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जय सनातन जय संस्कृति �
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*अपने ही धर्म का देवी-देवताओ का हम स्वयं उपहास कर रहे हैं,,,इसका विरोध होना चाहिए, आप भी अगर इस तरह का किसी धार्मिक आयोजन में कथा, जागरण, भजन संध्या इत्यादि में देखे तो इसका विरोध अवश्य करें,,मनोरंजन के नाम पर अपने धर्म का मजाक ना बनने दे जब हम स्वयं करेंगे तो फिर विधर्मी तो करेंगे ही pk जैसी फिल्में बना के कैसे फिर उन्हें रोकोगे...एक बार सुने और विचार करें और यह विचार जन जन तक पहुँचाये..🙏*
*🍁 "भक्त पर कृपा" 🍁*
एक गाँव में भगवान शिव का परमभक्त एक ब्राह्मण रहता था। पंडितजी जब तक प्रतिदिन सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नित्यकर्मो से निवृत होने के पश्चात् भगवान शंकर का पूजन नहीं कर लेते, तब तक उन्हें चैन नहीं पड़ता था। जो कुछ भी दान दक्षिणा में आ जाता उसी से पंडित जी अपना गुजारा करते थे और दयालु इतने थे कि जब भी कोई जरूरत मंद मिल जाता, अपनी क्षमता के अनुसार उसकी सेवा जरुर करते थे। इस कारण शिव के परमभक्त ब्राह्मण गरीबी का जीवन व्यतीत कर रहे थे।
पंडितजी की इस दानी प्रवृति से उनकी पत्नी उनसे चिढ़ती तो थी, किन्तु उनकी भक्ति परायणता को देख उनसे अत्यधिक प्रेम करती थी। इसलिए वह कभी भी उनका अपमान नहीं करती थी। साथ ही अपनी जरूरत का धन वह आस-पड़ोस में मजदूरी करके जुटा लेती थी।
एक समय ऐसा आया जब मन्दिर में दान-दक्षिणा कम आने लगी, जिससे पंडित जी को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। घर की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होने के कारण ब्राह्मणी दु:खी रहने लगी।
महाशिवरात्रि का दिन आया। उस दिन भी पंडित जी हमेशा की तरह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नित्यकर्मो से निवृत होने के लिए नदी की ओर चल दिए। संयोग से उस समय उस राह से पार्वती और शिवजी गुजर रहे थे। अचानक से पार्वतीजी की नजर पंडितजी पर पड़ी।
आज पंडितजी महाशिवरात्रि को लेकर उतने उत्साहित नहीं थे, जितने की अक्सर हुआ करते थे। पार्वतीजी को बात समझते देर नहीं लगी। उन्होंने शिवजी से कहा, “भगवन् ! यह ब्राह्मण देवता ! प्रतिदिन आपकी उपासना करते हैं, फिर भी आपको इसकी चिंता नहीं है।” पार्वतीजी की बात सुनकर शिवजी बोले, “देवी ! अपने भक्तों की चिंता मैं नहीं करूँगा तो कौन करेगा ?”
पार्वतीजी, “तो हे देव ! आपने अब तक उसकी सहायता क्यों नहीं की ?” शिवजी, “देवी ! आप निश्चिन्त रहिये, अब तक उसने जितने बिल्वपत्र शिवलिंग पर चढ़ाएं हैं, वही बिल्वपत्र उसे आजरात्रि में धनपति बना देंगे।
यह बातचीत करके पार्वतीजी और शिवजी तो चल दिए। किन्तु संयोग तो देखिये ! उसी समय उस राह से एक व्यापारी गुजर रहा था। उसने छुप कर शिव-पार्वती का यह वार्तालाप सुन लिया। व्यापारी ने अपना दिमाग चलाया। अगर बिल्वपत्र से ब्राह्मण धनपति हो सकता है, तो फिर मैं क्यों नहीं हो सकता। यही सोच वह ब्राह्मण के घर पहुँच गया और ब्राह्मण से बोला, “पंडितजी ! आपने अब तक जितने भी बिल्वपत्र शिवपूजन में चढ़ाये हैं, वह सब मुझे दे दीजिए, बदले में मैं आपको १०० स्वर्ण मुद्राऐं दूँगा।"
पंडित जी ने अपनी पत्नी से पूछा.. तो वह बोली, “पूण्य का दान ठीक तो नहीं, किन्तु दे दीजिए, हमें धन की जरूरत है, इसलिए दे दीजिए।”
पंडितजी ने सारे बिल्वपत्र एक बोरे में भरकर सेठजी को दे दिए। बिल्वपत्रों का बोरा लेकर सेठजी पहुँच गये मन्दिर और शिवलिंग पर चढ़ाकर देखने लगे तमाशा कि कब शिवजी कृपा करें, और कब वह धनपति हो।
प्रतीक्षा करते-करते सेठजी को आधी रात हो गई। सेठजी चमत्कार देखने के लिए बहुत उतावले हो रहे थे। आखिर तीसरा पहर गुजरने के बाद सेठजी के सब्र का बांध टूट ही गया और क्रोध ने आकर सेठजी शिवलिंग को झकझोरने लगे।
अब हुआ चमत्कार ! सेठजी के हाथ शिवलिंग से ही चिपके रह गये। उन्होंने बहुत प्रयास किया किन्तु हाथ हिले तक नहीं। थक-हारकर सेठजी शिवजी से क्षमा-याचना करने लगे। तो शिवजी बोले, “लोभी सेठ ! जिस ब्राह्मण से तूने ये बिल्वपत्र खरीदे हैं उसे १००० स्वर्ण मुद्राऐं दे तब जाकर तेरे हाथ खुलेंगे।
प्रातःकाल जब पंडित जी पूजन के लिए आये तो देखा कि सेठ शिवलिंग पर हाथ चिपकाकर रो रहा है। उन्होंने पूछा तो सेठ बोला, “पंडितजी ! शीघ्रता से मेरे बेटे को १००० स्वर्ण मुद्राऐं लेकर मन्दिर आने को कहिये। पंडितजी ने सेठ के बेटे को बुलाया और सेठ ने वह स्वर्ण मुद्राएँ ब्राह्मण को दिलवा दीं और सेठ मुक्त हो गया।
अब पार्वतीजी शिवजी से पूछती है, “हे नाथ ! आपने अब तक अपने भक्त को कोई धन नहीं दिया ?” शिवजी बोले, “देवी ! ब्राह्मण को विल्वपत्रों के बदले धन प्राप्त हो गया है। मेरा भक्त अब गरीब नहीं है। देखिये..!!
*🙏आपका दिन मंगलमय हो🙏*
┉══════❀(("ॐ"))❀══════┉┈
🌹🙏🙏सुमति 🙏🙏🌹
एक बार किसी ने तुलसी दास जी से पूछा - महाराज! सम्पूर्ण रामायण का सार क्या है? क्या कोई चौपाई ऐसी है जिसे हम सम्पूर्ण रामायण का सार कह सकते हैं?
तुलसी दास जी ने कहा - हाँ है और वह है -
जहां सुमति तह सम्पत्ति नाना, जहां कुमति तहँ विपत्ति आना।
जहां सुमति होती है, वहां हर प्रकार की सम्पत्ति, सुख-सुविधाएं होती हैं और जहां कुमति होती है वहां विपत्ति, दुःख और कष्ट पीछा नहीं छोड़ते।
सुमति थी अयोध्या में!
भाई-भाई में प्रेम था, पिता और पुत्र में प्रेम था, राजा-प्रजा में प्रेम था, सास-बहू में प्रेम था और मालिक-सेवक में प्रेम था तो उजड़ी हुई अयोध्या फिर से बस गई ।
कुमति थी लंका में!
एक भाई ने दूसरे भाई को लात मारकर निकाल दिया। कुमति और अनीति के कारण सोने की लंका राख का ढेर हो गई।
गुरु वाणी में आता है -
इक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दीया ना बाती।
पाँच पाण्डवों में सुमति थी तो उन पर कितनी विपदाएं आईं लेकिन अंत में विजय उनकी ही हुई और हस्तिनापुर में उनका राज्य हुआ।
कौरवों में कुमति थी, अनीति थी, अनाचार था, अधर्म था तो उनकी पराजय हुई और सारे भाई मारे गए।
यदि जीवन को सुखी बनाना चाहते हैं तो जीवन में सुमति अपनाओ।
भगवान "कृष्ण" स्वयं कहते हैं कि;
"राधा" उनकी आत्मा है, वह "राधा" में व "राधा" उनमें बसती है!
"गोविन्द" को यही पसंद है कि, लोग भले ही उनका नाम नहीं लें लेकिन "राधा" का नाम जपते रहें।
प्रेम से बोलो "जय श्री राधे"
"जय" बोलने से मन को शांति मिलती है, "श्री" बोलने से शक्ति मिलती है, "राधे" बोलने से पापों से मुक्ति मिलती है और निरंतर "जय श्रीराधे" बोलने से भक्ति मिलती है तो प्रेम से बोलो "जय श्रीराधे"
🙏जय जय श्री राधे🙏🏼
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*🍁 अंधे की परख 🍁*
एक राजा का दरबार लगा हुआ था,
क्योंकि सर्दी का दिन था इसलिये
राजा का दरवार खुले मे लगा हुआ था.
पूरी आम सभा सुबह की धूप मे बैठी थी ..
महाराज के सिंहासन के सामने...
एक शाही मेज थी...
और उस पर कुछ कीमती चीजें रखी थीं.
पंडित लोग, मंत्री और दीवान आदि
सभी दरबार मे बैठे थे
और राजा के परिवार के सदस्य भी बैठे थे.. ..
उसी समय एक व्यक्ति आया और प्रवेश माँगा..
प्रवेश मिल गया तो उसने कहा
“मेरे पास दो वस्तुएं हैं,
मै हर राज्य के राजा के पास जाता हूँ और
अपनी वस्तुओं को रखता हूँ पर कोई परख नही पाता सब हार जाते है
और मै विजेता बनकर घूम रहा हूँ”..
अब आपके नगर मे आया हूँ
राजा ने बुलाया और कहा “क्या वस्तु है”
तो उसने दोनो वस्तुएं....
उस कीमती मेज पर रख दीं..
वे दोनों वस्तुएं बिल्कुल समान
आकार, समान रुप रंग, समान
प्रकाश सब कुछ नख-शिख समान था.. … ..
राजा ने कहा ये दोनो वस्तुएं तो एक हैं.
तो उस व्यक्ति ने कहा हाँ दिखाई तो
एक सी ही देती है लेकिन हैं भिन्न.
इनमें से एक है बहुत कीमती हीरा
और एक है काँच का टुकडा।
लेकिन रूप रंग सब एक है.
कोई आज तक परख नही पाया क़ि
कौन सा हीरा है और कौन सा काँच का टुकड़ा..
कोइ परख कर बताये की....
ये हीरा है और ये काँच..
अगर परख खरी निकली...
तो मैं हार जाऊंगा और..
यह कीमती हीरा मै आपके राज्य की तिजोरी मे जमा करवा दूंगा.
पर शर्त यह है क़ि यदि कोई नहीं
पहचान पाया तो इस हीरे की जो
कीमत है उतनी धनराशि आपको
मुझे देनी होगी..
इसी प्रकार से मैं कई राज्यों से...
जीतता आया हूँ..
राजा ने कहा मै तो नही परख सकूगा..
दीवान बोले हम भी हिम्मत नही कर सकते
क्योंकि दोनो बिल्कुल समान है..
सब हारे कोई हिम्मत नही जुटा पा रहा था.. ..
हारने पर पैसे देने पडेगे...
इसका कोई सवाल नही था,
क्योंकि राजा के पास बहुत धन था,
पर राजा की प्रतिष्ठा गिर जायेगी,
इसका सबको भय था..
कोई व्यक्ति पहचान नही पाया.. ..
आखिरकार पीछे थोडी हलचल हुई
एक अंधा आदमी हाथ मे लाठी लेकर उठा..
उसने कहा मुझे महाराज के पास ले चलो...
मैने सब बाते सुनी है...
और यह भी सुना है कि....
कोई परख नही पा रहा है...
एक अवसर मुझे भी दो.. ..
एक आदमी के सहारे....
वह राजा के पास पहुंचा..
उसने राजा से प्रार्थना की...
मै तो जनम से अंधा हू....
फिर भी मुझे एक अवसर दिया जाये..
जिससे मै भी एक बार अपनी बुद्धि को परखूँ..
और हो सकता है कि सफल भी हो जाऊं..
और यदि सफल न भी हुआ...
तो वैसे भी आप तो हारे ही है..
राजा को लगा कि.....
इसे अवसर देने मे क्या हर्ज है...
राजा ने कहा क़ि ठीक है..
तो तब उस अंधे आदमी को...
दोनो चीजे छुआ दी गयी..
और पूछा गया.....
इसमे कौन सा हीरा है....
और कौन सा काँच….?? ..
यही तुम्हें परखना है.. ..
कथा कहती है कि....
उस आदमी ने एक क्षण मे कह दिया कि यह हीरा है और यह काँच.. ..
जो आदमी इतने राज्यो को जीतकर आया था
वह नतमस्तक हो गया..
और बोला....
“सही है आपने पहचान लिया.. धन्य हो आप…
अपने वचन के मुताबिक.....
यह हीरा.....
मै आपके राज्य की तिजोरी मे दे रहा हूँ ” ..
सब बहुत खुश हो गये
और जो आदमी आया था वह भी
बहुत प्रसन्न हुआ कि कम से कम
कोई तो मिला परखने वाला..
उस आदमी, राजा और अन्य सभी
लोगो ने उस अंधे व्यक्ति से एक ही
जिज्ञासा जताई कि तुमने यह कैसे
पहचाना कि यह हीरा है और वह काँच.. ..
उस अंधे ने कहा की सीधी सी बात है मालिक
धूप मे हम सब बैठे है.. मैने दोनो को छुआ ..
जो ठंडा रहा वह हीरा.....
जो गरम हो गया वह काँच...
*जीवन मे आप भी देखना..जो बात बात मे गरम हो जाये, उलझ जाये...वह व्यक्ति "काँच" है। और जो विपरीत परिस्थिति मे भी ठंडा रहे..वह व्यक्ति "हीरा" है..!!*
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