Sachin tomar youth bregade
दुनिया 1 जनवरी का इंतजार कर रही है और हम 22 जनवरी कि प्रतीक्षा ।।
।।जय श्री राम।।
जिस पर कृपा राम करें वह पत्थर भी तिर जाते हैं
🚩जय श्री राम🚩
कल दिनांक 24 अक्टूबर 2023 को खतौली खंड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों द्वारा पथ संचलन निकाला गया!🚩 जय श्री राम 🚩
जब जमीन वक्फ बोर्ड की थी तो कुआं ठाकुर का कैसे हुआ चमचो बताओ ?
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के निमंत्रित सदस्य, ज्येष्ठ प्रचारक 77 वर्षीय श्रीमान हस्तीमल जी का कल दिनांक 14 जनवरी, 2023 की प्रातः 7:30 बजे उनके मुख्यालय उदयपुर में निधन हो गया।
गत 4 - 5 दिन से मुँह में छाले व गले मे कफ भरने से बोलना बंद हुआ था। बाक़ी ठीक थे। वे पहले ही अपनी देहदान करके उसका पत्र लिखकर रखे हुए थे।
आज उदयपुर संघ कार्यालय में ही अंतिम दर्शन की व्यवस्था की गई है।
विनम्र श्रद्धांजलि🙏🏻💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
नाथूराम गोडसे जी को कोटि-कोटि नमन
बीज बेचने वाले ने बीज बेच दिया, खाद बेचने वाले ने खाद बेच दिया और दवाई बेचने वाले ने दवाई बेच दी लेकिन अब किसान क्या बेचें 😥😥
भगत सिंह की बैरक की साफ-सफाई करने वाले भंगी का नाम बोघा था। भगत सिंह उसको बेबे (मां) कहकर बुलाते थे। जब कोई पूछता कि भगत सिंह ये भंगी बोघा तेरी बेबे कैसे हुआ? तब भगत सिंह कहता, मेरा मल-मूत्र या तो मेरी बेबे ने उठाया, या इस भले पुरूष बोघे ने। बोघे में मैं अपनी बेबे (मां) देखता हूं। ये मेरी बेबे ही है।
यह कहकर भगत सिंह बोघे को अपनी बाहों में भर लेता।
भगत सिंह जी अक्सर बोघा से कहते, बेबे मैं तेरे हाथों की रोटी खाना चाहता हूँ। पर बोघा अपनी जाति को याद करके झिझक जाता और कहता, भगत सिंह तू ऊँची जात का सरदार, और मैं एक अदना सा भंगी, भगतां तू रहने दे, ज़िद न कर।
सरदार भगत सिंह भी अपनी ज़िद के पक्के थे, फांसी से कुछ दिन पहले जिद करके उन्होंने बोघे को कहा बेबे अब तो हम चंद दिन के मेहमान हैं, अब तो इच्छा पूरी कर दे!
बोघे की आँखों में आंसू बह चले। रोते-रोते उसने खुद अपने हाथों से उस वीर शहीद ए आजम के लिए रोटिया बनाई, और अपने हाथों से ही खिलाई। भगत सिह के मुंह में रोटी का गास डालते ही बोघे की रुलाई फूट पड़ी। ओए भगतां, ओए मेरे शेरा, धन्य है तेरी मां, जिसने तुझे जन्म दिया। भगत सिंह ने बोघे को अपनी बाहों में भर लिया।
ऐसी सोच के मालिक थे अपने वीर सरदार भगत सिंह जी...। परन्तु आजादी के 70 साल बाद भी हम समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेद-भाव की भावना को दूर करने के लिये वो न कर पाए जो 88 साल पहले भगत सिंह ने किया।
महान शहीदे आजम को इस देश का सलाम।
45 साल के महात्मा गाँधी 1915 में भारत आते हैं, 2 दशक से भी ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में बिता कर। इससे 4 साल पहले 28 वर्ष का एक युवक अंडमान में एक कालकोठरी में बन्द होता है। अंग्रेज उससे दिन भर कोल्हू में बैल की जगह हाँकते हुए तेल पेरवाते हैं, रस्सी बटवाते हैं और छिलके कूटवाते हैं। वो तमाम कैदियों को शिक्षित कर रहा होता है, उनमें राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ प्रगाढ़ कर रहा होता है और साथ ही दीवालों कर कील, काँटों और नाखून से साहित्य की रचना कर रहा होता है।
उसका नाम था- विनायक दामोदर सावरकर।
वीर सावरकर।
उन्हें आत्महत्या के ख्याल आते। उस खिड़की की ओर एकटक देखते रहते थे, जहाँ से अन्य कैदियों ने पहले आत्महत्या की थी। पीड़ा असह्य हो रही थी। यातनाओं की सीमा पार हो रही थी। अंधेरा उन कोठरियों में ही नहीं, दिलोदिमाग पर भी छाया हुआ था। दिन भर बैल की जगह खटो, रात को करवट बदलते रहो। 11 साल ऐसे ही बीते। कैदी उनकी इतनी इज्जत करते थे कि मना करने पर भी उनके बर्तन, कपड़े वगैरह धो देते थे, उनके काम में मदद करते थे। सावरकर से अँग्रेज बाकी कैदियों को दूर रखने की कोशिश करते थे। अंत में बुद्धि को विजय हुई तो उन्होंने अन्य कैदियों को भी आत्महत्या से विमुख किया।
लेकिन नहीं, महा गँवारों का कहना है कि सावरकर ने मर्सी पेटिशन लिखा, सॉरी कहा, माफ़ी माँगी..ब्ला-ब्ला-ब्ला। मूर्खों, काकोरी कांड में फँसे क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने भी माफ़ी माँगी थी, तो? उन्हें भी 'डरपोक' करार दोगे? बताओ। उन्होंने भी माफ़ी माँगी थी अंग्रेजों से। क्या अब इस कसौटी पर क्रांतिकारियों को तौला जाएगा? शेर जब बड़ी छलाँग लगाता है तो कुछ कदम पीछे लेता ही है। उस समय उनके मन में क्या था, आगे की क्या रणनीति थी- ये आज कुछ लोग बैठे-बैठे जान जाते हैं। कौन ऐसा स्वतंत्रता सेनानी है जिसे 11 साल कालापानी की सज़ा मिली हो। नेहरू? गाँधी? कौन?
नानासाहब पेशवा, महारानी लक्ष्मीबाई और वीर कुँवर सिंह जैसे कितने ही वीर इतिहास में दबे हुए थे। 1857 को सिपाही विद्रोह बताया गया था। तब इसके पर्दाफाश के लिए 20-22 साल का एक युवक लंदन की एक लाइब्रेरी का किसी तरह एक्सेस लेकर और दिन-रात लग कर अँग्रेजों के एक के बाद एक दस्तावेज पढ़ कर सच्चाई की तह तक जा रहा था, जो भारतवासियों से छिपाया गया था। उसने साबित कर दिया कि वो सैनिक विद्रोह नहीं, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। उसके सभी अमर बलिदानियों की गाथा उसने जन-जन तक पहुँचाई। भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों ने मिल कर उसे पढ़ा, अनुवाद किया।
दुनिया में कौन सी ऐसी किताब है जिसे प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया था? अँग्रेज कितने डरे हुए थे उससे कि हर वो इंतजाम किया गया, जिससे वो पुस्तक भारत न पहुँचे। जब किसी तरह पहुँची तो क्रांति की ज्वाला में घी की आहुति पड़ गई। कलम और दिमाग, दोनों से अँग्रेजों से लड़ने वाले सावरकर थे। दलितों के उत्थान के लिए काम करने वाले सावरकर थे। 11 साल कालकोठरी में बंद रहने वाले सावरकर थे। हिंदुत्व को पुनर्जीवित कर के राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले सावरकर थे। साहित्य की विधा में पारंगत योद्धा सावरकर थे।
आज़ादी के बाद क्या मिला उन्हें? अपमान। नेहरू व मौलाना अबुल कलाम जैसों ने तो मलाई चाटी सत्ता की, सावरकर को गाँधी हत्या केस में फँसा दिया। गिरफ़्तार किया। पेंशन तक नहीं दिया। प्रताड़ित किया। 60 के दशक में उन्हें फिर गिरफ्तार किया, प्रतिबंध लगा दिया। उन्हें सार्वजनिक सभाओं में जाने से मना कर दिया गया। ये सब उसी भारत में हुआ, जिसकी स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अपना जीवन खपा दिया। आज़ादी के मतवाले से उसकी आज़ादी उसी देश में छीन ली गई, जिसे उसने आज़ाद करवाने में योगदान दिया था। शास्त्री जी PM बने तो उन्होंने पेंशन का जुगाड़ किया।
वो कालापानी में कैदियों को समझाते थे कि धीरज रखो, एक दिन आएगा जब ये जगह तीर्थस्थल बन जाएगी। आज भले ही हमारा पूरे विश्व में मजाक बन रहा हो, एक समय ऐसा होगा जब लोग कहेंगे कि देखो, इन्हीं कालकोठरियों में हिंदुस्तानी कैदी बन्द थे। सावरकर कहते थे कि तब उन्हीं कैदियों की यहाँ प्रतिमाएँ होंगी। आज आप अंडमान जाते हैं तो सीधा 'वीर सावरकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट' पर उतरते हैं। सेल्युलर जेल में उनकी प्रतिमा लगी है। उस कमरे में प्रधानमंत्री भी जाकर ध्यान धरता है, जिसमें सावरकर को रखा गया था। सावरकर का अपमान करने का अर्थ है अपने ही थूक को ऊँट के मूत्र में मिला कर पीना।
हजारो झूले थे फंदे पर, लाखों ने गोली खाई थी
क्यों झूठ बोलते थे साहब, चरखे से आजादी आई थी....
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान का एक लड़का अपने छोटे भाई के अंतिम संस्कार के लिए पंक्ति में खड़ा था।
यह फोटो लेने वाले फोटोग्राफर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि बच्चा स्वयं को रोने से रोकने के लिए अपने होठों को इतनी जोर से दबाये हुए था कि उसके होठो से खून निकलकर नीचे गिरने लगा था।
जब शमशान का रखवाला उसका नंबर आने पर कहता है कि "जो बोझा तुमने अपनी पीठ पर ढों रखा है वह मुझे दे दो" तो बच्चा कहता है "यह बोझा नही मेरा भाई है" ओर कहते हुए वहां से निकल जाता है।
जापान में आज भी यह तस्वीर शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
चंदेल शासकों द्वारा लगभग 999 ई. में निर्मित कंदरिया महादेव मंदिर (खजुराहो - मध्यप्रदेश)
मन समर्पित , तन समर्पित और यह जीवन समर्पित ।
चाहता हूं मातृभू तुझको अभी कुछ और भी दूं।।
प.प.भगवा ध्वज जो कि प्राचीन समय से भारत के विजयशाली इतिहास का साक्षी है। संघ में किसी भी व्यक्ति को गुरु नही माना प.प.भगवा ध्वज को गुरु माना गया है। जो कि त्याग , शौर्य और समर्पण का प्रतीक है। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर यही कामना है कि सभी स्वयंसेवक राष्ट्रकार्य में रत रहकर अपने देश भारत को परम वैभव पर ले जाने हेतु सदैव अग्रसर रहें। 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं💐💐💐💐💐
सोया भारत
"सैकुलर"हिंदुओं को आज ओरंगजेब की विचारधारा को मानने वाले लोगों को "उदयपुर" की वीडियो देखनी चाहिए ध्यान रहे यह हमारे लिए चुनौती है
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युवा जिलाध्यक्ष व सदस्य जिला पंचायत राष्ट्रीय लोकदल मुज़फ्फरनगर
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छात्रसंघ संयुक्तसचिव (डीएवी कॉलेज) पूर्व जिलासंयोजक सोशल मीडिया और व्यवसायिक शिक्षा (अभाविप) मु.नगर