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योग माया मंदिर 🙏🌹🙏
दिल्ली
HAPPY GURU PURNIMA TO ALL DIVINE SOULS🙏🙏
|| गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः ||
May Our Life be filled blessing of GURU , Like the Sun light in Sky
May Our Life Always have the Courage
Thanks & Salute to Masters Who Inspire us in Our Beautiful Life
Abundance Power Pyramid Yantra in copper
गणेश जी + कुबेर यंत्र + वास्तु यंत्र + श्रीयंत्र
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यंत्र प्रार्थना की तीव्रता को बढ़ाने में मदद करता है। सामान्य लोगों के रूप में, हमें हमेशा अधिक कुशलता से काम करने के लिए सहायता या एक प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है। इसी तरह, यंत्र एक साधन है जो आपकी गंभीरता को बढ़ाने और प्रार्थना की ओर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है.
यंत्र प्रतिध्वनि प्राप्त करने में मदद करता है। यह शरीर में ऊर्जा, कंपन और ब्रह्मांड के प्रभाव के प्रवाह को बढ़ाता है और गहनतम सत्य तक पहुंचने में मदद करता है। यंत्र की सहायता से प्रार्थना करने से ब्रह्मांड से लाभकारी ऊर्जा को आकर्षित करने और जीवन में नकारात्मक ऊर्जाओं के दुष्प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है
#वेद
इस माह का 30 मई खास है। इस दिन वट सावित्री के साथ शनि जयंती व सोमवती अमावस्या भी है.... ऐसा संयोग करीब 30 साल के बाद देखने को मिल रहा है
मां के ये अष्ट लक्ष्मी स्वरूप अपने नाम और रूप के अनुसार भक्तों के दुख दूर करते हैं तथा सुख, समृद्धि प्रदान करते हैं..
-🔸 आदि लक्ष्मी
श्रीमद्भागवत पुराण में आदि लक्ष्मी को मां लक्ष्मी का पहला स्वरूप कहा गया है। इन्हें मूल लक्ष्मी या महालक्ष्मी भी कहा गया है। मान्यता है कि आदि लक्ष्मी मां ने ही श्रृष्टि की उत्पत्ति की है तथा भगवान विष्णु के साथ जगत का संचालन करती हैं। आदि लक्ष्मी की साधना से भक्त को जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति होती है।
🔸धन लक्ष्मी
मां लक्ष्मी के दूसरे स्वरूप को धन लक्ष्मी कहा जाता है। इनके एक हाथ में धन से भरा कलश है तथा दूसरे हाथ में कमल का फूल है। धन लक्ष्मी की पूजा करने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं तथा कर्ज से मुक्ति मिलती है। पुराणों के अनुसार, मां लक्ष्मी ने ये रूप भगवान विष्णु को कुबेर के कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिया था
🔸धान्य लक्ष्मी
मां का तीसरा रूप है, ये संसार में धान्य यानि अन्न या अनाज के रूप में वास करती हैं। धान्य लक्ष्मी को मां अन्नपूर्णा का ही एक रूप माना जाता है। इनको प्रसन्न करने के लिए कभी भी अनाज या खाने का अनादर नहीं करना चाहिए।
-🔸 गज लक्ष्मी
गज लक्ष्मी हाथी के ऊपर कमल के आसन पर विराजमान हैं। मां गज लक्ष्मी को कृषि और उर्वरता की देवी के रूप में पूजा जाता है। इनकी आराधना से संतान की प्राप्ति होती है। राजा को समृद्धि प्रदान करने के कारण इन्हें राज लक्ष्मी भी कहा जाता है।
🔸संतान लक्ष्मी
संतान लक्ष्मी को स्कंदमाता के रूप में भी जाना जाता है। इनके चार हाथ हैं तथा अपनी गोद में कुमार स्कंद को बालक रूप में लेकर बैठी हुई हैं। माना जाता है कि संतान लक्ष्मी भक्तों की रक्षा अपनी संतान के रूप में करती हैं।
वीर लक्ष्मी
मां लक्ष्मी का ये रूप भक्तों को वीरता, ओज और साहस प्रदान करता है। वीर लक्ष्मी मां युद्ध में विजय दिलाती हैं। अपने हाथों में तलवार और ढाल जैसे अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं।
🔸जय लक्ष्मीमाता
लक्ष्मी के इस रूप को जय लक्ष्मी या विजय लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। मां के इस रूप की साधना से भक्तों की जीवन के हर क्षेत्र में जय–विजय की प्राप्ति होती है। जय लक्ष्मी मां यश, कीर्ति तथा सम्मान प्रदान करती हैं।
🔸विद्या लक्ष्मी
मां के अष्ट लक्ष्मी स्वरूप का आठवां रूप विद्या लक्ष्मी है। ये ज्ञान, कला तथा कौशल प्रदान करती हैं। इनका रूप ब्रह्मचारिणी देवी के जैसा है।
🔸वीर लक्ष्मी
मां लक्ष्मी का ये रूप भक्तों को वीरता, ओज और साहस प्रदान करता है। वीर लक्ष्मी मां युद्ध में विजय दिलाती हैं।
🔸वास्तु शास्त्र के अनुसार झाड़ू की सही दिशा जहां दरिद्रता को दूर करती है वहीं झाड़ू से जुड़ी एक भी गलत बात कई परेशानियों को बुलावा देती है
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🔸जिस तरह घर में हर चीज़ का अपना अलग महत्व होता है, उसी तरह से घर में या ऑफिस में झाडू का भी अपना एक अलग महत्व है। झाडू न सिर्फ गंदगी को साफ करती है बल्कि यह घर के अंदर से दरिद्रता को दूर करके सुख और समृद्धि भी लाती है। झाड़ू को लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार झाड़ू की सही दिशा जहां दरिद्रता को दूर करती है वहीं झाड़ू से जुड़ी एक भी गलत बात कई परेशानियों को बुलावा देती है
🔸शास्त्र के अनुसार झाड़ू रखने के लिये दक्षिण पश्चिम कोण या पश्चिम दिशा का चुनाव करना सबसे अच्छा माना जाता है। इस दिशा में झाड़ू रखने से नेगेटिव एनर्जी नहीं फैलती, जबकि ईशान कोण, यानी उत्तर-पूर्व दिशा में झाड़ू कभी भी नहीं रखनी चाहिए। माना जाता है कि इस दिशा में झाड़ू रखने से घर में भगवान का आगमन नहीं होता और दुर्भाग्य बना रहता है...
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🔸पूरे समय झाड़ू का दिखाई देना अच्छा नहीं माना जाता। खुले स्थान पर रखी झाड़ू अच्छी ऊर्जाओं को बाहर कर देती है। इसके अलावा झाड़ू को कभी भी खड़ा करके नहीं रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र में खड़ी झाड़ू रखना अच्छा नहीं माना जाता। इससे घर में दरिद्रता आती है। झाड़ू को हमेशा जमीन पर लिटा कर ही रखें
🔸बुद्ध पूर्णिमा या वेसाक पारंपरिक रूप से हिंदू कैलेंडर में चंद्र माह वैशाख (अप्रैल-मई) की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, और इसलिए इसका नाम वेसाक है। भगवान बुद्ध एक महान आध्यात्मिक शिक्षक, गुरु और दार्शनिक थे। भगवान बुद्ध, “प्रबुद्ध व्यक्ति” ने कर्म को पार कर लिया और जन्म के चक्र से बच गए। गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व पूर्णिमा की रात को हुआ था और इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, और बाद में अस्सी वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया (मोक्ष प्राप्त किया)। वे एक दिव्य-मानव थे, जिनका जीवों के प्रति स्नेह और करुणा पृथ्वी पर एक चमत्कार बन गया और उनके कार्य ईश्वर के समान थे
पीपल के पेड़ के नीचे वैशाख पूर्णिमा (वैशाख के महीने में पूर्णिमा के दिन) पर बुद्ध पर ज्ञान का दिव्य प्रकाश आया। इसके बाद, उन्होंने लोगों को अपने जीवन की समस्याओं को सकारात्मक रूप से समझने और उनका समाधान करने के लिए निर्देशित किया। दिन-ब-दिन हजारों भक्तों ने उनकी दिव्य शिक्षाओं का आनंद लिया और गहरे सम्मान के साथ, वे उन्हें गौतम बुद्ध के नाम से पुकारने लगे।
🔸🔸यह शक्तिशाली मंत्र शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक अवरोधों को दूर करने में सहायक है। केवल एक चीज की आवश्यकता है कि किसी भी परिणाम से चिपके न रहें। “ओम मणि पद्मे हम”
ओएम’ : सर्वोच्च तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
‘मा’ : नैतिकता का प्रतिनिधित्व करता है जो ईर्ष्या को नियंत्रित करता है।
‘नी’ : धैर्य का प्रतीक है जो जुनून और इच्छा को नियंत्रित करता है।
‘पद’ : अज्ञान को शुद्ध करने वाले परिश्रम का प्रतिनिधित्व करता है।
‘मैं’ : त्याग का प्रतिनिधित्व करता है जो आपके लालच को शुद्ध करता है।
‘हम’ : बुद्धि का प्रतीक है जो उपरोक्त सभी को नियंत्रित करता है।
तुलसी का पौधा रखने की सही जगह
तुलसी का पौधा औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ ही आस्था का भी प्रतीक माना जाता है. इसलिए आपको यह पता होना चाहिए कि वास्तु शास्त्र के अनुसार तुलसी का पौधा किस दिशा में रखना चाहिए. वास्तु शास्त्र के मुताबिक यदि आपके घर में तुलसी का पौधा है तो आपको बता दें कि इस पौधे का घर की बालकनी या खिड़की की उत्तर या उत्तर पूर्व दिशा में लगाना चाहिए. इन दिशाओं में देवी-देवताओं का निवास माना जाता है और इन जगहों पर तुलसी के पौधे को रखना शुभ होता है.
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🔸ध्यान रखें तुलसी के साथ कभी भी कैक्टस और कांटेदार पौधे को कभी नहीं रखना चाहिए.
🔸मान्यता है कि अमावस्या, द्वादशी और चतुर्दशी तिथि को तुलसी के पत्तों को भूलकर भी नहीं तोड़ना चाहिए.
🔸रविवार के दिन तुलसी में की पूजा नहीं की जाती और न ही जल अर्पित करना चाहिए. ध्यान रखें रविवार के दिन तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए
🔸कहा जाता है कि तुलसी के पौधे को कभी नाखून से नहीं तोड़ना चाहिए.
🔸तुलसी का पौधा यदि सूख गया है तो उसे ज्यादा दिन घर में नहीं रखना चाहिए क्योंकि इसे नकारात्मकता आती है.तुलसी का पौधा सूख गया है तो उसे गमले से निकालकर नदी में प्रवाहित कर दें.
मान्यता है कि पूजा के दौरान देवी-देवताओं को तुलसी पत्र अर्पित करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है
🔸याद रखें कि गणेश जी की पूजा में तुलसी के पत्तों को भूलकर भी शामिल नहीं करना चाहिए.
🔸इस बार मोहिनी एकादशी 12 मई को पड़ रही है। इसी दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत रखने से व्यक्ति को हर तरह के मोह बंधन से मुक्ति मिलती है और जीवन में तरक्की मिलती है
शास्त्रों के अनुसार प्राचीन समय में देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। जब इस मंथन में अमृत निकला तो इसे पाने के लिए देवता और दानवों में युद्ध होने लगा। तब भगवान विष्णु ने इसी तिथि पर मोहिनी रूप में अवतार लिया था। मोहिनी रूप में अमृत लेकर देवताओं को इसका सेवन करवाया था।
🔸मोहिनी एकादशी व्रत कथा
सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम का नगर था। वहां धृतिमान नाम का राजा राज्य करता था। उसी नगर में एक बनिया रहता था, उसका नाम था धनपाल। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था और सदा पुण्यकर्म में ही लगा रहता था। उसके पांच पुत्र थे- सुमना, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत तथा धृष्टबुद्धि। धृष्टबुद्धि सदा पाप कर्म में लिप्त रहता था। अन्याय के मार्ग पर चलकर वह अपने पिता का धन बर्बाद किया करता था।
एक दिन उसके पिता ने तंग आकर उसे घर से निकाल दिया और वह दर-दर भटकने लगा। भटकते हुए भूख-प्यास से व्याकुल वह महर्षि कौण्डिन्य के आश्रम जा पहुंचा और हाथ जोड़ कर बोला कि मुझ पर दया करके कोई ऐसा व्रत बताइए, जिससे पुण्य प्रभाव से मेरी मुक्ति हो। तब महर्षि कौण्डिन्य ने उसे वैशाख शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी के बारे में बताया। मोहिनी एकादशी के महत्व को सुनकर धृष्टबुद्धि ने विधिपूर्वक मोहिनी एकादशी का व्रत किया।
इस व्रत को करने से वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर गरुड़ पर बैठकर श्री विष्णुधाम को चला गया। इस प्रकार यह मोहिनी एकादशी का व्रत बहुत उत्तम है।
🔸सात्विक भोजन करना चाहिए। भोजन में उसे नमक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए। इससे आपको हजारों सालों की तपस्या के बराबर फल मिलेगा।
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|| बगलामुखी जयंती की शुभकामनाएं ||
🔶हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख शुक्ल पक्ष की अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस माना जाता है। इस दिन विधि विधान से देवी बगलामुखी की पूजा की जाती है। मां बगलामुखी देवी दुर्गा का अवतार हैं। मां बगलामुखी अलौकिक सौंदर्य और शक्ति का संगम मानी जाती हैं। इन्हें पीतांबरा, बगलामुखी, बगला और कुंडली जागृत करने वाली महाविद्या के रूप में जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां बगलामुखी की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय मिलती है और हर संकट दूर होता है। धर्म शास्त्रों में भी शत्रुओं से बचने के लिए मां बगलामुखी की पूजा करना श्रेष्ठ माना गया है।
🔶सतयुग की बात है। एक बार पूरे ब्रह्मांड में एक भयंकर तूफान उठा। वो तूफान इतना शक्तिशाली था कि उसके प्रभाव से समस्त प्राणी जगत का नाश हो जाता। इस तूफान से सभी लोकों में हाहाकार मच गया। भगवान विष्णु को जग के पालनहार के रूप में माना जाता था। सभी देव और ऋषि-मुनि विष्णुजी के पास पहुंचे। उन्होंने भगवान विष्णु से इस भयंकर तूफान को रोकने के लिए कोई उपाय करने का आग्रह किया।
इस समस्या से विष्णुजी चिंतित हो गए। वह खुद अकेले इस शक्तिशाली तूफान का मुकाबला नहीं कर सकते थे। इसलिए वह धरती पर आए और सौराष्ट्र देश (वर्तमान के गुजरात) में स्थित हरिद्रा नाम के एक सरोवर के पास पहुंचे। वहां विष्णुजी ने भगवती को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप शुरू किया।
विष्णुजी के तप से हरिद्रा सरोवर का पानी हल्दी की तरह पीले रंग में तब्दील हो गया। कुछ समय बाद सरोवर से बगलामुखी के रूप में श्रीविद्या प्रकट हुईं। विष्णुजी ने उन्हें समस्या बताई। मां बगलामुखी ने शक्तिशाली तूफान का मुकाबला किया और उसका नाश कर दिया।
इस तरह मां बगलामुखी ने समस्त प्राणी जगत को नष्ट होने से बचा लिया। सरोवर के पानी का रंग पीला होने के चलते मां बगलामुखी को पीतांबरा देवी भी कहा जाता है। मां बगलामुखी जयंती पर देवी की खास उपासनी की जाती है। भक्त मानते हैं कि इस दिन मां की उपासना करने से बुरी शक्तियों से छुटकारा मिलता है।
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प्राचीन कथा के अनुसार माना जाता है कि एक बार महर्षि भृगु बैकुंठ पधारे और आते ही उन्होनें शेष नाग शैय्या पर योगनिद्रा में लेटे भगवान विष्णु को लात मारी। भगवान विष्णु ने तुरंत भृगु के पैर पकड़ लिए और कहा कि आपके पैर में चोट तो नहीं आई। इसके बाद ऋषि ने भगवान विष्णु से कहा कि आप ही हैं जो इतने शांत और सहनशील हैं। माता लक्ष्मी को ऋषि का ये व्यवहार पसंद नहीं आया और वो विष्णु जी से नाराज होकर बैकुंठ छोड़कर आ गईं। भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को खोजना शुरु किया तो पाया कि माता एक कन्या के रुप में धरती पर जन्म लिया है। भगवान विष्णु ने रुप बदला और कन्या के पास पहुंच उन्हें शादी का प्रस्ताव दिया, इसे माता ने स्वीकार कर लिया।
विवाह के लिए धन की आवश्यकता थी, इस समस्या का समाधान निकालने के लिए भगवान शिव और ब्रह्म देव को साक्षी रखकर धन के देवता कुबेर से कर्ज लिया और विष्णु ने वेंकटेश रुप और देवी ने पद्मावती कन्या के रुप में विवाह किया। कुबेर से धन लेने के बाद विष्णु जी ने वचन दिया था कि कलयुग के खत्म होने तक वो सारा कर्ज चुका देंगे। कर्ज के खत्म होने तक वो उसका सूद चुकाएंगे। भगवान के कर्ज में होने की मान्यता के कारण इस मंदिर में भक्त धन-दौलत की भेंट करते हैं। इसी के कारण ये मंदिर भारत का सबसे अमीर मंदिर माना जाता है।
#वेदा
|| ॐ श्री गणेशाय नमः ||
शिखा सूत्र का वैदिक विज्ञान....
सिर के ऊपरी भाग को ब्रह्मांड कहा गया है और सामने के भाग को कपाल प्रदेश। कपाल प्रदेश का विस्तार ब्रह्मांड के आधे भाग तक है। दोनों की सीमा पर मुख्य मस्तिष्क की स्थिति समझनी चाहिए।
ब्रह्मांड का जो केन्द्रबिन्दु है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। ब्रह्मरंध्र में सुई की नोंक के बराबर एक छिद्र है जो अति महत्वपूर्ण है। सारी अनुभूतियां, दैवी जगत् के विचार, ब्रह्मांड में
क्रियाशक्ति और अनन्त शक्तियां इसी ब्रह्मरंध्र से प्रविष्ट
होती हैं। हिन्दू धर्म में इसी स्थान पर चोटी(शिखा) रखने का
नियम है। ब्रह्मरंध्र से निष्कासित होने वाली ऊर्जा शिखा के माध्यम से प्रवाहित होती है ।
वास्तव में हमारी शिखा जहां एक ओर ऊर्जा को प्रवाहित
करती है, वहीं दूसरी ओर उसे ग्रहण भी करती है। वायुमंडल में
बिखरी हुई असंख्य विचार तरंगें और भाव तरंगें शिखा के माध्यम से ही मनुष्य के मस्तिष्क में प्रविष्ट होती हैं। कहने की आवश्यकता नहीं, हमारा मस्तिष्क एक प्रकार से रिसीविंग और ब्रॉडकास्टिंग सेंटर का कार्य शिखारूपी एंटीना या एरियल के माध्यम से करता है। मुख्य मस्तिष्क( सेरिब्रम) के बाद लघु मस्तिष्क(सेरिबेलम) है और ब्रह्मरंध्र के ठीक नीचे अधो मस्तिष्क (मेडुला एबलोंगेटा) की स्थिति है जिसके साथ एक 'मेडुला' नामक अंडाकार पदार्थ संयुक्त है। वह मस्तिष्क के भीतर विद्यमान एक तरल पदार्थ में तैरता रहता है। मेरूमज्जा का अन्त इसी अंडाकार पदार्थ में होता है। यह पदार्थ अत्यन्त रहस्यमय है। आज के वैज्ञानिक भी इसे समझ नहीं सके हैं। बाहर से आने वाली परिदृश्यमान शक्तियां अधो मस्तिष्क से होकर इसी अंडाकार पदार्थ से टकराती हैं और योग्यतानुसार मानवीय विचारों, भावनाओं, अनुभूतियों में
स्वतः परिवर्तित होकर बिखर जाती हैं।
योगसाधना की दृष्टि से मुख्य मस्तिष्क आकाश है। मनुष्य जो
कुछ देखता है, कल्पना करता है, स्वप्न देखता है--यह सारा अनुभव उसको इसी आकाश में करना
पड़ता है।
सिर पर चोटी क्यो रखी जाती है,,भारतीय संस्कृति में शिखा हिन्दुत्व की प्रतीक है
सिर पर चोटी क्यो रखी जाती है,,भारतीय संस्कृति में शिखा हिन्दुत्व की प्रतीक है कारण इसे धारण करने में अनेक शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ हैं। शिखा- स्थान मस्तिष्क की नाभी है, इस केंद्र से उस सूक्ष्म तंतुओं का संचालन होता है ,, जिसका प्रसार समस्त मष्तिक में हो रहा है और जिनके बल पर अनेक मानसिक शक्तियों का पोषण और विकास होता है। इस केंद्र स्थान से विवेक दृढ़ता ,, दूरदर्शिता ,प्रेम शक्ति और संयम शक्तियों का विकास होता है। ऐसे मर्म स्थान पर केश रक्षने से सुरक्षा हो जाती है। बालों में बाहरी प्रभाव को रोकने की शक्ति है। शिखा स्थान पर बाल रहने से अनावश्यक सर्दी- गर्मी का प्रभाव नही पड़ता। उसकी सुरक्षा सदा बनी रहती है।
शिखा से मानसिक शक्तियों का पोषण होता है। जब बाल नहीं काटे जाते, तो नियत सीमा पर पहुँच कर उनका बढ़ता बन्द हो जाता है। जब बढ़ता बन्द हो आया तो केशों की जड़ों को बाल बढऩे के लिए रक्त लेकर खर्च करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। बचा हुआ रक्त उन पाँच शक्तियों का पोषण करने में खर्च होता है, जिससे उनका पोषण और विकास अच्छी तरह होता है। इससे मनुष्य विवेकशील, दृढ़ स्वभाव, दूरदर्शी, प्रेमी और संयमी बनता है।
वासना को वश में रखने का एक उपाय शिखा रखना है। बाल कटाने से जड़ों में एक प्रकार की हलचल मचती है। यह खुजली मस्तिष्क से सम्बद्ध वासना तन्तुओं में उतर जाती है। फलस्वरूप वासना भड़कती है। इस अनिष्ट से परिचित होने के कारण ऋषि- मुनि केश रखते हैं और उत्तेजना से बचते हैं।
बालों में एक प्रकार का तेज होता है। स्त्रियाँ लम्बे बाल रखती हैं, तो उनकी तेजस्विता बढ़ जाती है। पूर्व काल के महापुरुष बाल रखाया करते थे, और वे तेजस्वी होते थे। शिखा स्थान पर बाल रखने से विशेष रूप से तेजस्विता बढ़ती है।
शिखा स्पर्श से शक्ति का संचार होता है। यह शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि चाणक्य ने शिखा को हाथ में लेकर अर्थात् दुर्गा को साक्षी बना कर नन्द वंश के नाश की प्रतिज्ञा की थी और वह अंत: पूरी हुई थी। शक्ति रूपी शिखा को श्रद्धापूर्वक धारण करने से मनुष्य शक्तिसम्पन्न बनता है। हिन्दू धर्म, हिन्दू राष्ट्र, हिन्दू संस्कृति, की ध्वजा इस शिखा को धारण करना एक प्रकार से हिन्दुत्व का गौरव है।
शिखा के निचले प्रदेश में आत्मा का निवास योगियों ने माना है। इस प्रकार इस स्थान पर शिखा रूपी मंदिर बनाना ईश्वर प्राप्ति में सहायक होता है।
मनुष्य के शरीर पर जो बाल हैं, ये भी छिद्र युक्त हैं। आकाश में से प्राण वायु खींचते हैं, जिससे मस्तिष्क चैतन्य, पुष्ट और निरोग रहता है। सिर के बालों का महत्त्व अधिक है, क्योंकि वे मस्तिष्क का पोषण करने के अतिरिक्त आकाश से प्राण वायु खींचते हैं।
अनुष्ठान काल में बाल कटाना वर्जित है। किसी प्रतिज्ञा को पूर्ण करने के लिए बाल कटाना वर्जित है। इसका कारण यह है कि बाल रखने से मनोबल की वृद्धि होती है और दृढ़ता आती है। संकल्प पूर्ण करने का मार्ग सुगम हो जाता है।
है। मनोबल की वृद्धि के लिए शिखा आवश्यक है।
प्राचीन काल में जिसे तिरस्कृत, लज्जित या अपमानित करना होता था, उसका सिर मुँडा दिया जाता था। सिर मुँडा देने से मन गिर जाता है और जोश ठण्डा पड़ जाता है। नाड़ी तन्तु शिथिल पड़ जाता है। यदि अकारण मुंडन कराया जाय, तो उत्साह और स्फूर्ति में कमी आ जाती है।
सिक्ख धर्म में सिखा का विशेष महत्त्व है। गुरुनानक तथा अन्य सिक्ख गुरुओं ने अपने अध्यात्म बल से शिखा के असाधारण लाभों को समझकर अपने सम्प्रदाय वालों को पाँच शिखाएँ अर्थात् पाँच स्थानों पर बाल रखने का आदेश दिया।
शिखा को शिर पर स्थान देना धार्मिकता या आस्तिकता को स्वीकार करना हे। ईश्वरीय संदेशों को शिखा के स्तम्भ द्वार ग्रहण किया सकता है। शिखाधारी मनुष्य दैवीय शुभ संदेशों को प्राप्त करता है और ईश्वरीय सन्निकटता सुगमतापूर्वक सुनता है। शिखा हिन्दुत्व की पहचान है, जो सदा अन्त समय तक मनुष्य के साथ चलता है।
इस प्रकार विवेकशील हिन्दू को सिर पर शिखा धारण करनी चाहिए ।।
,,एक सुप्रीप साइंस जो इंसान के लिये सुविधाएं जुटाने का ही नहीं, बल्कि उसे शक्तिमान बनाने का कार्य करता है। ऐसा परम विज्ञान जो व्यक्ति को प्रकृति के ऊपर नियंत्रण करना सिखाता है। ऐसा विज्ञान जो प्रकृति को अपने अधीन बनाकर मनचाहा प्रयोग ले सकता है। इस अद्भुत विज्ञान की प्रयोगशाला भी बड़ी विलक्षण होती है। एक से बढ़कर एक आधुनिकतम मशीनों से सम्पंन प्रयोगशालाएं दुनिया में बहुतेरी हैं, किन्तु ऐसी सायद ही कोई हो जिसमें कोई यंत्र ही नहीं यहां तक कि खुद प्रयोगशाला भी आंखों से नजर नहीं आती। इसके अदृश्य होने का कारण है- इसका निराकार स्वरूप। असल में यह प्रयोगशाला इंसान के मन-मस्तिष्क में अंदर होती है।
सुप्रीम सांइस- विश्व की प्राचीनतम संस्कृति जो कि वैदिक संस्कृति के नाम से विश्य विख्यात है। अध्यात्म के परम विज्ञान पर टिकी यह विश्व की दुर्लभ संस्कृति है। इसी की एक महत्वपूर्ण मान्यता के तहत परम्परा है कि प्रत्येक स्त्री तथा पुरुष को अपने सिर पर चोंटी यानि कि बालों का समूह अनिवार्य रूप से रखना चाहिये।
सिर पर चोंटी रखने की परंपरा को इतना अधिक महत्वपूर्ण माना गया है कि , इस कार्य को हिन्दुत्व की पहचान तक माना लिया गया। योग और अध्यात्म को सुप्रीम सांइस मानकर जब आधुनिक प्रयोगशालाओं में रिसर्च किया गया तो, चोंटी के विषय में बड़े ही महत्वपूर्ण ओर रौचक वैज्ञानिक तथ्य सामने आए।
चमत्कारी रिसीवर- असल में जिस स्थान पर शिखा यानि कि चोंटी रखने की परंपरा है, वहा पर सिर के बीचों-बीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है। तथा शरीर विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्रा नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चोटी सुषुम्रा नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से तो बचाती ही है, साथ में ब्रह्माण्ड से आने वाले सकारात्मक तथा आध्यात्मिक विचारों को केच यानि कि ग्रहण भी करती है
क्यों रखी जाती है सिर पर शिखा?
सिर पर शिखा ब्राह्मणों की पहचान मानी जाती है। लेकिन यह केवल कोई पहचान मात्र नहीं है। जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखा एक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत: है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं।
आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते हैं लेकिन इसका वास्तविक रूप यह नहीं है। वास्तव में शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे सिर में बीचोंबीच सहस्राह चक्र होता है। शरीर में पांच चक्र होते हैं, मूलाधार चक्र जो रीढ़ के नीचले हिस्से में होता है और आखिरी है सहस्राह चक्र जो सिर पर होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है।
ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते । तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तजोवृद्धिं कुरुष्व मे
शिखा का हल्का दबाव होने से रक्त प्रवाह भी तेज रहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है
🙏
#वेदमंत्र
|| आयुर्वेद शरणम ||
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📌Facts Jantar Mantar Jaipur
🔴A UNESCO Site
Jantar Mantar is one of the world heritage sites listed by UNESCO
🔴One of the 5 Observatories
Jantar Mantar in Jaipur is one of the five observatories built by Maharaja Sawai Jai Singh, who was the founder of Jaipur and a brilliant astronomer too. During the beginning of 18th century, he has built 5 Jantar Mantars in India at New Delhi, Mathura, Jaipur, Varanasi and Ujjain.
🔴Purpose of Jantar Mantar
Jantar Mantar was built to study time and space. The structure in Jaipur is a complex of nineteen architectural astronomical instruments, and is still running and being used for calculations and teaching. It is used to observe and study the orbits around the Sun. Some of the structures here were built in stone and marble, and some in bronze.
The nineteen Yantras here are Chakra Yantra, Dakshin Bhitti Yantra, Digamsha Yantra, Disha Yantra, Kanali Yantra and Misra Yantra among the rest.
🔴 World's Biggest Stone Sundial
Jantar Mantar in Jaipur has the world's biggest stone sundial called as Brihat Samrat Yantra. This instrument gives the local time at the accuracy of two seconds. The structure is over 27m high. The reason behind the enormous Samrat Yantra is the accuracy. A smaller device failed to give accurate time, thus increasing the size of the device was the only option left.
🔴Meaning of Jantar Mantar
The words Jantar and Mantar derive from Sanskrit words Jantra and Mantra that mean 'instrument' and 'calculate' respectively, which makes the meaning of Jantar Mantar as "a calculating instrument".
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📌Facts Jantar Mantar Jaipur
🔴A UNESCO Site
Jantar Mantar is one of the world heritage sites listed by UNESCO
🔴One of the 5 Observatories
Jantar Mantar in Jaipur is one of the five observatories built by Maharaja Sawai Jai Singh, who was the founder of Jaipur and a brilliant astronomer too. During the beginning of 18th century, he has built 5 Jantar Mantars in India at New Delhi, Mathura, Jaipur, Varanasi and Ujjain.
🔴Purpose of Jantar Mantar
Jantar Mantar was built to study time and space. The structure in Jaipur is a complex of nineteen architectural astronomical instruments, and is still running and being used for calculations and teaching. It is used to observe and study the orbits around the Sun. Some of the structures here were built in stone and marble, and some in bronze.
The nineteen Yantras here are Chakra Yantra, Dakshin Bhitti Yantra, Digamsha Yantra, Disha Yantra, Kanali Yantra and Misra Yantra among the rest.
🔴 World's Biggest Stone Sundial
Jantar Mantar in Jaipur has the world's biggest stone sundial called as Brihat Samrat Yantra. This instrument gives the local time at the accuracy of two seconds. The structure is over 27m high. The reason behind the enormous Samrat Yantra is the accuracy. A smaller device failed to give accurate time, thus increasing the size of the device was the only option left.
🔴Meaning of Jantar Mantar
The words Jantar and Mantar derive from Sanskrit words Jantra and Mantra that mean 'instrument' and 'calculate' respectively, which makes the meaning of Jantar Mantar as "a calculating instrument".
|| ॐ नमः शिवाय ||
🔴Aum: Before the Universe, there was void of vibrations and pure existence. Out of the vibration came the sound of ‘Aum’ and then the Universe was formed.
🔴Namah: It means to bow
🔴Shivay: It means Shiva or inner self.
♦️ ॐ नमः शिवाय means “I Bow down to Shiva”. In a way, it means bowing down to your own self as Shiva resides in all as own consciousness.
🔴 ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः।
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
📌 सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने।
हे भगवन हमें ऐसा वर दो!
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🔵शनीदेव के माता-पिता सूर्यदेव एवं छायादेवी है । तापी एवं यमुना, ये दो बहनें एवं यमदेव बडे भाई है ।
शनिदेव का वर्ण अंत्यज, अर्थात लयकारी है । उनसे अत्यधिक मात्रा में मारक शक्ति का प्रक्षेपण होता है । इसलिए उनका स्वरूप उग्र प्रतीत होता है । शनिदेव की शक्ति रात के समय अधिक प्रमाण में कार्यरत होती है ।
शनि से संबंधित श्लोक
🔵अगस्त्यङ् कुम्भकर्णञ् च, शनिन् च वडवानलम् ।
आहारपाचनार्थाय, स्मरेद् भीमञ् च पञ्चमम् ।।
अर्थ : अन्नपचन होने के लिए अगस्त्य मुनि, कुम्भकर्ण, शनि, वडवानल (अग्नि) एवं भीम, इन पांच जनों का स्मरण करना चाहिए ।
🔵 नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।
अर्थ : हे नीलांजन, रविपुत्र, जिनका यम अग्रज (बडा भाई) है और जो छाया का पुत्र है, ऐसे शनिदेव को हम प्रणाम करते हैं ।
🔵काले रंग से शनितत्त्व कार्यरत होता है । नवग्रहमंडल से संबंधित देवताओं के लिए उपयोग में लाए गए चावल एवं वस्त्रों का रंग उन-उन देवताओं के रंग से (वर्ण से) संबंधित है; इसीलिए धार्मिक विधि के स्थान पर नवग्रहमंडल की स्थापना करते समय उस अमुक रंग के वस्त्र, अक्षत, पुष्प इत्यादि उपयोग में लाए जाते हैं
🔵धनुष्य, बाण एवं शूल, ये शस्त्र शनि से संबंधित हैं । वक्रमार्ग से अग्रसर होनेवालों पर ध्यान रखकर शनिदेव ने शरसंधान किए का द्योतक है धनुष्याकृति । पूजन के स्थान पर चौरंग पर नवग्रहमंडलदेवताओं की स्थापना करते समय काले रंग के अक्षतों से शनिमंडल की प्रतीक धनुष्याकृति चौरंग की पश्चिम दिशा में बनाई जाती है ।
🔵शनि की जपसंख्या तेईस सहस्र (२३,०००) है ।
🔵शिव का शनि पर अधिपत्य है । शिव का प्रदोष व्रत शनिवार को होने से उसे शनिप्रदोष कहते हैं । शनिप्रदोष के दिन उपवास कर प्रदोषकाल में शिवलिंग बिल्वपत्र चढाकर पूजन करने एवं शिव को पंचामृत से अभिषेक करने अथवा शिव हेतु हवन करने से शिव की कृपा प्राप्त होकर शनि की पीडा दूर होती है ।
नहीं नहीं.. यह भारत से नहीं है।
क्या आप विश्वास कर सकते हैं...यह इराक के सिलेमेनिया में 6000 वर्ष प्राचीन भगवान रामचन्द्र जी और हनुमान जी की नक्काशी है
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