Ramayana
रामायण| यह एक नाम ही आपके सभी दुःख दर्द को हर लेने के लिए काफी है| चलिए, इसे एक बार और पढ़ते है|
नारदजी ने कहा - वह पर से भी परतर है, जिनका निवासस्थान परमधाम से उत्कृष्ट से उत्कृष्ट है तथा जो सगुन और निर्गुणरूप है, उन श्रीराम को मेरा नमस्कार है| जो दैत्यों का विनाश और नरक का अंत करनेवाले है|
जो अपनी भुजाओ के बल से धर्म की रक्षा करते है, पृथ्वी के भार का विनाश जिनका मनोरञ्जनमात्र है, उन रघुकुलदीप श्रीरामदेव को मैं नमस्कार करता हूँ|
जो एक होकर भी चार स्वरूपों में अवतीर्ण होते है, जिन्होंने वानरों को साथ लेकर राक्षससेना का संहार किया है, उन दशरथनन्दन श्रीरामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूँ|
भगवान् श्रीराम के ऐसे ऐसे चरित्र है जिनको करोडो वर्षो में भी नहीं गिनाये जा सकते है, जिनके नाम की महिमा मनु और मुनीश्वर भी पार नहीं पा सकते, जिनके नाम से स्मरण मात्र से पातकी भी पावन बन जाते है उन परमात्मा का स्तवन मेरे जैसा तुच्छ बुद्धिवाला प्राणी कैसे कर सकता है|
जो घोर कलयुग में रामायण कथा का आश्रय लेते है, वे ही कृतकृत्य है| उनके लिए तुम्हे सदा नमस्कार करना चाहिए| सनत्कुमार जी ! भगवान की महिमा को जानने के लिए कार्तिक, माघ और चैत्र शुक्ल पक्ष में रामायण की अमृतमयी कथा का नवाह श्रवण करना चाहिए| राम -राम|
ऋषियों ने पूछा - देवर्षि नारदमुनि ने सनत्कुमार से रामायण सम्बन्धी धर्मो का किस प्रकार वर्णन किया था| उनका किस क्षेत्र में मिलान हुआ था और वे कहाँ ठहरे थे? नारदमुनि ने उनसे जो कुछ भी कहा वह सब आप हमें विस्तार पूर्वक बताइये|
सूतजी ने कहा- ममता और अहंकार रहित सनकादि भगवान् ब्रह्मा के पुत्र माने गए है| इनके नाम क्रमशः सनक, सनन्दन, सनत्कुमार और सनातन है|
यह चारो मिलकर ही सनकादि के नाम से जाने जाते है| सहस्र सूर्य की भाँति दमकने वाले ये विष्णु भक्त एक दिन ब्रह्मा जी की सभा को देखने मेरु पर्वत के शिखर पर गए|
वहां श्रीविष्णु के चरणों से प्रकट हुई पुण्यमयी गंगानदी जिसे सीता भी कहते है, बह रही थी| वे महात्मा उस जल में स्नान करने को उद्धत हुए तभी भगवान नारायण आदि के नामो का उच्चारण और गंगा स्तुति करते हुए महर्षि नारद मुनि वहां आ पहुंचे|
सनकादि मुनियो ने उन्हें आदर सहित नमस्कार करके यथोचित पूजा की| सनत्कुमार बोले - देवर्षि, आप सभी मुनीश्वरो में सर्वज्ञ है क्यूंकि आप श्रीहरि की भक्ति में सदा लीन रहते है| यदि आपकी हमलोगो पर कृपा हो तो कृपया यथार्थ रूप से बताये की जिनसे समस्त चराचर जगत की उत्पत्ति हुई है तथा ये गंगाजी जिनके चरणों से प्रकट हुई है, उन श्रीहरि के स्वरुप का ज्ञान कैसे होता है| राम -राम |
चैत्र , माघ और कार्तिक के शुक्ल पक्ष में रामायण कथा का नवाह पारायण करना चाहिए तथा नौ दिनों तक इसे प्रयत्नपूर्वक सुनना चाहिए|
जो कोई श्रीरामचन्द्रजी का मंगलमय श्रवण करता है वह इस लोक और परलोक में अपनी समस्त उत्तम कामनाओ को प्राप्त करता है| प्रभु श्रीराम का श्रवण करने वाला उनके उस परमधाम को जाता है जहाँ जाकर मनुष्य को कभी शोक नहीं करना पड़ता है|
'राम', यह शब्द अपने आप में एक सम्पूर्ण जगत का परिचायक है| आप किसी भी संप्रदाय, धर्म, को मानने वाले है या सर्वथा नास्तिक है, फिर भी आपको एक बार जरूर इस महानकथा का श्रवण करना चाहिए|
उत्तर दिशा से लेकर दक्षिण दिशा की तरफ की वनवास यात्रा में राम ने मनुष्य जीवन की कठनाईयो का जिक्र किया है और अपनी मर्यादा को रखते हुए कैसे इन विकट परिस्थिति से निकला जाये उसकी भी एक झाँकी दिखाई है| आप सभी पर श्रीरामचन्द्रजी की अनुकम्पा बनी रहे| राम- राम|
कलयुग में सब लोग धर्मभ्रष्ट हो जाएंगे| काम क्रोध वासना जैसी इच्छाओ के वश में आकर लोग मतिभ्रष्ट होकर रह जाएंगे| क्या पुरुष और क्या स्त्री, सभी की हरकते ओछी होने लग जाएगी| पापपरायण रहने से कैसे किसी का अंतःकरण शुद्ध होगा? जब ऋषियों ने ऐसा प्रश्न सूत जी से पूछा तो उन्होंने कहा- आप सब लोग सुनिए|
अब मैं वह बताता हूँ जिसे सुनना अभी आपके लिए अभीष्ट होगा| महात्मा नारद ने सनत्कुमार को जिस रामायण नमक महाकाव्य का गान सुनाया था वह रामायण सभी पापो का विनाश और बाधाओं का निवारण करने के लिए काफी है| इसके श्रवणमात्र से जन्मो के दुखो का अंत हो जाता है|
यह सभी को भोगरूपी मोक्ष प्रदान करता है| इस रामायण में श्रीरामचन्द्रजी की लीला कथा का वर्णन है| चार पुरुषार्थ कहे जाने वाले धर्म, अर्थ , काम और मोक्ष को साधने का काम यह अकेला महाकाव्य करता है|
तुम्हे खुद की हित साधना से जनहित का कल्याण करने का रास्ता देता है| श्रीरामचंदजी उनका सदा कल्याण करते है जो जीवनभर सदा रामायण अनुसार बर्ताव करता है क्यूंकि वही सिर्फ इस महानकथा का मर्म को समझते हुए खुद को कृतार्थ करता है| राम - राम|
रामायण में वह सभी गुण मौजूद है जिसे लेकर आम जनमानस में जिज्ञासा रहती है| यह दिव्य, अजर- अमर और सबके लिए हितकारी है| चित्रकूट निवासी, लक्ष्मी के आनंदनिकेतन और भक्तो को अभय प्रदान करने वाले श्रीराम प्रभु को मैं नमस्कार करता हूँ| परमानन्दस्वरूप श्रीरामचन्द्रजी अखंड सौभाग्य प्रदान करते हुए जन कल्याण का कार्य करते है| कालरूपी सर्प उनसे भय खाता छुपता फिरता है|
सभी मनोरथो को पूर्ण कर देने वाले सचिदानन्दमय श्रीरामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूँ और उनके भजन चिंतन में लगा रहता हूँ| ऋषियों ने कहा - आप अंतर्यामी है, हमारे मन में उठने वाले सारे सवाल आपकी प्रेरणा से ही जन्म लेते है|
इस घनघोर कलयुग में एक आप नाम श्रीरामचन्द्रजी ही भवसागर पार करने के लिए काफी है| हमे आप अपना प्रिय वैसा ही बना लीजिये जैसा आपने सर्वशक्तिमान भक्तो के भक्त पवनपुत्र हनुमान को बनाया हुआ है| राम -राम|
रामायण को लिखने की प्रेरणा महर्षि वाल्मीकि के ह्रदय में एक अद्भुत घटना द्वारा जागी थी| निषाद द्वारा मरे गए क्रोञ्च को देखकर उन्हें असहनीय पीड़ा हुई और अनायास ही उनके मुख से एक श्लोक का जन्म हुआ -
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।।
संस्कृत के इसी श्लोक को आप राम कथा लिखे जाने की आधारशिला मान सकते है|
महर्षि वाल्मीकि ने राम कथा को पूरे सात खंड में विभाजित किया है और उसे एक सम्पूर्ण रामायण का स्वरुप प्रदान किया है ताकि इसको पढ़ने समझने में आसानी हो| बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड और उत्तरकाण्ड, ये सात खंड है|
इनमे राम जन्म से लेकर उनके स्वर्गारोहण तक की कहानी इतनी तल्लीनता से लिखी गयी है की आप मंत्रमुग्ध हो जाएंगे| एक एक सर्ग आपको अपने स्वर्ग में होने का अहसास कराता है| यही इसकी सरलता और विविधता है| राम -राम|
राम की कहानी में दो लोगो की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है| एक धर्यशाली बलशाली बुद्धिमान और देवताओ को भी हराने की क्षमता रखने वाले वीर पवनपुत्र हनुमान है|
दूसरे खुद महर्षि वाल्मीकि है जिन्होंने उसी काल में जन्म लेकर ना सिर्फ माता सीता को पनाह दी थी बल्कि राम की एक एक कहानी जन जन तक पहुंचाया|
वाल्मीकि ने ही हम तक राम को पहुंचाया| रामायण के बहुत सारे संस्करण निकले है| कई भाषाओ में इसका अनुवाद है| कई ऋषियों मुनियो ने इस कथा में अपनी कल्पनाओ को भी जोड़ा है| गोस्वामी तुलसीदास ने इसे इतने सरल तरीके से 'रामचरितमानस' लिखा की यह कहानी घर घर तक पहुंच गयी|
इन सबके बावजूद मुझे महर्षि वाल्मीकि की लिखी कहानी ज़्यादा पसंद आती है क्यूंकि उन्होंने इसे उसी काल में लिखा था जब स्वयं भगवान् राम इस धरती पर अवतरित थे| इन्होने खुद को प्रचेता का पुत्र बताया है| राम - राम
परिचय- आज सिर्फ परिचय पर बात करूँगा| रामायण सिर्फ कथा संकलन या किसी के जीवन का वृतांत नहीं है| रामायण इस धरती पर रहने वाले लाखो करोडो लोगो को जीवनशैली का सन्देश देती है| आप किसी भी जाति के हो चाहे किसी भी वर्ण के हो, आप चाहे जिस भी धर्म संप्रदाय से जुड़े हुए हो, यह महागाथा सबके लिए एक समान उपयोगी है|
एक बार इसको पढ़ने समझने लग जाएंगे तो फिर इस संसार में आपको राम के सिवा कुछ और नज़र नहीं आएगा| यह कथा मर्यादा सिखलाती है, यह कथा भाईचारा सिखलाती है, यह कथा प्रेम सिखलाती है, यह कथा धर्म और अधर्म के भेद को समझाती है| मानव जीवन के मूल्यों को समझाने वाली यह गाथा हर कथा से सर्वोपरि है|
यहाँ राम ने जीवन के आगे मर्यादा और वचनो का मोल ज़्यादा बतलाया है| यहाँ माता सीता ने किसी भी हाल में सत्य का साथ नहीं छोड़ने का सन्देश दिया है| यहाँ चार भाई ने आपसी अटूट प्रेम को दिखाया है| इन चार भाइयो को अगर हिन्दू-मुस्लिम- सिक्ख - ईसाई जैसे चार धर्म से भी जोड़ो तो प्रेम का यह स्तंभ अटूट होना चाहिए|
कुछ बाते है जो महर्षि वाल्मीकि ने अपनी रामायण में नहीं लिखी है उनका उल्लेख मैं नहीं करूँगा| कुछ घटनाये जैसे लक्ष्मण रेखा- सबरी के जूठे बेर राम ने खाये- अंगद ने रावण की सभा में अपने पैर को जमाकर उसे हटाने की चेतावनी दी थी जैसी कई प्रचलित घटनाओ का जिक्र महर्षि वाल्मीकि रामायण में नहीं मिलता है| शम्बूक वध का एक विरोधाभास भी महर्षि वाल्मीकि के रामायण में है जिसका जिक्र कर्मानुसार किया जायेगा| आप सभी से सहयोग की आशा रखता हूँ|
किसी भी त्रुटि के लिए अभी से क्षमाप्राथी हूँ| मुझसे कुछ भी पूछना हो तो मैसेज बॉक्स में प्रश्न करे| मेरी विवेचना अलग से लिखी मिलेगी| राम कथा से सम्बंधित यहाँ लिखी जाने वाली एक एक बात महर्षि वाल्मीकि के रामायण से शतप्रतिशत मेल खायेगी| आइये, फिर से एक बार राम को आत्मसात करने का प्रयास करते है| राम - राम|