Bhagat Singh Sena- Uttar Pradesh
शोषण के खिलाफ़ एक आवाज़- इंक़लाब... 🇮🇳💪💪
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Revolution & Humanity
बुद्धि का विकास ही मानव अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए -डॉ. अम्बेडकर।
भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर जी की 127 वीं जयंती पर सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाये। 💐🙏💙
डॉ. अम्बेडकर की जयंती के अवसर पर
डॉ. अंबेडकर का जन्म (14 अप्रैल 1891) से अस्पृश्य थे । अंबेडकर अभावों और अस्पृश्यता के साथ जुड़े कलंक से जूझते हुए ही पले बढ़े । उच्च शिक्षा प्राप्त कर ऊंचे पदों पर पहुँच जाने पर भी उन्हें पग-पग पर स्वर्ण मातहतों तक के हाथों अपमान सहना पड़ा था । अंबेडकर ने इस अन्यायपूर्ण सामाजिक विवशता के विरुद्ध विद्रोह किया और पूरी शक्ति से इसे मिटाने का प्रयत्न किया । महाराष्ट्र में समाज-सुधार की समृद्ध परंपरा से अनुप्राणित अंबेडकर ने आरंभ में हिन्दू समाज-व्यवस्था में सुधार के प्रयत्न किए, किन्तु अपने अनुभव, अध्ययन और विश्लेषण से वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अस्पृश्यता हिन्दू समाज-व्यवस्था का अभिन्न अंग है । इस समाज व्यवस्था में आमूल परिवर्तन किए बिना इस अभिशाप को नहीं मिटाया जा सकता । डॉ. अंबेडकर के मन पर जिन विचारकों का गहरा प्रभाव पड़ा, उनमें महात्मा बुद्ध, अमरीकी दार्शनिक जॉन ड्यूई (1859-1952) और महात्मा फुले (1827-90) का विशेष स्थान है |
अम्बेडकर ने अपनी चर्चित कृति 'एनीहिलेसन ऑफ़ कास्ट' (1936) के अंतर्गत हिन्दू वर्ण-व्यवस्था का विस्तृत विश्लेषण करने के बाद छुआछूत या अस्पृश्यता की प्रथा में निहित अन्याय पर प्रकाश डाला | उन्होंने यह अनुभव किया कि उच्च जातियों के कुछ संत-महात्मा और समाज-सुधारक दलित वर्गों के प्रति सहानुभूति तो रखते थे, और उनकी समानता पर बल देते थे, परंतु वे इस दिशा में कोई ठोस योगदान नहीं कर पाए थे | अतः अम्बेडकर ने विचार रखा था कि तथाकथित अछूत ही अछूत को नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं | दुसरे शब्दों में, डॉ. अम्बेडकर दलित वर्गों के आत्म-सुधार में विश्वास करते थे | अतः उन्होंने इन जातियों को मदिरा-पान और गोमांस भक्षण जैसी आदतें छोड़ने की सलाह दी, क्योंकि ये आदतें उनकी स्थिति के साथ जुड़े हुए कलंक का मूल स्त्रोत थीं | उन्होंने इन्हें अपने बच्चो की शिक्षा-दीक्षा पर विशेष ध्यान देने और आत्म-सम्मानपूर्ण व्यवहार करने का रास्ता दिखाया | उन्होंने दलितों को हीन भावना से ऊपर उठने के लिए प्रेरित किया | उनका विश्वास था कि इनमें योग्यता की कोई कमी नहीं है |
अमरीका में रहते हुए उन्होने एक बार डॉ. ए. ए. गोल्डन विजर द्वारा आयोजित ‘नेतत्व विज्ञान’ विषय की गोष्ठी में एक निबंध पढ़ा । निबंध का विषय था “भारत में जाती : उद्गम विकास और स्वरूप” । यह 9 मई, 1916 की बात है । अंबेडकर उस समय केवल 25 वर्ष थे । इस निबंध में उन्होंने अपनी उम्र की तुलना में आश्चर्यजनक परिपक्वता तथा आकलन शक्ति दिखाई । उनसे पूर्व कई विद्वानों ने इस विषय को उठाया था किन्तु इन विद्वानों के विश्लेषण से अंबेडकर को संतोष नहीं हुआ और न ही वे समाजशास्त्र के क्षेत्र में प्रसिद्ध बड़े-बड़े नामों से घबराए । उनके निबंध में स्पष्टता और साहस के गुण थे । वे तरुण अवस्था से ही जाति-व्यवस्था प्रहार करने लगे थे । अंबेडकर को इस बात का दुःख था कि एक हजार साल से दलित वर्गों में कोई बुद्धिजीवी पैदा नहीं हुआ । यह एक प्रकार से दलितों पर लादी गई अवहेलना का प्रतीक था । लेकिन अब भारतीय समाज के सबसे सताए हुए वर्ग से एक ऐसा व्यक्ति निकला था जिसे एक दिन उसके विरोधी भी एक दिग्गज बुद्धिजीवि के रूप में स्वीकार किया गया।
डॉ. अंबेडकर ने दलितों के उत्थान के लिए ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ का गठन किया । डॉ. अंबेडकर मात्र सिद्धांतवादी नहीं थे बल्कि एक कर्मनिष्ठ और जुझारू व्यक्ति भी थे । जब उन्होंने पालिका के तालाब से पानी लेने के सवाल पर महाड में सत्याग्रह करने का फैसला किया तो उन्होंने एक विद्रोही सैद्धान्तिक घोषणा-पत्र जारी किया । उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य न केवल अस्पृश्यता को हटाना है बल्कि जाति-व्यवस्था के खिलाफ युद्ध छेड़ना भी है ।
उन्होंने हिंदुओं के इस दावे का खंडन किया कि विश्व के सब धर्मों में हिन्दू-धर्म सबसे ऊपर और सहिष्णु है। जाति उन्मूलन का जोरदार समर्थन करते हुए उन्होंने कहा :-
“हिन्दू अपनी मानवतावादी भावनाओं के लिए प्रसिद्ध है और प्राणी जीवन के प्रति उनकी आस्था तो अद्भुत है । कुछ लोग तो विषैले साँपों को भी नहीं मारते । हिंदुओं में साधुओं और हट्टे-कट्टे भिखारियों की बड़ी फौज है और वे समझते हैं कि इन्हें भोजन-वस्त्र देकर तथा इनको मौजमस्ती के लिए दान देकर पुण्य कमाते हैं । हिन्दू दर्शन ने सर्वव्यापी आत्मा को सिद्धान्त सिखाया हैं और गीता उपदेश देती है कि ब्राह्मण तथा चांडाल में भेद न करो ।
प्रश्न उठता है कि जिन हिंदुओं में उदारता और मानवतावाद की इतनी अच्छी परंपरा है और जिनका इतना अच्छा दर्शन है, वे मनुष्यों के प्रति इतना अनुचित तथा निर्दयतापूर्ण व्यवहार क्यों करते हैं ? हिन्दू सामज जाति-व्यवस्था की इस्पाती चौखट में बंधा हुआ है जिसमें एक जाति सामाजिक प्रतिष्ठा में दूसरी से नीचे हैं और प्रत्येक जाति में अपने स्थान के अनुपात में विशेषाधिकार, निषेध और असमर्थताएं है । इस प्रणाली में निहित स्वार्थों को जन्म दिया है जो इस प्रणालीजन्य असमानताओं को बनाए रखने पर निर्भर है ।”
अंबेडकर ने घोषणा की कि जाति-व्यवस्था को बनाए रखते हुए केवल अस्पृश्यता को खत्म करना काफी नहीं होगा । उन्होंने कहा, ‘हिंदुओं की विभिन्न जातियों में परस्पर भोजन को ही नहीं बल्कि परस्पर विवाह को भी आम बनाया जाना चाहिए । केवल अस्पृश्यता के कलंक को हटाने का मतलब होगा अस्पृश्यों को अन्य शूद्रों के श्रेणी में रखना ।’ वे यह नहीं चाहते थे क्योंकि स्मृतियों और धर्मशास्त्रों में अन्य शूद्रों पिछड़ों को भी नीच कहा गया हैं । वे सभी प्रकार के जाति भेद समाप्त करना चाहते थे । वर्णाधर्म आधारित वर्णाश्रम व्यवस्था खत्म की जानी चाहिए और अधिकार, उत्तरदायित्व तथा प्रतिष्ठा आकस्मिक जन्म के बजाय योग्यता पर आधारित होना चाहिए ।
डॉ. अंबेडकर का विचार था कि जाति-प्रथा से लड़ने के लिए चारों तरफ से प्रहार करना होगा । उन्होंने कहा ‘जाति ईंटों की दीवार जैसी कोई भौतिक वस्तु नहीं है । यह एक विचार है, एक मनःस्थिति है । इस मनःस्थिति की नींव शास्त्रों की पवित्रता में है । वास्तविक उपाय यह है कि प्रत्येक स्त्री-पुरुष को शास्त्रों के बंधन से मुक्त किया जाए, उनकी पवित्रता को नष्ट किया जाए, लोगों के दिमाग को साफ किया जाए । तभी वे जात-पांत का भेदभाव बंद करेंगे ।’ अंबेडकर को विश्वास था कि इसका सही उपाय है, अंतर्जातीय विवाह । उनका कहना था ‘जब जाति का धार्मिक आधार समाप्त हो जाएगा तो इसके लिए रास्ता खुल जाएगा । रक्त के मिश्रण से ही अपनेपन की भावना पैदा होगी और जब तक यह अपनत्व तथा बंधुत्व की भावना पैदा नहीं होगी, तब तक जाति-प्रथा द्वारा पैदा की गई अलगाव की भावना समाप्त नहीं होगी ।’
डॉ. अम्बेडकर यह मानते थे कि मनुष्यों में केवल राजनीतिक समानता और कानून के समक्ष समानता स्थापित करके समानता के सिद्धांत को पूरी तरह सार्थक नहीं किया जा सकता | जब तक उनमें सामाजिक-आर्थिक समानता स्थापित नहीं की जाती, तब तक उनकी समानता अधूरी रहेगी | भारतीय संविधान का प्रारूप प्रस्तुत करते समय उन्होंने संविधान सभा में कहा था : "इस संविधान को अपनाकर हम विरोधाभासों से भरे जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं | इससे राजनीतिक जीवन में तो हमें समानता प्राप्त हो जाएगी, परंतु सामाजिक और आर्थिक जीवन में विषमता बनी रहेगी | राजनीति के क्षेत्र में तो हम 'एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य' के सिद्धांत को मान्यता प्रदान कर देंगे, परंतु हमारा सामाजिक और आर्थिक ढांचा इस ढंग से नहीं बदल जाएगा जिससे 'एक व्यक्ति, एक मूल्य' के सिद्धांत को सार्थक किया जा सके | " दुसरे शब्दों में, समानता का सिद्धांत सच्चे अर्थ में तभी सार्थक होगा जब मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में-अर्थात राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तीनों क्षेत्र में - प्रत्येक व्यक्ति की समान नैतिक मुल्यवता को साकार किया जा सके |
डॉ. अम्बेडकर का मानना था कि अगर सामाजिक समानता हासिल करने के लिए राजनीति में अपने बल पर ही लड़ना होगा | अन्य राजनीतिक दलों से सहायता नहीं मिलेगी ऐसा उनको लग रहा था | 1936 में आचार्य नरेंद्र देव ने कहा कि 'जाती प्रथा जनतंत्र के खिलाफ है' | उसके बाद सोशलिस्टो के साथ सहयोग हो सकता हैं ऐसा डॉ. अम्बेडकर ने माना | सोशलिस्ट नेता डॉ. राममनोहर लोहिया आर्थिक समानता के साथ-साथ सामाजिक समानता की बात करते थे | नर-नारी समानता कि बात करते थे, तथा जाती-प्रथा मिटाना उनके नीतियों में शामिल था | यह देखकर लोहिया के साथ सहयोग करने की भूमिका अम्बेडकर ने धीरे-धीरे अपनायी | 1952 के आम चुनाव में डॉ. अम्बेडकर की 'शेड्यूल कास्ट फेडरेशन, नामक पार्टी ने सोशलिस्ट पार्टी को सहयोग किया | आगे चलकर दोनों मिलकर एक ही पार्टी बनाए ऐसा विचार होने लगा | 1956 में अम्बेडकर के निधन होने से वह प्रक्रिया रुक गया |
नीरज कुमार
#पंजाब : आज शहीद-ए-आज़म भगतसिंह जी के पुस्तैनी घर~ खटकर कलां (नवांशहर) जो भारत के पंजाब राज्य के शहीद भगत सिंह नगर जिला में भगत सिंह सेना का बिहार, यूपी, दिल्ली, पंजाब के कुछ टीम पहुँचकर शहीद भगत सिंह राजगुरु सुखदेव को याद कर क्रन्तिकारी नमन किए ♥️🙏
शहीद भगत सिंह से जुड़े उनके बहुत सारे सामान, #यादें वहां उनके घर और संग्रहालयमें में भी रखा हुआ था संग्रहालय में रखे भगत सिंह से जुड़े बहुत कुछ था जिसका तस्वीर लेना अलाउड नहीं था लेकिन उनके घर पर जो इनसे जुड़े सामग्री है हमने उसका तकरीर लिया है जो अगले पोस्ट में करेंगे?
आपको बता दे यह गांव ऐतिहासिक होने का कारण सरदार किशन सिंह जी, सरदार अजीत सिंह जी, सरदार स्वर्ण सिंह, शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह जैसे प्रसिद्ध देशभक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों का गांव होने का गौरव प्राप्त है।
अगले पोस्ट और डिटेल... ✍️
#इंकलाब_जिंदाबाद ✊✊✊
Bhagat Singh Sena 🇮🇳 Veer Aditya 🙏🙏🙏🙏
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ये क्रांतिकारी भगतसिंह का वास्तविक फोटो है, जो उनके कॉलेज के समय का है। उस समय उनकी आयु 17 वर्ष थी।
#इतिहास #भारत
लगभग 25 हजार से अधिक का कर्ज... हर बिहार वासी पे(फरवरी 2024 की खबर)
#बिहार
कौन है ऊपरवाला...?
सब आसमानी धर्म यही समझने में लगे हैं ऊपरवाले पर भरोसा रखो, ऑपरेशन थियेटर में सर्जरी कर रहे डॉक्टर कहते हैं ऊपर वाले पर भरोसा रखो (जो खुद विज्ञान पढ़ कर डॉक्टर बना है), मंदिरों में बैठे पुजारी कहते हैं ऊपरवाले पर भरोसा रखो!
आखिर कौन है ये ऊपरवाला...?
ये है आपके शरीर का ऊपरी हिस्सा, यानी आपकी खोपड़ी जिसमें आपका दिमाग है, वो दिमाग जो पूरे शरीर को नियंत्रित करता है, आपके सोते जागते आपकी हार्टबीट, आपकी पल्स, बॉडी के सारे फंक्शन को कंट्रोल करता है।
बुद्ध इसे कुछ इस तरह एक्सप्लेन करते हैं कि जब हमारे शरीर के चारों तत्व वियोग करते हैं, बिखर जाते हैं तब हमारी मृत्यु हो जाती है और इसके साथ ही हमारी चेतना भी समाप्त हो जाती है। बुद्ध कहते हैं कि इस ब्रह्मांड में कुछ भी अमर नहीं, हर चीज़ की एक उम्र है, जब कुछ भी अमर नहीं तो आत्मा या परमात्मा कैसे अमर हो सकता है।
यही बुद्ध का ज्ञान, यही विज्ञान का नियम है जिसे हम धम्म कहते हैं।
भगत सिंह नास्तिक क्यों थे ?
नास्तिक वही होता है
जो विद्रोह करता है
लेकिन हर विद्रोही नास्तिक नहीं होता
चम्बल के विद्रोही नास्तिक नहीं थे
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के विद्रोही भी
नास्तिक नहीं थे
लेकिन
लेनिन नास्तिक थे
भगत सिंह नास्तिक थे
बुद्ध नास्तिक थे
पेरियार भी नास्तिक थे
जो विद्रोही
सत्ता बदलने के लिए खड़े होते है
उनमें
जोश जुनून
और माटी से प्रेम की भावना
प्रबल होती है
लेकिन
जो विद्रोही
सम्पूर्ण व्यवस्था को बदलने की
हिम्मत रखते है
उनमे
जोश जुनून और
माटी से प्रेम के साथ ही
समस्यायों के
मूल तक पहुंचकर
उसे जड़ से मिटाने की जिद होती है
इसलिए ऐसे विद्रोही
सिर्फ सत्ता के विरुद्ध ही नहीं होते
वे
परंपराओं रूढ़ियों
और प्रचलित धर्मों के विरुद्ध भी होते हैं
भगत सिंह सिर्फ विद्रोही नहीं थे
वे नास्तिक भी थे.
दुनिया को ऐसे ही
नास्तिकों ने बदला है
और दुनिया को
आज ऐसे ही
नास्तिकों की
सख्त जरूरत भी है...
#इंकलाब_जिंदाबाद ✊✊✊
Singh Sena 🇮🇳 Aditya
शहीद-ए-आज़म #भगतसिंह प्रेमियों के पंजाब और दिल्ली का टीम..✊♥️🇮🇳 Singh Sena
शहीद भगतसिंह जी के गांव~ खटकड़ कलाँ, पंजाब में हमारी टीम पहुंच चुकी है पूरा विस्तार फोटो व वीडियो के माध्यम से दिखाते और बताते हैं..
शहीद ए आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव के त्याग संघर्ष बलिदान हुए क्रांतिकारियों के शहादत दिवस पर शत-शत नमन दिवस ❤️🙏🇮🇳
मौत को भी चुनौती देने का साहस रखने वाले हमारे योधाओं को ♥️👏
#इंकलाब_जिंदाबाद ✊✊✊ #23मार्च2024
Singh Sena 🇮🇳 Aditya
#इंकलाब क्या है--- शोषित, पीड़ित, बेबस, निर्बल लोगो के हक की लड़ाई लड़ना ही असल इंकलाब है।💪
#वर्षो पूर्व हमारे क्रांतिकारी साथियों ने लूट, भ्रष्टाचार, अन्याय, गुलामी के खिलाफ जो लड़ाई शुरू कि थी वह आज भी अधूरी है, हालाकि हमारे योद्धा भले ही आज हमारे बीच नहीं रहे किंतु लोग आज भी उनके आदर्शो पर चलकर इंकलाब को जिंदा किए हुए हैं और आगे भी लोग ऐसे ही अपनी मिट्टी के लिए अपना सर्वोच्च देते रहेंगे..।।
नमन योद्धाओं ❣️💐
इंकलाब जिंदाबाद ✊✊✊
Join~ Singh Sena
'ये न थी हमारी किस्मत की बिसाले यार होता,,,
अगर और जीते रहते तो यहीं इंतजार होता___
तेरे वादे पर जिए हम तो यह जान झूठ जाना,,,
कि खुशी से मर न जाते अगर एतबार होता____
इंकलाब ज़िंदाबाद ✊✊✊
Singh Sena
किसी भी इंसान को मारना आसान है,
परन्तु उसके विचारों को नहीं।
महान साम्राज्य टूट जाते हैं,
तबाह हो जाते हैं,
जबकि उनके विचार बच जाते हैं।
🇮🇳 इंकलाब ज़िंदाबाद 🇮🇳
#हे_मां_तुझे_सादर_नमन ♥️👏👏
#भगतसिंह की वीर माता #विद्यावती कौर जी की आज पुण्यतिथि है।इतिहास इस बात का साक्षी है कि देश, धर्म और समाज की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वालों के मन पर ऐसे संस्कार उनकी माताओं ने ही डाले हैं। भारत के स्वाधीनता संग्राम में हंसते हुए फांसी चढ़ने वाले वीरों में भगतसिंह का नाम प्रमुख है। उस वीर की माता थीं श्रीमती विद्यावती कौर।
विद्यावती जी का पूरा जीवन अनेक विडम्बनाओं और झंझावातों के बीच बीता। सरदार किशनसिंह से विवाह के बाद जब वे ससुराल आयीं, तो यहां का वातावरण देशभक्ति से परिपूर्ण था। उनके देवर सरदार अजीतसिंह देश से बाहर रहकर स्वाधीनता की अलख जगा रहे थे। स्वाधीनता प्राप्ति से कुछ समय पूर्व ही वे भारत लौटे; पर देश को विभाजित होते देख उनके मन को इतनी चोट लगी कि उन्होंने 15 अगस्त, 1947 को सांस ऊपर खींचकर देह त्याग दी। उनके दूसरे देवर सरदार स्वर्णसिंह भी जेल की यातनाएं सहते हुए बलिदान हुए। उनके पति किशनसिंह का भी एक पैर घर में, तो दूसरा जेल और कचहरी में रहता था। विद्यावती जी के बड़े पुत्र जगतसिंह की 11 वर्ष की आयु में सन्निपात से मृत्यु हुई। भगतसिंह 23 वर्ष की आयु में फांसी चढ़ गये, तो उससे छोटे कुलतार सिंह और कुलवीर सिंह भी कई वर्ष जेल में रहे।
इन जेलयात्राओं और मुकदमेबाजी से खेती चैपट हो गयी तथा घर की चैखटें तक बिक गयीं। इसी बीच घर में डाका भी पड़ गया। एक बार चोर उनके बैलों की जोड़ी ही चुरा ले गये, तो बाढ़ के पानी से गांव का जर्जर मकान भी बह गया। ईष्र्यालु पड़ोसियों ने उनकी पकी फसल जला दी। 1939-40 में सरदार किशनसिंह जी को लकवा मार गया। उन्हें खुद चार बार सांप ने काटा; पर उच्च मनोबल की धनी माताजी हर बार घरेलू उपचार और झाड़फंूक से ठीक हो गयीं। भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी का समाचार सुनकर उन्होंने दिल पर पत्थर रख लिया क्योंकि भगतसिंह ने उनसे एक बार कहा था कि तुम रोना नहीं, वरना लोग क्या कहेंगे कि भगतसिंह की मां रो रही है।
भगतसिंह पर उज्जैन के विख्यात लेखक श्री श्रीकृष्ण ‘सरल’ ने एक महाकाव्य लिखा। नौ मार्च, 1965 को इसके विमोचन के लिए माताजी जब उज्जैन आयीं, तो उनके स्वागत को सारा नगर उमड़ पड़ा। उन्हें खुले रथ में कार्यक्रम स्थल तक ले जाया गया। सड़क पर लोगों ने फूल बिछा दिये। इतना ही नहीं, तो छज्जों पर खड़े लोग भी उन पर पुष्पवर्षा करते रहे। पुस्तक के विमोचन के बाद सरल जी ने अपने अंगूठे से माताजी के भाल पर रक्त तिलक किया। माताजी ने वही अंगूठा एक पुस्तक पर लगाकर उसे नीलाम कर दिया। उससे 3,331 रु. प्राप्त हुए। माताजी को सैकड़ों लोगों ने मालाएं और राशि भेंट की। इस प्रकार प्राप्त 11,000 रु. माताजी ने दिल्ली में इलाज करा रहे भगतसिंह के साथी बटुकेश्वर दत्त को भिजवा दिये। समारोह के बाद लोग उन मालाओं के फूल चुनकर अपने घर ले गये। जहां माताजी बैठी थीं, वहां की धूल लोगों ने सिर पर लगाई। सैकड़ों माताओं ने अपने बच्चों को माताजी के पैरों पर रखा, जिससे वे भी भगतसिंह जैसे वीर बन सकें। 1947 के बाद गांधीवादी सत्याग्रहियों को अनेक शासकीय सुविधाएं मिलीं; पर क्रांतिकारी प्रायः उपेक्षित ही रह गये। उनमें से कई गुमनामी में बहुत कष्ट का जीवन बिता रहे थे। माताजी उन सबको अपना पुत्र ही मानती थीं। वे उनकी खोज खबर लेकर उनसे मिलने जाती थीं तथा सरकार की ओर से उन्हें मिलने वाली पेंशन की राशि चुपचाप वहां तकिये के नीचे रख देती थीं।
इस प्रकार एक सार्थक और सुदीर्घ जीवन जीकर माताजी ने दिल्ली के एक अस्पताल में एक जून, 1975 को अंतिम सांस ली। उस समय उनके मन में यह सुखद अनुभूति थी कि अब भगतसिंह से उनके बिछोह की अवधि सदा के लिए समाप्त हो रही है।
 वीर माता की इच्छा थी कि जहाँ इन क्रांतिकारियों का “पुत्रों समाधि है “वहीं पर हमारा दाह संस्कार करें “ आज फ़िरोज़पुर में (हुसैनिवाला) में पंजाब माता समाधि है । लोग आकर अपना श्रद्धासुमन चढ़ाते हैं।💐
कितने कष्ट सहे माता ने , युग समान व सदी गयी।
अमृत पुत्रों के रहते फिर ,भारत माता त्रस्त ना हो॥
#इंकलाब_जिंदाबाद ✊✊✊
Singh Sena 🇮🇳 Aditya
लाल सलाम ♥️♥️
इंकलाब जिन्दाबाद ♥️✊
#इतिहास गवाह है #आवाजे दबा दी जाती हैं किंतु #विचार शदियों तक #चीखते रहते हैं ...!!
#इंकलाब_जिंदाबाद ✊✊✊
Singh Sena 🇮🇳 Aditya
इश्क करना हमारी पैदायशी हक है....
तो क्यों ना बतन ए मिट्टी को
अपना महबूब बना लें......
शहीद भगत सिंह 🙏🙏🙏
जय हिन्द !!
वन्दे मातरम् !!
#इंकलाब_जिंदाबाद ✊✊✊
Singh Sena 🇮🇳 Aditya
“मैं इस बात पर जोर देता हूँ कि
मैं महत्त्वाकांक्षा,आशा और
जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ।
पर मैं ज़रुरत पड़ने पर ये सब त्याग सकता हूँ,
और वही सच्चा बलिदान है।🙏🙏🙏
#इंकलाब_जिंदाबाद ✊✊✊
Singh Sena 🇮🇳 Aditya
दिल फ़िदा करते हैं, कुर्बान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है, वो माता की नज़र करते हैं,
ख़ाना वीरान कहां, देखिए घर करते हैं,
अब रहा अहले-वतन, हम तो सफ़र करते हैं,
जा के आबाद करेंगे किसी विराने को!
#इंकलाब_जिंदाबाद ✊✊✊
"बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती,
क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।"
ये कथन था महान क्रांतिकारी भगतसिंह जी का।
#इंकलाब_जिंदाबाद ✊✊✊
महान क्रांतिकारी भगतसिंह जी की बहन प्रकाश कौर जी का देहांत 2014 में हुआ था, वो भी उसी दिन जिस दिन भगतसिंह जी की 107वीं जयंती थी।
प्रकाश कौर जी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि "जब मैं उनसे आखिरी बार रक्षाबंधन के दिन जेल में मिलने गई, तब उन्होंने कहा कि मैं तो गोरों से लड़ रहा हूँ, पर तुम सबको उन कालों से लड़ना है, जो देश आज़ाद होने के बाद भ्रष्टाचार करेंगे"
#इंकलाब_जिंदाबाद ✊✊✊
नाम के अनुरूप ही उसका ज़मीर था,,,
जो मौत को झुका दे अपने कदमों में ऐसा वो वीर था।
फरिश्ते भी सर झुका दे जिसके आगे,,
ऐसा वो भारत का शेर था।।🙏🙏🙏
#इंकलाब_जिंदाबाद ✊✊✊
Bhagat Singh Sena
#23मार्च2024
भारत के राजचिह्न की खोज
भारत के राजचिह्न की खोज फ्रेडरिक आॅस्कर ओरटेल ( 1862 - 1942 ) ने की थी। वे जर्मनी में हनोवर के थे।
ओरटेल सिविल इंजीनियर थे। तब बनारस में पोस्टिंग थी। उस समय सारनाथ खुदाई का केंद्र बना हुआ था।
ओरटेल को 1903 में सारनाथ की खुदाई करने की अनुमति मिली। कड़ाके की ठंड में दिसंबर 1904 में उन्होंने खुदाई शुरू की।
साल 1905 के मार्च महीने की वह 15 तारीख थी। धमेख स्तूप के निकट मिट्टी में गड़ा हुआ उन्हें सिंह चतुर्मुख का वह टुकड़ा मिला, जो आज भारत का राजचिह्न है।
तब ओरटेल सुपरिटेंडिंग इंजीनियर थे। साल 1921 में चीफ इंजीनियर से रिटायर होकर वे यूनाइटेड किंगडम चले गए।
वे यूनाइटेड किंगडम के टेडिंगटन में रहने लगे। उन्होंने अपने घर का नाम " सारनाथ " रखा था, जो उनके सारनाथ से प्रेम को दर्शाता है।
#प्रो0_राजेन्द्र_प्रसाद_सिंह
जिसे जिंदगी से प्रेम था वह #माफी मांगी
मुझे देश से प्रेम था इसलिए #फांसी मांगी
🇮🇳✊ #इन्कलाब_जिंदाबाद✊🇮🇳
मैं एक मानव हूँ और जो कुछ भी #मानवता को प्रभावित करता है, उससे मुझे मतलब है~ शहीद ए आज़म भगत सिंह जी
🇮🇳🙏🏻 Singh Sena 🙏🏻🇮🇳
महान क्रांतिकारी भगतसिंह जी की ये चारों फोटो ओरिजनल हैं
इंकलाब जिंदाबाद ✊
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