Udaipur Lake City - Rajasthan

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28/06/2024

1875 में Bourne and Shepherd द्वारा जयपुर की मुख्य सड़क की खींची गई तस्वीर

#इतिहास

28/06/2024

*उदयपुर,मेवाड़ एवं आसपास के पिकनिक स्पाट*

*बरसात का मौसम, मानसून की बौछार एवं उदयपुर, मेवाड़ एवं आसपास के दर्शनीय धार्मिक, प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक पिकनिक स्थल( उदयपुर से लगभग दूरी के साथ)*

1: *छोटा मदार एवं बड़ा मदार तालाब*- उदयपुर ईसवाल रोड, 20 किमी
2: *थूर की पाल* - उदयपुर इसवाल रोड, 15 किमी
3: *कुण्डेश्वर महादेव*- उदयपुर इसवाल रोड, घसियार, 25 किमी
4: *घसियार*, श्रीनाथजी मंदिर, उदयपुर इसवाल रोड, 20 किमी
5: *भादवी गुडा, एनीकट*, उदयपुर गोगुन्दा रोड, 25 किमी ( शिवालिका)
6: *बडवासन माताजी*, इसवाल केलवाडा रोड,23 किमी
7: *गौतम आश्रम*, जर महादेव, इसवाल गोगुन्दा रोड, 23 किमी
8: *कठार नदी*, इसवाल केलवाडा रोड
9: *गणेश जी, गोगुन्दा*, 35 किमी
10: *रामेश्वर महादेव*, काछबा,गोगुन्दा ओगणा रोड, 40 किमी
11: *मायरा की गुफा* ( महाराणा प्रताप शरणस्थली) गोगुन्दा, 43 किमी
12: *कुकड़ेश्वर महादेव*, बेदला लखावली रोड, 16 किमी
13: *जरगा जी महादेव* ( नई व जूनी जरगा) सायरा
14: *वेरो का मठ* ( बनास नदी का उद्गम स्थल) सायरा, 75 किमी
15: *परशुराम महादेव*, केलवाडा व सादडी ( पाली) से
16 : *कुंभलगढ़ किला*, राजसमन्द, विश्व की दूसरी लम्बी दीवार
17: *कुंभलगढ़ अभयारण्य* सफारी
18: *राणकपुर जैन मंदिर*, पाली
19: *हल्दी घाटी*, महाराणा प्रताप अकबर युद्ध स्थल, उदयपुर केलवाडा रोड
20: *अलसीगढ*, उदयपुर झाडोल रोड
21: *साण्डोल माता की नाल*, उदयपुर झाडोल रोड
22: *उबेश्वर महादेव*, उदयपुर झाडोल रोड वाया उबेश्वर
23: *केलेश्वर महादेव*, उदयपुर झाडोल रोड वाया उबेश्वर
24: *नान्देश्वर महादेव*, उदयपुर झाडोल रोड
25: *तिलकेश्वर महादेव*
26: *करघर बावजी*
27: *बडबडेश्वर महादेव*, गोवर्धन विलास, उदयपुर
28: *गुप्तेश्वर महादेव*, बिलिया, उदयपुर
29: *सज्जन गढ किला*, ( मानसून पैलेस) उदयपुर
30: *जामेश्वर महादेव*, उदयपुर जगत रोड, 25 किमी
31: *बागदडा नेचर पार्क* ( क्रोक्रोडाइल पार्क), उदयपुर झामरकोटडा रोड, 22 किमी
32: *जामरी डेम*, 30 किमी, उदयपुर जगत रोड
33: *जगत माता मंदिर*, उदयपुर जगत रोड
34: *ईडाणा माताजी*
35: *अमरख जी महादेव*, उदयपुर राजसमन्द रोड
36: *एकलिंग महादेव*, उदयपुर राजसमन्द रोड
37: *सहस्त्र बाहु मंदिर*, एकलिंग जी, उदयपुर राजसमन्द रोड
38: *चीरवा घाटा, फूलों की घाटी*
उदयपुर राजसमन्द रोड
39: *पुरोहितों का तालाब*, अम्बेरी,
उदयपुर राजसमन्द रोड
40: *पातालेश्वर महादेव*, बडगांव, उदयपुर
41: *गणेश टेकरी* ( विश्वास स्वरूपम), विश्व की सबसे उंची शिव मूर्ति, नाथद्वारा
42: *बप्पा रावल*, एकलिंग जी
43: *फरारा महादेव*, राजसमन्द
44: *राजसमन्द झील, द्वारकाधीश मंदिर*, कांकरोली, 65 किमी
45: *बुझ का नाका डेम*, सेमटाल, गोगुन्दा, 42 किमी
46: *सुखेर का नाका डेम*, गोगुन्दा झाडोल रोड
47: *टीडी डेम*, उदयपुर अहमदाबाद रोड
48: *चांदनी गाँव*, उदयपुर अहमदाबाद रोड
49: *बाघेरी का नाका*, उदयपुर केलवाडा रोड
50: *जयसमंद झील*, ( विश्व प्रसिद्ध कृत्रिम मीठे पानी की झील), उदयपुर बासवांडा रोड, 55 किमी
51: *जावर माता*
52: *माही डेम*, बांसवाड़ा
53: *देव सोमेश्वर जी*, डूंगरपुर
54: *त्रिपुरा सुंदरी माताजी*, बांसवाड़ा
55: *बेणेश्वर धाम*, साबला,( त्रिवेणी संगम)उदयपुर बांसवाड़ा रोड
56: *चारभुजा जी*, रोकडिया हनुमान जी, लक्ष्मण झूला, सेवन्त्री
57:*राम कुण्डा महादेव* ,ओगणा, गोगुन्दा ओगणा रोड, 85 किमी
58: *ओगणा डेम*, ओगणा, 80 किमी
59:*नीलिया महादेव* , बेगू ( चित्तौड़ कोटा रोड)
60:*जोगनिया माताजी* ( चित्तौड़ कोटा रोड )
61:*मैनाल झरना*( चित्तौड़ कोटा रोड )
62:*बस्सी अभयारण्य* (चित्तौड़ कोटा रोड )
63:*फुलवारी की नाल* ( पानरवा, कोटडा)
64:*कमलनाथ महादेव*, झाडोल, झाडोल सोम रोड, 90 किमी, तीन चार किमी पैदल
65: *झरिया महादेव*, चित्तौड़
66: *हरनी महादेव*, भीलवाड़ा
67: *बिसलपुर डेम*, देवली, टोंक, 300 किमी
68: *भंवर माताजी*, छोटी सादडी, 120 किमी
69: *नागफनी पार्श्वनाथ*, बिछीवाडा, उदयपुर अहमदाबाद रोड
70: *केसरिया जी पार्श्वनाथ मंदिर* उदयपुर अहमदाबाद रोड
71: *बुझेश्वर महादेव*, पलोदडा, देवपुरा
72: *सुरजकुण्ड धाम*, कुंभलगढ़, मजेरा से पांच किमी पैदल, ( कुण्ड की गहराई अज्ञात)
73: *गौरी धाम*, बाघाना,देवगढ़, राजसमन्द, सात लेवल झरना, दो किमी पैदल
74: *गोवटा डेम*, भीलवाड़ा
75: *मूलेश्वर महादेव*, शिपुर, सलुम्बर, 62 किमी
76: *सीता माता अभयारण्य*
77: *जाखम डेम*
78: *भीलबेरी का झरना*, 182 फीट उंचा, ( राजस्थान का दूध सागर) कालीघाटी,टाडगढ अभयारण्य, कामलीघाट से सोजत रोड, चार किमी पैदल
79: *ठण्डी बेरी डेम*, घाणेराव, पाली
80: *जंवाइ डेम*, पाली
81: *रोयडा भैरुजी*, कुंभलगढ़ रोड
82: *गोरम घाट*, कामलीघाट
83: *धनोप माताजी*, भीलवाड़ा
84: *शनि महाराज*
85: *आवरी माताजी*
86: *सांवलिया जी धाम*
87: *मातृकुंडिया*
88: *गौतमेश्वर महादेव*, प्रतापगढ
89: *सुखानंद महादेव*, कनेरा घाटा, निम्बाहेड़ा
90: *चित्तौड़ गढ किला*, विजय स्तम्भ
91: *माउंट आबू*, गुरु शिखर, देलवाडा जैन मंदिर, सन सेट पांइट,
92: *गब्बर माताजी*
93: *अम्बाजी*, गुजरात
94: *पावापुरी*, जैन तीर्थ, सिरोही पालनपुर रोड
95: *सुंधा माताजी*, जालोर, ( राजस्थान का पहला रोपवे)
96: *रायता हिल्स*, उदयपुर उबेश्वर रोड
97: *महाराणा प्रताप राजतिलक स्थल*, गोगुन्दा, महादेव जी की बावड़ी, 35 किमी, उदयपुर जोधपुर रोड
98: चावण्ड, *महाराणा प्रताप की राजधानी*, मृत्यु स्थल
99: दिवेर, देवगढ़, *महाराणा प्रताप एवं अकबर की युद्ध स्थली*, मेवाड़ का मेराथन
100: *केरेश्वर महादेव*, लुनदा,कानोड
101: *गुणेेश्वर महादेव*, केवड़ा की नाल, उदयपुर बांसवाड़ा रोड, 20 किमी
102: *कमलेश्वर महादेव* अरनोद सालमगढ़ रोड, जिला प्रतापगढ़, प्रतापगढ़ से 40 किमी
103: *गेपरनाथ महादेव*, कोटा
104: *आपणो उदयपुर*, फतह सागर, पिछोला, उदय सागर, सहेलियों की बाड़ी, जलबुर्ज, दूध तलाई, सिटी पैलेस, जगदीश मंदिर, बायोलॉजिकल पार्क, गुलाब बाग, बर्ड पार्क, टाय ट्रेन, स्वरुप सागर, बड़ी तालाब, शिल्प ग्राम इत्यादि
105: और भी बहुत कुछ...............

28/06/2024

जागरूकता सन्देश-

पति पत्नी के बीच एक भरोसे का काम करता है संभोग, लेकिन सेक्स कब आपके पति का से आप का विश्वास हिला दे ये कोई नहीं जानता,

2 भाइयों में मैं अकेली थी पापा मेरे काफी रसूख परिवार से थे, भगवान की दया हमारे पास हर वो चीज थी, जिसके लिए लोग सपना देखते हैं

12 पास करने के बाद मुझे मुझे कॉलेज में एडमिशन दिलाया गया और मैं कॉलेज जाना शुरू कर दी कॉलेज में ही मुझे अमित मिले मैं लाइन में लगी थी फार्म जमा करने के लिए और पीछे से अमित आते हैं और बोलते हैं इस तरह धूप में खड़ी रहेगी तो बेहोश होकर गिर जाएगी आ चल में तेरा फॉर्म जमा कर आता हूं।

अमित के साथ सीधे रजिस्टार ऑफिस में घुस गई और 2 मिनट के अंदर में फॉर्म जमा कर दिया अमित से पहली मुलाकात थी इतनी अजीब हुई थी कि मुझे मौका ही नहीं मिला कि उन्हें शुक्रिया कहूं या उनका नाम पूछो

और ना ही अमित ने इन चीजों में कोई रुचि दिखाई उन्होंने मेरा काम कराया और कहां गायब हो गए मुझे पता भी नहींचला

कॉलेज शुरू होने के 3 महीने बाद अमित मुझे फिर से दिखाई दिए और मैं जब उन्हें देखा तो तुरंत पहचान गई लेकिन उन्होंने तो मुझे पहचान भी नहीं बाद में पता चला कि यह मुझे एक साल सीनियर है मैं मौके को हाथ से छोड़कर जाने देना नहीं चाहती थी और मैं तुरंत अमित के पास पहुंचे और उन्हें शुक्रिया कहा

बाद में पता चला की अमित के पापा और मेरे पापा काफी घनिष्ठ दोस्त हैं उसके बाद हम दोनों के बीच में भी दोस्ती काफी अच्छी हो गई अमित का मेरे घर आना जाना हो गया और मन ही मन में अमित को पसंद करने लगी थी

इसी तरह हमारी दोस्ती को 5 साल हो गए थे और 5 साल में कब अमित और हम प्यार में फंस गए पता ही नहीं चला ना कभी आज तक अमित ने मुझे अपने प्यार का इजहार किया ना मैं अमित से कभी अपने प्यार का इजहार किया पर हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक दूसरे से बहुत मोहब्बत करते हैं

अमित की नौकरी मुझे 1 साल पहले लग गई और 1 साल बाद मेरी भी नौकरी लग गई उसके बाद क्या हुआ कि हम और अमित दोनों एक ही शहर में पोस्ट ले लेते हैं
जिस तरह मेरे पापा काफी रसूखदार परिवार से थे उसी तरह अमित के पापा भी काफी बड़े परिवार से थे और समाज में अच्छी हैसियत रखते थे

और ऊपर से सोने पर सुहागा मेरे पापा और अमित के पापा की 15 साल पुरानी दोस्ती भी थी

चंडीगढ़ में साथ काम करते-करते हम दोनों का एक दूसरे के फ्लैट पर आना-जाना बढ़ गया मैं हर वक्त अमित के करीब आना चाहती थी क्योंकि मैं उनसे बेइंतहा प्यार करती थी पर वह हर बार मुझे दूर करते थे और बोलते थे

देख किट्टू एक दिन तू यह करना ही है तो इंतजार करते हैं ना शादी करते हैं फिर करेंगे और मैं उनके ऊपर जोर-जोर से हंस दिया करती थी

खैर हम दोनों अपने लाइफ में काफी अच्छे से सेटल थे अब मेरे घर पर शादी की बात चलना शुरू हुई थी मैंने मौका ना गवाते हुए तुरंत ही अमित के बारे में अपने पापा को बताया पापा ने मुझे कुछ बोला नहीं और चुपचाप वहां से चले गए

मैं अंदर से बहुत खुश थी कि चलो पापा समझते हैं मुझे लेकिन तभी शाम को मेरे बड़े भैया आते हैं और मुझे जोर से एक थप्पड़ मारते हैं और बोलते हैं यही सब करने के लिए तुझे बाहर भेजा गया था

मैं बोलता हूं मैं क्या गलत किया भैया उन्होंने बोला अगर प्यार करना भी था तो किसी अपने बराबर के लोगों के साथ करती

मैंने बोला मैं 6 साल से अमित को जान रही हूं और 3 साल से प्यार कर रही हूं क्या इतना समय कम होता है किसी को जानने के लिए इस पर भैया ने मुझे कुछ बोला नहीं और बोला कि तेरी शादी उससे नहीं हो सकती है और भूल जाओ उसे

मैं अमित को यह बात बताई तो अमित ने बोला कोई बात नहीं है तू टेंशन ना ले मैं हैंडल करता हूं

अमित ने घर पर आकर के अपने पापा से यह बात बोली कि मैं किट्टू से प्यार करता हूं और मैं उससे शादी करना चाहता हूं उसके पापा काफी ज्यादा खुश थे और वह अगले ही दिन मेरे घर आते हैं

और बहुत गर्म जोशी से पापा से मिलते हैं पर मेरे पापा का व्यवहार काफी ठंडा रहता है

उन्होंने अपनी बात मेरे पापा के सामने रखी की अपनी दोस्ती को रिश्ते में बदलते हैं और किट्टू और अमित की शादी करते हैं

मेरे पापा उन्हें कुछ बोलते नहीं है पर हाथ जोड़ते हैं और बोलते हैं ऐसा संभव नहीं है

इसके बाद अमित के पापा कुछ भी नहीं बोलते और सीधा वहां से उठकर वापस चले जाते हैं

घर पर बहुत बार बोलने के बाद भी मेरे पापा और मेरे भाई मेरी शादी के लिए राशि नहीं हुए काफी समय इंतजार करने के बाद मुझे भी यह लगने लगा कि शायद मैंने कुछ गलत किया है क्योंकि मेरा परिवार कभी भी मेरे किसी डिसीजन के खिलाफ नहीं जाता था फिर इसी के खिलाफ क्यों

फिर बाद में मुझे पता चला कि हमारी शादी न होने का सबसे बड़ा कारण है हमारी जात का एक न होना हम दोनों ही जनरल केटेगरी से थे पर फिर भी मैं उच्च कूल की ब्राह्मण थी और वह एक वैश्य था

फिर पापा ने अपने ही हैसियत के बराबर के एक लड़के से मेरी शादी कराई रसूखदार परिवार था मेरे शहर से तकरीबन 100 किलोमीटर दूर काफी बड़ी कोठी और सबसे बड़ीबात इस बार लड़का अपनी जात का था

शादी की बात फिक्स होते ही सबसे पहले मेरे पापा आते हैं और मुझे बोलते हैं देखा कि तू मैं एक ऐसा लड़का तेरे लिए ढूंढा है जिसके घर में शराब सिगरेट तो दूर कोई सुपारी भी नहीं खाता

मैंने अपने पापा से पूछा आपको कैसे पता चला पापा ने बोला उनके घर में एक भी पान का पत्ता या शराब जैसी कोई चीज नहीं दिखाई थी अगल-बगल से भी पता लगाया तो किसी ने भी नहीं बोला कि यह लोग कुछ ऐसा काम करते हैं

मेरी शादी होती है काफी धूमधाम से काफी ज्यादा दहेज दिया जाता है सिर्फ इसलिए कि लड़का अपनी जात का है और काफी रसूखदार परिवार से है

सुहागरात की सेज पर में बैठी रहती हूं और मेरे पति कमरे में आने में काफी देरी करते हैं

लगभग रात को 1:00 बजे आते हैं और वह दारू के नशे में रहते हैं और मुझे बोलते हैं आई एम सॉरी दोस्तों ने जबरदस्ती पिला दी क्योंकि आज मेरी शादी है और मैं उन्हें मना नहीं कर सकता

मैंने कुछ बोला नहीं और दूसरी तरफ मुंह करके सो गई और दूसरी तरफ मुंह करके वह भी सो गए पर मेरे मन में ही यह सवाल आया कि पापा ने तो कहा था कि लड़का और उसका पूरा परिवार शराब तो छोड़ो सुपारी भी नहीं खाता इस बात का क्या

अगले दिन सुबह सब कुछ सही रहता है घर में सारी रस्म की जाती है और रात का समय होता है मैं वापस अपने कमरे में जाती हूं

जब मैं अपने पति को फोन करती हूं तो वह मुझे बोलना है कि तुम खाना खाकर सो जाओ मुझे थोड़ा समय लगेगा
मैंने बोला कोई बात नहीं है आपको जितना भी समय लगे आप लगाइए मैं आपका इंतजार करूंगी

इस बार वह रात को 3:00 बजे आए और पूरे तरीके से नशे में थे

मेरी सब्र का बांध टूट गया और मैं तुरंत बोला आप तो शराब नहीं पीते ना तो फिर रोज-रोज शराब पी के कैसे आतेहैं
वह हंस के मुझे बोलते हैं चल सो जा पगली मुझसे सवाल जवाब ना कर

मैंने बोला मेरा हक बनता है मैं आपकी पत्नी हूं
और वह एक हवन की तरह मेरे ऊपर झापड़ पड़ते हैं और मेरे साथ संभोग करना शुरू करते हैं और बोलते हैं पत्नी है तो पत्नी धर्म निभा चल मुझे खुश कर

वह संभोग जो एक पति-पत्नी के लिए उनके विश्वास की कड़ी रहता है मेरे लिए मेरी सुहागरात के दिन ही डर का कारण बन गया

मैं यह बात किसी से भी नहीं कह सकती थी क्योंकि मेरे दोनों भाइयों की शादी नहीं हुई थी और पापा से तो बोलने का सवाल ही नहीं होता
जब मैं यह बात अपनी मां को बताई तो मां ने बोला यह तो हमेशा से होता आया है तुम उसकी पत्नी हो तुम नहीं उसके साथ यह करोगी तो कौन करेगा कोशिश करो बातों को भूलने की

उसे दिन के बाद से मैं हर रोज रात में दर में सोती हूं मुझे नहीं पता होता कि मेरे साथ संभोग किया जाएगा या मेरा बलात्कार होगा वह भी मेरे पति के द्वारा

मैं उसे समाज की हिस्सा हूं जहां पर यदि मैं किसी को 5-7 साल से जान रही हूं तो वह मेरे लिए अजनबी है
मेरी उससे शादी नहीं कराई जाएगी पर वही मेरे पिता और मेरे भाई मुझे किसी अनजान के बिस्तर पर फेंक देते हैं ताकि वह नशे में आकर के मेरा बलात्कार कर सके

मैं निशब्द हूं समय रहते यदि मैं अपने प्यार के लिए लड़ाई की होती तो आज मेरी यह स्थिति ना होती

और मैं प्रत्येक मां-बाप से यह बोलना चाहूंगी की हम बेटियां हैं हमें ऐसे संस्कार दिए जाते हैं कि हम ज्यादा खुलकर आपके सामने नहीं बोल सकते पर हमारे भविष्य का निर्णय लेना आपके हाथ मेंहै

यदि आपकी बेटी को किसी से प्यार है और वह काफी लंबे समय से इस घोर कलयुग में उसके साथ है उसे जानरहा है
तो जात-पात का चक्कर छोड़ पैसे का चक्कर छोड़ उसे उसके साथ जिंदगी बिताने दीजिए

तभी सही मायने में आप एक अच्छे मां-बाप कहलाएंगे क्योंकि आपकी खुशी आपके बच्चों से है ना कि इस समाज से जो की जात की वजह से आपको और आपके परिवार का आकलन करता है, फिर भी इस कहानी पर सन्देह है तो आज कल जितने तलाक के केस आ रहे है उन्हें समझिए, वक़्त के साथ सोच भी बदलने की जरूरत है ।

28/06/2024

गुर्जराधिपति क्षत्रिय सम्राट #नागभट्ट (805-833), अपने पिता #वत्सराज से गद्दी प्राप्त कर गुर्जर-प्रतिहार राजपूत राजवंश के चौथे राजा बने। उनकी माता का नाम सुन्दरीदेवी था। नागभट्ट द्वितीय को परमभट्टारक, महाराजाधिराज और कन्नौज विजय के बाद 'परमेश्वर' की उपाधि दी गई थी।भारतीय इतिहास में "गुर्जर-प्रतिहार" वंश का महत्वपूर्ण स्थान है, इन प्रतिहार वंश के क्षत्रिय (राजपूत) बहुत कुशन प्रशासक थे, इन्होंने गुर्जर क्षेत्र पर विजय प्राप्त किया था, इस विजय के पश्चात इन्हें गुर्जर प्रदेश विजेता अर्थात गुर्जराधिपति उपाधि मिला ! मध्यकाल से पहले इन्होंने 500 वर्ष तक अरबी आक्रमणकारियों का सामना किया वह, समय सर्वाधिक प्रसिद्ध गुर्जर प्रतिहार राजपूत वंश ही था !!प्रतिहार वंश' को #गुर्जर_प्रतिहार वंश (छठी शताब्दी से 1036 ई.) इसलिए कहा गया, क्योंकि प्रतिहार राजपूतो ने गुर्जर क्षेत्र पर विजय प्राप्त किया था, गुजरात व दक्षिण-पश्चिम राजस्थान के क्षेत्र को गुर्जर क्षेत्र कहा जाता था। प्रतिहारों के अभिलेखों में उन्हें श्रीराम के अनुज लक्ष्मण का वंशज बताया गया है, जो श्रीराम के लिए प्रतिहार (द्वारपाल) का कार्य करता था। कन्नड़ कवि 'पम्प' ने महिपाल को 'गुर्जर क्षेत्र विजेता'' कहा है। 'स्मिथ' ह्वेनसांग के वर्णन के आधार पर उनका मूल स्थान आबू पर्वत के उत्तर-पश्चिम में स्थित भीनमल को मानते हैं। कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार उनका मूल स्थान अवन्ति था।

28/06/2024

सन 1757
तुर्क लुटेरा अहमद शाह अब्दाली लूटपाट करता पंजाब में घुसा। आम बाजारों को लूटना, सामान्य जन का सामूहिक कत्लेआम, स्त्रियों बच्चों को गुलाम बनाना तो सामान्य बात थी, पर इसके अतिरिक्त एक और काम हुआ। अमृतसर स्वर्ण मंदिर को अपवित्र कर दिया गया। तालाब में गाय काट कर डाली गई, और मन्दिर पर अब्दाली का कब्जा हो गया। अब्दाली लौटा तो अपने बेटे को पंजाब का सूबेदार बना गया।
तथाकथित महान सिख साम्राज्य के पास इतना बल नहीं था कि वे अपने स्वर्ण मंदिर को मुक्त करा सकें। ऐसे विकट समय मे समूचे भारतवर्ष में एक ही व्यक्ति था, जिसपर उनकी उम्मीद टिक गई। और फिर मदद के लिए एक करुण चिट्ठी पहुँची पुणे। मराठा साम्राज्य के तात्कालिक पेशवा बालाजी बाजीराव के पास...
वे शिवाजी के सैनिक थे, हिंदुत्व के लिए अपना सबकुछ बलिदान कर देने वाले योद्धा! महान पेशवा बाजीराव बल्लाळ की महान शौर्य परम्परा के वाहक! वे भला कैसे न आगे आते?
तो पेशवा ने आदेशित किया अपने छोटे भाई, सेनापति पण्डित रघुनाथ राव राघोबा को। रघुनाथ राव के लिए यह सत्ता का कार्य नहीं, धर्म का कार्य था। वे अपनी सेना के साथ पहुँचे सरहिंद, और एक झटके के साथ समूचा पंजाब मुगलों और अफगानों के अत्याचार से मुक्त हो गया।
स्वर्ण मंदिर पुनः पवित्र हुआ। वहाँ की पवित्र पूजा परम्परा पुनः स्थापित हुई। धर्म का ध्वज पुनः लहराने लगा।
पर रुकिये। क्या कथा यहीं पूर्ण होती है? नहीं। कथा तो अब प्रारम्भ होती है। सन 1761 में अहमद शाह अब्दाली पुनः लौटा। पानीपत के मैदान में वही राघोबा भारत का ध्वज लिए अब्दाली का सामना करने के लिए खड़े थे। देश की अधिकांश हिन्दू रियासतें अपनी सेना लेकर उनके साथ खड़ी थीं। पर सिक्ख? नहीं। वे नहीं आये। यहाँ तक कि राघोबा की सेना के भोजन के लिए अन्न देने तक से मना कर दिया।
युद्ध मे मराठों की पराजय हुई। सदाशिव राव, विश्वास राव और असंख्य मराठा सरदारों को वीरगति प्राप्त हुई। उधर पुत्र और भाई की मृत्यु से टूट गए पेशवा बालाजी की भी मृत्यु हो गयी। कहते हैं, तब समूचे महाराष्ट्र में एक भी घर ऐसा नहीं था जिसके एक दो सदस्य वीरगति न प्राप्त किये हों। अब्दाली की सेना में भी केवल एक चौथाई सैनिक बचे थे।
रुकिये तो। पानीपत युद्ध जीतने के बाद अपनी बची खुची सेना और हजारों भारतीय स्त्रियों बच्चों को गुलाम बना कर लौटता अब्दाली उसी पंजाब के रास्ते से गया। किसी ने उस लुटेरे के ऊपर एक पत्थर तक नहीं फेंका जी। वापस पहुँच कर अब्दाली ने 727 गांवों की जागीरदारी दी, जिससे पटियाला राज्य की स्थापना हुई।
पर क्या अब्दाली रुका? नहीं दोस्त। वह एक साल बाद ही वापस लौटा और सबसे पहले बारूद से स्वर्ण मंदिर को उड़वा दिया।
पता नहीं कहानियां लोग भूल कैसे जाते हैं, जबकि किताबें भरी पड़ी हैं। विकिपीडिया पर ही इतना कुछ लिखा हुआ है कि आंखें खुल जाँय, पर पढ़ना किसको है...
खैर! आज स्वर्ण मंदिर के उद्धारक पेशवा बालाजी बाजीराव को नमन कीजिये।

किसी ने याद दिलाया आज!

सर्वेश!

28/06/2024

छत्रपति शिवाजी महाराज ने औरंगजेब को हराने के लिए कई रणनीतिक कदम उठाए थे। इनमें प्रमुख हैं:

1. **गुरिल्ला युद्ध तकनीक**: छत्रपति शिवाजी महाराज ने पारंपरिक युद्ध के बजाय गुरिल्ला युद्ध शैली को अपनाया। वे पर्वतीय क्षेत्रों का उपयोग करते हुए अचानक आक्रमण करते थे और फिर जल्दी से छिप जाते थे। इस तकनीक से मुगलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।

2. **किलों का निर्माण और उपयोग**: छत्रपति शिवाजी महाराज ने कई मजबूत किलों का निर्माण किया और मौजूदा किलों को मजबूती से सुसज्जित किया। ये किले उनके राज्य की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण थे और उन्हें मुगलों के आक्रमण से बचाने में मदद मिली।

3. **सार्वजनिक समर्थन**: छत्रपति शिवाजी महाराज ने स्थानीय जनता का समर्थन प्राप्त किया। उन्होंने मराठा समाज के हितों को ध्यान में रखते हुए नीतियाँ बनाई जिससे जनता उनके पक्ष में थी।

4. **सफाई से योजना बनाना और कार्यान्वयन**: छत्रपति शिवाजी महाराज ने हर युद्ध और आक्रमण की सूक्ष्मता से योजना बनाई। उन्होंने अपनी सेना को छोटे-छोटे समूहों में बाँटकर रणनीतिक स्थानों पर तैनात किया।

5. **व्यक्तिगत नेतृत्व**: छत्रपति शिवाजी महाराज खुद अपने सैनिकों के साथ युद्ध में शामिल होते थे, जिससे उनके सैनिकों का मनोबल बढ़ा रहता था और वे पूरी निष्ठा से लड़ते थे।

6. **संधियों और गठबंधनों का उपयोग**: छत्रपति शिवाजी महाराज ने समय-समय पर संधियाँ और गठबंधन किए, जिससे उन्हें युद्ध में सामरिक लाभ मिला। वे समय-समय पर मुगलों के साथ संधि करते और फिर सही समय पर उन्हें तोड़कर आक्रमण करते।

7. **आर्थिक रणनीति**: छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने राज्य की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया और करों का समुचित उपयोग किया। उन्होंने युद्ध के समय में अपने सैनिकों को पर्याप्त धन और संसाधन उपलब्ध कराए।

इन सभी रणनीतियों ने मिलकर छत्रपति शिवाजी महाराज को औरंगजेब की मुगल सेना के खिलाफ सफल बनाया और उन्हें मराठा साम्राज्य की स्थापना और विस्तार करने में मदद मिली।

Photos from Udaipur Lake City - Rajasthan's post 27/06/2024

🪷अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकडा पानी की टंकी में रख दे तो टंकी में शैवाल, हरी काई नहीं जमेगी और पानी सड़ेगा भी नहीं।

🪷जामुन की इस खुबी के कारण इसका इस्तेमाल नाव बनाने में बड़ा पैमाने पर होता है।

🪷पहले के जमाने में गांवो में जब कुंए की खुदाई होती तो उसके तलहटी में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता था जिसे जमोट कहते है।

🪷दिल्ली की निजामुद्दीन बावड़ी का हाल ही में हुए जीर्णोद्धार से ज्ञात हुआ 700 सालों के बाद भी गाद या अन्य अवरोधों की वजह से यहाँ जल के स्तोत्र बंद नहीं हुए हैं।

🪷भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख के.एन. श्रीवास्तव के अनुसार इस बावड़ी की अनोखी बात यह है कि आज भी यहाँ लकड़ी की वो तख्ती साबुत है जिसके ऊपर यह बावड़ी बनी थी। श्रीवास्तव जी के अनुसार उत्तर भारत के अधिकतर कुँओं व बावड़ियों की तली में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल आधार के रूप में किया जाता था।

🪷स्वास्थ्य की दृष्टि से विटामिन सी और आयरन से भरपूर जामुन शरीर में न केवल हीमोग्लोबिन की मात्रा को बढ़ाता। पेट दर्द, डायबिटीज, गठिया, पेचिस, पाचन संबंधी कई अन्य समस्याओं को ठीक करने में अत्यंत उपयोगी है।

🪷एक रिसर्च के मुताबिक, जामुन के पत्तियों में एंटी डायबिटिक गुण पाए जाते हैं, जो रक्त शुगर को नियंत्रित करने करती है। ऐसे में जामुन की पत्तियों से तैयार चाय का सेवन करने से डायबिटीज के मरीजों को काफी लाभ मिलेगा।

🪷सबसे पहले आप एक कप पानी लें। अब इस पानी को तपेली में डालकर अच्छे से उबाल लें। इसके बाद इसमें जामुन की कुछ पत्तियों को धो कर डाल दें। अगर आपके पास जामुन की पत्तियों का पाउडर है, तो आप इस पाउडर को 1 चम्मच पानी में डालकर उबाल सकते हैं। जब पानी अच्छे से उबल जाए, तो इसे कप में छान लें। अब इसमें आप शहद या फिर नींबू के रस की कुछ बूंदे मिक्स करके पी सकते हैं।

🪷जामुन की पत्तियों में एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं. इसका सेवन मसूड़ों से निकलने वाले खून को रोकने में और संक्रमण को फैलने से रोकता है। जामुन की पत्तियों को सुखाकर टूथ पाउडर के रूप में प्रयोग कर सकते हैं. इसमें एस्ट्रिंजेंट गुण होते हैं जो मुंह के छालों को ठीक करने में मदद करते हैं। मुंह के छालों में जामुन की छाल के काढ़ा का इस्तेमाल करने से फायदा मिलता है। जामुन में मौजूद आयरन खून को शुद्ध करने में मदद करता है।

🪷जामुन की लकड़ी न केवल एक अच्छी दातुन है अपितु पानी चखने वाले (जलसूंघा) भी पानी सूंघने के लिए जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं।

🪷हर व्यक्ति अपने घर की पानी की टंकी में जामुन की लकड़ी का एक टुकड़ा जरूर रखें, एक रुपए का खर्चा भी नहीं और लाभ ही लाभ। आपको मात्र जामुन की लकड़ी को घर लाना है और अच्छी तरह से साफ सफाई करके पानी की टंकी में डाल देना है। इसके बाद आपको फिर पानी की टंकी की साफ सफाई करवानें की जरूरत नहीं पड़ेगी।

🪷क्या आप जानते हैं कि नाव की तली में जामुन की लकड़ी क्यों लगाते हैं, जबकि वह तो बहुत कमजोर होती है..?

भारत की विभिन्न नदियों में यात्रियों को एक किनारे से दूसरे किनारे पर ले जाने वाली नाव की तली में जामुन की लकड़ी लगाई जाती है। सवाल यह है कि जो जामुन पेट के रोगियों के लिए एक घरेलू आयुर्वेदिक औषधि है, जिसकी लकड़ी से दांतो को कीटाणु रहित और मजबूत बनानें वाली दातुन बनती है, उसी जामुन की लकड़ी को नाव की निचली सतह पर क्यों लगाया जाता है। वह भी तब जबकि जामुन की लकड़ी बहुत कमजोर होती है। मोटी से मोटी लकड़ी को हाथ से तोड़ा जा सकता है। क्योंकि इसके प्रयोग से नदियों का पानी पीनें योग्य बना रहता है।

🪷बावड़ी की तलहटी में 700 साल बाद भी जामुन की लकड़ी खराब नहीं हुई…

जामुन की लकड़ी के चमत्कारी परिणामों का प्रमाण हाल ही में मिला है। देश की राजधानी दिल्ली में स्थित निजामुद्दीन की बावड़ी की जब सफाई की गई तो उसकी तलहटी में जामुन की लकड़ी का एक स्ट्रक्चर मिला है। भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख के0 एन0 श्रीवास्तव जी नें बताया कि जामुन की लकड़ी के स्ट्रक्चर के ऊपर पूरी बावड़ी बनाई गई थी। शायद इसीलिए 700 साल बाद तक इस बावड़ी का पानी मीठा है और किसी भी प्रकार के कचरे और गंदगी के कारण बावड़ी के वाटर सोर्स बंद नहीं हुए। जबकि 700 साल तक इसकी किसी ने सफाई नहीं की थी।

🪷आपके घर में जामुन की लकड़ी का उपयोग…

यदि आप अपनी छत पर पानी की टंकी में जामुन की लकड़ी डाल देते हैं तो आप के पानी में कभी काई नहीं जमेगी। 700 साल तक पानी का शुद्धिकरण होता रहेगा। आपके पानी में एक्स्ट्रा मिनरल्स मिलेंगे और उसका टीडीएस बैलेंस रहेगा। यानी कि जामुन हमारे खून को साफ करने के साथ-साथ नदी के पानी को भी साफ करता है और प्रकृति को भी साफ रखता है।

🪷कृपया हमेशा याद रखिए कि दुनियाभर के तमाम राजे रजवाड़े और वर्तमान में अरबपति रईस जो अपने स्वास्थ्य के प्रति चिंता करते हैं। जामुन की लकड़ी के बनें गिलास में पानी पीते हैं…

🌹प्राकृतिक जीवन अपनाएं स्वस्थ जीवन पाए🌹

27/06/2024

बताया जाता है कि महान क्रांतिकारी भगत सिंह करीब दो साल जेल में रहे और दुखी होने के बजाय वह खुश थे कि उन्हें देश के लिए कुर्बान होने का मौका मिल रहा है। फांसी पर जाते वक्त वह, सुखदेव और राजगुरु 'मेरा रंग दे बसंती चोला' गाते जा रहे थे और फांसी पर चढ़ते वक्त भगत सिंह के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। शहीद होते वक्त राजगुरु 22 साल के थे। सुखदेव और भगत सिंह सिर्फ 23 साल के थे।
जिन्होंने हंसते हंसते भावी पीढ़ियों के लिए अपना बलिदान दे दिये, शत शत नमन है उन्हें।

27/06/2024

ब्राह्मणों ने नालंदा विश्वविद्यालय को जलाया था बख्तियार खिलजी तो आग बुझाने गया था नालंदा....
बख्तियार खिलजी को जब यह सूचना मिली कि ब्राह्मणों ने नालंदा विश्वविद्यालय को जला दिया तब उसे बड़ा अफसोस हुआ और वह रोने लगा...
शिक्षा का प्रेमी बख्तियार सूचना पाते ही तुरंत अपनी सेना को लेकर दिल्ली से नालंदा आग बुझाने के लिए चल पड़ा और अपने सैनिकों को आदेश दिया कि सब लोग रास्ते में जितना भी डब्बा मिले बाल्टी मिले लोटा मिले ग्लास मिले सब लोग उसमें पानी भर भर के रखो और लेकर चलो...
नालंदा पहुंचते ही बख्तियार खिलजी ने सभी सैनिकों को आदेश दिया कि जल्दी से पानी फेक कर आग बुझाओ,
बख्तियार खिलजी खुद बाल्टी में पानी भर भर के आग बुझाने के लिए दौड़ रहा था,
6 महीने बख्तियार खिलजी नहाया तक नहीं क्योंकि पानी से वह आग बुझाता था,ब्राह्मणों ने तो इतना सताया बख्तियार को की आग बुझाने के लिए वह एक ब्राह्मण के यहां बाल्टी में पानी भरने चला गया तो उस ब्राह्मण ने बख्तियार को गाली देकर भगा दिया और अपने यहां से पानी नहीं भरने दिया बख्तियार को इस बात का बहुत दुख हुआ और वह बहुत रोया... आप लोग विश्वास नहीं करेंगे बख्तियार खिलजी इतना रोया की उसके आंसू से एक धारा निकली जिससे चारों तरफ पानी पानी हो गया और उसके सैनिक उसके आसुओं से आग बुझाने लगे जिससे आज के जो कुछ अवशेष बचे हुए हैं नालंदा विश्वविद्यालय के वह बच सके.....
आपको यह भी विश्वास नहीं होगा कि रास्ते में बिसलेरी का बोतल भी मिला था जिसके ढक्कन में छेद करके पानी भर के पिचकारी बनाकर बख्तियार ने सबसे पहले आग बुझाने का वैज्ञानिक तरीका अपनाया था......
सभी शिक्षा प्रेमियों ने बख्तियार खिलजी को बहुत ज्यादा सम्मान दिलवाया और उसी के नाम से बख्तियार जंक्शन बाद में स्थापित किया गया,
इतिहास में आपको यह चीजें कभी नहीं मिलेंगी,
ब्राह्मणों ने तो हमेशा से शिक्षा को मिटाने का ही प्रयास किया बख्तियार खिलजी जैसे महापुरुषों ने ही तो शिक्षा की रक्षा की भारत में.......
सभी बख्तियार खिलजी के भक्तो को समर्पित🙄

27/06/2024

सारनाथ वह उल्लेखनीय स्थान था जहाँ गौतम बुद्ध ने पहली बार अपने लोगों को "धर्म" सिखाया था। उनके भक्तों ने सबसे पहले यहीं से दीक्षा ली। सारनाथ उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास स्थित है। गुप्त साम्राज्य के काल में 5वीं शताब्दी के आसपास पहली बार बौद्ध संघों की स्थापना की गई थी। इस काल में बौद्ध धर्म तेजी से फला-फूला। गौतम बुद्ध की विशाल प्रतिमा यहीं से खुदाई में प्राप्त हुई थी। यह प्रतिमा शांति का प्रतीक है और गौतम बुद्ध की दिव्यता को व्यक्त करती है। लगभग 92 सेमी ऊंची यह पत्थर की मूर्ति वर्तमान में राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में रखी गई है। सारनाथ अपने आप में कई मठों और स्तूपों से युक्त एक ऐतिहासिक स्थान है। इनमें धमेख स्तूप, चौखंडी स्तूप, धर्मराजिका स्तूप प्रमुख हैं। खुदाई के दौरान यहां कई बुद्ध प्रतिमाएं और अशोक स्तंभ मिले थे।

27/06/2024

Hypatia the Greek Philosopher Skinned Alive with Seashells

Knowledge can be a wonderful thing, but in the case of the ancient philosopher and mathematician Hypatia of Alexandria, it also lead to her doom.

Hypatia was one of the most important intellectuals of Byzantine Empire in the 4th Century, and she was also a woman.

Her story is both inspiring and terrifying.

Hypatia was born around 355, when the Roman empire had just split, leaving Alexandria in a disconnected state of religious and social unrest.

Members of all religions - Christians, Jews, and pagans - were now living together in perpetual strife.

Over the next few decades, their constant clashes would wipe out even more of the library's contents as they struggled to define their new boundaries.

The Egyptian city of Alexandria was founded by Alexander the Great in 331 BC - about 600 years before Hypatia was born.

Alexandria became a culturally sophisticated region of the world in a rather short amount of time.

It was not only a beautiful city, but it held the Library of Alexandria, which contained more than half a million ancient scrolls.

The city overflowed with artifacts and became a place where intellectualism could thrive, despite the ever-present degree of ignorance, slavery, violence, and religious strife.

Alexandria offered man the opportunity to pull himself from the muck of fear, and embrace something larger than himself through the power of thought.

And in the case of Hypatia, women as well.

Hypatia was a thinker of the highest order, a teacher, and an inventor - but she was also a pagan and was not afraid to speak her mind in a landscape of religious separatism, conflict, and fear.

Being a woman of intelligence, beauty, and strength could not save her from the shocking end she would meet at the hands of her own people.

During a dangerous time when science and religion were often pitted against one another, it was precisely her knowledge and fearlessness that would place a target on her back.

Her life of excellence would come to mean nothing, as a clash of powerful men rendered her one of the most tragic scapegoats in history.

Hypatia had many admirers, one of whom was the civil governor of the city, Orestes .

He was mostly a pagan and often in league with the Jewish community, who did not want to give all of Alexandria over to the Christian church.

Despite his complicated beliefs, he supported the separation of church and state, and defended both Hypatia and her father Theon.

Of course, Cyril and Orestes clashed, specifically around the time when the Jews began a violent conflict with the Christians.

As a result, Cyril turned aggressively on the Jews and expelled them from the city, looting their homes and temples.

Orestes was appalled and complained to the Roman government in Constantinople.

Cyril tried to apologize for his rash decision, but Orestes refused the reconciliation and was subsequently targeted for assassination by 500 of Cyril’s pernicious monks.

Even though Hypatia was not involved directly in these proceedings, she was a friend of Orestes and pontificated in the realm of non-Christian theology - two things that made her an easy target for an increasingly angry sect.

In such a male-dominant political struggle, it made sense to target the woman who did not accept the ways of the dominant paradigm, but used her intelligence to cast doubt upon their devotions.

Hypatia was a woman of intelligence and accomplishment - something quite unusual for women of the time.

A woman like Hypatia was greatly feared by many in Alexandria.

Because of this - and the fact she believed in paganism - many accused her of worshiping Satan. She had to be silenced for good.

A magistrate named Peter the Lector gathered his fellow religious zealots, and hunted her down as she made her way from giving a lecture at the university.

They ripped her from her carriage and proceeded to tear her clothes, pulling her along by her hair through the streets of the city.

The group then dragged her into a nearby church where they stripped her and grabbed whatever they could find to destroy her.

In this case it was the roofing tiles and oyster shells that laid around the freshly constructed building.

With them, they tore her flesh from her body, skinning her alive in the name of all Christiandom.

Her remains were then ripped apart and burned at the altar.

The University of Alexandria, where she and her father Theon had taught, was burned to the ground as a sign of intolerance.

In the aftermath of her slaying, there was a mass exodus of intellectuals and artists who feared for their own safety.

A newly-minted sense of Christian power was installed in the great city......

Sometimes death is a symbol that survives the test of time.

Hundreds of years after her assassination, Hypatia - a Renaissance-style intellectual who defended the separation of church and state - lives on, associated with the struggle for freedom.

ग्रीक दार्शनिक हाइपेटिया की खाल सीपियों से जिंदा जलाई गई

ज्ञान एक अद्भुत चीज हो सकती है, लेकिन एलेक्जेंड्रिया की प्राचीन दार्शनिक और गणितज्ञ हाइपेटिया के मामले में, यह उसके विनाश का कारण भी बनी।

हाइपेटिया चौथी शताब्दी में बीजान्टिन साम्राज्य की सबसे महत्वपूर्ण बुद्धिजीवियों में से एक थीं, और वह एक महिला भी थीं।

उनकी कहानी प्रेरणादायक और डरावनी दोनों है।

हाइपेटिया का जन्म 355 के आसपास हुआ था, जब रोमन साम्राज्य का विभाजन हुआ था, जिससे एलेक्जेंड्रिया धार्मिक और सामाजिक अशांति की एक असंबद्ध स्थिति में था।

सभी धर्मों के सदस्य - ईसाई, यहूदी और बुतपरस्त - अब निरंतर संघर्ष में एक साथ रह रहे थे।

अगले कुछ दशकों में, उनके निरंतर संघर्ष ने पुस्तकालय की सामग्री को और भी अधिक नष्ट कर दिया क्योंकि वे अपनी नई सीमाओं को परिभाषित करने के लिए संघर्ष कर रहे थे।

मिस्र के शहर एलेक्जेंड्रिया की स्थापना सिकंदर महान ने 331 ईसा पूर्व में की थी - हाइपेटिया के जन्म से लगभग 600 साल पहले।

अलेक्जेंड्रिया बहुत कम समय में ही दुनिया का एक सांस्कृतिक रूप से परिष्कृत क्षेत्र बन गया।

यह न केवल एक खूबसूरत शहर था, बल्कि इसमें अलेक्जेंड्रिया की लाइब्रेरी भी थी, जिसमें पाँच लाख से ज़्यादा प्राचीन स्क्रॉल थे।

शहर कलाकृतियों से भरा हुआ था और एक ऐसा स्थान बन गया जहाँ अज्ञानता, गुलामी, हिंसा और धार्मिक संघर्ष की हमेशा मौजूद डिग्री के बावजूद बौद्धिकता पनप सकती थी।

अलेक्जेंड्रिया ने मनुष्य को डर के कीचड़ से खुद को बाहर निकालने और विचार की शक्ति के माध्यम से खुद से बड़ी किसी चीज़ को अपनाने का अवसर दिया।

और हाइपेटिया के मामले में, महिलाओं को भी।

हाइपेटिया एक उच्च कोटि की विचारक, एक शिक्षिका और एक आविष्कारक थी - लेकिन वह एक बुतपरस्त भी थी और धार्मिक अलगाववाद, संघर्ष और भय के परिदृश्य में अपनी बात कहने से नहीं डरती थी।

बुद्धिमान, सुंदर और शक्तिशाली महिला होने के बावजूद वह अपने ही लोगों के हाथों मिलने वाले चौंकाने वाले अंत से नहीं बच सकी।

एक खतरनाक समय के दौरान जब विज्ञान और धर्म अक्सर एक दूसरे के खिलाफ़ खड़े होते थे, यह वास्तव में उसका ज्ञान और निडरता ही थी जिसने उसे निशाना बनाया।

उसके उत्कृष्ट जीवन का कोई मतलब नहीं रह गया, क्योंकि शक्तिशाली लोगों के संघर्ष ने उसे इतिहास में सबसे दुखद बलि का बकरा बना दिया।

हाइपेटिया के कई प्रशंसक थे, जिनमें से एक शहर का नागरिक गवर्नर, ओरेस्टेस था।

वह ज्यादातर बुतपरस्त था और अक्सर यहूदी समुदाय के साथ गठबंधन करता था, जो पूरे अलेक्जेंड्रिया को ईसाई चर्च को नहीं देना चाहता था।

अपनी जटिल मान्यताओं के बावजूद, उसने चर्च और राज्य के पृथक्करण का समर्थन किया, और हाइपेटिया और उसके पिता थियोन दोनों का बचाव किया।

बेशक, सिरिल और ओरेस्टेस के बीच टकराव हुआ, खासकर उस समय जब यहूदियों ने ईसाइयों के साथ हिंसक संघर्ष शुरू किया।

परिणामस्वरूप, सिरिल ने यहूदियों पर आक्रामक रूप से हमला किया और उन्हें शहर से बाहर निकाल दिया, उनके घरों और मंदिरों को लूट लिया।

ओरेस्टेस को झटका लगा और उसने कॉन्स्टेंटिनोपल में रोमन सरकार से शिकायत की।

सिरिल ने अपने जल्दबाजी भरे फैसले के लिए माफ़ी मांगने की कोशिश की, लेकिन ओरेस्टेस ने सुलह से इनकार कर दिया और बाद में सिरिल के 500 खतरनाक भिक्षुओं द्वारा हत्या के लिए निशाना बनाया गया।

भले ही हाइपेटिया इन कार्यवाहियों में सीधे तौर पर शामिल नहीं थी, लेकिन वह ओरेस्टेस की दोस्त थी और गैर-ईसाई धर्मशास्त्र के क्षेत्र में पोप थी - दो चीजें जिसने उसे एक तेजी से क्रोधित संप्रदाय के लिए एक आसान लक्ष्य बना दिया।

ऐसे पुरुष-प्रधान राजनीतिक संघर्ष में, उस महिला को निशाना बनाना समझ में आता था जो प्रमुख प्रतिमान के तरीकों को स्वीकार नहीं करती थी, लेकिन अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करके उनकी भक्ति पर संदेह करती थी।

हाइपेटिया बुद्धिमान और सिद्धि वाली महिला थी - जो उस समय की महिलाओं के लिए काफी असामान्य थी।

हाइपेटिया जैसी महिला से अलेक्जेंड्रिया में कई लोग बहुत डरते थे।

इस वजह से - और इस तथ्य के कारण कि वह बुतपरस्ती में विश्वास करती थी - कई लोगों ने उस पर शैतान की पूजा करने का आरोप लगाया। उसे हमेशा के लिए चुप करा दिया जाना था।

पीटर द लेक्टर नामक एक मजिस्ट्रेट ने अपने साथी धार्मिक कट्टरपंथियों को इकट्ठा किया, और विश्वविद्यालय में व्याख्यान देने के बाद जब वह जा रही थी, तब उसका पीछा किया।

उन्होंने उसे उसकी गाड़ी से खींच लिया और उसके कपड़े फाड़ने लगे, उसे शहर की सड़कों पर उसके बालों से घसीटते हुए ले गए।

फिर समूह ने उसे घसीटकर पास के एक चर्च में ले जाया, जहाँ उन्होंने उसके कपड़े उतार दिए और उसे मारने के लिए जो कुछ भी मिला, उसे उठा लिया।

इस मामले में यह छत की टाइलें और सीप के गोले थे जो हाल ही में बनी इमारत के चारों ओर पड़े थे।

उनके साथ, उन्होंने उसके शरीर से मांस को फाड़ दिया, सभी ईसाई धर्म के नाम पर उसे जिंदा ही खाल से उतार दिया।

फिर उसके अवशेषों को चीरकर वेदी पर जला दिया गया।

अलेक्जेंड्रिया विश्वविद्यालय, जहाँ वह और उसके पिता थियोन पढ़ाते थे, असहिष्णुता के संकेत के रूप में जमीन पर जला दिया गया।

उसकी हत्या के बाद, बुद्धिजीवियों और कलाकारों का सामूहिक पलायन हुआ, जिन्हें अपनी सुरक्षा का डर था।

महान शहर में ईसाई शक्ति की एक नई भावना स्थापित की गई थी......

कभी-कभी मृत्यु एक प्रतीक होती है जो समय की कसौटी पर खरी उतरती है।

अपनी हत्या के सैकड़ों साल बाद, हाइपेटिया - एक पुनर्जागरण शैली की बुद्धिजीवी जिसने चर्च और राज्य के पृथक्करण का बचाव किया - स्वतंत्रता के संघर्ष से जुड़ी हुई है।

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