All types Beauty Home decorations

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Every person wants live in a good manner,all omforts must urgent in life. After stress and tension life wants few minutes with family relief and omforts.

come and anjoy this group household supplies. This group is only for friends ,no one can make member without permission of admistrative.

27/04/2024

आधार छंद -विधाता
मापनी -लगागागा लगागागा लगागागा लगागागा
शब्दांत - बुलाओगे
दिखे दुश्मन खड़ा जो सामने पग ना हटाओगे
बने आफत खरे मन लक्ष्य लेकर तुम सताओगे,
भरी सी चालबाज़ी जिन्दगी में ठान लेना तुम-
भले मन सादगी आदत कभी उसको बुलाओगे।
स्वरचित -रेखा मोहन पंजाब

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14/04/2024
14/04/2024

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28/03/2024

तिथि- 27-03-24
वार- बुधवार
212 212 212
तीरगी ज़ूल्म नाते रहे
रोशनी कर खिलाते रहे | |
रोज बैरी ज़माना रहा
जिंदगी कह निभाते रहे ||
पेट खाना भरा सोचना
हाल सबको दिखाते रहे ||
वोट की चाह करते सभी।
धन पिपासा बनाते रहे ||
जब लगे होड़ में ही रहे
चाल क्या क्या बनाते रहे ||
मौत का खेल सी आदते
मौन बन मार खाते रहे ||
गम भरी साजिशे मायने
वक्त लिए से नचाते रहे ||
मंद चलते लगे ठोकरें,
ये पड़ी मार दिखाते रहे||
गान मोहक सुरो गा रहे ।
हर समय ग़ज़ल गाते रहे ।।
कल मिलगे चले अब जरा
सोच देरी को सुनाते रहे ||
स्वरचित -रेखा मोहन पंजाब

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26/03/2024

आदरणीय विद्वत मंच को सादर समर्पित:-
छंद- - माता, 11 वर्ण
मापनी - गागागा लल,ल ललल गागा
पिंगल - म न न ग ग (5-6)

पीड़ा से मन, विचलित होता,
रातों में यह, जगकर सोता।
है ये जीवन, विवश कहानी,
जो देती उर, सजल निशानी।

कृष्णा श्रीवास्तव

20/03/2024

आधार छन्द- दोहा
विधान -मापनीमुक्त अर्धसम मात्रिक, 13,11,13,11 मात्रा के चार चरण,
# विषय पान
# दिनांक १९/३/२४
भोजनान्त खाते सभी, पान पुराने लोग ।
अब तो मँहगा हो गया, बंद हुआ उपयोग ॥
पान बताशा नारियल, पुष्प लौंग ताम्बूल ।
भक्ति मातु स्वीकारिए, हरिए कष्ट समूल ॥
महादेव शिव जी हुए, किया हलाहल पान ।
परहित जो पीता जहर, होता वही महान ॥
स्वरचित -रेखा मोहन पंजाब

13/03/2024

शोहरत, न तालियों का मुझे शोर चाहिए, नुक्कड़ पे चाय मिल गयी क्या और चाहिए. ख़त्म होने दो बंदिशें सभी, सब मिलेँगे यार चाय पर कभी.
अभिव्यक्ति -
वो पुराने दोस्त, वो कुल्हड़ की चाय,
वो पल लौट आये तो मज़ा आ जाय.
विस्कुट पकड़ कुछ कहना सुनना जो
शांति भर ले घूंट, झूमते से मुस्काय । .
हो सुहाने अवसर ,जब ही मिल जाय
चाय की खुशबू के ,संग मन हर सुनाय।
कुछ पल के लिए ,पपड़ी बन टल रुक
हो कर फिर नवल,पग बन सा बताय।
स्वरचित -रेखा मोहन पंजाब

13/03/2024

DRIVING TO WORK.
People jogging in the parkway,
Couples walking hand in hand,
Fellows rushing for a taxi,
Leggy ladies falsely tanned,
Dogs escorted by their owners,
Wearing fifty shades of grey,
Drunks sitting in damp doorways,
Just begging you to pay.
All the things I daily see,
In a place I hate to be.
Street vendors and street urchins,
Graffiti called wall art,
Cars stuck in the traffic,
As there is no where to park,
A woman in a panic,
For her child has ran away,
The loudest roar of thunder,
On another rainy day.
All the things I daily see,
In a place I hate to be.
I feel this hunger of the city,
One huge man-made machine,
Never stopping to catch breath,
Just spinning like a wheel,
Designed to rob you of your worth,
With smiles that say to you 'Good Day,'
But everywhere you turn,
There's a heavy price to pay.
All the things I daily see,
In a place I hate to be.
A.A.HEDLEY (cpyrt) 9/3/16.

08/03/2024

ग़ज़ल -
÷ बह्र 2122 112,2 22 ( 112 )
हम बिराने में किधर जायेंगे
हम तो खुशबू हैं बिखर जाएंगे|
चमन में नजर लिये देखे जो
खार में ठहर फसा पाएंगे |
गम भरा मन किस को समझाये
ले अब खामोश सफर जाएंगे|
अब रकीबो से ना डरना है
चाह श्रम से कि नगर जाएंगे|
हो फिदा शवनम सी डगर पाएंगे
हर फसाने मान निखर जाएंगे |
स्वरचित -रेखा मोहन पंजाब
ग़ज़ल -
÷ बह्र 2122 112,2 22 ( 112 )
हम बिराने में किधर जायेंगे
हम तो खुशबू हैं बिखर जाएंगे|
चमन में नजर लिये देखे जो
खार में ठहर फसा पाएंगे |
गम भरा मन किस को समझाये
ले अब खामोश सफर जाएंगे|
अब रकीबो से ना डरना है
चाह श्रम से कि नगर जाएंगे|
हो फिदा शवनम सी डगर पाएंगे
हर फसाने मान निखर जाएंगे |
स्वरचित -रेखा मोहन पंजाब

07/03/2024

मुक्तक -
शहर दो चार दिन से रुलाता मुझे
गाँव मेरा सदा याद आता मुझे।।
खेत घर में पला क्यूँ दिखाता मुझे
हर घड़ी ख्वाब में क्यूँ बुलाता मुझे।।
स्वरचित -रेखा मोहन पंजाब

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