Dr. Ramdeo Jha
Dr.RamdeoJha was a noted Maithili writer.He was a great Researcher, novelist, dramatist, translator.
नहि रहलाह डॉक्टर शिवाकांत पाठक। श्रद्धांजलि
Via admin
गोत्रन्नो वर्धताम् वेदाः सन्ततिरेव च ॥
श्रद्धा च नो माव्यगमद्बहुदेयं च नोऽस्तु ।
अन्नञ्च नो बहु भवेदतिथींश्च लभेमहि ॥
याचितारश्च नः सन्तु मा च याचिष्म कञ्चन ।।
एताः सत्या आशिषः सन्तु ॥
Sure, here is the revised translation:
"May our lineage grow, and may the Vedas flourish.
May we have many descendants, and may our faith remain steadfast.
May we always have plenty to give in charity.
May we have abundant food, and may guests keep visiting our home.
May we always be in a position to give and never have to beg from anyone.
May these true blessings be ours."
"पसिझैत पाथर" (नाट्य संग्रह) पर साहित्य अकादमी पुरस्कारक घोषणा पश्चात स्नातकोत्तर मैथिली विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय (जतय स्व० डा० रामदेवझा स्वयं कार्यरत छलाह) द्वारा डा० रामदेवझाकेँ वर्ष 1992मे सम्मानित कएल गेलनि।
सम्मान समारोहमे उपस्थित छलाह— सर्वश्री सुरेन्द्रझा'सुमन', डा० मदनेश्वरमिश्र, चन्द्रनाथमिश्र'अमर', डा० शैलेन्द्रमोहनझा, डा० नवीनचन्द्रमिश्र, डा० अमरनाथझा, डा० रत्नेश्वरमिश्र, डा० लक्ष्मणचौधरी'ललित', डा०नीताझा, रमानाथमिश्र'मिहिर' आ अन्यान्य विद्वद्जनक संग मैथिली विभागक समस्त छात्रगण।
@ समारोहमे हम तँ रही किन्तु तिथि स्मरण नहि अछि।
एडमिन — कृष्णदेवझा
A reproduction of commentary of babuji Dr. Ramdeo Jha on Shaivite (Shaivism) literature of Acharya Surendra Jha Suman
'नम: शिवाय' स्तोत्रम
न
नन्दी निकटे नागेश नटेश्वर
नाथ नित्य नाचथि नङटे
नयनानल नियमित निशानाथ
नटवर नकारमय नमस्कार।।
म
मदनान्तक मृत्युञ्जय महेश
मानी मसान-निलयन मठेश
महिमामय माटिक महादेव
मनसा मकारमय नमस्कार।।
शि
शिर शोभित शिशु शशि शीत-शीत
सुरसरिक शीकरें शिशिर शीश
शीलित शेषें शिव शुचि शरीर
शंकर शकारमय नमस्कार।।
वा
विषपायी विषधर व्यापित वपु
वृषवाहन वसन-विहीन विदित
वर वरद बड़दवाहन विभूति
वं वं वकारमय नमस्कार।।
य
यतिवर यज्ञान्तक यज्ञजनक
युगजीवी याज्ञिक योगयुक्त
योगी यक्षेशक सहयोगी
जय-जय यकारमय नमस्कार।।
ई शिव स्तव सुमनजीक द्वारा रचित एक लघु काव्यकृति अछि। ई 1969 इ० मे प्रकाशित 'शिवमहिमा'क आरम्भ मे देल गेल अछि। शंकराचार्य द्वारा रचित 'शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम' अत्यन्त प्रसिद्ध शिव-स्तुति मानल जाइत अछि। प्रायः मिथिलाक प्रत्येक शिव मन्दिर मे शिव आरतीक समय एहि स्तोत्रक पाठ वा गान कयल जयबाक परम्परा अछि। एहि स्तोत्रक ई विशेषता अछि जे 'ओम नमः शिवाय' मे स्थित पाँच गोट व्यंजन न, म , श, व तथा य केर प्रत्येक वर्ण पर आरब्ध पाँच गोट पद्य अछि, यथा पहिल पद्य 'न' सँ आरम्भ होइत अछि:--
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनायभस्माङ्गरागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः शिवाय।।
कतेको विद्वान सुमनजी रचित 'शिव महिमा' के शंकराचार्य विरचित 'शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम'क अनवाद मानबाक पक्ष मे देखल जाइत छथि।
परन्तु ई सुमनजीक मौलिक काव्य कृति छनि जाहि मे कवि शंकराचार्यक पद्धति पर ओम नम: शिवाय अनुशरण करैत पाँच गोट पद्यक रचना कयने छथि।
परन्तु ई सुमनजीक मौलिक काव्य कृति छनि जाहि मे कवि शंकराचार्यक पद्धति पर ओम नम: शिवाय अनुशरण करैत पाँच गोट पद्यक रचना कयने छथि।
शिव महिमा मे प्रत्येक पद्य मे वृत्यनुप्रासाक विलक्षण प्रयोग करैत एहि स्त्रोतक रचनाकयल गेल अछि। पहिल पद्य मे यदि 'न' केर आवृत्ति अछि तँ दोसर पद्य मे 'म' वर्णकेर आवृत्ति अछि। क्रमश: तेसर मे 'स' चारिम मे 'व' पाँचम मे 'य'वर्णक आवृत्ति अछि।
तात्पर्य ई जे शिवक नाम, विशेषण, कृति इत्यादिक व्यंजक एहन शब्दावलीक संचय कयल गेल अछि जे प्रत्येक वर्णक ताहि विषयक शब्द मे विद्यमान अछि। ओ शब्द सभ विभिन्न पुराण, निगमागम आदि सँ संकलित कयल गेल अछि। शिवक जतेक अविधान पर्यायवाची शब्द कृति ओ वैशिष्ट्य व्यंजक शब्द सब किछु ने किछु भारतीय वाङ्गमय मे संकेतित अछि।
नटवर यदि ताण्डव नृत्यक स्मरण करबैत अछि तँ 'मदनान्तक' विशेषण मदन दहन प्रसंगक संकेत करैत अछि। यदि विषपायी विशेषण समुद्र मन्थन सँ बहार भेल हलाहल विषक पान करबाक पौराणिक प्रसंग के स्मरण दियाबैत अछि तँ 'यज्ञान्तक' विशेषण दक्ष प्रजापतिक यज्ञ ध्वंसक स्मरण दियाबैत अछि।
एतावता एहि लघु स्तुति पद्य मे सुमनजी द्वारा भारतीय पौराणिक वांग्मयक गहन अध्ययनक प्रमाण भेटैत अछि।
शिव महिमा मिथिलाक विभिन्न शिव मन्दिर मे उत्कीर्ण वा नित्य गान करबाक परम्परा चलि पड़ल अछि। उदाहरणार्थ दरभंगा जिलाक मुख्यालय लहेरियासराय स्टेशन सँ उत्तर स्थित दुर्गा मन्दिर नाम सँ प्रसिद्ध मन्दिरक प्रांगण मे अवस्थित शिव मन्दिरक मुख्य द्वार पर सुमनजी शिव महिमा उत्कीर्ण देखल जा सकैत अछि।
भविष्यपुराण में महाकवि विद्यापति का वर्णन, इसके अनुसार महाकवि उचितगाम के निवासी थे
महाकवि विद्यापति का विस्फी ग्राम का निवासी होना एक सर्वविदित और सर्वस्वीकार्य एतिहासिक तथ्य है . इस पर कितने ही अनुसन्धान हो चुके हैं और यह मान्यता स्थापित है . फिर भी अनुसन्धान के क्रम में बहुत सारी अद्भुत बातें सामने आती हैं .
कलकत्ता के संस्कृत महाविद्यालय में भविष्यपुराण की एक पांडुलिपि है जिसके अनुसार महाकवि विद्यापति ‘उचितगाम’ के मूल निवासी थे . यह गाँव कहाँ है मुझे ज्ञात नहीं संभवतः मंगरौनी के पुर्व में हैं . करीब सताईस पंक्तियों में विद्यापति, उनके कुल और उनके धार्मिक परम्परा का विवरण दिया हुआ है . उनका कुल आगमभूषण के नाम से प्रसिद्ध था और वह शक्ति के उपासक थे. यह भी कि उनका कुल शक्ति पूजा के ‘वीर’ संप्रदाय का संस्थापक था और महाकवि स्वयं सिद्ध तांत्रिक थे . उक्त ग्राम में आद्या देवी का मंदिर है जो ग्राम वासियों का कल्याण करती हैं . यहाँ विद्यापति नामक ब्राह्मण हुए जो सिद्ध और परम धार्मिक थे . विद्यापति के विषय में जो कुछ भी कहा गया है वह महाकवि विद्यापति के गुण और चरित्र से मिलता है . जिज्ञासा उनके मूलग्राम (उचितगाम), कुल परिचय (आगमभूषण) और शक्ति संप्रदाय को लेकर है .
इस पाण्डुलिपि पर जो तिथि अंकित है वह कलियुग संवत की संवत की है साल 4500 जो 1399 के आसपास ठहरती है .
उक्त पाण्डुलिपि और अंकित तिथि कितनी प्रमाणिक है मुझे नहीं पता परन्तु भविष्यपुराण की यह प्रति कलकत्ता के संस्कृत महाविद्यालय में है .
मैंने माँ बाबुजी की यह दुर्लभ छवि राँची के रॉक गार्डन में ली थी। राँची में इसका फ्रेमिंग करा कर रखा था। परंतु दुर्भाग्य की 2021 में लैपटॉप पर वायरस अटैक के कारण बहुत सारा महत्वपूर्ण संग्रह नष्ट हो गया जिसमें यह फोटो भी था। विगत तीन सालों में इस फोटो को बहुत सारे डिजिटल डिवाइस और स्पेस में खोजा भी मगर मिला नहीं। दैवयोग से खोजते खोजते अकस्मात एक सप्ताह पहले उसी हार्डडिस्क में मुझे यह फोटो मिल गया जो वायरस अटैक में नष्ट हो गया था। एकाएक वह क्षण मुझे याद आ गया जब मैने यह फोटो लिया था फिर माँ बाबुजी के जाने की गहरी पीड़ा फिर ने गला घेर लिया।
आज चंडीगढ़ के सबसे बेहतर फोटो लैब से इस फोटो की दो बृहदाकार प्रति फ्रेम करायी एक अपने साथ और दूसरा घर पर। अपने बेहतर quality के कारण यह फोटो लैब आम लैब की तुलना में काफी महँगा है।
मैंने हमेशा ही माँ बाबुजी के सदैव अपने आसपास होने का सूक्ष्म अनुभव किया है और यह मेरा कोई भ्रम नहीं हैं। अपने जन्मदाता के प्रति मनसा वाचा कर्मणा समर्पित रहना चाहिए। यह वह ऋण है जिससे आप मुक्त नहीं हो सकते। यह वह ऋण है जिसे जितना चुकाएंगे आपका कोष उतना ही समृद्ध होगा।
साल २०१४ रांची प्रवासक छवि
मनुक्ख कैं के कहय, चिरँई-चुनमुन्नीकैं ओकर माय संसारक सभसौं प्रिय लोक होइत छैक. मुदा हमरा मायक मुँहे नहिं स्मरण अछि.हमरा मायक डा० रामदेव झा बड़ प्रिय रहथिन्ह. ओ हुनका मौसी कहथिन्ह. सात बरख पहिने हम हिनकासौं मायक रंग-रुपक जिज्ञासा कहलियनि.ओ बड़ भावुक भ'गेलाह. कहलथिन्ह हमरा हुनक मुँह फोटोजेकाँ एखनहुं मोन अछि. पुत्र संग छल. ओहो उत्सुक भ' गेल. ओ कहलकनि.' कका,जौं हमरा डिक्लेयर लिखा देब त'हम एकटा फौरेन्सिक विभागक परिचित कलाकारसौं विवरण द' स्केच बनवा लेब,आ अपनेकैं पठा देब.फेर अपने ओहिमे आवश्यक संशोधनक सुझाव द' फाइनल क' देबै त' हम ओकर आयल पेंटिंग बनवा लेबै. ओ मानि गेलाह. मुदा करोना डाइनक कारणे सभ योजना विफल भ' गेलै. अपन दुनु ठेहुनक पूर्ण प्रत्यर्पण पांच, हमरो करोना भ' गेल.
एहिसं अधलाह की हेतै जे कोनो पुत्रकैं ओकर मायक मुँहे नहिं मोन होइ. हजारक हजार पोथी पढल. अंग्रेजीमे सर्वाधिक, मैथिलीमे सभसौं कम, होश संभारलापर पढल कोनो पोथीक उल्लेख होइते ओकर चरित्र तैयार रहैत छी, मुदा मायक मुँहे नहिं मोन अछि. मायक दाह संस्कारक किछु बातो मोन अछि, मुदा मायक मुंह पर रामदेव भइयाजेकां आश्वस्त नहिं छी.
एहिसौं पैघ कोन अभाग हेतै जे हुनका देहान्त दिन हम पयरक असमर्थताक कारणे हुनका लग अयलाकबादो पंचकठिया देमयलेल नहिं जा सकलहुँ. हुनक जेठका जमायो हमरेलग पश्च शल्यलाभक कारणे हमरेजेकाँ मोन मसोसि रहि गेलाह.
हमरालेल सभक माय माता छथि जिनक हम ऋणी छी आ रहब.
By
Ganesh Kumar Jha
Babuji was ‘Academically unbeatable and literary unputdownable’
Unrivaled in academia, irresistible in prose—academically unmatched, and literary irresistible.
कहियो हस्तलिखित पत्रिका निकालबाक प्रचलन रहैक। अपन छात्रावस्थामे हस्तलिखित पत्रिका प्रकाशनमे स्व० डा० रामदेवझा आगू रहैत छलाह।
एही क्रममे #सूरत_लाल (लाइब्रेरियन, कमला लाइब्रेरी, लहेरियासराय) आ #रामदेवझा क संयुक्त संपादनमे ' #भावना' नामक पत्रिका बहरायल छल। एहि पत्रिकाक प्रबंध सम्पादक छलाह स्व० #महेश्वरठाकुर। भीठभगवानपुरक वासी स्व० महेश्वर ठाकुर रामदेवझाक अभिन्न मित्र छलथिन जिनकर छात्रावस्थहिमे देहान्त भऽ गेल रहनि। हिनक चर्चा रामदेवझा सदैव करैत रहैत छलाह। पत्रिकाक लिपिकार छलाह #श्यामनन्दनप्रसाद'नन्द'।
आइ हुनक(स्व०रामदेवझा) मोबाइल उधेसबाक क्रममे ओहि पत्रिकाक किछु स्फुट पन्नाक चित्र भेटल।
@ एडमिन
*उपाध्यायान् दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता।*
वैकुण्ठ लोक प्रस्थान से दो दिन पूर्व अपने बुलावे की प्रतीक्षा कर रहे शैया में लेटे बाबूजी ने मुझसे पूछा "अहाँकेँ पञ्चाङ्ग देखय अबैत अछि, शिव वास कोन दिन पड़ैत छैक" (पञ्चाङ्ग देखना तो आता ही है। देखकर बताओ की शिव वास किस दिन है)
मैंने देखकर बताया: "बाबूजी 18 मार्च के परात (प्रातःकाल) शिव वास आरम्भ भअ जाइत छैक।
नीक दिन छैक (शुभ दिन है)
फिर उन्होंने पूछा: "अहाँके निर्वाण षट्कम स्मरण अछि त सुनाउ। हम जाँच करब जे अहाँ झुट्ठे पूजा पाठ करैत छी कि किछु अबितो अछि। "
"मुदा एखन निर्वाण षट्कम किएक पढू? ई बहुत पैघ श्लोक छैक। अहाँक स्वास्थ्य ठीक भ जाएत तखन सुनायब" मैंने उत्तर दिया
"आब हम सतासी वर्षक भेलहुँ हमरा लेल मोह नै करू। अहाँक माथ में बहुत हलचल रहैत अछि। ई श्लोक पैघ नै छैक। जतबे पंक्ति स्मरण अछि ततबे सुना दिअ देखब जे अहाँकेँ कतेक अबैत अछि।"
मैंने दो पंक्ति सुना दिया
"न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः पिता नैव मे नैव माता न जन्म।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥"
हमरा ने मृत्युक भय अछि, ने हमरा कोनो जाति भेद अछि, ने हमर कियो पिता छथि आ ने माता, न हमर जन्म भेल अछि, न हमर कियो भ्राता थिक, ने मित्र, ने गुरु आ न कोनो शिष्य, हम चैतन्य रूप छी, आनंद छी, शिव छी।
18 मार्च 2021 को शिव वास मुहूर्त आगमन के तुरंत बाद बाबूजी के परलोक गमन का संकेत विप्लव रूप धारण कर चुका था। साँस छूट रही थी, आत्मा काया छोड़ा चाहती थी मगर मैं, मेरी पत्नी, भतीजी और अन्य सभी बार बार सीना फाड़ देने जैसा आर्टिफीसियल ब्रीदिंग देकर आत्मा को अंदर धकेल दे रहे थे। लेकिन आत्मा चुपके से निकल गयी। जीवन में कुछ दृश्य और घटनाएँ ऐसी होती हैं कि सात जन्मों तक आपके मन मस्तिष्क पर इसका छाप रह जाता है। आपके जीवन का अक्ष ऐसा घूमता है जैसा कभी अद्भुत ब्रह्मांडीय घटना में पृथ्वी का हुआ था। बाबूजी का जाना कुछ ऐसा ही था।
उपाध्यायान् दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता।
ओह! देखिये स्याही सूख गयी
The crown is is already set upon your hallowed head owing to your lifetime efforts, even though we see the crown and not the head that lies in the perfect ease and peace.
पिता धर्म: पिता स्वर्ग: पिता हि परमं तप:
पितरि प्रीतिमापन्ने सर्वा: प्रीयन्ति देवता:
पितुः प्रियतमो देवः, सर्वदा स्मरणीयतः।
सर्वेषां सखिनां श्रेष्ठो, पिता धर्मात्मकः स्मृतः॥
On this day, the star slept into silence.
दि० 16/12/1979केँ कविवर उपेन्द्र ठाकुर 'मोहन'क सम्मानमे स्व०डा० रामदेवझा द्वारा रचित ई अभिनन्दन पत्र....
@एडमिन
God embraced His morning beams for ever.
But those who have glory and good name remain alive.
हमारे द्वारा मैथिली में अनुदित पुस्तक असामक वीरयोद्धा लाचित बोड़फुकन का लोकार्पण केन्द्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह और आसाम के मुख्यमंत्री श्री हिमंत विश्व शर्मा द्वारा कल गुवाहाटी में होगा।
Dedicated to my parents and Nanaji. Pushing and protecting me always, in my battle and endeavour, they must watching me glifully from heaven.
Vijay Deo Jha
Maithili language and literature lost her last man, the doyen, the authority. Centenarian Pandit Govind Jha left for heavenly abode.
आधुनिक मैथिली साहित्यक आरम्भ साधारणतः 19म शताब्दीक तृतीय चरणसँ मानल जाइत अछि ।
आधुनिक युगक प्रवर्तकक रूपमे कवीश्वर चन्दाझा सर्वमान्य छथि । हुनक सत्प्रेरणासँ बीसम शताब्दीक आरंभिक दशकमे अनेक व्यक्ति मिथिलाभाषाक अभ्युन्नतिक दिशामे प्रयत्नशील होमय लगलाह । एकरे परिणामस्वरूप 'मैथिल हित साधन', 'मिथिला मोद' तथा 'मिथिला मिहिर' सदृश पत्रक प्रकाशन आरंभ भेल। एहि पत्रक माध्यमसँ ओहि समयक अनेक संस्कृत विद्धान तथा कतेको अंग्रेजी माध्यमसँ शिक्षित व्यक्ति मिथिलाभाषाक अभ्युन्नति एवं साहित्यिक समृद्धिक दिशामे प्रभावित आ अग्रसर भेलाह। एहिमेसँ अन्यतम छलाह आचार्य सुरेन्द्रझा 'सुमन' जनिक जन्म आश्विन शुक्ल पंचमी सन 1910ई० मे समस्तीपुर जिला (पूर्व में दरभंगा जिला)क बल्लीपुर ग्राम मे भेल छल।
आचार्य सुमन संस्कृतमे समस्त शिक्षा प्राप्त कयलनि तथा एकर समस्त परीक्षामे सर्वदा प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान प्राप्त करैत रहलाह ।
25 वर्षक अवस्थामे आचार्य सुमन दरभंगाक महाराजाधिराज रमेश्वरसिंह द्धारा सन 1909ई० मे स्थापित साप्ताहिक 'मिथिला मिहिर'क संपादक सन 1935 ई० ईस्वी मे नियुक्त भेलाह । मिथिला मिहिर एक द्विभाषिक पत्र छल जाहिमे प्रमुख स्थान हिंदी तथा गौण स्थान मैथिलीक रहैत छल।
कालक्रममे आचार्य सुमन मैथिलीकेँ न केवल हिन्दीक समान दर्जा दियौलनि प्रत्युत्तर मैथिली मिथिला मिहिर'क प्रमुख भाषा बनि गेल ।
1954 ई० मे मिथिला मिहिर'क प्रकाशन- स्थगन तक एकर संपादक बनल रहलाह । एकर अतिरिक्त 1948 ई० में 'स्वदेश' नामक मैथिली मासिक पत्रिकाक संपादन- प्रकाशन प्रारम्भ कयलनि।
1955 ई० मे स्वदेश'क पुनः प्रकाशन मैथिलीक प्रथम दैनिक पत्रक रूपमे प्रारम्भ कयलनि। ई पत्र किछु महिना तक चल। पुनः 1981 ई० मे किछु वर्ष तक दैनिक 'स्वदेश'क संपादन-प्रकाशन आरम्भ कयलनि । मैथिलीमे दैनिक समाचार पत्रक सर्वप्रथम प्रकाशन मैथिली पत्रकारिताक इतिहासमे एकटा नवीन अध्याय बनि गेल।
'मिथिला मिहिर'क संपादक पद पर नियुक्तिसँ पूर्व सुमनजी संस्कृत और हिंदीमे काव्य रचनाक दिशामे प्रवृत्त छलाह। परंतु 'मिथिला मिहिर' मे अयबाक पश्चात आचार्य सुमन मैथिलियेमे रमि गेलाह। हुनका द्वारा रचित छोट पैघ पुस्तकक संख्या छह दर्जन अछि जाहिमेसँ तीन संस्कृत आ शेष मैथिलीमे अछि।
आचार्य सुमन मैथिली साहित्यक विभिन्न विधाकेँ अपन गंभीर बहुमूल्य कृतिसँ समृद्ध कयलनि । पद्यात्मक काव्यमे मुक्तक महाकाव्य, प्रबंध काव्य, खंड काव्य, कथा काव्य, बाल काव्य इत्यादि अछि ।
गत्यात्मक साहित्यक श्रेणीमे परिगणनीय अछि -- कथा, उपन्यास, संस्मरण, ललित निबंध, साहित्यिक समालोचना। भूमिका लेखनकेँ आचार्य सुमन एक विधाक रूपमेपुष्पित पल्ल्वित कयलनि । हुनका मे सामान्य रूपसँ साहित्य सिद्धांन्त कृतिकारक संस्मृति, कृतिक संस्तुतिक लालित्यपूर्ण संगम देखबामे अबैत अछि।
कोनो भाषा साहित्यमे अनुवादक महत्वपूर्ण स्थान मानल जाइत अछि । विभिन्न भाषाक श्रेण्य कृतिक आस्वादन अनुवादक माध्यमसँ प्राप्त कयल जा सकैत अछि । आचार्य सुमन एहि क्षेत्रमे सेहो महत्वपूर्ण योगदान देने छथि ।
ओ अनुवाद गद्य आ पद्य उभय रूपमे कयने छथि। आचार्य सुमन द्वारा संपन्न अनुवादक स्रोत भाषा संस्कृत आ बांग्ला रहल अछि। संस्कृतमे कालिदासक रचना बेसी प्रिय रहलनि अछि । संस्कृतक स्तुति काव्यक भक्तिपूर्वक अनुवाद आचार्य सुमन कयने छथि । बांग्लामे रविन्द्रनाथठाकुरक पुष्कल संगहि अन्यान्य बांग्ला साहित्यकार रचना सभक मैथिली अनुवाद आचार्य सुमन कयलनि।
दीर्घकाल तक आचार्य सुमन कॉलेज एवं विश्वविद्यालयमे मैथिली साहित्यक अध्यापक रहलाह। Via Admin
अतीतक गेठरीसँ
----------------------
9फरवरी 2013 में बाबूजी आ माँ सँ भेँट करबाक लेल आयल छलाह मैथिलीक बहुचर्चित, लोकप्रिय गीतकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर। भरी दिन रहलाह आ सबसँ भरि पोख गप्प कयलनि। रवीन्द्रजी आ बाबूजीक मध्य सार-बहिनोइक सम्बन्ध छलनि। ओ माँकेँ सदैव बसुली बहीन कहि सम्बोधित करैत छलथिन आ तेँ ओ हमरा सभक रवीन्द्र मामा छलाह।
आइ संयोगवश 'गुगल'केँ उकटबाक क्रममे गुगलमे सन्हिआयल ई दुर्लभ छवि अभरि आयल। धन्यवाद गुगल!
@ एडमिन
This image dates back to 1992 when Babuji Dr Ramdeo Jha, got the Sahitya Akademi award in Maithili for his literary work “Pasijhait Pathar” (Melting Stone) a collection of one-act plays. Detailed news was published in The Hindu, Times of India and many other English and vernacular dailies. These are the only memories of Babuji I am left with which I jealously preserved.
Babuji humbly accepted honour and accolades with folded hands and head down. His words of wisdom and depth of knowledge are beyond comparison. A post by admin https://archive.org/details/RamdeoJhaTheHinduSahityaAkademi/Babuji%20The%20Hindu.jpg
डॉ० रामदेवझाक सम्बन्धमे डॉ० भीमनाथझाक अभिव्यक्ति!
@ एडमिन
ज्योतिष, धर्मशास्त्र आ व्याकरणक मूर्धन्य विद्वान मिथिला शिरोमणि तुमौल ग्राम निवासी पण्डित कालीकान्तमिश्र मिथिलाक पाण्डित्य परम्पराक ध्वजवाहक छलाह। शास्त्रीय, धर्म आ व्यवहार व्यवस्था देनिहार पण्डितजीक निधन मिथिला लेल अपूरणीय क्षति थिक। शरीर नश्वर थिक मुदा प्रतिष्ठा आ पाण्डित्य नहि। सादर नमन।
फेर हेतै भोर
🙏 नमन श्रद्धाञ्जलि 🙏
मिथिलाक प्रसिद्ध समाजशास्त्री विद्वान् प्राध्यापक पद पर प्रतिष्ठापक, छात्र हितमे समर्पित महान् समाजशास्त्री प्रोफेसर डाक्टर उग्रनाथ झा आइ शिवसायुज्य प्राप्त भेलाह। मिथिला आ अकादमिक जगतक लेल अपूरणीय क्षति। via admin
1971 ई मे सीएम कॉलेज दरभंगा द्वारा आचार्य सुरेन्द्रझा 'सुमन' क सम्मानमे आयोजित अभिनन्दन समारोहक दुर्लभ छवि।
Via admin
कविचूड़ामणि काशीकान्तमिश्र मधुपकेँ नमन।।