palash ke phool
literature based on life experiences.
फिर आया स्वतंत्रता दिवस
फिर आया स्वतंत्रता दिवस
फिर महापर्व आया है
चारों ओर छाई तिरंगे की हरियाली
लोग दे रहे हैं एक दूजे को
केवल बधाई और बधाई है।
याद करते सब जन मानस
स्वतंत्रता की लड़ाई के
वीर पुरुष और नारी को
गाते गीत सभी अब भी
उधम, आजाद और रानी के
गाथाएँ सब गाते हैं
स्वतंत्रता के परवानों के
पर क्यों रह जाए
उनका त्याग और बलिदान
केवल इतिहास के पानों में
क्यों भूलें हम उनके
द्वारा किए गए बलिदानों को
क्या हक हमारा नहीं बनता
बचाएँ देश की सुरक्षा की कमानों को
और बचाएँ हम अपनी
संस्कृति और उसकी अस्मिता को
भले ही न दे हम कोई परीक्षा
माना अब स्वतंत्र है हम
पर बंधक हैं अपने ही
भाव -विचारों की बेड़ियों के
तो क्यों न तोड़ दें उन्हें अब
स्वतंत्र हो जाएँ सही अर्थों में हम
मीरा ठाकुर
यू ए ई
15/08/2023
जीवन का सार
आज सदियों बाद भी हजारी प्रसाद का कथन उतना ही सत्य है जितना पहले ।
कौन कहता है हम गरीब हैं?
कौन कहता है हम गरीब हैं?
क्योंकि मंहगाई बढ़ गई है.... 2
पहले सुबह -शाम की चाय के साथ
खारी बिस्कुट चलते थे
अब तो बोर्नविटा,स्मूदी, पिज्जा
और पेस्ट्री चलते हैं ।
कौन कहता है,हम गरीब हैं?
जबकि दो-दो मोबाइल करीब हैं।
पहले पाँच पैसे के पोस्टकार्ड से
लोगों की दूरियाँ घटती थी।
अब घर बैठे आपस में
मोबाइल से बातें चलती हैं।
पहले त्योहारों पर अपनों के घर जाते थे
अब बैठे –बैठे फॉरवर्ड मैसेज चलते हैं।
कौन कहता हैं हम गरीब हैं।
पहले अम्मा के दाल – चावल और भुजिया
चलते थे।
अब हल्दीराम की भुजिया और कोक चलते हैं।
पहले दादी – नानी की कहानियाँ चलती थी
अब ‘सिनचेन’ और ‘पेप्पा पिग’ चलते हैं।
पहले होली- दीवाली पर घर के पकवान चलते थे,
अब घर पर ऑनलाइन ऑर्डर चलते हैं।
कौन कहता है,हम गरीब हैं?
पहले कपड़े पहनने के बाद फटते थे,
अब पहनने के पहले फटते हैं।
और उसके हम हजारों देते हैं।
पहले दो- चार कपड़ों में काम चलते थे,
अब दो- चार सौ कपड़ों में
भी कौन – सा पहने चलता है।
कौन कहता है,हम गरीब हैं?
पहले खाकी बस्ते से
एक साल नहीं कई- कई साल चलते थे
अब स्कूल बच्चा नहीं बलिक
एडिदास, नाइकी और अंडरआर्मर जाते हैं।
कौन कहता है, हम गरीब हैं?
पहले दो- तीन दिन शादी का
लुत्फ उठाते थे।
चाची –मौसी शादी करवाती थीं
अब डेस्टिनेशन मैरिज होते हैं
और इसके लिए प्लैनर बुलाते हैं।
कौन कहता है,हम गरीब हैं?
पहले अपने ही नहीं
अगल – बगल के
बूढ़े – बूढ़ी की सेवा करते थे
अब अपने ही माता - पिता को
‘ओल्ड होम’ भिजवाते हैं।
कौन कहता है,हम गरीब हैं?
कौन कहता है,हम गरीब हैं?
महंगाई वहीं है दोस्तों, बस हम आगे बढ़ गए हैं।
-मीरा ठाकुर
22/04/2023
कौन कहता है हम गरीब हैं?
कौन कहता है हम गरीब हैं?
क्योंकि मंहगाई बढ़ गई है.... 2
पहले सुबह -शाम की चाय के साथ
खारी बिस्कुट चलते थे
अब तो बोर्नविटा,स्मूदी, पिज्जा
और पेस्ट्री चलते हैं ।
कौन कहता है,हम गरीब हैं?
जबकि दो-दो मोबाइल करीब हैं।
पहले पाँच पैसे के पोस्टकार्ड से
लोगों की दूरियाँ घटती थी।
अब घर बैठे आपस में
मोबाइल से बातें चलती हैं।
पहले त्योहारों पर अपनों के घर जाते थे
अब बैठे –बैठे फॉरवर्ड मैसेज चलते हैं।
कौन कहता हैं हम गरीब हैं।
पहले अम्मा के दाल – चावल और भुजिया
चलते थे।
अब हल्दीराम की भुजिया और कोक चलते हैं।
पहले दादी – नानी की कहानियाँ चलती थी
अब ‘सिनचेन’ और ‘पेप्पा पिग’ चलते हैं।
पहले होली- दीवाली पर घर के पकवान चलते थे,
अब घर पर ऑनलाइन ऑर्डर चलते हैं।
कौन कहता है,हम गरीब हैं?
पहले कपड़े पहनने के बाद फटते थे,
अब पहनने के पहले फटते हैं।
और उसके हम हजारों देते हैं।
पहले दो- चार कपड़ों में काम चलते थे,
अब दो- चार सौ कपड़ों में
भी कौन – सा पहने चलता है।
कौन कहता है,हम गरीब हैं?
पहले खाकी बस्ते से
एक साल नहीं कई- कई साल चलते थे
अब स्कूल बच्चा नहीं बलिक
एडिदास, नाइकी और अंडरआर्मर जाते हैं।
कौन कहता है, हम गरीब हैं?
पहले दो- तीन दिन शादी का
लुत्फ उठाते थे।
चाची –मौसी शादी करवाती थीं
अब डेस्टिनेशन मैरिज होते हैं
और इसके लिए प्लैनर बुलाते हैं।
कौन कहता है,हम गरीब हैं?
पहले अपने ही नहीं
अगल – बगल के
बूढ़े – बूढ़ी की सेवा करते थे
अब अपने ही माता - पिता को
‘ओल्ड होम’ भिजवाते हैं।
कौन कहता है,हम गरीब हैं?
कौन कहता है,हम गरीब हैं?
महंगाई वहीं है दोस्तों, बस हम आगे बढ़ गए हैं।
-मीरा ठाकुर
22/04/2023
विश्व महिला दिवस पर प्रस्तुत है----
यूँ तो वह लड़की है।
यूँ तो वह लड़की है।
लेकिन...
पूरे घर की नींव है।
उसमें सभी की गलतियों
को सहने की पीर है ।
यूँ तो वह लड़की है।
लेकिन...
वह समाज की रीढ़ है।
उसमें सभी का बोझा
ढ़ोने की धीर है।
यूँ तो वह लड़की है।
दुनिया की नजरों में भले ही...
वह कुल को बढ़ाने में सक्षम नहीं है,
पर वह कुल को बचाने की क्षमता है।
यूँ तो वह लड़की है।
पर घर को बर्बाद करने में
उसका कोई हाथ नहीं ....
न वह जुआरी है, न वह शराबी है।
बस वह केवल, सबकी करीबी है।
यूँ तो वह लड़की है।
यूँ तो वह लड़की है।
लेकिन...
पूरे घर की नींव है।
उसमें सभी की गलतियों
को सहने की पीर है ।
यूँ तो वह लड़की है।
लेकिन...
वह समाज की रीढ़ है।
उसमें सभी का बोझा
ढ़ोने की धीर है।
यूँ तो वह लड़की है।
दुनिया की नजरों में भले ही...
वह कुल को बढ़ाने में सक्षम नहीं है,
पर वह कुल को बचाने की क्षमता है।
यूँ तो वह लड़की है।
पर घर को बर्बाद करने में
उसका कोई हाथ नहीं ....
न वह जुआरी है, न वह शराबी है।
बस वह केवल, सबकी करीबी है।
- मीरा ठाकुर
विश्व हिन्दी दिवस पर सभी को हार्दिक बधाई .....
कल सुबह होने पर......
कल सुबह होने पर
लोग हिन्दी में काम कर रहे होंगे।
काव्यगोष्ठियाँ हो रही होंगी ,
लोग हिन्दी में चीख रहे होंगे,
हिन्दी की ध्वजा फहर रही होगी,
लोग कोहराम भी मचाएँगे ,
वह भी हिन्दी में ......
कल सुबह होने पर
हम शर्मिंदा नहीं होंगे,
हिन्दी में बोलने पर कानों में रस घोलने पर ,
अंग्रेज़ी के न आने पर,
इसके ठीक से न जानने पर,
हम परेशान नहीं होंगे।
कल सुबह होने पर
गौरैया हिन्दी के गीत गाएगी,
सुबह इसी में बीत जाएगी ।
स्वभाषा का सम्मान होगा,
दूसरों का भी मान होगा।
हिन्दी में काम करने पर,
कोई परेशान न होगा।
हाल ही में मेरी लिखी लघु कथा भारतीय कौंसलावास, न्यूयॉर्क से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'अनन्य' में प्रकाशित हुई। इस अवसर पर मैं परम स्नेही एवं लेखिका डॉ Arti Lokesh Goel को हृदय से धन्यवाद देती हूँ।
पत्रिका की फ्लिप बुक आप नीचे दिए गए लिंक पर पढ़ सकते हैं।
https://tinyurl.com/ananya-uae-2022-09-pdf
लहरा दो,लहरा दो
विश्व में हिंदी का परचम लहरा दो
हिंदी की शान को
विश्व में सम्मान दो
और भाषाओं को
भी उनका मान दो
लहरा दो,लहरा दो
विश्व में हिंदी का परचम लहरा दो
सबकी जिह्वा पर
हिंदी का गान हो
अपनी भाषा का
सबको भान हो
लहरा दो,लहरा दो
विश्व में हिंदी का परचम लहरा दो
संकेतों में भी हिंदी हो
लेखन में भी हिंदी हो
चिंतन में भी हिंदी हो
जीवन में भी हिंदी हो
लहरा दो, लहरा दो
विश्व में हिंदी का परचम लहरा दो I
चुप होकर बैठने से
अब भला क्या होता है
मुँह खोलकर बोलने से ही
दुनिया में कुछ होता है I
हिंद की शान का ,परचम लहरा दो
लहरा दो, लहरा दो I
विश्व में हिंदी का परचम लहरा दो I
-
मीरा ठाकुर
14 सितंबर 2022
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