पूरा फायदा लेना है तो रात के समय ही तांबे के गिलास या जग में पानी ढककर रख दें। सुबह उठकर खाली पेट यह पानी पिएं।

तांबे के बर्तन मं पानी पीने के फायदे….

-तांबे में बैक्टीरिया समाप्‍त करने की पूर्ण क्षमता होती है। तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से पानी से होने वाली बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।

-तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से थॉयरायड ग्रंथि की कार्यप्रणाली निय‍ंत्रित रहती है। आज के समय में जबकि थॉयरायड की अनियमितता से ज्यादातर लोग परेशान हैं, तांबे के बर्तन में पानी पीना बचाव का एक बेहतर विकल्प है।

-अगर आपको जोड़ों के दर्द और सूजन की तकलीफ है तो तांबे के बर्तन में रखा पानी पीना आपके लिए फायदेमंद रहेगा। इससे गठिया की समस्या में भी आराम मिलता है।

-अगर आप नियमित रूप से तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीते हैं तो इससे त्वचा पर चमक आती है। यह पानी त्वचा से जुड़ी समस्याओं को दूर करने का काम करता है।

-पाचन क्रिया बेहतर बनाने के लिए भी तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने की सलाह दी जाती है। अगर आपको कब्ज और एसिडिटी की समस्या है तो तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से यह दूर हो जाएगी।

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🔴उन्मुक्त प्रयोग
तनाव से मुक्त कर ध्यान में प्रवेश करवाने वाला लाओत्से का अद्भुत सूत्र -क्यो जरूरी है नाभि तक स्वास लेना।
"जब कोई अपनी प्राणवायु को अपनी ही एकाग्रता के द्वारा नमनीयता की चरम सीमा तक पहुंचा देता है, तो वह शिशुवत कोमल हो जाता है।"
अगर आप एक छोटे बच्चे को अपने झूले पर सोता हुआ देखें, तो जो एक बात खयाल में आपको नहीं आती होगी, आनी चाहिए, वह यह होगी कि बच्चे का पेट आप ऊपर-नीचे होते देखेंगे, छाती नहीं। बच्चा श्वास ले रहा है, तो उसका पेट ऊपर-नीचे हो रहा है। लेकिन छाती उसकी बिलकुल विश्राम में पड़ी है। हम उलटी ही श्वास ले रहे हैं। हम जब श्वास लेते हैं, तो छाती ऊपर-नीचे होती है।
लाओत्से का कथन है--और बहुत कीमती, और अब विज्ञान भी लाओत्से से सहमत है--कि जैसे ही व्यक्ति के भीतर एंद्रिक और बुद्धिगत चेतनाओं में फासला पड़ता है, वैसे ही श्वास नाभि से न आकर सीने से आनी शुरू हो जाती है। यह फासला जितना बड़ा होता है, श्वास उतने ही ऊपर से आकर लौट जाती है। तो जिस दिन बच्चे की श्वास पेट से हट कर और सीने से चलने लगती है, जान लेना कि बच्चे के भीतर एंद्रिक आत्मा में और बुद्धिगत आत्मा में फासला पड़ गया। बड़ी उम्र में भी, आप भी जब रात सो जाते हैं, तब आपके पेट से ही श्वास चलने लगती है, सीना शांत हो जाता है। क्योंकि नींद में आप अपने फासलों को बचा नहीं सकते। बेहोशी में फासले खो जाते हैं और श्वास की स्वाभाविक प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
श्वास का जो प्राथमिक स्रोत है, जापानी भाषा में उसके लिए एक शब्द है। हमारी भाषा में कोई शब्द नहीं है। वह शब्द है उनका: तांदेन, दकमद। नाभि से दो इंच नीचे, ठीक श्वास चलती हो तो नाभि से दो इंच नीचे, जिसे जापानी तांदेन कहते हैं, उस बिंदु से श्वास का संबंध होता है। और जितना तनावग्रस्त व्यक्ति होगा, तांदेन से श्वास का बिंदु उतना ही दूर हटता जाता है।
तो जितने ऊपर से आप श्वास लेते हैं, उतने ही तनाव से भरे होंगे। और जितने नीचे से श्वास लेते हैं, उतने ही विश्राम को उपलब्ध होंगे। और अगर तांदेन से श्वास चलती हो, तो आपके जीवन में तनाव बिलकुल नहीं होगा। बच्चे के जीवन में तनाव न होने का जो व्यवस्थागत कारण है, वह तांदेन से श्वास का चलना है। जब आप भी कभी विश्राम में होते हैं, तो अचानक खयाल करना, आपकी श्वास तांदेन से चलती होगी। और जब आप तनाव से भरे हों, बहुत मन उदास, चिंतित, परेशान हो, व्यथित हो, बेचैनी में हो, तब आप खयाल करना, तो श्वास बहुत ऊपर से आकर लौट जाएगी। यह श्वास का ऊपर से आकर लौट जाना इस बात का सूचक है कि आप अपनी मूल प्रकृति से बहुत दूर हो गए हैं।
तीन केंद्र ताओ मानता है: एक तांदेन--नाभि केंद्र, दूसरा हृदय केंद्र और तीसरा बुद्धि का मस्तिष्क केंद्र। नाभि केंद्र अस्तित्व का सबसे गहरा केंद्र है। फिर उसके बाद उससे कम गहरा केंद्र हृदय का है। और सबसे कम गहरा केंद्र बुद्धि का है।
इसलिए बुद्धिवादी अस्तित्व से सबसे ज्यादा दूर होता है। उससे तो निकट वे लोग भी होते हैं, जो हृदयवादी हैं। तथाकथित ज्ञानियों से भक्त भी कहीं ज्यादा अस्तित्व के निकट होते हैं। जिसने केवल बुद्धि को ही सब कुछ जाना है, वह आदमी सतह पर जीता है। जितना हृदयवादी व्यक्ति होगा, श्वास उतनी गहरी चलेगी।
लेकिन लाओत्से कहता है, हृदय भी आखिरी गहराई नहीं है। और गहरे उतरना जरूरी है। और उसको वह तांदेन कहता है। नाभि से श्वास चलनी चाहिए। नाभि से जिसकी श्वास चल रही है, वह अस्तित्व के साथ वैसा ही जुड़ गया है, जैसे छोटे बच्चे जुड़े होते हैं।
"जब कोई अपनी प्राणवायु को अपनी ही एकाग्रता के द्वारा नमनीयता की चरम सीमा तक पहुंचा दे, तो वह व्यक्ति शिशुवत कोमल हो जाता है।"
अपनी श्वास को नमनीयता की चरम सीमा तक पहुंचा दे! नमनीयता का अर्थ है, तनावशून्य तरलता को पहुंचा दे। अगर आप तनावमुक्त हों, शून्य हों, तो श्वास आपकी अनिवार्य रूप से नाभि केंद्र पर पहुंच जाएगी। कभी शिथिल होकर, शांत होकर, कुर्सी पर बैठ कर देखें, आपको फौरन पता चलेगा: श्वास नाभि से चलने लगी। लेकिन ढीला छोड़ें अपने को।
लेकिन ढीला हम छोड़ते नहीं हैं।
प्राणवायु को नमनीयता की चरम सीमा तक पहुंचाना पहला प्रयोग है। ताओ की साधना में जो उतरते हैं, उनका पहला काम यह है कि वे श्वास को फेफड़ों से लेना बंद कर दें, नाभि से लेना शुरू करें। इसका अर्थ हुआ कि जब आपकी श्वास भीतर जाए, तो पेट ऊपर उठे; और जब श्वास नीचे गिरे, तो पेट नीचे गिरे। और सीना शिथिल रहे, शांत रहे।
अगर नाभि से श्वास न ली जा सके, तो बच्चों जैसी सरलता असंभव है। वह उस श्वास के साथ ही बच्चे जैसी नमनीयता और तरलता पैदा होती है।
ओशो
ताओ उपनिषद, प्रवचन - 24♣️

Photos from Awaken To Wellness's post 12/11/2020

🥀 *!!शीतकारी प्राणायाम!!* 🥀


*प्राणायाम एक.......लाभ अनेक*
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

*शीतकारी प्राणायाम-:शीतकारी’ का अर्थ होता हैं "ठंडक" जो हमारे शरीर और मन को ठंडक पहुचाये। इस प्राणायाम को करते समय मुंह से ‘सीत्‌’ (सी-सी) शब्द की आवाज निकालनी होती हैं और इसी कारण से इस प्राणायाम का नाम शीतकारी प्राणायाम पड़ा। यह प्राणायाम शरीर को शीतलता प्रदान करता है। शरीर की भीतरी सफाई कर इसे शुद्ध बनता हैं।*

*शीतकारी प्राणायाम करने की विधि*👇
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

*1- किसी स्वच्छ व् समतल जमीन पर आसन, चटाई बिछा कर उस पर सिद्धासन, पद्मासन सुखासन की मुद्रा में बैठ जाये।*

*2- अब अपने मेरुदंड एवं सिर और गर्दन को बिलकुल एक ही सीध में रखें।*

*3- अब नीचे के जबड़े के दांतों को ऊपर के जबड़े के दांतों पर रख रखें।*

*4- अपने दांतों के पीछे अपनी जीभ को लगाये और अपने मुंह को थोडा सा खुला रखें ताकि अच्छी तरह से श्वास अंदर आ सके।*

*5- अब अपनी जीभ को पीछे की ओर मोड़कर तालू से जीभ के अग्र भाग को लगा लें।*

*5- अब अपने दातों के बीच की जगह से श्वास धीरे-धीरे अन्दर लें श्वास ऐसा लें की "सी" की आवज हो।*

*6- यहाँ पर आपको कुंभक करना है अर्थात् अब अपनी श्वास को कुछ क्षणों तक रोक कर रखे फिर बाद में नाक से निकाल दें।*

*7-यह एक चक्र हुआ।*

*8-आप इस प्राणायाम को 10 से 15 बार तक दोहरायें। 5 से 10 मिनट तक सकते हैं।*

*शीतकारी प्राणायाम के लाभ*👇
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

*1- शीतकारी प्राणायाम के नियमित अभ्यास करने से शरीर में आक्सीजन की मात्रा कम नहीं होती।*

*2- शीतकारी प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर में रक्त संचार प्रक्रिया में सुधार आता है।*

*3- शीतकारी प्राणायाम करने से शरीर की थकान दूर होकर शरीर में फुर्ती आती है।*

*4- अगर आपको नींद की समस्या है तो आप इस प्राणायम के अभ्यास से नींद न आने की समस्या से निजात पा सकते हैं।*

*5- शीतकारी प्राणायाम करने से पूरे शरीर में शीतलता आती है और पसीना नहीं आता।*

*6- शीतकारी प्राणायाम करने से भूख-प्यास ना लगने की समस्या दूर होती है।*

*7- इस प्राणायाम के सुबह-सुबह नियमित अभ्यास से शारीरिक आभा को बढ़ाया जा सकता है।*

*8- इस प्राणायाम को करने से कई तरह के रोग जैसे दंत रोग, पायरिया, गले और मुंह के रोग, नाक और जीभ के रोगो से लाभ मिलता है।*

*9- इस प्राणायाम का अभ्यास पेट में जलन की समस्या को दूर करते हैं।*

*10- शीतकारी प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर का तापमान संतुलित रहता है।*

*11- इस प्राणायाम के अभ्यास से हम अपने चेहरे पर प्राक्रतिक चमक ला सकते हैं यह रक्त को शुद्ध करता है।*

*12- यह प्राणायाम शरीर की भीतरी अंगों की भी सफाई करता है।*

*शीतकारी प्राणायाम में सावधानियां*👇
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

*1-इस प्रणायाम को हमेशा खाली पेट ही करना चाहिए।*
*2- मुंह में कफ व टॉन्सिल के रोगियों को यह प्राणायाम बिलकुल नहीं करना चाहिये।*

*3-सर्दियों के मौसम में इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।*

*4- खुली एवं था जगह पर ही इसका अभ्यास करें धूल वाले स्थान से बचें।*.

*5- अस्थमा, सर्दी और खांसी की बीमारी में इस प्राणायाम को न करें।*

🧘‍♀️🧘‍♂️🏃‍♂️🧎🧎‍♀️🏃‍♂️🧘‍♂️🧘‍♀️

*करे योग,रहे निरोग!*
*घर-घर पहुँचे योग!!*

*समस्त योगाभ्यास, क्रियायें,प्राणायाम योग प्रशिक्षिक (विशेषज्ञ) के सानिध्य एवं सलाह से करें।*

*नोट-हमारा उद्देश्य एवं प्रयास आपको योग से जुड़ने का है इसलिए आप यह लेख जरूर-जरूर पढ़ें।*🙏

🙏🧘🏼‍♂️

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Photos from Awaken To Wellness's post 11/11/2020

🥀 *!!शीतकारी प्राणायाम!!* 🥀


*प्राणायाम एक.......लाभ अनेक*
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*शीतकारी प्राणायाम-:शीतकारी’ का अर्थ होता हैं "ठंडक" जो हमारे शरीर और मन को ठंडक पहुचाये। इस प्राणायाम को करते समय मुंह से ‘सीत्‌’ (सी-सी) शब्द की आवाज निकालनी होती हैं और इसी कारण से इस प्राणायाम का नाम शीतकारी प्राणायाम पड़ा। यह प्राणायाम शरीर को शीतलता प्रदान करता है। शरीर की भीतरी सफाई कर इसे शुद्ध बनता हैं।*

*शीतकारी प्राणायाम करने की विधि*👇
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*1- किसी स्वच्छ व् समतल जमीन पर आसन, चटाई बिछा कर उस पर सिद्धासन, पद्मासन सुखासन की मुद्रा में बैठ जाये।*

*2- अब अपने मेरुदंड एवं सिर और गर्दन को बिलकुल एक ही सीध में रखें।*

*3- अब नीचे के जबड़े के दांतों को ऊपर के जबड़े के दांतों पर रख रखें।*

*4- अपने दांतों के पीछे अपनी जीभ को लगाये और अपने मुंह को थोडा सा खुला रखें ताकि अच्छी तरह से श्वास अंदर आ सके।*

*5- अब अपनी जीभ को पीछे की ओर मोड़कर तालू से जीभ के अग्र भाग को लगा लें।*

*5- अब अपने दातों के बीच की जगह से श्वास धीरे-धीरे अन्दर लें श्वास ऐसा लें की "सी" की आवज हो।*

*6- यहाँ पर आपको कुंभक करना है अर्थात् अब अपनी श्वास को कुछ क्षणों तक रोक कर रखे फिर बाद में नाक से निकाल दें।*

*7-यह एक चक्र हुआ।*

*8-आप इस प्राणायाम को 10 से 15 बार तक दोहरायें। 5 से 10 मिनट तक सकते हैं।*

*शीतकारी प्राणायाम के लाभ*👇
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*1- शीतकारी प्राणायाम के नियमित अभ्यास करने से शरीर में आक्सीजन की मात्रा कम नहीं होती।*

*2- शीतकारी प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर में रक्त संचार प्रक्रिया में सुधार आता है।*

*3- शीतकारी प्राणायाम करने से शरीर की थकान दूर होकर शरीर में फुर्ती आती है।*

*4- अगर आपको नींद की समस्या है तो आप इस प्राणायम के अभ्यास से नींद न आने की समस्या से निजात पा सकते हैं।*

*5- शीतकारी प्राणायाम करने से पूरे शरीर में शीतलता आती है और पसीना नहीं आता।*

*6- शीतकारी प्राणायाम करने से भूख-प्यास ना लगने की समस्या दूर होती है।*

*7- इस प्राणायाम के सुबह-सुबह नियमित अभ्यास से शारीरिक आभा को बढ़ाया जा सकता है।*

*8- इस प्राणायाम को करने से कई तरह के रोग जैसे दंत रोग, पायरिया, गले और मुंह के रोग, नाक और जीभ के रोगो से लाभ मिलता है।*

*9- इस प्राणायाम का अभ्यास पेट में जलन की समस्या को दूर करते हैं।*

*10- शीतकारी प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर का तापमान संतुलित रहता है।*

*11- इस प्राणायाम के अभ्यास से हम अपने चेहरे पर प्राक्रतिक चमक ला सकते हैं यह रक्त को शुद्ध करता है।*

*12- यह प्राणायाम शरीर की भीतरी अंगों की भी सफाई करता है।*

*शीतकारी प्राणायाम में सावधानियां*👇
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*1-इस प्रणायाम को हमेशा खाली पेट ही करना चाहिए।*
*2- मुंह में कफ व टॉन्सिल के रोगियों को यह प्राणायाम बिलकुल नहीं करना चाहिये।*

*3-सर्दियों के मौसम में इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।*

*4- खुली एवं था जगह पर ही इसका अभ्यास करें धूल वाले स्थान से बचें।*.

*5- अस्थमा, सर्दी और खांसी की बीमारी में इस प्राणायाम को न करें।*

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