Shyamapyaari

Shyamapyaari

❤️Sajaao Shyamapyaari Ko❤️
😍देखौ माई सुंदरता की सीव

08/12/2022

🥰💛मेरी लाड़ली मेरे श्याम🥰💛
मेरे लिए तोह सब आप ही हो दूसरो न कोई💛
जय जय श्री हित हरिवंश💛
Gurudev Bhagwan Ki Jai 💛

29/11/2022

हमें बस अपनी श्री जी के होना है।💛
जय जय श्री हित हरिवंश💛
Gurudev Bhagwan Ki Jai 💛

29/11/2022

हर परिस्थिति में हमारे साथी हमारे प्रिया प्रीतम है💛
जय जय श्री हित हरिवंश💛
Gurudev Bhagwan Ki Jai 💛

27/11/2022

जय जय श्री राधे🙇‍♀️🌿

जय जय श्री हित हरिवंश💛
Gurudev Bhagwan Ki Jai 💛

26/11/2022

हमारे माई श्यामा जू को राज💛
एक मात्र लाडिलीजू की कृपा पर पूर्ण विश्वास रक्खो, उनकी कृपा से हमें सब कुछ मिल जाएगा, स्वयं लाडिलीजू भी।💛
श्री राधावल्लभ श्री हरिवंश💛
Gurudev Bhagwan Ki Jai 💛

24/11/2022

कृपा🙇‍♀️
Shri Radhavallabh Shri Harivansh 💛
Gurudev Bhagwan Ki Jai Jai 💛

09/11/2022

तुम साथ हो जो मेरे, किस चीज की कमी है।
किसी और चीज की, अब दरकार ही नहीं है।
तेरे साथ से गुलाम, अब गुलफाम हो रहा है॥

मेरा आपकी कृपा से, सब काम हो रहा है।
करते हो तुम कन्हैया, मेरा नाम हो रहा है॥
🙇‍♀️💕

06/11/2022

जब संत मिलन हो जाए
तेरी वाणी हरी गुण गाए
तब इतना समझ लेना
अब हरी से मिलन होगा💛

#2022

01/11/2022

हूँ मैं जहाँ तुम हो वहाँ.. तुम बिन नहीं है कुछ यहाँ.. 🥺💛

28/10/2022

आप तो बस एक काम करो मन लगे या न लगे भाव बने या न बने केवल जिह्वा से निरंतर मशीन की तरह नाम लेते जाओ।फिर नाम ही सब कर देगा जो करना है।🙇‍♀️💛
Radha Radha Radha Radha Radha Radha 💛
Shri Radhavallabh Shri Harivansh 💛
Gurudev Bhagwan Ki Jai Jai 💛

24/10/2022

हमारे लिए तो 365 दिन दिवाली है हमारा दिवाली होली दशहरा छठ सब प्रिया प्रीतम है। असल में शरीर को मिटाकर यानी भुलाकर जिस दिन दिवाली मनाई वही असली दिवाली है।जिस दिन प्रिया लाल को पा लिया वही दिन हमारा असली दिवाली है।जिस दिन निरंतर नाम रूपी दिया जीभ में जला लिया उसी दिन हमारे लिए दिवाली है।💛
Shri Harivansh 💛
Gurudev Bhagwan Ki Jai 💛



#2022

20/10/2022

मन क्रम वचन त्रिशुद्ध सकल मत, हम श्री हित 'हरिवंश' उपासी 💛

17/10/2022

बस इतना ही ज्ञान काम का है और सब बेकार है कूड़ा करकट है ""मैं श्यामा श्याम का श्यामा श्याम मेरे ।""
Radhaa💛
Gurudev Bhagwan ki Jai 💛
Shri Radhavallabh Shri Harivansh 💛

13/10/2022

तुलसी माला से जुड़े सवालों के जवाब👇

1)क्या वॉशरूम जाते समय, स्नान करते समय, अंतिम संस्कार में तुलसी की माला हटा देनी चाहिए?

-कोई आवश्यकता नहीं है, यदि आप भोग तुलसी की माला धारण कर रहे हैं तो वह हमेशा के लिए शुद्ध हो जाएगी। फिर भी अगर कोई उस पर यंत्र पहनता है और फिर किसी मृत शरीर को छूता है, तो उन्हें यंत्र को हटा देना चाहिए क्योंकि यह अप्रभावी हो जाता है, फिर भी तुलसी आपको कृष्ण की दया देने में हमेशा प्रभावी होगी।

2) क्या हम तुलसी की माला को कुछ समय के लिए हटा सकते हैं जब हमें लगता है कि पवित्र तुलसी माला के सम्मान को ध्यान में रखते हुए किसी काम के दौरान इसे पहनने का उचित समय नहीं है? क्या हम इसके बाद इसे फिर से पहन सकते हैं?

-यदि आप 4 नियामक सिद्धांतों का पालन कर रहे हैं तो हर समय तुलसी की माला धारण करने का उपयुक्त समय है। और यदि आप 4 नियामक सिद्धांतों का पालन नहीं कर रहे हैं तो आप पहले से ही अपराध कर रहे हैं। इसलिए पूर्वव्यापी और सुधार करें।

3)जो शाकाहारी हैं लेकिन लहसुन, प्याज खाते हैं और चाय पीते हैं, उनके लिए तुलसी की माला कॉफी पहन सकते हैं?

-तुलसी की माला जिसे हम धारण करते हैं उसे कांठी माला कहते हैं। यानी गले के मोतियों को इतना टाइट होना चाहिए कि वह हमारे गले (फूड पाइप) को छुए - हालांकि यह सुनिश्चित कर लें कि यह इतना टाइट नहीं है कि आप इसे दबा दें। जब हम कोई भी खाद्य पदार्थ खाते हैं तो वह तुलसी के स्पर्श से शुद्ध हो जाता है। अब अगर आपके लिए तुलसी पर प्याज, लहसुन आदि रखना ठीक है, तो यह आप पर निर्भर है। लेकिन ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।

4) क्या गले में सिर्फ 3 माला की माला पहनना जरूरी है? क्या हम माला को एक धागे के रूप में पहन सकते हैं?

-चक्रों की संख्या कोई मायने नहीं रखती है|

5)जो लहसुन, प्याज खाते हैं और चाय, कॉफी पीते हैं और किसी गुरु के शिष्य नहीं हैं, वे तुलसी जप माला से जाप कर सकते हैं?

-कर सकते हैं लेकिन देवी तुलसी के अपमान के कारण नहीं करना चाहिए।

6)अगर किसी ने तुलसी की माला पहनी हो और तुलसी की जप की माला खरीदी हो और प्याज, लहसुन खा रहा हो तो क्या वह गले से माला निकाल सकता है?

ईमानदारी से अगर आप सच्चे हैं और वास्तविक कारणों से प्याज और लहसुन को छोड़ने में परेशानी हो रही है तो आप इसे पहन सकते हैं और इसका जप करते रह सकते हैं क्योंकि यह आपको किसी दिन और आगे बढ़ने की अनुमति देगा।

07/10/2022

तुलसी की ही माला क्यों ?
तुलसी वैष्णव का धर्म का प्रतीक है। श्री कृष्ण एवं विष्णु को प्रसन्न करने के लिये तुलसी की माला को जप व धारण किया जाता है। तुलसी कृष्ण को प्रिय थीं इसलिए उपासक, साधक या वैष्णव धर्म प्रेमी तुलसी की माला का प्रयोग करते हैं।

क्या आप ने तुलसी माला धारण की है?

कृष्णप्रिया तुलसीमाते की जय
जो मनुष्य तुलसी की माला धारण करता है उनको यमदूत त्रास नही देते उनको श्रीभगवान के दूत बड़े आदर के साथ ले जाते है।
ऐसा कहते हैं कि मरणासन व्यक्ति के मस्तक पर तुलसी जी की रज, अथवा पत्ता अथवा लकड़ी रख देने से उसके जन्म-मरण का चक्कर खत्म हो जाता है।

यही नहीं तुलसी जी की इतनी महिमा है कि यदि कोई व्यक्ति तुलसी जी के चरणों की रज़ अर्थात् तुलसी जी के गमले की मिट्टी मृत व्यक्ति के मस्तक पर अथवा छाती पर लगा दे तो उसकी भी संसार में वापसी नहीं होती।

श्रीमद्भागवत् के छठे स्कन्ध में श्री यमराज जी कहते हैं कि जो भगवान के पवित्र नामों का कीर्तन करते रहते हैं, ऐसे लोग मेरी दण्ड की सीमा में नहीं आते।यमदूत उन भक्तों के पास भी नहीं जाते.....

ऐसा कहा गया हे की भगवान के चरनोंसे सदा तुलसी की सुगंध आती हे !
तुलसी भगवान को प्रिय हे तुलसी भी मुक्ति दायिनी हे !

28/09/2022

देखौ माई सुंदरता की सीवाँ।
व्रज नव तरुनि कदंब नागरी, निरखि करतिं अधग्रीवाँ।।
जो कोउ कोटि कलप लगि जीवे रसना कोटिक पावै।
तऊ रुचिर वदनारबिंद की सोभा कहत न आवै।।
देव लोक भूलोक रसातल सुनि कवि कुल मति डरिये।
सहज माधुरी अंग अंग की कहि कासौं पटतरिये।।
(जै श्री) हित हरिवंश प्रताप रूप गुन वय बल स्याम उजागर।
जाकी भ्रू विलास बस पसुरिव दिन विथकत रस सागर
- हित हरिवंश महाप्रभु, हित चौरासी (52)

भावार्थ- श्रीहित सखी (श्री हित हरिवंश महाप्रभु) कहती हैं- हे सखियों ! सुन्दरता की सीमा (श्रीराधा) को तो देखो !जिस नागरी को देख कर समस्त व्रज की नव युवती गण (उसकी सौंदर्य राशि के सामने लज्जावश अपना) सिर झुका लेती हैं अर्थात् उनके रूप के सामने अपने रूप की लघुता स्वीकार करके सिर नीचा कर लेती हैं लजाकर । उन अपार श्रीप्रिया रूप की शोभा का वर्णन करने के लिये यदि कोई कोटि कोटि कल्पों तक जीवित रहकर कोटि कोटि जिह्वायें प्राप्त कर भी ले तो भी उस रुचि पूर्ण मुख कमल की शोभा का वर्णन वह नहीं कर सकता। (उससे वह शोभा कहते ही न आवेगी) देवलोक, भूलोक एवं रसातल के समस्त कवि कुल (समुदाय) की बुद्धि (उस रूप की महिमा का वर्णन) सुन सुन कर डरती रहती है कि हम उस अंग प्रत्यंग के सहज माधुर्य की उपमा दें तो दें किससे ? (अथवा श्रीहित जी कहते हैं कि जिसके वर्णन करने में समस्त कवि कुल की मति चौंधया रही है फिर मैं ही उस रूप की उपमा कैसे और किससे दूँ ?") श्रीहित हरिवंश चन्द्र (महाप्रभु) कहते हैं, मैं इतना ही कहूं -"श्रीश्याम सुन्दर तो प्रताप, रूप, गुण, आयु (वय) एवं बल सभी बातों में उजागर हैं-प्रगट हैं फिर भी वे रस समुद्र श्याम जिसकी भृकुटियों के इशारे के वशवर्त्ती पशु की भाँति निरन्तर लाचार से रहे आते हैं, (उस रूप की सीमा-श्रीराधा-को देखो, समझो)" ।

20/09/2022

गऊ सेवा
अनादिकाल से मानवजाति गऊमाता की सेवा कर अपने जीवन को सुखी, सम्रद्ध, निरोग, ऐश्वर्यवान एवं सौभाग्यशाली बनाती चली आ रही है. गऊमाता की सेवा के माहात्म्य से शास्त्र भरे पड़े है. आईये शास्त्रों की गौ महिमा की कुछ झलकियाँ देखे –
तीर्थ स्थानों में जाकर स्नान दान से जो पुन्य प्राप्त होता है, ब्राह्मणों को भोजन कराने से जिस पुन्य की प्राप्ति होती है, सम्पूर्ण व्रत-उपवास, तपस्या, महादान तथा हरि की आराधना करने पर जो पुन्य प्राप्त होता है, सम्पूर्ण प्रथ्वी की परिक्रमा, सम्पूर्ण वेदों के पढने तथा समस्त यज्ञो के करने से मनुष्य जिस पुन्य को पाता है, वही पुन्य  बुद्धिमान पुरुष गऊ माता को ग्रास खिलाकर प्राप्त कर लेता है.
जो पुरुष गऊ की सेवा और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है, उस पर संतुष्ट होकर गऊ माता उसे अत्यंत दुर्लभ वर प्रदान करती है.
गऊ की सेवा यानि गाय को चारा डालना, पानी पिलाना, गाय की पीठ सहलाना, रोगी गाय का ईलाज करवाना आदि करने वाले मनुष्य पुत्र, धन, विद्या, सुख आदि जिस-जिस वस्तु की इच्छा करता है, वे सब उसे प्राप्त हो जाती है, उसके लिए कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं होती.
गऊ का समुदाय जहा बैठकर निर्भयता पूर्वक साँस लेता है, उस स्थान की शोभा को बढ़ा देता है और वह के सारे पापो को खीच लेता है.
देवराज इंद्र कहते है- गऊ में सभी तीर्थ निवास करते है. जो मनुष्य गाय की पीठ स्पर्श करता है और उसकी पूछ को नमस्कार करता है वह मानो तीर्थो में तीन दिनों तक उपवास पूर्वक रहकर स्नान कर लेता है.
भगवान विष्णु, एकादशी व्रत, गंगानदी, तुलसी, ब्रह्मण और गाय – ये ६ इस दुर्गम असार संसार से मुक्ति दिलाने वाले है.
जिसके घर बछड़े सहित एक भी गाय होती है, उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते है और उसका मंगल होता है. जिसके घर में एक भी गऊ दूध देने वाले न हो उसका मंगल कैसे हो सकता है ? और उसके अमंगल का नाश कैसे हो सकता है ?.
गऊ, ब्राह्मणों तथा रोगियों को जब कुछ दिया जाता है उस समय जो न देने की सलाह देते है वे मरकर प्रेत बनते है.
भगवान् विष्णु देवराज इन्द्र से कहते है कि हे देवराज! जो मनुष्य अस्वस्थ वृक्ष और गऊ की सदा पूजा सेवा करता है, उसके द्वारा देवताओं, असुरो और मनुष्यों सहित सम्पूर्ण जगत की भी पूजा हो जाती है. उस रूप में उसके द्वारा की हुई पूजा को मैं यथार्थ रूप से अपनी पूजा मानकर ग्रहण करें

#गौमाता_राष्ट्रमाता #गौमाता

14/09/2022

URGENT HELP REQUIRED ⚠️
कृप्या अपनी सामर्थ और भाव अनुसार सहयोग राशि दान करें
आपका दिया एक एक दान कितनी ही गौमाता के लिए जीवनदान साबित होगा ।
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Let's get together to save and protect GAU MATA 💕
For details pls msg me🙏

Photos from Shayamapyaari's post 07/09/2022

Shri Hit Mangal Gaan

जै जै श्री हरिवंश व्यास कुल मंडना ।
रसिक अनन्य्नी मुख्य गुरु जन भय खण्डना।।
श्री वृन्दावन बास रास रस भूमि जहाँ ।
क्रीडत श्यामा श्याम पुलिन मंजुल तहां ।।

पुलिन मंजुल परम पावन त्रिविध तहां मारूत बहै ।
कुञ्ज भवन विचित्र शोभा मदन नित सेवत रहै ।।
तहाँ सन्तत व्यास नन्दन रहत कलुष विहण्डना ।
जै जै श्री हरिवंश व्यास कुल मण्डना ।। १ ।।

जय जय श्री हरिवंश चन्द्र उददित सदा ।
द्विज कुल कुमुद प्रकाश विपुल सुख सम्पदा ।।
पर उपकार विचार सुमति जग विस्तरी ।
करुणासिन्धु कृपाल काल भय सब हरी ।।

हरी सब कलिकाल की भय कृपा रूप जू वपु धरयौ।
करत जे अनसहन निन्दक तिन्हूँ पै अनुग्रह करयौ ।।
निरभिमान निर्वेर निरुपम निष्कलंक जू सर्वदा ।
जय जय श्री हरिवंश चन्द्र उददित सदा ।। २ ।।

जय जय श्री हरिवंश प्रशंसत सब दुनी ।
सारासार विवेकत कोविद बहु गुनी ।।
गुप्तरीति आचरण प्रगट सब जग दिये ।
ज्ञान धर्म व्रत क्रम भक्ति किंकर किये ।।

भक्ति हित जे शरण आये द्वन्द दोष जू सब घटे ।
कमल कर जिन अभय दीने कर्म बन्धन सब कटे ।।
परम सुखद सुशील सुन्दर पाहि स्वामिन मम घनी ।।
जय जय श्री हरिवंश प्रशंसत सब दुनी ।। ३ ।।

जय जय श्री हरिवंश नाम गुण गाई है।
प्रेम लक्षणा भक्ति सुदृढ़ करी पाई है ।।
अरु बाढ़े रसरीति प्रीति चित ना टरे ।
जीति विषम संसार कीरति जग बिस्तरै ।।

विस्तरै सव जग विमल कीरति साधु संगती ना टरै ।
वास वृन्दाविपिन पावै श्रीराधिका जु कृपा करै ।।
चतुर युगल किशोर सेवक दिन प्रसादहिं पाई है ।
जय जय श्री हरिवंश नाम गुण गाई है ।। ४ ।।

Photos from Shayamapyaari's post 03/09/2022

ढाँढिन नन्द गाँव तें आई।
श्रीवृषभान राइ की रानी कीरति कन्या जाई ॥
आपुन झाँझ बजावत गावत ढाँढी हुरक बजाई ।
कीरति रानी अति आदर दै भीरत भवन बुलाई॥
ढाँढिन जाइ महल में नाची अति आनन्द रस भीनी । श्रीवृषाभान राइ की ढाँढिन संग गावत परवीनी॥
🌿🌿🌿💐🌿🌿🌿🌸🌿🌿🌿🌹

29/08/2022

महान नदियों में सबसे बड़ी श्री यमुना को भगवान श्री कृष्ण की रानी पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। वह सूर्य (सूर्य) की बेटी और यम (मृत्यु के देवता) और शनि (शनि) के भाई हैं। भगवान का दिव्य निवास गोलोक यमुना का घर है। जब भगवान ने यमुना को पृथ्वी पर उतरने का आदेश दिया, तो वह सबसे पहले श्रीकृष्ण के चक्कर लगाने गईं। तत्पश्चात, वह बड़ी शक्ति के साथ सुमेरु पर्वत की चोटी पर उतरी। उसकी यात्रा वहाँ से महान पर्वत श्रृंखलाओं के दक्षिणी भाग की ओर शुरू हुई। और एक शिखर कालिंद पर पहुंच गया, नीचे की ओर अपनी यात्रा शुरू करने के लिए, जब से यमुना ने कालिंद चोटी से नीचे की ओर अपनी यात्रा शुरू की, इसलिए उसे कालिंदी की उपाधि मिली। कई चोटियों को पार करते हुए और रास्ते में विशाल मैदानों को गीला करते हुए, यमुना व्रजा क्षेत्र में वृंदावन और मथुरा तक पहुंचने के लिए तेजी से यात्रा करती है।गोकुल में, अत्यंत सुंदर यमुना ने भाग लेने के लिए किशोर लड़कियों के एक समूह का गठन किया, जो भगवान कृष्ण की रास है। उसने स्थायी रहने के लिए वहां एक निवास स्थान भी चुना। पुष्टि मार्ग में, श्री यमुनाजी "श्रीनाथजी के प्रिय" के रूप में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। श्री राधिकाजी और श्री यमुनाजी दोनों ही श्री ठाकुरजी की अपरिहार्य सखियाँ या आत्मा साथी हैं। वह केवल एक नदी नहीं है, बल्कि वस्तुतः भक्ति का तरल रूप है, पूर्ण भक्ति जो अनंत काल तक बहती है। दिव्य रास के दौरान जब श्री राधिकाजी श्री ठाकुरजी (अन्य गोपंगनों के अहंकार को कम करने के लिए) के अचानक गायब होने से परेशान थे, श्री कृष्ण ने श्री यमुनाजी को अपनी वेशभूषा और आभूषणों में भेजा। वह श्री राधिकाजी के चेहरे से उदासी मिटाने के लिए बिल्कुल श्रीकृष्ण की तरह लग रही थीं।वह ईश्वरीय कृपा की साक्षात प्रतिमूर्ति हैं। श्रीमदा वल्लभाचार्यजी ने उनकी कृपा से भगवान के अपने पहले दर्शन प्राप्त किए। जब ​​वे पहली बार व्रज आए, तो आचार्यश्री ने पवित्र नदी - यमुनाजी के तट पर विश्राम किया। जिस स्थान पर उन्होंने पहली बार विश्राम किया, वह (उस समय) गोकुल के छोटे से गाँव के ठीक बाहर था। वहाँ, वह उनके सामने प्रकट हुई और उनकी कृपा से, आचार्यजी सीधे भगवान से बात करने में सक्षम थे। यह स्थान अब ठकुरानी घाट के रूप में प्रतिष्ठित है। वह यहीं पर है, कि भगवान श्री आचार्य जी से सीधे बात करने के लिए श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की 11वें दिन मध्यरात्रि को आए थे। इस समय, भगवान ने वल्लभाचार्यजी को कलियुग के इस दुष्ट युग से आत्माओं को मुक्त करने की कुंजी दी।
पुष्टि मार्ग में यह शायद सबसे महत्वपूर्ण भजन है। श्री महाप्रभुजी उस स्थान की शक्ति से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने आदेल में एक घर बनाने का फैसला किया। संगम के तट पर कई त्योहार और प्रमुख धार्मिक उत्सव मनाए जाते हैं। इस प्रकार श्री यमुनाजी श्री गोवर्धननाथजी और उनके भक्तों के बीच किसी भी मध्यस्थ की स्थिति रखते हैं।

28/08/2022

Yamunashtak 🌸
नमामि यमुनामहं सकल सिद्धि हेतुं मुदा,
मुरारि पद पंकज स्फ़ुरदमन्द रेणुत्कटाम।
तटस्थ नव कानन प्रकटमोद पुष्पाम्बुना,
सुरासुरसुपूजित स्मरपितुः श्रियं बिभ्रतीम।।१।।

कलिन्द गिरि मस्तके पतदमन्दपूरोज्ज्वला,
विलासगमनोल्लसत्प्रकटगण्ड्शैलोन्न्ता।
सघोषगति दन्तुरा समधिरूढदोलोत्तमा,
मुकुन्दरतिवर्द्धिनी जयति पद्मबन्धोः सुता।।२।।
भुवं भुवनपावनी मधिगतामनेकस्वनैः,
प्रियाभिरिव सेवितां शुकमयूरहंसादिभिः।
तरंगभुजकंकण प्रकटमुक्तिकावालूका,
नितन्बतटसुन्दरीं नमत कृष्ण्तुर्यप्रियाम।।३।।

अनन्तगुण भूषिते शिवविरंचिदेवस्तुते,
घनाघननिभे सदा ध्रुवपराशराभीष्टदे।
विशुद्ध मथुरातटे सकलगोपगोपीवृते,
कृपाजलधिसंश्रिते मम मनः सुखं भावय।।४।।

यया चरणपद्मजा मुररिपोः प्रियं भावुका,
समागमनतो भवत्सकलसिद्धिदा सेवताम।
तया सह्शतामियात्कमलजा सपत्नीवय,
हरिप्रियकलिन्दया मनसि मे सदा स्थीयताम।।५।।

नमोस्तु यमुने सदा तव चरित्र मत्यद्भुतं,
न जातु यमयातना भवति ते पयः पानतः।
यमोपि भगिनीसुतान कथमुहन्ति दुष्टानपि,
प्रियो भवति सेवनात्तव हरेर्यथा गोपिकाः।।६।।

ममास्तु तव सन्निधौ तनुनवत्वमेतावता,
न दुर्लभतमारतिर्मुररिपौ मुकुन्दप्रिये।
अतोस्तु तव लालना सुरधुनी परं सुंगमा,
त्तवैव भुवि कीर्तिता न तु कदापि पुष्टिस्थितैः।।७।।

स्तुति तव करोति कः कमलजासपत्नि प्रिये,
हरेर्यदनुसेवया भवति सौख्यमामोक्षतः।
इयं तव कथाधिका सकल गोपिका संगम,
स्मरश्रमजलाणुभिः सकल गात्रजैः संगमः।।८।।

तवाष्टकमिदं मुदा पठति सूरसूते सदा,
समस्तदुरितक्षयो भवति वै मुकुन्दे रतिः।
तया सकलसिद्धयो मुररिपुश्च सन्तुष्यति,
स्वभावविजयो भवेत वदति वल्लभः श्री हरेः।।९।।

20/08/2022

कौन भांति तुम रीझौ किशोरी ।
ज्यौं रीझौ सोइ करौं कृपानिधि, जहँ लगि चलि है मोरी ॥
मोहि तौ जतन नयन नहिं सुझत, मन बुधि वेग थक्यौ री ।
'भोरी' सहज कृपालु लाड़िली, आपुन क्यों न कहौ री ॥

20/08/2022

(82)क्रमशः से आगे .............
*राणा विक्रमादित्य ने मीरा को बाँस की छाब में दो काले भुजंग भिजवाये और कहलवाया कि शालिगराम जी और फूल है। छाब का ढक्कन खोलते ही नाग निकले, लेकिन देखते ही देखते एक ने शालिगराम का स्वरूप ले लिया और एक ने रत्नों के हार का ।*
*जब दासी कुमकुम को चेत आया तो वह मीरा के चरणों में सिर रखकर रो पड़ी - " मैं कुछ नहीं जानती अन्नदाता ! मुझे तो महाराणा के सेवक ने यह छाब पकड़ाई और कहा कि शालिगराम जी और फूल है मैं आपके यहाँ पहुँचा दूँ। यदि मैं इस साज़िश के बारे में जानती होऊँ तो भगवान इसी समय मेरे प्राण हर लें" फिर एकाएक चौंक कर बोली ," वे कहाँ गये दोनों कालींगढ़ ? "*
*" ये रहे। " मीरा ने एक हाथ से शालिगराम जी को और दूसरे से गले में पड़े हार को छूते हुये बताया - " तुम डरो मत ! मेरे साँवरे समर्थ है। "*
*श्यामकुँवर बहुत क्रोधित हुई यह सब देखकर और बोली ," अभी जाकर काकोसा से पूछती हूँ कि यह सब क्या है ? अभी तक तो सुनते ही थे पर आज तो आँखों के समक्ष सब देख लिया। "*
*पर मीरा ने बेटी को शांत कर समझाया ," कुछ नहीं पूछना है और हमारे पास प्रमाण भी कहाँ है कि उन्होंने साँप भेजे ।फिर साँप है कहाँ ? ब्लकि गोमती , जा !जोशी जी को बुला ला ,बोलना शालिगराम प्रभु पधारे है। प्राणप्रतिष्ठा करनी है। और चम्पा ! प्रभु के आगमन पर उत्सव भोग की तैयारी करो , और सब महलों में प्रसाद भी बंटेगा। "*
*श्यामकुँवर तो यह सब देख सकते में आ गई - एक शरणागत का ,एक भक्त का किसी भी स्थिति को देखने का ,उस स्थिति को संभालने का ही नहीं ब्लकि उसे प्रभु की लीला मान उसे उत्सव का स्वरूप दे देना - कितना भावभीना दृष्टिकोण है !"*
*" और मेरे लिए क्या आज्ञा है हुकम ? "कुमकुम रो पड़ी - " जो यह प्रसाद मेरे पल्ले में न बँधा होता तो वे नाग मुझे अवश्य डस गये होते। अब वहाँ जाकर क्या अर्ज़ करूँ ?"*
*" केवल यही कहना कि छाब को मैं कुंवराणी के पास रख आई हूँ और अर्ज़ कर दिया है कि शालिगराम और फूलों के हार है। इच्छा हो तो उत्सव के पश्चात आकर तुम प्रसाद ले जाना। "मीरा ने कहा।*



*" न जाने किस जन्म के पाप का उदय हुआ कि ऐसे कार्य में निमित्त बनी। यदि आपको कुछ हो जाता अन्नदाता ! तो मुझे नरक में भी ठिकाना न मिलता। हुज़ूर आप तो पीहर पधार रही है....... मुझे भी कोई सेवा प्रदान कर देती !" दासी ने आँसू पौंछते हुये कहा।*



" *मेरी क्या सेवा ? सेवा तो ठाकुर जी की है। उनका जो नाम अच्छा लगे , उठते - बैठते काम करते हुये लेती रहो। जीभ को न तो खाली रहने दो और न फालतू बातों में उलझायो। यह कोई कठिन काम नहीं है , पर आदत नहीं होने से प्रारम्भ में कठिन लगेगा ।आदत बनने पर तो लोग घोड़े - ऊँट पर भी नींद ले लेते है। बस इतना ध्यान रखना कि नियम छूटे नहीं। "मीरा ने कहा।*



*" मुझे .......भी एक ......ठाकुर जी .......बख्शावें। म्हूँ लायक तो कोय न , पण हुज़र री दया दृष्टि सूँ तर जाऊँली। " कुमकुम ने संकोच से आँचल फैला कर कहा।*



*मीरा उसके भाव से प्रसन्न हो बोली ," बहुत भाग्यशाली हो जो ठाकुर जी की सेवा की इच्छा जगी। प्रसाद लेने आवोगी तो जोशीजी भगवान और नाम दोनों दे देंगे। इनके नाम में सारी मुसीबतों के फंद काटने की शक्ति है। यदि तुम नाम भगवान को पकड़े रहोगी तो आगे - से - आगे राह स्वयं सूझती जायेगी और वह स्वयं भी आकर तुम्हारे ह्रदय में ,नयनों में बस जायेंगे। "*



*" आज तो मेरा भाग्य खुल गया।" कहते हुये उसने अपने आँसुओं से मीरा के चरण पखार दिए ।*



*शालिगराम जी के पधारने का उत्सव हुआ। जब जोशी जी ने शालिगराम भगवान का पंचामृत अभिषेक हुआ तो श्यामकुँवर और दासियों ने जयघोष कर मीरा का उत्साह वर्द्धन किया। मीरा भगवान के स्वयं घर पधारने से प्रसन्न चित्त मुद्रा में पर अतिशय भावुक हो विनम्रता से शीश निवाया। और ह्रदय के समस्त भावों से प्रियतम का स्वागत करने में तन्मय हो गईं.........*



🌿म्हाँरे घर आयो प्रियतम प्यारा ...........



_क्रमशः .................._

18/08/2022

*प्रश्न.आप पूछ रहे कैसे हम वृन्दावन वास् कर सकते है।?*

*उत्तर -जब तक आपका मन व्याकुल ना हो जाये, कही भी मन न लगे ,संसार खिलौना सा लगे,नौकरी पैसा, स्त्री ,भोग, इन सबसे मन हट जाए तब समझ जाना राधारानी की कृपा हो गयी।तब आ जाना कुछ न देखना न सुनना।पर जब तक ऐसी स्थिति नही आती तब तक घर मे रहकर राधा राधा रटो ओर सबकी सेवा में रहो सबके लिऐ यही आज्ञा है

17/08/2022

(81)
क्रमशः से आगे ..............
*मीरा और श्यामकुँवर दोनों गिरधर की सेवा में लगी थी - कि एक कुमकुम नाम की दासी बड़ी सी बाँस की छाब लेकर आई और बोली ," महाराणा जी ने आपके लिए शालिगराम जी और फूलों की माला भिजवाई है हुकम !"*
*" शालिगराम कौन लाया ? कोई पशुपतिनाथ याँ मुक्तिनाथ के दर्शन करके आया है क्या ?" मीरा ने अपने सदा के मीठे स्वर में पूछा।*
*" मुझे नहीं मालूम अन्नदाता ! मुझे जो हुकम हुआ , उसे पालन के लिए मैं हाज़िर हो गई ।वैसे भी बहुत समय से मेरे मन में आप हुज़ूर के दर्शन की लालसा थी ।आज महामाया ने पूरी की। मुझ गरीब पर मेहर रखावें सरकार ,हम तो बड़े लोगों का हुकम बजाने वाले छोटे लोग हैं सरकार !" कुमकुम ने भरे कण्ठ से कहा।**" ऐसा कोई विचार मत करो। हम सब ही चाकर है उस म्होटे धणी ( भगवान ) के। जिसकी चाकरी में है , उसमें कोई चूक न पड़ने दें , बस। हम सब का ठाकुर सबणे जाणे और सब देखे है ,उससे कुछ छिपा नहीं रहता " मीरा ने स्नेह से समझाते हुये कहा ," गोमती ! इन्हें प्रसाद दे तो ।"*फिर श्यामकुँवर की ओर देखती हुई मीरा बोली ," बेटी ! इस छाब की डोरियों को खोलो तो , तुम्हारे गिरधर के साथ इनकी भी पूजा कर लूँ। कोई लालजीसा के लिए पशुपतिनाथ याँ मुक्तिनाथ से शालिगराम भेंट में लाया होगा तो उन्होंने मेरी काम की चीज़ समझ कर यहाँ भेज दिए हैं ।"*
*जैसे ही श्यामकुँवर ने डोरी खोलने को हाथ बढ़ाया तो चम्पा बोल पड़ी " ठहरिये बाईसा ! इसे हाथ मत लगाईये। जिस तरह से यह दासी इसे ला रही थी - यह छाब भारी प्रतीत होती थी और शालिगराम तथा फूलों का भार ही कितना होता है ?"*तू तो पगली है चम्पा ! उधर से हवा भी आये तो तू वहम से भर जाती है । तुम खोलो बेटा !" मीरा ने श्यामकुँवर से कहा।*श्यामकुँवर खोलने लगी तो कुमकुम प्रसाद को ओढ़नी में बाँध आगे बढ़ आई ," सरकार ! बहुत मज़बूती से बँधी है। आपके हाथ छिल जायेंगे , लाईये मैं खोले देती हूँ। "*उसने डोरियों को खोल जैसे ही छाब का ढक्कन उठाया , फूत्कार करते हुये दो बड़े बड़े काले भुजंग चौड़े फण उठाकर खड़े हो गये। दासियों और श्यामकुँवर के मुख से चीख निकल पड़ी। कुमकुम की आँखें आश्चर्य से फट सी गई, और वह घबराकर अचेत हो गई। मीरा तो मुस्कराते हुये ऐसे देख रही थी मानों बालकों का खेल हो। देखते ही देखते एक साँप छाब में से निकलकर मीरा की गोद में होकर उसके गले में माला की भांति लटक गया।**" बड़ा हुकम !" श्यामकुँवर व्याकुल स्वर में चीख सी पड़ी।*
*" डरो मत बेटा ! मेरे साँवरे की लीला देखो ।"*

15/08/2022

टेरी सुनौ वृषभानु किशोरी ।
बीती वृथा आयु बहुतेरी, शेष रही अति थोरी ।।
मन अकुलात उपाय न सूझत, शरण गही दृढ़ तोरी ।
भोरी सहज कृपालु निहारौ, नैक कृपा की कोरी ।।

हे श्री राधे, मेरी विनती सुनो!
अधिकांश आयु वृथा ही बीत चुका है, बहुत कम अब शेष है ।
दिन-रात बेचैनी से भटक रहा हूँ , और कोई दूसरा साधन नहीं मिला, मैं सीधे आपके चरण कमलों में आ गया, आपको अपना एकमात्र सहारा मानता हूं ।
श्री भोरी सखि कहती हैं, "हे मेरी दयालु कृपालु स्वामिनी, कृपया मेरे ऊपर एक बार के लिए ही सही आप अपनी करुणा दृष्टि कीजिये ।"

14/08/2022

(80)क्रमशः से आगे ...
*मीरा अभी भी भावावेश में ही है । किशोरीजू ने होली के उत्सव में श्यामसुन्दर पर विजय पाई। मीरा की सेवा और समर्पण से प्रसन्न हो जब प्रियाजी ने मीरा को अपना प्रसाद दिया तो वह आनन्द के वेग को न संभाल पाने से अचेत हो गई।*
*कितनी देर अचेत रही , ज्ञात नहीं ।जब संभली तो देखा कि विशाखा जीजी श्रीकृष्ण का उत्तरीय ,मेरी रंग भरी चुनरी और किशोरीजू के प्रसादी वस्त्र, सब मुझे देती हुई बोली - " तनिक चेत कर बहन ! सांझ हो रही है। "*
*" नन्दीग्राम जाओगी बहिन ?" श्री किशोरीजू ने पूछा।*
*क्या उत्तर दूँ ? मन भर आया था ।मैं रोते हुये प्रियाजी के चरणों से लिपट गई - " इन चरणों से दूर जाने की किसे इच्छा होगी स्वामिनी जू ?"*
*प्रियाजी ने मुझे अपनी बाँहों में भरते हुये कहा , " तुम मुझसे दूर नहीं हो बहिन। पर तुम्हारे वहाँ होने से हमें बड़ी सुविधा है , वहाँ के समाचार मिलते रहते है। "*
*" श्रीजू ! क्या कहूँ ? मैं किसी योग्य नहीं। बस आपकी चरणरज की सेवा में बनाए रखने की कृपा हो ! जैसी - तैसी बस मैं आपकी हूँ........ - " मैं फिर उनके चरणों में लुढ़क गई।*
*" मैं घर जाय रहयो हूँ , तू भी साथ चलेगी क्या ? रास्ते में तू अपने घर चली जाना ,तेरी माँ चिन्ता करती होयेगी " - श्यामसुन्दर ने हाथ पकड़ कर उठाते हुये कहा तो मुझे चेत हुआ । किशोरीजू की आज्ञा से सखियों ने मुझे उनके प्रसादी वस्त्र और आभूषणों से अलंकृत किया। ह्रदय से लगाकर राधारानी ने मुझे श्याम जू के साथ विदा किया ।*
*" तेरा श्रृगांर किसने किया री ? " श्यामसुन्दर ने राह में मुझसे चलते चलते पूछा।*
*" मालूम नहीं ! मेरी आँखों में तो प्रियाजी के चरण समाये है। "*
*" मैं नहीं दिखता री तुझे ?"*
*" समझ में नहीं पड़ता श्याम जू ! कभी तुम , कभी किशोरीजू ।वही तुम ,तुम वही ,कभी आप दोनों एक हो , कभी अलग ।*" तू तो बड़ी सिद्ध हो गई है री-जो इती बड़ी बड़ी बातें बोल रही। पर तेरो तिलक कछु ठीक नाहिं लागे मोहे ....... ठीक कर दूँ क्या ?*बस मीरा उसी समय मूर्ति की तरह जड़ हो गई ।वह चित्तौड़ में अपने महल में, शरीर में वापिस तो लौट आई थी पर मन कहीं छूट गया था। कभी पागल सी हँसती , कभी रोती......। मीरा की यह दशा देख श्यामकुंवर बाईसा उदयकुंवर बाईसा से लिपट कर रोने लगीं - " मेरी बड़ी माँ को यह क्या हो गया?"*
कुछ नहीं बेटा ! इनको जब जब भगवान् के दर्शन होते है, ये ऐसी ही हो जाती है।तुम धीरज रखो ! अभी भाभी म्हाँरा ठीक हो जायेंगी "उदयकुँवर ने बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।*
*श्यामकुँवर ने मीरा को ऐसी दशा में कभी देखा नहीं था - पुलकित देह ,सतत आसूओं की धारा से अधखुले नेत्र , मुख पर अनिर्वचनीय आनन्द ।वह दौड़ कर गिरधर गोपाल से बिलखते हुये प्रार्थना करने लगी - " ऐ रे म्हाँरा वीरा ! म्होटा माँ ही मेरी सब कुछ है। इन्हें मुझसे मत .....छीनो .....मत छीनो। "*
*चम्पा, चमेली आदि दासियाँ ने श्यामकुँवर को स्नेह से समझाया और सब मीरा के समीप बैठ संकीर्तन करने लगी*

" मोहन मुकुन्द मुरारे कृष्ण वासुदेव हरे "
*दो घड़ी के पश्चात मीरा के पलक-पटल धीरेधीरे उघड़े किन्तु आनन्द के वेग से पुनः मुंद जाते ।कीर्तन के स्वरों के साथ साथ मीरा सामान्य हुई तो श्यामकुँवर ने भी प्रसन्न हो माँ की गोद में सिर रख दिया। मीरा ने भी बेटी को दुलारा ।*



*दासियाँ उठकर रंग के कुण्डे पिचकारियाँ साफ करने में लग गई ।मीरा ने अपनी ओढ़नी से कुछ निकाल कर स्नेह से श्यामकुँवर के हाथ में थमा दिया। उसने मुट्ठियाँ खोलकर देखा तो वन केतकी के दो पुष्प और एक पेड़ा ।उसने साभिप्राय माँ की तरफ़ देखा। " प्रभु ने दिये है ।प्रसाद खा लो और फूलों को संभाल कर रखना " मीरा ने उत्तर दिया।*



*सबके जाने के बाद मीरा ने जब अपनी साड़ी पर रंग देखा तो उसे वापस उसी दिव्य लीला का स्मरण हो आया - कितना हास - परिहास , कितना हँसी विनोद और सब सखियों की भीड़ ......। पर वह अपने वर्तमान में अपने को यूँ अकेला पा उदास हो गई और उसके मन की पीड़ा स्वर बन झंकृत हो उठे..........*
🌿किनु संग खेलूँ होली........
पिया तज गये हैं अकेली......🌿



_क्रमशः .................._

12/08/2022

"मेरी महारानी श्री राधा रानी।
जाके बल मै सबसौ तोड़ी, लोक वेद कुल कानी।।
लाल बिहारी को प्राण जीवन धन, वारी पियत नित पानी।।
भगवत रसिक सहायक सब दिन, सर्वोपरि सुखदानी।।"

12/08/2022

(79)क्रमशः से आगे..मीरा के महल में होली का उत्सव है। वह भावावेश में गिरिराज परिसर में किशोरीजू की सखियों के संग मिल श्यामसुन्दर के साथ होली खेल रही है।विशाखा से परिमर्श कर वह ठाकुर की घेराबन्दी के लिए उनकी हिम्मत को ललकारती आगे बढ़ी तो ललित नागर ने उसे ही पकड़ कर अच्छे से रंग दिया ।**मेरे हाथों में थमी अबीर बिखर गई और अपना मुख बचाने के लिए मैंने उनके कंधे पर धर दिया।*
" ए, मेरा उत्तरीय कहाँ छिपाया है तूने ?" उन्होंने एक हाथ से मुझे पकड़े हुये और दूसरे हाथ से मुझे गुलाल मलते हुये कहा ।मुझे कहाँ इतना होश था कि किसी बात का जवाब दे पाऊँ ।ये धन्य क्षण ,यह दुर्लभ अवसर , कहीं छोटा न पड़ जाये , खो न जाये . मेरे हाथ पाँव ढीले पड़ रहे थे , मन तो जैसे डूब रहा था उस स्पर्श , सुवास, रूप और वचन माधुरी में।" ए , नींद ले रही है क्या मज़े से ? " उन्होंने मुझे झकझोर दिया - " मैं क्या कह रहा हूँ , सुनती नहीं ?" फिर धीरे से कहा ," कहाँ है दे दे न, यह ले तेरी चुनरी .ले .।मेरा सुझाव काम कर गया। मुझसे उलझे रहने से श्याम जू को पता ही नहीं चला कि कब चारों ओर से सखियों ने उन्हें घेर लिया।**यह तो हम से धोखा किया।" उन्होंने और सखाओं ने चिल्ला कर कहा , पर सुने कौन ? सखियाँ उन्हें पकड़ कर गिरिराज निकुन्ज में ले चली। जाते जाते मेरी ओर देखकर ऐसे संकेत किया - " ठहर जा , कभी बताऊँगा तुझे।"सखियों ने मिलकर श्याम जू को लहंगा फरिया पहना उन्हें छोरी बनाया और फिर श्रीदाम भैया से उनकी गाँठ जोड़ी। दोनों का ब्याह रचाया। खूब धूम मची ।सखियों ने तो अपनी विजय की प्रसन्नता में कितना हो -हल्ला किया। गाजे - बाजे के साथ बनोली निकली। सखियाँ गीत गा रही थी ।उनके सखा बाराती बन श्रीदाम के साथ चले। श्याम जू बेचारे - विवश से चलते लहंगा - फरिया में रह रहकर उलझ जाते। ललिता जीजी दुल्हन की बाँह पकड़े संभाले थी। ब्याह के बाद दुल्हा - दुल्हन को श्री किशोरीजू के चरणों में प्रणाम कराया तो प्रियाजी ने भी उदार मन से दोनों को शगुण और आशीर्वाद दिया ।हम सब हँस हँस कर दोहरी हो रही थी |सन्धया में सबने मल मल कर स्नान किया और रंग उतारा। किशोरीजू ने उन्हें निकुन्ज में पधराया और सखियों ने भोजन कराया। उनके सखा जीम - जूठकर प्रसन्न हो विदा हुए। भोजन के समय भी विविध विनोद होते रहे।श्री किशोरीजू ने प्रसन्न हो मेरा हाथ थामकर समीप खींचा - " आज की बाजी तेरे हाथ रही बहिन !" कहकर उन्होंने स्नेह से चम्मच में बची खीर मेरे मुख में दे दी।" अहा सखी ! उसका स्वाद कैसे बताऊँ तुम्हें ? उस स्वाद - सुधा के आनन्द को संभाल पाना मेरे बस न रहा और मैं अचेत हो गई|

11/08/2022

देखौ माई सुंदरता की सीवाँ।
व्रज नव तरुनि कदंब नागरी, निरखि करतिं अधग्रीवाँ।।
जो कोउ कोटि कलप लगि जीवे रसना कोटिक पावै।
तऊ रुचिर वदनारबिंद की सोभा कहत न आवै।।
देव लोक भूलोक रसातल सुनि कवि कुल मति डरिये।
सहज माधुरी अंग अंग की कहि कासौं पटतरिये।।
(जै श्री) हित हरिवंश प्रताप रूप गुन वय बल स्याम उजागर।
जाकी भ्रू विलास बस पसुरिव दिन विथकत रस सागर
- हित हरिवंश महाप्रभु, हित चौरासी (52)

भावार्थ- श्रीहित सखी (श्री हित हरिवंश महाप्रभु) कहती हैं- हे सखियों ! सुन्दरता की सीमा (श्रीराधा) को तो देखो !जिस नागरी को देख कर समस्त व्रज की नव युवती गण (उसकी सौंदर्य राशि के सामने लज्जावश अपना) सिर झुका लेती हैं अर्थात् उनके रूप के सामने अपने रूप की लघुता स्वीकार करके सिर नीचा कर लेती हैं लजाकर । उन अपार श्रीप्रिया रूप की शोभा का वर्णन करने के लिये यदि कोई कोटि कोटि कल्पों तक जीवित रहकर कोटि कोटि जिह्वायें प्राप्त कर भी ले तो भी उस रुचि पूर्ण मुख कमल की शोभा का वर्णन वह नहीं कर सकता। (उससे वह शोभा कहते ही न आवेगी) देवलोक, भूलोक एवं रसातल के समस्त कवि कुल (समुदाय) की बुद्धि (उस रूप की महिमा का वर्णन) सुन सुन कर डरती रहती है कि हम उस अंग प्रत्यंग के सहज माधुर्य की उपमा दें तो दें किससे ? (अथवा श्रीहित जी कहते हैं कि जिसके वर्णन करने में समस्त कवि कुल की मति चौंधया रही है फिर मैं ही उस रूप की उपमा कैसे और किससे दूँ ?") श्रीहित हरिवंश चन्द्र (महाप्रभु) कहते हैं, मैं इतना ही कहूं -"श्रीश्याम सुन्दर तो प्रताप, रूप, गुण, आयु (वय) एवं बल सभी बातों में उजागर हैं-प्रगट हैं फिर भी वे रस समुद्र श्याम जिसकी भृकुटियों के इशारे के वशवर्त्ती पशु की भाँति निरन्तर लाचार से रहे आते हैं, (उस रूप की सीमा-श्रीराधा-को देखो, समझो)" ।

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10/08/2022

78 -क्रमशः से आगे ..
*होली के रागरंग में मीरा भावावेश में बरसाना जा रही है। श्यामसुन्दर राह में मिल गये और मीरा को रंग दिया। होरी की छीनाझपटी में मीरा की चुनरी श्रीकृष्ण के पास और उनका दुपट्टा मीरा के पास है। मीरा कान्हा जी को दुपट्टा किशोरीजू को नज़र करना चाहती है ।राह में सखी करूणा के घर से चुनरी ले जब वह बरसाना पहुँचती है तो उसे महलों में रानियाँ और दासियों के अतिरिक्त कोई नहीं दीखता।*
*मन में उत्सुकता थी कि किशोरीजू कहाँ है ? मैं उनके कक्ष में गई तो वहाँ दया बैठी मेरी प्रतीक्षा कर रही थी - " आ गई तू ? कहाँ रह गई थी ? चल अब जल्दी !"*
*मैं उसके साथ गिरिराज परिसर में पहुँची। होली की धूम मच रही थी वहाँ। एक ओर बड़े बड़े कलशों में लाल पीला हरा रंग घोला हुआ था। सखियों के कन्धों पर टंगी झोलियों में और हाथों पर अबीर गुलाल था। दोनों ओर कठिन होड़ थी। कभी नन्दगाँव से आये हुये श्यामसुन्दर के सखा और वे पीछे हटते और कभी किशोरीजू सहित हमें पीछे हटना पड़ता ।*
*पिचकारियों की बौछार से और गुलाल की फुहार से सबके मुख - वस्त्र रंगे थे। किसी को भी पहचानना कठिन हो रहा था ।**मैंने उस रंग की घनघोर बौछार में विशाखा जीजी को पहचान लिया। वे किशोरी जी की बाँई ओर थी। समीप जाकर मैंने धीमे से उनके कान में दुपट्टे की बात कही , किन्तु उसी समय श्याम जू और उनके सखाओं ने इतनी ज़ोर से हा-हा हू-हू की कि जीजी बात सुन ही न पाई। मैंने दुपट्टा निकाल कर उन्हें दिखाना चाहा , तभी पिचकारी की तीव्र धार मेरे मुँह पर पड़ी। मैंने उधर देखा तो श्यामसुन्दर ने मुँह बिचकाकर अँगूठा दिखा दिया। दूसरे ही क्षण उन्होंने डोलची से मेरी पीठ पर इतनी ज़ोर से रंग वाले पानी की बौछार की कि मैं पीड़ा से दोहरी हो गई । विशाखा जीजी हाथ पकड़ कर मुझे दूर ले गई - " अब कह क्या हुआ ?"**" यह देखो , कान्हा जू का उत्तरीय " मैंने दुपट्टा उनके हाथ में देते हुये कहा।* *" यह कहाँ ,कैसे मिला ?" जीजी ने पूछा।**मैंने सब बात कह सुनाई तो वह प्रसन्न हो हँस पड़ी - " सुन अब श्यामसुन्दर को पकड़ पाये तो बात बने। बारबार हमारी मोर्चाबंदी को उनके सखा तोड़ देते है ।"**जीजी ! आज श्याम जू मुझसे चिढ़े हुये है ,अतः मुझे ही अधिक परेशान करेंगे ।मैं आगे रहूँ तो अवश्य मुझे व रंगने याँ गिराने का प्रयास करेंगे। मैं कुछ आगे बढ़ूँगी तो वह भी आगे बढ़ेगें। जैसे ही वे मुझे गुलाल लगाने लगे , बस तभी दोनों ओर से सखियाँ उन्हें घेरकर पकड़ ले ।"**" बात तो उचित लगती है तेरी ।पर यह उत्तरीय पहले कहीं छिपा कर रख दूँ " जीजी ने प्रसन्न होते हुये कहा। मेरी राय सबको पसन्द आई।

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