UK walle
मेरे भाई भेनो अपने उत्तराखंड से जुडो रहो हमको फॉलो करें उत्तराखंड देवभूमि 🇮🇳🙏( UK walle )
खतरनाक कुत्ते 😱
Top 6 dangerous Dogs #dongs #top6 #dogs #bulldogs @dogs @pedigreeindia1533 ...
How they know ll😱 Dogs save his friends ll#2024 #dogs #doglover #bulldogs #petlover #viral #dogshort 2k views /subscribe/ Channal for yourll to support llThey knows ll whats do for friends ❤️ ll Life savers ...
Radhe radhe ❤️💯❤️
In India ❤️ ll street Dog express something ll🤗l #2024 #doglover #dogs @souravjoshivlogs7028
“दृश्य, सुन्दरता, स्वर्ग का अद्यात्म, उत्तराखंड में छिपे प्रकृति के नगमे हैं अद्वितीय।”
Bolo har har mahadev 🙏🙏
दिलो में मान,दिलो में सम्मान है यही उत्तराखंडी की पहचान है!
मुझे गर्व है में उत्तराखंडी हूँ, क्योंकि मेरा उत्तराखंड महान है!
इंसानियत को शर्मशार कर, सरेआम लुटेरे घूम रहे हैं!
भूल रहे इंसानियत सब, लेकिन उत्तराखंडी न भूल रहे हैं!
सीखा है प्यार छोटो को करना, बड़ो के लिए दिलों में सम्मान है!
क्युकी उत्तराखंड में इंसानियत का अभी भी जिन्दा इमान है!
मुझे गर्व है में उत्तराखंडी हूँ, क्योंकि मेरा उत्तराखंड महान है!
अभिमान नहीं करते हम अपने किये हुए अहसान पर!
चाहत नहीं ऊपर उठने की, मानवता का अपमान कर!
निर्धन , अमीर चाहे जो भी हैं, सबके अपने अरमान है!
जो समझे सबके अरमानों को, उत्तराखंडी ऐसे इंसान है!
मुझे गर्व है में उत्तराखंडी हूँ, क्योंकि मेरा उत्तराखंड महान है!
खुश रहते हैं सबसे मिलकर हम, प्रेम से रहना सीखा है!
दुःख-दर्द समझते हैं लोगों का, हमारे जीने का ये सलीखा है!
आदर -सत्कार अतिथि का करना, यही हमारी शान है!
इसलिए उत्तराखंडी संस्कृति का सब करते गुड़गान है!
मुझे गर्व है में उत्तराखंडी हूँ, क्योंकि मेरा उत्तराखंड महान है!
मुझे गर्व है में उत्तराखंडी हूँ, क्योंकि मेरा उत्तराखंड महान है!
Written by-Kishor Saklani for this
Uttrakhand status 🥰
☺️🙏 jai devbhoomi Uttrakhand 🙏🏔️
देवप्रयाग (Devprayag) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी गढ़वाल ज़िले में स्थित एक नगर है। यह पंच प्रयाग में से एक है और यहाँ अलकनन्दा नदी का भागीरथी नदी से संगम होता है। इस संगम के आगे यह संयुक्त नदी गंगा कहलाती है। धार्मिक दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थान है
वैसे तो भमोरे का फल कम ही खाने को मिलता है परंतु चारावाहो द्वारा आज भी जंगलों में इसके फल को खाया जाता है। यह हिमालयी क्षेत्रों में पाये जाने वाला अत्यन्त महत्वपूर्ण पौधा है। इसी वजह से इसे हिमालयन स्ट्राबेरी का नाम दिया गया है। वैसे तो भमोरा संपूर्ण हिमालय क्षेत्रों यथा-भारत, चीन, नेपाल, आस्ट्रेलिया आदि में पाया जाता है परंतु इसका उद्भव भारत के उत्तरी हिमालय तथा चीन में ही माना जाता है। सामान्यतः यह 1000 से 3000 मी0 ऊॅचाई तक पाया जाता है। हिमालय क्षेत्रों में भमोरा सितम्बर से नवम्बर के मध्य पकता है तथा पकने के बाद इसका फल स्ट्रॉबेरी की तरह लाल हो जाता है जो पौष्टिक तथा औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी होता है। इसे मार्किट में अच्छे भाव में बेचा और ख़रीदा जा सकता है लेकिन यदि आप उत्तराखंड में हैं तो आप इसे जंगलों से प्राप्त कर सकते हैं, सिर्फ मेहनत लगेगी पैसे की जरूरत नहीं होगी।
उत्तराखंड में पाया जाने वाले अमेस फल काफी गुणकारी होता है। इसके काफी औषधीय गुण होते हैं। इसे पहले केवल वनस्पति ही समझा जाता था। लेकिन जड़ी बूटी शोध संस्थान गोपेश्वर के वैज्ञानिकों ने इसका औषधीय गुण पहचाना। विटामिन की भरपूर मात्रा होने की वजह से कुछ देश अमेस फल का स्पोर्ट्स ड्रिंक बनाने को मजबूर हो गए हैं और काफी पसंद भी किया जाने लगा है। इसके साथ ही इसका मार्किट में भाव भी कई गुना अधिक हो गया है। 😋 #
देखा जाए तो काफल के पेड़ काफी बड़े होते हैं। गढ़वाल, कुमाऊं व नेपाल में इसके वृक्ष बहुतायत से पाए जाते हैं। आयुर्वेद में इसे कायफल के नाम से जाना जाता है। जबकि अंग्रेजी भाषा में बाक्समिर्टल के नाम से जाना जाता है। इसका खट्टा-मीठा स्वाद बहुत मनभावन और उदर-विकारों में बहुत लाभकारी होता है। इसका पेड़ अनेक प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर है। काफल विक्रेता रमेश कुमार और कमल राज का कहना है कि प्रतिदिन काफल फल के दाम अलग-अलग होते हैं। अभी तो काफल के दाम 300 रूपये से लेकर 500 रूपये प्रति किलो तक का है, जो कि कई महंगे फलों को चुनोती देता है। उत्तराखंड में आप इसे जंगलों से प्राप्त कर सकते हैं।
खुबानी का उत्तराखंड से गहरा नाता है। इसे यहां लोकल में चुली कहा जाता है, यह फल यूरोप में अमेरिका द्वारा पेश किया गया था। खुबानी शहद की तरह एक स्वादिष्ट फल है। चीन में खुबानी की खूब खेती होती है पहाड़ों में इसकी खेती अच्छी होती है, उत्तराखंड में भी यह बहुतायत में पाया जाता है, लेकिन लोग इसका इस्तेमाल सिर्फ खुद के लिए करते हैं, बहुत कम लोग होते हैं जो इसे बेचते हैं, मार्किट में खुबानी के भाव बहुत जादा हैं आपको बता दें कि यह एक बंद कागज की थैली में रखकर पका सकते हैं या कमरे के तापमान पर छोड़ सकते हैं। वेसे उत्तराखंड में यह फल हम पेड़ पर ही खा लेते हैं। बाजार ले जानी की जरूरत ही नहीं होती।
आड़ू को सतालू और पीच नाम से जानते हैं। आड़ू के ताजे फल खाए जाते हैं तथा इन फलों से जैम, जेली और चटनी बनाई जाती है। आड़ू स्वाद में मीठा और हल्का खटटा एवं रसीला फल है। इसका रंग भूरा और लालीमा लिए पीला होता है। आडू़ पौष्टिक तत्वों से युक्त आड़ू में जल की प्रचुर मात्रा होती है। इसमें लौह तत्व और पोटैशियम अधिक मात्रा में होता है। विटामिन ए, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर,फोलेट, तत्व होते हैं। इसके अलावा आड़ू में कई प्रकार के एंटीऑक्सीडेंट पाये जाते हैं। जैसे विटामिन सी, केरेटोनोइड्स, बाइलेवोनोइड्स और फाइटोकैमिकल्स, जो सेहत के लिए लाभदायक होते हैं। इसे मार्किट में अलग अलग भाव में बेचा जाता है, उच्च क्वालिटी का आडू 100 रूपये प्रति किलो तक बिकता है। जबकि गांव में बंदर इन्हें खा लेते हैं।
पोलम, आड़ू, चेरी, बादाम एक ही जाति में आतें हैं। शरीर को तरोताजा रखने के लियें यह फल बहुत उपयोगी है। अन्य फल फसलो की तरह अधिकांशतया ठन्डे इलाको में
इसकी पैदावार ज्यादा होती है। पोलम जिसे कि प्लम भी कहा जाता है का पेड़ पांच मीटर से सात मीटर तक बढ़ता है। यह ऊचा हरा भरा रहता है, इसमें सफेद फूल खिलें रहते है, है मधुमक्खियों अपना छत्ता भी अक्सर इस पेड़ में बनाया करती है और शरद ऋतु आने पर यह अपने पत्ते खो देता है। इसमें कार्बोहाईड्रेट और विटामिन C की प्रचुर मात्रा इसमें पायी जाती है। इसका मार्किट में मूल्य काफी अधिक होता है, जबकि आप गांव में जाकर इसे कहीं से भी मांग के खा सकते हैं।
छोटी सी झाड़ियों में उगने वाला ‘घिंगारू’ एक जंगली फल है। यह सेव के आकार का लेकिन आकार में बहुत छोटा होता है, स्वाद में हल्का खट्टा-मीठा। बच्चे इसे छोटा सेव कहते हैं और बड़े चाव से खाते हैं। यह फल पाचन की दृष्टि से बहुत ही लाभदायक फल है। इस फल का प्रयोग भी ओषधि के तौर पर किया जाता है, हालांकि ग्रामीण क्षेत्र के लोग इसकी गुणवता से अनजान हैं।
उत्तराखण्ड में फाईकस जीनस के अर्न्तगत एक और बहुमूल्य जंगली फल जिसे बेडु के नाम से जाना जाता है, यह निम्न ऊँचाई से मध्यम ऊँचाई तक पाया जाता है। बेडु उत्तराखण्ड का एक स्वादिष्ट बहुमूल्य जंगली फल है जो Moraceae परिवार का पौधा है तथा अंग्रजी में wild fig के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखण्ड तथा अन्य कई राज्यों में बेडु को फल, सब्जी तथा औषधि के रुप में भी प्रयोग किया जाता है, साथ ही बेडु का स्वाद इसमें उपलब्ध 45 प्रतिशत जूस से भी जाना जाता है। बेडु का प्रदेश में कोई व्यावसायिक उत्पादन नहीं किया जाता है, अपितु यह स्वतः ही उग जाता है तथा बच्चों एवं चारावाहों द्वारा बड़े चाव से खाया जाता है। यह मार्किट में सेब और अनार के दामो के दुगनी कीमत पर उपलब्द होता है।
हिसालु जेठ-असाड़(मई-जून) के महीने में पहाड़ की रूखी-सूखी धरती पर छोटी झाड़ियों में उगने वाला एक जंगली रसदार फल है। इसे कुछ स्थानों पर “हिंसर” या “हिंसरु” के नाम से भी जाना जाता है। अगर आपका बचपन पहाड़ी गांव में बीता है तो आपने हिसालू का खट्टा-मीठा स्वाद जरूर चखा होगा। शाम होते ही गांव के बच्चे हिसालू के फल इकट्ठा करने जंगलों की तरफ निकल पड़ते हैं और घर के सयाने उनके लौट आने पर इनके मीठे स्वाद का मिलकर लुत्फ़ ऊठाते हैं। यह फल भी औषधीय गुणों से भरपूर है, काले रंग का हिन्सुल जो कि जंगलों में पाया जाता है, अंतराष्ट्रीय बाजार में उसकी भारी मांग रहती है। 😋🥰
किल्मोड़ा उत्तराखंड के 1400 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर मिलने वाला एक औषधीय प्रजाति है। इसका बॉटनिकल नाम ‘बरबरिस अरिस्टाटा’ है। यह प्रजाति दारुहल्दी या दारु हरिद्रा के नाम से भी जानी जाती है। इसका पौधा दो से तीन मीटर ऊंचा होता है। मार्च-अप्रैल के समय इसमें फूल खिलने शुरू होते हैं। इसके फलों का स्वाद खट्टा-मीठा होता है। उत्तराखण्ड में इसे किल्मोड़ा, किल्मोड़ी और किन्गोड़ के नाम से जानते हैं। वेसे तो ये जंगलो में मिलता है, लेकिन इसके ओषधीय गुणों के हिसाब से इसका मार्किट वैल्यू आम फल से कई गुना अधिक हो सकता है। 😋❤️🏵️
माल्टा || Malta Fruit Uttarakhand –
नींबू प्रजाती का यह खास फल स्वाद में हल्का खट्टा और हल्का मीठा होता है।माल्टा एक पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाला फल है। माल्टा फल , Malta fruit का वानस्पतिक
नाम citrus Sinesis है। यह फल नींबू के कुल Rutaceae से सम्बन्ध रखता है। इसका रंग सन्तरे जैसा होता है। इस फल को पहाड़ी सन्तरा या पहाड़ी फलों
का राजा भी कहते हैं । सबसे पहले माल्टा का उत्पादन चीन में किया गया था। बाद मे माल्टा ( malta fruit ) का हिमाचल, नेपाल, और उत्तराखंड में उत्पादन शुरू किया गया । माल्टा का पेड़ 6 से 12मीटर तक ऊंचा होता है। इसके पेड़ 3 साल के अन्दर फल देना शुरू कर देते हैं। और लगभग 30 साल तक फल देते हैं। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के लोग इस फल को बहुत पसन्द करते हैं।मसाला नमक (पहाड़ी नून), गुड़, दही या छाछ के मख्खन के साथ माल्टा के छोटे छोटे टुकड़े कर मिला लिया जाता है। उसके बाद उसमें धनिया मिला या धनिया पत्ती से सजाकर पहाड़ी लोग माल्टा की चटनी बड़े चाव से खाते हैं। माल्टा एक औषधीय फल है। 😋❤️😊
जागर शब्द का शाब्दिक अर्थ है जागृत करना जिसका अभिप्राय अपने इष्ट देव,पित्र देवों का आह्वान करना है,और वाद्ययंत्रो की ध्वनि के साथ ध्वनि मंत्रों का उच्चारण करना। मान्यतानुसार उत्तराखंड के देवी देवता सुमिरन करने पर किसी पर प्रकट होते हैं।वह अपनी इच्छा,वेदना,उपाय अपने ग्रामवासियों को सुनाते हैं तथा शुभ आशीष देते हैं।
उत्तराखंड की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का निर्माण ही बाहरी जनजातियों से हुआ है। अतः इस जागर परंपरा का कोई लिखित प्रमाण तो नही है किंतु जागर का जो गायन है, वो उत्तराखंड के विभिन क्षेत्रों में अलग शास्त्रीय प्रकिया से होता है। जागर का जो गायन है वह शास्त्री गायन से मिलता जुलता है एवं देवभूमि में अधिकांश ब्राह्मण मद्रास व मध्य भारत से आये हैं तो यह आशंका लगाई जाती है कि यह शैली इन्ही से विकसित हुई है। राजस्थानी वंशज से नाता रखने वाले राजपूतों के महलों में पुराने गानो को गीत के माध्यम से सुनाया जाता है तो क्षत्रिय समाज के जागरों में संगीत का अत्यंत महत्व रहता है। 🙏Jai ho 🙏 Uttrakhand
यूं तो सभी क्षेत्रों में अलग-अलग वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है, जिनका प्रचलन प्राचीन काल से होता आ रहा है. उनका महत्व उस क्षेत्र के परिवेश, संस्कृति एवं विरासत पर आधारित होता है और सदियों से चली आ रही यह क्षेत्रीय हुनरबाजी, कला के क्षेत्र में एक विशेष महत्व रखती है.
(Dhol Damau Uttarakhand)
अगर हम देवभूमि उत्तराखण्ड के वाद्य-यंत्रों का वर्णन करें तो उनमें मुख्य है “ढोल- दमाऊं”. यह वाद्य यंत्र उत्तराखण्ड के पहाड़ी समाज की लोककला को संजोए रखे हुए हैं और उनकी आत्मा से जुड़े हैं. इस कला का जन्म से लेकर मृत्यु तक, घर से जंगल तक अर्थात् प्रत्येक संस्कार और सामाजिक गतिविधियों में इनका प्रयोग होता आ रहा है. इनकी गूंज के बिना यहाँ का कोई भी शुभकार्य पूरा नहीं माना जाता है इसीलिए कहा जाता है कि पहाड़ों में विशेषकर उत्तराखण्ड में त्यौहारों का आरंभ ढोल-दमाऊं के साथ ही होता है.
यह उत्तराखण्ड के सबसे प्राचीन और लोकप्रिय वाद्ययंत्रों में शामिल हैं, इन्हें मंगल वाद्य के नाम से भी जाना जाता है. जनश्रुति है की प्रारम्भ में युद्ध के मैदानों में सैनिकों के कुशल नेतृत्व एवं उनके उत्साह को पैदा करने के लिए इनका उपयोग किया जाता था और फिर यह कला युद्ध के मैदानों से लोगों के सामाजिक जीवन में प्रवेश करते चली गई, अंततः यह शुभ कार्यों के आगमन का प्रतीक बन गई. इसी के साथ पहाड़ों में शुरूआत हुई लोककला की जिसमें इन वाद्य-यंत्रों ने अपनी जगह स्थापित कर ली और आज भी जनमानस के द्वारा इन कलाओं को महत्वपूर्ण दर्जा दिया जा रहा है क्योंकि किसी भी क्षेत्र की पहचान वहां की लोककला,परंपरा,संस्कृति पर निर्भर करती है.
ढोल-दमाऊं के माध्यम से कई प्रकार की विशेष तालों को बजाया जाता हैं. विभिन्न तालों के समूह को ढोल सागर भी कहा जाता है. ढोल सागर में लगभग 1200 श्लोकों का वर्णन किया गया है. इन तालों के माध्यम से वार्तालाप व विशेष सन्देश का आदान-प्रदान भी किया जाता है. अलग समय पर अलग-अलग ताल बजायी जाती है जिसके माध्यम से इस बात का पता चलता है की कौन-सा संस्कार या अवसर है.
इन्हीं तालों में देवी-देवताओं के रूप को जागृत करने के लिए सबसे पहले बजाई जाने वाली ताल, ‘मंगल बधाई ताल’ है. जिसके माध्यम से उनका आवाहन किया जाता है. इसके अतिरिक्त सभी मंगल कार्य, शादी, हल्दी हाथ, बारात प्रस्थान, विभिन्न संस्कारों तथा पूजा-अनुष्ठानों आदि कार्यों में विशेष प्रकार की तालों को बजाया जाता है.
(Dhol Damau Uttarakhand) 🙏
फूलदेई
उत्तराखंड में सर्दी और गर्मियों के मौसम के बीच फ्यूंली, बुरांश और बासिंग के पीले, लाल, सफेद फूल खिलते हैं। लोग सुबह उठकर इन फूलों को इकट्ठा करते हैं|लकड़ी की टोकरी में फूल, गुड, चावल और नारियल डालकर गांव के लोगों के घरों के मुख्यद्वार पर डालकर घर की खुशहाली के लिए प्रार्थना करते हैं और गाना गाते हैं। 🙏🌼🌻🌹🥀🌺🌷🪷🌸💮🏵️
घुघुतिया
मकर संक्रांति के दिन उत्तराखंड में घुघुतिया भी मनाया जाता है। इस दिन हर घर में आटा, सूजी, नारियल और ड्राइ फ्रूट्स मिलाकर घुघते बनाए जाते और इन्हें काले कौए को खिलाया जाता है। 😋🙏
वटसावित्री
इसका व्रत ज्येष्ठ कृष्ण की अमावस्या को होता है। यह व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। वटसावित्री में सत्यवान और सावित्री की कहानी सुनाई जाती कि कैसे सावित्री यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लाई थी। महिलाएं इस दिन सोलह श्रृंगार करती हैं। 🙏
हरेला
हरेला का मतलब हरियाली का दिन होता है। इस दिन किसान अच्छी फसल के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं। भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह के दिन को उत्तराखंड के लोग हरेला त्यौहार के रूप में मनाते हैं। 🙏
बसंत पंचमी
उत्तराखंड में बसंत पंचमी को सिर पंचमी या जौं पंचमी भी कहते हैं। इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने की परंपरा है। बसंत पंचमी के दिन मंदिर और घरों को गाय के गोबर से लीपा जाता है साथ ही धूप, दिया जलाकर जौं के खेतों की पूजा की जाती है, बाद में थोड़ा-सा जौं काटकर घर लाया जाता है। जौं के पौधों को मिट्टी, गाय के गोबर का गारा बनाकर घरों की चौखट पर चिपकाया जाता है और परिवार के सदस्य सिर पर जौं के तिनकों को हरेले की तरह रखकर आशीर्वाद देते हुए गाना गाते हैं। 🙏🙏
झंगोरी की खीर -:
झंगोरी की खीर खाने में जितनी अच्छी लगती है उतनी ही लाभदायक है। झंगोर चावल से बनाए जाने के कारण इस खीर का नाम झंगोरी की खीर पड़ गया। 😋😍🤗
रोटाना -:
यह मिठाई उत्तराखंड की पारंपरिक मिठाईयों में से एक है। आटे और गुड़ से बनी यह मिठाई गुलगुले की तरह ही होती है। पुराने जमाने में पहाड़ों में अक्सर लोगों को पैदल ही जाना पड़ता था इसलिए घर की महिलाएं उन्हें सफर में खाने के लिए रोटाना बनाकर देती थी। 😋😍