राउंड टेबल इंडिया
एक जागरूक आंबेडकर युग के लिए
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~ दीक्षाभूमि वह स्थल जहाँ 14 अक्टूबर 1956 को डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी आज अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है. हालात यही रहे तो यहाँ धम्मचक्र पवत्तन दिवस पर आने वाले जनसमूह का प्रवेश हमेशा के लिये प्रतिबंधित हो जाएगा.
कारण यह है कि इस स्थल पर महाराष्ट्र सरकार के आदेशानुसार पिछले कुछ महीनों से इस परिसर की ज़मीन खोद कर वाहनों के लिये तीन मंज़िली पार्किंग का निर्माण शुरु हो गया है. अब तक इतनी ज्यादा मिट्टी खोदी जा चुकी है कि उसका ढेर दीक्षाभूमि के स्तूप की बराबरी कर चुका है.
इस भीषण खुदाई से नागपुर के आम्बेडकरवादियों में रोष है और उन्होने अपने प्रयास से इस खुदाई और निर्माण कार्य को रुकवाने में सफलता हासिल की है. किंतु अब तक महाराष्ट्र सरकार या महानगर पालिका नागपुर ने इसे रोकने के लिये कोई आदेश जारी नहीं किया है. ~
दीक्षाभूमि बचाओ! अंडरग्राउंड पार्किंग का निर्माण बद करो !! – Round Table India 0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:2 Minute, 48 Second मिनल शेंडे (Minal Shende) दीक्षाभूमि वह स्थल, जहाँ 14 अक्टूबर 1956 को डॉ. बाबासाहेब आम्बेड....
~ मुझे कभी समझ नहीं आया कि ‘उन’ जैसी होना एक सबसे बड़ी समझदारी था या नादानी! कभी लगता रहा एक मात्र वही हैं जो विश्व में विजेता रहीं। सबका ध्यान खींचा। उन्होंने ही जीवन को नितांत जिया। वे मेरी तरह जीने को सदा टालती नहीं रहीं, किसी उम्र के परे, सफलता के परे, मौसमो के परे। उनके मुँह से ये शब्द नहीं निकले होंगे, कि बस एक बार ये काम बन जाए, फिर जिएंगे। वैसी ही ज़िन्दगी जैसी बचपन में सोची थी या जैसी आजकल जीते हैं, सब।
उन्होंने ग्रीष्म में बरसात का, बरसात में फिर पतझड़ का, पतझड़ में फिर शरद और फिर शरद में बसंत का, इंतज़ार करने की प्रवृत्ति नहीं रखी- उन्होंने सब मौसम बनाए। बिहु1 और सरहुल2 के त्योहार। फिर भी ना जाने क्यूँ मेरे मन में उन लड़कियों की प्रतिमाओं को लेकर एक टीस-सी थी।
मुझे कभी भी उन लड़कियों की श्रेणि में आना पसंद नहीं आया। अब इसके पीछे का सही-सही कारण तो मैं भी नहीं कह सकती। शायद ये वो कुछ शिक्षक/दोस्त और शुभचिंतक रहे जिन्होंने मेरे भीतर की प्रतिभा को परखा था और सचेत किया मुझे उन लड़कियों के झुण्ड में जाने से। मुझे अक्सर दिखाया गया कि वो लड़कियाँ किसी गहरे कूएँ के तले में रहती हैं। ~ Rachna Gautam
चमकती त्वचा वाली वो लड़कियाँ – Round Table India 1 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:9 Minute, 33 Second रचना गौतम (Rachna Gautam) मैं इन दिनों अक्सर एक सोच में पड़ जाती हूँ कि मैं कभी ‘उन’ लड़....
~ On October 13, 1935, on the occasion of a Depressed Classes conference held at Yeola, Babasaheb Ambedkar shocked everyone with his announcement. He declared that he would convert from Hinduism. “I was born in Hinduism,” he said, “but I will not die as a Hindu.” In 1936, Ambedkar organized a conference called Mumbai Ilakha Mahar Parishad (Mumbai Province Mahar Conference). Ambedkar reiterated his decision to convert from Hinduism and explained to his followers why he did want to do so. The address was later published as Mukti Kon Pathe (What Path to Salvation?). ~
https://www.roundtableindia.co.in/religion-ethics-and-kinship-on-dr-b-r-ambedkars-path-to-conversion/
thanks, abdul najeeb.
Religion, Ethics and Kinship: On Dr B.R Ambedkar’s Path to Conversion Abdul Najeeb Noorul Ameen The American philosopher Abi Doukhan makes an interesting observation in her book on the philosophy of Emmanuel Levinas. She states that the word ethics is derived from the Greek word ethos. The ethos pertains to the customs and principles of a society. The concept of the e...
~ अशोक ने साकेत में 200 फीट बड़ा स्तूप बनवाया जो एक लंबी कालावधि तक सुरक्षित रहा था। इसका वर्णन ज़ुएनज़ांग (ह्वेनसांग) ने किया था। उन्होंने एक और मठ को भी देखा था जिसकी पहचान कनिंघम द्वारा कालकादर्मा या पूर्ववद्र्मा के रूप में की गई है। ये मठ आज मणि पर्वत के मलबे के नीचे दब कर खो गए हैं। लेकिन क्या यह स्वाभाविक रूप से हुआ? बिल्कुल नहीं! हालांकि इस बारे में कनिंघम को ब्राहम्णों ने बताया कि यह पहाड़ यहाँ वानर राजा सुग्रीव की गलती का परिणाम है। उसने गलती से मणि पर्वत को इस स्थान पर गिरा दिया था। यह वह पर्वत है जिसका उपयोग वानरों ने राम की सहायता के लिए किया था। लेकिन सच्चाई यह है कि यह जानकारी इस स्थल राम को मिथक से जोड़ने का एक कुत्सित ब्राह्मणवादी प्रयास मात्र है। इस कल्पित कहानी का दूसरा पक्ष कनिंघम को साधारण स्थानीय लोगों से मिला। जिन्होंने उन्हें बताया कि यह टीला रामकोट के मंदिर का निर्माण करते वक्त घर लौटते हुए मजदूरों द्वारा हर शाम को इस स्थान पर अपनी टोकरियाँ खाली करने के कारण से हुआ। यही कारण है कि आज भी इस स्थान को ‘झोवा झार’ या ‘ओरा झार’ कहा जाता है जिसका अर्थ है ‘टोकरी खाली करना’। यानी राम के मंदिर को बनाते वक्त ज़मीन की खुदाई के मलबे से इस बौद्ध स्तूप को ढक दिया गया। इसमें तनिक भी संदेह नहीं होना चाहिए कि यह जानबूझकर किया गया था ताकि बौद्ध स्थल इस मलबे में हमेशा के लिये ढंक जाए। कनिंघम को बाद में पता चला कि किसी बौद्ध स्थल को ढांकने का यह पहला प्रयास नहीं है बल्कि ठीक यही हरकत बनारस, निमसार और अन्य बौद्ध स्थलों को टीले के नीचे ढांक कर पहले ही की जा चुकी थी।~ Ratnesh Katulkar
अयोध्या तो बस झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है – Round Table India 0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:32 Minute, 25 Second डा. रत्नेश कातुलकर (Dr. Ratnesh Katulkar) 90 के दशक में भारत दो ऐसे आंदोलन हुए जिन्होंने देश ....
~ बुद्ध के जीवन में ऐसी अवस्था उनके बुद्धत्व की प्राप्ति के कुछ दिनों बाद ही हुई. इसका कारण था कि उन्हें जिस ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उससे सारा मानव समाज अनजान था.
यह इतना अनोखा अनुभव था, इसे किसे बताया जाये, कि वह इसे पूरी तरह समझ सके? बुद्ध की यह चिंता थी. उन्हें ऐसा भी लग रहा था कि इस ज्ञान को साधारण इंसान के द्वारा समझ पाना एक टेढ़ी खीर है. क्योंकि एक आम व्यक्ति से लेकर बुद्धिजीवी जिन मिथकों में अपना जीवन बिता देते हैं जो ईश्वर, आत्मा, पुनर्जन्म, कर्मकांड, पुरोहितगिरी, तप, व्रत-उपवास और कर्मकाण्ड से भरा होता है, वे इन्हें ही सत्य और शाश्वत मानते हैं.
लेकिन धम्म में इन मान्यताओं का रत्ति भर भी स्थान नहीं है. और तो और जो किसी भी मुसीबत या चुनौती के पीछे हमेशा दोष किसी बाहरी ताकत पर ही मढ़ने की इन्सानी फितरत है, उसकी धम्म में कोई जगह नहीं. बुद्ध ने जिस सत्य को खोजा उसमें अधिकांश परेशानियों और गलतियों के पीछे कोई बाहरी ताकत नहीं बल्कि खुद इनको झेलने वाला व्यक्ति ही जिम्मेदार है. उनकी यह खोज थी कि किसी सहारे को मत ढूँढो बल्कि अपना द्वीप खुद बनाओ या अपना दीपक खुद बनों. ~ Ratnesh Katulkar
बुद्ध के प्रथम उपदेश की पृष्ठभूमि – Round Table India 0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:26 Minute, 17 Second बुद्ध के प्रथम उपदेश की पृष्ठभूमि डा. रत्नेश कातुलकर (Dr. Ratnesh Katulkar) ‘टू बी और नॉट ट....
~ सिलहट के महिमल नेताओं ने 1930 के दशक में हिंदू मछुआरों के साथ मिलकर ‘असम-बंगाल मछुआरा सम्मेलन’ नाम से एक संगठन बनाया। सम्मेलन ने अपनी पहली बैठक की और प्रस्तावित किया कि तत्कालीन यूपी सरकार ने ‘मोमेन’ को पिछड़े वर्ग में शामिल करने का निर्णय लिया। इसलिए असम के पिछड़े मुसलमानों को भी वही दर्जा दिया जाना चाहिए। महिमल बुद्धिजीवियों और उलेमाओं ने शुरू से ही धर्मनिरपेक्ष राजनीति को बढ़ावा दिया और स्वदेशी के रूप में अपनी पहचान का दावा करते हुए मुस्लिम लीग के दो-राष्ट्र सिद्धांत का जोरदार विरोध किया। महिमल जाति से एक उम्मीदवार अफ़ज़ उद्दीन ने लीग उम्मीदवार दीवान अब्दुल बैस्ट चौधरी के खिलाफ असम विधानसभा चुनाव लड़ा और दुर्भाग्य से थोड़े अंतर से हार गए।
सिलहट जनमत संग्रह के दौरान स्थिति को सांप्रदायिक बनाने के लिए मुस्लिम लीग के गंभीर उकसावे के बावजूद महिमल समुदाय ने भारत के पक्ष में मतदान किया। हुसैन अहमद मदनी सिलहट में बहुत प्रभावशाली थे। लेकिन हजारों उलेमाओं ने पाकिस्तान के पक्ष में प्रचार किया। अंत में सिलहट का एक हिस्सा जिसे वर्तमान में करीमगंज कहा जाता है, असम के भारतीय क्षेत्र में विलय हो गया। सजातीय विवाह की सख्त प्रथा के कारण मुसलमानों में अंतरजातीय विवाह नहीं होता था। अत: महिमल जाति के प्रति सामाजिक पूर्वाग्रह समाप्त नहीं हो सका।~ डॉ. ओही उद्दीन अहमद
जाहिलियत खत्म नहीं हुई: सिलहट-कछार क्षेत्र के महिमल के खिलाफ सामाजिक पूर्वाग्रह – Round Table India 0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:16 Minute, 36 Second डॉ. ओही उद्दीन अहमद (Ohi Uddin Ahmad) एक अंतर्देशीय मुस्लिम मछली पकड़ने वाली जाति जो मु....
~ पूरा विश्व इस बात को समझता है कि कोइतूर प्रकृति प्रेमी होते हैं। वे प्राकृतिक जीवन जीते हैं और प्रकृति को अपने परिवार का ही एक अंग समझते हैं। सच कहें तो प्रकृति ही उनके देवी-देवता और भगवान होते हैं। वे प्रकृति पूजक होते हैं और वे सपने में भी प्रकृति के विरुद्धु कोई कार्य नहीं करते हैं लेकिन आज के शहरीकरण और विकास की अंधी दौड़ में प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है और जल-जंगल-ज़मीन को प्रदूषित किया जा रहा है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। नदियों पर बाँध बनाये जा रहे हैं। विकास और औद्योगिकीकरण के नाम पर कोइतूरों की ज़मीनों का अधिकरण करके उन्हें विस्थापित किया जा रहा है।
आज पूरी दुनिया प्रकृति के साथ किए गये खिलवाड़ के कारण पैदा हुई परिस्थियों जैसे बाढ़, जंगली आग, उच्च तापमान, समुद्रतल का बढ़ना, सूखा इत्यादि का सामना कर रही है। पूरी मानवता के लिए ख़तरा मुँह बायें खड़ा हुआ है। ऐसी स्थिति में पूरी दुनिया कोइतूर युवाओं की तरफ़ देख रही है। ~ Dr.Surya Bali 'Suraj Dhurvey'
विश्व के कोइतूर लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस- भारत में एक नई क्रांति का आग़ाज़ – Round Table India 0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:43 Minute, 0 Second प्रोफ़ेसर (डॉ) सूर्या बाली ”सूरज धुर्वे” (Professor (Dr.) Surya Bali “Suraj Dhurve”) विगत एक दशक से भार...
~ हिंदी के साहित्यिक या आम समाज में प्रचलित टेक्स्ट और उसके इस तरह के आपत्तिजनक कॉन्टेक्स्ट वाली की भाषाई अभिव्यक्तियों से मंगलेश डबराल जैसे प्रगतिशील साहित्यकारों को क्यों महसूस नहीं हुआ होगा कि ये भाषा मर चुकी है, असल में हिदी साहित्य संसार में नियामक और नियंत्रक की मुख्य भूमिका वाला अपर कास्ट प्रगतिशील मानस समाज में मौजूद जातीय और लैंगिक गालियों अभिव्यक्तियों वर्चस्व को स्वाभाविक मान कर चलता है और टेक्स्ट की यही अनदेखी की गई स्वाभाविकता जब साम्प्रदायिक रूप ले लेती है तो वो इस तरह ज़ाहिर परिदृश्य उन्हें फासीवाद का स्पष्ट रूप लगने लगता है ।
ये उनकी दृष्टि की सीमा है जो एक गहन ऐतिहासिक समस्या को तात्कालिकता में समेट देना चाहती है।~ thank you Mohan Mukt
भाषा की हिंसा,हिंसा की भाषा और प्रतिरोध की सम्यक भाषा की निर्मिति की समस्याएँ – Round Table India 2 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:59 Minute, 30 Second मोहन मुक्त (Mohan Mukt) कुछेक दिन पहले फेसबुक पर एक पोस्ट देखी जिसमें ‘मुस्लिम अस्म....
~ जब भी हम किसी किताबों की दुकान पर जाते हैं, तो हमें काल्पनिक चरित्रों और अवास्तविक कहानियों पर आधारित किताबों और कॉमिक्स का भंडार दिखाई देता है। हालाँकि महान सामाजिक नेताओं पर साहित्य की हमेशा कमी रहती है, जिन्होंने सामाजिक असमानता को दूर करने और सभी मनुष्यों के लिए एक बेहतर दुनिया की स्थापना के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
‘भीमबाबा’ पुस्तक निश्चित रूप से इस अंतर या खाई को भरती है। यह पुस्तक केवल बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि उनके माता-पिता के लिए भी है क्योंकि लेखक ने भारतीय समाज में जाति व्यवस्था और पितृसत्ता जैसे गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दों को समझदारी के साथ सामने रखा है। उन्होंने बच्चों में प्रश्न पूछने के चलन को भी बढ़ावा दिया है। ~
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‘भीमबाबा’ वर्तमान और भावी पीढ़ी के लिए एक बहुमूल्य पुस्तक – Round Table India 0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:6 Minute, 55 Second शैलेश नरवड़े (Shailesh Narwade) जब मुझे ‘भीमबाबा’ नामक इस पुस्तक की प्रस्तावना लिखने के...
~ फिलहाल हमारा समाज इतना प्रिविलेज्ड (सुविधा-संपन्न) नहीं है, कि सभी लोग बाबा साहब की किताबें पढ़कर उनके बारे मे जानें, कल्चरल कैपिटल की कॉम्प्लेक्सिटी समझ सकें, शोषण के इतिहास का आकलन करने बैठें। समाज का ऐसा एक बड़ा अंडर-प्रिविलेज्ड तबका उनसे या उनके विचारों से अनजान है। ऐसे मे पहली ज़रूरत है कि उनको लोगों की नज़रों के सामने ज्यादा से ज्यादा लाया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग अपने समाज के आईकॉन को जानें। ये काम मूर्तियाँ बखूबी कर सकती हैं। मूर्तियों से लोगों को उनके विचार और आदर्श भले न समझ आएँ, लेकिन उन्हें इतना जरूर समझ आ जाता है कि कोई था जिसने समाज के शोषितों के लिए लड़ाई लड़ी और देश-दुनिया के लिए हीरो बन गया। ~ Vikas Verma
आंबेडकर किताबों में हैं, (और) मूर्तियों में भी। – Round Table India 0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:4 Minute, 38 Second विकास वर्मा (Vikas Verma) पिछ्ले कई सालों से बहुत लोगों को बोलते और लिखते हुए देखता आ ....
~ आज के महौल में पौराणिक कथाओं को पाठ्यक्रम में लाने की कोशिश की जा रही है। आजकल ‘हिंदू राष्ट्र’ की बात को भी बहुत बढ़ावा दिया जा रहा है। अभी भी हमारे जातिगत समाज में भेदभाव होता है। हिंदू राष्ट्र में तो जातिगत ताकतें और भी बढ़ेंगी। मगर जिस तरीके से लोगों के अंदर हिंदू धर्म को सबसे अच्छा मानने का माहौल बनाया जा रहा उससे यह बात लोगों को दिख नहीं रही है। इसीलिए उसके खिलाफ आवाज़ उठाने वाले भी कम है। ऐसे माहौल में हम संविधान के मूल उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में हमारा जो काम है वह समाज को थोड़ा टक्कर देने वाला है। इसके चलते हम आसानी से समाज के 'रक्षकों' के टारगेट में आ जाते हैं और ऐसे ही हमारे काम और हमारे टीचर्स के चरित्र के ऊपर कई बार सवाल उठता है।
एक ऐसी घटना तब हुई थी जब बस्ती में गणेश की मूर्ति बिठाई गई थी। स्कूल के बच्चे वहाँ जाते तो पंडाल के लड़के बच्चों के माथे पर टीका लगाते। एक दिन स्कूल के कुछ मुस्लिम बच्चों के मना करने के बावजूद भी उनके ऊपर टीका लगाने की कोशिश की गई थी। यह सब देखकर.... ~ झरना साहू
मज़दूरों का एक स्कूल और एक टीचर का कामकाजी सफ़र – Round Table India 0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:26 Minute, 51 Second झरना साहू (Jharna Sahu) मैंने इस लेख को इसीलिए लिखना शुरू किया क्योंकि लिखने से हमें ....
~ दरअसल, पत्र में आंबेडकर ने साफतौर पर गांधी की हत्या के बाद दुख जाहिर किया था और उन्होंने उस समय की परिस्थितियों का ब्योरा लिखा था। लेकिन अशोक कुमार पांडेय ने उस पत्र में अपनी सुविधा के मुताबिक कुछ पंक्तियों को उठा लिया और उसे अपनी किताब में प्रस्तुत कर दिया और उन्हीं पंक्तियों के आधार पर एक इतिहासकार के रूप में अपना फैसलाकुन निष्कर्ष प्रस्तुत कर दिया कि ‘आश्चर्य होता है कि (आंबेडकर का) यह हृदयहीन कथन उस गांधी के लिए है’ और (आंबेडकर ने) ‘…हत्यारे (नाथूराम गोड्से) की विचारधारा पर एक शब्द नहीं‘ कहा। इस लिहाज से देखें तो अशोक कुमार पांडेय (Ashok Kumar Pandey) इतिहास के किसी प्रसंग को दर्ज नहीं कर रहे, बल्कि उसे अपनी सुविधा के मुताबिक चयनित तरीके से कुछ पंक्तियों के आधार पर आंबेडकर के व्यक्तित्व के बारे में राय बनाने के एजेंडे को अंजाम दे रहे हैं। ~
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कौन हैं ये बाबा साहेब को ‘हृदयहीन’ और ‘गोड्से का समर्थक’ बताने वाले? – Round Table India 0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:54 Minute, 59 Second अरविंद शेष और राउंड टेबल इंडिया (Arvind Shesh & Round Table India) संदर्भ में मनमानी छेड़छाड़ के ....
~ जैसे अंग्रेज़ों ने अपनी सत्ता बनाने के लिए अपने कुछ मानसिक गुलाम पैदा किए जो रंग और चमड़ी से भारतीय हों और सोच से अंग्रेज़। ठीक ऐसे ही अपनी बात की वैधता के लिए इन अशराफ़ मौलानाओं को अब पसमांदा समाज के कुछ ग़ुलामों की आवश्यकता थी जो इनके मदरसों से इनकी किताबों को पढ़कर निकलें और इस बात को पसमंदा समाज को समझा सकें। कमाल की बात यह है कि ऐसा हुआ भी! कई सौ-दो-सौ सालों तक अशराफ़ मौलानाओं के फ़तवों और किताबों को पसमांदा मुसलमान सीने से लगा कर घूमता रहा। इन मदरसों के पसमांदा छात्र अपने समाज और जाति के प्रति अपमान सूचक गाली को आज भी ईश्वर की वाणी और आदेश समझ पढ़ रहे हैं। ~ लेखक अब्दुल्लाह मनसूर
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क्या सैयदवाद ही ब्राह्मणवाद है? – Round Table India 0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:14 Minute, 19 Second अब्दुल्लाह मंसूर (Abdullah Mansoor) मुस्लिम समाज में जातिवादी व्यवस्था पूरी तरह से मौज...
~ कुल इतनी ही पूरी कहानी है। इस बीच मशीनी और वीएफएक्स टेक्नोलॉजी के जरिए काल्पनिक पटका-पटकी के कंप्यूटरी फिल्मांकन का सपने से भी बदतर मनोरंजन है, जिसमें एक हताश और वंचना में लिथड़े समाज के मन में पलती नफरत, हिंसा, मूर्खता और सेक्स की भूख से पैदा कुंठा का शोषण करके उसी का कामयाब कारोबार किया गया है। बस..!
फिल्म देखते हुए ऐसा लगा गोया बागेश्वर बाबा टाइप किसी चमत्कारी बाबा का शो चल रहा है, जिसमें हर कदम पर बस चमत्कार है, अविश्वसनीय दृश्य है और इस सबका एजेंडा कुछ और है..! ~ Arvind Shesh
‘पठान’ के पर्दे में क्या-क्या छिपा है? – Round Table India 0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:8 Minute, 27 Second अरविंद शेष (Arvind Shesh) ‘पठान’ फिल्म शुरू ही होती है कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म होन.....
~ मैं कवि हूँ
उन दलित-आदिवासी स्त्रियों का
जिनको तुमने डायन बता कर निर्लज्ज किया था
और भीड़ बनकर उनकी हत्याओं में भागीदार रहे।
मैं तुम्हारा कवि नहीं हो सकता
जो हज़ारों हत्याओं के बावजूद भी मौन हो जाए
जो अंतिम सत्य मान ले तुम्हारे तर्कविहीन शास्त्रों को।
मैं तुम्हारा कवि नहीं हो सकता ~
https://hindi.roundtableindia.co.in/?p=11048
मैं तुम्हारा कवि नहीं हूँ… – Round Table India 0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:2 Minute, 1 Second विद्यासागर (Vidyasagar) मैं तुम्हारा कवि नहीं हूँमैं कवि हूँ अपने चमारटोली काजिसकी ....
~ कवि कृष्णचंद्र जी का जन्म 2 जून 1937 को हुआ। जिन्होंने स्वयं द्वारा अनुभव की गई एवम् समाज में घट रही घटनाओं को अपनी रचनाओं में स्थान दिया। कृष्णचंद्र जी स्वयं एक वंचित जाति से सम्बन्ध रखते हैं। इन्होंने बचपन से ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। 23 वर्ष की उम्र में अध्यापन को अपना कर्म क्षेत्र बना लिया था। रोहणा जी ने अध्यापन और लेखन के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। कृष्णचंद्र जी की अधिकतर रचनाएँ मुक्तक शैली की हैं। उन्होंने संत कबीरदास और सेठ ताराचंद किस्सों की रचना की है। डॉ. भीमराव आंबेडकर व ज्योतिराव फूले पर इन्होंने समाज को जागृत करती बहुत-सी रागनियाँ लिखी हैं। इन्होंने अनेक फुटकल रागनियों की भी रचना की, जिसमें पर्यावरण, स्त्री-शिक्षा, आपसी भाईचारा, समता, अंधविश्वास, देश प्रेम की भावना, गुरु महत्ता, व्यवहार विमर्श, सामाजिक चेतना और शिक्षा की ललक आदि विषयों को आधार बनाया है। ~
https://hindi.roundtableindia.co.in/?p=11041
कवि कृष्णचंद्र रोहणा की रचनाओं में सामाजिक न्याय एवं जाति विमर्श – Round Table India 0 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:15 Minute, 14 Second डॉ. दीपक मेवाती (Dr. Deepak Mewati) सामाजिक न्याय सभी मनुष्यों को समान मानने पर आधारित ह.....
~ अशराफ़ बार-बार यह तर्क देते हैं कि मुसलमानों (अशराफ़) की हुकूमत 800 साल तक भारत में रही। अगर यह बादशाह चाहते तो सभी को मुसलमान कर देते। मतलब उन्होंने ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन नहीं कराया। अब सवाल यह उठता है कि उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया! क्या वह सभी धर्मनिर्पेक्ष थे या इस्लाम की तालीमात को मानते थे (तुम्हारा दीन तुम्हारे साथ मेरा दीन मेरे साथ) या फिर इसके पीछे कोई आर्थिक कारण और निम्न जातियों के प्रति इन की तिरस्कार की भावना रही है! ‘मुस्लिम’ सुल्तानों और बादशाहों के प्रशासन को अगर हम देखें तो पाते हैं कि उन के प्रशासन में कोई भी पसमांदा मुसलमान नज़र नहीं आता। यहाँ तक कि भारत के ऊँची जातियों से धर्मांतरित मुसलामन भी प्रारम्भ में उन के प्रशासन में आप को नज़र नहीं आएंगे।
निज़ाम-उल-मुल्क तोसी ने सियासत नामा में लिखा है कि दिल्ली के सुल्तानों ने ईरानी राजाओं की विचारधारा और सभ्यता को स्वीकार कर लिया था। राज्यकीय विभागों और उच्च पदों पर तो तुर्को का ही वर्चस्व था। भारतीय मूल(पसमांदा) के मुसलमान विभागों(शासकीय) और पदों से दूर ही रहें। केवल मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली का वह पहला बादशाह था जिसने भारत के योग्य व्यक्तियों को जो मुसलमान हो चुके थे कुछ उच्च पद दिए, हालांकि यह बात बाहर से आये हुए मुसलमानो की इच्छा के विरुद्ध होती थी, जो बिना किसी गैर (भारतीय मूल के लोग) के मिश्रण के शासन के व्यवस्था प्रणाली में अंदर तक पहुँच रखते थे, और उन्होंने जातिगत अस्मिता के गैर इस्लामी विचार की तरफ झुकाव को हवा दी। ~
मध्यकालीन अशराफ़ इतिहास और पसमांदा सवाल – Round Table India 1 0 Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email Read Time:36 Minute, 29 Second लेखक : अब्दुल्लाह मंसूर (Abdullah Mansoor) हम यह जानते हैं कि पसमांदा मुसलमानों का न कोई ....
~ दूसरी तरफ बर्बर घुमंतू चरवाहों के मिथक, हमेशा आधिपत्य, सत्ता, शासन, युद्ध एवं हिंसा की बात करते हैं, इसीलिए उनका ईश्वर एक आक्रामक कबीले के सरदार की तरह हमेशा दंड देने की भाषा बोलता है। इसके विपरीत दुनिया भर की आदिवासी सभ्यताओं में अधिकतर मिथक स्थानीय जन-जीवन से जुड़े प्रतीकों को संभालते हुए लोक-कथा एवं दंत-कथाओं से होकर गुज़रते हैं, इनमें बड़े पैमाने की हिंसा या युद्ध की प्रशंसा इत्यादि बहुत अधिक नहीं होता है।
दुनिया भर में युद्धखोर चरवाहे समुदाय एवं स्थानीय खेतिहर समुदाय के बीच युद्ध हुआ है, दुनिया के अन्य ज्यादातर हिस्सों में धीरे-धीरे इन दो समुदायों के बीच एक समझौता बन गया है। पिछले कुछ हज़ार सालों में युद्धखोर चरवाहों ने खेतिहर समुदायों की जमीनों एवं स्त्रियों पर अधिकार करके पहले उन्हें अपना गुलाम बनाया।
लेकिन जल्द ही उनके बीच आपसी तालमेल एवं रोटी-बेटी का संबंध शुरू हो गया, और उनके बीच बड़े पैमाने पर सामाजिक, राजनीतिक धार्मिक एवं रक्त संबंधी संश्लेषण शुरू हुआ और वे धीरे-धीरे एक होते गए।
लेकिन भारत में यह नहीं हुआ। ~ शुक्रिया, संजय श्रमण जोठे
आंबेडकरवाद क्यों जरूरी है? – Round Table India संजय श्रमण (Sanjay Shraman) डॉक्टर अंबेडकर ने कहा है कि भारत का इतिहास असल में श्रमण और ब्राह्मण संस्कृति के संघर्ष का इतिहा.....
~ कौन जाने कितने मील
नंगे पाँव दौड़ा होगा पानी
मिट्टी से मिलने को
हर बार रूप बदलकर
मिट्टी से ही मिलने आता रहा पानी
पृथ्वी पर सारे झरने
उन जगहों पर हैं
जहाँ मिट्टी और पानी
हाथों में हाथ डालकर
घंटों बातें किया करते थे
सारी नदियाँ वहाँ बहती हैं
जहाँ
मिट्टी और पानी की
उन दो जोड़ी आँखों ने देखा था
एक सपना
साथ चलने का ~ thank you, Uma Saini
https://hindi.roundtableindia.co.in/?p=11016
पानी की लड़की और नीला रंग (कविताएँ) – Round Table India उमा सैनी (Uma Saini) पानी की लड़की और नीला रंग माँ !तुम्हारे आँसुओं के समन्दर से बनीमैं पानी की लड़कीजो हर छोटे दुख पर भीग ज...
~ इस सवाल का जवाब तो देना होगा न कि मुसलमानों का 85% पसमांदा समाज आज अगर गलाज़त में जी रहा है तो कसूरवार कौन है? सरकार को तो हम जी भर के गालियां देते ही हैं पर अब हमें अशराफ मुस्लिम रहनुमाओं से सवाल करने होंगे। हमारे मुसलिम समाज के धार्मिक और राजनीतिक रहनुमाओं ने कौन-सी रणनीति बनाई है जिस पर चल कर यह समाज अपनी गलाज़त से निकल सके? शिक्षा और रोज़गार क्या हमारी मुस्लिम राजनीति का हिस्सा है भी? ये समस्याएँ आखिर कभी राष्ट्रीय बहस का हिस्सा क्यों नहीं बन पाती हैं? तलाक के मुद्दे पर तो सड़कें भर देने वाले हमारे धार्मिक रहनुमा क्या इन मुद्दों पर कभी सड़कों पर निकले हैं? हिंदुत्व (फासिस्ट ताकतों) को मुसलमानों का सबसे बड़ा खतरा बताने वाले हमारे रहनुमाओं ने उससे लड़ने के लिए कौन-सी लोकतांत्रिक रणनीति समाज को दी है? कैसे हम इस खतरे का मुकाबला करें? क्या कोई तरीका है मुसलिम समाज के पास? दरअसल, हमारे रहनुमा (धार्मिक और राजनीतिक दोनों) सिर्फ जज्बाती बातों पर अपनी रोटियाँ सेंकने का काम करते हैं। हर चुनाव में ये इन पसमांदा मुसलामनों की भीड़ दिखा कर अपने बेटों और दामादों के लिए सीट माँग लेते हैं। ~ Abdullah Mansoor
पीऍफ़आई (PFI) पर लगे प्रतिबन्ध पर पसमांदा प्रतिक्रिया – Round Table India अब्दुल्लाह मंसूर (Abdullah Mansoor) गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के माध्यम से अवैध गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के त...
सुना है पवित्रता-अपवित्रता के रंग
पितसत्ता में जब घुलते हैं
तब ही खूब उभरते हैं
तब ही तो माँ लाडलों को अपने
सिखा-पढ़ाकर भेजती हैं बाहर-
दलित स्त्री संग प्रेम में पड़ना
बिगड़ जाना है
‘वो’ खानदान का सर्वनाश हैं करतीं
ख्याल रखना !
जिन घरों की ओखल में
कुचले जाते है
विघाती शब्दों के मूसल से
दलित स्त्रियों का
अस्तित्व
अरमान
स्वाभिमान उनका नित ही
ऐसे में प्रवेश द्वार नहीं ही है करतीं !
दलित स्त्रियाँ ?
नहीं
दलित स्त्रियाँ प्यार नहीं करती ! thank you, Rachna Gautam
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दलित स्त्रियाँ कहाँ प्यार करती हैं ? – Round Table India 1. ओ री सखी ! ओ री सखी !जब ढूँढते ढूँढते पा जाओ शोरिले से अक्षरों में मगरूर वो चार पन्ने और पढ़कर समझ आ जाएगणित तुम्हें इ.....
प्रिय
अशोक माहेश्वरी जी,
राजकमल प्रकाशन
उम्मीद है आप इस पत्र की गंभीरता को समझेंगे।
आपके प्रकाशन से एक किताब छपी है ‘उसने गांधी को क्यों मारा?’ इसे पढ़कर मैं गुस्से और क्षोभ से लिख रही हूँ। और मेरा सवाल है कि क्या आपका प्रकाशन बाबा साहेब डा. अम्बेडकर के खिलाफ किसी मुहीम का हिस्सा है?
उक्त किताब में पेज नंबर 157-158 पर गांधी जी की हत्या के बाद बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा अपनी दूसरी पत्नी माई साहेब सविता अम्बेडकर को लिखा गया एक कथित पत्र शेयर किया गया है और उसपर लेखक ने हिकारत भरी टिप्पणी की है।
वह लिखता है, ‘ आश्चर्य होता है कि यह हृदयहीन कथन उस गांधी के लिए है जिसने मुस्लिम लीग के समर्थन से बंगाल से चुनकर आए अम्बेडकर के कानून मंत्री बनाए जाने के किए दवाब डाला था। आश्चर्य यह भी है कि इसमें हत्यारे के मराठी होने पर दुःख है लेकिन उस विचारधारा पर एक शब्द नहीं है जिसके प्रतिनिधि ने गांधी की हत्या की थी।’ इस दो वाक्य के कथन में ही कई दुष्टतापूर्ण ऐतिहासिक छेड़छाड़ है। और लेखक व प्रकाशक के इरादे स्पष्ट होते हैं। - Anita Bharti
बाबा साहेब के अपमान पर राजकमल प्रकाशन को खुला पत्र - Round Table India हिंदी भाषा की वरिष्ठ लेखिका व् दलित लेखक संघ की पूर्व अध्यक्ष अनीता भारती ने राजकमल प्रकाशन को एक पत्र लिखा है जिस.....
राजनीतिक आरक्षण के अंत से सामाजिक रूप से पिछड़ी जातियों का अभ्युदय
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~ बाबासाहव को जल्द ही यह एहसास हो गया कि पुना समझौते के तहत शुरू किए गए दो चरणों के चुनाव सैद्धांतिक रूप से दलित वर्गो को छद्म प्रतिनिधित्व की और लेके जाएँगे। पूना समझौते के कुछ महीने के भीतर ही, उन्होंने गांधी को ‘एकल चुनाव’ के विकल्प का प्रस्ताव दिया, जहाँ जीतने वाले दलित वर्ग के उम्मीदवार को अपने ही समुदाय से 25 प्रतिशत वोट मिलने चाहिएं, ऐसी बात थी। गांधी ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया और 1937 और 1946 के चुनावों में, इस विकल्प को खारिज करने के परिणामस्वरूप, बाबा साहेब के सैद्धांतिक भय को सत्य पाया गया। इस के बाद, संविधान सभा को प्रस्तुत किए एक बयान में, उन्होंने बार-बार अपनी स्थिति दोहराई कि केवल अलग/स्वतंत्र मतदाता ही अछूतों का वास्तविक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर सकते है। ~ thank you, Dr. Jas Simran Kehal
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राजनीतिक आरक्षण के अंत से सामाजिक रूप से पिछड़ी जातियों का अभ्युदय - Round Table India डॉ. जस सिमरन कहल (Dr. Jas Simran Kehal) ऐसा कहा जाता है कि यदि हम अपनी गलतियों से सीखें और शोषणकर्ताओं को अपना धैर्य और आशा न छीनने ...
~ कबीर और रैदास के बाद इस स्थिति को ठीक करने की जिम्मेदारी गुरु नानक उठाते हैं। वे कबीर और रैदास सहित बाबा फ़रीद की विरासत को भी ठीक से सहेजकर आगे बढ़ाना चाहते हैं। इस सबके बीच वे जानते आए हैं कि इस देश मे सदियों से मलाई खा रहा पुरोहित वर्ग नए संप्रदायों मे घुसकर कैसे वहाँ जहर फैलाता है। इसलिए गुरु नानक आरंभ से ही बहुत सावधान होते हैं और ब्राह्मणवादी पाखंड को दूर रखने की जितनी कोशिश की जा सकती थी उतनी कोशिश करते हैं। उनके बाद के गुरु तो न सिर्फ जाति और वर्ण को सीधे सीधे नकार देते हैं बल्कि गुरु शिष्य परंपरा मे आमूल-चूल बदलाव करते हुए अपने ही पाँच शिष्यों को अमृतपान करवा उन शिष्यों को गुरु समान मानकर उनके प्रति वही सम्मान व्यक्त करते हैं जो एक शिष्य अपने गुरु के प्रति करता है। और मजे की बात ये कि ये पाँच प्रमुख शिष्य (पंज पियारे) उन जातियों और वर्णों से आते हैं जिन्हे पुराने शोषक धर्म के द्वारा अछूत और शूद्र बताया गया था। ~
~ यह जो मौलिक देन है गुरु नानक की, इसे पूरी गरीब और पिछड़ी जातियों के सबलीकरण का आधार बनना चाहिए। कबीर, रैदास, मुहम्मद और नानक की युति को इस दिशा में बहुत गंभीरता से समझना जरुरी है। कबीर और रैदास एक तरफ जहां एक नए मार्ग की सैद्धांतिक भूमिका बनाते हैं वहीं नानक उसी को “ओपरेशनलाइज” कर देते हैं। वे सिद्धांत को एक ठोस रचना में बदल देते हैं। कबीर अपनी मर्जी से हिन्दू मुस्लिम की श्रेणी के बाहर खड़े हैं और नानक और उनके बाद के गुरु तो खुद में एक नई ही श्रेणी बन जाते हैं। ~ DrSanjay Jothe
गुरु नानक देव और धार्मिक-सामाजिक क्रांति - Round Table India संजय जोठे (Sanjay Jothe) गुरु नानक इस देश में एक नयी ही धार्मिक-सामाजिक क्रान्ति और जागरण के प्रस्तोता हैं। पूरे मध्यकालीन ....
- लाल गेट -
आज़ादी का रंग कौन सा होता है
मुझे नहीं पता
पर किसी ने देखा है उसे
एक लाल-गेट के पीछे
एक उम्मीद जो उसे बचाए रखी है
उन ऊँची बंद दीवारों में
जहाँ आसमान है
वहाँ सूरज कभी नहीं निकलता
रात के अँधेरे में
चाँद सहारा नहीं देता
कभी नदी की हवा
बहते हुए नहीं पहुँचती
वह खुद से सवाल करते हैं
हम यहाँ क्यों हूँ
न हमने चोरी की, न डकैती ही
फिर किस जुर्म की सजा मिली है हमें ?
वह विद्रोही बन जाते है
आंदोलन खड़ा करते है
सवाल करते है
आखिर,
हार कर चुप हो जाते है
आज वह बाहर हैं
पर आज़ाद नहीं हैं
हर हफ्ते वे थाने जाते हैं
और अंगूठे पर एक दाग लेकर वापस आते हैं
लाख कोशिशों के वाबजूद
वह दाग नहीं मिटा पाते
आज भी उनकी आँखों में
वही सवाल ठहरा हुआ है
आखिर,
हमारा कुसूर क्या है ?
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~ आज वह बाहर हैं
पर आज़ाद नहीं हैं
हर हफ्ते वे थाने जाते हैं
और अंगूठे पर एक दाग लेकर वापस आते हैं
लाख कोशिशों के वाबजूद
वह दाग नहीं मिटा पाते
आज भी उनकी आँखों में
वही सवाल ठहरा हुआ है
आखिर,
हमारा कुसूर क्या है ? ~ Wahida Parveez
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इक ख्वाब के नक़्शे-कदम (तीन कविताएँ) मैंने उसे फिर महसूस किया अपने दो झंगों के बीच मेरा हाथ उसके सिर पर था मैंने खुशी से आँखें मूँद लीं आँखों से कुछ बूँद.....
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~ इतिहास हमारा छीन कर
कब तक मौज मनाओगे
वीर गाथा दबा कर हमारी
शेर तो ना बन जाओगे
धूर्त ही कहलाओगे
मेरे हाथ में कलम है जो
अब उसने चलना सीख लिया है
इतिहास की परतें खोल रही हूँ
मैंने खोजी होना सीख लिया है
काफी कुछ तो ढूँढ लिया है
बहुत कुछ मगर अभी है बाकि
झूठी शानो-शौकत से तेरी
पर्दा उठाना सीख लिया है
ढूँढते ढूँढते पहुँच जाऊँगी
इतिहास के आखरी पन्ने तक- इक रोज़
उस दिन इस मुल्क में
असली तख्ता पलट होगा
जल जंगल ज़मीन का सिंह गरजेगा
गीदड़ो को फिर भागना होगा
उस दिन की खातिर तुम
तैयार रहना
रहने-ठिकाने का बंदोबस्त
ज़रा करके रखना !! ~ thank you, Karuna Kannu
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तुम तैयार रहना (3 कविताएँ) ढूँढते ढूँढते पहुँच जाऊँगी इतिहास के आखरी पन्ने तक- इक रोज़ उस दिन इस मुल्क में असली तख्ता पलट होगा जल जंगल ज़मीन का .....