Amrit.vatika

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I am writing for my hobby, which seems like a good thing, I put pulses in my post so that everyone c

29/11/2022

आगे बढ़ने के लिए आवश्यक है कि पहले हम स्वयं में विश्वास रखें, फिर ईश्वर में।

To move forward we must first believe in ourselves, then in God.

12/04/2022

सौभाग्य संयोग से नहीं बनता, वह आपके निर्णयों से बनता है।
Luck is not made by chance, it is made by your decisions.

10/04/2022

सब कुछ का‍पी हो सकता है, मगर चरित्र, व्यवहार, संस्कार और ज्ञान नहीं।
Everything can be copied, but character, behavior, culture and knowledge are not.

10/04/2022

आपका। वास्तविक स्वभाव है‌ आनंदित रहना। जब आप अपने वास्तविक स्वभाव में जीते हैं, तो समझो आप परमेश्वर के नियम के अनुसार जी रहे हैं।
Yours. The real nature is to be happy. When you live in your true nature, you are living according to God's law.

10/04/2022

संतान को माता पिता की मर्यादित ढंग से श्रद्धा पूर्वक सेवा करनी चाहिए।

The child should serve the parents with devotion in a dignified manner.

23/01/2022

25/10/2021

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25/10/2021

लालच का जाल
एक लालची व्यक्ति था। वह हमेशा धनवान होने के सपने देखता था। एक दिन वह मन्दिर गया। वहां एक महात्मा एक घड़े से स्वर्ण मुद्राएं निकालकर भिखारियों को बांट रहे थे।जब महात्मा जाने लगे तो वह व्यक्ति उनके सामने आ खड़ा हुआ। उसे देखकर महात्मा बोले- पुत्र, क्या तुम्हें भी स्वर्ण मुद्रा चाहिए ? जितनी चाहेगा उतनी मिल जाएगी। यह घड़ा स्वर्ण मुद्राओं स कभी खाली नहीं होता। वह लालची व्यक्ति बोला-आप  मुझे अपना शिष्य बना लीजिये।

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26/06/2021

मां की सीख
ईश्वर चंद विद्यासागर के बचपन की यह एक सच्ची घटना है। एक दिन सुबह उनके घर के द्वार पर एक भिखारी आया। उसको हाथ फैलाए देखकर उनके मन में करूणा उमड़ी। वह तुरन्त घर के अंदर गए और उन्होंने अपनी मां से कहा कि वह उस भिखारी को कुछ दे दें। मां के पास उस समय कुछ भी नहीं था सिवाय उनके कंगन के। उन्होंने अपना कंगन उतारकर ईश्वर चंद विद्यासागर के हाथ में रख दिया और कहा कि जिस दिन तुम बड़े हो जाओगे उस दिन मेरे लिए दूसरा बनवा देना, अभी इसे बेचकर जरूरतमंदो की सहायता कर दो।
बड़े होने पर ईश्वर चंद विद्यासागर अपनी पहली कमाई से अपनी मां के लिए सोने के कंगन बनवाकर ले गए और उन्होंने मां से कहा, " मां, आज मैंने बचपन का तुम्हारा कर्ज उतार दिया।" उनकी मां ने कहा, " बेटे, मेरा कर्ज तो उस दिन उतर पाएगा जिस दिन किसी और जरूरतमंद के लिए मुझे ये कंगन दोबारा नहीं उतारने होंगे।"मां की सीख ईश्वरचंदविद्यासागर के दिल को छू गई और उन्होंने प्रण किया कि वह अपना जीवन गरीब- दुखियों की सेवा करने और उनके कष्ट हरने में व्यतीत करेंगे और उन्होंने अपना सारा जीवन ऐसा ही किया।
महापुरुषों के जीवन कभी भी एक दिन में तैयार नहीं होते। अपना व्यक्तित्व गढ़ने के लिए वे कई कष्ट और कठिनाईयों के दौर से गुजरते हैं और हर महापुरुष का जीवन कहीं न कहीं अपनी मां की शिक्षाओ से बहुत प्रभावित रहता है।

15/04/2021

सबसे स्वादिष्ट खाना
एक राजा की चार रानियां थी। एक दिन प्रसन्न होकर राजा ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। रानियों ने कहा कि समय आने पर वे मांग लेंगी। कुछ समय बाद राजा ने एक अपराधी को मृत्युदंड दिया। बड़ी रानी ने सोचा कि इस मरणासन्न व्यक्ति को एक दिन का जीवनदान देकर उसे उत्तम पकवान खिलाकर खुश करना चाहिए। उन्होंने राजा से प्रार्थना की- मेरे वरदान के रूप में आप इस अपराधी को एक दिन का जीवन दान दे और उसका आतिथ्य मुझे करने दें। रानी की प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। रानी ने अपराधी को स्वादिष्ट भोजन कराया। किन्तु अपराधी ने उस राजसी खाने में कोई खास रूचि नहीं ली। दूसरी रानी ने भी वही वरदान मांगा और अपराधी को एक दिन का जीवन दान और मिल गया। दूसरी रानी ने खाना खिलाने के साथ उसे सुंदर वस्त्र भी दिए। पर अपराधी असंतुष्ट रहा। तीसरे दिन तीसरी रानी ने फिर वही वरदान मांगकर उसके नृत्य- संगीत की व्यवस्था भी की। किन्तु अपराधी का मन तनिक भी नहीं लगा।चौथे दिन सबसे छोटी रानी ने राजा से प्रार्थना की कि मैं वरदान में चाहती हूं कि इस अपराधी को क्षमादान दिया जाए।रानी की प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। उस रानी ने अपराधी को सूखी रोटीयां व दाल खिलाई, जिन्हें उसने बड़े आनंद से खाया। राजा ने अपराधी से इस बारे मे पूछा तो वह बोला-- राजन, मुझे तो छोटी रानी की रुखी- सूखी रोटियां सबसे स्वादिष्ट लगी, क्योंकि तब मुझे मृत्यु का भय नहीं था। उससे पहले मौत के भय के कारण मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था।

24/03/2021

सबसे ताकतवर के साथ
एक बिल्ली स्वभाव से डरपोक थी। वह चाहती थी कि उसकी दोस्ती सबसे ताकतवर के साथ हो जाए, जिससे उसे किसी से डर न लगे।उसकी नजर में शेर सबसे ताकतवर था।वह शेर के पास चली गई।वह किसी तरह शेर से दोस्ती गांठ कर उसके साथ रहने लगी। काफी दिनों के बाद जंगल में घूमता हुआ एक हाथी शेर के सामने आ गया। शेर उससे लड़ने लगा। अंततः हाथी ने शेर को मार दिया। बिल्ली सोचने लगी-- यह हाथी तो शेर से भी अधिक ताकतवर है।क्यों न वह हाथी से ही दोस्ती कर ले। इस तरह हाथी से दोस्ती कर वह उसके साथ रहने लगी। एक दिन एक शिकारी कहीं से आया और उसने हाथी को पकड़ कर बेच दिया। बिल्ली को हाथी के जाने का दुख तो बहुत हुआ लेकिन उसे यह लगा कि आदमी हाथी से भी ज्यादा ताकतवर होता है।वह शिकारी के साथ उसके घर चली आई। घर पहुंचने पर शिकारी की पत्नी बाहर निकली और उसने शिकारी से उसकी बंदूक ले ली।इस पर बिल्ली सोचने लगी कि यह औरत तो शिकारी से भी अधिक ताकतवर है। तभी तो इसके सामने खतरनाक शिकारी कुछ बोल नहीं पाया। तब बिल्ली ने तय किया कि वह इस औरत के साथ ही रहेगी।वह उस औरत के पीछे-पीछे रसोई में चली गई। कहा जाता है कि औरतों को सबसे ताकतवर मानकर ही तब से बिल्लियां रसोई में या उसके आसपास रहती चली आ रही है।

24/03/2021

न्याय और धर्म
एक न्यायाधीश थे।न्याय के साथ धर्म में भी उनकी गहरी आस्था थी।वह नियमित पूजा- पाठ करते थे और प्रवचनों में भी शामिल होते थे।एक बार एक चोर उनके सामने लाया गया। वह मोहल्लों में छोटी- मोटी चोरी किया करता था।चोर न्यायधीश महोदय के धर्मपरायण होने की बात को बखूबी जानता था। उसने थोड़ी ही देर में अपना अपराध स्वीकार कर लिया। फैसला सुनाने से पहले न्यायधीश ने चोर से पूछा- तुम्हें अपने पक्ष में कुछ कहना है तो नि:संकोच कह सकते हो। इस पर चोर बोला- श्रीमान, आज आपके सामने खड़ा होने में मुझे आनंद आ रहा है। मैंने सुना है कि आप बड़े धार्मिक व्यक्ति है। मुझे सिर्फ यही कहना है कि मैंने अपने लिए चोरी नहीं की। भगवान ने मुझे इसके लिए प्रेरित किया। उनकी इच्छा से मेरे हाथों चोरी हुई।इसलिए मुझे दोषी न ठहराया जाए। यह सुनते ही वहां उपस्थित लोग सन्न रह गए। उनमें से कुछ ने कहा कि यह चोर महा धूर्त है इसने न्यायधीश महोदय को अपने दांव में फंसा लिया है। लोगों को लगने लगा कि कहीं यह साफ छूट न जाए। लेकिन न्यायधीश महोदय ने जो कुछ भी कहा उसने सबको चकित कर दिया। वे चोर से बोले- तुम्हारा कहना मुझे पूरी तरह मान्य है। जिस भगवान ने तुम्हें चोरी करने की प्रेरणा दी है वही भगवान अब मुझे तुम्हें सजा देने की प्रेरणा दे रहा है। तुम्हें एक साल की कैद की सजा दी जाती है।इस तरह एक बार फिर न्यायधीश ने अपने फैसले से लोगों का दिल जीत लिया।

24/03/2021

पवित्र हाथ की पहचान
एक बार गुरु गोविंद सिंह जी कहीं धर्म चर्चा कर रहे थे। श्रद्धालु भक्त उनकी धारा प्रवाह वाणी को मंत्र- मुग्ध होकर सुन रहे थे। चर्चा समाप्त होने पर गुरु गोविंद सिंह जी को प्यास लगी।उन्होंने अपने शिष्यों से कहा- कोई पवित्र हाथों से मेरे पीने के लिए जल ले आए। गुरु गोविंद सिंह जी का कहना था कि एक शिष्य उठा और तत्काल ही चांदी के गिलास में जल ले आया। गुरु गोविंद सिंह जी ने जल का गिलास हाथ में लेते हुए उस शिष्य की हथेली की ओर देखा और बोले- वत्स, तुम्हारे हाथ बड़े कोमल हैं। गुरु के इन वचनों को अपनी प्रशंसा समझते हुए शिष्य को बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने बड़े गर्व से कहा- गुरुदेव, मेरे हाथ इसलिए कोमल हैं क्योंकि मुझे अपने घर का कोई काम नहीं करना पड़ता। मेरे घर में बहुत सारे नौकर- चाकर है। वे ही मेरा और मेरे पूरे परिवार का सब काम कर देते हैं। गुरु गोविंद सिंह जी पानी के गिलास को अपने होंठों से लगाने ही वाले थे कि उनका हाथ रूक गया। बड़े गंभीर स्वर में उन्होंने कहा-- वत्स, जिस हाथ ने कभी कोई सेवा नहीं की, कभी कोई काम नहीं किया, मजदूरी से जो मजबूत नहीं हुआ और जिसकी हथेली में मेहनत करने से गांठ नहीं पड़ी, उस हाथ को पवित्र कैसे कहा जा सकता है। गुरुदेव कुछ देर रूके फिर बोले-- पवित्रता तो सेवा और श्रम से प्राप्त होती है। मैं तुम्हारा पानी नहीं पी सकता। इतना कह कर गुरुदेव ने पानी का गिलास नीचे रख दिया।

24/03/2021

जीवन
जीवन का आरंभ अपने रोने, जबकि
अंत दूसरों के रोने से होता है और इस आरंभ और अंत के बीच का समय भरपूर हास्य और प्रेम से भरा होना चाहिए। दरअसल जीवन एक लंबी यात्रा के समान है।इसलिए इसमें अवरोध आना स्वाभाविक है, लेकिन ऐसे में कुछ लोग बुरी तरह घबरा जाते हैं और प्रेम- हास्य में भरा जीवन उन्हें दुखदायी लगने लगता है। वे ईश्वर को भला- बुरा कहने लगते हैं, लेकिन जब वे संकट से उबर जाते हैं, तब उन्हें जीवन का असली मर्म समझ में आता है।
एक बार रामकृष्ण परमहंस के गले में नासूर हो गया तो उनके शिष्य बोले कि यदि वह अपने मन को एकाग्र करके यह कहें कि " रोग चला जा " तो उनका रोग मिट जाएगा। इस पर परमहंस बोले, जो ह्रदय मुझे मां का स्मरण करने के लिए मिला है, उसे मैं सांसारिक काम में क्यों लगाऊं। उनके शिष्यों ने उनसे आग्रह किया कि आप मां को ही कह दें कि वह आपको रोगमुक्त करें। परमहंस मुस्कराते हुए बोले कि मैं ऐसी मूर्खता क्यों करूं। मां तो दयामयी, सर्वज्ञ और सर्व- समर्थ हैं। उन्हें मेरे कल्याण के लिए जो उचित लगेगा, वे वही करेंगीं। मैं उनके कार्य में बाधा क्यों डालूं। शिष्यों के पास उनके इस तर्क का कोई उत्तर नहीं था। दरअसल हमें जीवन में छोटी- छोटी बातों पर हतोत्साहित होने के बजाय अपनी क्षमताओं और परमात्मा पर विश्वास करना सीखना चाहिए। इसलिए हमें भी जीवन की विपरीत परिस्थितियों से डरने के बजाय कठिन परिस्थितियों का सामना करना चाहिए।
दरअसल हम सभी समय- समय पर द्वेष, क्रोध, भय, ईर्ष्या के कारण दुःखी होते हैं। इस वजह से हम औरों को भी बनाते हैं और इस तरह हमारे आसपास का पूरा माहौल नकारात्मक हो जाता है। इसके बाद हम जीवन से निराश होने लगते हैं।यह जीवन जीने का सही तरीका नहीं है। इसके बजाय हमें शांतिपूर्वक जीवन जीना चाहिए।सच्चे अर्थों में यही वास्तविक जीवन है।

11/03/2021

जैसे राजा वैसे पंडित
एक बार कश्मीर के राजा जयपीड़ ने अहंकार में डूबकर प्रजा का उत्पीड़न शुरू कर दिया।उसने अपने पूर्वजों द्वारा ब्राह्मणों को दान की गई भूमि, मंदिरों तथा विद्यालयों पर भी कर लगा दिया। कर न दे पाने पर अनेक ब्राह्मणों को जेल में डाल दिया गया।
एक दिन कुछ विद्वान पंडित राजा जयपीड़ से मिलने दरबार में आए। उन्होंने विनम्रता से कहा, 'आपके पूर्वज राजा परम धार्मिक थे। वे ब्राह्मणों का सम्मान करते थे। आप हमारा उत्पीड़न क्यों कर रहे हैं?' राजा ने क्रोध में भरकर कहा, 'हमारे पूर्वज वशिष्ठ और विश्वामित्र जैसे गुणवान ब्राह्मणों का सम्मान करते थे। तुम सब निम्न कोटि के ब्राह्मण हो।' पंडित मूलराज नामक तेजस्वी ब्राह्मण ने जवाब देते हुए कहा, ' यदि हम वशिष्ठ- विश्वामित्र नहीं है, तो महाराज आप भी हरिशचंद्र और मांधाता जैसी विभूतियों के गुणों से युक्त कहां है ? जैसे हम ब्राह्मण हैं, उसी स्तर के आप कलयुगी राजा हैं।' पंडितराज की तेजस्वी वाणी ने राजा का अहंकार दूर कर दिया। उन्होंने पंडितो व धर्मस्थलों को ही नहीं, साधारण प्रजा को भी करों से मुक्त कर दिया।

11/03/2021

होनहार उत्तराधिकारी
प्रतापगढ़ के राजा सुल्तान सिंह का राज्य बेहद विशाल था। राज्य में सब ओर सुख- शांति व खुशहाली थी। लेकिन कोई सन्तान न होने के कारण सुल्तान सिंह चिंतित रहते थे। प्रतापगढ़ का कोई उत्तराधिकारी
नहीं है, यह सोचकर उनके शत्रु उनकी मृत्यु् का इंतजार कर उनके राज्य पर कब्जा करने की सोच रहे थे।राजा ने अपनी यह चिन्ता विद्वान मंत्री कुशल सिंह को बताई। कुशल सिंह ने गुप-चुप राज्य के उत्तराधिकारी की खोज शुरू कर दी।मंत्री ने समूचे राज्य से अनेक युवकों की परीक्षा ली, जिनमें पांच युवकों को सबसे योग्य पाया गया। उन्होंने बिना कुछ कहे इन पांचों युवकों को एक- एक पत्र दिया और कहा कि इस पत्र को बिना पड़े राजा सुल्तान सिंह को सौंपना है।इसमें आप पांचों का बहुत गहरा राज छिपा है, जो मैंने आपके बीच में रहकर जाना है।पत्र सौंपते ही पांचों युवक राजा सुल्तान सिंह से मिलने चले। रात में वह एक धर्मशाला में रूके।सुबह उठने पर चार युवक वहां नहीं थे। केवल एक ही बचा था। उसे समझ में नहीं आया कि बाकी चारों कहां चले गए। लेकिन उसे पहलेअपना काम पूरा करना था। इसलिए वह राजा के पास पहुंचा और पत्र उन्हें थमा दिया।पत्र पढ़कर राजा ने युवक को बंदी बनाने को कहा। युवक परेशान हो उठा। तब राजा ने पत्र पढ़कर सुनाया जिसमें लिखा था कि यह युवक गद्दार है और इसे तुरंत फांसी की सजा दी जाए।वह युवक कुछ कहता इससे पहले मंत्री कुशल सिंह वहां पहुंच गए और उन्होंने घोषणा की, 'महाराज, यही युवक प्रतापगढ़ का सही उत्तराधिकारी है।चारों युवकों ने बिना इजाज़त के पत्र पढ़ा और सजा के डर से भाग गए किंतु यह युवक परीक्षा में खरा उतरा।' राजा सुल्तान सिंह को सारी बात समझ में आ गई। उन्होंने उस युवक को भावी उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। इस प्रकार मंत्री की समझदारी से राज्य को एक होनहार उत्तराधिकारी मिल गया।

11/03/2021

नियम का सम्मान
एक समय महात्मा गांधी और खान
अब्दुल गफ्फार खान एक साथ जेल में बंद थे। वहां बंद सभी कैदी और आंदोलनकारी गांधी जी का आदर करते थे। लेकिन दूसरी तरफ गांधी जी जेलर के सामने आने पर अन्य कैदियों के साथ खुद भी सम्मान में खड़े हो जाते थे।यह बात खान साहब को पसंद नहीं थी। एक दिन उन्होंने गांधी जी से कहा-- हम राजनैतिक कैदी हैं। हमें औरों के साथ खड़े होने की आवश्यकता नहीं है।गांधी जी ने बात टाल दी।कुछ दिनों के बाद खान साहब ने फिर कहा-- मैं सब समझता हूं। आप जेल में मिलने वाली अतिरिक्त सुविधाओं के कारण जेलर का सम्मान करते हैं। वह आपको हिंदी और अंग्रेजी के अतिरिक्त गुजराती के अखबार भी दे जाता है।फिर आपके भोजन का भी खास ख्याल रखता है।यही बात है न? इस पर गांधी जी ने बड़े प्यार से उन्हें समझाया- हम जिस व्यवस्था में रह रहे हैं, उसके नियमों का सम्मान करना चाहिए, नहीं तो यह व्यवस्था भी नहीं रह जाएगी। हमारा संघर्ष एक नई व्यवस्था के लिए ही है। अगर हमारे भीतर नियम- कायदों के प्रति आदर का भाव नहीं रहेगा तो हम अराजकता को रोक नहीं पाएंगे। गांधी जी ने उस दिन से एक अखबार के अलावा सभी अखबार बंद कर दिए। और अन्य कैदियों की तरह ही भोजन करने लगे। लेकिन उन्होंने अधिकारियों का सम्मान नहीं छोड़ा।खान साहब को अपनी भूल का अहसास हो गया। उन्होंने गांधी जी से क्षमा मांगी और खुद भी जेल के अनुशासन के मुताबिक चलने लगे।

11/03/2021

प्रधानाचार्य की उदारता
खेड़ा (गुजरात) जनपद के वल्लभ विश्वविद्यालय में नवशिक्षिकों को प्रशिक्षण दिया जाता था। दूर-दूर के शिक्षक वहां पहुंचते थे। शिक्षण सत्र शुरू होने के पहले दिन महाराष्ट्र के एक शिक्षक ट्रेन के डिब्बे से उतरकर वह सामान पहुंचाने वाले कुली को खोजने लगे।
विद्यालय के प्रधानाचार्य घूमने के लिए स्टेशन तक गए थे। उन्होंने पूछा, ' आपको कहां तक जाना है?' शिक्षक ने बताया, 'वल्लभ विश्वविद्यालय के आवासगृह पहुंचना है।' उन्होंने कहा, ' वह एक फलाँग की दूरी पर जो भवन है, वहीं विश्वविद्यालय है। लाओ, अपना सामान।' उन्होंने बिस्तर उठा लिया और गंतव्य स्थान तक पहुंचा दिया। शिक्षक ने उन्हें रूपया देना चाहा, पर उन्होंने इनकार कर दिया।
दूसरे दिन जब शिक्षक कक्षा में गए, तो कुर्सी पर बैठे प्रधानाचार्य को देखकर शर्म से उनकी गरदन झुक गई। बाद में शिक्षक ने उनसे क्षमा मांगी और भविष्य में अपना सामान स्वयं उठाने के प्रयास का संकल्प लिया।

11/03/2021

पुरुषार्थ और भाग्य
एक डॉक्टर के क्लिनिक पर बोर्ड पर एक सुन्दर विचार लिखा था। कठिन परिश्रम भवन की सीढ़ियों के समान है, जबकि भाग्य लिफ्ट के समान। लिफ्ट काम न करे तो हम ऊपर नहीं जा सकते, लेकिन सीढ़ियों द्वारा अवश्य ही सबसे उंची मंजिल तक पहुंच सकते हैं। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ और भाग्य- दोनों ही मार्ग हो सकते हैं।इन मार्गों की सीढ़ियों और लिफ्ट से तुलना की गई है। सीढ़ियों का मार्ग थोड़ा धीमा और कठिन है। लेकिन है भरोसेमंद।वह अपनी कोशिशों पर निर्भर करता है। दूसरी ओर लिफ्ट का मार्ग है, जो एकदम तेजी से काम करता है।एक बटन दबाते ही ऊपर और ऊपर से एक बटन दबाते ही नीचे। लेकिन लिफ्ट कई अदृश्य बंधनों से जकड़ी होती है, बाहरी ऊर्जा से काम करती है।पावर सप्लाई के बिना काम नहीं कर सकती। वह रास्ते में खराब हो सकती है। तब न इधर के रहेंगे, न उधर के। बीच में लटक जाएंगे। लिफ्ट एक सहारा है, लेकिन खतरे से खाली नहीं। पुरुषार्थ में श्रम है, पर दूसरों पर निर्भरता नहीं है। पुरुषार्थ और भाग्य द्वारा प्राप्त सफलता में भी यही अंतर है।

11/03/2021

कर्म ही भाग्य बदलता है
एक ग्रामीण भाग्य पर भरोसा करता था। इसलिए कोई काम नहीं करता था। वह मानता था कि उसकी किस्मत खराब है, इसलिए वह दरिद्र है। गांव में एक समाज सुधारक आए। जब उन्हें पता चला कि एक व्यक्ति भाग्य के भरोसे बैठा है, तो उसके पास गए। बोले, ' तुम काम क्यों नहीं करते ? ' वह बोला, ' मेरे भाग्य में रूपया- पैसा होगा, तो अपने आप आ जाएगा।' समाज सुधारक बोले, ' तुम्हारे भाग्य में तो बहुत दौलत है, लेकिन तुम्हें कोई अच्छा काम करना पड़ेगा।' ग्रामीण खुश होकर बोला, ' मै तैयार हूं।' समाज सुधारक ने कहा, ' गांव में पानी की कमी है, तुम कुआं खोदो।' एक दिन तो ग्रामीण कुआं खोदने में जुटा रहा, लेकिन अगले दिन उसकी हिम्मत जवाब दे गई। उसने दूसरे ग्रामीण को खोदने का काम दे दिया। उसने कुशलता से तीन दिनों में कुआं खोद दिया। उसमें एक थैली निकली, जिसमें एक पर्चे भी था। पर्चे में लिखा था, ' इस थैली में रूपये और एक पर्ची है। रूपये कुआं खोदने वाले के लिए है, जबकि पर्ची कुआं खुदवाने वाले के लिए।' ग्रामीण ने जब पर्ची पढ़ी, तो उस पर लिखा था, कर्म ही भाग्य बदलता है।
भाग्य के भरोसे रहकर काम से जी चुराना ठीक नहीं। कर्म ही तो है, जो भाग्य को प्रेरित करता है।

09/02/2021

सत्संग का लाभ
अबुल हसन अपने जमाने के प्रसिद्ध संत थे।एक दिन उनके पास एक भक्त आया।अपनी समस्या का समाधान चाहते हुए वह बोला," सुना था कि सत्संग और उपासना से बहुत लाभ होता है। मैं तो सत्संग सुन- सुनकर और उपासना करके थक चुका हूँ लेकिन आज तक कुछ भी लाभ नहीं हुआ। मैं बहुत परेशान हूँ समझ में नहीं आता कि क्या करूं? बहुत गुस्सा आता है। दूसरों की निन्दा चुगली सुनने और अपनी प्रशंसा सुनने में बहुत आनंद आता है। अबुल हसन ने धैर्यपूर्वक उसकी सारी बात विस्तार से सुनी और फिर बोले, " जिदंगी में एक सच्चाई को कभी मत भूलना।" व्यक्ति ने बड़ी जिज्ञासा के साथ पूछा," वह सच्चाई क्या है?"
अबुल हसन ने कहा, " पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो, गंदे बर्तन में कोई साफ चीज़ डाले तो वह कैसी हो जाएगी?" वह व्यक्ति बोला-" गंदी"। हसन ने कहा तो फिर याद रखो कि तुम्हारा दिल भी एक बर्तन है।जब तक वह साफ नहीं होगा तब तक तुम जो भी उसमें डालोगे वह गंदा हो जायेगा और तुम्हे आनंद नहीं दे पायेगा।इसी प्रकार सत्संग और उपासना का लाभ तभी पहुँचता है जब दिल साफ हो। मन में तरह- तरह के विकार वासनाएं लेकर सत्संग सुनने या उपासना करने बैठोगे तो लाभ प्राप्त नहीं हो सकता।जो व्यक्ति शांत, स्वच्छ और पावन मन लेकर सत्संग में बैठता है या उपासना करता है तो उसे उनका पूरा लाभ प्राप्त होता है। इसके लिए श्रद्धा, समर्पण और मन की पवित्रता निष्कपटता को धारण करो फिर देखना सत्संग का चमत्कार।

09/02/2021

सत्य कभी न छोड़िए
पुराने समय में एक राजा हुए हैं-- सत्यदेव। वह बहुत धर्मनिष्ठ राजा थे। वे हर समय लोगों की भलाई में ही लगे रहते थे। वे सत्य और धर्म के कठोर उपासक थे और सत्य को ही अपना सर्वस्व समझते थे।एक दिन प्रातः उठकर वह सूर्य को प्रणाम कर रहे थे तभी उन्होंने एक सुंदरी को राजमहल से बाहर जाते देखा। राजा के पूछने पर सुंदरी ने कहा, " मैं लक्ष्मी हूं।बहुत समय तक तुम्हारे यहां रह चुकी, अब जा रही हूं।" सुन्दरी के पीछे- पीछे एक व्यक्ति भी दरवाजे से बाहर निकला।राजा के पूछने पर उसने बताया, " मैं "दान" हूं। जब लक्ष्मी जी यहां से जा रही हैं, तो मेरा यहां क्या काम? तुम दान कहां से दोगे? इसलिए मैं भी जा रहा हूँ।"
कुछ क्षणों के बाद एक तीसरा व्यक्ति महल से बाहर निकला। राजा के पूछने पर उसने बताया," मैं 'सदाचार' हूं। जहां लक्ष्मी जी और दान निवास करते हैं, वहीं मेरा भी निवास है। कुछ क्षण उपरान्त चौथा व्यक्ति भी बाहर निकला और राजा के पूछने पर उसने बताया कि वह 'यश' है। जब लक्ष्मी, दान, सदाचार सभी जा रहे हैं, तो मैं यहां रहकर क्या करूंगा।अंत में जब पांचवां व्यक्ति भी बाहर जाने लगा तो राजा ने पूछा लिया," आप कौन हैं?" इस पर उस व्यक्ति ने कहा," मैं 'सत्य' हूं। जब ये चारों यहां नहीं होंगे, तो मैं भी यहां नहीं रह सकता। इसलिए मैं भी जा रहा हूं। इस पर राजा सत्यदेव पांचवें व्यक्ति अर्थात सत्य के चरणों में गिर पड़े और उससे कातर स्वर में बोले," भगवन, मैं तो आपका अनन्य भक्त हूं। यदि आप चले गए तो मेरे प्राण निकल जाएंगे।मैं आपको हर्गिज नहीं जाने दूंगा।" राजा की सत्य के प्रति गहरी निष्ठा देखकर पांचवां व्यक्ति मुस्कराकर अंदर जाने लगा तो लक्ष्मी, दान, सदाचार और यश भी महल में लौट आए। राजा की सत्य के प्रति आस्था और भी बढ़ गई।

09/02/2021

पवित्र अन्न का प्रभाव
एक किसान घोर प्ररिश्रम करके खेती करता था। उसने एक संत के उपदेश ग्रहण कर अपनी खेती से पैदा अनाज में से कुछ पशु- पक्षियों को खिलाने, अतिथियों व साधुओं को भोजन कराने का संकल्प लिया।
एक दिन उसे एक पहुंचे हुए विरक्त महात्मा मिले। किसान ने उन्हें भोजन कराया। संत ने भोजन से तृप्त होकर भगवान का ध्यान किया। उनकी दिव्य दृष्टि ने देखा कि जिस भूमि पर बैठकर उन्होंने भोजन किया है, उसके नीचे स्वर्ण- मुद्राओं से भरा कलश दबा हुआ है। महात्मा ने सोचा कि इस किसान की गरीबी दूर की जाए , तो अच्छा रहेगा।उन्होंने कहा- तुम परिवार चलाने लायक ही कमाने वाले दिखते हो। लाओ फावड़ा, इस जमीन को खोदो। इतना धन मिलेगा कि जीवन भर आनंद से रहोगे।' किसान ने पूछा," बाबा सत्य बताना कि आपको यह कलश भोजन करने के बाद दिखाई दिया या पहले।" महात्मा बोले," भोजन करने के बाद।" किसान हाथ जोड़कर बोला," बाबा, यह आपकी सिद्दि नहीं, मेरे परिश्रम से पैदा अन्न का प्रभाव है।इस कलश का मुझे उसी समय पता चल गया था, जब मैंने जमीन खोदकर यह कमरा बनवाया था। दूसरे के धन का उपयोग मैं पाप मानता हूं।मैंने इसे हाथ नही लगाया। मिट्टी में दबा दिया। अपने हाथों की कमाई खाने में मुझे जो संतोष मिलता है, वह दूसरे के धन की कमाई से कभी नहीं मिल सकता।"
महात्मा किसान की नैतिकता देखकर उसके समक्ष नतमस्तक हो उठे।

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