suman bewafa
माँ आएगी तो हमारे लिए जलेबियाँ लाएगी माँ की प्रतीक्षा कर रहे एक कुलीन परिवार के बच्चे तरह-तरह की कल्पनाएँ कर रहे थे। कोई कह रहा था कि हमारे लिए खिलौने लाएँगी, तो कोई कह रहा था हमारे लिए नए कपड़े। इसी प्रकार की तरह-तरह की कल्पनाएँ और बातें कर रहे उन बच्चों की पलकें नींद से बोझिल होने लगी थीं।
तभी मकान के दरवाजे से उन्होंने अपनी माँ को प्रवेश करते हुए देखा। रिक्शे से उतरकर रिक्शे वाले को उनकी माता ने पैसे चुकाए और साथ में जो थोड़ा-बहुत सामान था वह उतारने लगी। कमरे में बैठे बच्चे अपनी माँ को आई देखकर दौड़ उठे और भागे वहाँ से। सामान अभी कमरे तक पहुँच भी नहीं पाया था कि बच्चों ने सारी खाना तलाशी ले ली।
और कुछ न पाकर आशा भरी दृष्टि से देखकर पूछा माँ हमारे लिए मिठाइयों नहीं लायी।
"लायी तो थी बेटे" परंतु -
अभी बात पूरी न हो पायी थी कि जिस बच्चे ने अपने लिए खिलौने की कल्पना की थी वह पूछ बैठा और माँ हमारे लिए खिलौने।
खिलौने भी लाई थी बेटा-
इस बार भी माँ की बात अधूरी रह गई और कपड़ा वाला बच्चा पूछ उठा-मेरे लिए कपड़े।
कपड़े भी लाई थी । और इस बार माँ ने अपनी बात पूरी की, परंतु उनके शब्द तीनों-चारों बच्चों द्वारा एक साथ पूछे गए प्रश्न से दब गए। सबने एक स्वर में कहा लाई, परंतु थैलों में तो एक भी
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Dimag se
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