''sharar''
न तख्तोताज की जरूरत न सल्तनत की ख्वाह?
जिसकी जितनी संख्या उसकी उतनी हिस्सेदारी को
टैक्स अदा करने में, एडमिशन खर्च पर भी लागू किया जाएगा?
Aditya L-1 launching model from a student 👏👏👏
गुर्रु ब्रह्मा गुर्रु विष्णु गुर्रु देवो महेश्वर,
गुर्रु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।ॐ शान्ति।। आप सभी को "शिक्षक दिवस" की बधाई 🙏
हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं 💞🤣
Rapid Chess • Anon. vs Anon. Anon. played Anon. in a casual Rapid (10+0) game of chess. Anon. resigned after 25 moves. Click to replay, analyse, and discuss the game!
पूरे बाजार पर HUL, Nestle, P&G..विदेशी कंपनियों का कब्जा था,
तब सब ठीक था जैसे ही टाटा, रिलायंस, पतंजलि आए..
देश बिक गया 😕
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45 साल के महात्मा गाँधी 1915 में भारत आते हैं, 2 दशक से भी ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में बिता कर। इससे 4 साल पहले 28 वर्ष का एक युवक अंडमान में एक कालकोठरी में बन्द होता है। अंग्रेज उससे दिन भर कोल्हू में बैल की जगह हाँकते हुए तेल पेरवाते हैं, रस्सी बटवाते हैं और छिलके कूटवाते हैं। वो तमाम कैदियों को शिक्षित कर रहा होता है, उनमें राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ प्रगाढ़ कर रहा होता है और साथ ही दीवालों कर कील, काँटों और नाखून से साहित्य की रचना कर रहा होता है।
उसका नाम था- विनायक दामोदर सावरकर।
वीर सावरकर।
उन्हें आत्महत्या के ख्याल आते। उस खिड़की की ओर एकटक देखते रहते थे, जहाँ से अन्य कैदियों ने पहले आत्महत्या की थी। पीड़ा असह्य हो रही थी। यातनाओं की सीमा पार हो रही थी। अंधेरा उन कोठरियों में ही नहीं, दिलोदिमाग पर भी छाया हुआ था। दिन भर बैल की जगह खटो, रात को करवट बदलते रहो। 11 साल ऐसे ही बीते। कैदी उनकी इतनी इज्जत करते थे कि मना करने पर भी उनके बर्तन, कपड़े वगैरह धो देते थे, उनके काम में मदद करते थे। सावरकर से अँग्रेज बाकी कैदियों को दूर रखने की कोशिश करते थे। अंत में बुद्धि को विजय हुई तो उन्होंने अन्य कैदियों को भी आत्महत्या से विमुख किया।
लेकिन नहीं, महा गँवारों का कहना है कि सावरकर ने मर्सी पेटिशन लिखा, सॉरी कहा, माफ़ी माँगी..ब्ला-ब्ला-ब्ला। मूर्खों, काकोरी कांड में फँसे क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने भी माफ़ी माँगी थी, तो? उन्हें भी 'डरपोक' करार दोगे? बताओ। उन्होंने भी माफ़ी माँगी थी अंग्रेजों से। क्या अब इस कसौटी पर क्रांतिकारियों को तौला जाएगा? शेर जब बड़ी छलाँग लगाता है तो कुछ कदम पीछे लेता ही है। उस समय उनके मन में क्या था, आगे की क्या रणनीति थी- ये आज कुछ लोग बैठे-बैठे जान जाते हैं। कौन ऐसा स्वतंत्रता सेनानी है जिसे 11 साल कालापानी की सज़ा मिली हो। नेहरू? गाँधी? कौन?
नानासाहब पेशवा, महारानी लक्ष्मीबाई और वीर कुँवर सिंह जैसे कितने ही वीर इतिहास में दबे हुए थे। 1857 को सिपाही विद्रोह बताया गया था। तब इसके पर्दाफाश के लिए 20-22 साल का एक युवक लंदन की एक लाइब्रेरी का किसी तरह एक्सेस लेकर और दिन-रात लग कर अँग्रेजों के एक के बाद एक दस्तावेज पढ़ कर सच्चाई की तह तक जा रहा था, जो भारतवासियों से छिपाया गया था। उसने साबित कर दिया कि वो सैनिक विद्रोह नहीं, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। उसके सभी अमर बलिदानियों की गाथा उसने जन-जन तक पहुँचाई। भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों ने मिल कर उसे पढ़ा, अनुवाद किया।
दुनिया में कौन सी ऐसी किताब है जिसे प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया था? अँग्रेज कितने डरे हुए थे उससे कि हर वो इंतजाम किया गया, जिससे वो पुस्तक भारत न पहुँचे। जब किसी तरह पहुँची तो क्रांति की ज्वाला में घी की आहुति पड़ गई। कलम और दिमाग, दोनों से अँग्रेजों से लड़ने वाले सावरकर थे। दलितों के उत्थान के लिए काम करने वाले सावरकर थे। 11 साल कालकोठरी में बंद रहने वाले सावरकर थे। हिंदुत्व को पुनर्जीवित कर के राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले सावरकर थे। साहित्य की विधा में पारंगत योद्धा सावरकर थे।
आज़ादी के बाद क्या मिला उन्हें? अपमान। नेहरू व मौलाना अबुल कलाम जैसों ने तो मलाई चाटी सत्ता की, सावरकर को गाँधी हत्या केस में फँसा दिया। गिरफ़्तार किया। पेंशन तक नहीं दिया। प्रताड़ित किया। 60 के दशक में उन्हें फिर गिरफ्तार किया, प्रतिबंध लगा दिया। उन्हें सार्वजनिक सभाओं में जाने से मना कर दिया गया। ये सब उसी भारत में हुआ, जिसकी स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अपना जीवन खपा दिया। आज़ादी के मतवाले से उसकी आज़ादी उसी देश में छीन ली गई, जिसे उसने आज़ाद करवाने में योगदान दिया था। शास्त्री जी PM बने तो उन्होंने पेंशन का जुगाड़ किया।
वो कालापानी में कैदियों को समझाते थे कि धीरज रखो, एक दिन आएगा जब ये जगह तीर्थस्थल बन जाएगी। आज भले ही हमारा पूरे विश्व में मजाक बन रहा हो, एक समय ऐसा होगा जब लोग कहेंगे कि देखो, इन्हीं कालकोठरियों में हिंदुस्तानी कैदी बन्द थे। सावरकर कहते थे कि तब उन्हीं कैदियों की यहाँ प्रतिमाएँ होंगी। आज आप अंडमान जाते हैं तो सीधा 'वीर सावरकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट' पर उतरते हैं। सेल्युलर जेल में उनकी प्रतिमा लगी है। उस कमरे में प्रधानमंत्री भी जाकर ध्यान धरता है, जिसमें सावरकर को रखा गया था। सावरकर का अपमान करने का अर्थ है अपने ही थूक को ऊँट के मूत्र में मिला कर पीना।
हजारो झूले थे फंदे पर, लाखों ने गोली खाई थी
क्यों झूठ बोलते थे साहब, चरखे से आजादी आई थी....
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Adv Arjun Chandna #सावरकर https://www.facebook.com/ArjunSChandna1/
यह तस्वीर 1947 की है... लाहौर रेलवे स्टेशन. देखिए स्टेशन का नाम हिंदी (देवनागरी) और पंजाबी (गुरमुखी) में भी लिखा है. तब यह शहर भारत का एक मुख्य शहर था, और हिन्दू बहुल था.
परसों एक सुहृदय भारतीय वरिष्ठ मित्र ने एक पाकिस्तानी सहकर्मी से कहा - सी यू नेक्स्ट वीक...14th को हम पाकिस्तान की जश्न-ए-आज़ादी मनाएंगे...उसके अगले दिन भारत का स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे...दोनों हँसे, और फिर मेरी ओर देखा प्रतिक्रिया के लिए...
कुछ सेकंड का एक awkward pause आया...दोनों मेरी ओर देखते रहे, उन्हें लगा कि मैं कुछ कहना चाहता हूँ...मैं भी कुछ क्षणों तक उन दोनों को देखता रहा. मन में इतनी सारी बातें गुजरीं कि कुछ भी नहीं कह पाया. मैं अपनी बात को एक छिछली बहस में बदलते देखने को तैयार नहीं था.
पाकिस्तान के जश्न-ए-आज़ादी की मुबारकबाद मैं दूँ? क्यों भला? पाकिस्तान के होने का हमारे लिए क्या मतलब है, कभी सोचा है? पाकिस्तान के होने का मतलब है हमारी मातृभूमि का विभाजन...करोड़ों हिंदुओं का अपने पितरों की भूमि से विस्थापन...लाखों का कत्ल, हज़ारों नहीं शायद लाखों माताओं बहनों का बलात्कार...ट्रेनों में कटी लाशें, जिसके डब्बों पर लिखा था आज़ादी का तोहफा...बर्छियों पर बिंधे बच्चे...इसका जश्न मनाऊँ?
चलो, मरने वाले मर गए...उनके लिए रोने वाले भी मर गए...मान लिया, ये घाव भर जाने दें...
पर पाकिस्तान के बनने से जो मरे वो सिर्फ कुछ इंसानी ज़िन्दगियाँ ही नहीं थीं. पाकिस्तान के पैदा होने से जो सबसे बड़ी मौत हुई वह एक सभ्यता की मौत थी. जहाँ दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता पैदा हुई थी, वह उस जगह से उजड़ गई...जिस सिंधु नदी के किनारे हमारे वेद लिखे गए, वह सिंध पराया हो गया. बप्पा रावल की रावलपिंडी अपनी नहीं रही, महाराजा रणजीत सिंह का, भगत सिंह का लाहौर अपना नहीं रहा...
विभाजन का दर्द आपका अपना दर्द क्यों नहीं है? 10 लाख हिंदुओं का खून बहा, वह आपका अपना खून क्यों नहीं है? इंसान मरते हैं, दूसरे पैदा हो जाते हैं...पर जो असली ट्रेजेडी है, वह है एक सभ्यता का मरना. अब फिर सिन्धु तट पर कभी वेद ऋचाएं गूंजेंगी क्या? फिर किसी तक्षशिला में कोई चाणक्य खड़ा होगा क्या?
हम पाकिस्तान की जश्न-ए-आज़ादी में शरीक हों? अमन की आशा के गीत गाये? क्यों? किसी नौशाद, किसी साज़िद, किसी यास्मीन और फारूक की दोस्ती मुझे बहुत प्यारी हो सकती है...पर इतनी नहीं कि इसकी यह कीमत चुकाऊँ...इस दर्द को भूल जाऊँ. विभाजन का दर्द मेरा अपना है...मैं हर पंद्रह अगस्त को इसे जिंदा रखने की शपथ लेता हूँ...अखंड भारत के स्वप्न के गीत गाता हूँ...अमन की आशा के नहीं...
एक बार पुरा सुने 🙏
सबसे प्यारा एक ही नाम "जय श्री राम"--2
तुम रुठी रहो मैं मनाता रहूँ, मज़ा जीने का और भी आता है ! थोडे़ शिकवे भी हो और शिकायत भी हो तो मज़ा जीने का और भी आता है !!