Arpan

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नेपाली मन नेपाली पन

20/11/2023
Photos from Arpan's post 20/11/2023
21/11/2022

"पाप का बाप"
एक पण्डितजी काशी से विद्याध्ययन करके अपने गांव वापिस आए। शादी की, पत्नी घर पर आई। एक दिन पत्नी ने पण्डितजी से पूछा– ’आपने काशी में विद्याध्ययन किया है, आप बड़े विद्वान है। यह बताइए कि पाप का बाप (मूल) कौन है ?’
पण्डितजी अपनी पोथी-पत्रे पटलते रहे, पर पत्नी के प्रश्न का उत्तर नहीं दे सके। उन्हें बड़ी शर्मिन्दगी महसूस हुई कि हमने इतनी विद्या ग्रहण की पर आज पत्नी के सामने लज्जित होना पड़ा। वे पुन: काशी विद्याध्ययन के लिए चल दिए। मार्ग में वे एक घर के बाहर विश्राम के लिए रुक गये। वह घर एक वेश्या का था। वेश्या ने पण्डितजी से पूछा–’कहां जा रहे हैं, महाराज ?’ पण्डितजी ने वेश्या को बताया कि ‘मेरी स्त्री ने पूछा है कि पाप का बाप कौन है ? इसी प्रश्न का उत्तर खोजने काशी जा रहा हूँ।’ वेश्या ने कहा–’आप वहां क्यों जाते हैं, इस प्रश्न का उत्तर तो मैं आपको यहीं बता सकती हूँ।’ पण्डितजी प्रसन्न हो गए कि यहीं काम बन गया, पत्नी के प्रश्न का उत्तर इस वेश्या के पास है। अब उन्हें दूर नहीं जाना पड़ेगा। वेश्या ने पण्डितजी को सौ रुपये भेंट देते हुए कहा–’महाराज! कल अमावस्या के दिन आप मेरे घर भोजन के लिए आना, मैं आपके प्रश्न का उत्तर दे दूंगी।’ सौ रुपये का नोट उठाते हुए पण्डितजी ने कहा–’क्या हर्ज है, कर लेंगे भोजन।’ यह कहकर वेश्या को अमावस्या के दिन आने की कहकर पण्डितजी चले गए।
अमावस्या के दिन वेश्या ने रसोई बनाने का सब सामान इकट्ठा कर दिया। पण्डितजी आए और रसोई बनाने लगे तो वेश्या ने कहा–’पक्की रसोई तो आप सबके हाथ की पाते (खाते) ही हो, कच्ची रसोई हरेक के हाथ की बनी नहीं खाते। मैं पक्की रसोई बना देती हूँ, आप पा (खा) लेना।’ ऐसा कहकर वेश्या ने सौ रुपये का एक नोट पण्डितजी की तरफ बढ़ा दिया। सौ का नोट देखकर पण्डितजी की आंखों में चमक आ गई। उन्होंने सोचा–पक्की रसोई हम दूसरों के हाथ की खा ही लेते हैं, तो यहां भी पक्की रसोई खाने में कोई हर्ज नहीं है। वेश्या ने पक्की रसोई बनाकर पण्डितजी को खाना परोस दिया। तभी वेश्या ने एक और सौ का नोट पण्डित के आगे रख दिया और हाथ जोड़कर विनती करते हुए बोली–’महाराज! जब आप मेरे हाथ की बनी रसोई पा रहे हैं, तो मैं अपने हाथ से आपको ग्रास दे दूँ तो आपको कोई ऐतराज तो नहीं है, क्योंकि हाथ तो वहीं हैं जिन्होंने रसोई बनाई है।’ पण्डितजी की आंखों के सामने सौ का करारा नोट नाच रहा था। वे बोले–’सही कहा आपने, हाथ तो वे वही हैं।’ पण्डितजी वेश्या के हाथ से भोजन का ग्रास लेने को तैयार हो गये।
पण्डितजी ने वेश्या के हाथ से ग्रास लेने के लिए जैसे ही मुंह खोला, वेश्या ने एक करारा थप्पड़ पण्डितजी के गाल पर जड़ दिया और बोली–’खबरदार ! जो मेरे घर का अन्न खाया। मैं आपका धर्मभ्रष्ट नहीं करना चाहती। अभी तक आपको ज्ञान नहीं हुआ। यह सब नाटक तो मैंने आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए किया था। जैसे-जैसे मैं आपको सौ रुपये का नोट देती गयी, आप लोभ में पड़ते गए और पाप करने के लिए तैयार हो गए।
इस कहानी से सिद्ध होता है कि पाप का बाप लोभ, तृष्णा ही है। मनुष्य अधिक धन-संग्रह के लोभ में पाप की कमाई करने से भी नहीं चूकता। इसीलिए शास्त्रों में अधिक धनसंग्रह को विष या मद कहा गया है।
पहले कनक का अर्थ धतूरा है जिसे खाने से बुद्धि भ्रमित होती है, किन्तु दूसरे कनक का अर्थ सोना (धन) है जिसे देखने से ही बुद्धि भ्रमित हो जाती है।
कामना या तृष्णा का कोई अंत नहीं है। तृष्णा कभी जीर्ण (बूढ़ी) नहीं होती, हम ही जीर्ण हो जाते हैं।
पाप से बचने के इन चार बातों का त्याग बतलाया है– "जो प्राप्त नहीं है उसकी कामना"। "जो प्राप्त है उसकी ममता"। "निर्वाह की चिन्ता और मैं ऐसा हूँ यानी अंहकार।" इन चार बातों का त्याग कर मनुष्य पाप से दूर रहकर सच्ची शान्ति प्राप्त कर सकता है।
आशक्ति और संसार का आकर्षण आपके मोक्ष
में पूर्ण बाधक है।।

31/10/2022

फूटी कौड़ी एक ज़माने में करेंसी हुआ करती थी जिसकी क़ीमत सबसे कम होती थी तीन फूटी कौड़ियों से एक कौड़ी बनती थी और दस कौड़ियों से एक दमड़ी
आज कल के बोल चाल में फूटी कौड़ी को मुहावरे के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है

करंसी की क़ीमत इस तरह थी
3 फूटी कौड़ी- 1 कौड़ी
10 कौड़ी - 1 दमड़ी
02 दमड़ी - 1.5 पाई
1.5 पाई - 1 धैला
2 धैला - 1 पैसा
3 पैसे - 1 टका
2 टके - 1 आना
2 आने - दोअन्नी
4 आने - चवन्नी
8 आने - अठन्नी
16 आने - 1 रुपया

08/03/2022

"चरणामृत और पंचामृत में क्या अंतर है..??"
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मंदिर में या फिर घर/मंदिर पर जब भी कोई पूजन होती है, तो चरणामृत या पंचामृत दिया हैं। मगर हम में से ऐसे कई लोग इसकी महिमा और इसके बनने की प्रक्रिया को नहीं जानते होंगे।

चरणामृत का अर्थ होता है भगवान के चरणों का अमृत और पंचामृत का अर्थ पांच अमृत यानि पांच पवित्र वस्तुओं से बना। दोनों को ही पीने से व्यक्ति के भीतर जहां सकारात्मक भावों की उत्पत्ति होती है,
वहीं यह सेहत से जुड़ा मामला भी है।

👉चरणामृत क्या है.??
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शास्त्रों में कहा गया है -
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णो पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।

अर्थात :
भगवान विष्णु के चरणों का अमृतरूपी जल सभी तरह के पापों का नाश करने वाला है। यह औषधि के समान है। जो चरणामृत का सेवन करता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता है।

कैसे बनता चरणामृत..??
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तांबे के बर्तन में चरणामृत रूपी जल रखने से उसमें तांबे के औषधीय गुण आ जाते हैं। चरणामृत में तुलसी पत्ता, तिल और दूसरे औषधीय तत्व मिले होते हैं। मंदिर या घर में हमेशा तांबे के लोटे में तुलसी मिला
जल रखा ही रहता है।

चरणामृत लेने के नियम :
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चरणामृत ग्रहण करने के बाद बहुत से लोग सिर पर हाथ फेरते हैं, लेकिन शास्त्रीय मत है कि ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे नकारात्मक प्रभाव बढ़ता है। चरणामृत हमेशा दाएं हाथ से लेना चाहिए और
श्रद्घाभक्तिपूर्वक मन को शांत रखकर ग्रहण करना चाहिए। इससे चरणामृत अधिक लाभप्रद होता है।

चरणामृत का लाभ
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आयुर्वेद की दृष्टि से चरणामृत स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार तांबे में अनेक रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है। यह पौरूष शक्ति को बढ़ाने में भी गुणकारी माना जाता है। तुलसी के रस से कई रोग दूर हो जाते हैं और इसका जल मस्तिष्क को शांति और निश्चिंतता प्रदान करता हैं। स्वास्थ्य लाभ के साथ ही साथ चरणामृत बुद्घि, स्मरण शक्ति को बढ़ाने भी कारगर होता है।

पंचामृत
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पंचामृत का अर्थ है.

'पांच अमृत'। दूध, दही, घी, शहद, शक्कर को मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है। इसी से भगवान का अभिषेक किया जाता है। पांचों प्रकार के मिश्रण से बनने वाला पंचामृत कई रोगों में लाभ-दायक और मन को शांति प्रदान करने वाला होता है। इसका एक
आध्यात्मिक पहलू भी है। वह यह कि पंचामृत आत्मोन्नति के 5 प्रतीक हैं। जैसे -

दूध - दूध पंचामृत का प्रथम भाग है। यह शुभ्रता का प्रतीक है, अर्थात हमारा जीवन दूध की तरह निष्कलंक होना चाहिए।

दही- दही का गुण है कि यह दूसरों को अपने जैसा बनाता है। दही चढ़ाने का अर्थ यही है कि पहले हम निष्कलंक हो सद्गुण अपनाएं और दूसरों को भी अपने जैसा बनाएं।

घी- घी स्निग्धता और स्नेह का प्रतीक है। सभी से हमारे स्नेहयुक्त संबंध हो, यही भावना है।

शहद- शहद मीठा होने के साथ ही शक्तिशाली भी होता है। निर्बल व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर सकता, तन और मन से शक्तिशाली व्यक्ति ही सफलता पा सकता है।

शक्कर- शक्कर का गुण है मिठास, शकर चढ़ाने का अर्थ है जीवन में मिठास घोलें। मीठा बोलना सभी को अच्छा लगता है और इससे मधुर व्यवहार बनता है।
उपरोक्त गुणों से हमारे जीवन में सफलता हमारे कदम चूमती है।

पंचामृत के लाभ : पंचामृत का सेवन करने से शरीर पुष्ट और रोगमुक्त रहता है। पंचामृत से जिस तरह हम भगवान को स्नान कराते हैं, ऐसा ही खुद स्नान करने से शरीर की कांति बढ़ती है। पंचामृत उसी मात्रा में सेवन करना चाहिए, जिस मात्रा में किया जाता है। उससे ज्यादा नहीं।
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25/02/2022

हिन्दु पञ्चाङ्गका तागत :: जय सनातन ।

Photos from Arpan's post 01/01/2022

जानिराखे राम्रो ।

05/01/2021

पूजा से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

★ एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए।

★ सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।

★ बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें।

★ मन्दिर में किसी व्यक्ति के चरण नहीं छूने (गुरु को छोड़कर ) चाहिए।

★ जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे मानसिक जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं।

★ जप करते समय माला को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।

★ जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।

★ दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए।

★ यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।

★ शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है,

★ कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं।

★ भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।

★ देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।

★ किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।

★ एकादशी, अमावस्या, कृृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए ।

★ बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं।

★ शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।

★ शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुंकुम नहीं चढ़ती।

★ शिवलिंग पर हल्दी नही चढ़ावे।

★ शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे।

★ अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावे।

★ नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं।

★ विष्णु भगवान को चावल गणेश जी को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण को बिल्व पत्र नहीं चढ़ावें।

★ पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें।

★ किंतु बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें।

★पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें।

★ सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ावे।

★ गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को ही चढ़ती हैं।

★ सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए।

★ पूजन करनेवाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें।

★ पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा, धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें।

★ घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें एवं चांवल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें।

★ सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है।

★ शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।

★ मां दुर्गा को दूर्वा (एक प्रकार की घास) नहीं चढ़ानी चाहिए। यह गणेशजी को विशेष रूप से अर्पित की जाती है।

★ सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।

★ तुलसी का पत्ता बिना स्नान किए नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के पत्तोंको तोड़ता है तो पूजन में ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते हैं।

★ शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए। सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त में पूजन और आरती होनी चाहिए।
इसके बाद प्रात: 9 से 10 बजे तक दूसरी बार का पूजन। दोपहर में तीसरी बार पूजन करना चाहिए। इस पूजन के बाद भगवान को शयन करवाना चाहिए। शाम के समय चार-पांच बजे पुन: पूजन और आरती।
रात को 8-9 बजे शयन आरती करनी चाहिए। जिन घरों में नियमित रूप से पांच बार पूजन किया जाता है, वहां सभी देवी-देवताओं का वास होता है और ऐसे घरों में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है।

★ प्लास्टिक की बोतल में या किसी अपवित्र धातु के बर्तन में गंगाजल नहीं रखना चाहिए। अपवित्र धातु जैसे एल्युमिनियम और लोहे से बने बर्तन। गंगाजल तांबे के बर्तन में रखना शुभ रहता है।

★ स्त्रियों को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख नहीं बजाना चाहिए। यह इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो जहां शंख बजाया जाता है, वहां से देवी लक्ष्मी चली जाती हैं।

★ मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ दिखाकर नहीं बैठना चाहिए।

★ केतकी का फूल शिवलिंग पर अर्पित नहीं करना चाहिए।

★ किसी भी पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए। दक्षिणा अर्पित करते समय अपने दोषों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए। दोषों को जल्दी से जल्दी छोड़ने पर मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी।

★ दूर्वा (एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोडऩी चाहिए।

★ मां लक्ष्मी को विशेष रूप से कमल का फूल अर्पित किया जाता है। इस फूल को पांच दिनों तक जल छिड़क कर पुन: चढ़ा सकते हैं।

★ शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र छह माह तक बासी नहीं माने जाते हैं। अत: इन्हें जल छिड़क कर पुन: शिवलिंग पर अर्पित किया जा सकता है।

★ तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक बासी नहीं माना जाता है। इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़कर पुन: भगवान को अर्पित किया जा सकता है।

★ आमतौर पर फूलों को हाथों में रखकर हाथों से भगवान को अर्पित किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए। फूल चढ़ाने के लिएफूलों को किसी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और इसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को अर्पित करना चाहिए।

★ तांबे के बर्तन में चंदन, घिसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए।

★ हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि कभी भी दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलते हैं, वे रोगी होते हैं।

26/11/2020

सही हो ।

30/10/2020

माता लक्ष्मी

17/10/2020

दशैको शुभकामना सबैलाई

04/10/2020

छोरी

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