Bhagwad Gita

Bhagwad Gita

Contact information, map and directions, contact form, opening hours, services, ratings, photos, videos and announcements from Bhagwad Gita, Religious school, .

22/07/2021

Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 19

श्रीभगवानुवाच |
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतय: |
प्राधान्यत: कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ||19||
śhrī bhagavān uvācha
hanta te kathayiṣhyāmi divyā hyātma-vibhūtayaḥ
prādhānyataḥ kuru-śhreṣhṭha nāstyanto vistarasya me

भावार्थ:
श्री भगवान बोले- हे कुरुश्रेष्ठ! अब मैं जो मेरी दिव्य विभूतियाँ हैं, उनको तेरे लिए प्रधानता से कहूँगा; क्योंकि मेरे विस्तार का अंत नहीं है॥19॥

Translation
The Blessed Lord spoke: I shall now briefly describe my divine glories to you, O best of the Kurus, for there is no end to their detail.

18/07/2021

Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 18

विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन |
भूय: कथय तृप्तिर्हि शृण्वतो नास्ति मेऽमृतम् || 18||
विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन |
भूय: कथय तृप्तिर्हि शृण्वतो नास्ति मेऽमृतम् || 18||

भावार्थ:
हे जनार्दन! अपनी योगशक्ति को और विभूति को फिर भी विस्तारपूर्वक कहिए, क्योंकि आपके अमृतमय वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती अर्थात्‌ सुनने की उत्कंठा बनी ही रहती है॥18॥

Translation
Tell me again in detail your divine glories and manifestations, O Janardan. I can never tire of hearing your nectar.

17/07/2021

Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 17

कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन् |
केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया || 17||
kathaṁ vidyām ahaṁ yogins tvāṁ sadā parichintayan
keṣhu keṣhu cha bhāveṣhu chintyo ’si bhagavan mayā

भावार्थ:
हे योगेश्वर! मैं किस प्रकार निरंतर चिंतन करता हुआ आपको जानूँ और हे भगवन्‌! आप किन-किन भावों में मेरे द्वारा चिंतन करने योग्य हैं?॥17॥

Translation
O Supreme Master of Yog, how may I know you and think of you. And while meditating, in what forms can I think of you, O Supreme Divine Personality?

15/07/2021

Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 16

वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतय: |
याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि || 16||}
vaktum arhasyaśheṣheṇa divyā hyātma-vibhūtayaḥ
yābhir vibhūtibhir lokān imāṁs tvaṁ vyāpya tiṣhṭhasi

भावार्थ:
इसलिए आप ही उन अपनी दिव्य विभूतियों को संपूर्णता से कहने में समर्थ हैं, जिन विभूतियों द्वारा आप इन सब लोकों को व्याप्त करके स्थित हैं॥16॥

Translation
Please describe to me your divine opulences, by which you pervade all the worlds and reside in them.

14/07/2021

Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 15

स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम |
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते || 15||
swayam evātmanātmānaṁ vettha tvaṁ puruṣhottama
bhūta-bhāvana bhūteśha deva-deva jagat-pate

भावार्थ:
हे भूतों को उत्पन्न करने वाले! हे भूतों के ईश्वर! हे देवों के देव! हे जगत्‌ के स्वामी! हे पुरुषोत्तम! आप स्वयं ही अपने से अपने को जानते हैं॥15॥

Translation
Indeed, you alone know yourself by your inconceivable energy, O Supreme Personality, the Creator and Lord of all beings, the God of gods, and the Lord of the universe!

13/07/2021

Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 14

सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव |
न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवा: || 14||
sarvam etad ṛitaṁ manye yan māṁ vadasi keśhava
na hi te bhagavan vyaktiṁ vidur devā na dānavāḥ

भावार्थ:
हे केशव! जो कुछ भी मेरे प्रति आप कहते हैं, इस सबको मैं सत्य मानता हूँ। हे भगवन्‌! आपके लीलामय (गीता अध्याय 4 श्लोक 6 में इसका विस्तार देखना चाहिए) स्वरूप को न तो दानव जानते हैं और न देवता ही॥14॥

Translation
O Krishna, I totally accept everything you have told me as the truth. O Lord, neither gods nor the demons can understand your true personality.

12/07/2021

Bhagawad Gita: Chapter 10, Verse 13

आहुस्त्वामृषय: सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा |
असितो देवलो व्यास: स्वयं चैव ब्रवीषि मे || 13||
āhus tvām ṛiṣhayaḥ sarve devarṣhir nāradas tathā
asito devalo vyāsaḥ svayaṁ chaiva bravīṣhi me

भावार्थ:
अजन्मा और सर्वव्यापी कहते हैं। वैसे ही देवर्षि नारद तथा असित और देवल ऋषि तथा महर्षि व्यास भी कहते हैं और आप भी मेरे प्रति कहते हैं॥13॥

Translation
the Primal Being, the Unborn, and the Greatest. The great sages, like Narad, Asit, Deval, and Vyas, proclaimed this, and now you are declaring it to me yourself.

10/07/2021

Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 12

अर्जुन उवाच |
परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् |
पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् || 12||
paraṁ brahma paraṁ dhāma pavitraṁ paramaṁ bhavān
puruṣhaṁ śhāśhvataṁ divyam ādi-devam ajaṁ vibhum

भावार्थ:
अर्जुन बोले- आप परम ब्रह्म, परम धाम और परम पवित्र हैं, क्योंकि आपको सब ऋषिगण सनातन, दिव्य पुरुष एवं देवों का भी आदिदेव,

Translation
Arjun said: You are the Supreme Divine Personality, the Supreme Abode, the Supreme Purifier, the Eternal God,

09/07/2021

Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 11

तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तम: |
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता || 11||
teṣhām evānukampārtham aham ajñāna-jaṁ tamaḥ
nāśhayāmyātma-bhāva-stho jñāna-dīpena bhāsvatā

भावार्थ:
हे अर्जुन! उनके ऊपर अनुग्रह करने के लिए उनके अंतःकरण में स्थित हुआ मैं स्वयं ही उनके अज्ञानजनित अंधकार को प्रकाशमय तत्त्वज्ञानरूप दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूँ॥11॥

Translation
Out of compassion for them, I, who dwell within their hearts, destroy the darkness born of ignorance, with the luminous lamp of knowledge.

08/07/2021

Bhagawad Gita: Chapter 10, Verse 10

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् |
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते || 10||
teṣhāṁ satata-yuktānāṁ bhajatāṁ prīti-pūrvakam
dadāmi buddhi-yogaṁ taṁ yena mām upayānti t

भावार्थ:
उन निरंतर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए और प्रेमपूर्वक भजने वाले भक्तों को मैं वह तत्त्वज्ञानरूप योग देता हूँ, जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते हैं॥10॥

Translation
To those whose minds are always united with me in loving devotion, I give the divine knowledge by which they can attain me.

07/07/2021

Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 9

मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्त: परस्परम् |
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च || 9||
mach-chittā mad-gata-prāṇā bodhayantaḥ parasparam
kathayantaśh cha māṁ nityaṁ tuṣhyanti cha ramanti cha

भावार्थ:
निरंतर मुझमें मन लगाने वाले और मुझमें ही प्राणों को अर्पण करने वाले (मुझ वासुदेव के लिए ही जिन्होंने अपना जीवन अर्पण कर दिया है उनका नाम मद्गतप्राणाः है।) भक्तजन मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा आपस में मेरे प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरंतर संतुष्ट होते हैं और मुझ वासुदेव में ही निरंतर रमण करते हैं॥9॥

Translation
With their minds fixed on me and their lives surrendered to me, my devotees remain ever contented in me. They derive great satisfaction and bliss in enlightening one another about me, and conversing about my glories.

06/07/2021

Bhagawad Gita: Chapter 10, Verse 8

अहं सर्वस्य प्रभवो मत्त: सर्वं प्रवर्तते |
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विता: || 8||
ahaṁ sarvasya prabhavo mattaḥ sarvaṁ pravartate
iti matvā bhajante māṁ budhā bhāva-samanvitāḥ

भावार्थ:
मैं वासुदेव ही संपूर्ण जगत्‌ की उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझसे ही सब जगत्‌ चेष्टा करता है, इस प्रकार समझकर श्रद्धा और भक्ति से युक्त बुद्धिमान्‌ भक्तजन मुझ परमेश्वर को ही निरंतर भजते हैं॥8॥

Translation
I am the origin of all creation. Everything proceeds from me. The wise who know this perfectly worship me with great faith and devotion.

05/07/2021

Bhagawad Gita: chapter 10, Verse 7

एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्वत: |
सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशय: || 7||
etāṁ vibhūtiṁ yogaṁ cha mama yo vetti tattvataḥ
so ’vikampena yogena yujyate nātra sanśhayaḥ

भावार्थ:
जो पुरुष मेरी इस परमैश्वर्यरूप विभूति को और योगशक्ति को तत्त्व से जानता है (जो कुछ दृश्यमात्र संसार है वह सब भगवान की माया है और एक वासुदेव भगवान ही सर्वत्र परिपूर्ण है, यह जानना ही तत्व से जानना है), वह निश्चल भक्तियोग से युक्त हो जाता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है॥7॥

Translation
Those who know in truth my glories and divine powers become united with me through unwavering bhakti yog. Of this there is no doubt.

04/07/2021

Bhagawad Gita: Chapter 10, Verse 6

महर्षय: सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा |
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमा: प्रजा: || 6||

maharṣhayaḥ sapta pūrve chatvāro manavas tathā
mad-bhāvā mānasā jātā yeṣhāṁ loka imāḥ prajāḥ

भावार्थ:
सात महर्षिजन, चार उनसे भी पूर्व में होने वाले सनकादि तथा स्वायम्भुव आदि चौदह मनु- ये मुझमें भाव वाले सब-के-सब मेरे संकल्प से उत्पन्न हुए हैं, जिनकी संसार में यह संपूर्ण प्रजा है॥6॥

Translation
The seven great Sages, the four great Saints before them, and the fourteen Manus, are all born from my mind. From them, all the people in the world have descended.

03/07/2021

Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 5

अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयश: |
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधा: || 5||
ahinsā samatā tuṣhṭis tapo dānaṁ yaśho ’yaśhaḥ
bhavanti bhāvā bhūtānāṁ matta eva pṛithag-vidhāḥ

भावार्थ:
तथा अहिंसा, समता, संतोष तप (स्वधर्म के आचरण से इंद्रियादि को तपाकर शुद्ध करने का नाम तप है), दान, कीर्ति और अपकीर्ति- ऐसे ये प्राणियों के नाना प्रकार के भाव मुझसे ही होते हैं॥4॥

Translation
forgiveness, truthfulness, control over the senses and mind, joy and sorrow, birth and death, fear and courage, non-violence, equanimity, contentment, austerity, charity, fame, and infamy.

02/07/2021

Bhagavad Gita: Chapter 10, Verse 4

बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोह: क्षमा सत्यं दम: शम: |
सुखं दु:खं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च || 4||
buddhir jñānam asammohaḥ kṣhamā satyaṁ damaḥ śhamaḥ
sukhaṁ duḥkhaṁ bhavo ’bhāvo bhayaṁ chābhayameva cha

भावार्थ:
निश्चय करने की शक्ति, यथार्थ ज्ञान, असम्मूढ़ता, क्षमा, सत्य, इंद्रियों का वश में करना, मन का निग्रह तथा सुख-दुःख, उत्पत्ति-प्रलय और भय-अभय

Translation
From me alone arise the varieties in the qualities amongst humans, such as intellect, knowledge, clarity of thought,

01/07/2021

Bhagawad Gita: chapter 10, Verse 3

Krishna says:

यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् |
असम्मूढ: स मर्त्येषु सर्वपापै: प्रमुच्यते || 3||
yo māmajam anādiṁ cha vetti loka-maheśhvaram
asammūḍhaḥ sa martyeṣhu sarva-pāpaiḥ pramuchyate

भावार्थ:
जो मुझको अजन्मा अर्थात्‌ वास्तव में जन्मरहित, अनादि (अनादि उसको कहते हैं जो आदि रहित हो एवं सबका कारण हो) और लोकों का महान्‌ ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान्‌ पुरुष संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है॥3॥

Translation
Those who know me as unborn and beginningless, and as the Supreme Lord of the universe, they among mortals are free from illusion and released from all evils.

30/06/2021

Bhagawad Gita: Chapter 10, Verse 2

न मे विदु: सुरगणा: प्रभवं न महर्षय: |
अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वश: || 2||
na me viduḥ sura-gaṇāḥ prabhavaṁ na maharṣhayaḥ
aham ādir hi devānāṁ maharṣhīṇāṁ cha sarvaśhaḥ

भावार्थ:
मेरी उत्पत्ति को अर्थात्‌ लीला से प्रकट होने को न देवता लोग जानते हैं और न महर्षिजन ही जानते हैं, क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं का और महर्षियों का भी आदिकारण हूँ॥2॥

Translation
Neither celestial gods nor the great sages know my origin. I am the source from which the gods and great seers come.

29/06/2021

Chapter 10 – The Bhagawad Gita

Chapter 10, Verse 1

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायांयोगशास्त्रे
श्रीकृष्णार्जुनसंवादे विभूतियोगो नाम दशमोऽध्यायः ॥10।

( भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल)

श्रीभगवानुवाच-भूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वचः ।यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ॥
The Blessed Lord said: Listen again to my divine teachings, O mighty armed one. Desiring your welfare because you are my beloved friend, I shall reveal them to you.

28/06/2021

Bhagawad Gita : Chapter 9, Verse 34

Krishna says:

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: || 34||
man-manā bhava mad-bhakto mad-yājī māṁ namaskuru
mām evaiṣhyasi yuktvaivam ātmānaṁ mat-parāyaṇaḥ

भावार्थ:
मुझमें मन वाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर। इस प्रकार आत्मा को मुझमें नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा॥34॥

Translation
Always think of Me, be devoted to Me, worship Me, and offer obeisance to Me. Having dedicated your mind and body to Me, you will certainly come to Me.

27/06/2021

Bhagawad Gita: Chapter 9, Verse 33
Krishna says:

किं पुनर्ब्राह्मणा: पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा |
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् || 33||
kiṁ punar brāhmaṇāḥ puṇyā bhaktā rājarṣhayas tathā
anityam asukhaṁ lokam imaṁ prāpya bhajasva mām

भावार्थ:
फिर इसमें कहना ही क्या है, जो पुण्यशील ब्राह्मण था राजर्षि भक्तजन मेरी शरण होकर परम गति को प्राप्त होते हैं। इसलिए तू सुखरहित और क्षणभंगुर इस मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर निरंतर मेरा ही भजन कर॥33॥

Translation
What then to speak about kings and sages with meritorious deeds? Therefore, having come to this transient and joyless world, engage in devotion unto Me.

26/06/2021

Bhagawad Gita: chapter 9, Verse 32

Krishna says:

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु: पापयोनय: |
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् || 32||
māṁ hi pārtha vyapāśhritya ye ’pi syuḥ pāpa-yonayaḥ
striyo vaiśhyās tathā śhūdrās te ’pi yānti parāṁ gatim

भावार्थ:
हे अर्जुन! स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा पापयोनि चाण्डालादि जो कोई भी हों, वे भी मेरे शरण होकर परमगति को ही प्राप्त होते हैं॥32॥

Translation
All those who take refuge in Me, whatever their birth, race, s*x, or caste, even those whom society scorns, will attain the supreme destination.

25/06/2021

Bhagawad Gita : Chapter 9, Verse 31

क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति |
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति || 31||
kṣhipraṁ bhavati dharmātmā śhaśhvach-chhāntiṁ nigachchhati
kaunteya pratijānīhi na me bhaktaḥ praṇaśhyati

भावार्थ:
: वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा रहने वाली परम शान्ति को प्राप्त होता है। हे अर्जुन! तू निश्चयपूर्वक सत्य जान कि मेरा भक्त नष्ट नहीं होता॥31॥

Translation
Quickly they become virtuous, and attain lasting peace. O son of Kunti, declare it boldly that no devotee of Mine is ever lost.

24/06/2021

Bhagawad Gita: chapter 9, Verse 30

Krishna says:

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् |
साधुरेव स मन्तव्य: सम्यग्व्यवसितो हि स: || 30||
api chet su-durāchāro bhajate mām ananya-bhāk
sādhur eva sa mantavyaḥ samyag vyavasito hi saḥ

भावार्थ:
यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है। अर्थात्‌ उसने भली भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है॥30॥

23/06/2021

Bhagawad Gita: chapter 9, Verse 29

Krishna says:

यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है। अर्थात्‌ उसने भली भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है

22/06/2021

Bhagawad Gita: Chapter 9, Verse 28

Krishna Says:

इस प्रकार, जिसमें समस्त कर्म मुझ भगवान के अर्पण होते हैं- ऐसे संन्यासयोग से युक्त चित्तवाला तू शुभाशुभ फलरूप कर्मबंधन से मुक्त हो जाएगा और उनसे मुक्त होकर मुझको ही प्राप्त होगा।

21/06/2021

Bhagawad Gita: Chapter 9, Verse 27

Krishna Says:

हे अर्जुन! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर 27

20/06/2021

Bhagawad Gita: Chapter 9, Verse 26

Krishna Says:

जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्धबुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुणरूप से प्रकट होकर प्रीतिसहित खाता हूँl

19/06/2021

Bhagawad Gita: Chapter 9, Verse 25

Krishna Says:

देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं। इसीलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता (गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में देखना चाहिए)

18/06/2021

Bhagawad Gita: Chapter 9, Verse 24

Krishna Says:

क्योंकि संपूर्ण यज्ञों का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूँ, परंतु वे मुझ परमेश्वर को तत्त्व से नहीं जानते, इसी से गिरते हैं अर्थात्‌ पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं

17/06/2021

Bhagawad Gita: Chapter 9, Verse 23

Krishna says:

हे अर्जुन! यद्यपि श्रद्धा से युक्त जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैं, वे भी मुझको ही पूजते हैं, किंतु उनका वह पूजन अविधिपूर्वक अर्थात्‌ अज्ञानपूर्वक है

16/06/2021

Bhagawad Gita:

Chapter 9, Verse 22

जो अनन्यप्रेमी भक्तजन मुझ परमेश्वर को निरंतर चिंतन करते हुए निष्कामभाव से भजते हैं, उन नित्य-निरंतर मेरा चिंतन करने वाले पुरुषों का योगक्षेम (भगवत्‌स्वरूप की प्राप्ति का नाम 'योग' है और भगवत्‌प्राप्ति के निमित्त किए हुए साधन की रक्षा का नाम 'क्षेम' है) मैं स्वयं प्राप्त कर देता हूँI 22

Photos from Bhagwad Gita's post 02/02/2021

Bhagawad Gita: Chapter 9, Verse 19,20&21

Krishna Says:

मैं ही सूर्यरूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। हे अर्जुन! मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत्‌-असत्‌ भी मैं ही हूँ ll19ll

तीनों वेदों में विधान किए हुए सकाम कर्मों को करने वाले, सोम रस को पीने वाले, पापरहित पुरुष (यहाँ स्वर्ग प्राप्ति के प्रतिबंधक देव ऋणरूप पाप से पवित्र होना समझना चाहिए) मुझको यज्ञों के द्वारा पूजकर स्वर्ग की प्राप्ति चाहते हैं, वे पुरुष अपने पुण्यों के फलरूप स्वर्गलोक को प्राप्त होकर स्वर्ग में दिव्य देवताओं के भोगों को भोगते हैं ll20ll

वे उस विशाल स्वर्गलोक को भोगकर पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार स्वर्ग के साधनरूप तीनों वेदों में कहे हुए सकामकर्म का आश्रय लेने वाले और भोगों की कामना वाले पुरुष बार-बार आवागमन को प्राप्त होते हैं, अर्थात्‌ पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग में जाते हैं और पुण्य क्षीण होने पर मृत्युलोक में आते हैं ll21ll

Photos from Bhagwad Gita's post 01/02/2021

Bhagawad Gita: Chapter 9, Verse 16,17&18

Krishna Says:

क्रतु मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ, स्वधा मैं हूँ, औषधि मैं हूँ, मंत्र मैं हूँ, घृत मैं हूँ, अग्नि मैं हूँ और हवनरूप क्रिया भी मैं ही हूँ ll16ll

इस संपूर्ण जगत्‌ का धाता अर्थात्‌ धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य, (गीता अध्याय 13 श्लोक 12 से 17 तक में देखना चाहिए) पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ ll17ll

प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वासस्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान (प्रलयकाल में संपूर्ण भूत सूक्ष्म रूप से जिसमें लय होते हैं उसका नाम 'निधान' है) और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ ll18ll

Photos from Bhagwad Gita's post 11/01/2021

Bhagawad Gita: Chapter 9, Verse 13,14&15

Krishna Says:

परंतु हे कुन्तीपुत्र! दैवी प्रकृति के (इसका विस्तारपूर्वक वर्णन गीता अध्याय 16 श्लोक 1 से 3 तक में देखना चाहिए) आश्रित महात्माजन मुझको सब भूतों का सनातन कारण और नाशरहित अक्षरस्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त होकर निरंतर भजते हैं ll13ll

वे दृढ़ निश्चय वाले भक्तजन निरंतर मेरे नाम और गुणों का कीर्तन करते हुए तथा मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करते हुए और मुझको बार-बार प्रणाम करते हुए सदा मेरे ध्यान में युक्त होकर अनन्य प्रेम से मेरी उपासना करते हैं ll14ll

दूसरे ज्ञानयोगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्म का ज्ञानयज्ञ द्वारा अभिन्नभाव से पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते हैं और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट स्वरूप परमेश्वर की पृथक भाव से उपासना करते हैं।।15।।

Photos from Bhagwad Gita's post 27/12/2020

Bhagawad Gita: Chapter 9, Verse 10,11&12

Krishna Says:

हे अर्जुन! मुझ अधिष्ठाता के सकाश से प्रकृति चराचर सहित सर्वजगत को रचती है और इस हेतु से ही यह संसारचक्र घूम रहा है ll10ll

मेरे परमभाव को (गीता अध्याय 7 श्लोक 24 में देखना चाहिए) न जानने वाले मूढ़ लोग मनुष्य का शरीर धारण करने वाले मुझ संपूर्ण भूतों के महान्‌ ईश्वर को तुच्छ समझते हैं अर्थात्‌ अपनी योग माया से संसार के उद्धार के लिए मनुष्य रूप में विचरते हुए मुझ परमेश्वर को साधारण मनुष्य मानते हैं ll11ll

वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान वाले विक्षिप्तचित्त अज्ञानीजन राक्षसी, आसुरी और मोहिनी प्रकृति को (जिसको आसुरी संपदा के नाम से विस्तारपूर्वक भगवान ने गीता अध्याय 16 श्लोक 4 तथा श्लोक 7 से 21 तक में कहा है) ही धारण किए रहते हैं ll12ll

Photos from Bhagwad Gita's post 22/12/2020

Bhagawad Gita: Chapter 9, Verse 7,8&9

Krishna Says:

हे अर्जुन! कल्पों के अन्त में सब भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात्‌ प्रकृति में लीन होते हैं और कल्पों के आदि में उनको मैं फिर रचता हूँ ll7ll

अपनी प्रकृति को अंगीकार करके स्वभाव के बल से परतंत्र हुए इस संपूर्ण भूतसमुदाय को बार-बार उनके कर्मों के अनुसार रचता हूँ ll8ll

हे अर्जुन! उन कर्मों में आसक्तिरहित और उदासीन के सदृश (जिसके संपूर्ण कार्य कर्तृत्व भाव के बिना अपने आप सत्ता मात्र ही होते हैं उसका नाम 'उदासीन के सदृश' है।) स्थित मुझ परमात्मा को वे कर्म नहीं बाँधते ll9ll

17/12/2020
Photos from Bhagwad Gita's post 17/12/2020

Bhagawad Gita: Chapter 9, Verse 4,5&6
Krishna Says:

मुझ निराकार परमात्मा से यह सब जगत्‌ जल से बर्फ के सदृश परिपूर्ण है और सब भूत मेरे अंतर्गत संकल्प के आधार स्थित हैं, किंतु वास्तव में मैं उनमें स्थित नहीं हूँ ll4ll

वे सब भूत मुझमें स्थित नहीं हैं, किंतु मेरी ईश्वरीय योगशक्ति को देख कि भूतों का धारण-पोषण करने वाला और भूतों को उत्पन्न करने वाला भी मेरा आत्मा वास्तव में भूतों में स्थित नहीं है ll5ll

जैसे आकाश से उत्पन्न सर्वत्र विचरने वाला महान्‌ वायु सदा आकाश में ही स्थित है, वैसे ही मेरे संकल्प द्वारा उत्पन्न होने से संपूर्ण भूत मुझमें स्थित हैं, ऐसा जान ll6ll

Photos from Bhagwad Gita's post 09/12/2020

Bhagawad Gita: Chapter 9, Verse 1,2&3

Krishna Says:

श्री भगवान बोले- तुझ दोषदृष्टिरहित भक्त के लिए इस परम गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान को पुनः भली भाँति कहूँगा, जिसको जानकर तू दुःखरूप संसार से मुक्त हो जाएगा ll1ll

यह विज्ञान सहित ज्ञान सब विद्याओं का राजा, सब गोपनीयों का राजा, अति पवित्र, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फलवाला, धर्मयुक्त, साधन करने में बड़ा सुगम और अविनाशी है ll2ll

हे परंतप! इस उपयुक्त धर्म में श्रद्धारहित पुरुष मुझको न प्राप्त होकर मृत्युरूप संसार चक्र में भ्रमण करते रहते हैं ll3ll

Website