The Faith Times
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ये वचन जरूर सुने जी। संत जी
Shah Satnam Ji Green S Welfare Force Wing
राहत सामग्री पहुंचाते हुए डेरा सच्चा सौदा के सेवादार। Saint ji
Mission Satyug
ਐਸਾ ਸਤਿਗੁਰ ਜੇ ਮਿਲੈ ਤਿਸਨੋ ਸਿਰੁ ਸਉਪੀਐ.....
सत्संग क्या होता है? Saint ji
हमारा भी कोई मालिक है - Saint Gurmeet Ram Rahim Singh Ji Insan
धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा
गतांक से आगे:
प्रेम शुद्ध हृदय का प्राकृतिक गुण है। प्रेम का कोई रंग, रूप या आकार नहीं है, जिससे उसे समझाया जा सके। योगी जन इसको परम आत्म भाव और ईश्वर भक्त, प्रेम के इस अक्षर को 'रब्ब' कहकर सत्कार करते हैं। प्रेम एक महान शक्ति है जिसे दो अवस्थाओं में स्वीकार किया गया है। पहली अवस्था में यह परम आनंद रूप मालिक के रूप में है, दूसरी दिलों के अंदर आकर्षण पाकर एक दूसरे को आपस में जोड़ती है। उच्च अवस्था में यह शक्ति दूसरों के हित के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने की तीव्र इच्छा पैदा करती है और एक दूसरे से मिलने के लिए अधिक से अधिक तड़प जागृत करती है। उदाहरण स्वरूप यही शक्ति एक माता को अपने बच्चे के लिए सब कुछ न्योछावर करने की ताकत देती है।
प्रेम के दो रूप है: एक बनावटी या मजाजी, जिसका सम्बन्ध शरीर व मन के साथ है तथा दूसरा प्राकृतिक या हकीकी जिसका सम्बन्ध रूह (आत्मा) के साथ है। मन की रूचि सुंदर वस्तु, गुण, कला, रूप,स्वाद आदि में है जिसमें शरीर की दस इन्द्रियां मन की सहायक हैं। कईं बार सुंदर न होते हुए भी सीरत, हृदय के गुण, स्वभाव की पवित्रता, कोमलता व भोलापन भी मन को खींच ले जाता है।
मजाजी प्रेम में अपनी इच्छाओं को पवित्र रखकर प्रेमी अपने महबूब को हमेशा खुश, हँसता खेलता व दुखों से रहित देखने के लिए बलिदान देने को तैयार रहता है। मन के अंदर किसी प्रकार की लालसा, विषय भावनाओं की रूचि के जागृत होने को प्रेम नहीं बल्कि इसे अखलाख से गिरा हुआ या चाल चलन की गिरावट कहा जाता है। मजाजी प्रेम मरने के बाद समाप्त हो जाता है और इंसान को ईश्वर से दूर करता है।
प्रेम की दूसरी सच्ची तथा पवित्र हालत 'इश्क़ हकीकी' या सच्चा प्रेम है जिसका सम्बन्ध ईश्वर से है। सच्चे प्रेम का मुख्य उद्देश्य आत्मा रुपी बूँद को मालिक रूपी समुद्र में मिलाना है अर्थात बिछड़ी हुई आत्मा को मालिक से जोड़ देना है। सच्चे प्रेम के रंग में रंगा हुआ प्रेमी हर इंसान अथवा हर जीव प्राणी के साथ सच्चे हृदय से प्यार करता है। वह अपने प्रीतम प्यारे के दर्शन दीदार के बिना दुनिया के किसी भी दूसरे पदार्थ में जरा भी रूचि नहीं लेता।
महात्मा हुसैनी मिसरी साहिब फरमाते हैं कि सहनशीलता सत्य प्रति सदा के संयोग के बिना मालिक के प्रेम को इंसान कभी भी प्राप्त नहीं कर सकता।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी फरमाते हैं
रे मन इह बिध योग कमाओ ।।
सिंगी साच अकपट कंठला धिआन बिभूत लगाओ ।।
to be continued...
"धन धन सतगुरू तेरा ही आसरा"
Breif about
Revered Saint Shah ‘Mastana’ alias Khema Mal, originally from Balochistan (now in Pakistan) founded ‘Dera Sacha Sauda’ on 29 April 1948. As per Dera literature, Khema Mal had extraordinary desperation for God since childhood. He was inspired from revered Guru ‘Nanak Dev’ quotes “Naam Khumari Nanka Chadi Rahe Din Raat”, i.e., beatitude of God’s name never ends. Accordingly, he approached several spiritual personalities for enlightenment. His search ended on revered Saint ‘Sawan Shah’ (third master of Radha Soami sect) and he left his home forever. Khema Mal got insight of God and achieved nirvana by practicing practical method of meditation taught by Saint Sawan Shah. After getting impressed with seraphic nature and devotion of Khemal Mal towards revered Saint Sawan Shah, latter offered him a new name ‘Shah Mastana’ and further ordered him to establish Dera Sacha Sauda in Sirsa of Haryana.
Before dying on 18th April 1960, last words of revered Saint Shah Mastana was, “In this life, I come to take a drive on earth as underprivileged saint, as per orders of Saint Sawan Shah, I wore mending clothes, walk alone, lived in hovel but after seven years I will reincarnate myself as third master of Dera, and will wear royal clothes, walk similar to cavalcade of army and will give a tough fight to God of demons”. Third master of Dera named revered Saint Gurmeet Ram Rahim Singh Insan is fulfilling all words of revered Saint Shah Mastana and is now the center of faith for disciples of Dera. In the meanwhile, from 1960 to 1990, revered Saint Shah Satnam Singh remained the second master of Dera.
Dera Sacha Sauda - Ideology based on the restrictions on alcoholism, non-vegetarianism and infidelity since its inception. But on April 29, 2007, restriction on caste and religion-based discrimination has been added in the list with a slogan ‘Confluence of all Religions’. However, Dera has launched more than 130 social reformation programs but selfless mega blood donation, tree plantation, cleanliness drives and rehabilitation programs in natural disasters got significant recognition.
शाही परिवार की तरफ से संदेश।
Saint Dr MSG Tips 1
यह एक सैंपल है, अधिक जानकारी के लिए विजेंदर बग्गा जी से संपर्क करें +918837629132
समय ऐसी चीज़ है जो हर जखम भर देता है लेकिन हकीकी इश्क़ का जख्म एक ऐसा घाव है, जो समय के साथ भरने की बजाय हरा होता रहता है। इश्क़ लगाने का दावा बहुत लोग करते हैं, लेकिन निभाने का मादा कोई कोई ही रखता है। अगस्त 2017 तक पूज्य गुरु जी से हकीकी इश्क़ लगाने का दावा बहुत लोगों ने किया, लेकिन कुछ मूर्ख ऐसे थे, जो धन राज जवानी सम्मान और अक्ल के अहंकार में चापलूसी को भी इश्क़ समझ बैठे। गुरु ने नज़दीक क्या आने दिया कि उसी नज़दीकी से गुरु के बराबर खुद की हस्ती बनाने लगे। पूज्य गुरु जी जेल गए और इश्क़ निभाने का दौर शुरू हुआ। गली गली घूमने ,नाचने, गाने, लिखने वाले, अलग अलग रचनाओं से लोगों के जख्मों को कुरेदकर इश्क़ की पराकष्ठा तक पहुँचने का दिखावा करने लगे और भक्तों के भीतर गुरु प्रेम को लेकर उमड़ती भावनाओं का इंटरनेट पर सौदा करने लगे। समय बीतता गया, कहाँ समय के साथ हकीकी इश्क़ ने जवान होना था लेकिन उसी इश्क़ के दिखावे की पहचान से वे हकीकी इश्क़ की परिभाषा में गंदगी के पुतलों (इंसानों) को परोसने लगे। जब जब उनके मुखोटे से किसी ने नकाब खींचा तो इश्क़ की दुहाई लेकर प्रियतम की जगह अपने ग्राहकों की अदालत में पेश होने लगे। ज्ञान के शब्द साज़ बाज़ों की चकाचौंध में महत्वहीन हो गए और गाने बजाने व सुनने वाले खुद को आशिक़ समझते हुए यह भूल गए कि
'कुछ खेल नहीं है इश्क़ की लाग
पानी न समझिये आग है आग'
इश्क़ का दिखावा करने वालों को जब आग से गुजरना होता है, तो वह ऐसे ही इंटरनेट के व्यापरियों के जरिये प्रियतम के दुःख को उसकी इच्छा का नाम देने लगते हैं और दुनिया में आशिक बने रहने के लिए अपने प्रियतम का सौदा करते रहते हैं। यूँ ही नहीं संतों ने लिख दिया
प्रेमी प्रेमी हर कोई कहंदा, बहुते प्रेमी गप्पी
प्रेमी टप्प पहाड़ जांदे, साथिन आड़ न जांदी टप्पी
सोच कर देखिये, आपके जीवन में इश्क़ की परिभाषा कौन तय करता है?
*सतगुर के प्रति कुछ कुछ बातें सहमत हों तो शेयर जरूर करें जी,व अपना जमीर जरूर जगाएं जी।*
आज जो लोग ये कहते हैं कि पिताजी मिशन पर खुद गए हैं और खुद ही आएंगे। *हम सब एक बार तेरावास में सतगुर के साथ बिताया वो लम्हा याद करें जिसमे ये कहते हुए पिता जी की आखों में आंसू आ गए थे कि "हमारे साथ साजिशें हो रही हैं,ऐसा नहीं है कि हम कुछ नहीं जानते, एक एक का पता है। हम आ ही संत मत में गए और संतो को पर्दा मंजूर होता है। अब हम कुछ नहीं बोलेंगे अब हमारे बच्चे बोलेंगे"।* पिता जी तो अपनी संगत पर इतना गर्व करते थे और हम बच्चे ये कहते हैं कि वो खुद गए हैं और खुद आएंगे। क्या यही कद्र की है हमने सतगुर की आँखों से निकले एक बेशकीमती आंसू की। बेशक हम साधारण से भी साधारण इंसान है लेकिन हम सबको वो हर संभव प्रयास करना चाहिए जिस से हमारे सतगुर पर लगे सभी झूठे इलज़ाम धुल सकें। और ये सब तभी संभव होगा जब हम सभी पिता जी के हक़ में आगे आने का प्रयास करेंगे। वरना हम सबकी आने वाली पीढियां हम सबको लाहनत ही डालेंगी कि जब आपको पता था कि आपके गुरु भगवान हैं, तो फिर भी आपने उनके हक़ में कोई कदम क्यों नहीं उठाया ? जब उनके हक में बोलने का समय था तब आप सब ये कह कर अपनी जिम्मेदारी से बच निकले कि वो खुद ही आएंगे। आप ने गुरु के शिष्य होते हुए अपने गुरु के हक में एक छोटी सी कोशिश क्यों नहीं की ? लेकिन तब हमारे पास कोई भी जवाब नहीं होगा और सिर झुका लेने के सिवा और कोई चारा भी नहीं होगा। इसलिए बिना देर किये आओ चलें एक कदम सतगुर की ओर।🙏🙏🙏🙏🙏🙏
#35
Dera Sacha Sauda - Ideology में गुरु प्रेम का अर्थ गुरु से निस्वार्थ प्रेम है, जिसमे शिष्य गुरु के संग अपने जीवन के क्षणों की कल्पना करता है और अन्तर्यामी गुरु उन कल्पनाओं को शिष्य के बिना कहे मूल रूप देता है। जिससे शिष्य में गुरु के प्रति विश्वास दृढ़ होता है।
यदि शिष्य गुरु प्रेम के मार्ग में किसी वस्तु, उपलब्धि या सामाजिक सम्मान की अपेक्षा करता है, तो उस प्रेम को स्वार्थी माना जाता है। परन्तु गुरु से प्रेम करने वाला व्यक्ति यदि अपनी जरूरत को प्रेम के आड़े नहीं आने देता, तो गुरु शिष्य के बिना कहे वह जरूरत पूरी करता रहता है। जिससे उस शिष्य को समाज विशेष सम्मान देने लगता है। ऐसे में शिष्य के लिये सबसे मुश्किल कार्य गुरु की निरंतर बरसती रहमत में, स्वयं के भीतर अहंकार को पनपने से रोकना होता है।
इसीलिए परम पूजनीय सन्त डॉ गुरमीत राम रहीम सिंह इन्सां जी गुरुओं के कथन को बताते हैं कि "जे तो प्रेम खेलन का चाओ सिर धर तली गली मेरी आओ"। अर्थात यदि ईश्वर के प्रेम को हासिल करना है तो अपने सर अर्थात अपनी पहचान अथवा हस्ती को कुरबान करने के लिए अपनी हथेली पर रखकर मेरे पास आओ ।
ज्ञात रहे कि इंसान का गुरु के संग से अमीर होने को उस इंसान के ईश्वर प्रेम की तुलना करना किसी भी मायने में सही नहीं है।
22/07/2021; 06:52 PM
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मंजिल मेरे कदमों से अभी दूर बहुत है मगर तसल्ली यह है की कदम मेरे साथ है💕 1lakh follow support me
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