Prayaas
Prayaas is a page dedicated to my father Mr K.N. Tiwary who was a great poet.
Happy Independence day
हर दुख वो बच्चों का खुद पर सह लेते हैं,
उस खुदा की जीवंत प्रतिमा को हम पिता कहते हैं।
हैप्पी बर्थडे पापा🙏🙏
Thank you so much to each and everyone of my 1k followers. Prayaas is incredibly grateful for each and everyone of you. We can't believe how quickly we've reached this milestone. 🙏🙏
वृक्ष स्तवन
To be continued......
Last year on this day we created a page based on my Papa's poems named #. It's a tribute to him on his birthday. We are greatful to all of you who appreciated our little effort and help our page to reach around 1K likes in one year we are thankful to the core of our heart for your likes and support. Please do keep liking #
महिलाओं के प्रति सम्मान ही महिला दिवस की वास्तविक सफलता है
धर्म कुंडलियां
।।1।।
धर्म प्राण यह देश हमारा ।
था यह सारे जग से न्यारा ।।
जग से न्यारा देव दुलारा ।
धर्म हेतु जन जन का प्यारा ।।
कहे कमलेश्वर मन का मर्म ।
रहा ना भारत में अब धर्म ।।
।।2।।
सारे जग में फैल रहा है ,
जोरों से कुकर्म।
जगजाहिर है इसका कारण ,
बचा नहीं अब धर्म ।।
बचा नहीं अब धर्म ,
सभी करते मनमानी ।
जिसकी लाठी भैंस उसी की ,
सब ने मानी ।।
कवि कमलेश्वर लिख रहा है ,
कबसे नगमे ।
वापस लाना होगा धर्म ,
पुनः इस जग में ।।
●मेरा कवि●
मेरे अंदर
कभी एक कवि हुआ करता था
ना जाने कब
कैसे
वह मेरे अंदर ही कहीं खो गया ।
सालों साल
दर साल
मैं अपने में अपने कवि को ढूंढता रहा ।
सुना है
दुखी मन से कविताएं फूट पड़ती हैं ।
जैसा कि कभी
आदि कवि को हुआ था ।
पर हाय ! मुझसा दुखी कौन !
असंतोष, क्षोभ, दीनता
के पहाड़ों से मेरा मन
ऐसा कुचला , ऐसा कुचला कि
शायद
मेरा कवि भी कुचल गया ।
और उस आदि कवि को याद करता हुआ मैं अपने कवि को ढूंढता रहा ।।1।।
शायद कवि
बहुत सुखी हुआ करते होंगे
तभी तो वे
सुखमय कविताएं गढ़ते होंगे।
रेगिस्तान में पानी की तरह
एक दो खुशी के क्षण
जो मुझे मिले कभी
मैं उनमें ऐसा खोया ऐसा खोया
कि मेरा कवि शायद उपेक्षित हो
मुझसे रूठ गया ।
उस क्षणिक खुशी को कोसता हुआ
मैं ,अपने कवि को ढूंढता रहा ।।2।।
कहते हैं
प्रियतमा के सौंदर्य लोक में
कितनों ने कितने ही गीत लिख डाले।
कविता करने की ललक लिए
मैं अपनी प्रेयसी से कह बैठा
प्रिये ! तुम कितनी सुंदर हो ।
इन फटे गंदे कपड़ों में मैं
तुम्हें सुंदर लग रही हूं ?
तुम कितना सुंदर गाती हो ,
बात पलटी
सात साल से सरोद टूटा है ,
और कहते हो सुंदर गाती हूं ।
झिड़की सुन
मेरा कवि ऐसा भागा , ऐसा भागा
कि फिर कभी नहीं लौटा
अपनी बेबसी और समाज की दुहाइयाँ देता हुआ
मैं अपने कवि को ढूंढता रहा ।।3।।
के•एन• तिवारी (कमलेश)