Sachin Dwivedi

मिलना मुनासिब हो ना सका कुछ इसलिए भी ह?

13/05/2023
20/02/2023
17/02/2023

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15/12/2022

प्रेम की एक चादर समेटे हुए,
नीर की एक गागर समेटे हुए,
रघुपती चल पड़े हैं वनों की डगर,
ह्रदय करुणा का सागर समेटे हुए ।

जय श्री राम🙏🙏🙏🙏

07/12/2022

🙏

13/11/2022

परीक्षा में गब्बरसिंह का चरित्र के बारे में लिखने के लिए कहा गया
दसवीं के एक छात्र ने लिखा-😉
1. सादगी भरा जीवन-:- शहर की भीड़ से दूर जंगल में रहते थे,
एक ही कपड़े में कई दिन गुजारा करते थे,
खैनी के बड़े शौकीन थे.😊
2. अनुशासनप्रिय-:- कालिया और उसके साथी को प्रोजेक्ट ठीक से न करने पर सीधा गोली मार दिये थे.😁
3.दयालु प्रकृति-:- ठाकुर को कब्जे में लेने के बाद ठाकुर के सिर्फ हाथ काटकर छोड़ दिया था, चाहते तो गला भी काट सकते थे😛

4. नृत्य संगीत प्रेमी-;- उनके मुख्यालय में नृत्य संगीत के कार्यक्रम चलते रहते थे..
'महबूबा महबूबा',
'जब तक है जां जाने जहां'.
बसंती को देखते ही परख गये थे कि कुशल नृत्यांगना है.😊

5. हास्य रस के प्रेमी-:- कालिया और उसके साथियों को हंसा हंसा कर ही मारे थे. खुद भी ठहाका मारकर हंसते थे, वो इस युग के 'लाफिंग बुद्धा' थे.😁

6. नारी सम्मान-:- बंसती के अपहरण के बाद सिर्फ उसका नृत्य देखने का अनुरोध किया था,😀

7. भिक्षुक जीवन-:- उनके आदमी गुजारे के लिए बस सूखा अनाज मांगते थे,
कभी बिरयानी या चिकन टिक्का की मांग नहीं की.. .😛☺️

8. समाज सेवक-:- रात को बच्चों को सुलाने का काम भी करते थे ..

😥टीचर ने पढा तो उनकी आँख भर आई और बोला सारी गलती जय और वीरू की ही थी....बेचारा गब्बरवा तो बहुत बड़ा समाज सेवक था........

07/09/2021

जो एक बार दिया दिल तो सोचना क्या है.
वो मुझसे जान भी मांगे तो कुछ मलाल नहीं

✍ Sachin Dwivedi

22/06/2021

ज़रूरतों के रिश्तेदार

बातें घुमा फिरा के, क्या कमाल पूंछते हैं,
फिर सारे दिली दिमागी, ख्याल पूछते हैं,
काम कुछ ना हो तो कभी बात न करें,
जरूरत जो आ पड़े तो, हालचाल पूछते हैं
✍सचिन द्विवेदी

27/03/2021

लब हंसने से बाज़ नहीं आते,
लगता है मैं फिर से रोने वाला हूं.
✍सचिन द्विवेदी

27/03/2021

रुबरु हैं मगर फिर भी हैं दूरियां,
मैं कहीं और हूं वो कहीं और है..
✍सचिन द्विवेदी

06/01/2021

इश़्क ग़र है गुनाह.... कर डाला,
हमने खुद को तबाह कर डाला,
अब तलक़ जो थी सिर्फ महबूबा,
हमने उससे निक़ाह कर डाला.
✍सचिन द्विवेदी

29/11/2020

😍😍😍

22/11/2020

दिल लगाने को दुनिया में तो हसीं बहोत हैं मगर,
ग़र मेरे ख़्वाब के जैसा कोई हो तो कोई बात बने ।
✍सचिन द्विवेदी

12/10/2020

मैं कैसे जिऊं तुझ बिन रांझे,
तू मुझको इतना बता कर जा,
मेहंदी बिंदी चूड़ी कंगन ,
सिंदूर मुझे तू अता कर जा,

दीवाली पर तू आता था,
और मेरी मांग सजाता था,
मैं कितना खुश हो जाती थी,
जब तू मुझे पास बुलाता था,

मैं सखियों संग जब जाती थी,
तेरे नाम से मुझे चिढ़ातीं थी,
मेरा दिल कितना खुश होता था,
मुझे तेरा कह के बुलातीं थी,

तू प्यार मेरा एकरार मेरा,
तू जान से मुझको प्यारा था,
क्यों सुनी नहीं कोई बात मेरी,
मैंने रो रो तुझे पुकारा था,

मेरा ईश भी तू मेरा मौला तू,
मुझे रब से भी तू प्यारा था,
क्यूँ मुझको तन्हा छोड़ गया,
क्या इतना साथ हमारा था.

तू मेरी जां तू मेरा जहां,
तुझको कैसे मैं भूल सकूं,
सावन आए हैं झूलों संग,
तुझ बिन कैसे मैं झूल सकूं,

मैं हार गयी तू जीत गया,
मुझे देकर अपनी प्रीत गया,
कैसे मैं कहूं राझें तुझ बिन,
पतझर सा सावन बीत गया.

जब घर पर कोई आता है,
कोई संदेशा लाता है,
तब मेरी सांस ठहरती है,
दम घुट कर के मर जाता है,

तेरे जाने का ग़म ना आने का ग़म,
मैं चुप चुप सब कुछ सहती हूं,
हर करवाचौथ पे आज भी मैं,
तुझे चांद में तकती रहती हूं,

वो मां भी अक्सर रोती है,
जिसने नौ माह संभाला था,
वो कैसे भला खुद को रोकें,
उसने तुझे कोख में पाला था,

तेरा भाई भी अब चुप रहता है,
मुझसे भी कुछ ना कहता है,
कसते हैं उसे ताने सारे,
वो चुप हो कर सब सहता है.

✍सचिन द्विवेदी

25/09/2020

तनख्वाह के सहारे जिंदा है सब बेचारे,
घुट घुट के जी रहे हैं तकदीर के ये मारे,
आएंगे अच्छे दिन भी वादा किया था उसने,
कई दिन गुजर गए हैं इस आस के सहारे,

बातें बड़ी-बड़ी थी, वादे बड़े बड़े थे,
ना अपना बनाया हमको ना वो हुए हमारे,
पाकर मुकाम अपना इतरा रहे बहोत हैं,
बातें कहो जो कुछ भी गुर्रा रहे बहोत हैं
सपने दिखाके हमको फिर ला दिया सड़क पर
जल्दी है आने वाले, ऐसे ही दिन तुम्हारे,

कुछ कर भी ले के आए,कुछ सर भी ले के आए,
जनता तड़प रही यहाँ, भूख प्यास के मारे,
न खाना दिला रहे हैं, न पानी दिला रहे हैं,
कुछ भी सवाल पूछो ,आंखें दिखा रहे हैं,
शहीद की एक विधवा रो-रो तड़प रही है,
ना धड़ मिला है उसका ना सर ये ला रहे हैं,

दफ़्तर के चक्करों में यहां उम्र बीत जाए,
हम अपने हक के खातिर चक्कर लगा रहे हैं,
विधवा शहीद की रोते बिलखते आती,
बाबू से कुछ जो पूछे , बस सर हिला रहे हैं,

कैसा ये न्याय है कि यहां लोग मर रहे हैं,
कुर्सी पे बैठकर सब मनमानी कर रहे हैं,
वो टोकता नहीं है इन्हें रोकता नहीं है,
कोई न सुन रहा है सब अपनी कर रहे हैं ,

तरक्की के नाम पर अब सब लूटा जा रहा है,
गांवों में पंक्तियों में सब पानी भर रहे हैं,
न खुश है यहां कोई ,न खुशियां किसी के घर में,
वो संसद में एक दूसरे पर इल्जाम धर रहे हैं,
कैसी बहस छिड़ी है, हिंदू है या है मुस्लिम,
यहां लोग सुबह शाम , बिन खाए मर रहे हैं ||

✍सचिन द्विवेदी

08/08/2020

उसकी बातें सब आला सब अव्वल हैं,
उसने जब से आंख मिलाना छोड़ा है.

✍सचिन द्विवेदी

08/08/2020

पायलों की जो छम हुई होगी,
धड़कनें दिल की कम हुई होगी,
याद मुझको भी करते होंगे वो,
आंख उनकी भी नम हुई होगी
✍सचिन द्विवेदी

01/08/2020

Aap sab ko tahe dil se is nacheez ki taraf se EID ki dili mubarak baad.

Khuda sab ko salamat rakhe AAMEEN.

16/07/2020

बिना तेरे मेरे ये दिन मेरी रातें बेगानी है,
मेरा कोई न दुनिया में मेरी बस तू कहानी है,
बदलना ना कहीं सब की तरह तू भी कभी मुझसे,
जो तू है पास मेरे दिन मेरी रातें सुहानी है,
तु मेरा ख्वाब मेरी जान मेरा है जहां सुन ले,
तू मेरी सांस मेरा सब तू मेरी जिंदगानी है ।

✍सचिन द्विवेदी

11/07/2020

हम किसी के ना हुए कोई हमारा न हुआ,
वो जो था पहला वही इश्क़ दुबारा न हुआ,

✍सचिन द्विवेदी

30/06/2020

Thanks for coming in my life as a wife. 😁

17/06/2020

दास्तान ए इश्क जो दुनिया को बता रखी है,
उसनें हकीकत सारी दुनिया से छुपा रखी है,
वो अपनी जीत समझता है इसे और हमने,
अपनी जां खु़द ही निशाने पे लगा रखी है.
✍सचिन द्विवेदी

11/06/2020

हल चाहिए जितने तुझे सारे सवाल कर,
दिल में न रख भरम, न कोई मलाल कर,
मैंने तेरे खयाल की इज़्जत रखी है तो,
मेरे खयाल का जरा तू भी खयाल कर.
✍सचिन द्विवेदी

24/05/2020

Eid mubarak.

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