JN Singh ke kalam se
Once a day passes away ,it can not be recovered so enjoy every moment of LIFE My page is for those who belong to BAISWAARAA. For those who like POEMS.
For those who like to read ATOBIGRAPHY . For those who say Raebareli APANA RAEBARELI
सनातन धर्म में कई देवी देवताओं से जुड़ी है हर महीने की पूर्णिमा तिथि। यह किसी न किसी उत्सव के रूप में मनाई जाती है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा इसी उत्सव क्रम में बसन्तोत्सव के रुप में मनाई जाती है। सतयुग में विष्णु भक्ति के प्रतिफल के रूप में मनाया जाने वाला यह त्योहार बहुत महत्वपूर्ण है। भक्त प्रह्लाद और होलिका की कहानी काम क्रोध मद लोभ और मोह रुपी दोषों को त्याग कर ईश्वर भक्ति को अपनाने की प्रेरणा देनेवाली है। यह त्योहार त्रेतायुग में राधाकृष्ण के पवित्र प्रेम के लिए भी बहुत महत्व रखता है।बृज और बरसाने की होली आप सब ने सुनी ही है और उसका आनन्द भी उठाया है। शिवपुराण में शिव जी की तपस्या भंग देवताओं के कहने पर कामदेव द्वारा अपने काम बाण चला कर की गई थी। शिव जी ने अपनी तीसरी आंख खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया था। देवताओ और पार्वती की मंशा पूर्ण हो गयी थी। पार्वती के साथ शिव शादी करने के लिए तैयार हो गए थे।शादी के बाद कामदेव पर शिव कृपा हुई और पुन: वह अपने रूप में आ गए। इस अवसर पर सभी देवताओं ने बहुत धूमधाम से उत्सव मनाया था वह दिन भी फाल्गुन मास की पूर्णिमा थी। यह त्योहार इस उपलक्ष में भी मनाया जाता है।फसलों की बालियां देखकर किसानों का आनन्द भी इसके मनाने में उल्लेख किया गया है।इनमें से कुछ भी मानकर हमें इस आनन्दोत्सव के हर पल का आनन्द उठाना ही हमारे पूर्वजों का मकसद रहा होगा। आओ हम भी इस आनन्दोत्सव को खुशियों के साथ मनाएं।आप को इस उत्सव की बहुत बहुत बधाई।
हमहू सीखा कखगघ
पाटी कै पूजा हमरिव भै
बप्पा बोले यह नाव करी
पढ़िकै आई जब अंग्रेजी
गिटपिट गिटपिट मा बात करी
हम एक कटोरा दही पिया
बस्ता औ पाटी पीठि धरेन
अपनन से बड़ेन के पैर छुआ
घर से स्कूल का निकरि पड़ेन
टिल्लू,गोबरे के साथ साथ
हम पहुँचेन जब स्कूल गेट
बिन चप्पल के, बिन जूता के
पहिलेहे दिन होइ गैन लेट
हम तीनौ बाहेर खड़े रहेन
स्वांचा जइबै प्रार्थना बादि
छुपिहिकै घुसि जैबे कक्षा मा
जब शुरू होई हाजिरी आदि
पर पकड़ि गैन घुसतै कक्षा
मुंशी जी मारिन दुई डंडा
तुम कैसे आयो दर्जा मा
घुटवाय के सिर जैसे पंडा
हम कहा पढ़ै का आयेन है
हमहू पढ़िबै क ख ग घ
उई कहिन कि नाम लिखाये बिन
घुसि आयो कक्षा मा सीधा
जाओ लिखवाओ नाम वाम
औ जमा करौ कुछ फीस वीस
कक्षा के भीतर फिरि आयो
तबहीं देखिबै तुम्हरिहिव खीस
हम गयेन नाम लिखावै जब
हेड मास्टर साहेब के आफिस
कुछ लरिका मुरगा बने दीख
हम तुरतै कीन पैर वापिस
हेड मास्टर साहेब की नजर तेज
उइ देखि लिहिन हमका लौटत
उइ डपटि कै बोलिन लौटि आओ
हम समझि लीन अब भै दुरगत
हम कहा कि पाटी बस्ता लै
आयेन है पढ़ै लिखै खातिर
मास्टर जी हमरौ नाम लिखौ
आयेन दफ्तर यहिके खातिर
उइ कहिन कि मुरगा बन पहिले
बिन पूंछे कैसे घुसि आयो
यह घर नाहीं स्कूल आय
कल अपने बप्पा संग आयो
यहि तरह से दुई डंडा खावा
औ मुरगा बनि कै डाट सहा
बिन पढ़े लिखे हम घर लौटेन
यह पहिले दिन का स्कूल रहा
घर आय बतावा अम्मा से
दुई डंडा पावा हाथन मा
मुंशी जी नाम तो नहीं लिखिन
मुरगा बनवायिन आफिस मा
औ कहिन साथ बप्पा अइहौ
तबहीं तुम्हार हम नाम लिखब
यह घर नाहीं स्कूल आय
जब फीस मिली तब पढ़ै द्याब
अम्मा हमका चिपकाय लिहिन
दुअनौ हाथन का चूमि कहिन
लाला हमार कुम्हिलाय गवा
द्याखौ इन हाथन कैसे मारिन
कल बप्पा ख्यातै न जइहैं
स्कूल मा मास्टर से मिलिहैं
उई मारिन कैसे ललुआ का
काहे मुरगा बनाइन पुंछिहैं
दहिजारु ये मुंशी कौनु आय
जो बिन बातन के पीटि दिहिसि
का बच्चा वच्चा नहिंन घरै
या मास्टरनी घर छोड़ि दिहिसि
क्वासै लागी उइ बप्पा का
आवै नसिकाटा ख्यातन से
ललुआ हमार मुरिझाय गवा
उनका ना फुरशत खेती से
बप्पा आए जब सांझ ढली
बांधिन बैलन का खूंटा मा
भैंसिन गाइन का पुचकारिन
भूसा डारिन सब चरहिन मा
फिर आये घर के भीतर जब
अम्मा धरि उनका डांटि दिहिन
बीबिहू औरु बच्चन का देखिहौ
या ख्यातै जोतिहौ रातौ दिन
ललुआ का भेज्यो स्कूलै
न नाम लिखायो फीस भरेव
मास्टरवा मारिसि,खेदि दिहिसि
बोलिसि बप्पा के संग आयेव
ललुआ गिटपिट गिटपिट तब बोली
जब जइहौ नाम लिखावै तुम
काल्हिन जैह्यो तुम स्कूलै
वरना न खैबै, पीबै हम
यहि तरह से नाम लिखावा गा
पाटी पर छुइहा चलै लागि
दुई दूना चार पढ़ै लागेन
क ख ग घ कै रटन लागि
फिर तो कखगघ एबीसीडी
हम पढ़ि डारेन सारे अक्षर
गिनती अद्धा ड्योढ़ा ढइया
बनि गयेन क्लास के मानीटर
हम सीखि लीन क ख ग घ
गिनती,अद्धा,पौना,ड्योढ़ा
बनि गैन मनीटर दर्जा मा
होइगा फिर तो सीना चौड़ा
पढ़वाई पहाड़ा साथिन से
औ गलत कहैं तो टोकि देई
अद्धा,पौना रटवावै मा
हम आपनी कसरि निकारि लेई
हम जेहि से बोली,खड़े होव
वह पहिले बहुतै सिटपिटाय
जब कही कि जोड़ घटाव करो
तब बगली झांकै , गड़बड़ाय
मुंशी जी लपकि लेय वहिका
बोलै खोलो आपनि गादी
इतने दिन से रटवाय रहेन
पर तुम डंडा के हौ आदी
सब साथी हमसे डरै लागि
हमरी हां मा हां करै लागि
हमरौ दबदबा दिखाय लाग
जब सारे पीछे फिरै लागि
कौनो लै आवै खीरा, ककड़ी
कौनो अमिया, सीकर लावै
इमली,बैरी, कैथा ,पेंहटी
सब बस्ता मा धरि कै लावै
हमहू चापी इन्टरवल मा
कुछ बांटी गांव के लरिकन मा
यहि तरह ते दल होइगा तैयार
हम नेता बनि बैठेन वहिमा
स्कूल रहै दुई कोस दूर
रस्ते मा ऊसर रहै बड़ा
सब रस्ते भरि खेलैं दौड़ैं
बिन बात करैं रगड़ा झगड़ा
बरसात मा ब्वादा से सनि कै
जब पंहुची गांव किनारे मा
बस्ता पाटी फेंकी बाहेर
तैरी कुछ देर तलैया मा
सावन भरि झूली खुब झूला
मारी प्यांगै आकाश छुअय
फिर भीगे भागे घर पहुँची
अजिया कै झिड़की रोज मिलय
जाड़े मा रस्ता भरि खांसी
औ नाक बहै तो पोंछि लेई
वई गन्दे हाथन बिना हिचक
गुल्लइया पट्टी खुब खाई
गरमी भरि भुलभुल पांव जरैं
ऊसर कै रेह जराय देय
रस्ता खोजी हम ख्यातन से
पैरन का ठूंठी छेदि देंय
मास्टर जी हमसे रहें खुशी
हम साफ करी सायकिल उनकी
उइ स्वांवय मेज मा पैर धरे
हम क्लास मा सुनी इमला गिनती
कक्षा पांच जो पास भयेन
तो बप्पा अम्मा से पूंछिन
या हाथ बंटाई खेती मा
या पढ़वाइहौ आगे पुरखिन
अम्मा बोली या पढ़ै जाइ
ललुआ हमार मास्टर बनिहै
बैलन के पीछे न हल रगरी
एम ए बीए सब कुछ पढ़िहै
दुई रूपया घर मा जब आयी
तो बड़े घरन जैसे हमहू सजिबै
बैठब कुर्सी मा रुवाब झारि
तुम्हरे खातिर स्वेटर बिनिबै
यहि तरह से पंचवा पास कीन्ह
दर्जा मा हम अव्वल आयेन
अम्मा कै छाती चौड़ी भै
बप्पा कम्पट बिस्कुट लायेन
गरमी कै छुट्टी बीति गई
तो बप्पा अम्मा से कहै लागि
पुरखिन ललुआ अब बहुत पढ़िसि
खेती करवावय साथ लागि
अम्मा फिरन्ट होइ गई बहुत
हर कै मुठिया तो न पकड़ी
हमरे तो फूटे रहै भाग
दुलहिन तो लैबै लिखी पढ़ी
ललुआ तो जइहै स्कूलै
तुम चाहे जितना उछरि लेव
खेती वेती तुमही द्याखौ
वहिका आगे तुम पढ़न देव
हमरी हसुली और कड़ा बेचि
तुम फीस भरव कापी लावो
नेकर बनियान न पहिनीं अब
कुर्ता सुथना अब सिलवावो
भुलभुलि मां जारिसि पांव बहुत
पनही जूता दिलवाय देव
पाटी वाला बस्ता अब न चलिहै
पीठी वाला तुम लाय देव
अम्मा के आगे बप्पा बकरी भे
औ मुंह दावे मिमिआय लागि
ह॔सुली औ कड़ा न ब्याचौ तुम
हम लइबै रुपय्या काढ़ि मांगि
जब तुम्हरी इ मंशा है बहुतै
की तुम यहि का मास्टर बनवइहौ
तौ हमरी का औकात भला
तुम से बिगारि का रहि सकिहौ
फिर नाम लिखा स्कूल गयेन
हर दरजा अव्वल पास कीन
छह सात और फिर आठ पढ़ा
नौवें मा नाम लिखाय दीन
बप्पा का बुलवाइन मास्टर जी
कहिन की लरिका तेज बहुत
यहिका साइंस दिवाय देव
यह पढ़ै मा आगे जाइ बहुत
बप्पा कहिन कि मुंशी जी
यहि का मास्टरी मिलै जहिसे
वह पढ़ाई हम का चाही
यहि का पढ़ाव सब कुछ वइसे
हाई स्कूल मा साइंस लीन
औ फस्र्ट डिवीजन पास भयेन
रातो दिन मेहनत से पढ़िकै
मेरिट मा जगह बनाय गयेन
इंटर मा एडमिशन की खातिर
बप्पा पिंसिपल से मिलै गये
मेरिट मा नाम हमार देखि
पिंसिपल जी बहुतै खुशी भये
ई नाम करी घर का तुम्हार
यहि का पढ़वायो एमए तक
मास्टरी तो पक्की होइ जाई
इम्तिहान दिलायो अफसरी तक
फिरि कागज लिखि कै दीन्हिन
चिन्ता न करेव किताबन कै
यह बाबू जी का देव जाय
भर्ती करि लीन बिन फीसै कै
फारम मिली वजीफा का
यहि पर्ची मा हम लिखि दीन्हा
स्कूल से सबै किताबन का
दै देय की सिफारिश करि दीन्हा
खेती के काम मा न झोंक्यो
बस एक बात अब तुमहू से
इंटर की कठिन पढ़ाई है
यह पढ़ि पाई तबही मन से
फिरि से जब क्लास मा फस्र्ट भयेन
तो सीना चौड़ा भा बप्पा का
दस बीस रूपया के पेडा
अम्मा चढवाइन मन्दिर मा
यहि तरह से इंटर पास कीन
तो आगे कै चिन्ता घेरि लिहिसि
अब तक की ठीक रही मेहनत
दुई साल वजीफा दिलवाइसि
अब पढ़ै का बाहर जाएक परी
यहिमा ढेरो रुपिया लागी
खेती से इतनी जुगत नाहि
बोलो पुरखिन कहिसे मागी
बप्पा कै चिन्ता सही रहै
अम्मा भी जिद मा अड़ी रहैं
ललुवा जरूर मास्टरी करी
उई बात बात पर यही कहैं
हसुली ,कंगन औ कमरबंद
सब साहूकार खरीदि लिहिसि
बदले मा बप्पा के हाथन मा
रूपिया हजार पकड़ाय दिहिसि
बप्पा मामा का बुलवाइन
उई सरकारी बस के कंडक्टर
परिवार मा पढ़े लिखे एकुइ
बप्पा छोड़िन सब कुछ उन पर
तुम गहना गुरिया काहे बेंच्यो
उइ बहुतै बिगड़े अम्मा का
हममा इतनी तो दम बनी हवै
आगे तक पढ़वाई ललुवा का
हमका लै पहुंचे लखनऊऐ
बस से उतरे बस अड्डा मा
उनकी पहिचान रहै सब से
राम जोहान किहिन सब का
भांजे का भर्ती करवावै खातिर
बतलाइन कि आएन लखनऊवै
कोऊ का परिचय होय अगर
एहिका एडमीशन वह करवावै
रघुराज कंडक्टर बोलि पड़े
हमरे भइया हैं प्रोफेसर
ड्यूटी से अबही आएन है
एडमीशन छोड़ि देव हम पर
रिक्शा बुलवावो बैठि लेव
हम सीधा पास चलब उनके
भांजे का तोहरे एडमीशन
कहिकै करवइबे उनसे
सभी साथियों, प्रियजनों और मंच के संचालकों को प्रणाम।
कुछ अस्वस्थता की वजह से आजकल मैं ज्यादा कुछ समय रचनाओं के लिए नहीं दे पा रहा हूं। कृपया अन्यथा न लें। स्वस्थ होते ही पुनः सक्रिय हो जाऊंगा। तब तक के लिए क्षमायाचना।
जे एन सिंह
दूर क्यों प्रियतम ?
तारों की बारात न आयी
चांद के भी पर गए हैं थम
दूर क्यों प्रियतम ?
मद्धिम मद्धिम पवन बह रही
स्नेहिल सी छुवन दे रही
घिरा तिमिर लालिमा खो गई
क्या अंधेरा अब न होगा कम
तारों की बारात न आयी
चांद के भी पर गए हैं थम
दूर क्यों प्रियतम ?
है हृदय बोझिल
समय रथ खींचते हैं अश्व दल
उदधि सा मन अशान्त हर पल
विरह क्षण कितने हैं निर्मम
तारों की बारात न आयी
चांद के भी पर गए हैं थम
दूर क्यों प्रियतम ?
कैसे आऊँ रास्ते अनजान से हैं
पथ में कांटों के उगे जंगल खड़े हैं
बादलों से झर रहे जल कण
सांझ सूनी में नहीं तुम हम
तारों की बारात न आयी
चांद के भी पर गए हैं थम
दूर क्यों प्रियतम ?
चांद तारों का मिलन होगा नहीं
चांदनी से कब नहायेगी जमीं
कैसे देखेगा कोई श्रृगार रजनी का
रूठना तेरा मनाने का मेरा उपक्रम
तारों की बारात न आयी
चांद के भी पर गए हैं थम
दूर क्यों प्रियतम ?
जे एन सिंह की कलम से
पुरुष मानसिकता की शिकार स्त्री
स्त्री, पूर्ण होने पर भी अपूर्ण कही गई है
पैदा होने से लेकर यीह लीला समाप्त होने तक
बेटी, पत्नी, मां, दादी, नानी हर रूप में अपूर्ण
मानसिकता और सहनशीलता के भंवर में उलझी
शील,हया,शर्म, लज्जा,क्षमा और सहनशक्ति
सब कुछ होते हुए भी अपूर्ण
तभी तो अबला कहकर उनका परिहास उड़ाया गया
घर की चहरदिवारी में कैद की गयी
गृहिणी और भोग्या समझी गयी
भ्रूण में ही मार दिया जाना भी एक अपूर्णता ही है
क्योंकि उन्हें बोझ समझा गया
पढ़ाई लिखाई में दोयम दर्जा दिया गया
घरेलू नौकर बनाकर सुविधाओं से वंचित किया गया
पत्नी रूप में पालक,पोषक,सृजक सब कुछ होते हुए भी तिरस्कृत
और प्रताड़ित की गई
आधी आबादी होकर भी सहभागिता में अधूरी रखी गई
उसके प्रेम को कमजोरी समझा गया
वासना के भूखे दरिन्दों ने उसे गाय की तरह खूंटे से बांध लिया
रिश्तों में पाक और पवित्र होकर भी धान सी
जड़ से उखाड़ कर रोप दी जाती हैं दूसरे खेत में
चावल की तरह पकने के लिए
यह अपूर्णता ही तो है कि वहां भी ताने और उलाहने पाती है
आंचल में अमृत रखकर भी आंखों में बस आंसू पाती है
हर दृष्टि से पूर्ण होने पर भी स्त्री अपूर्ण समझी जाती है
जे एन सिंह
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हमारा गौरव
पलटो पन्ने आदिम युग तक
खोजो वह इतिहास तुम्हारा अपना जो
हिमगिरि से उतरे धरती तक
दे गए ज्ञान भण्डार धरा पर फैला जो
मनु से लेकर मनु के बंसज तक
इस जीवन को, सृष्टि को लिपिबद्ध किया
जल,थल ,नभ से बढ़कर भूमंडल तक
पुरखों ने जो किया धरा,हम सबको दिया
मानव, मानवता के विकास की अमर कथा
लिख गए हमारे ॠषि , मुनि, ज्ञाता जो
ओ कालखण्ड के विविध रूप युग की गाथा
हम कौन, कहां से उतरे ,ये बतलाते जो
सतयुग ,द्वापर, त्रेता में जो ज्ञान बिखेरा था हमने
वह खोज और दर्शन ,इतिहास में दे दो तुम अपने
जे एन सिंह
ये संसद है
इसमें बैठे जो सांसद हैं
वो चुनकर आए हैं जनता से
ये सरकार चलाते हैं
या यूं कहिए अब ये ही हैं अपनी सरकार
जनता के बीच से आए हैं
जनता से चुनकर आए हैं
जनता की सरकार चलाने को
हम सब के प्रतिनिधि कहलाते हैं
या यूं कहिए अब ये ही हैं अपनी सरकार
ये कुछ भी करें,ये कुछ भी कहें सब जायज है
ये हित रक्षक, ये नीति नियन्ता जनता के
चुनकर आते ही ये भक्षक बन जाते हैं
ये खिसियाय तो खम्भा नोचैं,लड़ें तो जैसे कुकुर बिलार
लूटैं तो बड़े डकैत फेल
या यूं कहिए अब ये ही हैं अपनी सरकार
जे एन सिंह
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दलदलों में खो गया आधार मेरा
लूट कर मेरे घरौंदे
ले गए थे आततायी
किल्लतों की जिन्दगी
कीमती थी पाई पाई
भूख थी नासूर जैसी देश में
छप्परों की छांव में बहुसंख्य का होता बसेरा
दलदलों में खो गया आधार मेरा
बंस उजड़े थे हमारे
काटने को जोड़ने में
पैर में छाले पड़े थे
ईंट गारा खोजने में
बन सिपाही हम लड़े थे रात भर
तब उगा था सूर्य सुन्दर और फैला था उंजेरा
दलदलों में खो गया आधार मेरा
आज तुलना हम करें
उस बिताए काल की
भूल जाएं जो मिला था
ना तखत ना पालकी
हमने रोपे पौध ,आयी बल्लरी उनमें
अब नहीं दुनिया बुलाती देश को मेरे संपेरा
दलदलों में खो गया आधार मेरा
क्या किया इतने बरस
पूंछती नव पीढियां
नींव के पत्थर भुलाकर
गिन रहे हैं सीढियां
आज जो आकाश को हम छू रहे हैं
बलिदान है उन का जिन्हें हम कह रहे हैं सिरफिरा
दलदलों में खो गया आधार मेरा
जे एन सिंह
आप इन्स्टाग्राम में भी मेरे सम्पर्क में आ सकते हैं।आपका स्वागत है।
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सजे दीप घर घर ,
लतर जल रहीं हैं
अमावस की रात,
पर उंजेरा उंजेरा
मगर क्या है रोशन
अंतरतम हमारा
वहां तो अमावस
सा फैला अंधेरा
जहां देखते हैं
वहां तम ही तम है
है कुछ में ज्यादा
किसी में ये कम है
उसने तो सूरज व
चन्दा बनाया
सभी देख लें दूर से
मंजिलों को
अंधेरे में दीपों की
माला जलाकर
हमने कहा देख लें
अपने भीतर
तारों सी झिलमिल
जगमग दिवाली
घर घर को खुशियों से
भर देने वाली
आओ जलायें दिया
एक मिलकर
खुशियां मनाएं
धरा को
जगाकर
जे एन सिंह
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कभी दूध की मांग कर रहे
निर्धन बच्चे
मांड़ पिला कर
गये रिझाये
बची खुची रोटी
खा खा कर
लोगों ने परिवार बचाये
लड़ते रहे गरीबी से हम
कुतुबमीनार की ऊंचाई से
लड़ लड़ कर उसको
कमर बराबर
ले कर आये
जय जवान के
साथ साथ जब
जय किसान का नारा आया
खेतिहर को सम्मान मिला तो
आत्मनिर्भर
भारत कहलाया
अनपढ़ को शिक्षित कर हमने
साक्षरता के पौधे रोपे
आज विश्व में साख बढ़ी
यह सब है
उस लगन की कोंपे
छुआछूत से सदियों लड़कर
हार गये हम
अब भी बाकी ठसक बनी है
ऊंच-नीच के भेदभाव से
जाति जाति में
बंदरबांट की रार ठनी है
हिमगिरि के
शिखरों से लेकर
कन्याकुमारी के सागर तक
हिन्दुस्तान के
हम सब वासी भाई भाई
केवल हम हैं हिन्दू अब
राजनीति के लिए न बांटो
हमें जाति में
न भरमाओ
नहीं लड़ाओ
बड़े पुरोधा बनो
साथ में सब को जोड़ो
गले लगाओ
जे एन सिंह
एक नजर में मेरा सफर
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एक नजर इधर
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मेरी पहली कृति -- गीतांजलि
दूसरी कृति ------ कहानी संग्रह - बूंद बूंद टपकता पानी
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