Ambedkar Viewpoint
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#ਅੰਬੇਡਕਰ
हमारे मसीहा बाबा साहेब डॉ आंबेडकर की कुछ वस्तुएं।
😔 Miss you baba saheb
ਭਾਰਤ ਦੇ ਅੰਦਰ ਰਹਿ ਰਹੇ ਹਰ ਇਕ ਸਮੁੰਦਾਏ ਲਈ #ਜਾਤੀ_ਅਧਾਰਿਤ_ਗਿਣਤੀ ਜਰੂਰੀ ਹੈ,, ! ਖਾਸ ਕਰਕੇ OBC ਭਾਈਚਾਰੇ ਲਈ ...!
"ਅਗਿਆਨਤਾ ਹੀ ਸਾਡੇ ਦੁੱਖਾਂ ਦਾ ਮੂਲ ਕਾਰਨ ਹੈ ! " ਤਥਾਗਤ ਬੁੱਧ
#राष्ट्रपिता_जोतिबा_राव_फुले
इतिहास में 15 मार्च
आज के दिन यानी 15 मार्च 1934 को पंजाब के ख्वासपुरा गांव में बाबा साहेब अंबेडकर जी को फिर से जिंदा करने वाले साहेब श्री कांशीराम जी का जन्म हुआ था। बाबा साहेब के दबे कुचले लोगों के हाथों में सत्ता देने के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी नौकरी और गृहस्थी बसाने का सपना छोड़ दिया था।
साहब कांशीराम (15 मार्च 1934 – 9 अक्टूबर 2006) भारतीय राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे। उन्होंने भारतीय वर्ण व्यवस्था में बहुजनों के राजनीतिक एकीकरण तथा उत्थान के लिए कार्य किया। इसके अन्त में उन्होंने दलित शोषित संघर्ष समिति (डीएसएसएसएस), 1971 में अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदायों कर्मचारी महासंघ (बामसेफ) और 1984 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की स्थापना की।
कांशीराम साहब के जीवन की शुरुआत होती है जब उन्होंने पुणे में विस्फोटक अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला को ज्वाइन कर लिया। यह समय था जब उन्होंने पहली बार जातिगत भेदभाव का अनुभव किया। उन्होंने ऑफिस में देखा कि जो कर्मचारी डॉक्टर आंबेडकर का जन्मदिन मनाने के लिए छुट्टी लेते थे उनके साथ ऑफिस में भेदभाव किया जाता था। फिर यहां पर तथागत बुद्ध और बाबा साहब आम्बेडकर जी के जन्मदिन की छुट्टियों को समाप्त करके एक छुट्टी बालगंगाधर तिलक की जयंती की कर दी गई और एक छुट्टी दीवाली की और बढ़ा दी गई। यहां पर दीना भाना नाम का एक शख्स नौकरी करता था। भले ही वे चपरासी के पद पर था लेकिन जागरूक था। उसने इस जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई तो उसे नौकरी से निकाल दिया गया। दीना भाना जी का साथ देते समय उनके एक दोस्त डी.के खापर्डे ने साहब कांशीराम जी को बाबा साहब आम्बेडकर की एक पुस्तक "एनीहिलेशन ऑफ कास्ट" दी। साहब कांशीराम जी ने इसे बार बार पढ़ा और फिर उन्होंने फैसला लिया कि बाबा साहब की खाली हुई जगह को वे खुद भरेंगे। इस तरह वे अपनी नौकरी छोड़कर 1964 में एक सामाजिक कार्यकर्ता बन गए।
कांशीराम साहब ने शुरू में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) का समर्थन किया था लेकिन 1971 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ समझौते के नाम पर एक सीट लेकर और कांग्रेस को 520 सीटें देकर आरपीआई के नेताओं ने आम्बेडकरवाद के साथ खिलवाड़ किया। इस कारण उनका इस पार्टी से मोह भंग हो गया था। फिर साहब कांशीराम ने 1971 में अखिल भारतीय एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक कर्मचारी संघ की स्थापना की जो कि बाद में चलकर 1978 में BAMCEF बन गया था। BAMCEF एक ऐसा संगठन था जिसका उद्देश्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य वर्गों और अल्पसंख्यकों के शिक्षित सदस्यों को अम्बेडकरवादी सिद्धांतों का समर्थन करने के लिए राजी करना था। BAMCEF न तो एक राजनीतिक और न ही एक धार्मिक संस्था थी और इसका अपने उद्देश्य के लिए आंदोलन करने का भी कोई उद्देश्य नहीं था। इस संगठन ने दलित समाज के उस संपन्न तबके को इकठ्ठा करने का काम किया जो कि ज्यादातर शहरी क्षेत्रों, छोटे शहरों में रहता था और सरकारी नैकारियों में काम करता था, साथ ही अपने अछूत भाई बहनों से भी किसी तरह के संपर्क में नहीं था।
इसके बाद कांशीराम साहब ने 1981 में एक और सामाजिक संगठन बनाया, जिसे दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डीएसएसएसएस, या DS4) के नाम से जाना जाता है। उन्होंने दलित वोट को इकठ्ठा करने की कोशिश शुरू की और 1984 में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की स्थापना की। उन्होंने अपना पहला चुनाव 1984 में छत्तीसगढ़ की जांजगीर-चांपा सीट से लड़ा था। बीएसपी को उत्तर प्रदेश में सफलता मिली, शुरू में दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के बीच विभाजन को पाटने के लिए संघर्ष किया लेकिन बाद में बहन मायावती के नेतृत्व में इस खाई को पाटा गया।
सन 1982 में उन्होंने अपनी पुस्तक 'द चमचा युग' लिखी, जिसमें उन्होंने जगजीवन राम, रामविलास पासवान और रामदास अठावले जैसे दलित नेताओं का वर्णन करने के लिए "चमचा" शब्द का इस्तेमाल किया था। उन्होंने तर्क दिया कि दलितों को अन्य दलों के साथ काम करके अपनी विचारधारा से समझौता करने के बजाय अपने स्वयं समाज के विकास को बढ़ावा देने के लिए राजनीतिक रूप से काम करना चाहिए।
बीएसपी के गठन के बाद, साहब कांशीराम ने कहा कि उनकी 'बहुजन समाज पार्टी' पहला चुनाव हारने के लिए, दूसरा चुनाव नजर में आने के लिए और तीसरा चुनाव जीतने के लिए लड़ेगी। 1988 में उन्होंने अगामी प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह के खिलाफ इलाहाबाद सीट से चुनाव लड़ा और प्रभावशाली प्रदर्शन किया, लेकिन 70,000 वोटों से हार गए।
वह 1989 में पूर्वी दिल्ली (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से लोक सभा चुनाव लड़े और चौथे स्थान पर रहे। सन 1991 में, साहब कांशीराम ने इटावा से चुनाव लड़ने का फैसला किया। यहां से मुलायम सिंह द्वारा उन्हें समर्थन दिया गया और साहब कांशीराम ने अपने निकटतम भाजपा प्रतिद्वंद्वी को 20,000 मतों से हराया और पहली बार लोकसभा में प्रवेश किया। इसके बाद साहब कांशीराम ने 1996 में होशियारपुर से 11वीं लोकसभा का चुनाव जीता और दूसरी बार लोकसभा पहुंचे। अपने ख़राब स्वास्थ्य के कारण उन्होंने 2001 में सार्वजनिक रूप से बहन मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था।
सन 2002 में, कांशीराम साहब ने 14 अक्टूबर 2006 को बाबा साहब डॉक्टर आम्बेडकर के धर्म परिवर्तन की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर बौद्ध धम्म ग्रहण करने की अपनी मंशा की घोषणा की थी। कांशीराम साहब जी की मंशा थी कि उनके साथ उनके 5 करोड़ समर्थक भी इसी समय धर्म परिवर्तन करें। उनकी धर्म परिवर्तन की इस योजना का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह था कि उनके समर्थकों में केवल अछूत ही शामिल नहीं थे बल्कि विभिन्न जातियों के लोग भी शामिल थे, जो भारत में बौद्ध धम्म को व्यापक रूप से बढ़ा सकते थे। लेकिन, 2003 में उन्हें एक गम्भीर बीमारी ने जकड़ लिया और लगातार इलाज के बावजूद आखिर 9 अक्टूबर 2006 को उनका निधन हो गया और उनकी बौद्ध धम्म ग्रहण करने की मंशा अधूरी रह गयी।
सन 1982 में, साहब कांशीराम ने "द चमचा युग" (The Era of the Stooges) नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने दलित नेताओं के लिए चमचा (stooge) शब्द का इस्तेमाल किया था। उन्होंने कहा कि ये दलित लीडर केवल अपने निजी फायदे के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस जैसे दलों के साथ मिलकर राजनीति करते हैं।
उनकी पुस्तक बर्थ ऑफ़ BAMCEF भी प्रकाशित हुई थी। उनकी जीवनी, कांशीराम: दलितों के नेता, बद्री नारायण तिवारी द्वारा लिखी गई थी। कांशीराम के भाषणों को एक किताब के रूप में अनुज कुमार द्वारा संकलित किया गया है इसका नाम है; "बहुजन नायक कांशीराम के अविस्मरणीय भाषण"। इसके अलावा कांशीराम साहब के लेखन और भाषण को एस. एस. गौतम ने संकलित किया था जबकि साहब कांशीराम द्वारा लिखे गए सम्पादकीय बहुजन समाज पब्लिकेशन ने 1997 में प्रकाशित किये थे।
अंत में यह कहा जा सकता है कि भारत में अम्बेडकरबाद अगर जिन्दा है तो इसका पूरा श्रेय सिर्फ साहब कांशीराम को ही जाता है। उन्होंने बाबा साहब डाः आंबेडकर के परीनिर्वाण से बहुजन आन्दोलनों में पैदा हुए शून्य को ख़त्म करके बहुजन आन्दोलन को फिर से जीवित किया था।
आज बहुजन समाज मान्यवर साहब कांशीराम जी का 89वां जन्मदिन मना रहा है। सभी साथियों को बहुजन नायक साहब कांशीराम जी के जन्मदिन की बधाई हो |
बड़ोदा नरेश सयाजीराव गायकवाड जी के 158 वें जन्म जयंती के अवसर पर सभी को हार्दिक बधाईयां...
10 मार्च 1897 क्रांती ज्योती माता सावित्री बाई फुले परिनिर्वाण पर शत शत नमन🙏🌹
15 ਤੋਂ 17 ਤੱਕ ਮੁੱਖ ਮੰਗਾਂ ਨੂੰ ਲੈਕੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਜਾਉਣਗੇ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਮਾਨ ਦੀ ਕੋਠੀ ਮੂਹਰੇ ਬਿਗਲ❗
#ਫਰੀਦਕੋਟ
#ਪੇਂਡੂ_ਮਜ਼ਦੂਰ_ਯੂਨੀਅਨ ਵੱਲੋ ਪਿੰਡ ਰਮਾਣਾ ਅਜੀਤ, ਪਿੰਡ ਰਣ ਸਿੰਘ ਵਾਲਾ ,ਦਲ ਸਿੰਘ ਵਾਲਾ, ਕੋਠੇ ਥਰੋੜਾਵਾਲੇ, ਰੋੜੀ ਕਪੂਰਾ, ਨਵਾ ਰੋੜੀ ਕਪੂਰਾ, ਗੁਲਾਬ ਗੜ ਰੋੜੀ ਕਪੂਰਾ ਆਦਿ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਜਨਤਕ ਮੀਟਿੰਗ ਕੀਤੀਆਂ
#ਮੁੱਖ_ਮੰਤਰੀ_ਭਗਵੰਤ_ਮਾਨ_ਦੀ_ਕੋਠੀ_ਅੱਗੇ #ਦਿਨ_ਰਾਤ_ਦੇ_ਧਰਨੇ ਚ ਸ਼ਮੂਲੀਅਤ ਕਰਨ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ।
#ਮਜ਼ਦੂਰ #ਪੇਂਡੂਮਜ਼ਦੂਰਯੂਨੀਅਨ
Deshbani TV Ninderpal Machaki
मान्यवर कांशीराम साहब की विचारों से प्रभावित होकर हमारे लोगों ने वोट का उपयोग और प्रयोग गुलामी से मुक्ति पाने के लिए करने लगे तो ब्राह्मणों ने ईवीएम लाकर वोट चोरी करना शुरू कर दिया।
MANOJ SINGH DUHAN
ਪੂਨਾ ਪੈਕਟ ਤੋਂ ਬਾਅਦ 1935 ਦੇ ਗੌਰਮੇਂਟ ਆਫ਼ ਐਕਟ ਹੇਠ ਲੋਥੀਅਨ ਕਮੇਟੀ ਦੀ ਰਿਪੋਰਟ ਦੇ ਅਧਾਰ 'ਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਭ ਅਛੂਤ ਕਹੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਾਤਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਸੂਚੀ ਤਿਆਰ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ | ਇਸ ਸੂਚੀ ਵਿਚ ਦਰਜ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਜਾਤਾਂ ਨੂੰ ਸਮੁੱਚੇ ਤੌਰ 'ਤੇ ਅਨੁਸੂਚਿਤ ਜਾਤਾਂ ਜਾਂ ਸੰਵਿਧਾਨ ਵਿੱਚ ਇਕ ਵੱਖਰੀ ਸ਼ੈਡਿਊਲ ਦੇ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੀਆਂ ਜਾਤਾਂ ਨੂੰ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਉੱਚੇ ਨੀਵੇਂ ਦਰਜੇ ਤੋਂ ਸ਼ੈਡਿਊਲ ਕਾਸਟ ਜਾਂ ਅਨੁਸੂਚਿਤ ਜਾਤਾਂ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ,,,,,! ਇਹੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੰਵਿਧਾਨਿਕ ਨਾਮ ਹੈ ਜਿਸ ਦੀ ਸਲਾਹ ਬੰਬਈ ਹਾਈ ਕੋਰਟ ਵੱਲੋਂ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਹੈ ,,,,,,,!
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*ਸਵਰਗ ਨਰਕ* ਜਿਉਂਦਾ ਬੰਦਾ ਜਾ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ.. ਮਰਿਆ ਬੰਦਾ ਦੱਸ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ.. ਫੇਰ ਨਰਕ ਸਵਰਗ ਦੀ ਖੋਜ ਕਿਸ ਨੇ ਕੀਤੀ..!!�